रविवार, 26 दिसंबर 2021

की ई आलोचना प्रायोजित अछि ?

 विदेहक 335म अंक 1/12/2021 मे प्रकाशित हमर आलोचना "भूमिका एक : फाँक अनेक"पर जगदीश चंद्र ठाकुर अनिल जीक ई टिप्पणी जे कि हुनकर फेसबुक वालसँ साभार लेल गेल अछि। हमर आलोचना पढ़बाक लेल शीर्षकपर क्लिक करू।

(पोथी आ आलोचनापर पाठकीय प्रतिक्रिया )

नवारम्भसं प्रकाशित डा.कमल मोहन ‘चुन्नू’ जीक पोथीक नाम अछि ‘आबि रहल एक हाहि’ | पोथी हमरा भेटल छल | उत्सुकता भेल | जहिया हाथमे आएल, ओही राति आरम्भसं पढ़ब आरम्भ केलहुं | किछु पढलाक बाद आगाँ पढबाक उत्साह नहि रहल | पढ़ब लंबित रहि गेल | काल्हि जखन आशीष अनचिन्हारजीक आलोचना पढ़लहुँ  त हमरा लेल ई पोथी अत्यन्त महत्वपूर्ण भ’ गेल | पहिने त पोथीक प्रचारक लेल ई प्रायोजित आलोचना लागल, बादमे आश्चर्य सेहो भेल जे भूमिकाक फोटोकॉपी मंगाय आशीषजी एतेक शीघ्र  विस्तृत आलोचना लीखि लेलनि, मुदा हमरा लग पोथी रहैत हम भूमिको नहि पढ़ि सकलहुं | एकर दोख हम अपन अवस्थाजन्य अक्षमताकें द’ सकैत छी | आइ पहिल बेर हमरा  ई अनुभव भेल जे पोथीकें चर्चित बनयबामे ओकर भूमिकाक आलोचनाक की भूमिका होइत छैक | यैह कारण अछि जे हम पोथीकें ठीकसं  पढ़बाक लेल आकर्षित भेलहुँ | दोसर कारण इहो भ’ सकैत अछि जे दोसरक आलोचनामे सुखक अनुभव करबाक संस्कार हमरहु मोनमे विद्यमान हो | भूमिकाक आलोचनाक मिलान भूमिकाक आलेखसं करैत गेलहुँ, एहि तरहें सम्पूर्ण भूमिका पढब आसान भ’ भेल | तकर बाद पोथीक रचना  सभ सेहो पढबामे नीक लागल | आब हम सभटा रचना आ आलोचना पढ़िक’ किछु कहबाक स्थितिमे आएल छी |

आलोचनाकें धारदार बनेबाक लेल किछु शब्दक उपयोग  हमरा अनसोहांत लागल अछि ( छुल-छुल मूतै बला प्रसंग ) | एहि तरहक शब्द सबहक उपयोगसं सेहो एकटा अस्वस्थ परम्पराक जन्म भ’ सकैत अछि, तें एहिसं बचबाक प्रयास  हमरा आवश्यक लगैत अछि | आलोचनाक  सीमाक अतिक्रमण नहि हो,से ध्यान राखब चाही | एकटा स्वस्थ परम्पराक रक्षाक लेल एकटा अस्वस्थ परम्पराकें जन्म देब कोना उचित कहल जाएत ? हमरा आलोचनाक सीमा निर्धारित करबाक अधिकार नहि अछि, मुदा एक सामान्य पाठकक रूपमे हमरा लगैत अछि जे आलोचना कबाछु नहि बनबाक चाही | हम देखलहुं अछि जे पोथीमे रचनाक माध्यमसं  गाम-घर, राज्य, देश आ दुनियामे घटैत बहुत रास सामाजिक,आर्थिक,राजनीतिक घटना सबहक प्रति अपन विचार आ प्रतिक्रिया व्यक्त कएल गेल  अछि | प्रतिक्रिया व्यक्त करब साहित्यकारक हाथमे छनि, व्यक्त करबाक माध्यम शब्द छै, शब्दक उपयोग विभिन्न विधामे करबाक स्वतंत्रता साहित्यकारकें छनि | एहि स्वतंत्रताक संग ओहि विधाक विधानक पालन करबाक कर्तव्य सेहो साहित्यकारक  छनि | एहि कर्त्तव्यक पालन नहि भेलासं अस्वस्थ परम्पराक जन्म होइत अछि | साहित्यकार यदि चाहथि जे कर्तव्य पालनक जिम्मेदारी मात्र आन लोक लेल छै, ओ स्वतन्त्र रहताह, त ई उचित नहि कहल जा सकैत अछि |

आइ जे किछु साहित्यमे व्यक्त कएल जा रहल अछि, से पहिनहुं कोनो-ने-कोनो रूपमे व्यक्त कएल जा चुकल अछि | चिन्तक लोकनि कहैत छथि जे देवता आ दानवक संग्राम अनवरत चलैत आबि  रहल अछि | रामायण,महाभारत आ आनो धर्म ग्रन्थ द्वारा विभिन्न रूपमे सम्वेदना प्रगट कएल गेल अछि | पछिला सय दू सय बरखमे सेहो हजारो साहित्यिक कृति द्वारा  भिन्न-भिन्न तरहें प्रतिक्रिया आ सम्वेदना व्यक्त कएल गेल अछि आ एखनो कएल जा रहल अछि | प्रतिक्रिया आ सम्वेदना व्यक्त करबाक अनेक माध्यम अछि, मुख्य दूटा माध्यम अछि-गद्य आ पद्य | गद्यमे निबन्ध, कथा,लघुकथा,बीहनि कथा, उपन्यास,नाटक,संस्मरण,जीवनी,  आत्मकथा आदि मुख्य अछि, तहिना पद्यमे कविता,दोहा,मुक्तक,हाइकू,गीत,गजल,खण्ड काव्य,महाकाव्य आदि मुख्य अछि | सभ विधाक अपन-अपन  विशेषता छै | अही विशेषताक कारण ओइ विधाक अस्तित्व छैक |

गजल विधा सेहो अपन किछु खास विशेषताक कारण अस्तित्वमे   अछि, काफिया आ बहर अनिवार्य अंग अछि गजलक | रदीफ़ अनिवार्य नहि अछि | रदीफ़ हो त केहेन हो,काफिया आ बहरक आयोजन कोना हो, से किछु अवधिक अभ्याससं सीखल जा सकैत अछि | सौभाग्यक बात अछि जे  एहि सम्बन्धमे पर्याप्त जानकारी नेट पर  उपलब्ध अछि जे  गजलक व्याकरणक गहन अध्ययनक बाद सबहक उपयोग लेल प्रस्तुत कएल गेल अछि | ओना अपन अनुभवसं हम जनैत छी जे सुनि-सुनिक’, पढ़ि-पढ़िक’ बहुत गोटे रदीफ़ आ कफियाक विषयमे किछु-किछु जान’ लगैत छथि आ लिखनाइ शुरू क’ दैत छथि | रदीफ़ चुनबामे त कष्ट नै होइत छनि, कारण समान शब्द अथवा शब्द-समूहक आवृति पहिल शेरक दुनू पांतीक अन्तमे आ बादक प्रत्येक शेरक दोसर पांतीक अन्तमे  होइत छैक | सभ शेरमे काफियाक मिलान ठीक रखबामे गजलक व्याकरणक  जानकारी आ अभ्यासक आवश्यकता होइत छैक | एत’ अबैत-अबैत बहुत लोक थाकि जाइत छथि  आ बहर संतुलित रखबाक बेरमे असंतुलित भ’ जाइत छथि  अथवा ओतबेकें पूर्ण मानबापर आ मनयबापर  अड़ि जाइत छथि | दुष्यन्त कुमार जीक एकटा शेरक एक पांती  छनि :

‘यहाँ तक आते-आते सूख जाती हैं कई नदियाँ’ 

