बुधवार, 30 जुलाई 2014

गजल

सगरो सुनलहुँ ठोरे ठोर हो रामा
एलै महँगी भोरे भोरे हो रामा

सरकारक संगे हमरा लगैए जे
भगवानो छै चोरे चोर हो रामा

हँसि रहलै बइमानक संग दल बदलू
भलै जनता नोरे नोर हो रामा

चुनि चुनि खेलक माउस आब जनता लेल
बचलै खाली झोरे झोर हो रामा

अठपहरा छै मजदूरक मुदा तैयो
हमरे टूटै पोरे पोर हो रामा


सभ पाँतिमे 222+2222+1222 मात्राक्रम अछि।

चारिम शेरक पहिल पाँतिक अंतिम लघु अतिरिक्त अछि।

सुझाव सादर आमंत्रित अछि। 

मंगलवार, 29 जुलाई 2014

गजल

कागजपर विकास लिखल छै
बस औंठा निशान बचल छै

एबे करतै कहियो ने कहियो
आसेपर अकास टिकल छै

हेतै बाँट फाँट आ बखरा
भैयारी तँ खूब जुटल छै

भुज्जा सन बनल छै ई सपना
फूटल खा कऽ काँच छुटल छै

ओ जे खून छै से तँ ऐठाँ
नोरे सन निकलि कऽ खसल छै

सभ पाँतिमे 2221+21122 मात्रकाक्रम अछि।
दोसर, तेसर, चारिम आ पाँचम शेरमे शब्दक अंतिम दीर्घकेँ लघु मानबाक छूट लेल गेल अछि।

सुझाव सादर आमंत्रित अछि

रविवार, 27 जुलाई 2014

चिकनी माटिमे उपजल नागफेनी

अपन समीक्षाक श्रृंखला लेल आइ हम रमेश कृत कथित गजल संग्रह " नागफेनी " अनने छी। चूँकि ऐ संग्रहक सभ गजल बेबहर अछि तँए ऐ गजल सभपर हमर कोनो टिप्पणी नै रहत। कारण सभ समीक्षामे वएह तर्क, वएह घोंघाउज बेर-बेर आएत। एक बेर फेर हम कही जे हमर समीक्षा वा आलोचना-समालोचनाक अधार सदिखन व्याकरण रहैत अछि कारण हरेक लेखक रचनामे भाव (भावना) तँ रहिते छै संगे-संग सभ लेखक भावना अलग-अलग होइत छै तँए हम भावक अधारकेँ स्थायी नै मानै छी।
ऐ पोथीमे लेखकक छोड़ि शिवशंकर श्रीनिवासजी भूमिका अछि मने कुल दू टा भूमिका। आ हम अपन समीक्षा लेल इएह दूनू भूमिकाकेँ चुनलहुँ अछि। एही दूनू भूमिकाक अधारपर हम तात्कालीन गजल आ ओकर रचियताक मनोवृतिकेँ उजागर करबाक प्रयास केलहुँ अछि। पहिने शिवशंकरजीक भूमिका अछि तकर बाद शाइरक मुदा हम पहिने शाइरक भूमिकाकेँ विवेचित करब तकर बादें शिवशंकरजीक भूमिकापर आएब। शाइरक भूमिकामे कुल 13टा बिंदु अछि ऐमेसँ मात्र हम पहिल,दोसर, चारिम आ पाँचम बिंदुकेँ विवेचित करब। बाद बाँकी बिंदु सभ हुनक व्यक्तिगत छनि।
बिंदु-1) "गजलक ई कृति ओहि समालोचक लोकनिकेँ समर्पित छनि, जिनका लोकनिक घोंकचि जाइत छनि नाक, गजलक नामें सुनि।“
ऐ पहिल बिंदुसँ ई नीक जकाँ बुझाइत अछि जे रमेशजी सेहो आलोचक सभकेँ बिना मापदंड देने बिना आलोचनाक उम्मेद केने छथि। मुदा हमर स्पष्ट मानब अछि जे ओइ समयक आलोचक सभ गजलक आलोचना नै कऽ कऽ गजलपर बड़का उपकार केने छथि कारण ओहि समयक 99 प्रतिशत गजल अयोग्य छल आ अछि एवं बचल 1 प्रतिशत गजल विजयनाथ झा  ओ जगदीश चंद्र ठाकुर अनिल जीक अछि जिनका ई सभ गजलकार मानिते नै छथि।
बिंदु-2) "गजलक स्थापना हेतु ओकरा पक्षमे  तर्ककेँ ओतबे मथल गेल जतबा ओकरा विपक्षमे कुतर्ककेँ। तँए आब हम कए टा तथ्यकेँ नहिं दोहराबए-तेहराबए चाहैत छी जे गजल आब ओ नहिं अछि जे अपन शास्त्रीय रूपमे छल, एकरामे नवकविता बला क्लिष्टता, दुरूहता आ अ-संप्रषेणीयता आदि नकारात्मक नहि छैक, एकरामे भाव आ अभिव्यक्ति दुनू आसान आ सकारत्मक छैक, आधुनिकताक कोनो कमी नहि छैक, आब ई माशूकाक आँचर नहि अछि आ ने शाकी. शराब, जाम आदिक बंधनमे जकड़ल अछि, ई नवकविता आ पुरान कविताक बीचक रस्ता थिक, एकरा गेयधर्मिताक पैमानापर नापब पुरान कट्टरता थिक,एकर शास्त्रीय चरित्रकेँ दँतिया कऽ एकर आलोचना करब मात्र गेंग रोपब थिक, दुष्यंत कुमार, फैजसँ लऽ कऽ अदम गोंडवी धरि जे एकर नव कलेवर तरासलनि तकरा स्वीकार करबाक आब कोनो टा अधारे नहिं छेक, आदि-आदि----------|”
ऐ दोसर बिंदुसँ ई गप्प स्पष्ट भऽ जाइत अछि जे आने आन कथित प्रगतिशील गजलकार जकाँ रमेशजी सेहो गजलक संबंधमे भ्रमित छथि।  ऐ बिंदुमे सभसँ आपत्तिजनक गप्प दुष्यंत कुमार, फैज अहमद फैज ओ अदम गोंडवीक संबंधमे अछि। ई तीनू गजलकार पूर्ण रूपेण शास्त्रीय गजल लिखने छथि खाली ओ सभ विषय वस्तुकेँ परिवर्तन कऽ देलखिन्ह व्याकरण ओहिना के ओहिना रहलै। मुदा मैथिलीक ई कथित प्रगतिशील सभ बिना बुझने-सुझने हिका सभकेँ प्रसंगमे आनि दै छथि जे की हिनकर सभहँक ज्ञानक सीमाकेँ देखार करैत अछि। ऐ ठाम हम किछु गजलकारक तक्ती कऽ कऽ देखा रहल छी जे कोना हिनकर सभहँक गजल व्याकरण ओ बहरमे अछि---
पहिने कबीर दासक एकट गजलकेँ तक्ती कऽ कऽ देखा रहल छी--
बहर—ए—हजज केर ई गजल जकर लयखंड (अर्कान) (1222×4) अछि--
ह1 मन2 हैं2 इश्2, क़1 मस्2ता2ना2, ह1 मन2 को 2 हो 2, शि1 या2 री2 क्या2
हमन है इश्क मस्ताना, हमन को होशियारी क्या ?
रहें आजाद या जग से, हमन दुनिया से यारी क्या ?

जो बिछुड़े हैं पियारे से, भटकते दर-ब-दर फिरते,
हमारा यार है हम में हमन को इंतजारी क्या ?

