शुक्रवार, 5 अगस्त 2022

गजल

बोल हुनकर मधुरक पथार राजा जी
भोट दैते जरलै कपार राजा जी

की कहू हम कहि ने सकब अते खिस्सा
बातमे बाते छै हजार राजा जी

भूख लागल छै केकरो मुदा इम्हर
आन आगू लगलै सचार राजा जी

छल भरोसा पैकार संग सरकारक
आब भेलहुँ बहुते लचार राजाजी

कोन कारण आएल छथि हमर आँगन
भेल हेतै कोनो नियार राजाजी

सभ पाँतिमे 2122-2212-1222 मात्राक्रम अछि। मतलाक काफिया आ रदीफ लोकधुनसँ प्रेरित अछि। सुझाव सादर आमंत्रित अछि।

 

सोमवार, 1 अगस्त 2022

पाठककें डेरेबाक उपकरण थिक ई भूमिका (?)

 (विदेहक 339म अंक 1/2/2022 मे प्रकाशित हमर आलोचना "अनुशासन+विद्रोह=परिवर्तन : अनुशासनहीनता+विद्रोह=अराजकता"पर जगदीश चंद्र ठाकुर अनिल जीक ई टिप्पणी जे कि हुनकर फेसबुक वालसँ साभार लेल गेल अछि। हमर आलोचना पढ़बाक लेल शीर्षकपर क्लिक करू।

(अरविन्द ठाकुरजीक भूमिका आ आशीष अनचिन्हार जीक आलोचनापर पाठकीय प्रतिक्रिया )

मैथिली साहित्यमे एकटा महत्वपूर्ण नाम अछि अरविन्द ठाकुर | अरविन्द जीक नव पोथीक नाम अछि ‘मीन तुलसी पातपर’ | एहि झंझटिया नामक की मतलब से हमरा एखन धरि नहि बुझबामे आयल अछि | पोथी हमरा जहिया भेटल तहिये आरम्भसँ पढ़ब आरम्भ केलहुँ त डेराय  गेलहुँ | 51पृष्ठमे गजल आ 37 पृष्ठमे भूमिका ? किछु गोटे रचनासँ आनन्दित करबाक स्थानपर भूमिकासँ पाठककें आतंकित करबाक प्रयासमे लागल रहैत छथि | ई प्रवृति बढ़ि रहल अछि | हमरा भूमिका पढ़बाक साहस नहि भेल | कतहु-कतहुसँ पढबाक कोशिश केलहुँ त मैथिली गजलक लेखनमे हिन्दी आ उर्दू साहित्यक भारी-भारी नाम देखिक’ पोथीक नामक किछु सार्थकता प्रगट भेल | हमरा त अरविन्द जीक मैथिली गजल पढबाक छल, तें पोथीक 44 पृष्ठक बाद पढ़ब आरम्भ केलहुँ | जे पाँती सभ आकृष्ट केलक  से अहूँ सभकें कहैत छी :


‘बाहर हँसू नुका कय कानू

सीख इएह बुनियादी भेटल’

‘हक ओकर छै लड़ि कए लेतए

स्त्री छै ओ दासी नै छै’

‘यश कीर्तिक लिलसा छै वाजिब

शायर छै सन्यासी नै छै’

‘पागक थहाथहीमे भेटतह ने मुकुट अरबिन

एहि क्षेत्रमे बसय छै भुमिहार बहुत कम सम’

‘सुखक बोझा काँट-सन भए जाइत एकदिन

अहाँ एकरा किए नहि बाँटल करै छी’

‘फूलक बिछौना की करब

लए कए खेलौना की करब’

‘अभिव्यक्ति बन्हकी राखि कए

चानी आ सोना ई करब’

‘देह केर धर्म चिबाबैत रहल शील हमर

हुनका परदेशसँ आबयमे बहुत देर भेलय’

‘ज्वालामुखीक संगतिया हमर गजल रहल छै

किछु आगि परसबा लै अपनेक शहरमे छी’

‘कल्पना आ व्याकरण के खेल नहि छै शायरी

टीस मारत शब्द तखनहि कविक जँ भोगल हेतय’

‘करए खुनीमा जानक गप

आगि लगा कए पानिक गप’

‘ताली पीट करए हिजड़ा सभ

वंश सखा- संतानक गप’

‘अप्पन घरमे चाउर गिनि कए अदहन दए छथि

भोज-भातमे व्यंजन सभ अह्गर चाहय छथि’

