शनिवार, 8 जून 2019

हिंदी फिल्मी गीतमे बहर-23

गजलक मतलामे जे रदीफ-काफिया-बहर लेल गेल छै तकर पालन पूरा गजलमे हेबाक चाही मुदा नज्ममे ई कोनो जरूरी नै छै। एकै नज्ममे अनेको काफिया लेल जा सकैए। अलग-अलग बंद वा अंतराक बहर सेहो अलग भ' सकैए संगे-संग नज्मक शेरमे बिनु काफियाक रदीफ सेहो भेटत। मुदा बहुत नज्ममे गजले जकाँ एकै बहरक निर्वाह कएल गेल अछि। ओना उर्दू केर पुरान नज्ममे निश्चित रूपे बहर भेटत मुदा अंग्रेजी प्रभावसँ सेहो उर्दू प्रभावित भेल आ बिना बहरक नज्म सेहो लिखाए लागल। मैथिलीमे बहुत लोक गजलक नियम तँ नहिए जानै छथि आ ताहिपरसँ कुतर्क करै छथि जे फिल्मी गीत बिना कोनो नियमक सुनबामे सुंदर लगैत छै। मुदा पहिल जे नज्म लेल बहर अनिवार्य नै छै आ जाहिमे छै तकर विवरण हम एहि ठाम द' रहल छी-----------------

फिल्म "बाबुल" केर ई नज्म जे कि तलत महमूद ओ शमशाद बेगम जी द्वारा गाएल गेल अछि। नज्म लिखने छथि शकील बदायूँनी। संगीतकार छथि नौशाद। ई फिल्म 1950 मे रिलीज भेलै। एहिमे दिलीप कुमार, नरगिस, सुलताना आदि कलाकार छलथि। एहि नज्मक सभ पाँतिक मात्राक्रम 22-22-22-22-22-22-2 अछि।  पूरा नज्म प्रेम-विरह आ गेयतासँ भरल अछि मुदा हरेक पाँतिमे बहरक पूरा पालन भेल छै।ई नज्म ओहन-ओहन लोकक मूँहपर थापर अछि जे कहै छथि जे बहरक पालनसँ कथ्य आ गेयता घटि जाइ छै।

मिलते ही आँखें दिल हुआ दीवाना किसी का
अफ़साना मेरा बन गया, अफ़साना किसी का

पूछो ना मोहब्बत का असर, हाय न पूछो
दम भर में कोई हो गया, परवाना किसीका

हँसते ही न आ जायें कहीं, आँखों में आँसू
भरते ही छलक जाये ना, पैमाना किसीका

एकर तक्ती उर्दू हिंदी नियमपर कएल गेल अछि।  ई गीत निच्चा सुनि सकैत छी--


तोहर मतलब प्रेम प्रेमक मतलब जीवन आ जीवनक मतलब तों