खलक सब नाम अपने को, बहुत कर सिर पटकता है,
हमन गुरनाम साँचा है, हमन दुनिया से यारी क्या ?

न पल बिछुड़े पिया हमसे न हम बिछड़े पियारे से,
उन्हीं से नेह लागी है, हमन को बेकरारी क्या ?

कबीरा इश्क का माता, दुई को दूर कर दिल से,
जो चलना राह नाज़ुक है, हमन सिर बोझ भारी क्या ?


तेनाहिते आजुक प्रसिद्ध शाइर मुनव्वर राना केर ऐ गजलक तक्ती देखू--
बहुत पानी बरसता है तो मिट्टी बैठ जाती है
न रोया कर बहुत रोने से छाती बैठ जाती है

यही मौसम था जब नंगे बदन छत पर टहलते थे
यही मौसम है अब सीने में सर्दी बैठ जाती है

नकाब उलटे हुए जब भी चमन से वह गुज़रता है
समझ कर फ़ूल उसके लब पे तितली बैठ जाती है

मुनव्वर राना (घर अकेला हो गया, पृष्ठ - 37)
तक्तीअ
बहुत पानी / बरसता है / तो मिट्टी बै / ठ जाती है
1222 / 1222 / 1222 / 1222
न रोया कर / बहुत रोने / से छाती बै / ठ जाती है
1222 / 1222 / 1222 / 1222
यही मौसम / था जब नंगे / बदन छत पर / टहलते थे
1222 / 1222 / 1222 / 1222
यही मौसम / है अब सीने / में सर्दी बै / ठ जाती है
1222 / 1222 / 1222 / 1222
नकाब उलटे / हुए जब भी / चमन से वह / गुज़रता है
1222 / 1222 / 1222 / 1222
(नकाब उलटे के अलिफ़ वस्ल द्वारा न/का/बुल/टे 1222 मानल गेल अछि)
समझ कर फ़ू / ल उसके लब / पे तितली बै / ठ जाती है
1222 / 1222 / 1222 / 1222
आब राहत इन्दौरी जीक ऐ गजलकेँ देखू--
ग़ज़ल (1222 / 1222 / 122) (बहर-ए-हजज की मुज़ाहिफ सूरत)
चरागों को उछाला जा रहा है
हवा पर रौब डाला जा रहा है

न हार अपनी न अपनी जीत होगी
मगर सिक्का उछाला जा रहा है

जनाजे पर मेरे लिख देना यारों
मुहब्बत करने वाला जा रहा है
राहत इन्दौरी (चाँद पागल है, पृष्ठ - 2४)
तक्तीअ =
चरागों को / उछाला जा / रहा है
1222 / 1222 / 122
हवा पर रौ / ब डाला जा / रहा है
1222 / 1222 / 122

न हार अपनी / न अपनी जी / त होगी
1222 / 1222 / 122
(हार अपनी को अलिफ़ वस्ल द्वारा हा/रप/नी 222 गिना गया है)
मगर सिक्का / उछाला जा / रहा है
1222 / 1222 / 122
जनाजे पर / मेरे लिख दे / ना यारों
1222 / 1222 / 122
मुहब्बत कर / ने वाला जा / रहा है
1222 / 1222 / 122

फेरसँ मुनव्वर रानाजीक एकटा आर गजलकेँ देखू--
हमारी ज़िंदगी का इस तरह हर साल कटता है
कभी गाड़ी पलटती है कभी तिरपाल कटता है

सियासी वार भी तलवार से कुछ कम नहीं होता
कभी कश्मीर कटता है कभी बंगाल कटता है
(मुनव्वर राना)
1222 / 1222 / 1222 / 1222
(मुफाईलुन / मुफाईलुन / मुफाईलुन / मुफाईलुन)
हमारी ज़िं / दगी का इस / तरह हर सा / ल कटता है
कभी गाड़ी / पलटती है / कभी तिरपा / ल कटता है

सियासी वा/ र भी तलवा/ र से कुछ कम / नहीं होता
कभी कश्मी/ र कटता है / कभी बंगा / ल कटता है
आब दुष्यंत कुमारक ऐ गजलक तक्ती देखू--
2122 / 2122 / 2122 / 212
हो गई है / पीर पर्वत /-सी पिघलनी / चाहिए,
इस हिमालय / से कोई गं / गा निकलनी / चाहिए।
आब अहाँ सभ ऐ गजलकेँ अंत धरि जा सकै छी। पूरा गजल हम दऽ रहल छी--

हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए,
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए।

आज यह दीवार, परदों की तरह हिलने लगी,
शर्त लेकिन थी कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए।

हर सड़क पर, हर गली में, हर नगर, हर गाँव में,
हाथ लहराते हुए हर लाश चलनी चाहिए।

सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं,
मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए।

मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही,
हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए।

आब कने अदम गोंडवी जीक दू टा गजलक तक्ती देखू—
1222 / 1222 / 1222 / 1222
ग़ज़ल को ले / चलो अब गाँ / व के दिलकश /नज़ारों में
मुसल्‍सल फ़न / का दम घुटता / है इन अदबी / इदारों में

आब अहाँ सभ ऐ गजलकेँ अंत धरि जा सकै छी। पूरा गजल हम दऽ रहल छी--

ग़ज़ल को ले चलो अब गाँव के दिलकश नज़ारों में
मुसल्‍सल फ़न का दम घुटता है इन अदबी इदारों में

न इनमें वो कशिश होगी, न बू होगी, न रानाई
खिलेंगे फूल बेशक लॉन की लम्‍बी क़तारों में

अदीबों! ठोस धरती की सतह पर लौट भी आओ
मुलम्‍मे के सिवा क्‍या है फ़लक़ के चाँद-तारों में

र‍हे मुफ़लिस गुज़रते बे-यक़ीनी के तज़रबे से
बदल देंगे ये इन महलों की रंगीनी मज़ारों में

कहीं पर भुखमरी की धूप तीखी हो गई शायद
जो है संगीन के साये की चर्चा इश्‍तहारों में.

फेर गोंडवीजीक दोसर गजल लिअ—
2122 / 2122 / 2122 / 212
भूख के एह / सास को शे / रो-सुख़न तक /ले चलो
या अदब को / मुफ़लिसों की / अंजुमन तक /ले चलो
आब अहाँ सभ ऐ गजलकेँ अंत धरि जा सकै छी। पूरा गजल हम दऽ रहल छी--

भूख के एहसास को शेरो-सुख़न तक ले चलो
या अदब को मुफ़लिसों की अंजुमन तक ले चलो

जो ग़ज़ल माशूक के जल्‍वों से वाक़िफ़ हो गयी
उसको अब बेवा के माथे की शिकन तक ले चलो

मुझको नज़्मो-ज़ब्‍त की तालीम देना बाद में
पहले अपनी रहबरी को आचरन तक ले चलो

गंगा जल अब बुर्जुआ तहज़ीब की पहचान है
तिश्नगी को वोदका के आचरन तक ले चलो

ख़ुद को ज़ख्मी कर रहे हैं ग़ैर के धोखे में लोग
इस शहर को रोशनी के बाँकपन तक ले चलो.

ऐ गजल सभमे छंदानुसार छूट सेहो लेल गेल छै मुदा रमेशजीक वा अन्य कोनो मैथिली गजलकार जे भ्रमवश कहै छथि जे उर्दू-हिंदीक गजलमे बहर नै छै से हुनक बेसी ज्ञानक (??????????) परिचायक अछि। चाहितों हम फैज अहमद फैज केर गजलक तक्ती नै देखा रहल छी कारण समझदार आदमी कम्मे तथ्यसँ बेसी बात बूझै छथि।

एहि शाइरक सभहँक अतिरिक्त हम निराला आ जयशंकर प्रसाद जीक गजल सेहो देखा रहल छी..........