‘राजधानीमे करय छी सएह गामहुमे करू

देह भैंसुरकें परसलौं, साँयसँ नखरा किए’ 

उपरोक्त पाँती सभमे जे भाव व्यक्त भेल अछि से कोनहु-ने-कोनहु रूपमे हुनक कविता आ कथामे सेहो अवश्य आएल हेतनि त की हुनक सभटा रचनाकें गजल कहल जाएत ? नहि, ओ अपनहु नहि कह’ चाह्ताह | तखन कविताकें कविता कहब, कथाकें कथा कहब, गजलकें गजल कहब कट्टरता कोना भेलै ? भूमिकामे एक ठाम कहल गेल अछि ‘चूल्हिमे जाओ परम्परा |’ एकर की मतलब ? सभ रचना अथवा सभ नीक बात कि सभ व्यंग्य रचनाकें गजले कहल जाए ? तखन दोहा,चौपाइ,मुक्तक,कहमुकरी,कविता, दीर्घ कविता, खण्ड काव्य,महाकाव्य, बीहनि कथा,लघु कथा,दीर्घ कथा नाटक,उपन्यास, - एते नाम रखबाक की अर्थ ? जतेक रचना अछि, सभकें गजल कहू, चूल्हिमे जाए दियौ परम्पराकें | जँ रदीफ़ आ काफिया मात्रसँ कोनो रचना गजल भ’ जइतै, तखन श्रद्धेय मार्कण्डेय प्रवासीजी आ भाइ बुद्धिनाथ मिश्र जीक  कएटा रचना गजल कहबैत, मुदा दुनू गोटे अपन ओहि रचना सभकें गीतक श्रेणीमे रखने छथि | प्रवासीजी विजयनाथ झाजीक गीत-गजल संग्रह ‘अहींक लेल’क प्राक्कथनमे लिखने छथि :

‘विद्यापतिक गीतमे जे भनिता अछि तकरे गजलमे ‘तखल्लुश’कहल जाइछ | अही हेतु हमर मान्यता अछि गजलक आविष्कारक सेहो विद्यापतियेकें मानल जयबाक चाही |’ त भनिताक उपस्थितिक आधारपर विद्यापतिक सभ रचनाकें गजल कहल जाए ? आशीष अन्चिहार जीक आलोचना पढ़िक’ अरविन्द जीक 37 पृष्ठक  भूमिका पढबाक साहस भेल | अरविन्द जी सोचने छल हेताह जे अज्ञेय,गोंडवी,अली सरदार जाफरी आदिकें  कियो नहि पढने हेताह जे हमरा द्वारा उठाओल बात सबहक जबाब देबाक साहस करताह | आब हमरा लगैत अछि जे हुनक भ्रम दूर भेल हेतनि आ हुनक सभ प्रश्नक उतारा भेटि गेल हेतनि |

एहि आलोचनामे अरविन्दजीक अतिरिक्त अन्य लोक सभक सेहो सभ प्रश्नक उतारा अछि  जे बहरक ध्यान नहि रखबाक अपन रचनाक कमजोर पक्षकें  महिमा मंडित करबाक प्रयास केने छथि अथवा क’ रहल छथि अथवा भविष्यमे करबाक विचार मोनमे पोसने छथि | रचनाक कमजोर पक्षक आलोचनाकें अपन व्यक्तित्व अथवा सम्पूर्ण कृतिसँ जोड़िक’ नहि देखल जेबाक चाही | एकरा विधाकें सशक्त बनयबाक दृष्टिसँ देखल जयबाक आवश्यकता अछि | अरविन्द ठाकुर जीक पोथी ‘मीन तुलसी पातपर’मे ‘संहिताक उपनिवेश नहि अछि साहित्य’ शीर्षकक अन्तर्गत रचनाकारक भूमिका-आलेखपर आशीष अनचिन्हार जीक आलोचना पढलाक बाद आब जँ कियो ईहो तर्क देबाक कोशिश करताह जे गीताक फलाँ अध्यायक फलाँ श्लोकमे कृष्ण भगवान कहने छथि जे सभ नियम-तियम तोड़ि-ताड़िक’ हमरा शरणमे आबि जाउ, अहाँकें बहर-तहरक चिन्ता करबाक काज नहि अछि, त हुनको सय बेर सोच’ पड़तनि | वस्तुतः आशीषजीक एहि आलोचनामे आलोचना थोड़ अछि,ज्ञान बेशी अछि जकर अध्ययन केलासँ स्पष्ट भ’ जाइत अछि जे गजलमे बहरक पालन कतेक आसान अछि, बस बहरक लेल अहाँकें  मानसिक रूपसँ  तैयार हेबाक अछि, कोनो बहन्ना नहि बनेबाक अछि, कोनो गवाहक खोजमे नहि बौएबाक अछि | अरविन्दजी गबाह तकबाक लेल जतेक समय आ शब्द खर्च केलनि अछि ओहिसँ बहुत कम समय आ थोड़ प्रयासमे गजल सभ बहरयुक्त भ’ जैतनि | मुदा अरविन्द भाइक भूमिकासँ ई त बहुत स्पष्ट भेल अछि जे गद्यपर हिनक पकड़ आ समर्पण बहुत  प्रशंसनीय छनि जकर विस्तृत विवरण अछि अरविन्द जीक लेल आशीष अनचिन्हार जी द्वारा संपादित पोथी ‘स्वतंत्रचेता’ |

