शुक्रवार, 28 नवंबर 2014

गजल



टूटल फूटल चेहरा छै
हारल थाकल चेहरा छै

झड़कल सनकेँ कर्म हेतै
झाँपल झाँपल चेहरा छै

कनियेँ छूलहुँ ठोर ओकर
गमकल गमकल चेहरा छै

पाथर फेकू सभ विचारक
जमकल जमकल चेहरा छै

खुब्बे पड़लै मोन हमरा
बिसरल बिसरल चेहरा छै

सभ पाँतिमे 2222+2122 मात्राक्रम अछि।
सुझाव सादर आमंत्रित अछि

सोमवार, 24 नवंबर 2014

गजल



अगम अथाह छथि नेताजी
विकट बताह छथि नेताजी

बचा बचा कऽ जानो लेलथि
असल बिखाह छथि नेताजी

दवाइ संग टीका राखब
कने कटाह छथि नेताजी

अहाँ कनी किए चाहै छी
सुलभ सलाह छथि नेता जी

विकास लेल अपने देखथि
लगै कनाह छथि नेताजी

सभ पाँतिमे 12+12+12222 मात्राक्रम अछि।
सुझाव सादर आमंत्रित अछि

रविवार, 23 नवंबर 2014

गजल

की जिनगीमे आउ की दूर जाउ
बिनु मतलबकेँ राति दिन नै सताउ

बोली मिठगर सन अहाँ बाजि फेर
हमरा प्रेमक जालमे नै फँसाउ

आगूमे देखाक मुस्की अपार
पाछूमे सदिखन छुरा नै चलाउ

सुच्चा अछि जँ प्रेम साँचे अहाँक
सब किछु बुझि हमरे हियामे सजाउ

राखू नित कुन्दन जँका शुद्ध मोन
बस झूठक कखनो हँसी नै हँसाउ

मात्राक्रम : 2222-21-221-21

© कुन्दन कुमार कर्ण

शुक्रवार, 21 नवंबर 2014

गजल

पहिल बेर दू गजला कहबाक प्रयास केलहुँ अछि। देखल जाए--



कुरता सौंसे पसरल छै
झगड़ा सौंसे पसरल छै

गाछक पातक आ फूलक
चरचा सौंसे पसरल छै

जीबछ कोशी बागमती
कमला सौंसे पसरल छै

मंदिर मस्जिद गिरजा हो
भगता सौंसे पसरल छै

दिल्ली भेटत बाटेपर
पटना सौंसे पसरल छै

खादी भागल काते कात
चरखा सौंसे पसरल छै

बेंगक टर टर सुनि सुनि कऽ
बरखा सौंसे पसरल छै

पानिसँ बेसी मटिया तेल
धधरा सौंसे पसरल छै

मंझा चाहै गुड्डी तँइ
धागा सौंसे पसरल छै

ताड़ी लबनी पासी भाइ
चिखना सौंसे पसरल छै

सीता जनमै एकै गो
रामा सौंसे पसरल छै

पाचक भागै दूरे दूर
कर्ता सौंसे पसरल छै

चोरी लूट डकैतीके
खतरा सौंसे पसरल छै

छिटलहुँ खाद मुदा तैयो
खखरा सौंसे पसरल छै

लोटा थारी बाटी चुप्प
तसला सौंसे पसरल छै

सूदिक सुख मूरे जानै
कर्जा सौंसे पसरल छै

अनचिन्हारक संगे संग
फकड़ा सौंसे पसरल छै


जकरा मारल मरलहुँ से
पुछलक तोरा मारल के

मूनल रहतौ आँखि हमर
तइ के बदला हमरो दे

देलक चिन्हासी प्रेमक
कहबे करबे खिस्सा गे

श्वासक आसक विश्वासक
टूटल अत्मा तोंहू ले

बाड़ी झाड़ी छोड़ल हम
उर्सी कुर्सी भेटल जे


सभ पाँतिमे 222+222+2 मात्राक्रम अछि
दूटा अलग-अलग लघुकेँ दीर्घ मानबाक छूट लेल गेल छै। किछु शेरक पहिल पाँतिक अंतिम लघु सेहो छूटक तौरपर अछि। किछु शेरक पहिल पाँतिक अंतिम लघुकेँ संस्कृत व्याकरणानुसार दीर्घ मानल गेल अछि।