सूर्यकांत त्रिपाठी निराला

भेद कुल खुल जाए वह सूरत हमारे दिल में है
देश को मिल जाए जो पूँजी तुम्हारी मिल में है

मतला (मने पहिल शेर)क मात्राक्रम अछि--2122+2122+2122+212 आब सभ शेरक मात्राक्रम इएह रहत। एकरे बहर वा की वर्णवृत कहल जाइत छै। अरबीमे एकरा बहरे रमल केर मुजाइफ बहर कहल जाइत छै। मौलाना हसरत मोहानीक गजल “चुपके चुपके रात दिन आँसू बहाना याद है” अही बहरमे छै जकर विवरण आगू देल जाएत। ऐठाँ ई देखू जे निराला जी गजलक विषय नव कऽ देलखिन प्रेमिकाक बदला विषय मिल आ पूँजी बनि गेलै मुदा व्याकरण वएह रहलै। बाँचल शेर एना छै--

हार होंगे हृदय के खुलकर तभी गाने नये,
हाथ में आ जायेगा, वह राज जो महफिल में है

तरस है ये देर से आँखे गड़ी शृंगार में,
और दिखलाई पड़ेगी जो गुराई तिल में है

पेड़ टूटेंगे, हिलेंगे, जोर से आँधी चली,
हाथ मत डालो, हटाओ पैर, बिच्छू बिल में है

ताक पर है नमक मिर्च लोग बिगड़े या बनें,
सीख क्या होगी पराई जब पसाई सिल में है

जयशंकर प्रसाद

सरासर भूल करते हैं उन्हें जो प्यार करते हैं
बुराई कर रहे हैं और अस्वीकार करते हैं

उन्हें अवकाश ही इतना कहां है मुझसे मिलने का
किसी से पूछ लेते हैं यही उपकार करते हैं

जो ऊंचे चढ़ के चलते हैं वे नीचे देखते हरदम
प्रफ्फुलित वृक्ष की यह भूमि कुसुमगार करते हैं

न इतना फूलिए तरुवर सुफल कोरी कली लेकर
बिना मकरंद के मधुकर नहीं गुंजार करते हैं

'प्रसाद' उनको न भूलो तुम तुम्हारा जो भी प्रेमी हो
न सज्जन छोड़ते उसको जिसे स्वीकार करते हैं


बिंदु-4) मुदा शास्त्रीयतासँ दूर भैयो कऽ गजलत्व आ गजलजन्य अनुशासन समान्यतः गजलमे कायम रहय से प्रायः जरूरी छै। फैशनपर उकड़-गजल लीखि गजलक इतिहासमे नाम घोंसियायब एकटा कुत्सित प्रयास थिक, एहन लोक नवकविते अथवा आने कोनो विधामे डंड-बैसकी करथि से प्रायः उचित। किछु तुकबंदी मिला कऽ लीखि लेब गजलक संग अ-चेतनमे कयल गेल बलात्कार थिक। एहन लोक ओना सभ विधामे थोड़ेक दिन कुथैत छथि आ पुनः अपने आप साहित्यसँ पोछा जाइत छथि। तँए एहन गजलकारक कोनो तेहन चिन्ता आलोचक नहि करथि।“
ऐ चारिम बिंदुमे रमेशजी अपन भ्रमक सीमापर पहुँचि गेल छथि।
बंधु गजलजन्य  अनुशासने के तँ गजलक शास्त्रीय रूप वा गजलक व्याकरण कहल जाइत छै। ऐ बिंदुक हिसाबें देखल जाए तँ रमेशजी अपने फैशनक नामपर गजल लिखला आ गजलक संग बलात्कार केलथि।
बिंदु-5) "गजलमे निहित सौंदर्य-बोधकेँ चीन्हब आवश्यक छैक।“
ई पाँचम बिंदु पूरा-पूरी गलत आ भ्रमयुक्त अछि। रमेशजीक हिसाबसँ "सौंदर्य-बोधकेँ चीन्हब आवश्यक छैक" मुदा हमर कहब जे जखन एकबेर "सौंदर्य-बोध" भइये गेलै तखन फेरसँ चिन्हबाक बेगरता की? सही कथन एना हेतै---“गजलमे निहित सौंदर्यकेँ चीन्हब आवश्यक छैक।“ ओनहुतो ई वाक्य हिंदीक नकल अछि।  आब बहुतों भक्त लोकनि एकरा प्रेसक गड़बड़ी कहता......................
कुल मिला कऽ देखल जाए तँ रमेशजी अपने गजलक संबंधमे ततेक ने भ्रमित छथि जे वास्तवमे ई पोथी "नागफेनी" बनि गेल अछि आ वास्तविक गजलकेँ लहुलुहान केने अछि।
शिवशंकरजीक आलेख अपेक्षाकृत नीक अछि ( ओहि समयक अन्य आलेखक मुकाबले) मुदा शिवशंकरोजी बहुत रास तथ्यपर भ्रमित छथि। प्रथमतः ओहो आन कथित प्रगतिशील गजलकार जकाँ गजलकेँ दरबारी मानै छथि जखन की गजलमे प्रयुक्त शराब, माशूक, हुस्न, इश्क आदिक परलौकिक अर्थ सेहो होइत छै आ सभ शाइर ऐ शब्द सभकेँ प्रतीकक रूपमे प्रयोग करै छथि।
दोसर जे श्रीनिवासजी कहै छथि----"गजलक अपन अनुशासन छैक, बंदिश आ सीमा छैक। ओकरा रखैत रमेशजी गजल कहबामे सफल भेला हे जे हिनक विशेषता आ सफलता दुनू थिक"......... मुदा गजलक अनुशासन की छै आ बंदिश की छै तकर जानकारी श्रीनिवासजी पाठककेँ नै दऽ रहल छथि आ ने रमेशजीक गजलकेँ तक्ती कऽ कऽ कहि रहल छथि जे ऐ कारणें रमेश जीक गजलमे अनुशासन अछि।
कुल मिला कऽ ई दुन्नू आलेख भ्रमयुक्त अछि आ मैथिली गजलक वास्तविक साक्ष्यसँ बहुत दूर अछि।
ओना हमरा ई मानबामे कोनो दुविधा नै जे ऐ संग्रहक सभ रचना नीक तुकांत कविता अछि ( उपरमे साबित भऽ चुकल अछि जे ई सभ गजल नै थिक )। खास कऽ ओहि समय आन गजलकार ( तारानंद वियोगी, देवशंकर नवीन,) आदिक अपेक्षा अपन रचनामे बेसी मैथिली शब्दक प्रयोग केलह अछि जे की ऐ पोथी विशेषता अछि ऐ विशेषता दिस शिवशंकरजी इशारा सेहो केने छथि। तँ चली ऐ संग्रहक किछु रचना दिस जे की हम पाँतिक उदाहरण दऽ कऽ देखाएब--

नवम रचनाक ई पाँति  नीक अछि--

लाख लाख कोस सागर के अगम अगम जल
देख हेलवाक छौ तँ तुरंत जूटि जो

एगारहम रचनाक ई पाँति देखल जाए--
कियो केकरो पुछारि क' क' की करतै
सभ अपन-अपन दर्द के पिबैत अछि

जँ अप्रस्तुत योजना विधान देखबाक हो तँ सोलहम रचनापर आउ--

जामु आ गम्हारि केर छाह तर मे
बाँस केर कोपर सुखैल जा रहल

मानल जाइत अछि जे बाँसक छाहरि तर कोनो गाछ नमहर नै भ' सकैए कारण बाँसक प्रकृति गरम होइत छै मुदा रचनाकार एतऽ उन्टा गप्प कहि अप्रस्तुतकेँ प्रस्तुत केलाह अछि। सैतीसम रचनाक ई पाँति देखू-

