रविवार, 28 नवंबर 2021

दू भ्रमित साहित्यकारक बातचीत

 ई आलेख मूलतः हम फेसबुकपर देने रही जकर लिंक अछि- https://www.facebook.com/anchinhar/posts/6172033809488548 एहि आलेखमे जे किछु वर्तनीजन्य गलती छलै आ किछु आन तथ्य छूटल छलै तकरा सभकेँ सुधारि हम एहि ब्लागपर दऽ रहल छी।


10 जुलाई  2021 केँ एकटा फेसबुक लाइभ Dhirendra Premarshi धीरेन्द्र प्रेमर्षि एवं Siyaram Saras सियाराम झा सरसजीक बीच भेल जाहिमे बहुत मुद्दाक संग गजलोपर बात भेल आ ओ दूनू गोटे गजल विधापर बहुत रास भ्रमपूर्ण बयान सभ दैत रहलाह। ओना तँ हम सीधे कहि सकैत छलहुँ जे सियाराम झा सरसजीकेँ जे भ्रम छै तकर उत्तर हम अपन पोथी "मैथिली गजलक व्याकरण ओ इतिहास"मे लीखि देने छियै तँइ ओकरा पढ़ि लिअ। मुदा हमरा बूझल अछि जे सरसजी पूरा जीवनमे अध्ययन कम आ विद्यापति समारोह एवं अन्य मंचपर भाग बेसी लेलाह अछि। तेनाहिते प्रेमर्षिजीक पूरा समय नवयुवाकेँ भ्रमित करएमे आ मंचपर माइक पकड़एमे जाइत छनि तँइ हुनको वशमे अध्ययन नै छनि। तँइ ओइ बातचीतक किछु भ्रम आ ओकर उत्तर (जे कि हम अपन पोथीमे दऽ देने छी) एहि ठाम दऽ रहल छी।  उम्मेद अछि जे धीरेन्द्रजी हमर एहि लिखलकेँ सरसजी धरि पहुँचेता जाहिसँ हुनकर भ्रमक निराकरण भऽ सकनि। ओना ई अध्य्यन नहिए करै छथि तँइ विश्वास जे ई आलेख ओ सभ नहि पढ़ताह। ई साक्षात्कार एहि लिंकपर देखि सकैत छी- https://www.facebook.com/groups/164622824980853/posts/398317104944756/


1) सरसजी 2014 मे प्रकाशित हमर एकटा आलेख केर संदर्भ दैत कहै छथि जे ओहिमे लिखल छै जे गजल लेल मात्रा जरूरी नै छै।


हमर कथन---cell केर जे परिभाषा भौतिकी शास्त्रमे छै से परिभाषा जीवविज्ञानमे नै छै। तँ एकर की मतलब जे भौतिकी बला कहि देतै जे भौतिकी केर परिभाषा जीवविज्ञानमे लगबाक चाही? भानस लेल जे मात्राक मतलब हेतै वएह मतलब राजमिस्त्री लेल नै भऽ सकैए। तँइ छंदशास्त्रमे जे मात्रा केर मतलब छै वएह मतलब संगीतशास्त्रक मात्रा लेल नै भऽ सकैए। ई जे बेसिक चीज छै तकरा सरसजी बुझबामे असफल रहि गेलाह। गजल काव्य केर विधा छै संगीत केर नै तँइ गजलमे छंदक मात्रा हेतै संगीतक नै। आ ओहि आलेखमे इएह बात लिखने छियै जकर मूल एना अछि--"गायक सभ गजलमे मात्रा क्रम सप्तक ( सा,रे,गा,मा,पा,धा,नि,सा ) केर हिसाबसँ बैसाबए लागै छथि जे की अवैज्ञानिक तँ अछिए सङ्गे-सङ्ग अनर्थकारी सेहो अछि। काव्यमे रागक हिसाबसँ छन्द नै बनै छै। तँए कोनो एकटा छन्दमे बनल रचनाकेँ बहुतों गायक बहुतों रागमे गाबै छथि गाबि सकै छथि। राग-रागिनीक मात्राक्रम सङ्गीत लेल छै साहित्य लेल नै। तेनाहिते छन्दक मात्राक्रम काव्य लेल छै सङ्गीत लेल नै"