सुझाव सादर आमंत्रित अछि। 

गुरुवार, 20 नवंबर 2014

अपने एना अपने मूँह-31

अनचिन्हार आखरपर http://anchinharakharkolkata.blogspot.in/  अक्टूबरमे कुल 18 टा पोस्ट भेल जकर विवरण एना अछि--
कुन्दन कुमारक कर्णजीक कुल 4टा पोस्टमे 3टा गजल ओ 1टा भक्ति गजल अछि।
अमित मिश्र ओ जगदानंद झा मनुजीक 2-2टा पोस्टमे 2--2टा गजल आएल।
आशीष अनचिन्हारक कुल 10 टा पोस्टमे 6टा गजल, 1टा अपने एना अपने मूँह, 1टा हजल, 1-1टा बाल ओ भक्ति गजल अछि।

बुधवार, 19 नवंबर 2014

गजल


देह धधकि धधकि जाइ छै
मोन बहकि बहकि जाइ छै

बोल गमकि गमकि जाइ छै
नेत महकि महकि जाइ छै

भात रमकि रमकि जाइ छै
दालि लहकि लहकि जाइ छै

गाछ छमकि छमकि जाइ छै
पात चहकि चहकि जाइ छै

खेत लसकि लसकि जाइ छै
पेट सनकि सनकि जाइ छै


सभ पाँतिमे 21+12+12+212 मात्राक्रम आ 11 वर्ण अछि
सुझाव सादर आमंत्रित अछि

रविवार, 16 नवंबर 2014

गजल

गजल-2.50

हम रही अहाँ रही आर किछु नव बात हो
हम कही अहाँ सुनी आर किछु नब बात हो

जे कहब कहू मुदा तौल लिअ निज बोलकेँ
जे कहब, कहब सही आर किछु नव बात हो

भेद-भाव आइ तजि ठाढ़ एकहिँ मंचपर
प्रीतकेँ बहै नदी आर किछु नव बात हो

सफ हो सभक हिया साफ हो छवि लोककेँ
फड़य गाछ जनु कली आर किछु नव बात हो

बात बातपर हँसय सब हँसय धरती सगर
हो दरद सगर कमी आर किछु नव बात हो

2121-21-2212-2212

शनिवार, 15 नवंबर 2014

गजल


हमरा शराब चाही मुदा आँखिसँ
कनियें हिसाब चाही मुदा आँखिसँ

गेंदा बहुत चमेली बहुत हमरा लग
तैयो गुलाब चाही मुदा आँखिसँ

बाजल बिला कऽ चलि जाइ छै अन्तह
तँइ सभ जबाब चाही मुदा आँखिसँ

मानल गजल पसरि गेल छै तैयो
गजलक किताब चाही मुदा आँखिसँ

हारल छलहुँ तँए मानि लेबै सभ
हमरा हियाब चाही मुदा आँखिसँ

सभ पाँतिमे 2212+122+1222 मात्राक्रम अछि।

सुझाव सादर आमंत्रित अछि।

शुक्रवार, 14 नवंबर 2014

गजल

अपन मोनक कहल मारि बैसल छी
छलै खिस्सा लिखल फाडि बैसल छी

हँसी हुनकर हमर मोनमे गाडल
करेजा अपन हम हारि बैसल छी

पढू भाषा नजरि बाजि रहलै जे
किए हमरा अहाँ बारि बैसल छी

सिनेहक बूझलौं मोल नै कहियो
अहाँ गर्दा जकाँ झारि बैसल छी

जमाना कहल मानैत छी सदिखन
कहल "ओम"क अहाँ टारि बैसल छी
- ओम प्रकाश
मफाईलुन-फऊलुन-मफाईलुन (प्रत्येक पाँतिमे एक बेर)

