शनिवार, 30 जून 2012

गजल


साँच प्रेमक जीवन यात्रा अन्नत होएत छै
ऋतू सभ में प्रेम सतत बसंत होएत छै

प्रेमक पथ पर काँटों फुल बनि जाएत छै
दुश्मन भलें दुनिया प्रेम नै अंत होएत छै

एक दोसरक मर्म स्पर्शक नाम छै प्रेम
प्रीतम कें मर्मक आभास तुरंत होएत छै

प्रेम में दागा देब से सोचब नै कियो कहियो
प्रेमक नोर बनि अँगोर ज्वलंत होएत छै

वर्ण-१७
रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट

गुरुवार, 28 जून 2012

गजल

गजल-१४

मोहक मद में मातल जेऽ मोनक मीत बनै छी
ठेस कोना नञि लागत आन्हर भऽ प्रीत करै छी

श्रृंगारक पाछा आन्हर केलौं नै प्रेमक मोजर
श्यामल तन अनुरागे से विरहे पीत पड़ै छी

पापी पेट पोसै लै परदेस देलौं पेटकुनिया
भरि जग सँ बौएलौं आब घरक भीत धरै छी

हाइरक डर डेरा कऽ छोड़ि देलौं सच बाजब
फूइसक गाछ छड़पि कऽ दुनिया जीत कनै छी

काँट - कूश सभ नंघलौं आऽब बाट जुनि पलटू
अहाँ संउसे खीरा खा कऽ कियै पेनी तीत करै छी

अनका सोझ उगललौं जेठक रौदी सन बोली
धधकल अपन करेजा पूसक - शीत तपै छी

अनकर मोन कलपतै कल्पऽ दियौ की करबै
अपना नीकक चिंता मनमरजी रीत रचै छी

कर्मक ई बान्ह-बन्हौटा कियै बान्है छियै अनेरे
बस चारि डेग चललौं आ से बीते-बीत नपै छी

"नवल" रमल अपना में कविता - पाठ करै छी
गजल कहै छी कखनो आ कखनो गीत गबै छी

***आखर-१८
(सरल वार्णिक बहर)
©पंकज चौधरी (नवलश्री)
(तिथि-२८.०६.२०१२)

गजल

बाल गजल-५

कीन दे कचरी-झिल्ली-बऽरी लवणचूस आ कुट-कुट माँ
लोढि बाधसँ धान जे अनलौं भूजि दे मुरही भुट-भुट माँ

धान अगोअं के जे उसरगल तकर कीन दे फीता-बाला
काकी जे देलखिन्ह बाला से हाथमें होई छ छुट-छुट माँ

ललका फीता गूहल जुट्टी तेल सँ माथा गमकै गम-गम
थकरै केश जहन ककबा लऽ ढील केऽ मारै पुट - पुट माँ

देखि भूख सँ लोहछल नेन्ना दुःख-सुख सभटा लोप भेलै
भंसा घर में घाम सँ भीजल काज करै सभ चुट-चुट माँ

होय कहाँ अनका देखबैलै "नवल" इ मायक माया-तृष्णा
भेड़ निन्न तइयो कहि खिस्से दूध पियाबय घुट-घुट माँ

*आखर-२२ (तिथि-२४.०६.२०१२)

©पंकज चौधरी (नवलश्री)

बुधवार, 27 जून 2012

गजल


कान नै अपन  देखब  कौआ खिहारब
कहु-कहु कोना आहाँ मिथिला सुधारब

घोघ तर कनियाँ कोठी तरहक माछ
मोन होइतो कहु कियो कोना निघारब

लागल आगि जीवनक  मिझाएब कोना
की जीवन भरि खड़ेल खड़े पजारब

कहियो त ' बसब आ ककरो बसाएब
भटकैत सीथ कतेक आरो उजारब

पानि केखनो 'मनु' पियासलो  केँ पियेब  
की बनि नादान परती पर टघारब

(सरल वार्णिक बहर, वर्ण-१५)
जगदानन्द झा 'मनु'  : गजल संख्या - ५९

गजल


गजल-१२

सजनी रहि-रहि टेमी बारी
भरि कजरौटा काजर पारी

थोपि रहल छी काजर सौंसे
ओहिना मादक नयना भारी

आंखिसँ आँखिक फेरम-फेरी
जेना होय मऊहक़ के थारी

देह रहल आ प्राण बिलेलै
नयन-वाण सँ जिवते मारी

करिया आँखिक पोखरि कात
स्वप्न सेहनता केर बैसारी

कहू छोडि ई आँखिक अमृत
पीब कियैक हम दारु -तारी

मोन के जीतैऽ जे तकरा पर
"नवल" कियै ने जीवन हारी

***आखर-११
(सरल वार्णिक बहर)
©पंकज चौधरी (नवलश्री)
(तिथि-२६.०६.२०१२)



























मंगलवार, 26 जून 2012

गजल

युग विज्ञानक शोध एखन क' देखै छी
अपन मन परबोध एखन क' देखै छी

रहत जगमे अमर मानव मरत दानव
नव मशीनक रोध एखन क' देखै छी

भाग बनतै मात्र दस खा क' रसगुल्ला
शक्ति के हम बोध एखन क' देखै छी

सत्त सी .ओ .टू बनल झूठ आँक्सीजन
कार्बनक अबरोध एखन क' देखै छी

डाहि हम संस्कार संस्कृति मुस्कै छी
मान लेल क्रोध एखन क' देखै छी

देश चलबै छी त' सब राज के देखू
जोड़ि कर अनुरोध एखन क' देखै छी

       बहरे-कलीब

गजल

बसलौँ अहाँ जखन मन मे हमरा चमकि गेल जिनगी
अनमोल नेहक उड़ल खुशबू मे गमकि गेल जिनगी

माधुर्य माँखैत खुजलै जखने  कमल ठोर रानी
लवणी सँ छलकैत ताड़ी बूझू छलकि गेल जिनगी

गाबी अहाँ गीत मोने मोने जँ तैयौ गजब धुन
मुस्की द' देलौँ चहटगर अमृत झमकि गेल जिनगी

नीरीह जानबर बनि नैनक मारि खेलौँ सदिखने
फूले छलै बाण नैनक तेँए धड़कि गेल जिनगी

सगरो अहाँ के लिखल छवि डूबल कलम नेह मे यै
गाबै "अमित" गजल लिखलक देखू दमकि गेल जिनगी

