गुरुवार, 19 मई 2016

मैथिली गजलक अंग्रेजी अनुवाद

ई हमर आ हमर गजलक सौभाग्य अछि जे हेमंत दासजी Hemant Das Patnaएकरा अंग्रेजीमे अनुवादित केलथि। हुनका धन्यवाद संगे-संग ओमप्रकाशजीकेँ सेहो धन्यवाद जे ओ ऐ गजलकेँ शेयर केलथि। हेमंतजीक मूल पोस्टक लिंक कमेंटमे देल जा रहल अछि। तँ अहूँ सभ पढ़ू मूल आ अनुवाद एकैठाम--

हम झुट्ठेमे अपसियाँत
तों सत्तेमे अपसियाँत

I am tired without any achievement.
You are exhausted with your Power

नहियें पी सकलै शराब
जे चिखनेमे अपसियाँत

He could never drink wine
Who felt exhausted merely in tasting

सभ खा गेलै खेनहार
किछु पत्तेमे अपसियाँत

Everything has been eaten by the eater
And some people are tired in fight for the leaf plates

जकरा लग सालक हिसाब
से महिनेमे अपसियाँत

I, who has to run the family through the year
Feel tired only in a month

के छै अनचिन्हार लेल
सभ अपनेमे अपसियाँत

Who is there for ‘Anchinhar’ (poet)
Everyone is exhausted for himself.”

रविवार, 15 मई 2016

मैथिली गजलक संसारमे ‘अनचिन्हार आखर’

मैथिली गजलक संसारमे ‘अनचिन्हार आखर’
(जगदीश चन्द्र ठाकुर ‘अनिल’) विदेह अंक 200 सँ साभार
मैथिली गजल आ शेरो-शाइरीक लेल ‘अनचिन्हार आखर’ बहुत महत्वपूर्ण नाम अछि |
2008 मे इन्टरनेट पर मैथिली गजल आ शेरो-शाइरीक स्वतंत्र अभियान ल’क’ ‘अनचिन्हार आखर’ नामक ब्लागक संग उपस्थित भेलाह युवा रचनाकार आशीष अनचिन्हार | पहिल बेर गजेन्द्र ठाकुर द्वारा तेरह खंडमे गजल शास्त्र प्रस्तुत कएल गेल आ एतहिसं शुरू भेल मैथिलीमे सरल वार्णिक बहर | स्वयं आशीष अनचिन्हार सेहो एहि ब्लॉगपर मैथिलीमे गजल लिखबाक लेल व्याकरण प्रस्तुत करैत कतेक गजल लिखलनि आ आनो रचनाकार सभसं संपर्क कए हुनका सभकें प्रेरित केलनि गजल लिखबाक लेल |बहुत रचनाकार एहि अभियानमे सम्मिलित  भेलाह |
इन्टरनेट पत्रिका ‘विदेह’क एक अंकमे सरल वार्णिक बहरमे आशीष अनचिन्हारक बहुत रास गजल प्रकाशित भेल |आशीषजीक एहेन 78  टा गजल 32  टा कता आ किछु रुबाइक संग वर्ष 2011  मे एक पोथीमे आएल जकर नाम अछि ‘अनचिन्हार आखर’जे हमरा जनैत मैथिलीमे पहिल एहेन पोथी अछि जाहिमे सरल वार्णिक बहरमे 78   टा गजल अछि |
एहि पोथीकें दू बेर पढलाक बाद हमर जे मंतव्य अछि से निम्नलिखित शब्दमे व्यक्त कएल जा रहल अछि :
1)      एहि पोथीक आरम्भमे गजलक इतिहास  आ  मैथिली गजलक व्याकरण प्रस्तुत भेल अछि |शेर, मतला, रदीफ़, काफिया, मकता आ बहरसं नीक जकां परिचय कराओल गेल अछि |
2)      पोथीमे 78  टा गजलक अतिरिक्त 32  टा कता आ 2  टा रुबाइ अछि |
3)      76 टा गजलमे रदीफ़ आ काफिया दूनू अछि | 2 टामे काफिया मात्र अछि |
4)       2  टा गजलमे 6 टा शेर अछि | शेषमे पांच-पांचटा शेर अछि |
5)       वर्णक संख्याक अनुसार गजलक संख्या एहि तरहें अछि :
8 वर्णक 1 टा गजल अछि
9 वर्णक 1 टा गजल अछि                                                               
10 वर्णक 2 टा गजल अछि                                                               
11 वर्णक 4 टा गजल अछि                                                              
12 वर्णक 8 टा गजल अछि
13 वर्णक 3 टा गजल अछि
14 वर्णक 11 टा गजल अछि                                                            
15 वर्णक 12 टा गजल अछि                                                           
16 वर्णक 13 टा गजल अछि
17 वर्णक 7 टा गजल अछि        
18 वर्णक 6 टा गजल अछि                                                              
19 वर्णक 4 टा गजल अछि                                                                                     20 वर्णक 6 टा गजल अछि  
21 वर्णक 1 टा गजल अछि                                                                                                              

