शनिवार, 31 जनवरी 2009

गजल


भोज ने भात हर-हर गीत की करू
लागल भूख कहू मीत की करू

जिनगी अजगुत जिबनिहार विचित्र
केखनो घृणा केखनो प्रीत की करू

प्रेम बदलि रहल समयो सँ बेसी
केखनो आगि केखनो शीत की करू

मनुख के पहिचानब बड्ड कठिन
केखनो बिग्घा केखनो बीत की करू

चललहुँ मिलाबए गरा सँ गरा
भेटल दुश्मन नहि मनमीत की करू

बुधवार, 14 जनवरी 2009

गजल

गजल

मछगिद्ध जँ माछ छोड़ि दिअए त डर मानबाक चाही
लोक जँ नेता भए जाए त डर मानबाक चाही

रंडी खाली देहे टा बेचैत छैक अभिमान नाहि
मनुख अस्वभिमानी हुअए त डर मानबाक चाही

अछि विदित शेर नहि खाएत घास भुखलों उत्तर
वीर अहिंसक बनए त डर मानबाक चाही

माएक रक्षा करैत जे मरथि सएह विजेता
माए बेचि जँ रण जितए त डर मानबाक चाही

सम्मानक रक्षा करब उद्येश्य अछि गजल केर
जँ उद्येश्य बिझाए त डर मानबाक चाही

तोहर मतलब प्रेम प्रेमक मतलब जीवन आ जीवनक मतलब तों