गुरुवार, 31 अक्तूबर 2013

गजल

गजल-4

जौं बूझी त​ऽ जहरी जर्दा जड़ा रहल अछि लोकक जिनगी
सिगरेट  चीलम गांजा गला रहल अछि लोकक जिनगी

चौक​-चौबट्टी दारु केर भट्टी बनल बिनाशक बीखशाला 
चिखना कटिया तारी में लुटा रहल अछि लोकक जिनगी

रंग​-बिरही पुरिया पाकिट धऽ नवतुरियाक रंग देखू
चिबा-चिबा बिख गुटका चिबा रहल अछि लोकक जिनगी

नोतल केंसर आबि रहल छै फोंक करै लेल जिनगी कऽ
धन​-संम्पति लुटा लुटा कना रहल अछि लोकक जिनगी

नशाखोरक जिनगी देखियौ भरल जुआनी बूढ बनल​
दांत टूटि आ डांड़ लीबि लिबा रहल अछि लोकक जिनगी

फेर न भेटत जिनगी बाबू जौं एकरा बरबाद करब
तोरियौ नशाक जाल जे फंसा रहल अछि लोकक जिनगी

लय संकल्प करू दृढ़ निश्चय फेकी सभटा दुर्गुन राम
देखू सोचू बूझू कोनाक हरा रहल अछि लोकक जिनगी

वर्ण २२
तिथि: ३१/१०/२०१३

© राम कुमार मिश्र

बुधवार, 23 अक्तूबर 2013

गजल

लदने नै अनेरे लाश छी कान्हपर
जीवन केर सबटा आश छी कान्हपर

दिन भरि जे कमेलौं ओकरे दाम अछि
ढाकीमे बुझू नै घास छी कान्हपर

खूजल उक जकाँ  कोना फरफराइ छी
नै रखने मनुक्खक भाष छी कान्हपर

भैया भेल नेता आब नै हम डरब
रखने हाथ सदिखन खास छी कान्हपर

कुक्कुर पोसि नव-नव साहबी केर ‘मनु’
दू कट्ठा बचेने चास छी कान्हपर 

(बहरे कबीर, मात्रा क्रम – २२२१-२२२१-२२१२)
जगदानन्द झा ‘मनु’  

