रविवार, 28 जून 2015

गजल

गजल

सोहाग आ भाग सन
हम गीत तों राग सन

लटपट रहब बस कनी
हम भात तों साग सन

कनियें बुनाइत रहब
हम सूत तों ताग सन

सदिखन रहब संगमे
हम चैत तों फाग सन

दुनियाँमे बड़ झगड़ा छै
हम तों तँ उपराग सन

सभ पाँतिमे 2212+ 212 मात्राक्रम अछि
अंतिम शेरक पहिल पाँतिमे शब्दक अंतिम दीर्घकेँ लघु मानबाक छूट लेल गेल अछि।
सुझाव सादर आमंत्रित अछि

शुक्रवार, 26 जून 2015

गजल


नै हरियर नै पीयर छै बेरंगक ई जीवन
नै नोनगर नै मधुर छै बेढ़ंगक ई जीवन

मुहँ बान्हल नदी नै मिलत कहियो जलधिमे
ओहने व्याकुल बेकार बेउमंगक ई जीवन

की सुनत लोक गीत नाद आ की सुनत गजल
पीड़ा कराह सुनि भेल बेतरंगक ई जीवन

कठपुतली भ' नाचै लोक लोकक आँगुर पर
एहि ठाँ गोर हाथ रहितो अपंगक ई जीवन

आब जीयल दुलर्भ छै महँगी आ बइमानीसँ
भेल भ्रष्ट्राचारी तराजूक पासंगक ई जीवन

सरल वर्णिक बहर ,वर्ण 18
© बाल मुकुन्द पाठक

गजल


छै सगरो अन्हार ,किछु नै सुझा रहल अछि
आब केम्हर जाउ ,किछु नै फुरा रहल अछि

मीठ-मीठ गप्प कहि ,जे सत्ता धरि पहुँचल
ओ अंगुरी पर जनताके नचा रहल अछि

जहियासँ फाँट पड़लै खेतसँ घराड़ी धरि
अपनो घर तँ आन सन बुझा रहल अछि

जे रहैत छल शानसँ यौवनमे सभ दिन
ओ बुढ़ारीमे भूखसँ बिल-बिला रहल अछि

जाहि माटिक संस्कारसँ लोक गेलै चान धरि
ओहि माटिके खराब ओ बता रहल अछि

स्वार्थेटा पैघ भेलै आब आजुक व्यवहारमे
पाइ-पाइ लेल लोक -वेद बिका रहल अछि

 वर्ण-17

 © बाल मुकुन्द पाठक

गजल

खाली फूसिक व्यापार हम देखलहुँ संसारमे
हाल सत्यक लचार हम देखलहुँ संसारमे


की टी.वी. ,की अखबार ,सभमे एतबे समाचार
चोरि ,हत्या ,बलात्कार ,हम देखलहुँ संसारमे

जखनेसँ दंगा भेल ,जाति-पाति केर नाम पर
चमकैत तलवार ,हम देखलहुँ संसारमे

की हाट ,की बजार , छै सभ पर महगी सवार
भूखे जिनगी पहाड़ ,हम देखलहुँ संसारमे

मोन पड़ै घर-द्वार ,गामक पोखरिक मोहार
आ ओ पावनि-तिहार ,हम देखलहुँ संसारमे

सगरो व्याप्त अत्याचार ,छै अनठेने सरकार
सूतल हवलदार , हम देखलहुँ संसारमे

वर्ण-18
  © बाल मुकुन्द पाठक

गजल‬

मोनक बेथा ने ककरोसँ कहू
एहि मामिलामे अहाँ चुप्पे रहू

टीस कतबो किए ने बढ़ि जाए
मोने-मोन कानू, मोने-मोन सहू

प्रेमसँ समाज, प्रेमेसँ संसार
प्रेमसँ अहाँ सभक संग रहू

पैघक बात खराबो जौं लागए
सुनिकेँ रहू, उत्तर जुनि कहू

काँट भरल छै बाट जिनगीक
'मुकुन्द' नहुँ-नहुँ बढ़ैत रहू

 वर्ण-12
 © बाल मुकुन्द पाठक

गजल

जे रहैत छल लगमे, ओ दूर भ' गेल
हमर सौंसे करेज भूरे-भूर भ' गेल

बहुते यत्नसँ, घर प्रेमक बनेलहुँ
छुटिते संग सब, चकनाचूर भ' गेल

हाव-भाव ओकर ततेक ने बदलल
ओ बैर नहि रहल, ओ अंगूर भ' गेल

जाहि प्रश्नक उत्तर, बूझल नै हमरा
वैह प्रश्न किएक सोझाँ हुजूर भ' गेल

घुरि आउ मुकुन्द, अहाँ कोनो शर्त पर
आब शर्त सब हमरा, मंजूर भ' गेल

वर्ण-15.

 © बाल मुकुन्द पाठक

रविवार, 21 जून 2015

गजल

साँच नेह कहियो धोखा नै दए छै
मोनमे बिछोड़क फोंका नै दए छै

एक बेर जे बुझियौ छुटि गेल संगी
बेर-बेर किस्मत मौका नै दए छै

देखियोक लगमे अन्ठा देत सदिखन
एक छुटलहा हिय टोका नै दए छै

त्याग साधना आ नित चाही तपस्या
साँच नेह ईश्वर ओना नै दए छै

दोहराक कुन्दन नेहक बात नै कर
साँझमे पराती शोभा नै दए छै

मात्राक्रम : 212-122-222-122

© कुन्दन कुमार कर्ण
तोहर मतलब प्रेम प्रेमक मतलब जीवन आ जीवनक मतलब तों