मंगलवार, 26 मार्च 2013

हजल

हजल-7

झाड़ू उठा मारलनि बेलन चला मारलनि
कोना कहब अपने मुँहे, करछुल धिपा मारलनि

खगता तँ दूधक मुदा दोकानमे सठल छल
ओ देख पाउडर दूधक नऽह गड़ा मारलनि

बासी बचल खीर हमरे लेल राखल सदति
मिसियो जँ छूटल तँ ओ चेरा उठा मारलनि

साड़ी कते कीन फेकत माँझ आँगन नचा
हम सैंत नै सकल तें घेंटी दबा मारलनि

जे पीब लेलौं कने ओ झाड़ि देलनि नशा
हम रंग लगबौं तँ ओ दाँते धसा मारलनि

ने हम बचब ने बचत सड़ि गेल हमरे गजल
कनियाँ हमर कलमपर नैना चला मारलनि

मुस्तफइलुन-फाइलुन
2212-212 दू बेर
बहरे-बसीत

अमित मिश्र

सोमवार, 25 मार्च 2013

गजल



आइ सगरो गाममे हाहाकार छै
मचल एना ई किए अत्याचार छै

आँखि मुनने बोगला बैसल भगत बनि
खून पीबै लेल कोना तैयार छै

देखतै के केकरा आजुक समयमे
देशकेँ सिस्टम तँ अपने बेमार छै

देखते मुँह पाइकेँ कोना मुँह मोरलक
मांगि नै लेए खगल सभ बेकार छै

भरल भिरमे एखनो धरि एसगर छी
केकरो मनपर ‘मनु’क नै अधिकार छै

(बहरे जदीद, मात्रा क्रम – २१२२-२१२२-२२१२)
जगदानन्द झा ‘मनु’        

शुक्रवार, 22 मार्च 2013

गजल

गजल-1.57

नै ककरोसँ कखनो फसल झगड़ा रहितै
यदि जगमे बनल नै नेह भाषा रहितै

नै डरतै महल शीशाक, पाथर लऽग जा
यदि सब नेउँमे मजगूत ईटा रहितै

चहुँ दिश भेटितै कननी दरद आ विरहिन
सभक प्रेमिका भागसँ जँ राधा रहितै

आधा ज्ञान सदिखन बनल घातक दुश्मन
सब बनितै अपन घट भरल पूरा रहितै

बीच्चे सड़कपर नवजात तन नै रहितै
यदि मिसियो बचल माएक ममता रहितै

2221-2221-2222
अमित मिश्र

गजल

गजल-1.57 नै ककरोसँ कखनो फसल झगड़ा रहितै यदि जगमे बनल नै नेह भाषा रहितै नै डरतै महल शीशाक, पाथर लऽग जा यदि सब नेउँमे मजगूत ईटा रहितै चहुँ दिश भेटितै कननी दरद आ विरहिन सभक प्रेमिका भागसँ जँ राधा रहितै आधा ज्ञान सदिखन बनल घातक दुश्मन सब बनितै अपन घट भरल पूरा रहितै बीच्चे सड़कपर नवजात तन नै रहितै यदि मिसियो बचल माएक ममता रहितै 2221-2221-2222 अमित मिश्र