निश्चित तौरपर सरसजी बुझबामे असफल रहि गेल छथि तँइ ओ छंदशास्त्रक मात्रा ओ संगीतशास्त्रक मात्रामे ओझरा गेलाह। आ ई साबित होइए जे सरसजी छंदक ज्ञाता तँ नहिए छलाह संगीतशास्त्रक ज्ञाता सेहो नै छथि। जखन कियो बहरे रमलमे गजल लिखै छथि तँ एकर मतलब जे मूल ध्वनि फाइलातुन हेतै मने 2122 मुदा गजलमे फाइलातुन केर बदला राग दरबारी वा राग यमन केर मात्रासँ नै लीखल जाइत छै। गायन लिखलाक बादक प्रक्रिया छै से बूझए पड़तनि सरसजीकेँ।


2) चूँकि सरसजी मात्राक परिभाषा नै बुझने छथि तँइ ओ उपरका संदर्भमे कहै छथि जे जखन ओ खास आदमी (मने आशीष अनचिन्हार) मात्रा नै मानै छथि तखन ओ अपन गजलक निच्चा मात्रा किएक लिखै छथि।


हमर कथन-- उपरमे हमरा लोकनि देखलहुँ जे सरसजी कोना मात्रा नै बुझि रहल छथि। गजल सदिखन छंदक मात्रामे लिखल जाइत छै आ हम वा आन सेहो गजलक निच्चा ओहि गजल छंदक मात्रा दैत छियै। संगीतक मात्रासँ गजल लिखेतै नै। गाबए लेल पहिने गजल लीखए पड़ैत छै आ जे लिखब मात्र छंदक मात्रामे हेतै।


3)  सरसजी प्रश्न उठबैत छथि जे हमर गजल जे गाएल गेल अछि ताहिपर ओ खास आदमी मने हम किएक ने बाजि रहल छियै?


हमर कथन-- दोहा, रोला समेत सभ छंद गाएल जाइत छै तँ की हम ओकरा गजल मानि लियै? गायन गजलक कसौटी नै छै। जखन कोनो रचना गजल भऽ जेतै तकर बाद ओ गाएल जाए कि नै जाए से बात हेतै।


4) बातचीतमे प्रेमर्षिजी कहै छथिन जे आब ओ सभ सचेत ढ़ंगसँ कोनो गजल लिखल रचनाकेँ मात्रा गानि कऽ सर्टिफिकेट दऽ रहल छथि।


हमर कथन-- हम सभ अपन पहिले दिनसँ ई काज कऽ रहल छी। ई एखन तुरंतेक बात नै छै। सरसजी समेत बहुते कथित गजलकारक रचना एनाहिते सचेत ढ़ंगसँ कसौटीपर कसि कऽ बेकार कहि देल गेलै। हम तँ ई कहबनि जे उम्रक एहि ढलानपर आबि सरसजी एवं आनो लोक सभ सचेत भऽ रहल छथि। हम सभ पहिले दिनसँ सचेत छी।


5) बातचीतमे प्रेमर्षिजी सरसजीसँ पुछैत छथिन जे अहाँ बहरसँ इन्कार नै करै छियै ने। सरसजीक जवाब छलनि नै।


हमर कथन-- मात्र मूँहेसँ कहि देलासँ नै होइत छै। सरसजीक एकौटा कथित रचनामे बहर नै छनि तँइ ओ सभ गजल अछियो नै।


6) बातचीतक क्रममे प्रेमर्षिजी कहलाह जे बहरमे नहियो रहैत सरसजी वा विमलजीक शेर लोकप्रिय छनि जखन कि बहर बला शेर सभ नै।


हमर कथन- हिनकर सभहक शेर साहित्यिक नै आन कारण सभसँ प्रसिद्ध छनि। हिनका गुटक दू टा युवा आ दू टा पुरान शेर मोन पाड़ि लैत छनि तँ ई सभ ओकरा लोकप्रियता मानि बैसै छथि। मुदा ई मोन पाड़ब आन कारणसँ रहैत छै। लोभ-लाभसँ संचालित रहैत छै। आ फल्लाँ बाबूक छनि तँ हुनका खुश करबाक लेल कोट कऽ देल जाइत छनि। ई लोकप्रियता नै भेलै।


7) बातचीतक क्रममे सरसजी कहै छथि जे "बुद्धि बपजेठ़ होइत छै"।


हमर कथन-- सरसजीक ई बात कुंठाक परिचायक छनि। ने अपने अध्य्यन करताह आ ने युवाकेँ करए देथिन आ जे युवा अध्य्यन करत तकरा लेल ओ कुंठित भऽ विषवमन करताह। तँ एहिपर कहबाक लेल हमरा लग समय नै अछि।