व्याकरणक ज्ञान आ निरंतर अभ्यास एकर एकमात्र समाधान अछि | जे सभ कहैत छथि जे हम विचारकें प्रधानता दैत छी,ओहो सभ   रदीफ़ आ काफियाक पालन त अवश्य करय चाहैत छथि कारण तखने रचना ‘गजल जकाँ’ लाग’ लगैत छै, मुदा रचनाकें गजल बनबामे बहरक खगता रहिए जाइत छैक | अहू संकलनमे  देखलहुँ अछि जे रदीफ़ आ काफियाक निर्वाह करबाक प्रयास कएल गेल अछि | किछु गजलमे सभ शेरमे काफियाक निर्वाह करैत काल गंभीरताक अथवा धैर्यक अभाव दृष्टिगोचर होइत अछि | बहरक पालन लेल सेहो प्रयास भेल अछि, मुदा समयक  अभावक कारण ओकरा प्रति गम्भीरता नहि राखल गेल अछि | जत’ ओहि लेल उपयुक्त शब्द तकबामे किछु समय आवश्यक छलै, ओत’ समय देबाक बदला रचनाकार आगू बढि गेल छथि किछु और बात कह्बाक लेल | एक बैसकीमे एकटा गजल लीखिक’ उठब यदि लक्ष्य हो त गजलक संग न्याय नहि क’ सकबाक  संभावना अधिक भ’ जाइत छैक | पोथीक भूमिका कहैत अछि जे गजलक वैधानिकता आ वैचारिकतापर आश्रित दूटा सम्प्रदायमे एक सम्प्रदाय विचारक स्वास्थ्यक बिना परवाह केने गजलक व्याकरण-विधानकें अक्षुण्ण रखबाक समर्थक अछि, दोसर सम्प्रदाय गजलक माध्यमसं अपन बात-विचार कहबाक समर्थक अछि | एहि उक्तिक सोझ अर्थ ई अछि जे किछु गोटे  गजलक व्याकरणकें पूर्णतः मानैत अपन बात कहैत छथि,मुदा बात दमगर नै रहि जाइत छनि ; दोसर दिस किछु गोटे गजलक व्याकरणकें आंशिक रुपें मानैत दमगर बात कहैत छथि | मतलब गजलक व्याकरणकें आंशिक रूपें मानैत कएल गेल रचनाकें गजल कहबाक आ ओकर स्वीकृति पयबाक आग्रह अछि | एकरा और सरल करी त ई कहल गेल अछि जे रदीफ़ रहित अथवा रदीफ़ सहित सभ शेरमे शुद्ध अथवा अशुद्ध काफिया बला रचनाकें गजल मानू | एत’ प्रश्न ई उठैत छैक जे दूटा अनिवार्य अंगमे एकटाकें मानू, दोसरकें नै मानू, एकटा राखू,दोसर नै राखू, एहेन रचनाकें गजल कहबाक जिद्दे किएक ? विचारणीय बात ई अछि जे कोनो विधामे रचना करैत काल ओहि विधाक व्याकरणक प्रति गम्भीरताक अभाव ओहि विधाकें कोना स्वस्थ राखि सकैत अछि ? पोथीक एक पृष्ठपर जाहि रचनाकार सबहक प्रति आभार प्रगट कएल गेल अछि, ओहो सभ कतहु-ने-कतहु एहि अनियमितताक लेल दोखी मानल जा सकैत छथि | हम अपन दोखक चर्च करब आवश्यक बुझैत छी | हम एकटा गजलक प्रथम शेरक दुनू पांतीमे गजल लेखनमे परस्पर विरोधी दू तरहक विचारकें व्यक्त केने छी : एक पांतीमे एकटा विचार अछि किछु रचनाकारक जे बहरक झंझटसं मुक्ति चाहैत छथि, दोसर पांतीमे गजलक विचार अछि, जे अपन बरबादी नै देखय चाहैत अछि | हम कतहु अपने गजल कहैत काल ई बात कहि दैत छी, मुदा क्यो पढैत छथि त भ्रम होइत छनि जे हमहूँ गजलमे बहरक पालन करबाक विरोध करैत छी | ओ शेर अछि :

बहरक झंझटिसं हमरा आजाद करू 

हम गजल छी, हमरा नै बरबाद करू 

ई शेर स्थापित सरल वार्णिक बहरमे रचल गजलक अछि | विभिन्न प्रकारक बहरक जानकारी आवश्यक अछि गजल लेखनक लेल | ओना हमहूँ एखन सीखिए रहल छी, एखनहु गलती करैत छी आ मानैत छी जे गलती भेल अछि, ओहिमे सुधारक प्रयास करैत छी | विचारमे हम स्वच्छ दुनियाँ चाहैत छी त अपन रचनामे सेहो स्वच्छता सुनिश्चित करबामे कोताही किएक ? यदि हमर रचना गजल कहयबाक योग्यता नहि रखैत अछि त ओकरा गजल कहबाक जिद्द्क की प्रयोजन ? गीत कहब,कविता कहब | किछु गोटेक मत ई भ’ सकैत छनि जे रचनाकार आगू-आगू  चलताह  आ व्याकरण पाछू-पाछू अथवा इहो कहल जा सकैत अछि जे साहित्यमे सेहो लोकतन्त्र हेबाक चाही आ बेशी लोक जेना चाहैत छथि तकरे आधार अथवा तकरे सही मानल जाए, तखन जे साहित्यिक अराजकताक स्थिति उत्पन्न हएत तकर की करब ? आम जीवनमे हत्या अथवा शीलहरणकें अपराध मानल जाइत अछि | गजलमे बहरक अनिवार्यताकें नष्ट करबाक जोर-जबरदस्तीक क्रियाकें गजल विधाक शीलहरणक प्रयास नहि त आर की कहल जा सकैत अछि ?

जगदीश चन्द्र ठाकुर ‘अनिल’/ पटना / 7.12.2021

सोमवार, 20 दिसंबर 2021

गजल

दर्दमे दर्दपर जी खिया जाइ छै बेरपर केहनो सुख सुखा जाइ छै

देह छै देहपर की भरोसा कते प्राण छै प्राण झटमे झिका जाइ छै 

जोड़तै किछु हृदय से कहाँ छै नियम
जोड़लो छै हृदय से घटा जाइ छै

एक धधरा कहीं एक चिनगी कहीं ई मिझा जाइ छै ओ धधा जाइ छै

झाँपि सकतै कते पोछि सकतै कते आँखिमे नोर अबिते बुझा जाइ छै

सभ पाँतिमे 212-212-212-212 मात्राक्रम अछि। ई बहरे मुतदारिक मुसम्मन सालिम अछि। सुझाव सादर आमंत्रित अछि।

शुक्रवार, 17 दिसंबर 2021

हे शिव " एकरा गजल कहितहुँ" होइछ लाज

कोनो लेखक केर एकटा मुख्य विषय, मुख्य विधा आ मुख्य तेवर रहैत छै जकरा पूरा दुनियाँ जानै छै। मुदा ताही संगे ओहि लेखक केर किछु एहन बात रहै जे दुनियाँ नै जानै छै आ जहिया जानै छै तहिया आश्चर्य लागै छै जे हिनकर ईहो रूप छनि। ई रूप नकारात्मक हेतै से हम नै कहि रहल छी मुदा नीको पक्ष जँ नुकाएल रहए तँ सार्वजनिक भेलापर आश्चर्य होइते छै। एहने सन अनुभव हमरा प्रो. भैरवेश्वर झा द्वारा संपादित "किरण समग्र-खंड चारि, भक्ति एवं श्रृंगार गीत संग्रहःरसमंजरी" नामक पोथी पढ़ि भेल। ई पोथी डा. काञ्चीनाथ झा 'किरण'जीक भक्ति एवं शृंगारपरक रचनाक संग्रह अछि।

भक्ति आ शृंगार ताहूमे काञ्चीनाथ झाजी द्वारा लिखल। जखन कि किरणजीक मुख्य तेवर छनि यथार्थवादी रचना आ ओकर पोषण। एहन नै छै जे भक्ति वा शृंगार लिखब अपराध छै मुदा उपरे कहलहुँ जे मुख्य तेवरक बाद जँ आन तेवरसँ परिचय होइत छै तखन आश्चर्य लगिते छै। आ से आश्चर्य पोथीक भूमिकामे सेहो भेटत। आ एहन-एहन गौण पक्षकेँ पाठक लग आनए बला साधुवादक पात्र छथि। तँइ भैरवेश्वरजी सेहो धन्यवादक पात्र छथि। मुदा एहि धन्यवादक संगे हम ईहो स्पष्ट कऽ दी जे किछु बिंदुपर हिनक संपादन कमजोर रहि गेल छनि जकर चर्च हम आगू करब। तैयो भैरवेश्वर जी धन्यवादक पात्र रहबे करताह। भैरवेश्वरजी अपन भूमिकामे कविक प्रारंभिक कालक वर्णन आ हुनकर काव्य शैलीक चर्च केने छथि जे कि पर्याप्त नै अछि। पर्याप्त नै अछि माने जे बहुत रास महत्वपूर्ण बिंदुकेँ छोड़ल गेल अछि। प्राचीन कालमे कोनो मूल कविकेँ अपन भाषाक अनुरूप बना कऽ प्रस्तुत करब अपराध नै होइत छलै मुदा आब एहि प्रवृतिकेँ हेय बूझल जाइत छै। बौद्ध कवि भुसुकपाद केर रचनाक अनुवाद कबीर केने छथि तँ जयदेवक रचनाक अनुवाद विद्यापति। दामोदर मिश्रजीक हनुमानपर आधारित नाटक केर अनुवाद रामचरित मानसमे भेटत। तेनाहिते ज्योतिरीश्वर कृत धूर्तसमागम केर अनुवाद अंधेर नगरीमे भेटत। जँ किरणजीक रचना जे कि एहि पोथीमे संकलित अछि ताहिमे सेहो अनुवाद करबाक प्राचीन परंपराकेँ पालन केलाह अछि जेना कि पृष्ठ़-17 पर "नील कलेवर मुरली मनोहर" रचना। ई शुरूआत अछि जँ पोथी पढ़ैत जेबै तँ एहन उदाहरण भेटैत चलि जाएत। भैरवेश्वरजी एहि बिंदुकेँ अपन भूमिकामे नै उठा सकलाह अछि जाहि कारणसँ आजुक पाठक किरणजीपर नकलक आरोप लगा सकै छथि।

