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सोमवार, 27 मार्च 2017

आशीष अनचिन्हारक सभ लेख-आलेख-समीक्षा-आलोचना एकै ठाम

1
गजलक साक्ष्य

हमरा आगूमे पसरल अछि “अपन युद्धक साक्ष्य” तारानंद वियोगीक गजल संग्रह। चालीस गोट गजलकेँ समेटने। लोककेँ छगुन्ता लागि सकैत छैक जे मैथिलीमे गजलक आलोचना कहिआसँ शुरू भए गेलैक। ऐ छगुन्ताक कारण मुख्यत: हम दू रूपेँ देखैत छी पहिल तँ ई जे गजल कहिओ मैथिली साहित्यक मुख्यधारामे नै आएल दोसर-मैथिल-जन एखनो गजलक समान्य निअम आ ओकर बनोत्तरीसँ परिचित नै छथि। समान्ये किएक अपने-आपकेँ गजल बुझनिहारक सेहो हाल एहने छन्हि। बेसी दूर नै जाए पड़त। “घर-बाहर” जुलाइ-सितम्बर 2008ई.मे प्रकाशित अजित आजादक लेल
“कलानंद भट्टक बहन्ने मैथिली गजलपर चर्च” पढ़ि लिअ मामिला बुझबामे आबि जाएत। जँ विष्यान्तर नै बुझाए तँ थोड़ेक देरले तारानंद वियोगीक पोथीसँ हटि अजादजीक लेखक चर्च करी। ऐ लेखक पहिले पाँति थिक- मैथिलीमे गजल लिखबाक सुदीर्घ परम्परा रहल अछि.....। मुदा कतेक सुदीर्घ तकर कोनो ठेकाना अजादजी नै देने छथिन्ह। फेर एही लेखक दोसर पैरामे अजित जी दूमरजामे फँसल छथि। ओ मैथिल द्वारा समान्य गप-सप्पमे गजलक पाँति नै जोड़बाक प्रथम कारण मानैत छथि। जे मैथिलीमे शेर एकदम्मे नै लिखल गेल। आब पाठकगण कने धेआन देल जाए। लेखक पहिल पाँति तँ अपनेकेँ धेआन हेबोटा करत जे मैथिलीमे गजलक सुदीर्घ....।” सभसँ पहिल गप्प जे गजल किछु शेरक संग्रह होइत छैक आ दोसर गप्प ई जे जँ
अजाद जीक मोताबिक शेर लिखले नै गेलैक तँ फेर कोन प्रकारक सुदीर्घ परंपराकेँ मोन पाड़ि रहल छथि अजादजी। ऐठाम गलती अजाद जीक नै मैथिलीक ओहि गजलकार सभक छन्हि जे गजल तँ लिखैत छथि मुदा पाठककेँ ओकर परिचए, गठन, निअम आदि देबासँ परहेज करैत छथि। ओना प्रसंगवश ई कहबामे कोनो संकोच नै जे गजल कखनो लिखल नै जाइत छैक। मुदा मैथिलीक धुरंधर सभ गजल लिखैत छथि। मूल रूपसँ अरबी-फारसी-उर्दूमे गजल कहल जाइत छैक लिखल नै। पाठकगण गजलक ई निअम भेल। आब फेरो अजित जीक लेखकेँ आगू पठू आ अपन कपार पीट अपनाकेँ खुने-खूनामे कए लिअ। अजित जी अपन संपूर्ण लेखमे जै शेर सभ मक्ता कहलखिन्ह अछि वस्तुत: ओ मक्ता छैके नै। पाठकगण मोन राखू, मक्ता गजलक ओहि अंतिम शेरकेँ कहल जाइत छैक जैमे गजलकार (एकरा बाद हम शाइर शब्द प्रयुक्त करब, अहूठाम मोन राखू शायर गलत उच्चारण थिक।) अपन नाम वा उपनामक प्रयोग करैत छथि। (अहूठाम मोन राखू हरेक गजलमे नाम वा उपनामक समान प्रयोग होएबाक चाही ई नै जे एकरा गजलक मक्ता तारानंदसँ होअए आ दोसर गजलक मक्ता वियोगीक नामसँ नामसँ।) मुदा आश्चर्य रूपेण अजादजी जै शेर सभकेँ मक्ता कहलखिन्ह अछि ओइमे कोनो शाइरक नाम- उपनाम नै भेटत। ओना अजितजी हिन्दीक सुप्रसिद्ध शाइर छथि तकर प्रमाण ओ लेखक प्रारंभेमे दए देने छथि।