8 ) सरसजी प्रश्न उठेलखनि जे कोन कारणसँ जीवन झाक गजलक प्रशंसा भेलै आ हमर गजलकेँ खारिज कएल गेल।


हमर कथन-- आधुनिक मैथिलीक पहिल आरंभिक गजल सभ रहितो पं.जीवन झाक गजल सभ बहर ओ भाव दूनूसँ परिपूर्ण अछि। जीवन जीक एकटा गजलक एकटा पाँति देखू-- "निसास लै नोर जौं बहाबी समुद्र पर्यन्त तौं थहाबी" एकर मात्राक्रम अछि 12+122+12+122+12+122+12+122 आ अही मात्राक्रमक पालन पूरा गजलमे भेल छै। इएह बहर भेलै। बहर ओ नै भेलै जे पहिल पाँतिमे कोनो मात्राक्रम भेल दोसरमे किछु आ तेसरमे किछु। पं.जीवन झाजीक आनो गजलक इएह हाल अछि। आब कहू १९०५ मे जे कवि बहर ओ भावकेँ पूरा पालन केलथि तिनकर प्रशंसा नै हेतै तँ किनकर हेतै। कायदासँ तँ ई हेबाक चाही जे पं.जीवन झाजीक गजलमे गलती छै तकरा ठीक करैत सरसजी गजलकेँ मजगूत करतथि मुदा भेल उल्टा। जतबो तत्व पं. जीवन झाजीक गजलमे छनि तकर एकौ प्रतिशत सरसजीक गजलमे नै छनि। तखन सरसजीक प्रशंसा किएक। हम तँ ईहो कहब जे मात्र तीन-चारि टा गजल रहितो कविवर सीताराम झा अस्सी-नब्बेक दशकमे आएल सभ गजलकारसँ बेसी प्रशंसनीय छथि।


9) बातचीतमे धीरेन्द्रजी एकटा विशेषण केर चर्च केलथि जे हम हुनका लेल प्रयोग केने रही।


हमर कथन-- ओ प्रयोग लिखित रूपमे एखनो छै मुदा प्रेमर्षिजी ओकरा गलत ढंगसँ लेलथि। हम अपन ब्लागपर ओहन सभ रचनाकारक परिचय प्रस्तुत केलहुँ जे कि अपन रचनाक शीर्षक गजल देलथि चाहे ओहि गजलमे बहर होइक वा नै होइक। एक तरहें ई परिचय केर बात छलै। हम एखनो मानै छी जे बिना बहर बलामे प्रेमर्षिएजी एकमात्र वीर छथि जे ओहि समयक गजलक विशेषांक निकालएमे सफल भेलाह। मुदा ओहि शृंखलाक उद्येश्य ओ व्याप्ति जनने बिना जँ ओहि कथनक मतलब निकालल जाए तँ हम की कऽ सकैत छी। दोसर ईहो बात हमरा समझमे नै आएल जे जँ आशीष अनचिन्हार खरापे छै तखन ओकर सर्टिफिकेट नुमा कथनपर किएक खुश छलाह प्रेमर्षिजी।


10) बातचीतक अंतमे गजलक रचनाप्रक्रियापर बात भेल। जाहिमे कहल गेल जे नवयुवा गजल देखिए कऽ ओहिमे लीखि रहल छथि तँइ ओकर स्वागत हेबाक चाही।


हमर कथन-- स्वागत तँ हेबाक चाही मुदा जे ओ पहिल दिन लिखै छलाह तेनाहिते की जीवन भरि बेबहरे लिखता। जँ लिखता तँ फेर ओ गजलकार कथिक? हुनकर प्रगति कथिक? सभ जाँचए पड़त आ सभकेँ चीड़-फाड़ करए पड़त।