की सोचय अइ देसक जनता
एक्कहि खिच्चड़ि एक्कहि हंडा

जँ 58 टा रचनामेसँ हमरा कोनो एकटा रचना चूनबाक जरूरति पड़त तँ हम 12हम रचनाकेँ ऐ संग्रहक श्रेष्ठ रचना कहब। तँ लिअ ऐ बारहम रचनाक टूटा पाँति--

सौंथ जए टा चाही तए टा छूबि लिअ
टीस मुदा ताजिन्दगी रहैत छै


शनिवार, 26 जुलाई 2014

गजल


जिनगी एक टा खेल छी
सुख दुख केर ई मेल छी

कहियो जे सुलझि नै सकत
तेहन ई अगम झेल छी

संयमतासँ जे नै रहत
तकरा लेल ई जेल छी

रूकत नै निरन्तर चलत
ई अविराम सन रेल छी

होइत अछि जखन दुख तखन
दैवक बुझि चलू ठेल छी

बहरे-मुक्तजिब

© कुन्दन कुमार कर्ण

शुक्रवार, 25 जुलाई 2014

गजल

बाल गजल


इस्कूल बंद हतै बाह रे बाह
मास्टर उदास भेलै बाह रे बाह

माए हमर पसारै खूब मुस्की
बस्ता हमर छिनेतै बाह रे बाह

किरकेट खेलबै हम खेतमे आब
डबरामे गेंद जेतै बाह रे बाह

फूटल मुदा ई निगर बोइयामेसँ
खटगर अचार खेबै बाह रे बाह

बाबा डरा कऽ हमरा नै घुमेता तँ
हमहीं घुमा कऽ एबै बाह रे बाह

सभ पाँतिमे 2212+ 1222+1221 मात्राक्रम अछि।

दोसर, तेसर आ चारिम शेरमे दीर्घकेँ लघु मानबाक छूट लेल गेल अछि।

सुझाव सादर आमंत्रित अछि

सोमवार, 21 जुलाई 2014

अपने एना अपने मूँह-27

मइ २०१४मे अनचिन्हार आखरपर कुल ४टा पोस्ट भेल जकर विवरण एना अछि--
जगदानंद झा मनु जीक १टा पोस्टमे १टा गजल अछि।
आशीष अनचिन्हारक कुल ३टा पोस्टमे २टा गजल आ १टा भक्ति गजल अछि।

जून २०१४मे कुल १७टा पोस्ट भेल जकर विवरण एना अछि--

जगदानंद झा मनु जीक कुल ३टा पोस्टमे-- १टा गजल, १टा भक्ति गजल आ १टा रुबाइ अछि।
कुंदन कुमार कर्ण आ अमित मिश्रक १-१टा पोस्टमे १-१टा गजल अछि।

आशीष अनचिन्हारक कुल १२टा पोस्टमे-- ६टा गजल, ४टा बाल गजल. १टा भक्ति गजल आ १टा अपने एना अपने मूँह अछि।

गजल

दिनगर मुदा तैयो तँ अन्हार बड़
ऐ ठाम छै उल्लूक जैकार बड़

जै देशमे खाली बलत्कार छै
तै देशमे धर्मक चमत्कार बड़

ई साँइ छै ई राम छै ई खुदा
ऐ लेल उठि गेलैक हथियार बड़

छै लक्ष्य बौआएल आ बेकहल
देखू मुदा हुनकर तँ सिंगार बड़

आँगन उदासल छै पिआसल दुआरि
चुपचाप ताकै हमरा ई चार बड़

सभ पाँतिमे 2212-2212-212 मात्राक्रम अछि

चारिम आ पाँचम शेरमे एकटा-एकटा दीर्घकेँ लघु मानबाक छूट लेल गेल अछि।
पाँचम शेरक पहिल पाँतिक अंतमे एकटा लघु अतिरिक्त अछि