          बहरे मुजास

गजल

हमर जिनगी जेल लागै बंद घ'र मे
सटल जीवन गेल पग पग गरम छ'ड़ मे

बालु सदिखन उड़ल जिनगी के सतह पर
भटकि गेलौँ जखन समाजक पैघ च'र मे

चाहलौँ जत' रोपि नामक लेब उपजा
ओत' आशा बझल दमनक तेज ह'र मे

नै अपन छै एत' आ नै मानलक अछि
एसगर छी पड़ल झूठक चार त'र मे

कटत कोना रैन जिनगी बचत कोना
पैघ लागल छै ग्रह7 बड़ एक क'र मे

नेह नै भेटल मुदा दर्दक उपज बड
"अमित"  जिनगी चढ़ल फाँसी यैह ड'र मे

       बहरे रमल

गजल

छै चिन्हल पथ तैयो भटकि गेलौँ एत'
बीच्चे सड़क पर फँसि लटकि गेलौँ एत'

ढहि गेल सबटा आश के नवका महल
कपड़ा सड़ल सदृश फसकि गेलौँ एत'

हम कल्पना के लोक मे केलौँ भ्रमण
सपने जकाँ एखन ठमकि गेलौँ एत'

प्रेमक त' परिभाषा कहाँ कखनो पढ़ल
निष्ठुर भ' गेलौँ तेँ सरकि गेलौँ एत'

अपने सँ बतियाइत रहै छी सदिखन त'
अपनेक छी मारल सनकि गेलौँ एत'

जिनगी कहाँ ककरो अपन कखनो भेल
पातर कमानी झट लचकि गेलौँ एत'

पतझर जकाँ झड़ि गेल छै सबटा अंग
जत' "अमित"  भट्ठी मे झरकि गेलौँ एत'

         बहरे सरीअ

गजल

बाल गजल

माँ धरा मामा चान छै
सूर्य दादा नै आन छै

छै बिलाई मौसी चतुर
लैत मूसा के जान छै

कुकुर खेहारे चोर के
उड़ल चोरक त' प्राण छै

आम सब बनरा खेलकै
डाढ़ि तोड़ै शैतान छै

चलल हाथी जी ट्रेन चढ़ि
सूढ़ बड़का टा कान छै

बाघ छै हम सब छी तखन
शेर जंगाल के शान छै

फाइलातुन-मुस्तफाइलुन
2122-2212

अमित मिश्र

रूबाइ

रूबाइ-110

सहि लेबै दर्द जँ घाव कोनो फूटत त'
एहिसँ बेसी दर्द जखन मीत रूठत त'
कोनो बोतल टूटत त' शोर नै हेतै
हेतै शेर तखने जखन नेह टूटत त'

रूबाइ

रूबाइ-109

छै जागि रहल देश आ जागि रहल गाम
खेती अपन करै अपन लोक बसल गाम
जागल युवा नव शक्तिके संचार संग
बनतै मिथिला आब मैथिली पढ़ल गाम

रूबाइ

रूबाइ-108

पना देखलौँ नैन मिलल सबेर मे
भटकै छी परीक लेल सपन ढ़ेर मे
थाकल छी नै भेटि रहल क्षणिक झलक
भेटल छल जे प्रीत सागरक किछेर मे

रूबाइ

रूबाइ-106

शहरसँ गाम धरि एतबे त' चर्चा अछि
भेटैए बजार मे नेहक कर्जा अछि
लिव इन रिलेशन मे सब छै जीबि रहल
तेँए भरल तलाकक बहुत पर्चा अछि

रूबाइ

रूबाइ-107

छै प्रेम की की एकर परिभाषा छै
कहियो खतम नै गाछ बरहमासा छै
केओ हँसैत भेटै केओ कानैत
शाइद गुलाब सन दू रंगी आशा छै

रूबाइ

रूबाइ-105

अछि उमरि छोट कने डेग सम्हारि चलू
बाटक पसरल सब रोड़ा बहारि चलू
देखै अछि हजारोँ नैन हजार मोनसँ
इज्जत बचेने लाजसँ तन सबाँरि चलू

रूबाइ

रूबाइ-104

डेगे डेग पर विरहक गड़ल छल कंकर
परती खेत करेजक भरल छल कंकर
सबटा खाद पानि भरोसक व्यर्थ भेल
लुबधल काँट सन दर्द फड़ल छल कंकर

रूबाइ

रूबाइ-102

जीयत लोक मुदा प्रेम उधार चाही
नै लाख मुदा संग डेग हजार चाही
सूच्चा जँ नै देबै नेह सुधा प्रीतम
डेहे मिलल त' भेटत इ करार चाही

रूबाइ

रूबाइ-103

नेहक अमृत पीबि कने अमर भेलहुँ
पहिले अपन छलौँ आब ओकर भेलहुँ
प्यासल मोन थाकि हारि तड़पै प्याससँ
भेटल नेहक नदी त' हम नहर भेलहुँ

रूबाइ

रूबाइ-101

आब प्रिय चोरी नुकैया छोरू ने
बिनु पेँनक बातसँ आब मुँह मोरू ने
बाजै छी त' झंझट नै बाजब त' दर्द
कोनो नव बाट खोजि नेह जोरू ने

रूबाइ

रूबाइ-100

पोखरि नै दौड़ैत नदी के धार छी
नै छी मात्र कलम सत्यक हथियार छी
छी ग्यानक अथाह सागर मोती भरल
अपटी खेत मे उपजल बिड़ार छी

रूबाइ

रूबाइ-99

केलौँ फोन अहाँ त' हरिया गेल मोन
बाजब सुनि गुलाबी ललिया गेल मोन
सपनो मे नै सोचल छल एतै इ दिन
बिन मौसम वर्षा सँ भसिया गेल मोन

रूबाइ

रूबाइ-97

खगता छै एकटा बाट बटोही के
विश्वासक मशाल जड़ेने जोड़ी के
नै प्रेमसँ त' लड़ि क' अधिकार भेटत ने
नै देतै त' छीनब मिथिला रानी के

रूबाइ

रूबाइ-98

कोनो मीत जखन जिनगी जड़ा दै यै
कोनो मलहमसँ नै घाव सुखा दै यै
सबटा बाग उजड़ि जाइ छै पलमे
खूनक बूँद जँ कागज पर बहा दै यै