मंगलवार, 16 नवंबर 2021

गजलक रखबार सूतल अछि

1

मैथिलक बड़ हितैषी बनल

मैथिलीक सोधनिहार छथि

2

उपरक दू पाँति बैकुंठ झा रचित छनि। बैकुंठ झा मूलतः लघुकथाकार छथि। मुदा हुनका लघुकथा लिखबाक जरूरते किए पड़लनि जखन कि मैथिलीमे कथा नामक विधा छलैहे। आब बैकुंठजी हमरा बहुत रास बात कहता (मने कथा ओ लघुकथाक संदर्भमे), बहुत रास अंतर देखेताह। मुदा बैकुंठजी ई बात ई अंतर तखन बिसरि जाइत छथि जखन कि ओ गजल विधामे प्रवेश करै छथि आ गीत-ओ कविताक उपर गजलक लेबल लगा लै छथि। जतबे अंतर कथा आ लघुकथामे भऽ सकैए ततबे अंतर गीत-कविता ओ गजलमे छै। जँ लघुकथाक नियम छै तँ गजलक नियम सेहो छै मुदा बैकुंठजी लघुकथा बेरमे तर्क देता मुदा गजल बेरमे कुतर्क से हमरा विश्वास अछि।

3

"रखबार" नामसँ एकटा कथित गजल संग्रहक आएल अछि जकर लेखक बैकुंठ झा छथि। एहि पोथीक समर्पण एवं भूमिका दूनू पद्येमे अछि जे की नीक लगैत अछि। समपर्णसँ ई पता लगैए जे मैथिलीपुत्र प्रदीपजी पहिल संसर्ग बैकुंठजीकेँ भेटलनि आ भूमिकासँ ई पता चलैए जे बैकुंठजी भ्रम आ पूर्वाग्रह दूनूमे फँसल छथि आ हुनकर रचना सभमे व्याकरणिक स्थिति छनि से हुनको नै पता छनि। चारि पाँति देखल जाए--

"..मात्राक खाँच-साँचमे कसल-फँसल नहि होय गजल

अछि से संभव शिरोधार्य सब समालोचना करब ग्रहण

अथवा बुझना जाय गजल यदि छंद वितानमे खुटेसल

ओहो नहि सायास भेल अछि सहजहिं भेलय शब्दांकन.."

एहि केर बाद आरो-आरो तर्क (??) सभ पद्येमे देल गेल अछि।

4

अतेक तँ निश्चित जे बैकुंठजीकेँ गजलक व्याकरण पता नै छनि (अथवा ओ पूर्वाग्रहक कारणे जानए नै चाहै छथि अथवा डर छनि जे सही चीज मानि लेलासँ हुनकर पचासो बर्खक तपस्या खंडित भऽ जेतनि) मुदा जे लोक मात्रिक छंदक अभ्यास केने छथि हुनकर रचना गजलमे बहरे मीरक नजदीक जा सकैए। हम मात्र नजदीक कहि रहल छी पूरा नै। आ हम बैकुंठजीकेँ जतेक जानै छियनि ताहिमे ओ मात्रिक छंदक नीक अभ्यासी छथि। तँइ हुनकर रचना सभमे मात्राक अंतर कम्मे छनि मुदा तैयो मूल अंतर संयुक्ताक्षर एवं चंद्रबिंदु बला अक्षर सभ छै। जाहि कारणसँ प्राचीन मैथिलीमे संयुक्ताक्षर बला नियम हटाएल गेल रहै तकरा सभ बिसरि गेल छथि आ धड़ल्लेसँ संस्कृतक शब्द प्रयोग कऽ रहल छथि। एहन स्थितिमे अहाँ कि हम लाठी हाथे संयुक्ताक्षर बला नियम मानू वा कि नै मानु मुदा उच्चारणमे, आवृतमे ओ नियम अपने आबि जाइत छै। ओहिपर केकरो वश नै छनि। तँइ हम सभ संयुक्ताक्षर बला नियम मानि रहल छी आ जे भाषाक जानकार हेता आ जिनका रचना संग भाषोक संरक्षण करबाक हेतनि से एहि नियमकेँ मानताह। चंद्रबिंदु बला प्रसंगमे मैथिलीमे अराजकता पसरल अछि। पं.दीनबंधु झाजी (मिथिला भाषा विद्योतनमे) चंद्रबिंदुयुक्त अक्षरकेँ दीर्घ मानै छथि जे कि चलि पड़ल मुदा पं. गोविन्द झा “मैथिली परिचायिकाकेर पृष्ठ 20पर लिखै छथि जे “अनुस्वार भारी होइत अछि आ चंद्रबिंदु भारहीनतकरा जनबाक बेगरता मैथिलीक विद्वान सभकेँ नै बुझेलनि। चंद्रबिंदु भारहीन मने लघु होइत छै। ई तथ्य जानब उचित हेतनि बैकुंठ जी लेल। तँइ हम ई कहि सकैत छी जे बैकुंठजीक रचना सभ बहरे मीरक संरचनामे होइत-होइत रहि गेल अछि आ स्पष्ट ओ गजल नै अछि। एहन स्थितिमे आब हम रचनामे भाव ओ वैचारिकत देखब। रचनापर बात करैत काल हम बेसी उदाहरण नै देब। पाठक पोथी कीनथि आ ओहि उदाहरण सभकेँ पढ़थि आ जानथि से हमर उद्येश्य अछि।