गजल

कानैत आँखिक आगिमे जरल आकाशक शान छै
बेथा करेजक लहकि गेलै, सभक झरकल मान छै

बैसल रहै छी प्रभुक दरबारमे न्यायक आसमे
हम बूझलौं नै बात, भगवान ऐ नगरक आन छै

सदिखन रहैए मगन अपने बुनल ऐ संसारमे
चमकैत मोनक गगनमे जे विचारक ई चान छै

आसक दुआरिक माटि कोडैत रहलौं आठो पहर
सुनगैत मोनक साज पर नेहमे गुंजित गान छै

सूखल मुँहक खेती सगर की कहू धरती मौन छै
मुस्की सभक ठोरक रहै यैह "ओम"क अभिमान छै
- ओम प्रकाश
दीर्घ-दीर्घ-ह्रस्व-दीर्घ, दीर्घ-दीर्घ-ह्रस्व-दीर्घ, दीर्घ-ह्रस्व-दीर्घ-दीर्घ, दीर्घ-दीर्घ-ह्रस्व-दीर्घ,
मुस्तफइलुन-मुस्तफइलुन-फाइलातुन-मुस्तफइलुन (प्रत्येक पाँतिमे एक बेर)

गुरुवार, 13 नवंबर 2014

गजल

छूटल हाथ
फूटल माथ

अपने संग
करबै लाथ

बहसल मोन
आबू नाथ

पेटक लेल
गोबर पाथ

छथि बकलेल
भूपतिनाथ

सभ पाँतिमे 2221 मात्राक्रम अछि।

सुझाव सादर आमंत्रित अछि

मंगलवार, 11 नवंबर 2014

गजल

ओकरा देखिते देह अपने सिहरि जाइ छै
आगि नेहक हियामे तखन यौ पजरि जाइ छै

मारि कनखी दए छै जखन ताकि अनचोकमे
डेग अपने हमर ओकरा दिस ससरि जाइ छै

ओ हँसै छै त एना बुझाइत रहल बागमे
फूल जेना गुलाबक लजाइत झहरि जाइ छै

चानकेँ देखिते रातिमे चेहरा ओकरे
झिलमिलाइत हमर आँखिमे सजि उतरि जाइ छै

लाख लड़की करै छै हमर आब पाछू मुदा
छोडि सभकेँ बहकि ओकरेपर नजरि जाइ छै

प्रेम कुन्दन हए छै अहीना बुझा से रहल
एहने जालमे मोन सुधि बुधि बिसरि जाइ छै

बहरे-मुतदारिक

© कुन्दन कुमार कर्ण

गजल

मनक भीतर माटिक प्रेम काबा सन
लगैए ई दूर भय गर्म आबा सन

दियावाती भेल नै चौरचन भेलै
मनोरथ भसि गेल ताड़ीक डाबा सन

अपन अँगने छोरि एलहुँ सगर हित हम
फरल दुश्मन एतए बड्ड झाबा सन

करेजामे दर्द गामक बसल एना
बिलोका बनि ओ तँ चमकैत लाबा सन

पिया बैसल  दूर परदेशमे  'मनु' छथि
विरहमे हम छी हुनक बनल बाबा सन

(मात्रा क्रम : १२२२-२१२२-१२२२)
जगदानन्द झा 'मनु'