हँ तँ ऐ लेखक संक्षिप्त अवलोकनक पछाति फेरसँ वियोगी जीक गजल संग्रहपर चली। तँ शुरूआत करी स्पष्टीकरणसँ, हमर नै वियोगी जीक। सभसँ पहिने ई जे अन्य मैथिली शाइर जकाँ वियोगीओ जी मानैत छथि जे गजल लिखल जाइत छैक। दोसर गप्प जे वियोगीजी द्वारा देल अपन भाषा संबंधी विचारसँ लगैत अछि जे भनहि वियोगीजी उर्दू सीख उर्दूक पोथी पढ़ैत हेताह मुदा गजल तँ किन्नहुँ नै लिखैत हेताह,कारण, पाठकगण धेआन देल जाए। अरबी-फारसी-उर्दू तीनू भाषाक छंदशास्त्र एकमतसँ कहैए जे दोसर भाषाकेँ तँ छोड़ू अपनो भाषाक कठिन शब्दक प्रयोग गजलमे नै हेबाक चाही। ठीक उपरोक्त भाषाक निअम जकाँ मैथिलीओ मे निअम छैक। तँए महाकवि विद्यापति अपन कोनहुँ गीतमे कृष्ण, विष्णु आदिक प्रयोग नै केने छथि। मुदा वियोगी जी अपन पोथीक नाम रखने छथि “अपन युद्धक साक्ष्य”। जनसमान्य युद्ध तँ कहुना बुझि जेतैक मुदा साक्ष्य....। ऐठाम प्रसंगवश ई कहब बेजाए नै जे वियोगीजी अपनाकेँ अनअभिजात शब्दक प्रयोग
मानैत छथि। आब हमरा लोकनि ऐ पोथीमे प्रस्तुत चालीसो गजलक चर्च करी। पहिले भाषाकेँ देखी। ओना वियोगीजी भाषा संबंधी गलती जानि बूझि कए लौल-वश ततेक ने कएल गेल छैक जकरा अनठा कए आँगा बढ़ब संभब नै। एकर किछु उदाहरण प्रस्तुत अछि- दोसर गजलक मतलाक दोसर पाँतिमे दुखक बदला यातना। अही गजलक दोसर शेरक पहिल पाँतिमे नाराक बदला जुमला। तेसर गजलक दोसर गजलक दोसर शेरक दोसर पाँति धधराक बदला ज्वलन। अही गजलक अंतिम शेरमे प्रयुक्त तन्वंग, आब एकर अर्थ जनताकेँ बुझबिऔ। फेर आगू गजलक दोसर शेरमे नजरि केर बदला दृष्टि, दसम गजलक दोसर शेरमे उन्यक जगह विपरीत। एगारहम गजलक मतलामे दुबिधाक जगह द्धैध। तेरहम गजलक तेसर शेरमे नेकदिली आ बदीक प्रयोग। तइसम गजलक अंतिम शेरमे भटरंगक बदला बदरंग। पचीसम गजलक तेसर शेरमे इजोरिआक बदला ज्योतसना। चौतीसम गजलक मतलामे दुख केर बदलामे पीड़-इत्यादि। ओना ऐ उदाहरणक अतिरिक्त हरेक गजलमे हिन्दी, उर्दू, संस्कृत आदि भाषाक तत्सम बहुल शब्दक ततेक ने प्रयोग भेल छैक जे गजलक मूल स्वर, भाव-भंगिमा, रसकेँ भरिगर बना देने छैक। तैपर वियोगीजी गर्व पूर्वक घोषणा केने छथि जे ओ ओइ परिवारक नै छथि जिनका संस्कारमे अभिजात शब्द भेटल हो। बिडंबना छोड़ि एकरा किछु नै कहल जा सकैए। जँ चालीसो गजलक भाषाकेँ धेआनसँ देखल जाए तँ हमरा हिसाबें वियोगीजी ऐ गजल सबहक मैथिली अनुवाद कए देथिन्ह तँ बेसी नीक हेतैक। भाषासँ उतरि आब गजलक विचारपर आएल जाए। बेसी दूर नै जाए पड़त-तेसर गजलक अंतिम शेरसँ मामिला बुझबामे आबि जाएत। सोझे-सोझ ई शेर कहैए जे- लोककेँ अपन जयघोष करबामे देरी नै करबाक चाही आ काज केहनो करी चान-सुरूजक पाँतिमे अएबाक जोगाड़ बैसाबी। ओना हम एतए अवश्य कहब जे ई कोनो राजनीतिक विचार नै छैक जकर स्पष्टीकरण दए-वियोगीजी अपन पतिआ छोड़ा लेताह। ई विशुद्ध रूपे समाजिक विचार छैक आ ऐ विचारसँ समाजपर की नकारात्मक प्रभाव पड़लैक वा पड़तैक तकर अध्ययन अवश्य कएल जेबाक चाही। मुदा एहन नकारत्मक विचार ऐ संग्रहमे कम्मे अछि। संग्रहक किछु सकारात्मक विचार प्रस्तुत अछि। दसम गजल केर अवलोकन कएल जाउ। निश्चित रूपसँ वियाेगीजी एकरा परिर्वतनीय विचार रखलाह अछि ई कहि जे-
देस हमर जागत अच्रक एना चलि ने सकत
हारि लिखब झण्डा के आदमीक जीत लिखब।