मंगलवार, 22 अक्तूबर 2013

सूर्योदयसँ पहिने सूर्यास्त

"सूर्यास्तसँ पहिने" नाम छन्हि राजेन्द्र विमल जीक गजल संग्रहक। संग्रहक भूमिका केर अंतिम भागमे विमल जी लिखै छथि जे मैथिलीक पहिल संग्रह अछि जाहिमे 100 ( एक सए ) गजल प्रस्तुत कएल गेल अछि। मुदा हमरा जनैत 1985मे प्रकाशित गजल संग्रह " लेखनी एक रंग अनेक " जे की रवीन्द्र नाथ ठाकुरकेँ छन्हि ताहिमे कुल 109टा गजल देल गेल छै संगे-संग कता सेहो छै। तखन विमल जीक पहिल सन घोषणाकेँ की मतलब ?
भए सकैए जे विमल जी एकरा नेपालीय मैथिलीकेँ संदर्भमे लिखने होथि मुदा तखन तँ आर गड़बड़ ............ कारण विमल जीक संग्रहमे कुल 4 ( चारि) टा गजल एहन अछि जे की दोहराएक गेल छै। मतलब जे जँ शुद्ध रूपसँ देखी तँ  संग्रहमे कुल ९६टा गजल अछि। हमरा विमल जी एहन लोकसँ उम्मेद नै छल जे " पहिल "केँ फेरमे पड़ि एहन काज करताह। इतिहासकेँ अपना फायदा लेल गलत करताह। आब नेपालक सुधि समीक्षक सभ कहताह जे की बात छै। हमर टिप्पणी मात्र इतिहास शुद्धता लेल छै। गजल संख्या 19 20 एकै गजल अछि। 29 30 एकै गजल अछि। 31 33 एकै गजल अछि। तेनाहिते 56 61 एकै गजल अछि।...
जँ गंभीरता पूर्वक पढ़ल जाए तँ राजेन्द्र विमल जीक कथित गजल संग्रह " सूर्यास्तसँ पहिने " मे बहुत रास एहन रचना भेटत जे की मात्र गीत अछि गजल नै। पता नहि चलि रहल अछि जे गीतकेँ गजल संग्रहमे कोन काज छै।.......................
राजेन्द्र विमल जीक कथित गजल संग्रहमे बहुत रास गीत सभ सेहो अछि। तँ देखल जाए कोन-कोन गीत अछि---पृष्ठ संख्या--1,2,3,14,19,20,23,27,34,42, 47 दोसर कथित गजल गीत अछि। तेनाहिते पृष्ठ संख्या--4,7,8,9,10,11,16,18,29,31,32,36,39 पर कथित रचना बिना बहरक गजल भए सकैत छल मुदा लेखक ओकरा कविता बला ढ़ाँचामे देने छथि। आन कथित गजल सभ गजलक ढ़ाँचामे अछि तँए हम मानबा लेल बाध्य भए जाइत छी जे कविताक ढ़ाँचा बला सभ कविता अछि। कारण विमल जीकेँ कविताक ढ़ाँचा गजलक ढ़ाँचामे नीक जकाँ अंतर बूझल छन्हि। एकर प्रमाण अपन कथित संग्रहमे सेहो देने छथि।
 
