मंगलवार, 25 जनवरी 2011

ग़ज़ल



कोरा में माथा रइख कS सुतइ के इच्छा अछि
अहाँ नजदीक आबि क मरइ के इच्छा अछि


टहटहाइत इजोरिया में फेर आउ एक बेर
टहटहाइत इजोरिया में देखइ के इच्छा अछि

कोनो बात न छै प्राण चइल गेलय त की
अहाँ के आइबते अर्थी से उठइ के इच्छा अछि


पड़ल जखन साँझ मोन भ गेल बड्ड निराश
अहाँ लेल भरि जिनगी बैठइ के इच्छा अछि


उड़ल जाइ छी एखन फेर नील गगन दिस
अहाँ संग नील गगन में उड़इ के इच्छा अछि

शुक्रवार, 21 जनवरी 2011

गजल

आरो बनतै कतेक बहन्ना देखबाक चाही

जनताक बनतै कतेक सन्ना देखबाक चाही



भात-दालि कात भेल नून-सोहारी पर आफद

फटकी कतेक सपनाक चन्ना देखबाक चाही



थपड़ी त अदौ सँ बजिते आएल अछि

लुटतै के कतेक टन्ना देखबाक चाही



घरक बोझ छिड़िआ रहल एम्हर सँ ओम्हर

कोम्हर हेड़ा गेल जुन्ना देखबाक चाही



खेतो के पता नहि कि भए गेलैक अछि

खादो देलाक पछाति मरहन्ना देखबाक चाही



बुधवार, 12 जनवरी 2011

गजल

आइ काल्हि भाड़ेँ की भड़ुएक त चलती छैक

आइ काल्हि चोरे की पहरुएक त चलती छैक



दिन मे डिबिआ लेसनिहार आ राति मे मिझौनिहार

कोबर मे समदाउन गबैत कनिएँक त चलती छैक



रंडी आब पवित्र अछि इहो मानि लिअ अहाँ

रेडलाइट कारोबार मे बहुरिएक त चलती छैक



होइत रहल निपत्ता फल-फूल बगैंचा सँ

सुखाएल सन जड़ि मालिएक त चलती छैक


चिचिआ कए जे जगबैत छल लोक के

गोली खेलक ओ निशिबद्दीएक त चलती छैक

शनिवार, 1 जनवरी 2011

गजल

गजल- कालीकांत झा "बूच"

भरल भवधार छै सजनी कोना पदवार हम करबै
पडल सब भार छै सजनी, कोना पतवार हम धरबै

बनलि हम रूप करे रानी, मुदापंथक भिखारिन छी
जडल घटवार छै सजनी, कोना इजहार हम करबै

सुभावक नाव पर हमरा जखन धऽकऽ चढा देतै
अडल इकरार छै सजनी, कोना इनकार हम करबै

लगै छै मारि के दोमऽ जुआनी मारि बनिवीचे
मुद्दइ सुकुमार छै, सजनी कोना तकरार हम करबै

कहाँ धरिआर हम खसल करूआरि ओ नीचाँ
गहन अनहार छै सजनी, कोना भऽठाढ हम रहबै

गजल

गजल- 4- डॉ. नरेश कुमार ‘वि‍कल’


शेषांशपर रोदन करू वा गीत उदि‍त भानपर।

कि‍न्‍तु आफत अाबि‍ पहुँचल मान और सम्‍मानपर।

दीप जम्‍बूद्वीप केर नि‍त्त अकम्‍पि‍त भए जरए

यएह सोचब ि‍थक कठि‍न अनीति‍ केर दोकानपर।

भेल वृद्धि‍ ज्ञानमे, वि‍ज्ञानमे, संधानमे

जन्‍म दर केर बात की वृद्धि‍ उत्‍थानपर।

कि‍न्‍तु नैति‍कताक अवनति‍ आचरण, सम भावमे

देश हि‍त केर बात तँ चलि‍ गेल कोठीक कान्‍हपर।

देश गांधी, बुद्ध केर रहि‍ गेल ने सुभाष केर

देश ई नाचए सदति‍ घोटाला सबहक तानपर।

आब वि‍चरण कए रहल नरभक्षी दोसर वेशमे

छैक कनि‍को ने दया एे नेना केर मुसकानपर।

गजल

गजल- 3 डॉ. नरेश कुमार ‘वि‍कल’


तन भि‍ंजा कए मन जराबए आबि‍ गेल साओन केर दि‍न।

वि‍रह-वेदन तान गाबए आबि‍ गेल साओन केर दि‍न।

खेलि‍ कऽ बरसात अप्‍पन वस्‍त्र फेंकल सूर्यपर

चानकेँ सेहो लजाबए आबि‍ गेल साओन केर दि‍न।

मधुर फूही भरल अमृत सँ प्‍लावि‍त ई धरा

पान महारकेँ कराबए आबि‍ गेल साओन केर दि‍न।

ई बसातक बात की हो अनल-कन-रंजि‍त बहए

मोनकेँ पाथर बनाबए आबि‍ गेल साअोन केर दि‍न।

खोहमे खोंताक खूजल द्वारि‍पर वि‍धुआएल सन

वि‍रहि‍णीकेँ बस डराबए आबि‍ गेल साअोन केर दि‍न।

बाध हरि‍यर, बोन हरि‍यर हरि‍यरे चहुँ दि‍स छै

धूरसँ आङन सुखाबए आबि‍ गेल साअोन केर दि‍न।

बांसुरीपर टेरि‍ रहलै के एहन रस-रोग राग

भेल भुम्‍हूरकेँ पजारए आबि‍ गेल साअोन केर दि‍न।

सि‍मसि‍माहे नूआ-सन झपसीमे लागए सहज-मन

सतलकेँ आओरो सताबए आबि‍ गेल साअोन केर दि‍न।

गजल

गुलाबी गजल- आरसीप्रसाद सिंह



अहाँक आइ कोनो आने रंग देखइ छी
बगए अपूर्व कि‍छु वि‍शेष ढंग देखइ छी


चमत्‍कार कहू, आइ कोन भेलऽ छि‍ जग मे
कोनो वि‍लक्षणे ऊर्जा-उमंग देखइ छी


बसात लागि‍ कतहु की वसन्‍तक गेलऽ ि‍छ,
फुलल गुलाब जकाँ अंग-अंग देखइ छी


फराके आन दि‍नसँ चालि‍ मे अछि‍ मस्‍ती
मि‍जाजि‍ दंग, की बजैत जेँ मृंदग देखइ छी


कमान-तीर चढ़ल, आओर कान धरि‍ तानल
नजरि‍ पड़ैत ई घायल, वि‍हंग देखइ छी


नि‍सा सवार भऽ जाइछ बि‍ना कि‍छु पीने
अहाँक आँखि‍मे हम रंग भंग देखइ छी

मयूर प्राण हमर पाँखि‍ फुला कऽ नाचय
बनल वि‍ऽजुलता घटाक संग देखइ छी।।


लगैछ रूप केहन लहलह करैत आजुक,
जेना कि‍ फण बढ़ौने भुजंग देखइ छी


उदार पयर पड़त अहाँक कोना एहि‍ ठाँ
वि‍शाल भाग्‍य मुदा, धऽरे तंग देखइ छी


कतहु ने जाउ, रहू भरि‍ फागुन तेँ सोझे
अनंग आगि‍ लगो, हम अनंग देखइ छी
तोहर मतलब प्रेम प्रेमक मतलब जीवन आ जीवनक मतलब तों