हमरा अरविन्द जीक कविता, कथा आ व्यक्तित्वक विशिष्टताक सम्बन्धमे अही पोथीक माध्यमसँ विस्तारसँ जनबाक अवसर भेटल अछि | बहुत सुन्दर कागत पर शशि प्रकाशन,कालिकापुर,सुपौल द्वारा प्रकाशित आ आर.के.आफसेट प्रोसेस.नवीन शाहदरा,दिल्ली-32 द्वारा मुद्रित 176 पृष्ठक  ई पोथी ‘स्वतंत्रचेता’ अरविन्द जीक बहुमुखी प्रतिभा आ विलक्षण शब्द-कौशलक जानकारी दैत अछि जे  हिनक व्यक्तित्व आ कृतित्वक प्रति ककरहु मोनमे इर्ष्याक भाव उत्पन्न करबाक सामर्थ्य रखैत अछि  |  

जगदीश चन्द्र ठाकुर ‘अनिल’

रवीन्द्रनाथ ठाकुर जीक "कथित गजल"

रवीन्द्रनाथ ठाकुर मैथिलीमे गीत लेल जानल जाइत छथि मुदा आनो विधामे लिखने छथि जाहिमे एकटा "कथित गजल" सेहो अछि। कथित गजल एहि लेल जे ओ अपने एकरा गजल कहने छथि आ हुनकर समर्थक सेहो मुदा वस्तुतः ओ रचना सभ गजल नै छै। ओ रचना सभ गजल किए नै छै तकर विवेचना करबासँ पहिने आन गजलकार सभक किछु शेर देखू। ओना ई शेर सभ हम अपन हरेक लेखमे दैत छियै कारण मैथिली भाषाकेँ किछु अपढ़ लोक सभ मात्र लिखबाक भाषा बना देने छै पढ़बाक नै। तँइ हम सदिखन हम ई मानि कऽ चलैत छी जे हमर पुरना लेख कियो नै पढ़ने हेता। आ तँइ बेर-बेर हम एकै तथ्यकेँ हरेक आलेखमे दोहराबैत छी जाहिसँ कियो लेखनी-वीर हमरा ई नै कहि सकथि जे हम नै पढ़ने रही। ओना मैथिल तँ बस मैथिल छथि ओ केखनो किछु कहि सकैत छथि। तँ आबी किछु शेरपर। पं जीवन झाजीक एकटा गजलमे वर्णित विरहक नीक चित्रण देखू—


अनंङ्ग सन्ताप सौं जरै छी अहाँक चिन्ता जतै करै छी
सखीक लाजे ततै मरै छी जतै कही वा जतै कहाबी

एहि शेरक मात्रक्रम 12+122+12+122+12+122+12+122 अछि आ पूरा गजलमे एकर प्रयोग भेल अछि। झाजीक दोसर गजलक एकटा आर विरहपरक शेर देखू—

अहाँ सों भेंट जहिआ भेल तेखन सों विकल हम छी
उठैत अन्धार होइए काज सब करबामे अक्षम छी

एहि शेरक मात्राक्रम 1222+1222+1222+1222 अछि आ पूरा गजलमे एकर प्रयोग भेल अछि। उपरक एहि तीन टा उदाहरणसँ स्पष्ट अछि जे पं. जीवन झाजी मैथिली गजल आ गजलक व्याकरणक बीच नीक ताल-मेल रखने छलाह। फेर हुनक तेसर शेरक एकटा आरो शेर देखू जे कि प्रेममे पड़ल नायक-नायिका मनोभाव अछि—