रूबाइ

रूबाइ-96

हँसलै ठोर लाल त' कहलौँ आइ लव यू
सिहकल मधुर बतास लिखलौँ आइ लव यू
नेहक मान राखब भेल सब सरंजाम
भेलै बाट सुलभ भेजलौँ आइ लव यू

रूबाइ

रूबाइ-94

बेटाक चिन्ता जेना बापके होइ
फँसबाक चिन्ता लोक खरापके होइ
टाकाक कमीसँ केउ त' केउ बेसीसँ
ककरो चिन्ता गरीबक शरापके होइ

रूबाइ

रूबाइ-95

विधनाक डाँग चलै त' उठल की खसल की
विपतिक बोझ खसै त' मरल की जीयल की
जानपर जखन पड़ै त' दुनियाँक होश नै
भूखसँ तड़पल लेल त'रल की उसनल की

रूबाइ

रूबाइ-93

भरि राति तरेगणसँ बतियाइत रहलौँ
चन्नासँ नैन मिला लजाइत रहलौँ
रंगीन छलै वर्फ रातिक इन्द्रधनुष
नेहक ल' गर्मी हम ठंढाइत रहलौँ

रूबाइ

रूबाइ-91

सेहन्ता अछि अहाँक संगे हँसबाक
इच्छा अछि अहाँ ल'ग जीबाक मरबाक
मानू वा नै मानू मोनक सब बात
चाहत अछि अहाँ संग इ गजल लिखबाक

रूबाइ

-91

बाजल लाश आब पाँच काठी चाही
बूढ़ी काकी कहैए लाठी चाही
एहन अंतीमो समयमे किछ चाही
ककरो आगि ककरो खोरनाठी चाही

रूबाइ

-89

जे सोचसँ बाहर एहन पहेली छी
भीतर झड़ल बाहर राँगल हवेली छी
हमरासँ जुनि आश राखू जीतक आब
कछुआक त' नै खरगोशक सहेली छी

रूबाइ

जँ कोनो गजलकार अपन प्रेमिकाक बड़ाइ करताह त' हमरा हिसाबसँ किछु एहने सन कहताह

रूबाइ-90

गीतक पाँति नै गजलक शेर छी अहाँ
मादकता ल' काफियाक फेर छी अहाँ
छी आबैत बाल गजल जकाँ
मोशायरा मे शाइरक ढेर छी अहाँ

रूबाइ

-88

जिनगीक छोट बाटपर संगी चाही
जीबाक लेल कने छोट हँसी चाही
रान्हल अपच सुपच कर्म सदिखन भेटत
उमरक पड़ल मारि लेल लाडी चाही

रूबाइ

-87

मेघक काज बरसनाइ पर बरसै नै
फूलक काज गमकनाइ पर गमकै नै
जीम्मेदारीसँ भागै छी आशा की
देवक काज तारनाइ पर तारै नै

रूबाइ

-85

भेटल अहाँक संग इ गोटमिलानी छै
भासैत नाहक इ प्रेम कहानी छै
ताकत बढ़ि गेल चान धरि जाएबाक
छै जोश जीतक वा अथक जुआनी छै

रूबाइ

-86

चाही नशा एगो मीठ मुस्की संग
चाही प्रमाण त' इयादक हिचकी संग
भोरक नव भूरूकबा बनि जगाबू त'
चाही नयन वाण एगो चमकी संग

गजल



सखी सब गेल लागल छैक रेला चल
चलेँ गै माइ घूमै लेल मेला चल

कहै छल सरबतीया सजल छै सर्कस
कुकुर बानरक देखै लेल खेला चल

कते छै भीड़ छोड़े नै पकड़ आँङुर
उठा ले अपन गोदी तखन मेला चल

स सीँ पू पीँ करत बड पीपही फूक्का
गुड़ीया कीन दे सब भरल ठेला चल

कने छै भूख झिल्ली देख लागल गै
गरम कचरी कने मुरही ल' केला चल

मफाईलुन[1222 तीन बेर सब पाँतिमे]
बहरे_हजज

अमित मिश्र

गजल



मोनसँ पढ़लकै लिखलकै पोथी हजार ओ
तैयो भटकि रहल छै बनि बेरोजगार ओ

नै छै एत' कारखाना जाएत लोक कत'
सपना टूटि गेल भीखे माँगत बजार ओ

दोसर ठाम पेट काटिक' कोना रहत बचल
छै पहिलेसँ देह केने सौँसे उघार ओ

बदलल लोक आब अपना अपनी त' होइ छै
भेटल रोजगार नै भेटै नै उधार ओ

फहराएत सगर झंडा ताकत त' छै बचल
पर की करत बनल छै सब अपने बिहार ओ

सोचै छी भ' जाइ एखन एहन सन प्रलय
नै बचतै "अमित" इ भूखल देहक पथार ओ

मफऊलातु-फाइलुन दू बेर
2221-212-2221-212

अमित मिश्र

रूबाइ


80
प्रीतक नोरसँ भीजल अछि हमर तन मन
आशक ओससँ तीतल अछि सगर तन मन
छी एखन ठाढ़ अहाँ जँ संग बाटपर
जानिक' भेलै शीतल सन असर तन मन

रूबाइ


79
इ प्रेमक खेलके शुभ अंत कत' हेतै
ओ बाटक बाट जोहब भेँट जत' हेतै
सेनूरसँ माँग सजैए वा शोणितसँ
डोली के साज श्रृंगार एत' हेतै

रूबाइ

77

कखनो पानि कखनो इजोत लेल अनशन
छोटसँ छोट बातसँ सगरो भेल अनशन
छै हथियार बनल जीतक गारंटी संग
राजक नीति के छै एगो खेल अनशन

रूबाइ

78

सोनाक संगे ताँवा चमकि रहल छै
मिथिलाक सुआदसँ आन चसकि रहल छै
बलगरक संग पाबि कमजोर जीतै छै
तेँए पड़ोस के भाग बमकि रहल छै