(6 ) मतला : मतला सभमे रदीफ़/ काफियाक पालन नीक भेल अछि अपवादमे निम्नलिखित गजल सभ अछि :
गजल क्रमांक--56 बुझाइत / मिझाइत                                                   गजल क्रमांक--71 तबीयत / रैयत     
गजल क्रमांक--77 ओन्नी / मुन्नी                                                        
(7 ) काफिया : मतलाक काफिया आ आन शेर सभक काफियामे मिलान अछि अपवादमे निम्नलिखित गजल सभकें देखल जाए :
गजल क्रमांक    मतलाक काफिया            आन शेर सबहक काफिया
10            दुराचार /  भ्रष्टाचार              बेकारसरकार,अन्हारअनचिन्हार
20           भड़ुएक / पहरुएक                मालिएकनिशबदीएक
29           अदना/ पदना                    विपदा,तगमा,भगवा,सुगवा
35           रोकब/ ठोकब                      फ़ोड़ब,तोडब
36           बहन्ना / सन्ना                       जुन्ना
43                     राति / पांति                       आँखिमाटिहडाहि
55             टूटैत / छूटैत                     लुटैतकटैत,खसैत
65            जरैत / डरैत                  भरतैकबजैतरहैत
67            खसा/ बसा                    बना,सजा,नचा        
71      तबीयत / रैयत                   किस्मत
73             मानू / जानू                        बेकाबू                               

(8मकता   :  बत्तीस टा गजलमे मकताक प्रयोग भेल अछि, से नीक भेल अछि |
(9भाषा आ भाव पक्ष  : गजलकारक अनुसार गजलकें प्रेमी-प्रेमिका ( आत्मा-परमात्मा )क गप्प-सप्प सेहो मानल जाइत छैक आ गप्प-सप्प सदिखन गद्यमे होइत छैक, तें गजल लेल गद्यात्मक भाषा हेबाक चाही | से गद्यात्मक भाषाक नीक स्तरक आकर्षण सभ रचनामे अछि | 
गजलकार कहैत छथि : “हम अपन गजलमे (किछु शब्दक ) अपूर्ण रूपकें प्रधानता देने छी | पूर्ण रूपक प्रयोग हम खाली वर्ण आ मात्रा मिलेबाक लेल करैत छी |अपूर्ण भाषा गजलक लेल बेसी नीक |”
‘नहि’ के स्थानपर ‘नै’, ‘जाहिठाम’क बदला ‘जै ठाम’, ‘कतेक’ के बदला ‘कते’, हेतैक के बदला ‘हेतै’क प्रयोग शेर सभमे नीक लगैत छैक |
गजलमे मुख्य तत्व प्रेम होइत अछि |प्रेम कोनो मनुक्ख, प्रकृति,माटि-पानि, संस्कृति, भाषा, देश-दुनियासं भ’ सकैत अछि |
प्रेमक अभिव्यक्ति कतेक रूपमे भेल अछि : नोंक-झोंक, उलहन, उपराग,आक्रोश,आवेश आदि तत्व जहां-तहां विभिन्न गजलक शेर सभमे सुच्चा मैथिल दृष्टि  नेने भेटल अछि | बानगीक रूपमे देखल जाए निम्नलिखित शेर सभ :
‘भूखक दर्द होइत छैक प्रकाशोसँ तेज
देखू पेटक खातिर दलाल बनल लोक’

‘चुप्प रहत मनुख गिदर भुकबे करतै
निर्जीव तुलसी चौरा कुकुर मुतबे  करतै’

‘हरेक समय बितैए दुःख आ दर्दमे
गरीब लेल नव-पुरान की साल हेतै’

‘देहे जिन्दा भावना मरि गेलै
जग लगैए समसान सन’
‘नहि बनत केओ राम मुदा
सेवक चाही हनुमान सन ’          

‘रामक आदर्श तँ मरि गेल हुनके संगे
बुझू आब तँ खाली हुनक नाम चलैए’

‘ जे नै कमा सकए टका बेसीसं बेसी
लोक तँ ओकरे बुझैछै   बेकार सन ‘

‘घोघक रहस्य त एना बुझियौ
झरकल मूंह झपनहि  नीक.’