चूँकि ऐ आलोचनाक प्रारम्भिक भाग २०१२क मध्यमे फेसबुकपे देने रही आ तइ क्रममे एहमर एही आलोचनापर किछु टिप्पणी आएल। ऐ टिप्पणीमे प्रेमर्षि जी एकरा प्रेसक गड़बड़ी कहलन्हि। चलू ओतए धरि बात मानल जा सकै छै......................मुदा गीत कविताकेँ गजल कहि पाठककेँ बेकूफ बनेबाक रेकार्ड बनेबाक सेहन्ता किनका रहल हेतन्हि। आचार्य राजेन्द्र विमल जीकेँ वा प्रेस बलाकेँ.......................................... तँए जँ कदाचित संख्या बला गड़बड़ी प्रेससँ भेल छै तैयो गीत कविता बला गड़बड़ी तँ विमले जीक छन्हि। दोसर गप्प जे मानि लिअ प्रेसक गड़बड़ी छै संग्रहक सभ रचना गजल अछि तैयो संदेहक घेरामे विमल जी छथि मात्र विमल जी नै मैथिली गजल ( कथिते बला ) संबंधी ज्ञान सेहो संदेहक घेरामे अछि कारण जखन १९८५एमे १०९ बला गजल संग्रह प्रकाशित भेलै... तखन विमल जीक घोषणा मात्र पहिल बला बेमारीक लक्षण अछि। तँ आब चलू कने फेसबुक परहँक ओइ बहस दिस जे की आलोचनापर जे की हमरा धीरेन्द्र प्रेमर्षि जीक भेल छल---( हलाँकि बहस ठाम हम द्वारे दए रहल छी जैसँ पाठक बुझथि जे मैथिलीमे आलोचना नै सहबाक जड़ि कते गँहीरमे गेल अछि)------------
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 अइ बातपर एम्हर बहस भऽ चुकल छै। प्रकाशकक गलतीक कारणे किछु गजलक पुनरावृत्ति भेल छै। मैथिलीमे बड भारी समस्या छै जे लेखनमे जतेक ध्यान देल जाइ छै तते प्रकाशनक क्रममे होबऽ वला काजमे नइ। जहाँतक इतिहासक जे बात अछि ताहि सन्दर्भमे शायद अहाँ जनैत हएब जे रवीन्द्रनाथ ठाकुरजीक पोथीमे गजल कत शायरी सेहो सम्मिलित छनि। नेपालक सन्दर्भमे पहिल सम्पूर्ण मैथिली गजल सङ्ग्रह अवश्य कहल जा सकैए। ओना मिश्रित संग्रहक रूपमे रामभरोस कापडि राजविराजक एक कोनो माझी सेहो गजलक पोथी बाहर कऽ चुकल छथि।
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Ashish Anchinhar कता शायरी छोड़ि कुल 109टा गजल देने छथिन्ह रवीन्द्रनाथ ठाकुर। प्रकाशक केर गलती भए सकै छै मुदा भूमिका तँ विमले जीक छन्हि।...
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Ashish Anchinhar शायद अहाँ ईहो जनैत हएबै जे कता, रुबाइ अन्य शायरी विधा ( खाली नज्म छोड़ि) गजलक अंतर्गत अबै छै।...
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 आशिषजी, अहाँ ओइ माध्यमसँ काज कऽ रहल छी जकर सम्पूर्ण नाथ, पगहा अहाँक हाथमे रहैए। मुदा छापा माध्यम एहन होइ छै जइमे अहाँक सभ कएल धएल पानि भऽ सकैत अछि जँ प्रेसमे काज कएनिहार किछु गडबड कऽ देलक तँ। भूमिका बाँकी सभ चीज छपि गेलाक बाद नइ भऽ सामान्यतया आरम्भेमे लिखल जाइ छै। विमल सर सएटा गजल तदनुरूप भूमिका लीखिकऽ छापऽ लेल देने रहखिन। प्रकाशनमे संलग्न व्यक्तिसभ मेहीँ आँखिएँ नहि देखि सकल हेथिन किछु गजलक पुनरावृत्ति भऽ गेल हेतै। अहाँक जानकारीक लेल कहि दी जे गलती सभसँ पहिने हमरा विमले सर देखौलनि। आब अहाँक कहब जे जखन अइ तरहेँ गलती भऽकऽ आबि गेलै तँ की विमल सर सभ किताबके जरा दितथिन? क्यो व्यक्ति जँ तकनिकी शारीरिक रूपेँ सभ कार्य स्वयं करबामे सक्षम नहि अछि तँ एकर मतलब नइ होइ छै जे ओकर कोनो एक बातकेँ लऽकऽ ओकरा लुलुआ देल जाए। अहाँक जानकारीक लेल इहो कहि दी जे विमल सरक दू सयसँ बेसी गजल जहिँतहिँ छिडिआएल पडल हेतनि। हँ, जँ अहाँके किछु कहबाके छल तँ ओइ पोथीक भूमिकाक सन्दर्भमे कहि सकैत छलियैक जे बहुत विद्वतापूर्णसन देखल जाइतहुँ पोथीमहक गजलसभसँ तादात्म्य स्थापित नहि कऽ पबैत अछि।