बुधवार, 20 मार्च 2013

गजल

गजल-14

छी दूर मुदा आँखिमे रहू प्रिय
आबि कऽ सपनामे जगबू प्रिय

नै दिन नै राति बुझै मनवाँ
आब विरहक दर्द सहू प्रिय

फागुन मास रंगीन छै दुनियाँ
अहाँ बेरंग किए छी कहू प्रिय

सुन्न लागै अपन घर आँगन
आयब कहिया सेहो लिखू प्रिय

आबि गेल फगुआ कतऽ छी अहाँ
मिसियो भरि रंग लगाबू प्रिय

बाट अहींके बाट तकैत अछि
"सुमित" कहै झटसँ आबू प्रिय

वर्ण-12
सुमित मिश्र
करियन, समस्तीपुर

मुइलहा चाममे दरद नै होइ छै-मैथिली गजल


रविवार, 17 मार्च 2013

रुबाइ


रुबाइ-166


झूकल आँखि एना करेज ढहल जेना

दुख गेलौं बिसरि अनमन बनलौं नेना

नेहक शरबतक सुआद जे बता देलौं

मिझबै छी पियास आब जेना-तेना

गजल

गजल-1.56

आउ बनबी घर एहन प्रिये
सदति बाजै जतऽ कंगन प्रिये

डरसँ भेले छै पात सब पियर
जखन एलै पतझड़ सन प्रिये

लोक चैनसँ नै बैस सकत जतऽ
बूझि लिअ ओतै बन्हन प्रिये

अपन लाजसँ सजबू अपन भवन
काटि लेबै मिल जीवन प्रिये

छूटि जेतै लाठी करसँ सगर
जोड़ जग भरिकें आँगन प्रिये

दावपर लागल अछि कलम "अमित"
द्रोह बनि आ तूँ सावन प्रिये

2122-2212-12
अमित मिश्र

अमित मिश्र जीक गजल हुनक अपने अवाजमे-32


अमित मिश्र जीक गजल, हुनक अपने अवाजमे-31


अमित मिश्र जीक गजल, हुनक अपने अवाजमे-30


अमित मिश्र जीक गजल, हुनक अपने अवाजमे-29


शनिवार, 16 मार्च 2013

गजल


अहाँ पिआर करु हमरा हमर बसन्ती पिया
अपन बाबूक नहि हम  आब रहलहुँ  धिया

बहुत जतनसँ  सोलह बसन्त सम्हारलहुँ
आब नहि सहल जाइए हमर टूटेए  हिया

नेह रखने छी नुका कए कोंढ़ तर अहाँ लए
रुकि नहि जुलूम करु हमर तरसेए जिया

आब आँकुर फूटल पिआरक अछि चारू दिस
अहाँ जे रोपलौं  करेजामे हमर प्रेमक बिया

आउ हमरा सम्हाइर लिअ हमर सिनेहिया
अहाँकेँ सप्पत दै छी करियौ नै ‘मनु’ एना छिया

(सरल वार्णिक बहर,  वर्ण-१८)
जगदानन्द झा ‘मनु’

गजल

गजल-1.55

राति जेना जेना जुआन भेल गेलै
चान तेना तेना पुरान भेल गेलै

रोजगारक आटासँ जखन बनल रोटी
गाम घरमे तखनसँ लवाण भेल गेलै

रहब भारी छै इज्जनसँ अनोन जगमे
हम तँ रहलौ तैयो कटान भेल गेलै

मौलबी पण्डित राम आ खुदाक नामसँ
ठाढ़ सगरो लूटिक मचान भेल गेलै

भरल छल ताशक महलमे हवा सिनेहक
तें तँ सहि झन्झा बड गुमान भेल गेलै

रूप एहन ऐना लजा रहल मिलनपर
रातिरानी सेहो हरान भेल गेलै

घुरत घरमे नेनपन हँसत जखन नेना
आब "अमितक" घर नव विहान भेल गेलै

2122-2212-1-2122

अमित मिश्र

रुबाइ

रुबाइ-165

तोड़ी पियर पसरल सगर बाध अनन्त
मोनक उपवन धरि धूरि एलै बसन्त
नव रंग संग खेल रहल होली वसुधा
हे राम नै होइ कखनो नेहक अन्त

शुक्रवार, 15 मार्च 2013

गजल

गजल-13

नवका रंगमे रंगा रहल छै
अपनों लोकसँ डेरा रहल छै

बिसरि जाऊ सब बाग बगीचा
सबटा सपना उड़ा रहल छै

माँटि बनल आब गरदा देखू
अप्पन जिनगी जड़ा रहल छै

कतऽ छै कल-कल निर्मल धारा

छोड़ि संग सब पड़ा रहल छै

मोन कलपै छै समय देख कऽ
नीर नैन आब चोरा रहल छै

"सुमित" चाहत प्रेम सदिखन
डोरि सिनेहक जोड़ा रहल छै

वर्ण-12
सुमित मिश्र
करियन,समस्तीपुर

गुरुवार, 14 मार्च 2013

गजल

हे राम बसु मनमे हमर
ई प्राण धरि तनमे हमर

सदिखन अहीँक ध्यानमे
नै मन बसै धनमे हमर

प्रभु दरसकेँ आशासँ ई
भटकैट मन बनमे हमर

एतेक मन चंचल किए
प्रभु रहथि कण कणमे हमर

हे राम ‘मनु’पर करु दया
नै मन बहै छनमे हमर

(बहरे रजज, मात्रा क्रम २२१२-२२१२)
जगदानन्द झा ‘मनु’        