‘लोक जहर दैए मुस्किया कए
आब त हँसीसँ  डरनहि नीक’

‘हाथ सटेलासँ मोन केना भरतै
अहाँ करेजसं सटा लिअ हमरा’’

‘जाइ छी मुदा जेबाक मोन  नै अछि
कोनो सप्पतसं घुरा लिअ हमरा’

‘नून नै चटबए पड़तै बेटीकें 
आब तँ  गर्भपात लेल युद्ध’

‘बुड़िबक देवी कुरथी अक्षत
हम एहने विकास करैत छी’

‘अहाँक दरस-परस बड्ड महग अछि
सटि जैतहुँ अहाँक देहमे बसात भेने’
‘सबहक घरमे एकटा अगत्ती जन्मए
सरकारक निन्न टुटै छै खुरफात भेने ‘                                     

‘हमरा अहाँ नीक लगै छी सभ दिनसं
मुदा प्रेम अछि से कहि नहि पबैत छी’

अहाँकें प्रभावित करबाक लेल, चुप्प करबाक लेल, सोचबाक लेल, विचार करबाक लेल आ बेरपर मोन रखबाक लेल सैकडो  शेरसं भरल अछि एहि पोथीक गजल सभ  |
पोथीक सम्बन्धमे अपन टिप्पणी प्रस्तुत करैत गजेन्द्र ठाकुरजी कहैत  छथि :
“मैथिलीक पुनर्जागरणक ऐ समएमे ऐ पोथीक आगमन मैथिली आ मात्र मैथिलीक पक्षमे एकटा सार्थक हस्तक्षेप सिद्ध हएत | स्वतः स्फूर्त गजलमे जे गेयता आ प्रवाह होइ छै से ऐ संग्रहक सभ गजल, रुबाइ आ कतामे अहाँकें भेटत |”
हम एहि टिप्पणीक  समर्थन करैत छी |

शुक्रवार, 13 मई 2016

गजल

काज गुलाब बराबर
घाम शराब बराबर

सुख छै पन्ना पन्ना
दुख तँ किताब बराबर

छै धर्मक आँगनमे
घोघ नकाब बराबर

क्रेडिट जय डेबिट जय
फंड हिसाब बराबर

ठोरो चुप मोनो चुप
प्रश्न जबाब बराबर

सभ पाँतिमे 22-22-22 मात्राक्रम अछि।
दूटा अलग-अलग लघुकेँ दीर्घ मानबाक छूट लेल गेल अछि।
सुझाव सादर आमंत्रित अछि

गुरुवार, 12 मई 2016

अपने एना अपने मूँह-35

सेप्टेम्बर 2015मे कुल 13 टा पोस्ट भेल जकर विवरण एना अछि--
कुंदन कुमार कर्णजीक 1 टा पोस्टमे 1 टा गजल अछि। आशीष अनचिन्हारक 12 टा पोस्टमे  6 टा रुबाइ, 3 टा गजल, 1 टा भक्ति गजल, 1टा विश्व गजलकार परिचय श्रृंखला आ 1टा अपने एना अपने मूँह अछि।

अक्टूबर 2015मे कुल 9 टा पोस्ट आएल जइमे आशीष अनचिन्हारक 6 टा गजल, 1 टा बाल गजल आ 2 टा विश्व गजलकार परिचय श्रृंखला आएल।

नवम्बर 2015 कुल  23 टा पोस्ट भेल जकर विवरण एना अछि--
गजलक आँगनमे नीरज कर्णजी एलाह आ हुनक 2 टा गजल आएल।
ओमप्रकाशजीक 12 टा पोस्टमे 5 टा रुबाइ आ 7 टा गजल आएल।
आशीष अनचिन्हारक 9टा पोस्टमे 6 टा गजल, 1 टा बाल गजल, 1 टा विश्वगजलकार परिचय श्रृंखला आ 1 टा पोस्टमे जियाउर रहमान जाफरीजीक गजल प्रस्तुत कएल गेल।

दिसम्बर 2015मे कुल 12 टा पोस्ट भेल जकर विवरण एना अछि--
ओमप्रकाशजीक 4 टा गजल आएल। जगदानंद झा मनु आ नीरज कर्णजीक 1-1 टा गजल आएल। आशीष अनचिन्हारक 6 टा पोस्टमे 5 टा गजल आ 1 टा बाल गजल आएल।