पड़ैए बूझि किछु ने ध्यानमे हम भेल पागल छी
चलै छी ठाढ़ छी बैसल छी सूतल छी कि जागल छी

एहि शेरक मात्राक्रम 1222+1222+1222+1222 अछि आ पूरा गजलमे एकर प्रयोग भेल अछि। कविवर सीताराम झाजीक किछु शेरक उदाहरण देखू—

हम की मनाउ चैती सतुआनि जूड़शीतल
भै गेल माघ मासहि धधकैत घूड़तीतल
`
मतलाक छंद अछि 2212+ 122+2212+ 122 आब एही गजलक दोसर शेर मिला लिअ-

अछि देशमे दुपाटी कङरेस ओ किसानक
हम माँझमे पड़ल छी बनि कै बिलाड़ि तीतल

पहिल शेर आइयो ओतबे प्रासंगिक अछि जते पहिले छल। आइयो नव साल गरीबक लेल नै होइ छै। दोसर शेरकेँ नीक जकाँ पढ़ू आइसँ साठि-सत्तर साल पहिलुक राजनीतिक चित्र आँखि लग आबि जाएत। स्पष्ट अछि जे बिना व्याकरण तोड़ने कविवरजी प्रगतिशील भावक गजल लिखला जे अजुको समयमे ओतबे प्रासंगिक अछि जतेक की पहिने छल। जे ई कहै छथि जे बिना व्याकरण तोड़ने प्रगतिशील गजल नै लिखल जा सकैए हुनका सभकेँ ई उदाहरण देखबाक चाही। काशीकान्त मिश्र "मधुप" जीक दूटा शेर देखल जाए—

मिथिलाक पूर्व गौरव नहि ध्यान टा धरै छी
सुनि मैथिली सुभाषा बिनु आगियें जड़ै छी

सूगो जहाँक दर्शन-सुनबैत छल तहीँ ठाँ
हा आइ "आइ गो" टा पढ़ि उच्चता करै छी

एहि गजलमे 2212-122-2212-122 मात्राक्रम अछि जे कि गजलक हरेक शेरमे पालन कएल गेल अछि। देखू मधुपजी भिन्न स्वर लऽ कऽ आएल छथि मुदा बिना व्याकरण तोड़ने। ई शेर सभ छल रवीन्द्रनाथजीक पूर्वज गजलकार सभहक। आब आबी हुनकर किछु समकालीन (उम्रमे किछु छोट वा नमहर) गजलकारक शेर सभपर। योगानंद हीराजीक गजलक दू टा शेर—

मोनमे अछि सवाल बाजू की
छल कपट केर हाल बाजू की

मतलाक दूनू पाँतिमे 2122-12-1222 अछि आ दोसर शेर देखू-

छोट सन चीज कीनि ने पाबी
बाल बोधक सवाल बाजू की

हीराजी दोसर गजलक दू टा आर शेर देखू—

शूल सन बात ई
संसदे जेल अछि

आब हीरा कहै
जौहरी खेल अछि

एहि गजलक हरेक शेरमे सभ पाँतिमे 2122+12 मात्राक्रम अछि। आब अहीं सभ कहू जे हीराजीक गजलमे समकालीनता, प्रगतिशीलता आदि छै कि नै। पहिल शेरमे शाइर वर्तमान जीवनमे पसरल अजरकताकेँ देखा रहल छथि तँ दोसर शेरमे अभावक कारण बच्चा धरिकेँ कोनो चीज नै दऽ पेबाक विवशता छै। तेसर शेर आजुक विडंबना अछि। संसद वएह छै जे पहिने छलै मुदा सांसद सभ आब अपराधी वर्गक अछि तँइ शाइरकेँ ओ जेल बुझा रहल छनि। चारिम शेरमे शाइर प्रायोजित प्रसंशाक खेलकेँ उजागर केने छथि। ई खेल साहित्य कि आन कोनो क्षेत्रमे भऽ सकैए। जगदीश चंद्र ठाकुर "अनिल" जीक गजलक दू टा शेर—