पोथीक बहुत रास रचनाक संगे राग-भास केर उल्लेख भेल अछि जे कि नीक अछि। संगे-संग गीतक प्रकार यथा तिरहुत बटगवनी आदिक उल्लेख भेल अछि जकरा भूमिकामे सेहो कहल गेल अछि। मुदा भूमिकामे जे एहि संगे एक चीज छूटल अछि ओ अछि "गजल"। एहि पोथीक पृष़्ठ-87 पर आ ताहिसँ आगू किछु रचनाक उपर गजल शब्दक प्रयोग भेल अछि आ एहि संबंधमे भूमिकामे किछु नै कहल गेल अछि। आगू बढ़ी ताहिसँ पहिने अहाँ सभ गजल लागल रचना सभकेँ पढ़-देखि ली से नीक रहत।

1
प्रिये अपना नैना सँ नैना मिलाउ अहाँ
अपना कोइली वयना के सुर सुनाउ अहाँ

देखि मुखचंद्र प्रेयसि युगपयोधर उन्नते
पान रञ्जित अधर पल्लव मदन मम दसंते
अपना कुसमित छाती मे छाती लगाउ अहाँ

कुसुम कोमल बाहुलति सँ बान्हि चुमबन देहु मे
बसहु काञ्चिनाथ के मन मृदुल बीच मे
हमरा सँ यौवन के सेवा कराउ अहाँ।
(पृष्ठ -87)

2
कन्हैया कन्त सङ सखिया खेलबै आजु होरी
पहिरि कय रेसमी सड़िया उड़ेबै भरि झोड़ी
चलेबै काजरित अँखिया सुतिख-तिख वाण हरि रिपु के।
सुनेबै फगुआ लोभेबै चित्त साजन के

नारिक मान ई यौवन पहुक उत्संग मे बसि के
काञ्चिनाथ पिय के हम चढ़ेबै विहुँसी हँसि के।
(पृष्ठ-88)

3
कन्त बिना कामिनी खेलाएत कोना
भानु बिना कमलिनि फुलाएत कोना
चन्द्र बिना चन्द्रिका अमृताएत कोना
मेघ बिना दामिनि विलसाएत कोना
काञ्चिनाथ विनु लता मुकुलाएत कोना
(पृष्ठ-95)

4
तोरि मदभरी यौवन नसाबए हमे हो
ओठ पर लाली तोर गाल गुलाबी
नयनो मे काजर कटारी मारे हो
बेलि कली सभ यौवन खिलल तोर
रेशम बनल चोली सताबै मोहे हो
काञ्चिनाथ भन तव मुख पंकज
मन मधुकर हिये लुभावै मोरे हो
(पृष्ठ-95-96)

5
प्रीतम मोर विदेश मे हे अलि, वारि वयस के हम भेलौं
फूलल बेली जूही चमेली चम्पा मालति हे आलि
कमलिनि कामिनि मुख अलि चूमय रभसि कुसुम रस पीब हे आलि
मोरा यौवन बगिया मे सखि फुलल अनुपम दुइ कलिया हे आलि
कुसुमक सौरभ चहु दिसि गमकय कौन भ्रमर रस लेता हे आलि
काञ्चिनाथ बिनु के मम सखिया उरज कमल रस पीता हे आलि
(पृष्ठ-96)

6
नयना चला कै मारल तिखवान
गाल गुलाबी शोभय नाक बुलाकी नैना मे कारी कमान
नहुँ-नहुँ यौवना कमल कली सम शुभय मदन के थान
तोर नयन सर बेधल हृदि मँह लहरय गरल समान
(पृष्ठ-97)

7
कमल कुसुम सम फुलु यौवन मम विफल पियाक विना रे
निठुर मलय बहु कुसुम सर वलय कोकिल करथि अनोरे
गुञ्जि भ्रमर कुल घूमय फूल जलय कमलिनि कामिनि द्वारे
काञ्चिनाथ पिय बिनु सखि क्रूरमार सर मारे
(पृष्ठ-97)

8
प्रियतम नाजुक रहितै रतिया मे खेलबितौं सजनी
बेली चमेली जूही चिनतौं रेशम सूत मे गजरा गथितौं
आदर सँ पिया के पहिरबितौं आली, घाड़ाजोड़ी बगिया बुलबितौं सजनी
लाल महल मे पलङ बिछबितौं, कुसुम कली सँ सेज सजबितौं
अपने सुतितौं पिय केँ सतबितौं, बालम छतिया मे छतिया मिलबितौं सजनी
मुसकि-मुसकि युग नैन चलबितौं, प्रियतम मानस मदन जगबितौं
जँ किछु कहितथि हँसि मुख फेरितौं, वालम सँ पौना धरबितौं सजनी
बिहुँसि उठि पिय अंग लगबितौं गहि भुजपाश तनिक मुख चुमितौं
काञ्चिनाथ सङ खेल खेलइतौं आली, नूतन यौवन रसवा लुटबितौं सजनी।
(पृष्ठ- 104)

जखन अहाँ सभ एहि रचना सभसँ गुजरल हएब तँ साफे पता चलि गेल हएत जे ई रचना सभ गजल विधाक रचना नै अछि। तखन फेर ई की अछि? हमरा बुझने किरणजी गजलकेँ राग बुझि लेने छथिन। ई बात हमरा एहि दुआरे बुझाइए जे आन रचना सभमे राग-भास निर्देश कएल गेल छै। ओनाहुतो गजल गायन अर्ध शास्त्रीय संगीतक बेसी निकट छै तँइ किरणजीकेँ भ्रम भऽ गेल हेतनि। मुदा गजल संगीतक विधा छैहे नै तँइ एहि पोथीमे देल गेल रचना गजल विधाक रचना नै अछि। बहुत संभव जे गजल नामक कोनो राग अथवा कि ताल हो मुदा से हमरा नै पता। जँ गजल नामक कोनो राग वा ताल हेबो करतै तँ संगीतक गजल आ साहित्य केर गजलमे अंतर रहबे करतै। भैरवेश्वरजी अपन भूमिकामे एहि सभ तथ्य दिस कोनो इशारा नै केने छथि जाहिसँ नव रचनाकार लग भ्रम पसरबाक पूरा संभावना बनै छै।

एकै रचना किछु पाँति वा किछु शब्दक कारणे दू-दू बेर आएल अछि (देखू पृष्ठ 16-17 केर रचना आ पृष्ठ 79 केर रचना) एहन उदाहरण आर भऽ सकैए। संपादक चाहतथि तँ एकरा संपादित कऽ एक रूपमे आनि सकैत छलाह। मुदा भूमिकामे एहि तथ्य दिस कोनो बात नै कहल गेल अछि। जँ पोथीमे संकलित रचना सभकेँ पढ़ब तँ आधुनिक रोमांटिक गीत सभसँ ई आगू बुझाएत। एक-दू रचना तँ थियेटर (थियेटर के जे अर्थ मैथिलीमे होइत छै से ग्रहण करू) केर चलताउ गीतक बराबर सेहो अछि जेना "छोट-छोट यौवना दू तोर रसाल रे" (पृष्ठ-107)। भैरवेश्वरजी एहू तथ्यकेँ भूमिकामे नै लिखने छथि। "काञ्चीनाथ" भनितासँ एकटा गीत "जगत जननि जगतारिणी" सेहो भेटैत अछि जे कि एहि पोथीमे नै भेटल। बहुत संभव जे हमर नजरिसँ छूटि गेल हो। पाठक हमरा सूचित करथि हम अपन आलेखकेँ सुधारि लेब। अथवा ईहो भऽ सकैए जे "काञ्चीनाथ" भनितासँ आनो कवि लिखने होथि जे कि हमरा पता नै हएत।