गजल


गजल-१३
काजर सन कजरौटो कारी भाग जगैयै काजर के
पाकि रहल कजरौटा त की सुख भेटैयै काजर के
लोक करइयै मोहित भ घाट-बाट काजर के चर्चा
कजरौटा के हाल के पूछत सभ देखैयै काजर के
अवहेलित कजरौटा खाली काजर नयन नचैयै
कोन धेने कजरौटा बैसल देखि जड़ैयै काजर के
कजरौटा के भाग सिया सन सुख सपनेहु नै भेल
टेमी सँ पुछियऊ ओ सभटा भेद बुझैयै काजर के
"नवल" हाथ लेती कजरौटा फेर लगेती काजर ओ
अही मोह में फंसि कजरौटा फेर पोसैयै काजर के
***आखर-२०
(सरल वार्णिक बहर)
©पंकज चौधरी (नवलश्री)
(तिथि-
२६.०६.२०१२)



गजल


गजल-११
ओहिना आंइख की कम कारी जे काजर के विनयास केलौं
मेघ करिकबा भादव केऽ तकरो रंगक परिहास केलौं
अरिकंचन सन काया तैऽ पर ई सोलह श्रृंगार गजब
पिया मिलन के राति अहाँ श्रृंगार अलग किछु खास केलौं
नेह छोड़ि नमरी लऽ नचलहुं जीवन गेल निरसता में
देश-विदेश कतेऽ छिछियेलौं अनढन केऽ वनवास केलौं
मानल छी दोखी हम सजनी मुदा आब सप्पत ल लीयऽ
गोल-गोल कारी नयना कियै काजर पोईछ उदास केलौं
अनुराग शेष नहि टाका केऽ कोठा नेऽ आब बखारिक मोह
अहीं करेजा प्रीतक धन लऽ "नवल" आब घरवास केलौं
***आखर-२२
(सरल वार्णिक बहर)
©पंकज चौधरी (नवलश्री)
(तिथि-
२५.०६.२०१२)


गजल

गजल-९
बौआ के छटिहारक राइत मिथिला-विधिए नियारल काजर
शुभग - सिनेहक ठोप करिकबा मौसी हाथक पारल काजर
नवरातिक अहि शुभ-बेला में अबै अष्टमिक राति डेराओन
माय अपन संतति सभके तें आंखि दुनु चोपकारल काजर
अन्हरिया राति अमावस के ई दीप - पुंज मुंह दूइश रहल
राइत दिवालिक लेसल टेमी तंत्र - मन्त्र उपचारल काजर
कते सुहन्गर स्वप्न सजोने कजरायल आँखिक पेपनी पर
बरसाति -पंचमी- मधुश्रावनि नवकनिया के धारल काजर
नव यौवन के नव तरंग इ "नवल" मोन भसियेबे करतै
गोर-गोर चन्ना सन मुंह पर सजनी एना लेभारल काजर
***आखर-२४
(सरल वार्णिक बहर)
©पंकज चौधरी (नवलश्री)
(तिथि-
२५.०६.२०१२)



सोमवार, 25 जून 2012

रुबाइ

गोरी तोहर काजर जान मारैए 
छौंरा सभ सगर हाय तान मारैए 
पेएलक बड़ भाग काजर विधातासँ 

तोहर आँखिमे कते शान मारैए 

              जगदानन्द झा ‘मनु’

 

रुबाइ

काजर बुझि क अपन आँखिमे बसा लि
मित बना क कनीक करेजसँ लगा लि
ऐना जुनि अहाँ   कनखी नजरि घुमाऊ
आँखिक अपन  करीया काजर बना लिअ

 

गजलक भाषा

पहिले त हम कह' चाहब जे हमरा भाषा के बेसी ग्यान नै अछि ,मुदा हमर सोच सँ समाज मे दू टा भाषा अछि- साहित्यक भाषा आ बोलचालक भाषा ।
जत' साहित्यकार मूल शब्द के छोड़ि ओकर पर्यायवाची लिखै छथि {इ कविता मे भेटत} ओत' बोलचाल मे मूल शब्दक प्रयोग होइ छै ।

साहित्यक भाषा मे , "फूल" के "प्रसून ,मंजरी "
, "नदी "के अपगा तरंगिणी ,
प्रकाश के दीप्ति , द्दुति
पक्षी के नवचर , पतंग
ऐ तरहक कतेको शब्द अछि जकर पर्यायवाची लिखल जाइ छै ।
आब कहू जँ केओ विग्याN वा भाषा छोड़ि आन विषय सँ पढ़ने छथि त' की हुनका सँ एहि तरहक सब शब्दक अर्थ पता होइ के संभावना कते छै ?

गजल वा शेर सुनला के तुरंत वाद लोक अपन प्रतीक्रिया दै छथि वाह! के रूP मे जँ शेर खत्म भेला के बादो ओ शब्दक अर्थ खोजैत रहताह त' की ओ चरम भेट पेतै जे गजल सँ भेटबाक चाही?

हम अपन बात कहै छी जे कविता हमरा ओतेक नीक नै लागै यै किएक त' हमरा लग एते शब्दक भंडार नै अछि तेँए बहुतो बात नै समझि पाबै छी आ हमरा लागै यै जे हमरा सन बहुतो और छथि ।
गजल के गाओल जाइ छै तेँए एकर भाषा सरल हेबाक चाही से हमर मत अछि ।
किएक त' एकरा जन जन , गाम गाम धरि पहुँचेबाक अछि ।
ओना हमरो गजल मे किछु एहन शब्द भेटि सकै यै |

गजल



खिलल फूलक आश मे भेटल कटैया
इ मधुमासक समयमे पतझड़ समैया

तड़प भेटत मात्र फँसलौँ यदि मरूस्थल
बनल छै मारूक एहन घर घरैया

जड़ल मानव नेह मे दुख मीत दै छै
पियासल छै खूनके सब मन वनैया

खसल छै अर्थव्यवस्था सड़ल सोँगर
अपन पेटक भूख बनि गेलै बलैया

द' रहलै यै दोष स'ब पर स'ब नगर मे
द' रहलै केओ त' ककरो नै बधैया

कते टाटक दोगमे अजगर बसैया
दरद सिन्धुसँ भासि गेलै "अमित" नैया

मफाईलुन-फाइलातुन-फाइलातुन
1222-2122-2122
बहरे-सरीम

अमित मिश्र

रूबाइ


76
बदलल जमाना मे बदलल समाज छै
यांत्रिक भरोसे छूटल काम काज छै
चंदा त' केओ सुर्य धरि जाएत मुदा
एखनो त' वएह ताल आ रियाज छै

रूबाइ

74

आजुक जमाना मे इ बात त' साफ अछि
सब जिनगी ठंढाइत चाहक भाफ अछि
जाबी लगा चूप रहू जँ जीबाक अछि
केओ उठेलक अबाज त' गर्दन हाँफ अछि