टूटल छी तँइ गजल कहै छी
भूखल छी तँइ गजल कहै छी

मतलाक दूनू पाँतिमे 2222 +12 + 122 छंद अछि आ एकर दोसर शेर देखू—

ऑफिस सबहक कथा कहू की
लूटल छी तँइ गजल कहै छी

भूख केर कथा सेहो व्याकरणयुक्त गजलमे। सरकारी आफिसक कथा सभ जनैत छी। अनिलजी एहू कथाकेँ व्याकरणक संग उपस्थित केने छथि। समकालीन स्वरे नै कालातीत स्वरक संग विजयनाथ झा जीक ऐ गजलक दूटा शेर देखू—

चिदाकाश मधुमास मधुमक्त मति मन
विभव अछि विविधता उदय ह्रास अपने

मतलाक छंद अछि 122-122-122-122 आब दोसर शेरक दूनू पाँतिकेँ जाँच कऽ लिअ संगे संग भाव केर सेहो-

खसल नीर निर्माल्य निधि नोर जानल
सकल स्रोत श्रुति विन्दु विन्यास अपने

जँ आदि शंकराचर्य केर मातृभाषा मैथिली रहितनि तँ शायद विजयनाथेजी सन लिखने रहितथि ओ। आ एहिठाम हम रवीन्द्रनाथजीक कनिष्ठ मने एखनुक गजलकार सभहक शेर नै दऽ रहल छी मुदा उपरका उदाहरण सभसँ स्पष्ट अछि जे मैथिली गजलमे शुरूआतेसँ बहरक पालन भेल छै। संगे-संग उपरक एहि उदाहरण सभसँ ई स्पष्ट भऽ गेल हएत जे व्याकरण केखनो भाव वा विचार लेल बाधक नै होइ छै। हँ, हजारक हजार रचनामे किछु एहन रचना बुझाइ छै जाहिमे व्याकरणक कारण भाव बाधित भेलैए मुदा ई तँ रचनाकारक सीमा सेहो भऽ सकै छै। रचनाकारक सीमा लेल कोनो विधाक नियमकेँ खराप मानब कतेक उचित? ई उदाहरण ईहो स्पष्ट करैए जे 1970 केर बाद गजलक नामपर जे पीढ़ी आएल से ने गजल विधाक अध्य्यन केलक आ ने अपनासँ पहिनेक गजलकारक अध्य्यन केलक। रवीन्द्रनाथ ठाकुर समेत अधिकांश कथित गजलकार खाली फतवा देबामे व्यस्त रहलाह। आब किछु हिंदी गजलक व्याकरण सेहो देखी। सूर्यकांत त्रिपाठी निरालाजीक ई शेर देखू-
भेद कुल खुल जाए वह सूरत हमारे दिल में है
देश को मिल जाए जो पूँजी तुम्हारी मिल में है

मतला (मने पहिल शेर)क मात्राक्रम अछि--2122+2122+2122+212 आब सभ शेरक मात्राक्रम इएह रहत। एकरे बहर वा की वर्णवृत कहल जाइत छै। अरबीमे एकरा बहरे रमल केर मुजाइफ बहर कहल जाइत छै। निरालाजी जाहि बहरमे लिखने छथि ठीक ताही बहरमे हुनकोसँ पहिने हसरत मोहानीजी अपन ई गजल लिखने छथि जकर शेर सभकेँ जीहपर छनि-


चुपकेचुपके रात दिन आँसू बहाना याद है
हमको अब तक आशिक़ी का वो ज़माना याद है

एकर बहर अछि 2122+2122+2122+212 आ अही बहरमे दुष्यंत कुमार लिखने छथि

हो गई है / पीर पर्वत /सी पिघलनी / चाहिए,
इस हिमालय / से कोई गं / गा निकलनी / चाहिए

2122 / 2122 / 2122 / 212 मने एकै बहरपर तीन गजल आ तीनू गजलक भाव ओ प्रभाव अलग-अलग। निश्चित तौरपर मैथिली गजलक शुरूआत प्रभावी छल मुदा बादमे हिनका सभ द्वारा नाश कऽ देल गेल।