जे किछु हो मुदा एहि संपादित पोथीमे देल गेल गजल नाम्ना रचना सभ ने तँ गजल अछि आ ने गजलक इतिहासमे उल्लेख करबा योग्य अछि मुदा ओइ बाबजूद मात्र अइ कारणसँ हम विवरण देलहुँ जे काल्हि कियो उठि कऽ कहि सकै छथि जे किरणजी सन महान साहित्यकार गजल लिखने छथि आ सही लिखने छथि। बस एही कारणसँ हम एतेक मेहनति केलहुँ अन्यथा एहि पोथीमे देल गजल नामक रचना सभमे कोनो एहन बात नै।

एहि आलेख केर शीर्षक अही संपादित पोथीमे देल किरणजीक एकटा गीतपर आधारित अछि। ओहि गीतकेँ ताकि पढ़ब पाठक केर काज छनि।

(विदेहक 336म अंक 15/12/2021 मे प्रकाशित)

सोमवार, 6 दिसंबर 2021

गजल

लोक जूटै उठानमे
या कि फेरो भसानमे

मोन पड़लै बहुत मुदा
डूबि गेलहुँ गुमानमे

ताकि लेतै कियो कहीं
छाँह भेटत निशानमे

क्षोभ दुख लोभ लाभ सभ
तत्व अतबे महानमे

किछु जहर साँपमे बसल
किछु जहर छै विधानमे

सभ पाँतिमे 212-212-12 मात्राक्रम अछि। सुझाव सादर आमंत्रित अछि।

बुधवार, 1 दिसंबर 2021

भूमिका एक : फाँक अनेक

1

लूरि किछुओ सीख ले

नहि सदति अंदाज कर


(शाइर-बाबा बैद्यनाथ, मात्राक्रम-2122-212)

रचनाकारक तौरपर हम ई मानै छी जे कोनो रचना नीक-खराप भऽ सकैए मुदा एकटा विचारक केर तौरपर हम ईहो मानै छी जे खराप रचनाकेँ येन-केन-प्रकारेण "नीक" साबित करबा उद्योग अंततः रचनाकारक पतनक पहिल सीढ़ी बनैए आ साहित्यक पतन केर सेहो।

2

कथित गजल संग्रह (जे बिना बहर-काफिया केर हो) आब हमरा प्राप्त नै होइए। बहुत रास प्रकाशकीय-लेखकीय निर्देश अनचिन्हारक नामपर देल गेल छै से हमरा बुझाइए (एकर अपवाद सेहो छै) आ तँइ कमल मोहन चुन्नू जीक कथित गजल संग्रह "आबि रहल एक हाहि" केर भूमिका फोटो रूपमे प्राप्त करबाक जोगाड़ हमरा करए पड़ल। एहि ठाम रचनाकार खुश भऽ सकै छथि जे हम एतेक प्रतापी जे हमरा `कियो "इग्नोर" नै कऽ सकल मुदा हुनका शायद ई पता हेतनि जे एहि पाँतिक लेखक केकरो इग्नोर करिते नै छै। कहियो-कहियो आलस आबि जाइए तँ वरिष्ठ सभ कहि दै छथि जे जाहि विधामे छी ताहि विधाक मामूलियो बातकेँ नोटिस लेबाक चाही आ तकर बाद फेर मोन बनि जाइत छै आ तकरे परिणाम अछि ई आलेख (सीधा बात जे ओ सभ हमरा इग्नोर करताह मुदा हम हुनका सभकेँ इग्नोर नै करबनि)। हमर प्रयास रहैए जे मामूलियो बातक मंथनसँ हम साहित्य केर हित कऽ सकी। आ अही कारणसँ मात्र 13 बर्खमे बिना कोनो मंच बिना कोनो फंडकेँ मैथिली गजलमे एकटा एहन विमर्श शुरू भेलै जकरासँ बचि निकलबाक कोनो साधन आब किनको लग नै छनि। अन्यथा मैथिली गजलमे कियो चालिस, कियो पचास बर्खसँ छथि मुदा गजलक लक्ष्य हुनका सभसँ दूर भऽ गेल छनि। 2008 ई.सँ पहिने जे सभ गजलमे सुखासनमे छलाह से सभ आब शीर्षासनमे लागल छथि। लोक केकरो नाम लीखथु वा कि नै नै लीखथु ,बाजथु वा कि नै बाजथु मुदा 2008 क बाद बला एहि विमर्शक पहिचान वाटरमार्क रूपमे हुनकर लीखल -बाजल हरेक पाँतिमे भेटत। कुल मिला कऽ बात ई जे आब हम चुन्नूजीक कथित गजल संग्रहक भूमिकापर बात करब। ई भूमिका पृष्ठ 9 सँ लऽ कऽ 18 धरि अछि। एहि भूमिकामे सेहो 2008 क बाद बला विमर्शक पहिचान वाटरमार्क रूपमे भेटत। 2008 मे मैथिली गजल के पहिल आ एखन धरिक अंतिम शोध ब्लाग "अनचिन्हार आखर" केर निर्माण भेल छल जे एखनो एक्टिभ अछि।

 राणा प्रताप नहि अकबर नहि

असगर चेतक सुल्तान बढल


(शाइर-राजीव रंजन मिश्र, मात्राक्रम-22-22-22-22)

 3

गजल लिखबासँ पहिने चुन्नूजी नाटक विधामे महारत (अइ महारत शब्दकेँ सर्टिफाइ नाटक विधाक लोक करताह) हासिल केने छथि आ ओहिमे बहुत रास आलोचना-समीक्षा लिखने छथि। संभवतः निनाद आ रंगमंच कहि हुनकर नाटक आलोचनापर दू टा पोथी आएलो छनि। आनो विधापर आलोचना लिखने हेता से हमरा विश्वास अछि। विश्वासक कारण ई जे मैथिलीमे सभा-संस्था वा कि विद्यालय-विश्वविद्यालय बला सभ बाइ-डिफाल्ट विद्वान होइ छथि। एहन अवस्थामे चुन्नूजी सेहो विद्वान हेबे करताह। मुदा हमर सौभाग्य देखू जे आन विद्वानसँ अलग चुन्नूजी साहसी लोक छथि। साहस केर संदर्भ ई जे चुन्नूजीमे शायद अपनाकेँ खारिज करबाक, अपन लिखलकेँ खारिज करबाक साहस छनि।

 पद पराक्रम मुखर के कहत की कहू

दंभ अछि बड़ सुघड़ मुग्ध दरबार सब


(शाइर-विजयनाथ झा, मात्राक्रम-212-212-212-212-212)

 4                                      

पृष्ठ-10 पर चुन्नू जी अपन रचनाक अप्रत्यक्ष रूपें स्वमूल्यांकन करैत लिखैत छथि जे "बड़दक दाम बड़दे कहत" आ से लीखि ओ अपन लीखल हरेक आलोचनाकेँ ओ खारिज कऽ देलाह। निनाद आ रंगमंच नामक हुनक पोथी नाटक आलोचनापर छनि आ जँ हुनकर वर्तमान मतकेँ (गजल बला) देखल जाए तँ साफे मतलब छै जे नाटक अपन बात अपने कहतै एहि लेल चुन्नूजी सहित आन कोनो लोकक जरूरति नै छै। चुन्नूजी जे लिखलाह तकर साफ-साफ मतलब छै जे ओ अपने (चुन्नूजी) जाहि-जाहि रचना-पोथीपर आलोचना लिखने हेता से रचना-पोथी सभ ततेक बौक रहल हेतै जे ओकरा बाजए लेल चुन्नूजीक सहारा लेबए पड़लै। से आब ओहन लेखक सभ जानथि जिनकर रचना-पोथीपर चुन्नूजी आलोचना लिखने छथिन। जिनकर रचनापर चुन्नूजी लिखने छथिन जँ हुनका बुझाइत छनि जे चुन्नूजीक उपरक देल विचार गलत छनि तँ आगू आबि चुन्नूजीक विचारकेँ गलत कहथि। समयक फेर छै आ तँइ रहीमक हीरा एखनो धरि अपन मोल नै कहि सकल अछि मुदा चुन्नूजीक बड़द अपन दाम कहि रहल छै। संगे-संग हम ईहो बात कहब जे चुन्नूजी द्वारा भविष्यमे लिखल गेल कोनो आलोचना-समीक्षा (भूमिका रूपमे सेहो), आलेखपर सेहो उपरक बात लागू हएत। भविष्यमे जाहि लेखक केर रचनाक उपर चुन्नूजी लिखता तिनका बारेमे ई मानि लेल जेतनि जे हुनकर रचना बौक छलनि तँइ आलोचकक जरूरति पड़लै। विरोधाभास एहन जे अही पृष्ठपर आगू चलि चुन्नूजी लीखि रहल छथि जे "..तें हम अपन गजलक मादे अपनहि किछु नहि कहब"। एकर मतलब साफ छै जे या तँ ओ अपने दाम कहताह वा हुनकर बड़द दाम कहतनि, तेसर कियो नै कहि सकैए। माने जँ हुनकर बड़द अपन दाम नै कहलकनि तैयो ओ कोनो बड़द विशेषज्ञकेँ नै बाजए देताह। जँ बड़द रचना भेल तँ बड़द विशेषज्ञ आलोचक भेलाह।