रूबाइ

75

सपना सपने रहि गेल आजादी के
लागल हथकड़ी सदिखन त' गुलामी के
पहिने छल विदेशक आब भेल देशक
जिम्मेदार दुनू , देशक नाकामी के

रूबाइ

73

कजरी तूँ त' बिजुरी खसा क' चलि गेलेँ
नेहक आगिमे तन तपा क' चलि गेलेँ
तॅहर एगो इशारा जान मारूक
हमरा जीयले मे मुआ क' चलि गेलेँ

रूबाइ

72

नै शब्द जानै छी नै प्रेम जानै छी
रान्हल करेजक आखर मात्र आनै छी
तमसायल छी त तमसा लिअ नदानी पर
जे नै हम जानै छी सएह सानै छी

रूबाइ

70

भासल जाइ मोन कते सम्हारौँ आब
पैसल डर जग के कोना रबारौँ आब
नै छोड़त दहेज नै प्रेमक अनुमती
पसिझल नोरक ताल कत' बजारौँ आब

रूबाइ

71

ताशक पत्ता जकाँ ऊधिया जाइ छी
वोटक आँधी मे जखन धुरिया जाइ छी
अधिकार सँ बेइमानी नै क' सकलौँ
तेँ सरकारी मदति सँ कतिया जाइ छी

रूबाइ

69

हम तड़पै छी आ अहाँ तड़पाबै छी
सदिखन हम जड़ै छी अहाँ जड़ाबै छी
हमर स्वार्थ अछि तेँए मरै छी , किए त'
कखनो हँसि क' अहीँ हमरा हँसाबै छी

रूबाइ


67
कहिया नूनक सुआद भेटत भाइ यौ
मँहगाइक दानव कहिया मरत भाइ यौ
बिन पानिक उसनाइत रहब कहिया धरि
लाबा जकाँ भूजाइत रहत भाइ यौ

रूबाइ

68

बिन मल्लाहक नैया बनि गेल जिनगी
रोपल फसल बटैया बनि गेल जिनगी
आखर नै अछि दर्द अपन बताब' लेल
कोनो काँट कटैया बनि गेल जिनगी

रूबाइ

66

काजर कने लगा लिअ नीक लागै यै
पल भरि क' मुस्किया लिअ नीक लागै यै
फूलल मुँह त' लागै यै कोना दन यै
आभा मुँहक चमका लिअ नीक लागै यै

रूबाइ

64

बापक इज्जत के नीलाम क' रहल छी
सासुर मे बास क' अराम क' रहल छी
लोकक कहब भविष्य अपने बनबैए
अपने हाथे विधना बाम क' रहल छी

रूबाइ

65
बोखारक जहर कोना क' उतरत से कहू
कहिया नेनाक मरब थम्हत से कहू
रोगे छै गरीबक तेँ राजा सूतल
थप्पर कर्तव्यक कहिया पड़त से कहू

रूबाइ


62
अहाँ सन मीत सँ एतबे प्रीत चाही
जै नै बिसरि सकी एहन अतीत चाही
हारब हम मजा हमरा आएत मुदा
सदिखन अहाँक सब मोड़ पर जीत चाही

रूबाइ

63

सगरो नगर मे रूपक शोर भ' गेलै
लोकक कहब जत' गेलौँ भोर भ' गेलै
सूनै छी जँ बेपर्द सन बात लोकसँ
रूपक परिभाषासँ मोन घोर भ' गेलै

रूबाइ

61
घी ढारि क' अहाँ आगि सुनगा देलियै
पानिक सहयोग द' क' बात बझा देलियै
छै आब एहने सन छवि नेताक बनल
तेँए बढ़ल दाम कने घटा देलियै

रूबाइ

59
भासल लोक सब भसेबाक चक्कर मे
कानल हकन नोर कनेबाक चक्कर मे
डाहक लुत्ती सँ त' अपने घ'र जड़ै छै
अपने खसल छै खसेबाक चक्कर मे

रूबाइ

60
लड़लौँ बड मुदा लड़ेनाइ नै सिखलौँ
हँसलौँ पेट फाड़ि हँसेनाइ नै सिखलौँ
चारू कात सँ शोषण भेल अधिकारक
फँसलौँ बड मुदा फँसेनाइ नै सिखलौँ

रूबाइ


58
लागै ने नजर फूलक काजर लगा लिअ
अछि इच्छा हमर कने घोघ त' उठा लिअ
प्रेमक गीत जकाँ छमकाबू त' पायल
तालसँ ताल मिलाबैत कंगन बजा लिअ

रूबाइ

56
बिनु मोर पिया के काजर बहि गेल माइ
विधनाक मारि सँ सेनुर दहि गेल माइ
बिन अपराधक सजा हमरे टा भेटल
बहुते अपराधो क' एत' दहि गेल माइ

रूबाइ


57
पाथर बनल करेज त' मानवता मरल
कारी खून भेलै दानवता जागल
काजर सन कारी मुँह पर लेपल ढोँग
चाँङुर फँसि अंधविश्वासक कते जड़ल

रूबाइ

55

जुनि बूझू इ लागल त' नैन कटार छै
मादकता नै , नै इ नेहक पथार छै
एगो टोटका काजर बूढ़ पुरानक
दुनियाँक नजर सँ बचबाक हथियार छै

रूबाइ

53

काजर सन मोहक दाग चन्ना मे छै
गाथा लिखल बिन कलमक पन्ना मे छै
बान्हल मोह पाश सँ के नै भटकैए
साटल जादू त' नैनक फन्ना मे छै

रुबाइ


54
नैनक काजर की अहाँ कजरौटा छी
दू धारी बड शान चढ़ल सरौता छी
सगरो जग मे मात्र नैनक गुलाम हम
सम्मोहीत करैत कारी मुखौटा छी

रूबाइ

52

दू आँखिक काजर हमर श्रृंगार छै
पाहुन संग सात जनमक इ करार छै
नोरो खसल त' कारी काजर मे घोरि
काजर सन पिया सँ एहने प्यार छै

रूबाइ

51

सबके तूँ नचबै छेँ वाह रे काजर
बहकल मन फँसबै छेँ वाह रे काजर
नेहक रण मे एक मात्र महारथी तूँ
एक वार सँ हरबै छेँ वाह रे काजर