बुधवार, 11 मई 2016

गजल

कियो अपनेसँ क्लीन बोल्ड
कियो अनकेसँ क्लीन बोल्ड

कियो खेपैए कानि कानि
कियो हँसियेसँ क्लीन बोल्ड

कियो हाँ जी हाँ जीसँ जिंदा
कियो नहियेसँ क्लीन बोल्ड

कियो पसरल छथि झूठ मूठ
कियो सहियेसँ क्लीन बोल्ड

कियो छै पासी केर संग
कियो कटियेसँ क्लीन बोल्ड


सभ पाँतिमे 122+2221+21 मात्राक्रम अछि
तेसर शेरक पहिल पाँतिक अंतिम दीर्घकेँ लघु मानबाक छूट लेल गेल अछि।

सुझाव सादर आमंत्रित अछि

मंगलवार, 10 मई 2016

गजल

जनतन्त्रमे जन राज्यसँ डेरा रहल छै
अपने चुनल सरकारसँ पेरा रहल छै

कानूनमे अधिकार मुदा काजमे नै
स्वतन्त्रता अभ्याससँ हेरा रहल छै

ठेकान नै कुर्सीक कखन के लऽ जेतै
सत्ताक भागी जल्दिसँ फेरा रहल छै

अन्याय अत्याचारसँ पीडित गरीबे
नेताक चक्रव्यूहसँ घेरा रहल छै

ककरासँ जनता आब करत कोन उल्हन
रक्षक सभक बन्दूकसँ रेरा रहल छै

सेनूर मेटा गेल कतेकोक कुन्दन
सरकार नै लोकसँ टेरा रहल छै

2212-221-122-122

© कुन्दन कुमार कर्ण

www.kundanghazal.com

शुक्रवार, 6 मई 2016

श्री जगदीश चन्द ठाकुर 'अनिल' जीक लिखल गजल संग्रह "गजल गंगा" केर समीक्षा

सभसँ पहिने अनिल जीकेँ ई गजल संग्रह लिखबाक लेल बहुत बहुत बधाइ आ शुभकामना । मैथिली गजलक आकाश गंगामे एकटा आओर नव गजल संग्रह "गजल गंगा"क आगमन मैथिली गजलक दशा आ दिशा लेल बहुत शुभ संकेत अछि । एक बेर फेरसँ अनिलजी सहित आन सभ गजल प्रेमी मैथिलकेँ बधाइ । हमर अपने गजल ज्ञान बेसी नहि अछि तथापि एहि संग्रहक मादे हम किछु नीक बेजए कहैक चेष्टा कए रहल छी । आशा करैत छी जे 'अनिल'जी हमर धृष्टताकेँ क्षमा करता ।
कुल ८१ टा गजल अपना भितर समेटने ई संग्रह बहुते नीक-नीक गजलक सुन्दर गजल गंगा बनल अछि । आब एहि गंगामे असनान कतएसँ शुरू करी अर्थात हम अप्पन गप्पक शुरूआत कतएसँ आरम्भ करी । तँ हम शुरूआत करैत छी;
गजलक व्याकरण पक्षसँ :- आ गजलक व्याकरणक अ आ अछि मतला, काफिया, रदीफ, बहर आ मकता ।
सभसँ पहिने मतला, मतला अर्थात गजलक पहिल शेर जे कि काफिया आ रदीफक निर्धारण करैत अछि । एहि संग्रहक सभ गजलमे अनिलजी मतलाक पालन बहुते सुन्दरसँ केने छथि । आब,
काफिया आ रदीफ : संग्रहक शुरूआतेमे अनिलजी संग्रहकेँ बहरक भिन्नताकेँ आधारपर दू भागमे  बँटैत ई लिखने छथि जे काफिया आ रदीफक पालन भेल अछि । आ ठीके रदीफक पालन एहि संग्रहक सभ गजलमे बड़ नीकसँ भेल अछि । सगरो संग्रहकेँ पढ़ला बाद बुझलौं जे बहुतो गजलमे काफियाक पालन सेहो नीकसँ भेल अछि । ओतए ३७% गजलक काफियाकेँ ठीक करैक  गुँजाइश अछि । चुकी ई संग्रह एखन अप्रकाशित अछि तेँ जँ सम्भव होइ तँ अनिलजी किछु संशोधित कएला बाद एकरा आओर बेसी उत्कृष्ट बना सकैत छथि ।
जेना कि संग्रहक प्रथमे गजलक मतला-
"पढ़बाक मोन होइए <लिखबाक> मोन होइए
किछु ने किछु सदिखन <सिखबाक> मोन होइए"
एहिठाम काफिया भेल " e खबाक" मुदा गजलक आन आन शेर सबहक काफिया अछि बिछबाक, झिकबाक, निपबाक, <चिखबाक>, छ्टबाक, छिनबाक । एहिठाम चिखबाक छोरि कए बाद बाँकी ????
एकबेर भाग पहिलकेँ गजल संख्या ५ केर मतला देखू-
"काँट फूस अछि <भरल> बाटपर जहाँ-तहाँ
नढ़िया कूकुर <मरल> बाटपर जहाँ-तहाँ"
आब एहि मतलाक रदीफ भेल "बाटपर जहाँ-तहाँ" जे की दुनू पाँतिमे काॅमन अछि । आब काफिया भरल आ मरलसँ भेल "रल" । मुदा आन शेर सबहक काफिया अछि दखल, पड़ल, जड़ल, महल, उड़ल, गड़ल । एहिमे पड़ल, जड़ल, उड़ल, गड़ल तँ ठीक मुदा दखल आ महल ?????
आगू बढ़ैत गजल १४ केर मतला-
"बहरक झंझटिसँ हमरा आजाद करु