रवीन्द्रजीक कथित गजल संग्रह नाम छनि "लेखनी एक रंग अनेक"। एहि पोथीक संक्षिप्त भूमिकामे लेखक लिखै छथि जे "..मैथिली गजल लेल अरबी-फारसीक दुआर पर नहि लऽ गेलहुँ अछि तें एकटा हार्दिक संतोष अछि"..। आब लेखक ई किएक लिखलनि से ठोस रूपे जानब संभव नै अछि मुदा हम एकरा दू रूपे देखै छी। बहुत संभव जे एकटा कोनो सही हो मुदा ताही संगे हम दूनू कारणकेँ सेहो खंडन करब। पहिल कारण ई भऽ सकैए जे ओ गजलक व्याकरणपर कटाक्ष केने होथि आ जकरा पालन नै केलापर संतोष व्यक्त केने होथि। जँ ई कारण मानल जाए ओहि कथन लेल तखन निश्चित रूपे ई मानल जाएत जे रवीन्द्रनाथजीकेँ भारतीय परंपरा खास कऽ संस्कृत परंपराक कोनो ज्ञान नै छलनि, कारण जे संस्कृतक वार्णिक छन्द छै सएह अरबी-फारसीक बहर छै। जे तुक छै सएह काफिया छै। जेना संस्कृतक छन्दमे किछु शिथिलताक प्रावधान छै तेनाहितो बहरक पालनमे सेहो छूट वा शिथिलताक प्रावधान छै। बस नामक भेद देखि अलग मानि लेब आ ओकरासँ अलग भऽ संतोष कऽ लेब कतेक उचित? वार्णिक छंद अथवा बहरक माने छै निर्धारित ओ निश्चित मात्राक्रममे रचना रचब।

दोसर कारण ई भऽ सकैए जे ओ अपन रचनामे खाँटी मैथिली शब्द लेने होथि आ ताहि लेल संतोष व्यक्त केने होथि। मुदा प्रश्न उठै छै जे गजल कोन भाषाक शब्द छै? आ अहीठाम रवीन्द्रजीक संतोषपर प्रश्नचिह्न लागि जाइत छनि। जाहिमे मैथिलीमे 30-40 प्रतिशत शब्द फारसीक छै ताहि भाषा लेल एहन घोषणा किएक? जे शब्द हमरा भाषामे नै अछि से आन भाषासँ एबाके चाही। हँ, कोनो अवांछित शब्द नै एबाक चाही से ध्यान रहए। ओनाहुतो रवीन्द्रजी आनो भाषाक ओहनो शब्द सभ लेने छथि जे कि किछुए बर्खसँ मैथिलीमे प्रचलित अछि जेना- भँवरा, यार, मस्ती, बहार, लालसा... आदि-आदि। तँइ हमर मानब अछि जे शब्दक स्तरोपर रवीन्द्रजीक संतोष एकटा फतवा मात्र छनि।
रवीन्द्रजी एहि कथित संग्रहमे बहुत रास विसंगति अछि। एकटा एहनो विसंगति अछि जे प्रायः हरेक लेखक केर उठानमे होइत छै आ ओ विसंगति अछि अपन कोनो पूर्वज रचनाकारक पाँतिकेँ सीधे अनुवाद कऽ देब। एहन हमरो संग भऽ चुकल अछि मुदा आइसँ सात बर्ख एकर पहिचान कऽ हम फेसबुकपर सार्वजनिक रूपे सभकेँ सूचित केने छियनि। जखन कि रवीन्द्रजी एहि विसंगतिकेँ चिन्हबामे चुकि गेलाह। आन बात कहबासँ पहिने हम दुष्यंत कुमारजीक एकटा ई शेर देखू-

मैं जिसे ओढ़ता-बिछाता हूँ
वो ग़ज़ल आपको सुनाता हूँ

एकर बहर अछि 212-212-1222 आब एकटा शेर रवीन्द्रनाथजीक देखू--

हम जे भोगै छी से ओ जेना जीबै छी से
रवीन्द्र सैह गजल सबकेँ हम बाँटि रहल छी

रवीन्द्रजीक शेरमे कोनो बहर नै छनि मुदा भाव तँ दुष्यंतेजी बला उठाएल छनि। पहिने कहलहुँ एहन अवसर हरेक लेखक लग आबै छै। कियो एकरा चीन्हि अपनाकेँ मुक्त कऽ लै छथि आ कियो रखने रहि जाइ छथि।
कुल मिला कऽ देखी तँ रवीन्द्रजीक ई पोथी नीक गीतक पोथी छनि गजलक नहि।

(विदेहक रवीन्द्रनाथ ठाकुर विशेषांक-, अंक ३४८ मे प्रकाशित)
तोहर मतलब प्रेम प्रेमक मतलब जीवन आ जीवनक मतलब तों