रूबाइ

50

लागल वाण जखन काजर भरल नैनसँ
छी कतिआएल तखन सँ झड़कल रैनसँ
पिपनी छोड़ि दुनियाँ अन्हार लागैए
नैनक बाटसँ मोन मे उतरल चैनसँ

रूबाइ

49

किछु राज जरूर नुकाएल काजर मे
छी फँसल नेहक फुलाएल काजर मे
टोना इ वा टोनासँ बचेबाक ठोप
सदिखन त' मातल मताएल काजर मे

गजल



गजल नै नै गीत लिखलौँ
जँ लिखलौँ त' प्रीत लिखलौँ

दरद सीमा पार केलक
त' मरहम घसि मीत लिखलौँ

उलट बातसँ नीक लागै
गरम के हम शीत लिखलौँ

बयानसँ पलटब त' इज्जत
जँ नेता सन गीत लिखलौँ

बरसबै नै मेघ बनबै
ढहल आँगन भीत लिखलौँ

बहू सासुक भेल झगड़ा
मधुर संगे तीत लिखलौँ

बचब नै यौ प्रलय हेतै
फँसल साँसक जीत लिखलौँ

"अमित" देखल अपन नैनसँ
समाजक सब रीत लिखलौँ

मफाईलुन-फाइलातुन
1222-2122
बहरे-मजरिअ

अमित मिश्र

रूबाइ

48 ककरो डाइन कहि भगबै छै रेवाज
छागरक प्रसाद चढ़बै छै रेवाज
उज्जर साड़ी पहिरा नोर बहबाबै
साड़ी लाल लेल कनबै छै रेवाज

रूबाइ

47

विपतिक ए .टी .एम बनल कपार हमर
सुरसाके मुँह नमरै जड़ल कपार हमर
मौला गेल फूल जकरा कने छूलौँ
विरहक नेहसँ चोटाहल कपार हमर

रूबाइ


46
डूबल रहब बाढ़िसँ मिथिलाक भाग अछि
देखब लालके मरल कमलाक भाग अछि
पानिक लेल बखारी त' भरल छै मुदा
पानिक खेतीसँ बचब मिथिलाक भाग अछि

गजल



असगर जनम लेलहुँ असगरे जी रहल
अपने भाग अपनेपर भरोसा बचल

मोनक खेतपर बजड़ा अपन खाइ छी
गलती अपन तेँए बाट काँटसँ भरल

मोजर नै सिनेहक भेल कहियो हमर
अपने तोड़ि नाता शहर मे जी रमल

दै छी दोष नेताके किए आब यौ
अपने भोट दै छी घेँट अपने कटल

लोभी छी अधम छी "अमित" भटकै सगर
पक्षक नै अपक्षक मोन अपने बनल

मफऊलातु-मफऊलातु-मुस्तफइलुन
2221-2221-2212
बहरे-कबीर

अमित मिश्र

रूबाइ

45

खन बाढ़ि खन रौदीसँ मरै छै मैथिल
कोशी कमलाक बली चढ़ै छै मैथिल
कखनो डरसँ भासैत बान्हपर तीतल
कखनोक' आगि आ लूसँ भीजै मैथिल

रविवार, 24 जून 2012

गजल


बाल गजल-१
निश्छल-निर्मल कोमल बचपन
धिया-पुता केर अलगहिं जीवन

चलैत रहैछ सभके अंतर्मन
भावक अजबहिं कूटन-पीसन

देह लेढायल मोन छइ कंचन
कमल-फूल सन लागै अनमन

क्षण ठिठियै क्षण कानै अनढन
चट सलाह आ झट द अनबन

बस टांट सोहारी बसिया तीमन
उठि भोरहरबा सभ सँ नीमन

इस्कुलसँ बचबा लेल धरछन
नीक लगय छइ मरुआ मीरन

कितकित पाड़ल सगरो आँगन
चइत-कबड्डी मुँह में सदिखन

हो मेघ-सुरुज या चान-तरेगन
जहि पर हाथ धेलक से अप्पन

"नवल" कथी फुरि जेतय कक्खन
बाल-मनक नै किछु परिसीमन

*आखर-१३ (तिथि-०४.०४.२०१२)
©पंकज चौधरी (नवलश्री)