चुन्नूजी अपन लिखल आलोचनाकेँ खारिज कऽ सकै छथि मुदा ओ बहुत महीन रूपसँ नैरेटिभ बना कऽ मैथिलीमे आलोचना विधाकेँ मारबाक जे खडयंत्र केलाह अछि से आपत्तिजनक बात अछि। लेखके नै मैथिलीक आलोचको सभकेँ एहि बातक धेआन रखबाक चाही। सोचियौ खाली चुन्नुए जीक बड़द किए दाम कहतै, सभ लेखक केर बड़द दाम कहतै ने। जेना चुन्नूजी इशारामे विशेषज्ञ केर निषेध करै छथि तेनाहिते दोसरो करतै। एहन स्थितिमे आलोचना विधा रहतै कतए से सोचू। तँइ हम कहलहुँ जे चुन्नूजी बहुत महीन रूपसँ मैथिलीमे आलोचना विधाकेँ मारबाक खडयंत्र केलाह अछि। ई खडयंत्र हम किछु आलोचक जेना भीमनाथ झा, अरविन्द ठाकुर, अशोक, शिवशंकर श्रीनिवास, कैलाश कुमार मिश्र, प्रदीप बिहारी, नारायणजी, केदार कानन, विद्यानंद झा, कुणाल, कमलानंद झा, किशोर केशव आदिक सामने स्पष्ट कऽ रहल छी। ओना ई बाध्यता नै छै जे एहि ठाम किनको टिप्पणी करहे पड़तनि। कारण हमर मानब अछि जे सभहक अपन सीमा ओ सुविधा छै। जहिया जिनका जेहन सुविधा बुझेतनि ताहि अनुरूपे ओ अपन विचार व्यक्त करताह। बहुत संभव जे किछु लोक भविष्येमे जा कऽ एहिपर टिप्पणी करथि। हमर काज छल एहि खडयंत्रकेँ सामने आनब आ एकर विरोधमे पहिल पाँति लीखब से हम केलहुँ। त्वरित टिप्पणी आ भविष्यमे जा कऽ लिखल टिप्पणी दूनूक अपन मेरिट-डिमेरिट छै। एहि प्रसंगमे जेना-जेना समय बीतैत चलि जेतै तेना-तेना आलोचक सभहक अपने लिखल आलोचना एहि घटनापर प्रश्न पुछतनि। आ तहिया बहुत बिखाह भऽ कऽ पुछतनि। तँइ सुविधा आ नैतिकता दूनूमेसँ जकर पलड़ा भारी हेतै ताहि अनुरूपे आलोचक सभ एहि घटनापर अपन विचार जरूर देताह से हमरा विश्वास अछि। जे आलोचक चुन्नूजीक बातसँ सहमत छथि से अपन लीखल आलोचनाकेँ अपनेसँ खारिज कऽ रहल छथि। आ से खारिज ओ चुन्नूजी जकाँ साहसक संग करथि तँ बेसी नीक।

 

लोक कतबो हुए जोरगर

अन्तमे सभ नचरि जाइए


(शाइर-जगदीश चंद्र ठाकुर 'अनिल', मात्राक्रम-212-212-212)

5

पृष्ठ-11 पर चुन्नूजी लिखैत छथि जे एक संप्रदाय व्याकरण छंद अक्षुण्ण रखबाक समर्थक छथि चाहे कथ्य विचार आदि चोटलग्गू किएक ने भऽ जाए। मुदा चुन्नू जी अपन बातक पुष्टि लेल एकौटा उदाहरण चाहे गजल कि शेर रूपमे नै राखि सकल छथि। जखन कि बिना व्याकरण-छंद (बहर-काफिया-रदीफ)क गजल नै होइत छै ताहि लेल अनेक उदाहरण रचनाकारक नाम सहित छांदिक संप्रदाय द्वारा देल गेल छै। जँ चुन्नूजी आ हुनकर विचार सही छनि तखन उदाहरण देबामे डर कथिक? जँ कोनो गजल बहर-छंदमे छै मुदा ओ निरर्थक अक्षरक समूह छै तँ ओ उदाहरण सहित जनताक सामनेमे रखबाक चाही चुन्नूजीकेँ। चुन्नुएजी नै हरेक बेबहर कथित गजलकार सभ ई कहने फीरै छथि जे बहर-काफियासँ कथ्य कमजोर भऽ जाइत छै मुदा ओहो सभ कोनो उदाहरण एखन धरि नै दऽ सकल छथि। एकर साफ मतलब भेल जे बहर-काफिया माने असल गजल सभ मजगूत अछि आ बेबहर कथित गजलकार सभ मात्र ढेप फेकि अपनाकेँ ओ अपन गुटकेँ खुश कऽ लै छथि। लोक कहि सकै छथि जे चुन्नूजी अपन गजलक अग्रसारण लेल ई भूमिका लिखलाह तँइ उदाहरण देब उचित नै। मुदा जँ भूमिकामे विधापर बात हो (कोनो रूपमे) तँ ओ अग्रसारण नै रहि जाइत छै आ विधापर बात जँ संदर्भहीन हो तँ ओ उचित नै। कविवर सीताराम झाजीक वैचारिकता बहरक पालनसँ नै टूटै छनि, योगानंद हीरा, जगदीश चंद्र ठाकुर 'अनिल' जीक नै टूटै छनि, दुष्यंत कुमार, अदम गोंडवी सहित आन केकरो वैचारिकता बहरसँ नै टूटै छै मुदा चुन्नूजीक टुटि जाइत छनि तँ एकर मतलब ई भेल जे चुन्नूजीमे गजल कहबाक / लिखबाक क्षमता नै छनि।  अरे भलेमानस बाबू, कमसँ कम औपचारिकतोवश कोनो गजल, कोनो शेर दऽ कहू जे एहिमे बहर छै आ बहरक कारण अर्थ नै छै। हम सभ मानि लेब। अथवा ईहो कहि दियौ जे ई गजल वा ई शेर हमरा बुझबामे नै आएल। हम सभ ईहो मानि लेब। चुन्नूजी हमर एहि आग्रहकेँ चैलेंज बूझथि।

असल बात ई जे मैथिलीक किछु लेखक अपन कमजोरीकेँ पूरा मैथिली साहित्य / पूरा विधाक कमजोरी बना देबाक सफल अभियान चला लेने अछि। केकरो पाँच सए पन्ना नै लीखल होइत छै तँइ ओ गोलौसी कऽ पचास पन्नाक उपन्यासक सरदार बनि जाइए। केकरो बहर नै सीखल होइत छै तँ वैचारिकताक नाम दऽ गजलमे बहरकेँ बेकार कहि दैए। मैथिली साहित्य केर असल बेमारी इएह आ एहने लेखक सभ अछि।

भाषण आमो पर दै छै

थुर्री लताम बला लोक


(शाइर-प्रदीप पुष्प, मात्राक्रम-22-22-22-2)

 6

पृष्ठ-11 पर चुन्नू जी फेर लिखैत छथि जे "मैथिली गजलक संदर्भमे दूटा तत्व सदित चर्चामे रहल अछि। हमरा बुझने ओ दूनू तत्व अछि गजलक वैधानिकता आ गजलक वैचारिकता।" आब कने एहि बातक तहमे जाइ। कुल मिला कऽ मैथिलीमे गजल विधा लगभग 115 बर्खसँ अछि मुदा एहिपर विमर्श???????? चुन्नूजी जाहि हिसाबें लीखि रहल छथि ताहि हिसाबें गजलक विमर्श सेहो 115 बर्खक वा तकर आपस-पासक हेबाक चाही। मुदा ई विमर्श कहियासँ छै से चुन्नूजी नै कहि रहल छथि। नै कहबाक कारण हुनकर कोनो गु्प्त एजेंडा बुझाइए।