हम गजल छी हमरा नै बरबाद करु"
एहि मतलाक काफिया भेल आकार बाद द (ाद) मुदा एहि गजलक आगूक शेर सबहक काफिया लेल गेल अछि याद, फरियाद, अनुवाद, लाज, काज, बात । याद, फरियाद, अनुवाद ठीक तँ लाज, काज, बात ???
एक बेर गजल १६ केर मतला देखल जेए -
"कानहापर गंगाजल ल' क' <बढ़लौं>कोना-कोना
मोन पड़ैए ऐ पहाड़पर <चढ़लौं>कोना-कोना"
एहिठाम काफिया भेल बढ़लौं, चढ़लौंसँ "ढ़लौं" मुदा एहि गजलक आन-आन शेर सबहक काफिया अछि; खसलौं, बचलौं, कटलौं, रखलौं आब ई सबटा कतेक ठीक ????
कनेक आओर आगू बढ़ैत गजल २७ केर मतला-
"जुनि पूछू की <करै>छी हम
नित्य स्वयंसँ <लड़ै> छी हम"
एहि मतलाक काफिया भेल "0रै" वा "0ड़ै" । आब एहि गजलक आगूक शेर सबहक काफिया जे लेल गेल अछि- डरै, बुझै, जगै, कनै, बजै, नचै, जनै, तकै । एहिमे "ड़रै"केँ छोरि बाद बाँकी सबटाकेँ की ठीक कहल जेए ??????
गजल संख्या २९ केर मतला-
"एतेक बाझल किएक रहै छी <अपनामे> अहाँ
अबै छी बड़ी बड़ी राति क' <सपनामे> अहाँ"
एहिठाम काफिया भेल अकार संग "पनामे" । मुदा शाइर एहि गजलक आगाँक शेर सभमे काफिया लेने छथि; पटनामे, सतनामे, घटनामे, अयनामे, बधनामे, गहनामे । मतलाक हिसाबे आन आन शेरक काफिया मेल नहि क' रहल अछि ।
कनिक आगू जा कए गजल संख्या ४० केर मतला-
"चिन्ता तनकेँ <दागि> रहल अछि की करियौ
मोन कतौ नै <लागि>रहल अछि की करियौ"
एहि मतलासँ जँ काफियाक निर्धारण हुए तँ काफिया  भेल, "0ागि" । मुदा शाइर एहि गजलक आन-आन शेरक काफिया देने छथि; भागि, ताकि, मांगि, कानि, आबि, काटि, कहब बेजए नहि जे " भागि"केँ छोरि आन कोनो मतलासँ मेल खाइत नहि अछि ।
एहि तरहे कम बेसी एहि संग्रहक भाग १ केर गजल संख्या ६,९,१३,३०,३३,३५,३७,५१,५३,५४,५५ केर काफिया ठीक नहि अछि ।
आब एहि भागक अन्तिम गजल, गजल ६१ केर मतला एक बेर देखल जेए-
" नदी छोड़ि क' <नहरमे>एलौं
गाम छोड़ि क' <शहरमे>एलौं"
आब एहि मतलासँ काफियाक निर्धारण हुए तँ काफिया भेल "हरमे" मुदा शाइर एहि गजलक आगूक शेर सबहक काफिया लेने छथि- कहलमे, जहलमे, महलमे, जूड़शितलमे, सहलमे, गजलमे । मतला आ आन-आन शेरक बिचमे काफियाक कोनो मिलान नहि ।
आब आबी संग्रहक भाग दूमे । पहिल भाग जकाँ एहि भागमे सेहो शाइर मतला आ रदीफक पालन नीकसँ केने छथि । आब देखी काफिया तँ सबसँ पहिले भाग दू केर गजल संख्या ४ केर मतला-
"खेल सभटा <उसरि> जाइए
लोक सभटा <बिसरि> जाइए"
आब एहि मतलासँ काफिया भेल "सरि", मुदा आगाँक शेर सबहक काफिया अछि झखडि, ससरि, पिछरि, बिगरि, कुतरि, नचरि । मतलासँ मेल खाति एकौटा शेरक काफिया नहि ।
भाग २, गजल ६ केर मतला-
"जीवनकेँ <आशा> बदलल
प्रेमक <परिभाषा> बदलल"
एहिठाम काफिया भेल आकार बादक शा, षा अथवा सा । आशा, परिभाषा, बारहमासा, भाषा, अभिलाषा, तक तँ ठीक मुदा अन्तिम दूटा शेरक काफिया मौसा आ पाछाँ ।
आब एकबेर देखी भाग २, गजल १७ केर मतला-
"सभ जिवइत अछि सुबिधामे
हम रहइत छी दुबिधामे"
एहिठाम काफिया भेल उकारकेँ बाद "बिधामे" । सुबिधामे, दुबिधामे केँ बाद आगाँक शेरक काफिया अछि, कवितामे, अनकामे, अपनामे, पटनामे, बसुधामे । एहिमे सँ एक्कोटा काफिया मतलासँ ठीक मेल नहि कए रहल अछि ।
किछु एहने-सन भाग २ केँ गजल ९,१२,१८ आ २० केर काफिया सेहो ठीक नहि अछि । एहि संग्रहक अन्तिम गजलक मतला एकबेर देख लेल जेए-
"नीक बात किछु <कहू> अहाँ
गीत गजलमे <रहू> अहाँ"
कहू/रहूमे समान भेल "हू" । मुदा शाइर आन आन शेरक काफिया लेने छथि; चलू, धरू, करू, बड़ू । खाली  ू   ू   ू   ू तँ बिना "ह"केँ   ू   ू   ू   ू   के की कहल जेए ???