सुझाव सादर आमंत्रित अछि।

रविवार, 20 जुलाई 2014

मैथिली गजल व्याकरणक शुरूआती प्रयोग


कोनो साहित्यिक विधा अपना आपमे ता धरि स्वतंत्र नै मानल जा सकैए जा धरि ओकर हरेक समयमे कमसँ कम आठ-दस टा पूर्णकालिक रचनाकार नै भेटै। मुदा ई तथ्य मैथिली साहित्यक कोनो विधापर लागू नै होइत अछि। कहबाक मतलब जे जिनका जते मोन भेलनि से तते विधाक संग बलात्कार केलथि। ई मैथिली भाषा थिक जैमे कोनो लेखक जँ नीक कविता लिखै छथि तँ हुनका नीक कथाकार ओ अन्य विधाक मास्टर सेहो मानि लेल जाइत अछि। आ ऐ तरहँक सर्टिफिकेट बँटबामे मानसिक रूपसँ लोथ विश्वविद्यालीय आलोचक सभहँक भूमिका बेसी रहैत छनि। ऐ ठाम हम स्पष्ट कही जे हरेक विधामे लीखब आ हरेक विधामे अपना-आपके मास्टर कहब वा कहेबाक लेल येन-केन-प्रकारेण छद्म करब दूनू अलग -अलग वस्तु अछि। ऐ ठाम हम जिनकर गप्प करए जा रहल छी से हमरा नजरिमे मूलतः गवेषक ओ कोशकार छथि मुदा ओ गजल, हाइकू, कविता, लघुकथा, विहनि कथा, आलोचना सहित आन विधामे सेहो रचनारत छथि (मुदा ई उल्लेखनीय अछि जे रचना करैत-करैत ई सभ विधाक लेल एकटा मानक आलोचना कहू वा विधागत नियक कही की व्याकरण कहू से मैथिली भाषाक अनुकूल बनेलाह) आ पाठक ई कहबामे धुकचुका जाइ छथि जे कोन विधाक कोन रचना नीक छै। ऐ ठाम ईहो हम कही जे कोनो लेखक केर सभ रचना उत्कृष्ट नै होइ छै। कोनो दब, तँ कोनो नीक तँ कोनो मध्यम। ईएह चक्र सभ लेखक संग छै। केओ ऐ चक्रक वास्तविकाकेँ मानै छथि तँ बहुत रास लेखक ओकरा घमंडमे आबि नकार दै छथि। मुदा हमर आलोच्य लेखक ऐ वस्तुकेँ मानै छथि आ ओ तर्क दै छथि जे ई हरेक लेखककेँ मानबाक चाही। ओना साहित्यिक विधाकेँ छोड़ि ई नव लेखककेँ बढ़ावा देबऽमे सभसँ आगू छथि आ हिनक ई विधा आन सभ विधापर भारी अछि। आब ऐठाम अहाँ सभ चकित होमए लागब तँए हम हिनक आन विधाकेँ छोड़ि मात्र गजलपर केंद्रित कऽ रहल छी। जँ मैथिली गजलकेँ देखी तँ भने ई 103 बर्खसँ लिखाइत रहल हो मुदा गजलक व्याकरण बनल 2009मे। आब एकर कारण जे हो । "अनचिन्हार आखर " ब्लागपर श्री गजेन्द्र ठाकुरजी बर्ख 2009सँ " मैथिली गजल शास्त्र " केर शुरूआत केलाह जे 14 खंडमे पूरा भेल। आब ई आलेख हुक गजल संग्रह "धांगि बाट बनेबाक दाम अगूबार पेने छँ"मे आएल अछि।प्रस्तुत गजल शास्त्रमे मैथिली गजल अनेक मौलिक अवधारणाक जन्म भेल। आगू बढ़बासँ पहिने ऐ गजल शास्त्रक किछु मुख्य विशेषता देखल जाए---
1) सरल वार्णिक बहर-- ई ऐ गजल शास्त्रक सभसँ बड़का विशेषता अछि। चूँकि मैथिलीक बहुसंख्यक शाइर बहरक अभावसँ ग्रसित छलाह तँए हुनका सभकेँ एक सूत्रमे अनबाक लेल वैदिक छंदक प्रयोग भेल जकर नाम पड़ल " सरल वार्णिक बहर" ऐ बहरक मोताबिक मतलाक पहिल पाँतिमे जतेक वर्ण हो ओतेक बर्ख गजलक हरेक पाँतिमे भेनाइ आवश्यक। ई बहर ततेक ने लोकप्रिय भेल जे सभ शाइर एक प्रचुर प्रयोग केलथि संगे-सग ई बहर सभ शाइरकेँ वर्णवृत प्रयोग करबाक लेल एकटा नीक बाट देलक तँए हमरा नजरिमे ई बहर आधुनिक मैथिली गजलमे वर्णवृतक प्रयोगक पहिल सीढ़ी अछि।
2) वैदिक छन्दक पुनर्जागरण-- ऐ गजल शास्त्रसँ विलुप्त होइत वैदिक छन्दक पुर्नजागरण भेल। सभ वैदिक छन्द सरल वार्णिक छन्द अछि। वर्तमानमे श्री गजेन्द्र ठाकुर जी  एकरा विवेचित कए मात्र किछुए समयमे आ सेहो सरल रूपें  वेद-विज्ञानक परिचय करबौलथि। एखन जे गजल लिखै छथि वा जे गजेन्द्र ठाकुर जीक पोथी वा अनचिन्हार आखर पढ़ताह हुनका स्वतः ई बुझा जेतन्हि जे गायत्री छन्द की छै आ अनुष्टुप छन्द की। गायत्री छंद ओ गायत्री मंत्रक बीच की संबंध छै से ऐ लेखक सहायतासँ आब सभ बूझऽ लगलाह अछि।
3) बहरक निर्धारण--- ओना तँ वर्णवृत वा बहर गजल विश्वस्तरपर मान्य अछि मुदा भारतमे अबिते ओ विखंडित भेल। केओ हिंदीक अनुकरण करैत मात्रिक लेलाह तँ केओ किछु  " मुदा श्री ठाकुरजी बिना कोनो दबाब बनेने शाइर लेल सीमा बना देलखिन। श्री ठाकुरजी कहैत छथि "कोनो गजलक पाँती (मिसरा)क वज्न/ वा शब्दक वज्न तीन तरहेँ निकालि सकै छी, सरल वार्णिक छन्दमे वर्ण गानि कऽ; वार्णिक छन्दमे वर्णक संग ह्रस्व-दीर्घ (मात्रा) क क्रम देखि कऽ; आ मात्रिक छन्दमे  ह्रस्व-दीर्घ (मात्रा) क क्रम देखि कऽ। जिनका गायनक कनिकबो ज्ञान छन्हि ओ बुझि सकै छथि जे गजलक एक पाँतीमे शब्दक संख्या दोसर पाँतीक संख्यासँ असमान रहि सकैए, मुदा जँ ऊपर तीन तरहमे सँ कोनो तरहेँ गणना कएल जाए तँ वज्न समान हएत। मुदा आजाद गजल  बे-बहर होइत अछि तेँ ओतऽ सभ पाँती वा शब्दमे वज्न समान हेबाक तँ प्रश्ने नै अछि। ऐ तीनू विधिसँ लिखल गजलमे मिसरामे समान वज्न एबे टा करत। ओना ई गजलकार आ गायक दुनूक सामर्थ्यपर निर्भर करैत अछि; गजलकार लेल वार्णिक छन्द सभसँ कठिन, मात्रिक ओइसँ हल्लुक आ सरल वार्णिक सभसँ हल्लुक अछि, मुदा गायक लेल वार्णिक छन्द सभसँ हल्लुक, मात्रिक ओइसँ कठिन, सरल वार्णिक ओहूसँ कठिन आ आजाद गजल (बिनु बहरक) सभसँ कठिन अछि।" आब ई शाइरपर निर्भर अछि ओ लिखबाक लेल कोन बहर प्रयोग करै छथि मुदा जेना की ठाकुर जी कहै छथि गेबाक लेल वार्णिक छंद सभसँ हल्लुक छै तैसँ अरबी-फारसी-उर्दू गजलक व्याकरणक प्रमाणिकता भेटैत अछि आ हिंदीक नकलवादी शाइर सभहँक धज्जी उड़ि जाइत अछि आ ऐ तरहें मैथिली गजलमे वर्णवृतक प्रयोग सुनिश्चित होइत अछि।