जँ मैथिली गजलक विमर्शकेँ देखल जाए तँ 1981 मे तारानंद वियोगी जी द्वारा आलेख लीखि एकर शुरूआत भेलै। ओ आलेख केहन छलै से बादक बात मुदा शुरूआत ओहीठामसँ भेलै। पहिने तँ गजलक वैचारिकते केर विमर्श भेलै बादमे 1984मे डा. रामदेव झा जी वैधानिक आ वैचारिक दूनू रूपसँ गजलक विमर्शकेँ नव मोड़ देलाह। आब एहि ठाम अहाँ सभ लग प्रश्न उछाल मारैत हएत जे आखिर चुन्नूजी कोन एजेंडा छलनि?  हमरा बुझाइए जे ओ तारानंद वियोगीजीक काजकेँ खारिज करबाक लेल जानि-बूझि कऽ "सदति" शब्दक प्रयोग केलाह अछि। हमर अनुमान निराधार नै अछि आ एहि लेल हम गजल विमर्शक प्रगति कार्ड देखाएब। 1981 सँ शुरू भेल विमर्श कहाँ धरि पहुँचल अछि से देखेबाक लेल हम मैथिली गजल विमर्शकेँ दू खंडमे बाँटब पहिल 1981 सँ लऽ कऽ एखन धरिक विमर्श जे कि मुख्यधाराक कथित गजलकार द्वारा भेल आ दोसर 2008 सँ लऽ कऽ "अनचिन्हार आखर" द्वारा विमर्श। मैथिली गजलकेँ दू खंडमे बँटबाक मूल संकल्पना गजेन्द्र ठाकुरजीक छनि ( देखू हिनकर लिखल गजल शास्त्र)। उपरमे ई निश्चित भेल जे 1981 सँ शुरू भेल अछि तँ 2021 धरि मात्र 40 बर्खक भेलैए आ एहि 40 बर्खमे कथित गजलक उपर बेसीसँ बेसी 20-22 टा आलेख आएल सेहो अधिकांशतः पोथीक भूमिका रूपमे। सोचियौ 40 बर्खमे जाहि विमर्शक शुरूआत वियोगीजी केलाह आ ओ विमर्श अतबो नै छै जे लोक ओकरा बिसरि जाए। बेसी मात्रा रहै छै तखन कने हौच-पौच हेबाक संभावना रहैत छै मुदा 40 बर्खमे कथित गजलक उपर मात्र 20-22 टा आलेख आएल छै आ सेहो चुन्नूजीकेँ मोन नै छै ,ई कोना संभव हेतै। तँइ हमर मानब अछि जे चुन्नूजी "सदित" शब्दक प्रयोग तारानंदजीकेँ कात करबाक लेल केलाह। जँ "अनचिन्हार आखर" बला 13 बर्खक विमर्श देखब तँ लगभग 38-40 टा आलेख (ई आलेख सभ आन रचनाकारक पोथीपर आ गजलक विभिन्न पक्षपर आएल अछि जे कि दू टा स्वतंत्र पोथीमे सेहो संकलित भेल), गजल व्याकरणक मैथिलीकरण आ इतिहास आदि आएल। जँ एहि 13 बर्खमे आएल गजलक पोथीक भूमिकाकेँ जोड़ल जाए तँ आलेखक संख्या  50क पार पहुँचत।

विमर्शसँ अलग गजल लेखन केर बात करी तँ एकरो हम दू खंडमे बाँटब पहिल 1905 सँ लऽ कऽ एखन धरिक गजल लेखन जे कि प्रारंभिक गजलकार आ मुख्यधाराक कथित गजलकार द्वारा भेल आ दोसर "अनचिन्हार आखर" द्वारा 2008 सँ लऽ कऽ एखन धरिक। पहिल खंडमे 1905 सँ लऽ कऽ एखन धरि लगभग 3000 (अधिकतम) कथित गजल लिखाएल अछि (जाहिमे पं.जीवन झा, कविवर सीताराम झा, मधुपजी, योगानंद हीरा, विजयनाथ झा, जगदीश चंद्र ठाकुर 'अनिल' आदिक गजल पूर्ण रूपेण बहर-काफिया युक्त अछि मने व्याकरण सम्मत आ बाँकी सभ अपन गीतक उपर गजलक शीर्षक लगेने छथि) जखन कि "अनचिन्हार आखर" बला 13 बर्खमे लगभग 32-33 टा नव गजलकार एलाह जाहिसँ लगभग 5000 गजल, 38-40 टा आलेख, गजल व्याकरणक मैथिलीकरण आ इतिहास, गजलक नव-नव उपविधा जेना बाल गजल, भक्ति गजल तकर परिभाषा, लगभग 200 बाल गजल, 100 भक्ति गजल सहित सैकड़ो मात्रामे रुबाइ, कता, नात, दू टा आलोचनाक स्वतंत्र पोथी आदिक रचना भेल। एहि 13 बर्खमे आएक अधिकांश गजल, बाल ओ भक्ति गजल सहित कता-रुबाइ विभिन्न पोथीमे सेहो संक्ति भेल अछि। एहिमे किछु पोथी प्रिंटमे अछि तँ किछु ई-भर्सन रूपमे। ओना साहित्यिक बेपारी सभ पोथीक डिजिटल रूपमे नै मानै छथि मुदा बेपारीकेँ ज्ञानसँ नै टकासँ मतलब होइत छै। जाहि समाजमे पाथरपर लीखि, ताड़पत्रपर लीखि, अथवा श्रुति परंपरोसँ ज्ञान बचेबाक प्रयास भेल हो ताही समाजमे मात्र पुरस्कार लेल प्रिंट बला चीजकेँ किताब मानब अधोगतिक लक्षण छै। अतबे नै "अनचिन्हार आखर" बला 13 बर्खमे मैथिली गजल आन भारतीय भाषाक गजलक समकक्ष आएल आ वर्तमानमे हिंदी-उर्दू सहित मराठी, हरियाणवी, ब्रजभाषा, नेपाली आदिक गजलकार सभ "अनचिन्हारे आखर" ब्लाग द्वारा मैथिली गजलसँ परिचित भेलाह। ओना ई विवरण एहिठाम उचित नै मुदा चुन्नूजीकेँ बुझाइ छनि जे विधान तोड़ि देलासँ विधाक विकास होइत छै। विकास माने की? 115 बर्खमे 3000 कथित रचना जाहिमे कोनो मेहनति नै छै वा कि 13 बर्खमे 5000 गजल जे कि पूरा विधानक संग अछि। 40 बर्खमे 22 टा आलेख वा कि 13 बर्खमे 50 टा आलेख। विकास माने की? 115 बर्खमे वएह 18-20  टा गजलकार वा कि 13 बर्खमे 30-32 टा नवगजलकार। वएह एकटा आजाद गजल कि 13 बर्खमे गजलक विभिन्न उपविधाक विकास, विकास की छै? विकास कोन खंडमे छै बिना विधान बलामे वा कि विधान बलामे से पाठक तय करताह। जेना भूतक पएर उल्टा होइत छै तेनाहिते चुन्नूजी विकासक परिभाषा उल्टा मानै छथि। किछु लोक ईहो कहि सकै छथि जे मैथिली गजल वा ओकर विमर्शकेँ दू खंडमे बँटबाक कोन जरूरति? तखन हमर कहब जे मैथिली साहित्यमे जे समय, वाद, प्रयोग आदिक नामपर वर्गीकरण भेल छै से किए बाँटल गेलै। जँ ओ वर्गीकरण सभ ध्वस्त भऽ जाए तँ ई गजल बला स्वतः ध्वस्त भऽ जेतै।

मैथिलीक कथित मुख्यधारामे गजलक विमर्श कोना होइत छै तकर दू टा उदाहरण दैत छी (उदाहरणकेँ उदाहरणे जकाँ देखबाक आग्रह रहत हमर)। पहिल उदाहरण- दरभंगामे एकटा स्थानीय कवि छथि ओ गीत लीखि ओकरा गजल घोषित करै छथि आ बहस करै छथि जे गजलमे बहर नै हेबाक चाही। बहर-काफियासँ भाव मरि जाइ छै आदि-आदि। ओही कविक एकटा बेटा हिंदीमे गजल लीखै छनि आ नियम मानि लीखै छनि। हिंदीमे बाप-बेटा दूनूक क्रांति घुसड़ि जाइत छनि। ओहि ठाम ओ सभ बहस नै कऽ पाबि रहल छथि। खाली मैथिलीमे ई सभ क्रांति करै छथि। दोसर उदाहरण- 2010मे एकटा युवा "अनचिन्हार आखर" ब्लाग केर माध्यमसँ गजल सिखलाह। तकर एक-दू सालक बाद हुनका पटनाक एकटा साहित्यकारक बेटा मार्फत नौकरी भेटलनि आ ओही साहित्यकारक कृपासँ बियाहो भेलनि। आब ओ युवा कहने घूरै छथि जे गजलमे बहर नै हेबाक चाही। ओना किछु युवा आर छथि जे कि पहिने अनचिन्हार आखरसँ गजल सिखलाह आ तकर बाद लोभ-लाभसँ ग्रस्त भऽ मुख्यधारामे जा कऽ बहरक विरोध कऽ रहल छै। खएर ई सभ चलिते रहै छै। सभकेँ अपन सुविधा-असुविधा चुनबाक हक छै।