कतेक रास गजल एहनो अछि जाहिठाम काफिया तँ ठीक बनिरहल अछि मुदा काफियामे एक्के आखरक प्रयोग एकसँ बेसी बेर कएल गेल अछि । जेना भाग एकक गजल ९,२०,३६,४२ आ भाग दू केर गजल १० मे ।
मतला, रदीफ, काफियाक बाद गजल व्याकरणक एकटा मुख अंग अछि मकता । मकता, अर्थात गजलक अन्तिम शेर जाहिमे शाइर अपन नाम वा उप नामक प्रयोग केने होथि । एहि संग्रहक कोनो गजलमे मकता़क प्रयोग नहि कएल गेल अछि ।
आब आबी गजल व्याकरणक एकटा  पैधि कलापक्ष बहरपर । तँ जेना स्वयं शाइर स्वीकार केने छथि जे भाग १ केर ६१ टा गजलमे ओ सरल वार्णिक बहरक प्रयोग केने छथि । आ जेकर निर्वाह ओ बहुते नीकसँ केने छथि । आब भाग दू जाहिमे कुल २० टा गजल अछि, कोनो निर्धारित अरबी बहरक प्रयोग तँ नहि कएल गेल अछि, हाँ एहि गप्पक धियान जरूर राखल गेल अछि जे सब पाँतिमे समान मात्रा क्रम रहेए । अर्थात समान मात्रा क्रमक प्रयोग करैक सफल प्रयास केएने छथि । किछुठाम छोरि दी तँ । सबसँ पहिने तँ चन्द्रविन्दूकेँ जगह विन्दूक (अन्सुआर) प्रयोग कएल गेल अछि । ई शाइद टाइपिंग ग़लती हुए मुदा एहि कारणे बहुतो जगह मात्रा क्रम बिगैड़ गेल अछि । दोसर जतअ जतअ संयुक्ताक्षरक प्रयोग कएल गेल अछि ओतअ ओतअ मात्रा क्रम केर गलती भ गेल अछि ।
जेना गजल संख्या ५ केर अन्तिम शेरक प्रथम पाँति-
"मोन केर प्रश्न अछि कते"
२१    २१  २१ -  २ १२ (शाइर द्वारा मानल)
२१    २२  २१ - २  १२ (वास्तविक)
एकटा आओर उदाहरण गजल ११ केर तेसर शेर देखल जेए-
"देश हमर अछि प्राण भाइजी"
२१    १२ - २   २१-  २१२ ( शाइर द्वारा मानल)
२१    १२-  १ २ २१ - २१२ (वास्तविक)
एहने तरहक दोख गजल १२ केँ दोसर शेरमे आ १८ म' गजलकेँ दोसर शेरमे अछि ।
भाषा आ भाव पक्ष ; भाषापर जबरदश्त पकड़ लेने सम्पूर्ण संग्रहमे भाषाक एकरूपताक दर्शन होइत अछि । संग-संग नव रचनाकार सभ लेल सिखबाक लेल नीक प्लेटफार्म थिक अनिलजीक ई गजल संग्रह । अनिलजी बिना कोनो बेसाहल शव्दक प्रयोग केने एतेक सरल व्यबहारिक मैथिलीक शव्द सबकेँ गूंठि कए एकता नव शुरूआत केने छथि । समान्यसँ समान्य लोक, एक-एकटा गजलक एक-एकटा शेरक आनन्द ओहि छन अर्थात पढ़ैत वा सुनैत मातर ल'  सकैत अछि ।
भाषा शिल्पक गप्प करी तँ एक-एकटा छोट-छोट शेरमे एतेक बेशी गप्प नुकेएल अछि जे सुनि आ सोचि कए मनक भितर ख़ुशिक लाबा फुटै लगै छैक । एकटा उदाहरण एहि संग्रहक पहिल गजलक एकटा शेर-
"दुइ ठोर थिक अथवा तिलकोर केर तडुआ
होइए तँ लाज लेकिन चिखबाक मोन होइए"
मिथिलाक भोजनक पाक-कलाक श्रेष्ठताक प्रतिक तिलकोरक तडुआ । जेकर स्वाद, कुड़कूड़ेनाइक जवाव नै, सुनिते मातर मुँहमे पानि एनाइ स्वभाविक । स्वादिष्ट, पातर, कड़कड़ तिलकोरक तुलना पातर ठोरसँ । जवरदश्त उपमय आ उपमानक प्रयोग । ओकर बादो, लाज होइतो चिखबाक मोन ।एहेन एहेन सरल व पारम्परिक शव्द चयन हिनक गजल कौशलमे चारि चान लगा रहल अछि ।
सम सामयिक मिथिला मैथिलीक समाजमे जतेक कोनो समस्या वा वाद विवाद अछि सभपर अपन कलम चलबैत सुन्दर-सुन्दर शेरक द्वारा अनिलजी लोकक आ समाजक धियान ओहि दिस दियाबैमे सफल भेल छथि ।  समाजक अव्यवस्थाकेँ देख संघर्ष आ छिनबाक गप्प एक्के संगे कोना, देखू एहि शेरमे-
"आजादीक लेल एखनहँु संघर्ष अछि जरूरी
व्यर्थ गेल सभ मांगब छिनबाक मोन होइए"
संग्रहक नामे अनुरूपे एहि "गजल गंगा"मे अनिलजी सभ किछु समेटने एकरा सुन्दर रूप देबैमे सफल भेल छथि ।
@ जगदानन्द झा 'मनु'
 मो० +९१ ९२१२ ४६ १००६