गजल


पासी भाइ ठोरमे ताड़ी लगा दे हमरा
हम छी मरल आब तोंही सभ जिया दे हमरा

देशक तंत्र भेल छै मजगूत कोना मानू
जनता केर दुख हटा ई सभ बुझा दे हमरा

हम डिबिया बनब कने तों आबि जो फनिगा बनि
आ जरि मरि क' आब सोहागिन बना दे हमरा

सुरजो आब गानि रहलै टका चुप्पे चुप्प
नै अन्हार रहत ऐठाँ जरा दे हमरा

अनचिन्हार कानि रहलै हमर मरलापर
चचरीपरसँ आब तों सभ उठा दे हमरा



मात्रा क्रम---२२२१--२१२२--१२२--२२ हरेक पाँतिमे

बुधवार, 13 मार्च 2013

मंगलवार, 12 मार्च 2013

अमित मिश्र जीक गजल, बाल-गजल हुनक अपने अवाजमे-28


अमित मिश्र जीक गजल, बाल-गजल हुनक अपने अवाजमे-27


अमित मिश्र जीक गजल, बाल-गजल हुनक अपने अवाजमे-26


अमित मिश्र जीक गजल, बाल-गजल हुनक अपने अवाजमे-25


अमित मिश्र जीक गजल, बाल-गजल हुनक अपने अवाजमे-24


अमित मिश्र जीक गजल, बाल-गजल हुनक अपने अवाजमे-23


अमित मिश्र जीक गजल, बाल-गजल हुनक अपने अवाजमे-22


अमित मिश्र जीक गजल, बाल-गजल हुनक अपने अवाजमे-21


सोमवार, 11 मार्च 2013

भक्ति गजल

भक्ति गजल-7

आइ नाँचल मधुवन झूमि राधा संग
प्रेममे नाँचल गोपी तँ कान्हा संग

खा कऽ मक्खन खेलथि खेल नटखट चोर
साँझ धरि जंगलमे रहि कऽ मीता संग

नाथि देलनि नागक नाँक यमुना जा कऽ
माँथपर चढ़ि केलनि नाँच यमुना संग

फोड़ि देलनि चूड़ी तोड़ि देलनि हार
जखन रचलनि मोनक रास राधा संग

गायपर बैसल बजबैथ वंशी मधुर
कान्हपर चढ़ि घूमथि गाम बाबा संग

फाइलातुन-मफऊलातु-मफऊलातु
2122-2221-2221

अमित मिश्र

भक्ति गजल



लाल रंगक मोहमे फँसलनि हनुमान
ते तँ लाले रंग सन बनलनि हनुमान

पवनपुत्रक नाम के नै जानै एतऽ
सूर्यकें जहियासँ मुँह रखलनि हनुमान

काँपि रहलै राक्षसी सेना रण बीच
प्रेत भूतक काल बनि हँसलनि हनुमान

राम सेवकमे सबसँ आगू हनुमान
सुनि कऽ आज्ञा सिन्धुपर उड़लनि हनुमान

जपब चलिसा शुद्ध मोनसँ सब दिन भोर
"अमित"पर तखनेसँ बड ढरलनि हनुमान

फाइलातुन-फाइलातुन-मफ ऊलातु
2122-2122-2221

भक्ति गजल


भक्ति गजल-4



लिख रहल छथि पत्र सीता सुकुमारि यौ
अपन पाहुन लेल नेहक रस ढारि यौ

उपरमे छै लिखल शादर अछि नमन यौ
गामपर हेतै कुशल पूछै छथि सारि यौ

छी अयोध्यामे अहाँ हम जनकपुरमे
सहल नै जेतै विरहकें ई मारि यौ

गाम जा गेलौं बिसरि निज पति धर्म यौ
जोहि रहलौं बाट डिबिया बारि यौ

सून लागै घर बगैचा काटैत अछि
प्राण बिनु तन हमर गेलै हारि यौ

हमर बहिनक हाल सेहो बेहाल अछि
भाइ संगे आबि जैयौ दिअ तारि यौ

फाइलातुन-फाइलातुन-मुस्तफइलुन
2122-2122-2212
बहरे-जदीद

भक्ति गजल

भक्ति गजल-5

 

 डूबि रहलै नैया बीच भँवर मैया
काँपि रहलै छाती फेर हमर मैया

थाकि गेलौं तोहर घरक बाटपर माँ
तन सकै नै चलबै कोन डगर मैया

तारि देलौं सबकें चरणमे बजा माँ
बाज एतै बारी कखन हमर मैया

दानवक दलपर बनि काल टूटि पड़लें
थम्हतै कहिया संकटक लहर मैया

जोड़ि कर विनति बस एतबे करब हम
"अमित" दिश दे एक्को बेर नजर मैया

फाइलातुन-मफऊलातु-फाइलातुन
2122-2221-2122

भक्ति गजल



भक्ति गजल-2


भाँग खा कोना नशेरी भेलौं अहाँ
भूत सन तन अपन कोना केलौं अहाँ

साँप माला साजि बसहा बुढ़बा लऽ यौ
तीन लोकक नाँप कोना लेलौं अहाँ

विषकें पी नीलकण्ठी छी बनल यौ
होश दैवक उड़ल से जीयेलौं अहाँ

तीन नैनक वाण खा जे जरि जरि मरल
ओकरो सीधे तँ मोक्षे देलौं अहाँ

दानमे आगू अहाँ छी निर्धन बनल
"अमित"कें शिव बिसरि कोना गेलौं अहाँ

फाइलातुन-फाइलातुन-मुस्तफइलुन
2122-2122-2212
बहरे-जदीद

भक्ति गजल

 