रविवार, 9 नवंबर 2014

गजल



कमसँ कम एकौटा फूल दे गे मलिनियाँ
नीक नै अपने समतूल दे गे मलिनियाँ

राखि ले गेंदा बेली चमेली गुलाबो
बस हमर कोंढ़ी अड़हूल दे गे मलिनियाँ

घाटपर बैसल हम बाट जोहै छी तोहर
थरथराइत देहक पूल दे गे मलिनियाँ

राहु शनि मंगल बुध केतु वशमे मुदा तों
प्रेम सनकेँ ग्रह अनुकूल दे गे मलिनियाँ

आम संगे महुआ महुआ संग आमे टा झूलै
एहने सन झूलाझूल दे गे मलिनियाँ

सभ पाँतिमे 2122+222+122+122 मात्राक्रम अछि।
सुझाव सादर आमंत्रित अछि

शुक्रवार, 7 नवंबर 2014

गजल

बाल गजल

गेलै उक्पाती बुढ़िया बाड़ीमे
लगले रहलै तेल हुनक लाठीमे

हमरा लोकनि फैलसँ कड़ुगर झँसगर
बड़ सनगर भक्का खेलहुँ गाछीमे

चोरक हल्ला सुनलहुँ सभहँक मूँहे
ताला आनि लगा देलहुँ काँपीमे

बथुआ खुब्बे नीक लगैए तैयो
धेआन हमर बसिया खेसारीमे

हमरा हेलब चुभकब नीक लगैए
पोखरिमे नालामे की नालीमे

सभ पाँतिमे 222+222+222+2 मात्राक्रम अछि
दूटा अलग-अलग लघुकेँ दीर्घ मानबाक छूट लेल गेल अछि।
सुझाव सादर आमंत्रित अछि

मंगलवार, 4 नवंबर 2014

गजल



करेज बेचै छी राति भरि
पिआर देखै छी राति भरि

मिटा कऽ चलि गेलै रंग रूप
निशान हेरै छी राति भरि

इयाद हुनकर बस सोन सन
करोट फेरै छी राति भरि

बसात पसरल चारू दिसा
सुगंध घेरै छी राति भरि

सिनेह हुनकर भेटल जते
तते उकेरै छी राति भरि

सभ पाँतिमे 12-122-2212 मात्रक्रम अछि
दोसर शेरक पहिल पाँतिक अंतिम लघु अतिरिक्त छूटक तौरपर अछि।

सुझाव सादर आमंत्रित अछि

सोमवार, 3 नवंबर 2014

गजल

एहि हारल आदमीकेँ हालचाल नै पुछू
दर्द सुनिते जाइ बढि तेहन सवाल नै पुछू

मारि किस्मत गेल कखनो खेल खेलमे लटा
घर घरायल नित बिपतिमे कोन काल नै पुछू

संग अपनो नै जरूरतिकेँ समय कतहुँ रहल
केलकै कोना कखन के आल टाल नै पुछू

बाट जिनगीकेँ रहल जे डेग डेगपर दुखद
बीत कोना गेल ई पच्चीस साल नै पुछू

के मरै छै एत यौ कुन्दन ककर इयादमे
लोक लोकक खीच रहलै आब खाल नै पुछू

मात्राक्रम: 2122-2122-2121-212

© कुन्दन कुमार कर्ण

गजल

दीयावातीकेँ हम दए छी विशेष शुभकामना
स्वीकारू सभ केओ हमर ई सनेश शुभकामना

माए बाबू संगी बहिन भाइ जे कतहुँ रहल अछि
चाहे केओ परदेश या दूर देश शुभकामना

घरमे लक्ष्मीकेँ आगमन होइ सुखसँ जिनगी सजै
प्रेमक सौगातसँ जन समर्पित अशेष शुभकामना

वैभवमे नित होइत रहै वृद्धि शान्ति घर-घर रहै
मठ मन्दिरमे हम दैत छी दीप लेश शुभकामना

पावन अवसरपर आइ कुन्दन हृदयसँ दैत सभकेँ
शुभ संध्यामे पूजैत लक्ष्मी गणेश शुभकामना

मात्राक्रम: 22222-2122-121-2212

© कुन्दन कुमार कर्ण

गजल

हमरासँ प्रिय नै रूसल करू
बेगरता मोनक बूझल करू

बनि नेहक सुन्नर सन फूल नित
मोनक बगियामे फूलल करू

जखने देखै छी हमरा कतहुँ
तखने हँसि लगमे रूकल करू

जीवन संगी हमरे मानि जुनि
आत्मामे बैसा पूजल करू

काइल की हेतै मालूम नै
एखन कुन्दनमे डूबल करू

मात्राक्रम : 2222-22212

© कुन्दन कुमार कर्ण
तोहर मतलब प्रेम प्रेमक मतलब जीवन आ जीवनक मतलब तों