51 minutes ago · Unlike · 1
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Ashish Anchinhar अहाँ एकरा गलत संदर्भमे लए रहल छिऐ। मात्र इतिहास शुद्धता लेल छै। व्यतिगत रूपसँ ऐमे हम किछु नै कहि सकैत छी।..
41 minutes ago · Like · 1
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Dhirendra Premarshi अहाँके पल्लवक गजल अंक भेटल?
37 minutes ago · Unlike · 1
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Dhirendra Premarshi जखन अहाँ 'प्रकाशक केर गलती भए सकै छै मुदा भूमिका तँ विमले जीक छन्हि।' लिखबै तँ ओकर आशय गलते लगै छै। अभियानीसभकेँ बहुतो बातक अन्तर्वस्तुकेँ सेहो बूझैत इतिहासक शुद्धिकरण करैत चलबाक चाही।
37 minutes ago · Unlike · 1
वार्तालापसँ एकटा गप्प ईहो निकलैए जे प्रेमर्षिजीकेँ गजल परम्पराक कोनो जानकारी नै छन्हि। अरबी-फारसी-उर्दूमे " दीवान " शब्दक प्रयोग कएल जाइत छै जैमे गजल, कता, रुबाइ, नज्म आदि सभ रहै छै। जेना दिवाने गालिब ( मने गालिब केर एहन संग्रह जैमे गजल, कता, रुबाइ, नज्म आदि संग्रहीत छै, तेनाहिते दीवाने मीर, दीवाने नासिख, आदि भेल। हँ, आधुनिक युगमे किछु उर्दूक गजलकार सभहँक एहनो दीवान अछि जैमे खाली गजल छै। मुदा तँए अहाँ कहि देबै जे नै खाली पोथीमे गजले रहबाक चाही तँ से कतौसँ उचित नै.......... एकटा गप्प आर प्रेमर्षिजी विमलजीक समर्थनमे एते धरि कहै छथि जे.." क्यो व्यक्ति जँ तकनिकी शारीरिक रूपेँ सभ कार्य स्वयं करबामे सक्षम नहि अछि तँ एकर मतलब नइ होइ छै जे ओकर कोनो एक बातकेँ लऽकऽ ओकरा लुलुआ देल जाए। " आब देखू जे जँ अधारपर हम विमलजीकेँ जँ लुलुआ (आलोचनाकेँ हम लुलुएनाइ नै बूझै छी प्रेमर्षिजीक विचार छन्हि) नै सकै छी तँ फेर मात्र एकटा अधारपर प्रेमर्षिजीक रवीन्द्रनाथ ठाकुरकेँ इतिहाससँ बाहर किएक ' देलखिन्ह? प्रश्नक उत्तर हम मात्र भविष्यसँ चाहै छी।
वार्तालापकेँ कात करैत हमरा लोकनि फेर चली विमल जी पोथीपर।
विमलजी अपन पोथीमे गजलक परिभाषा, तत्व, बहर आदिक वर्णन केने छथि (मुदा अपूर्ण रूपसँ खास ' बहरक लेल) ओना विवरण अनचिन्हार आखरपर २००९सँ प्रकाशित छै विमल जीक पोथी २०११मे आएल छन्हि। विमलजी स्वयं इंटरनेट फेसबुकपर छथि। मुदा विमलजी द्वारा देल गेल विवरण पढ़लापर प्रश्न अबैत अछि जे पोथीक भित्तर देल गेल गजल सभमे बहर, तत्व आदि किएक नै अछि ? एकर बहुत रास कारण ' सकैए मुदा हमरा बुझने सभसँ प्रमुख कारण छै जे मात्र विद्वता देखब' लेल विवरण कतौसँ सायास लेल गेल छै ( मने ईंटा किनको, सीमेन्ट किनको घर बनल विधायक जीक) तँए भूमिकामे देल गेल विवरण भित्तरक गजल सभमे दूर-दूर धरि ताल-मेल नै बैसैए।

पाँति धरि अबैत-अबैत अहाँ सभ बूझि गेल हेबै जे गजल संग्रहमे बहुत झोल-झाल छै। मात्र व्याकरणक दृष्टिएँ नै नैतिक दृष्टिकोणसँ सेहो। ओना जँ भावना आ व्याकरण ठीक रहैत तँ ऐ संग्रहक किछु गजल नीक बनि पड़ैत जेना की ५३म गजल, ८३म गजल आदि। किछु गजल नीक जकाँ नेपालक राजनीतिकेँ घेरने अछि तँ किछु गजल पूरा मैथिली समाजकेँ । भाव आ बिंब तँ प्रायः मैथिलीक हरेक लेखकक नीक रहैत छनि तँ हिनकर किए खराप हेतन्हि। हिनको भाव पक्ष नीक छन्हि।
तोहर मतलब प्रेम प्रेमक मतलब जीवन आ जीवनक मतलब तों