शनिवार, 23 जून 2012

गजल




देख  मुहँ मूंगबा बहुतो बटाई छै
नाम ककरो गरीबक नै सुहाई छै

भेट निर्धन कए नै भेटलै मिसियो
पेट भरि जाइ सभ  दीनक दबाई छै

मीठ भाषण बरख पाँचे  कते दै छै
जीतकेँ बाद नेतोसभ  नुकाई छै

घूस खा खा  कs बनलै भोकना पारा
आन दमड़ीसँ चमड़ी बड चबाई छै

भ्रष्ट नेता घुमै    बीएमडब्लूमे
एखनो हक गरीबक 'मनु' बटाई छै

(२१२२  १२२२ १२२२, बहरे-मुशाकिल )
जगदानन्द झा 'मनु'  : गजल संख्या -५८

गजल

प्रस्तुत अछि मुन्ना जीक गजल----



पहिलुक शब्द कौआ-मेना बिसरल जाइए

आब बसात पछबा सौंसे सिहकल जाइए


नुक्का-चोरी सभ तँ भागि गेलै हमरो गामसँ

ई विडीयो गेम सौंसे आब पसरल जाइए


पानि चोरा क' राखि लेलक पाइ बला देशमे

देखू आब गरीबक कंठ लहकल जाइए


कनेकबे जगह देलिए तँ माथ चढ़ि गेल

जमा धौंस हमरे उपर अड़कल जाइए


उड़ै छैक आँचर जखन-जखन हुनकर

से देखि हमरो मोन आब बहकल जाइए


17

गजल

प्रस्तुत अछि मुन्ना जीक गजल----




केखन धोखा देत ई समान बजरुआ गारंटी नै

ई केखनो हँसाएत केखनो देत कना गारंटी नै


सरकार बनाबै एहन योजना गरीबक लेल

केखन जेतैक गरीबक अस्तित्व मेटा गारंटी नै


केकरोसँ किछु बाँचल नै छै ऐ दुनियाँमे आब

बड़कोसँ किछु बाँचल नै छै ऐ दुनियाँमे आब


सहलहुँ सभ दुख जे भेटल अनकासँ मुदा

अपनोसँ किछु बाँचल नै छै ऐ दुनियाँमे आब


सभ जेतै बिका खाली दामटा सही हेबाक चाही

सगरोसँ किछु बाँचल नै छै ऐ दुनियाँमे आब


अगड़ा केर नाम पर भेल बहुत राजनीति

पिछड़ोसँ किछु बाँचल नै छै ऐ दुनियाँमे आब

गजल

प्रस्तुत अछि मुन्ना जीक गजल----



बड्ड मजा अबैत छै मुफ्त मालमे

मुदा दुख होइ अछि जीबैत मलालमे


सहि ने सकब समाज केर उपराग

नीक छल जे जीबैत रहितौं अकालमे


मोन ने भरैत छल अबैत वेतनसँ

आब हम अपनाकेँ गानै छी दलालमे


अपन जिनगी आगू बढ़ेबा लेल दोस

लागल छी हम तँ दोसरक हलालमे

आखर-----15

गजल

प्रस्तुत अछि मुन्ना जीक गजल----



नेनाक नेनमतिसँ कष्ट होइ छै केकरो-केकरो

मुदा जँ सियान करै नेनमति तँ कष्ट हेतै सगरो


बुद्धि तँ जीबाक सभ लग छै राखि तथिआएल बुझू

मुदा बुद्धि बलें मात्र जीबैत देखै छी केकरो-केकरो


डरैए अन्हरियासँ सभ तकैए बाट बिहान केर

अन्हारसँ विलगि क' उजास भेटैए केकरो-केकरो


जँ हियाकेँ हेड़ाबए चाही तँ हेड़ा लिअ कतौ-केखनो

हियासँ हिया मीलि पबैए केखनो क' केकरो-केकरो


जगलोमे देखि लेत अछि सपना केखनो-केखनो

सूतलमे सपनाक यथार्थ भेटैए केकरो-केकरो

आखर-----20

गजल

प्रस्तुत अछि मुन्ना जीक गजल----



अपन माटि-पानिक मोल पानिमे भसा गेलैए

तँए तँ आब शहरुआ रंग धौंस जमा गेलैए



अफसर आ बबुआनी भ' गेलैए मुट्ठीक खेल

सभ धिया-पुता तकनीकी ज्ञान ल' रमा गेलैए



देहकेँ जे खूब धुनियो क'नै पेलक बोनि ऐठाँ

शिक्षाक प्रतापे ओकरे धिया-पुता कमा गेलैए



गमैया लोक आबो जोगेने अछि पुरखाक थाती

शरहक चपेटमे आबि नवका झमा गेलैए



आब नै लुलुआबैए लोक अपन पड़ोसीयाकेँ

पाइसँ पटि सभहँक घर गम-गमा गेलैए



आखर-----18

गजल

प्रस्तुत अछि मुन्ना जीक गजल----



पश्चिम केर ड्रेसमे मेल लगैए

फीगरसँ देखिऔ फीमेल लगैए


फैशन आ चालिसँ अछि आधुनिक

तैं ई पत्नीसँ बेसी रखैल लगैए


ई बजार भेल जाइए देहगर

तँए सभ देह केर खेल लगैए


बाहरसँ चिक्कन-चुनमुन देखू

भीतरसँ भारतीय रेल लगैए


आखर-----13

गजल

प्रस्तुत अछि मुन्ना जीक गजल----
पहिने ताकि कनडेरिए फँसेलौं अहाँ
पछाति ब्रम्हचर्य उपदेश देलौं अहाँ

जिनगीक सभ बाट लगै छै मलिन
हमर जिनगीमे पैसि क' हँसेलौं अहाँ

हम तँ बिलटल रही एकसर भ' क'
हमरा सन निकम्मासँ बन्हेलौं अहाँ
जिनगी तँ बन्न किताबक पन्ना रहए
मुदा खोलि एकरा सौंसे तँ देखेलौं अहाँ

आखर-----15

गजल

प्रस्तुत अछि मुन्ना जीक गजल----



अपन देशक रोजगारीकेँ खसबैए सरकार

पँजी निवेश नामे विदेशीकेँ बसबैए सरकार


हाट-बाजारक महत्व नै बूझै माँल बुझै मूल्यवान

छोट-छोट व्यपारी के तँ भीतर धसबैए सरकार


लगा पसाही देश भरिमे करबैए जन आंदोलन

पीबै बला पानियोमे कचराकेँ भसबैए सरकार


लोकक पैसा-कौड़ी केर इंतजामसँ लड़ैए चुनाव

अप्पन कुर्सीक लेल जनताकेँ फँसबैए सरकार


आखर-----20

गजल


प्रस्तुत अछि मुन्ना जीक गजल----



पहिरु गहना एना जे झमका दिए

नेह जोरू एना जे भाग्य चमका दिए


लिअ ने विराम कहियो जिनगीमे

जोशबैसनाहरकेँ सेहो उठा दिए


चलू तँ सदिखन समय केर संग

एना बैसू जे जिनगीकेँ गमका दिए


संगी केहनो भेटए तँ डर नै करू

संग धरू एहन जे रमका दिए


करू अफसोच ओहन आदमी पर

जे सभहँक जिनगीकेँ ठमका दिए

.

