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बुधवार, 18 मार्च 2009
गजल
गजल
१
इहो अहाँक प्रेम छल पछाति जानल हम
खाली मूहँक छेम छल पछाति जानल हम
आगि लागल घर मे चिन्ताक गप्प नहि
कारण अपने टेम छल पछाति जानल हम
सड़ैत देखलिऐक किच्छो के कादो मे
अपने घरक हेम छल पछाति जानल हम
पिबैत रहलहुँ सदिखन विदेशी शीतल पानि
तैओ गरमी कम्म छल पछाति जानल हम
किछु तत्व कए दैत छैक अनचिन्हार सभ के
कथन मे दम्म छल पछाति जानल हम
२
अहाँ निरोध करु
अहाँ विरोध करु
लोक बढ़त आगाँ
अहाँ अवरोध करु
सुखी हएत गरीब
अहाँ क्रोध करु
धनी बनए धनी
एहने शोध करु
जनतंत्र अपने जन्मल
खूब ओध-बाध करु
सत्ता-सुरक्षा अपने
खूब अपराध करु
खाएब अहाँ फास्ट-फूड
बरबाद बाध करु
खोजबीनक कूट-शब्द:
अनचिन्हार,
बिना छंद-बहरक
हमर पूरा नाम थिक आशीष कुमार मिश्र। गामक नाम अछि भटरा-घाट(बिस्फी)।हम वर्तमान मे लाजिस्टिक सेक्टर (ए.बी.सी इंडिया लिमिटेड) मे लेखाकर्मी के पद पर कार्यरत छी।हमर शिक्षा गाम एवं कलकत्ता मे भेल। आब इ ब्लागक संग अपने लोकनिक शरण मे छी।आशा अछि जे हमर प्रयास आहाँ सभ के पसिन्न होएत।
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