 

सजल दरबार छै जननी
भगत भरमार छै जननी

किओ नै हमर छै संगी
खसल आधार छै जननी

भटकि रहलौं जगत भरिमे
सगर अन्हार छै जननी
भक्ति गजल-3
दुखक सागर बनल छी हम
सड़ल पतवार छै जननी

दबल छी बोझ तऽर मैया
अहींपर भार छै जननी

मफाईलुन
1222 दू बेर सब पाँतिमे
बहरे-हजजभक्ति गजल-3

रुबाइ

रुबाइ-164

सोचैत सोचैत किओ देह गलबै छै
बिनु सोचने किओ सब टा काज करै छै
सूरज जकाँ अपन मरजीसँ आबै सोच
ककरो अधिकारमे तँ नै रहि सकै छै

रुबाइ

रुबाइ-163

पटका पर पटका तँ दैत रहल दुनियाँ
नोरक सागर बहाबैत रहल दुनियाँ
नै देलक मीत नै फूल ,हँसी देलक
दुश्मन ,काँटा पसारैत रहल दुनियाँ

गजल

गजल-1.54

हम तँ हारब सब ठाम तूँ जीतैत जो
प्रेममे मोनक संग तन भीजैत जो

घर घरसँ उठलै लाश घर मरघट बनल
उड़ल लुत्ती स्वार्थक सगर मिझबैत जो

फँसल छै बड निर्दोष दोषी बचल छै
एहने अपराधक जहल तोड़ैत जो

चान उगलै दुपहर जखन सजलौं अहाँ
हम तँ रवि हेरा गेल तूँ चमकैत जो

हाथमे कुल्हरि "अमित" लेने तर्क सन
डोर सब फूँसिक आइ तूँ काटैत जो

फाइलातुन-मुस्तफइलुन-मुस्तफइलुन
2122-2212-2212
बहरे-हमीम
अमित मिश्र

गजल

गजल-1.52

नाङरकेँ जँ टाँग चाही
मैथिलकेँ तँ भाँग चाही

बेरा-बखत काज जे दै
सबकेँ ओ समाँग चाही

एक्कहि बेर गगन छू लै
जीवनमे छलाँग चाही

बढ़लै भीड़ भठल मनुखक
संस्कारक तँ झाँग चाही

बनतै सड़क बीच टोलसँ
दुखिया घरक पाँग चाही

सब जातिक तँ होइ इज्जत
एहन "अमित" माँग चाही

मफऊलात-फाइलातुन
2221-2122
अमित मिश्र

गजल

गजल-12

नै कहू कखनो पहाड़ छै जिनगी
दैबक देलहा उधार छै जिनगी

भारी छै लोकक मनोरथक भार
कनहा लगौने कहार छै जिनगी

आशा निराशासँ कठिन बाट अछि
समय छै लगाम सवार छै जिनगी

विधना खेलथि खेल मनुख संग
खन इजोर वा अन्हार छै जिनगी

चलत निरंतर कर्मक नाहपर
कल-कल बहैत धार छै जिनगी

लिए मजा जुनि भेंटत दोबारा
"सुमित" सुधाकें फुहाड़ छै जिनगी

वर्ण-13
सुमित मिश्र
करियन, समस्तीपुर

गजल

गजल-11

जरि-जरि ओ इजोर करै छै
अंत-अंत धरि नोर खसै छै

धनके बल सँ उड़ैत अछि
पैर धरा पर राखि चलै छै

मुँह पर हँसीके मुखौटा सँ
पीड़ करेजमे दाबि रहै छै

दौड़ एहन दौड़ नै सकलौँ
समयोके समय यादि रखै छै

साँच सभसँ भरिगर पाप
उलटा गंगा धार बहै छै

देब कोना आब शिक्षा केकरो
आन्हरो पोथी खोलि पढै छै

गाम डुबायल चिन्ता नै अछि
माँथहि तगमा साटि चलै छै

मोनक गप्प मोनहि राखल
"सुमित" शब्दमेँ बान्हि कहै छै

वर्ण-11

सुमित मिश्र
करियन, समस्तीपुर

गजल

भक्ति गजल-1

हम निर्बुद्धि-पापी बैसल कानै छी
पुत्र अहीँके जननी क्षमा माँगै छी

तोहर दुआरि बड भीड़ हे मैया