5

एहि पोथीक पहिल रचना भक्तिपरक अछि आ ई कोनो खराप बात नै छै। प्रगतिशीलता केर माने बहुत किछु होइत छै। मात्र परंपराकेँ छोड़ए बलाकेँ प्रगतिशील नै मानल जा सकैए। आ ठीक इएह बात बैकुंठजी अपन तेसर रचनामे देने छथि। अहिंसक बंसी विरल प्रतीक अछि एकर स्वागत हेबाक चाही। तेनाहिते साँपक जासूस मूस ईहो विरल प्रतीक अछि। हिनकर वैचारिकतामे विरोधाभास सेहो छनि। उदाहरण लेल दू रचनाक दू-दू पाँति देखू--

अगर उठौलक कियो सवाल

भौं-भौं-खौं जवाबमे भेल

फेर आन दोसर रचनामे कहै छथि-

ढेप फेकि गाड़ल झंडापर तों नहि नमहर भ जएबें

मान तहन बढ़तौ ओहू सँ झंडा ऊँच गाड़ पहिने

स्पष्ट भऽ गेल हएत जे हमर इशारा किम्हर अछि।

6

मैथिलीमे जे गजलक व्याकरणकेँ नै मानै छथि ताहि लिस्टमेसँ किछु एहन नाम छथि जिनका गजलपर एबामे बेसी मेहनति नै करए पड़तनि। जेना सुधांशु शेखर चौधरी, नरेन्द्र, बाबा बैद्यनाथ, अरविन्द ठाकुर आब एहि लिस्टमे बैकुंठ झा सेहो छथि। सुधांशु शेखर चौधरी बहुत पहिने एहि संसारसँ चलि गेलाह तँइ ओहिपर बात नै हो। नरेन्द्रजी पूर्वाग्रहमे छथि तँइ ओ आगू नै जा सकताह। बाबा बैद्यनाथजीक गजल संग्रह आलोचना हम 2013 मे केने रही। ओ आहत भेल रहथि आ हमर बातक पुष्टि लेल ओ हिंदी गजलकार सभ लग गेल रहथि। जखन ओत्तहु पता लगलनि जे बिना बहर-काफियाक गजल नै होइत छै तखन ओ बहरक अभ्यास केलाह आ हिंदीमे लगभग सात-आठ टा गजल संग्रह प्रकाशितो भेलनि। मुदा दुर्भाग्य मैथिलीक जे ओ ओतेक मात्रामे मैथिली गजल सिखलाक बाद नै लिखलाह। अरविन्द ठाकुर साफे कहै छथि जे अइ उम्रमे सीखब पार नै लागत।

कुल मिला कऽ भाव केर हिसाबसँ देखल जाए तँ निश्चिते ई पोथी पाठककेँ पढ़बाक चाही।


(३३४ म अंक १५ नवम्बर २०२१ मे प्रकाशित) 

रविवार, 7 नवंबर 2021

गजल

भेल कुपित हजारपर इजोरिया
ललकै छै लचारपर इजोरिया

सहायता केने रहियै कहियो
बैसल छै कपारपर इजोरिया

घुप्प घाप अन्हारक दुनियाँमे
रहिते छै रडारपर इजोरिया

ध्वंसक राग भास बहुत तालमे
गाबैए गिटारपर इजोरिया

छै हुनकर हाथक साँठल थारी
उगि गेलै सचारपर इजोरिया

सभ पाँतिमे 222-222-222 मात्राक्रम अछि। दू अलग-अलग लघुकेँ दीर्घ मानबाक छूट लेल गेल अछि। ई बहरे मीर अछि।  
तोहर मतलब प्रेम प्रेमक मतलब जीवन आ जीवनक मतलब तों