आखर-----14

गजल

प्रस्तुत अछि मुन्ना जीक गजल----



लोक तँ लजाइ छल पहिने छोट काज पर

मुदा आइ काज नीक क' उड़ैए जहाज पर


जाति मेटा लोक आइ रहरहाम भ' जीबैए

तैं केकरो ध्यान नै जाइ छै अनसहाज पर



बन्न भ' अपने घरमे जीबैए नवका लोक

ओकर मोन कहाँ आब जाइ छै रेवाज पर


पहिने मनुखमे देखाइत छल मनुक्खता

आब छै टिकल मोन दोसरा अवाज पर


आखर-----17

गजल

प्रस्तुत अछि मुन्ना जीक गजल----



नजरि झाँपि देहकेँ बजार बना लैए

बिनु बिआहो केकरो भतार बना लैए


मानू नै छै सामर्थ्य बुझबाक यथार्थकेँ

तें कल्पनेमे उड़ि क' संसार बना लैए


सत्य कही तँ जिनगी बेकार छै लोकक

गाम नै शहरमे परिवार बना लैए


रहै छै आगि जखन स्वार्थ केर मोनमे

तखन गदहोकेँ ओ भजार बना लैए


गुजारि उमेर धरैए बानि समाजक

ता धरि तँ जिनगीकेँ पहाड़ बना लैए


आखर-----15


गजल

प्रस्तुत अछि मुन्ना जीक गजल----




देखू मुसडंडा अराम करैए

लोककेँ जीयब हराम करैए


भरि दिन करैए ओ काटा-काटी

साँझेसँ मुदा राम-राम करैए


चोर-उच्चकाकेँ छै अड्डा एतए

ओ दसमंजिला धराम करैए


सभ्य रहैछ नुकाएल जतए

असभ्य जिनगी विराम करैए


आखर-----12

गजल

प्रस्तुत अछि मुन्ना जीक गजल----




बिनु पीनहुँ नशामे मातल अछि ई दुनियाँ

शोणिते भीजल जेना काटल अछि ई दुनियाँ


सभ कहै अछि दोषी एक-दोसर लोककेँ तें

अपने सही कह'मे लागल अछि ई दुनियाँ


मंद-मंद मुस्की मुदा ठोर अछि काँपि रहल

सिनेहसँ सिक्त मुदा फटल अछि ई दुनियाँ


नजरि बचौने रहैए अपने लोक आब तँ

फाँटसँ फटिआएल साटल अछि ई दुनियाँ


राखू अपन विचार संजोगि क' सदिखन

अहीं सन लोक लेल ठाठल अछि ई दुनियाँ


आखर-----17

गजल

प्रस्तुत अछि मुन्ना जीक गजल----

करै अछि किलोल माथा चढ़ि

अबै नै अछि केओ आगू बढ़ि


मानवता भ' रहल विलीन

दै अछि उपराग कोठा चढ़ि


जेना गढ़ैछ गहना सोनरा

पड़ोसिया सुनाबै बातो गढ़ि


गढ़ब तँ केहनो गढ़ाएत

मुदा सोझगर हएत मढ़ि


आखर-----11

गजल

प्रस्तुत अछि मुन्ना जीक गजल----




' ' बैसल थातीकेँ उपहार करैए

ओकर पाइसँ ऐश सभ यार करैए


आब धएल छै संबंधे लेल जतियारी

तँए पसारी बुझु जे उपकार करैए


लोक तकैए आब सुविधा जनक वस्तु

तैयो गरमेबाक काज पुआर करैए


खपल जा रहल समाजिक छोट-पैघ

पाइ बला गरीबक मनुहार करैए


सभ्य जा रहल अछि कतिआएल एत'

शांति बँटैकेँ सभ काज हुड़ार करैए


आखर-----15

गजल

प्रस्तुत अछि मुन्ना जीक गजल----




धरती पर अकछा लोक जाए चाहैए चान पर

डेराइए कुटुकचालि बन्द हएत दलान पर


लोक नहि चाहैए बेर-बेर अपन परिवर्तन

आब तँए तँ निर्भर रहैए अपने समान पर



प्रदूषणसँ उकताइए बच' चाहैए बेमारीसँ

मुदा की ओत' जा रहि पाएत बिछान पर


दूरक ढ़ोल सोहाओन बुझि उपर जाए चाहैए

अनचाहा ऐय्याशीसँ अबैए पुरने मकान पर


आखर-----19

गजल

प्रस्तुत अछि मुन्ना जीक गजल----



उठल कछमछी तँ पेदार भ' गेलौं

बीतल उमिर आब बेकार भ' गेलौं


पढ़बाक समय गेल रंगदारीमे

आब लेखनीक केर वफादार भ' गेलौं


धुआँइत देखा रहल बाट सगरो

जेना लगैए सूखल सेमार भ' गेलौं


जीवन काटब भेल बहुत मोश्किल

आब लागए जेना मँझधार भ' गेलौं


आखर-----14

गजल

प्रस्तुत अछि मुन्ना जीक गजल----


केलक रौदी कहियो दाही कहियो

छोड़लक कहियो उछाही कहियो


दोसरक बेगरते देल लगानी

अपना बेगरते उगाही कहियो


केसक बिन ने हएत समझौता

मोकदमा कहियो गवाही कहियो


हम तँ घूर जड़ेलौ गर्मी मासमे

मिझाएल आगिसँ पसाही कहियो


खद्धधारीक इशारे जुलुम करैए

अफसर तँ छल सिपाही कहियो


आखर-----13



शुक्रवार, 22 जून 2012

गजल



हमर अहाँकेँ प्रीतक खिस्सा आब  दुनियाँ  बिसरत नहि
युग-युग तक लोकक मोन सँ अपन नाम घटत  नहि

सूर्य चान केँ प्रेमालाप सँ ई दुनियाँ प्रकाशित अछि भेल
हुनकर संग बिनु कखनहुँ  ई दुनियाँ चमकत  नहि

भोला शंकर डमरू बजाबथि पारवती नाचैत अँगना
हुनकर दुनू केँ इक्षा बिनु कएखनो श्रृष्टि चलत नहि

कृष्ण नचाबथि सगरो गोकुल गोबरधन  पर्वत उठा
बिनु राधिका संग कएखनो हुनक मुरली बजत नहि

फूल भोंडा केँ प्रीतक खिस्सा सभतरि बहुत पुरान भेलै
'मनु' 'सुगँधाक' नाम बिनु प्रेम कथा आब गमकत नहि

(सरल वार्णिक बहर, वर्ण-२२)
जगदानन्द झा 'मनु'  : गजल संख्या - ५७

गुरुवार, 21 जून 2012

गजल



गजल-१०

करिया आइंखक कातक काजर
शोभि रहल अहिवातक काजर

नव यौवन के प्रीत में पसरल
नयन सँ ल नथियातक काजर

लजा गेली ओ देइख क लेभरल
अपन चतुर्थी परातक काजर

सुन्न लगय बिनु काजर नयना
लेप लेलहुं बिन बातक काजर

अनसुहांत सन गप श्रृंगारक
नयन लगय नै जातक काजर

नैन हुनक जा धरि अछि मूनल
बस चुप बैसल तातक काजर

नयन-वाण सँ प्राण जों बंचि गेल
"नवल" जान लेत घातक काजर



***आखर-१३
(सरल वार्णिक बहर)
©पंकज चौधरी (नवलश्री)
(तिथि-
२१.०६.२०१२)
तोहर मतलब प्रेम प्रेमक मतलब जीवन आ जीवनक मतलब तों