हम उपरक दू उदाहरण एहि लेल देलहुँ जे कथित मुख्यधारामे विमर्श साहित्य वा विधा लेल नै होइत छै। विमर्श मात्र संबंध, पद आ लोभ-लाभ लेल होइत छै। हमरा विश्वास अछि जे विमर्शक ई फार्मेट गजलक अतिरिक्त मैथिली साहित्य केर आनो विधामे हएत। मुदा से बात आन विधासँ जुड़ल लोक कहताह। एकटा सत्य बात ईहो छै जे कथित गजलक मुख्यधारा ततेक अक्षम छै जे ओहिमे कोनो नव रचनाकार एबे नै केलै। चुन्नूजी जाहि युवा सभपर नाचि रहल छथि ताहिमेसँ अधिकांश "अनचिन्हार आखर"सँ निकलल छै आ एक-दू टा अनचिन्हार आखरक विरोधमे बिना बहरक रचना लीखै छै। कुल मिला कऽ देखबै तँ सभ युवा अनचिन्हारे आखरक देन छै।

 आब हीरा उगत खेतमे

आरि झगड़ाक तोड़ल अहाँ


(शाइर-योगानंद हीरा , मात्राक्रम-2122-122-12)

7

पृष्ठ-11 पर चुन्नू जीक अभिमत छनि जे हमरा लेल विधा बात-विचार करबाक साधन अछि तँइ हम ओकर नियम नै मानब। मुदा तखन विधेक कोन जरूरति? जकरा नाटक कहल जाइत छै तकरा उपन्यास कहल जाए आ कथाकेँ संस्मरण कारण सभमे लेखक बाते विचार करै छै। एहन तँ नै छै जे कथामे विचार छै आ कवितामे नै, गीतमे छै आ उपन्यासमे नै। विचार सभमे छै तँइ अनेक विधाक छोड़ि मात्र एकटा विधा हो। आ जँ चुन्नूजी एहिसँ सहमत नै होथि तँ तात्काल मानि लेबाक चाही जे गजलक वैचारिकतापर विचार करैत चुन्नूजी मात्र लफ्फाजी केने छथि।

एक तँ मैथिलीक मुख्यधारामे कियो गजलक जानकार नै छै आ ताहिपरसँ जखन ओ अपन संयोजनमे कोनो कार्यक्रम करबै छै तँ स्वाभाविक तौरपर अपनासँ कमजोर वक्ता सभकेँ आनै छै। ओ कमजोर वक्ता सभ उपकृत आ एहसानमंद रहैत छै। तँइ ओहन कार्यक्रममे कोनो वस्तु, कोनो विधाक अनिवार्य घटककेँ "दुराग्रह" मानल जाइत हो तँ से आश्चर्यक बात नै। उदाहरण लेल मानू जे जँ अहाँ चाउर केर खीर बनेबै तँ अहाँ दूध, चाउर आ चिन्नी मिलेबै। आब एतेक मिलेलाक बाद ओ खीर तँ हेतै मुदा जँ ओहिमे काजू-किशमिश आदि मेवा मिलेबै तँ खीर आरो स्वादिष्ट हेतै। मानि लिअ सभ चीज देलियै मुदा चिन्नी बिसरि गेलियै तँ ओ स्वादिष्ट नै हेतै मुदा ओकरा खीरे कहल जेतै। आब फेर सोचियौ जँ पानिमे चाउर, चिन्नी, काजू-किशमिश आदि दऽ बनेबै तँ कि ओ खीर हेतै? फेर सोचियौ जँ दूधमे चाउर छोड़ि आन सभ चीज देबै तैयो कि ओ खीर हेतै? जँ कोनो बुद्धिमान पाठक हेता तँ ओ बुझि जेता जे चाउरक खीर बनेबाक लेल दूध आ चाउर अनिवार्य घटक भेलै। आब जँ कोनो लोक ई कहए जे खीरमे दूध अथवा चाउर देबाक बाध्यता "दुराग्रह" छै तँ फेर मानि लिअ जे ओ एहि धरतीक प्राणी नै छै। तेनाहिते गजल लेल बहर आ काफिया अनिवार्य तत्व छै। जँ बहर-काफिया हेतै तखने ओ गजल बनतै आ तकर बादे ओ गजल नीक छै कि खराप ताहिपर बहस हेतै। जखन रचनामे बहर-काफिया छैहे नै तखन ओ गजल तँ भेबे नै केलै। कोनो एक गजलक हरेक शेर एक बहर ओ एक काफियाक नियमसँ संचालित होइत छै। रदीफ गजल लेल अनिवार्य नै मुदा जाहि गजलमे रदीफ देल जाइत छै सेहो एकै हेबाक चाही पूरा गजलमे।

पघिलह जुनि बेसी जियान भ' जेबह भाइ

पाथर बनबह त' भगवान भ' जेबह भाइ


(शाइर-राजीवरंजन झा, मात्राक्रम-22-22-22-22-22-2)

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चुन्नूजी लग मैथिली गजलक संबंधमे कोनो ठोस जानकारी नै छनि कारण एक दिस ओ मानै छथि जे पं.जीवन झासँ गजल प्रारंभ भेल दोसर दिस ई मानै छथि जे "किछु पितामह रचनाकार लोकनि घोषणा केलनि जे मैथिलीमे गजल असंभव (पृष्ठ-13 पर)। जखन घोषणा केनिहार पितामह केर पितामहे सभ मैथिलीमे गजल संभव कऽ गेल छथि तखन फेर ओहि कथन सभहक औचित्य की? ईहो मोन राखन उचित जे जीवन झासँ लऽ कऽ कविवर सीताराम झा आ मधुपजी धरि बहरमे गजल लिखने छथि। अतबे आ इएह बात सभ साबित करैए जे मैथिलीमे गजलकेँ असंभव संबंधमे घोषणा केनिहार सभ लग जतेक गजलक ज्ञान छलनि ओतबे ज्ञान चुन्नूओजी लग छनि आ चुन्नूजी ओहिसँ आगू नै बढ़ि सकल छथि। 

फेर चुन्नूजी लीखै छथि जे "यद्यपि ई घोषणा कालांतरमे अमान्य भेल"। मुदा कोना अमान्य भेल से सूचना पाठककेँ नै दऽ रहल छथि। बहुत संभव जे 2021 मे हुनकर पोथी प्रकाशित भेलनि अछि आ ओ अही बर्खसँ अमान्य सिद्ध मानि रहल होथि।

टेमी जकाँ कखनो मिझा फेर जरैत गेलियै

हारैत कखनो खूब कखनो कऽ जितैत गेलियै


(शाइर-अभिलाष ठाकुर, मात्राक्रम-2212-2212-2112-1212)

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पृष्ठ-14 पर चुन्नूजी वार्णिकता (छंद)केँ अंकगणीतीय रूपकेँ व्यक्त करबाकेँ कृत्रिम मानै छथि। हमरा एहन कथनपर आश्चर्य नै भेल कारण हमरा बूझल अछि जे चुन्नूजी समाजसँ कटल लोक छथि आ समाजसँ कटल लोक किछु लीखि-बाजि सकैए। वस्तुतः समाजक सभ विध कृत्रिमे छै। से लालन-पालनसँ लऽ कऽ शिक्षा-दीक्षा, ओढ़न-पहिरन-भोजन धरिमे। सुख-सुविधासँ लऽ कऽ राग-विराग धरि। समाजमे अनुशासन अनबाक लेल कृत्रिम बिध सभ बनाएल जाइत छै आ हरेक बिधक अंकगणीतीय रूपमे सेहो व्यक्त कएल जाइत छै। उदाहरण लेल घरक नक्शा ओकर अंकगणीतीय रूप छै तँ संगीतमे स्वरलिपि ओकर अंकगणीतीय रूप छै। आब चुन्नूजी मंचपर वा रेडियो-टीभीपर गीत-संगीत सुनि लैत हेता तँइ स्वरलिपि हुनका नै देखाइत हेतनि। अन्यथा बिना स्वरलिपिकेँ कोनो प्रोफेशनल आ विद्वान संगीतकार काज करिते नै छथि। ओतबे किए चुन्नूजीक पोथी सभ जे छपल छनि ओकरो अंकगणित होइत छै जे कते बाइ कतेक पोथी हेतै आ ओहीपर ओकर स्वरूप निर्भर करैत छै। ओना आने बात जकाँ हमरा विश्वास अछि जे चुन्नूजी ई बात सभ नै बुझि सकताह कारण बुझबाक लेल समाजिक होमए पड़ैत छै। समाजिके किए संन्यासियो हएब तँ इएह अंकगणित काज आएत। मंत्रो पढ़ब तँ मंत्रसँ पहिने छंदक नाम, ओकर देवता, ओकर ऋषि आदिक नाम भेटत। मुदा ई बात सभ चुन्नूजीकेँ पता नै छनि।