गजल

आइ मैया बजेलनि हमरा
अपन दर्शन दिएलनि हमरा

मनक शक्ती सगरो छनमे
आइ मैया दखेलनि हमरा

हुनक महिमा कते छनि भाड़ी
ज्ञानकेँ दिप जरेलनि हमरा

पाप सगरो हमर बिसरा कय
छोट बेटा बनेलनि हमरा

दय क' ममता अपन आँचरकेँ
मनु करेजसँ लगेलनि हमरा
(मात्रा क्रम; 2122-122-22)
जगदानन्द झा 'मनु'

गुरुवार, 5 मई 2016

गजल

जाहि घरमे भूखल दीन अहाँ देखने होयब
हाड़ मांसक बनल मशीन अहाँ देखने होयब

एक पाइक लेल पराण अपन बेच दै छै ओ
गाम घरमे एहन दीन अहाँ देखने होयब

खेतकेँ जे कोड़ि उगा रहलै सोन सन उपजा
ओकरो मन सदति मलीन अहाँ देखने होयब

आँखिमे जनमल सपना अचके तोड़ि दै विधना
डरसँ तेँ हेरायल नीन अहाँ देखने होयब

छूबि दै सोना जँ अमित तँ बनै माँटिकेँ टुकड़ा
खूब एहन भाग्यसँ हीन अहाँ देखने होयब


२१२२-२११२-११२२-१२२२
अमित मिश्र

बुधवार, 4 मई 2016

"शोणितायल पैरक निशान" गजल संग्रहपर चर्चा

हम नै आलोचक छी । नै समालोचक छी । आ हुनका सभहँक जागिर सेहो छिनऽ नै चाहै छी । तथापि एकटा सर्जककेँ हिसाबसँ मैथिल साहित्यक चर्चित नाऔं सियाराम झा 'सरस' जीक लिखल गजल संग्रहपर संक्षेपमे आइ किछु चर्चा करऽ चाहब ।