4) गजल, बहर आ संगीत-- ऐ गजल शास्त्रमे गजल, बहर आ संगीतक मध्य समता ओ विषमताक नीक चर्च अछि। जिनका संगीतक जानकारी नै अछि तकरा लेल ई पोथी अमृतक समान काज करत। मूल तथ्य सभ नीक जकाँ फड़िछाएल अछि जेना---
"जेना वार्णिक छन्द/ वृत्त वेदमे व्यवहार कएल गेल अछि तहिना स्वरक पूर्ण रूपसँ विचार सेहो ओइ युग सँ भेटैत अछि। स्थूल रीतिसँ ई विभक्त अछि:- 1. उदात्त 2. उदात्ततर 3. अनुदात्त 4. अनुदात्ततर 5. स्वरित 6. अनुदात्तानुरक्तस्वरित, 7. प्रचय (एकटा श्रुति-अनहत नाद जे बिना कोनो चीजक उत्पन्न होइत अछि, शेष सभटा अछि आहत नाद जे कोनो वस्तुसँ टकरओलापर उत्पन्न होइत अछि)
1. उदात्त- जे अकारादि स्वर कण्ठादि स्थानमे ऊर्ध्व भागमे बाजल जाइत अछि। एकरा लेल कोनो चेन्ह नै अछि।
2. उदातात्तर- कण्ठादि अति ऊर्ध्व स्थानसँ बाजल जाइत अछि। ---------------------------------
---------------------ऊहगान- सोमयाग एवं विशेष धार्मिक अवसर पर। पूर्वार्चिकसँ संबंधित ग्रामगेयगान ऐ विधिसँ। ऊह्यगान आकि रहस्यगान- वन आ पवित्र स्थानपर गाओल जाइत अछि। पूर्वार्चिकक आरण्यक गानसँ संबंध। नारदीय शिक्षामे सामगानक संबंधमे निर्देश:- 1.स्वर-7 ग्राम-3 मूर्छना-21 तान-49
सात टा स्वर सा, रे, , , , ,नि, आ तीन टा ग्राम- मध्य, मन्द, तीव्र। 7*3=21 मूर्छना। सात स्वरक परस्पर मिश्रण 7*7=49 तान।
ऋगवेदक प्रत्येक मंत्र गौतमक 2 सामगान (पर्कक) आ काश्यपक 1 सामगान (पर्कक) कारण तीन मंत्रक बराबर भऽ जाइत अछि। मैकडॉवेल इन्द्राग्नि, मित्रावरुणौ, इन्द्राविष्णु, अग्निषोमौ ऐ सभकेँ युगलदेवता मानलन्हि अछि। मुदा युगलदेव अछि –विशेषण-विपर्यय।
वेदपाठ-
1. संहिता पाठ अछि शुद्ध रूपमे पाठ।
अ॒ग्निमी॑ळे पुरोहि॑त य॒घ्यस्य॑दे॒वम्त्विज॑म।होतार॑रत्न॒ धातमम्।
2. पद पाठ- ऐमे प्रत्येक पदकें पृथक कऽ पढ़ल जाइत अछि।
3. क्रमपाठ- एतऽ एकक बाद दोसर, फेर दोसर तखन तेसर, फेर तेसर तखन चतुर्थ। एना कऽ पाठ कएल जाइत अछि।
4. जटापाठ- ऐमे जँ तीन टा पद क, , आ ग अछि तखन पढ़बाक क्रम ऐ रूपमे हएत। कख, खक, कख, खग, गख, खग। 5. घनपाठ- ऐ मे उपरका उदाहरणक अनुसार निम्न रूप हएत- कख, खक, कखग, गखक, कखग। 6. माला, 7. शिखा, 8. रेखा, 9. ध्वज, 10. दण्ड, 11. रथ। अंतिम आठकेँ अष्टविकृति कहल जाइत अछि।
साम विकार सेहो 6 टा अछि, जे गानकेँ ध्यानमे रखैत घटाओल, बढ़ाओल जा सकैत अछि। 1. विकार-अग्नेकेँ ओग्नाय। 2. विश्लेषण- शब्द/पदकेँ तोड़नाइ 3. विकर्षण-स्वरकेँ खिंचनाइ/अधिक मात्राक बराबर बजेनाइ। 4. अभ्यास- बेर-बेर बजनाइ।5. विराम- शब्दकेँ तोड़ि कऽ पदक मध्यमे ‘यति’। 6. स्तोभ- आलाप योग्य पदकेँ जोड़ि लेब। कौथुमीय शाखा ‘हाउ’ ‘राइ’ जोड़ैत छथि। राणानीय शाखा ‘हावु’, ‘रायि’ जोड़ैत छथि।"
ई तँ छल वैदिक संगीतक जानकारी । लौकिक संगीतक चर्च श्री ठाकुर जीन एना करै छथि---
संगीतक वर्ण अछि सा, रे, , , , , नि, सां एकरा मिथिलाक्षर/ देवनागरीक वर्ण बुझबाक गलती नै करब। आरोह आ अवरोहमे स्वर कतेक नीच-ऊँच हुअए तकरे टा ई बोध करबैत अछि। जेना कोनो आन ध्वनि जेना “क” केँ लिअ आ की-बोर्डपर निकलल सा, रे... केर ध्वनिक अनुसार “क” ध्वनिक आरोह आ अवरोहक अभ्यास करू।
ऐ सातू स्वरमे षडज आ पंचम मने सा आ प अचल अछि, एकर सस्वर पाठमे ऊपर नीचाँ हेबाक गुंजाइश नै छै। सा अछि आश्रय आकि विश्राम आ प अछि उल्लासक भाव। शेष जे पाँचटा स्वर सभटा चल अछि, मने ऊपर नीचाँक अर्थात् विकृतिक गुंजाइश अछि ऐमे। सा आ प मात्र शुद्ध होइत अछि, आ विकृति भऽ सकैत अछि दू तरहेँ, शुद्धसँ स्वर ऊपर जाएत आकि नीचाँ। यदि ऊपर रहत स्वर तँ कहब ओकरा तीव्र आ नीचाँ रहत तँ ओ कोमल कहाएत। म कँ छोड़ि कऽ सभ अचल स्वरक विकृति होइत अछि नीचाँ, तखन बुझू जे “रे, , , नि” ई चारि टा स्वरक दू टा रूप भेल कोमल आ शुद्ध। म केर रूप सेहो दू तरहक अछि, शुद्ध आ तीव्र। रे दैत अछि उत्साह, ग दैत अछि शांति, म सँ होइत अछि भय, ध सँ दुःख आ नि सँ होइत अछि आदेशक भान। शुद्ध स्वर तखन होइत अछि, जखन सातो स्वर अपन निश्चित स्थानपर रहैत अछि। ऐ सातोपर कोनो चेन्ह नै होइत अछि।
जखन शुद्ध स्वर अपन स्थानसँ नीचाँ रहैत अछि तँ कोमल कहल जाइत अछि आ ई चारिटा होइत अछि, ऐमे नीचाँ क्षैतिज चेन्ह देल जाइत अछि, यथा- रे॒ग॒ध॒नि॒।