 ऋगवेद संहिता, अथ प्रथमं मण्डलम्, सूक्त-१, देवता-अग्निः ; छन्द-गायत्री; स्वर-षड्जः; ऋषि-मधुच्छन्दाः वैश्वामित्रः

ॐ अग्निमीळे पुरोहितं यज्ञस्य देवमृत्विजम्। होतारं रत्नधातमम् ॥1॥

जगत मे थाकि जगदम्बे अहिंक पथ आबि बैसल छी

हमर क्यौ ने सुनैये हम सभक गुन गाबि बैसल छी


(शाइर-कविवर सीताराम झा, मात्राक्रम-1222-1222-1222-1222)

आब जँ चुन्नूजीकेँ गायत्री छन्दक परिभाषा जनबाक छनि तँ ओ "अनचिन्हार आखर"पर जा कऽ पढ़ि सकैत छथि आ संपूर्ण वैदिक छन्द सीखि सकै छथि। हजारो वर्ष पहिने जाहि समाजक कवि साहस संग अपन रचनासँ पहिने ओकर विधान लीखि सकैत छलाह ओही कविक वशंज सभ ततेक कमजोर जे ओ सभ विधान देखिते छुल-छुल मूतए लागै छथि।

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पृष्ठ 15 पर चुन्नूजी लिखैत छथि जे "हम छंद मे लयक आग्रही बेसी छी"। ई कथन आ चुन्नूजीक वास्तविकता दूनू अलग-अलग अछि। हुनका लय बेसी चाही सेहो छंदमे मुदा छंद कतए छनि? ओ तँ छंद-बहर मानिते नै छथि तखन छंदमे बेसी कि कम लय कोना भऽ सकतै? वास्तविकता तँ ई अछि जे चुन्नूजीकेँ ई पते नै छनि जे लय की होइत छै। साहित्ये नै दुनियाँक कोनो एहन चीज नै छै जाहिमे लय नै होइत हो। लय केर मतलब छै "गति"। चलैत हवाक लय छै तँ नदी संग नालाक सेहो। गुड़कैत पाथरक सेहो लय छै। आब अही लय सभमेसँ जखन कोनो एकटा लय बेर-बेर निश्चित अवधि-अंतरालक संग अबैत छै तखन ओ छंद बनि जाइत छै, ओकर नाम पड़ि जाइत छै। कथा अछि जे साँपकेँ भागैत देखि संस्कृतक "भुजंगप्रयात" छंद बनल अछि। एकर सोझ मतलब भेल जे छंद एकटा विशिष्ट लय केर नाम छै। आब जखन लय छैहे तखन चुन्नूजी कम-बेसी किए रहल छथि तकर हम अनुमान कऽ सकैत छी। हमर अनुमान अछि जे छंद बला रचना एक तँ लिखहेमे कठिन छै आ तकर बाद ओकर धुन बनाएब सेहो कठिन। मुदा बिना छंद-बहर बला रचना तँ केनाहुतो लीखू आ ओकर धुन बना गाबि लिअ। चुन्नूजी मूलतः मंचीय गायक छथि आ चुन्नूजीकेँ मंचपर प्रेशर रहैत छनि गेबाक आ तही प्रेशरक कारणे ओ लयक बेसी आग्रही हेता। मुदा फेर कहब छंद विशिष्ट लयक नाम छै ओहिमे जँ कियो कम-बेसी केर बात करै छथि तँ साफे बुझू जे हुनका लग कान्सेप्ट केर कमी छनि। एहिठाम कियो ई कहि सकै छथि जे गायककेँ मंचपर अनिवार्य रूपसँ जाए पड़तै तँइ मंचीय गायक नामक वर्गीकरण उचित नै। मुदा कवि-साहित्यकारकेँ तँ सेहो अनिवार्य रूपसँ मंचपर जाए पड़ै छै तखन अलगसँ मंचीय कवि-साहित्यकारक वर्गीकरण करबाक कोन जरूरति? जे गुण कोनो कवि-साहित्यकारकेँ मंचीय बना दैत छै ठीक ओहने गुण कोनो गायककेँ सेहो मंचीय बना दैत छै।

ओढल ओ शेरक खाल बरु छै तँ सिआरे

एहन परजीवीकेँ रगड़बाक समय छै


(शाइर-रामबाबू सिंह, मात्राक्रम-2222-2212-211-22)

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चुन्नूजी गजलक व्याकरण मानिते नै छथि तखन छोट बहर वा पैघ बहरक चर्चा करब संकेत दैए जे चुन्नूजी छोट पाँतिकेँ छोट बहर आ पैघ पाँतिकेँ पैघ बहर मानि लेने छथि से साफे अज्ञानता छै (पृष्ठ-17)। पाँतिसँ बहरक निर्धारण नै होइत छै बल्कि बहरसँ पाँतिक निर्धारण होइत छै से बूझब आवश्यक आ पहिल दू पाँतिक जे बहर-काफिया-रदीफ कायम हेतै सएह पूरा गजलमे अंत धरि निर्वाह हेबाक चाही।  ईहो देखि हँसी लागैए जे एक दिस चुन्नूजी गजलक छंद ओ छंदकार सभकेँ खारिज करै छथि मुदा ओही छंदकार, ओही "अनचिन्हार आखर" केर बनाएल परिभाषिक शब्दावली जेना बाल गजल, भक्ति गजल आदिकेँ हपसि कऽ रखबाक प्रयास कऽ रहल छथि (पृष्ठ-18)। बहुत संभव चुन्नूजी ई मानि बैसल होथि जे एहि पारिभाषिक शब्दावली आ सिद्धांतक जन्मदाता हुनकेसँ उपकृत कोनो युवा छै। मुदा हँसिए-हँसीमे एहि सभ बातकेँ कात करैत ईहो विश्वास भऽ जाइए जे मैथिलीमे असल गजलक बाट एनाहिते लक्ष्य धरि पहुँचतै।

काँटक ढेरीमे फूल खोजि रहल छी

संकटमे हर्षक मूल खोजि रहल छी


(शाइर-कुन्दन कुमार कर्ण, मात्राक्रम-222-22-2121-122)

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चुन्नूजीक भूमिका एकै छनि मुदा ओहिमे फाँक बहुत अछि। अतेक जे एकटा फाँकमे हाथ देब तँ दस टा फाँक केर अनुभव हएत मुदा सभ फाँक किछु मुख्य फाँकमे जा कऽ मीलि जाइत छै। आ तँइ हमर प्रयास रहल अछि जे हम ओही मुख्य फाँक सभकेँ अपन आलोचनाक विषय बना सकी। रहलै बात एहि कथित संग्रह रचना सभकेँ तँ ओ हमरा लग नै अछि मुदा चुन्नूजीक अध्य्यन, क्षमता एवं पूर्वाग्रहकेँ देखैत रचना सभकेँ बिना पढ़ने कहल सकैए जे पोथीमे देल गेल रचना सभ गजल नै हएत। ओ रचना सभ आन जे किछु (गीत-कविता) हुअए मुदा गजल तँ नहिए हएत। आब जँ ओ गीत कि कविता अछि तँ ओ केहन अछि से गीत-कविताक मर्मज्ञ सभ कहता। मैथिलीमे पुरस्कारक जे हाल छै ताहिमे ई बहुत संभव जे हुनकर एहि पोथीकेँ पुरस्कार भेटि जाइक। मुदा मोन राखू पुरस्कार कोनो विधाक मानक नै होइत छै। एकटा बात ईहो जे चुन्नूजी "नाटक" करएमे महारथी छथि आ तँइ ई गजल विधाक संग "नाटक" केने छथि। 

हीरो नै ऐ नाटकमे

बिपटा छै भरमार सजल


(शाइर-ओमप्रकाश, मात्राक्रम-22-22-22-2)

(विदेहक 335म अंक 1/12/2021 मे प्रकाशित)

परिशिष्ट-चुन्नूजीक पोथीक भूमिका निच्चा पढ़ल जा सकैए-















तोहर मतलब प्रेम प्रेमक मतलब जीवन आ जीवनक मतलब तों