कखन देब दर्शन आब हारै छी

अष्टभुजा नवरुप जगदम्बिके
दशो दिशा विभूषित अहाँ साजै छी

ममतामयी झट दया-दृष्टि करु
नाव भँवरसँ दुःखियाके उबारै छी

अरहुल फूल आ ललका चुनरी
असुर विनासिनी जगके तारै छी

"सुमित" बालक जुनि ज्ञान हे दुर्गे
चरण बैसिकऽ गीत अहीँके गाबै छी

वर्ण-12

सुमित मिश्र
करियन , समस्तीपुर

रविवार, 10 मार्च 2013

गजल


खाल रंगेल गीदड़ बड्ड फरि  गेलै
एहने आइ सभतरि ढंग परि  गेलै

घुरि कऽ इसकूल जे नै गेल जिनगीमे  
नांघिते तीनबटिया सगर  तरि  गेलै

देखलक भरल पूरल घर जँ कनखी भरि
आँखि फटलै दुनू डाहेसँ मरि गेलै

सभ अपन अपनमे बहटरल कोना अछि
मनुखकेँ मनुख बास्ते मोन जरि   गेलै  

बीछतै ‘मनु’ करेजाकेँ दरद कोना
जहरकेँ घूंट सगरो  पी कऽ भरि  गेलै

(बहरे मुशाकिल, मात्रा क्रम २१२२-१२२२-१२२२)
जगदानन्द झा ‘मनु’  

गुरुवार, 7 मार्च 2013

मास फरवरी 2013क लेल गजल सम्मान योजनाक पहिल चरण


हमरा इ सूचित करैत बड्ड नीक लागि रहल अछि जे " अनचिन्हार आखर"द्वारा स्थापित " गजल कमला-कोशी-बागमती-महानंदा" सम्मानक पहिल चरण बर्ख-2013 ( मास फरवरी  लेल ) पूरा भए गेल अछि। मास  फरवरी लेल प्रदीप पुष्प जीक एहि रचना के चयन कएल गेलैन्हि अछि। हुनका बधाइ।



गजल 

पढल पंडित मुदा रोटीक मारल छी
बजै छी सत्य हम थोंथीक हारल छी

बुझू कोना सबसँ काते रहै छी हम
उचितवक्ता बनै छी तें त टारल छी

दियादेकें घरक घटना मुदा धनि सन
कटेबै केश कियै हम जँ बारल छी

मधुर बनबाक छल भेलौं जँ अधखिज्जू
सत्ते नोनगर लाड़ैनेंसँ लाड़ल छी

लगै छल नीक नाथूरामकेँ पोथी
मुदा गाँधीक साड़ा संग गाड़ल छी

किओ ने पूजि रहलै कोन गलती यौ
बिना सेनूर अरिपन 'पुष्प' पाड़ल छी

1222 1222 1222 सब पाँतिमे
बहरे हजज
-प्रदीप पुष्प

बुधवार, 6 मार्च 2013

गजल


लुटेए गाम गाबेए कियो लगनी
किए लागल इना सभकेँ शहर भगनी


कियो नै सोचलक परदेश ओगरलक
भ’ गेलै गामपर माए किए जगनी

उठेलहुँ बोझ हम आनेक भरि जिनगी
अपन घरमे रहल सदिखन बसल खगनी

बिसरलहुँ सुधि सगर कोना क’ हम हुनकर
बनेलहुँ अपन जिनका हम घरक दगनी

अपन जननी जनमकेँ भूमि नै बिसरल
भरल बाँकी तँ अछि सभठाम ‘मनु’ ठगनी

(बहरे हजज, मात्रा क्रम १२२२ तीन तीन बेर सभ पांतिमे)
जगदानन्द झा ‘मनु’             

अमित मिश्र जीक गजल, बाल-गजल हुनक अपने अवाजमे-20

शुक्रवार, 1 मार्च 2013

अमित मिश्र जीक गजल, बाल-गजल हुनक अपने अवाजमे-17

अमित मिश्र जीक गजल, बाल-गजल हुनक अपने अवाजमे-16

अमित मिश्र जीक गजल, बाल-गजल हुनक अपने अवाजमे-15

तोहर मतलब प्रेम प्रेमक मतलब जीवन आ जीवनक मतलब तों