शुद्ध आ मध्यम स्वर जखन अपन स्थानसँ ऊपर जाइत अछि, तखन ई तीव्र स्वर कहाइत अछि, ऐमे ऊपर उर्ध्वाधर चेन्ह देल जाइत अछि। ई एकेटा अछि- म॑।
एवम प्रकारे सात टा शुद्ध यथा- सा, रे, , , , , नि, चारिटा कोमल यथा- रे॒ग॒ध॒नि॒ आ एकटा तीव्र यथा म॑ सभ मिला कऽ 12 टा स्वर भेल।
ऐमे स्पष्ट अछि जे सा आ प अचल अछि, शेष चल वा विकृत।"

ऐ विवरणसँ स्पष्ट अछि जे श्री ठाकुर जी गजल, बहर आ संगीतक प्रमाणिक जानकारी पाठकक आगू रखलाह अछि।

5) मैथिली भाषा संपादन--- बहुत रास विशेषतामेसँ ई एकटा यूनिक विशेषता अछि। एकर अध्ययन केलासँ अधिकत्तम शुद्ध मैथिली लीखब आबि सकैए ( कोनो भाषा पूर्ण रूपेण शुद्ध नै होइ छै)। किछु उदाहरण देखल जाए--
उच्चारण निर्देश: (बोल्ड कएल रूप ग्राह्य):-  
दन्त न क उच्चारणमे दाँतमे जीह सटत- जेना बाजू नाम, मुदा ण क उच्चारणमे जीह मूर्धामे सटत (नै सटैए तँ उच्चारण दोष अछि)- जेना बाजू गणेश। तालव्य शमे जीह तालुसँ, षमे मूर्धासँ आ दन्त समे दाँतसँ सटत। निशाँ, सभ आ शोषण बाजि कऽ देखू। मैथिलीमे ष केँ वैदिक संस्कृत जकाँ ख सेहो उच्चरित कएल जाइत अछि, जेना वर्षा, दोष। य अनेको स्थानपर ज जकाँ उच्चरित होइत अछि आ ण ड़ जकाँ (यथा संयोग आ गणेश संजोग आ गड़ेस उच्चरित होइत अछि)। मैथिलीमे व क उच्चारण ब, श क उच्चारण स आ य क उच्चारण ज सेहो होइत अछि।
ओहिना ह्रस्व इ बेशीकाल मैथिलीमे पहिने बाजल जाइत अछि कारण देवनागरीमे आ मिथिलाक्षरमे ह्रस्व इ अक्षरक पहिने लिखलो जाइए आ बाजलो जेबाक चाही। कारण जे हिन्दीमे एकर दोषपूर्ण उच्चारण होइत अछि (लिखल तँ पहिने जाइत अछि मुदा बाजल बादमे जाइत अछि), से शिक्षा पद्धतिक दोषक कारण हम सभ ओकर उच्चारण दोषपूर्ण ढंगसँ कऽ रहल छी।
अछि- अ इ छ  ऐछ (उच्चारण)
छथि- छ इ थ  – छैथ (उच्चारण)
पहुँचि- प हुँ इ च (उच्चारण)
----------------------------------------
मने ऐ लेखकेँ पढ़लासँ लिखित आ उच्चरित दूनू रूपक दर्शन भेटत आ पाठक एकै ठाम ई व्याख्या देखि सकै छथि। वर्तमान समयमे ई आलेख मैथिली भाषाक मानकीकरण लेल मीलक पाथर जकाँ अछि संगे संग ई मिथिलाक सभ जातिक उच्चारणपर अधारित अछि तँए पुरान व्याकरणशास्त्री सभहँक व्याख्यासँ बेसी प्रमाणिक ओ लोकप्रिय अछि।
6) मैथिलीक बहर विहीन गजलक संदर्भ-- श्री ठाकुर प्रमाणिकता पूर्वक बहर विहीन गजल सभहँक खंडन केलाह कर विस्तृत विवरण ऐ शास्त्रमे भेटैए--
लोकवेद आ लालकिला:
आत्ममुग्ध आमुख सभक बाद ऐ संग्रह मे कलानन्द भट्ट, तारानन्द वियोगी, डॉ. देवशंकर नवीन, नरेन्द्र, डॉ. महेन्द्र, रमेश, रामचैतन्य “धीरज”, रामभरोस कापड़ि “भ्रमर”, रवीन्द्र नाथ ठाकुर, विभूति आनन्द, सियाराम झा “सरस” आ सोमदेवक  गजल  देल गेल अछि।
कलानन्द भट्ट
भोर आनब हम दोसर उगायब सुरुज
करब नूतन निर्माण हम बनायब सुरुज
सरल वार्णिकक अनुसारे गणना- पहिल पाँती-17 वर्ण दोसर पाँती- 18 वर्ण; जखन सरल वार्णिकेमे गणनाक अन्तर अछि तँ ह्रस्व दीर्घ विचारपर जेबाक मेहनति बचि गेल।
मात्रिक गणनाक अनुसार- पहिल पाँती-21 मात्रा, दोसर पाँती- 21 मात्रा, मात्रा मिल गेलासँ आब ह्रस्व दीर्घ पर चली। पहिल पाँती दीर्घ-ह्रस्व-दीर्घ-ह्रस्व-ह्रस्व-ह्रस्व-ह्रस्व-दीर्घ-ह्रस्व-ह्रस्व-ह्रस्व-दीर्घ-ह्रस्व-ह्रस्व-ह्रस्व-ह्रस्व-ह्रस्व (एतऽ दूटा लगातार ह्रस्वक बदला एकटा दीर्घ दऽ सकै छी, से दोसर पाँतीमे देखब)। दोसर पाँती- ह्रस्व-हस्व-ह्रस्व-दीर्घ-ह्रस्व-ह्रस्व-ह्रस्व-दीर्घ- ह्रस्व-हस्व- ह्रस्व-हस्व-दीर्घ- ह्रस्व-हस्व- ह्रस्व-हस्व-ह्रस्व। मुदा एतऽ गाढ़ कएल अक्षरक बाद क्रम टूटि गेल।
--------------- आ एनाहिते सभ बहर विहीन गजलक तक्ती कएल गेल अछि। ऐ पद्धितसँ समान्य पाठक सेहो बहरक निर्धारण कऽ सकै छथि।

7) मैथिली गजलक इतिहासकेँ दू भागमे बाँटब--- श्री ठाकुरजी मैथिली गजलक प्रवृति, काल ओ प्रमाणिकताकेँ हिसाबसँ दू खंडमे बटलाह 1) 1905सँ लऽ कऽ 2008 धरि "जीवन युग" 2008कक बाद बला कालखंडकेँ ओ "अनचिन्हार आखर"क नामपर "अनचिन्हार युग"

संगीतकार आ संगीतविद भेनाइ अलग-अलग गप्प छै। संगीतकार संगीतक रचना करै छै तँ संगीतविद संगीतक फार्म के। तेनाहिते शाइर आ अरूजी भेनाइ अलग-अलग गप्प छै। शाइर शाइरी केर रचना करै छै तँ अरूजी ओकर फार्म के। केखनो काल बहुमुखी प्रतिभा बला रचयिता दूनू काज करै छै। मुदा काजमे अंतर रहितों दूनू एक दोसरापर टिकल छै। केखनो काल शाइर वा संगीतकार भावमे आबि कऽ फार्मकेँ तोड़ि नव फार्म बना दै छै। आब ऐठाम अरूजी वा संगीतविद ओकरा अपन भाषा वा स्वरक अनूकूल बनेबाक ले प्रयत्न भऽ जाइ छथि आ एही ठाम शुरू भऽ जाइत छै संगीतकार आ संगीतविद वा शाइर आ अरूजी के झगड़ा। मुदा ई झगड़ा शुद्ध रूपसँ वैचारिक होइत छै। केखनो काल कऽ व्यक्तिगत सेहो बनि जाइत छै। मुदा सभ पक्षकेँ बुझबाक चाही जे केहनो नीक फार्म वा भाव किएक ने हो अपन भाषा वा अपन लय केर हिसाबसँ हेबाक चाही। जँ हम भारतीय शास्त्रीय संगीतमे वेस्टर्न सुर लऽ रहल छिऐ तँ ई धेआन राखऽ पड़त जे ओकर लय पूर्ण रूपेण भारतीय हो। जँ सुर भारतीय नै हएत तँ ओ गीत किछुए दिनमे बिला जाएत। हमरा हिसाबें भारतमे फ्यूजन संगीत किछु दिन लेल लोकप्रिय तँ भेल मुदा जल्दिए बिला गेल कारण संगीतकार सभ वेस्टर्न तत्व तँ लऽ लेलाह मुदा ओकर भारतीयकरण करबामे असफल भऽ गेलथि। मैथिलीक शाइर सभ वैचारिक युद्ध करबाक बदला घर-घराड़ीक गप्प आनि दै छथि। हुनका बुझाइन छनि जे हमरा लग पाइ अछि तँ हमर बात किएक ने उपर रहत। ओहन शाइर ईहो कहै छथि जे अमुक लोक वा अमुक संस्था जोनो हमर रोजी-रोटी चलबै छथि जे हम हुनकर गप्प मानब। श्री गजेन्द्रजी द्वारा लिखल गजलशास्त्रक दोसरे खंडसँ मैथिलीक किछु नकली शाइर सभ क्रोधित भऽ गेलाह कारण ई शास्त्र हुनकापर प्रश्नचिन्ह लगा देलक। तँए ओ नानाप्रकारक  आरोप-प्रत्यारोपपर आबि गेलथि मुदा सच सदिखन सच होइ छै आ ओकर कोनो विकल्प नै छै।
ऐ मुख्य विशेषता सभकेँ अलावे आर बहुत रास विशेषता छै जेना मैथिली-उर्दू गणना, विकारी प्रयोग आदि जकरा ऐ छोट आलेखमे समटल नै जा सकैए। पाठकसँ आग्रह जे पूर्ण रसास्वादन लेल मूल पाठ पढ़थि।
आब आबी ऐ पोथीमे संकलित गजल सभपर। गजल दिस चलबासँ पहिने हम किछु निवेदन करब। जेना की पहिनहें हम कहने छी जे गजेन्द्र ठाकुरजी रचैत-रचैत गजल ओ गजल शास्त्रकेँ मजगूत केलाह तँए ऐ संग्रहमे ओहनो गजल सभ अछि जैमे काफिया नै अछि (ओना पोथीक अंतमे शुद्धि पत्र देल गेल अछि अजुक हिसाबसँ), तेनाहिते कोनो गजलमे बिनु काफियाक रदीफ भेटत। हँ, सभ गजल अरबी बहर ओ सरल वार्णिकमे अछि। जँ बिना शुद्धिपत्रकेँ देखी तँ आलोचक ऐ गजल सभकेँ खारिज कऽ सकै छथि आ तैमे किनको आपत्ति नै। मुदा ऐ ठाम ई धेआन राखब बेसी जरूरी जे ई गजल सभ प्रयोगिक स्तरपर लिखल गेल अछि चाहे ओ संस्कृतक तुकांत विहीनि काय्यक प्रयोग कहियौ की मैथिली गीतक पारंपरिक गीतक तुकांतक प्रयोग आ ऐ प्रयोग सभसँ गुजरलाक बादें श्री ठाकुजी गजलशास्त्र दिस गेलाह। जँ ऐ संग्रहक गजल सभकेँ नीक जकाँ पढ़बै तँ तीनटा प्रयोग नीक जकाँ लक्षित हएत--- 1) जँ गजल बिना कफियाक हेतै ( संस्कृत जकाँ ) तखन केहन हेतै 2) जँ काफिया नै मुदा खाली रदीफ होइक तखन केहन हेतै आ 3) जँ अरबी बहरमे होइक तखन ओकर गायन केहन हेतै। ऐ लेल श्री ठाकुरजी दीक्षा ठाकुरसँ अपन किछु सलेक्टिव गजल गबा कऽ प्रयोग कऽ लेने छथि जे की ऐ लिंकपर अछि--
आब आलोचक सभ ऐ ठाम ई कहि सकै छथि जे प्रकाशित होमएसँ पहिने एकरा सही कएल जा सकै छलै आ से गप्प सही अछि मुदा से केलासँ कोन प्रयोग कोना भेलै से हटि जाइत तँए संग्रहमे गजल मूल प्रारूपमे अछि आ अंतमे शुद्धिपत्र देल गेल अछि। तँ आब ऐ संग्रहक किछु गजलक मूल प्रारूपकेँ देखी---