तँ पहिने सरला प्रकाशनद्वारा सन् 1989 मे प्रकाशित कएल गेलह हुनक गजल संग्रह "शोणितायल पैरक निशान"के देखि-

एहि संग्रहमे कुल ४८टा गजल छै । जकरा आजाद गजलक श्रेणीमे राखि पढल जा सकैछ । किछु गजल भावक दृष्टिकोणे तँ महत्वपूर्ण छहिए किछु शेर सेहो हृदयकेँ छूअवला छै । जेना बतीसम् गजलक ई मतला देखू-

फूलवन मे एक भँवरा युग युग सँ रहए पियासल
जनु भोजक खास भडारी रहि जाय निखण्ड उपासल

पोथीमे 'गजले किएक ?' विषयपर 6 पेज खर्च कए लिखल गेल छै मुदा 'गजले किएक ?' तकर तथ्यपरक तर्क नै भेट सकल ।

बहरक निर्वहन तँ दूरक बात संग्रहक अधिकांश गजलमे गजलक आधारभुत निअम पालन नै कएल गेल छै । जेना गजल संख्या 2, 3, 8, 11, 14, 15, 18, 21, 23, 24, 25, 26, 27, 30, 35, 36, 45, 46, 47, 48 लगायतके गलजमे काफिया दोष तँ छहिए, बहुत रास गजलमे काफिया आ रदिफक ठेकान नै । ढेर रास शेरकेँ अर्थ सेहो अस्पष्ट बुझाइत । जेना तीसम् गजलक ई मतला देखू-

भूमि डोलल तँ बहुत किछु डोलल
भूमि डोलल तँ कहाँ किछू डोलल

कहब कने नीक नै लागत मुदा गजलक नामपर गजलक मजाक उडाएल जकाँ बुझाएत । तखन एकरा गजल संग्रह कहनाइपर प्रश्नचिन्ह लागि रहल छै । संगे शाइर गजलक विविध पक्षक सम्बन्धमे अनभिज्ञ रहल बात उजागर होइ छै ।

तेनाहिते नव आरम्भ प्रकाशनद्वरा सन् 2008 मे प्रकाशित हुनके गजल संग्रह 'थोडे आगि थोडे पानि'मे सेहो एहने गल्ती सभ दोहराएल भेटत ।

गजल

गजल

भगत छै एहि ठाँ डलवाह नै छै
सते ककरो कतौ परवाह नै छै

रहै खेतक हरियरी बिन मवेशी
दुइभ बड छै मुदा चरवाह नै छै

कहै मिथिलाक हम उद्धार करबै
मुदा भाषा अपनपर वाह नै छै

बनै छै खेत उस्सर आब मीता
पलायन कारणसँ हरवाह नै छै

कहै छै सब मुहेंपर गजल सुन्नर
मुदा पुनि पीठ पाछू वाह नै छै

१२२२-१२२२-१२२
अमित मिश्र

मंगलवार, 3 मई 2016

गजल

भुक्खे भेलै पीयर रौद
मरिए गेलै सुंदर रौद

सोहागिन छै कारी राति
विधवा भेलै उज्जर रौद

निकहा निकहा जै श्री राम
सौंसे पसरल  बाँतर रौद

अनका लेखें छै भगवान
हमरा लेखें पाथर रौद

सोभै एना जेना होइ
सिंदुर टिकुली काजर रौद

सभ पाँतिमे 2222-2221 मात्राक्रम अछि
सुझाव सादर आमंत्रित अछि

सोमवार, 2 मई 2016

गजल

बिनु पुछने हृदयसँ ककरो लगाबऽ चलल छलौँ हम
अनचिन्हार गाममे घर बनाबऽ चलल छलौँ हम

कारोबार एहि जिनगीक सुखसँ चलाबऽ खातिर
नेहक लेल मोल अपने घटाबऽ चलल छलौँ हम

चिन्हब लोककेँ कठिन अछि भरमसँ भरल जगतमे
बुझि कांटेक फूल हियामे सजाबऽ चलल छलौं हम

अपनो छाहपर जखन नै भरोस रहल मनुषकेँ
दोसरकेँ तखन हियामे बसाबऽ चलल छलौं हम

भगवानक दयासँ कुन्दन कपार हमर सही छल
अपने घेंचकेँ अनेरो कटाबऽ चलल छलौं हम

2221-2122-12112-122

© कुन्दन कुमार कर्ण
तोहर मतलब प्रेम प्रेमक मतलब जीवन आ जीवनक मतलब तों