ऐ संग्रहक पहिल गजलक मतला अछि--

बझाओल गेलैए चिड़ैया एना रे
कहैए हितैषी ई शिकारी बड़ा रे

अजुके नै सभ दिनसँ सभ दिनसँ शिकारी अपना आपकेँ चिड़ैयाक हितैषी कहैए आ तकर परिणाम की होइ छै से सभकेँ बूझल छै...............
दोसर गजलक दोसर शेर देखल जाए---

क्रूर स्वप्न आ सुन्दर जीवन देखलौं निन्नसँ जगलापर
कोना हम मानब जँ कियो ई कहलक किछु नै बदलैए

सपना आ यथार्थपर बहुत तर्क वितर्क छै मुदा एकरा काव्यत्मक रूपमे देखू जे की मजा छै।

कहबी छै जे मिथिलामे आगि लागि गेल रहै मुदा तैयो जनक अविचलित रहि गेल छला। दोसर कहबी छै जे रोम जरैत छल आ नीरो बंसी बजा रहल छल। दूनू घटना दुनियाँक दू छोड़पर भेल छल मुदा कतेक साम्यता छै से देखू। एही घटनाकेँ श्री ठाकुरजी ऐ शेरमे बान्हि देला--

मनुख जरैए गाम कनैए हमरा की
चद्दरि तनने फोंफ कटैए हमरा की

तेरहम गजल देखू--
अकत तीत प्रेमक जे पथिक अदौकालसँ
धतालबूढ़ प्रेमकेँ बोहेलक दुनू हाथसँ

निर्मल आंगुरसँ छूबै जे ओकर पुठपुरी
फरफैसी पसारै निदरदी अगिलकण्ठ जँ

निमरजना प्रेम जे छलै धपोधप निश्छल
बिदोरै लेल प्रेमीकेँ छलै ओ कड़ेकमान तँ

अकरतब कर्तव्यमे भेद नै बुझलकै जे
जराउ प्रेमक गप्प नै कहियो नुकेलकै जँ

खञ्जखूहर ऐरावत नै बाटक छेँ बाटमे
धांगि बाट बनेबाक दाम अगूबार पेने छँ

ऐ गजलमे शाइर संस्कृतक अनुकरणपर काफिया मात्र चंद्रबिंदुकेँ लेने छथि ( मात्र प्रयोगक खातिर)

ऐ गजल सभहँक अलावे ऐ संग्रहमे अजाद गजल ओ बाल गजल सेहो अछि मुदा हम अपन विचारकेँ विराम दऽ रहल छी आ आग्रह करै छी जे मैथिली गजलक प्रयोगसँ गुजरबाक लेल ऐ संग्रहकेँ जरूर पढ़ी।



बुधवार, 16 जुलाई 2014

गजल

दुनियाँ अन्हार तोरा बिनु
सभटा बेकार तोरा बिनु

हेड़ा गेलै हँसी हम्मर
छै नोरक धार तोरा बिनु

आँचर काजर पिआसल छै
नै छै उद्धार तोरा बिनु

तोहर छोड़ल इयादे टा
करतै उपकार तोरा बिनु

चीन्हल जानल मुदा तैयो
छी अनचिन्हार तोरा बिनु


सभ पाँतिमे 2222-1222 मात्राक्रम अछि

गजल

प्रिय चलू संग एकातमे
डुबि रहब मिठगर बातमे

अनसहज नै बुझू लग हमर
आउ बैसू हमर कातमे

अछि बरसि रहल जे मेघ झुमि
भीज जायब ग बरिसातमे

गुन गुना लिअ गजल आइ जुनि
संग मिलि केर सुर सातमे

फेर एहन मिलत नै समय
लिअ मजा प्रेमकेँ मातमे

बहरे – मुतदारिक

© कुन्दन कुमार कर्ण

मंगलवार, 15 जुलाई 2014

गजल

गजल - 9

मूड हमर किछु गरबर अछि
बोल हुनक बड करगर अछि

सूनि हुनक बोली बुझलौ
बाप ब​ऽरक बड धरगर अछि

दाँत टुटल मूँहक सभटा
पाइ बेर धरि दतगर अछि

रीति कोन बेटा बेचब​
गप्प हमर धरि खरगर अछि

राम कतय बेटी ब्याहब​
गाम​-गाम में अजगर अछि

सभ पाँतिमे मात्राक्रम – 2121+2222
© राम कुमार मिश्र

गाम: रमौलीबहेड़ादरिभंगा

शनिवार, 12 जुलाई 2014

गजल


गेलहुँ हम हुनका लग
एलथि ओ हमरा लग

चोट छलै पैघ मुदा
बजबै हम ककरा लग

रंगक धुरखेलामे
करिया छै उजरा लग

हुनकर देह हमर देह
धधरा छै धधरा लग

बनि गेलै जोग हमर
अपने छथि पतरा लग

सभ पाँतिमे 22+22+22 मात्राक्रम अछि।
दू टा अलग-अलग शब्दक लघुकेँ एकटा दीर्घ मानबाक छूट लेल गेल अछि।
चारिम शेरक पहिल पाँतिक अंतिम लघु अतिरिक्त छूट अछि।
सुझाव सादर आमंत्रित अछि

रविवार, 6 जुलाई 2014

हजल

एक दिन कनियांसँ भेलै झगडा
मारलनि ठुनका कहब हम ककरा

ओ पकडलनि कान आ हम झोंट्टा
युद्ध चललै कारगिल सन खतरा

मारि लागल बेलनाकेँ एहन
फेक देलक आइ आँखिसँ धधरा

बाघ छी हम एखनो बाहरमे
की कहू ? घरमे बनल छी मकरा

एसगर कुन्दन सकत कोना यौ
ओ हजलकेँ बुझि लए छै फकरा

मात्राक्रम: 2122-2122-22

© कुन्दन कुमार कर्ण
तोहर मतलब प्रेम प्रेमक मतलब जीवन आ जीवनक मतलब तों