पाठकगण आजुक समएमे झण्डाक विपरीत गेनाइ सहज गप्प नै। तहिना चारिम गजलक तेसर शेरक पहिल पाँति- राम राज्यक स्थापना लेल भरत-लक्ष्मण झगड़ि रहला। कतेक सटीक व्यंग्य अछि से सभ गोटे बुझैत हेबैक। ओतै आजुक भ्रमोत्पादक सरकारपर तै दिनमे लिखल अड़तीसम गजलक मतलाक पहिल पाँति देखू-

राजनीति भटकल तँ डूबल मझधार जकाँ।
विचार संबंधी प्रस्तुत उदाहरणसँ स्पष्ट अछि जे सकारात्मक विचार बेसी अछि। मुदा कहबी तँ सुननहि हेबैक अपने जे एकैटा सड़ल माछ.....। अस्तु आब ऐ गजल संग्रहक व्याकरण पक्षकेँ देखल जाए। ऐठाम ई स्पष्ट करब आवश्यक जे मैथिली गजल अखनो फरिच्छ भए कए नै आएल अछि जैसँ हम बहर (छंद) आदिपर विचार करब। तँए ऐठाम हम मात्र रदीफ आ काफियाक प्रयोगपर विचार करब। पाठकगण गजलमे रदीफ ओइ शब्द अथवा शब्द समूहकेँ कहल जाइ छैक जे गजलक मतलाक (गजलक पहिल शेरकेँ मतला कहल जाइत छैक।) दुनू पाँतिमे समान रूपसँ आबए आ

तकरा बाद हरेक शेरक अंतिम पाँतिमे सेहो समान यपे रहए। तहिना काफिया ओइ वर्ण अथवा मात्राकेँ कहल जाइत जे रदीफसँ तुरंत पहिने आबैत हो जेना एकटा उदाहरण देखू- दूटा शब्द लिअ, पहिल भेल अनचिन्हार ओ दोसरमे अन्हार। आब मानि लिअ जे ई दुनू शब्द कोनो गजलक मतलामे रदीफक तुरंत बादमे अछि। आब जँ गौरसँ देखबै तँ भेटत जे दुनू शब्दक तुकान्त “र” छैक। तँ एकर मतलब जे “र” भेल काफिया (काफिया मतलब तुकान्त बूझू) तेनाहिते मात्राक काफिया सेहो होइतैक जेनाकि- राधा आ बाधा दुनू शब्द आ'क मात्रासँ खत्म होइत अछि तँए ऐमे आ'क मात्रा काफिया अछि। “एहि” आ “रहि” दुनूमे इ'क मात्राक काफिया अछि। अन्य मात्राक हाल एहने सन बूझू। तँ फेर चली ऐ संग्रहक व्याकरण पक्षपर- ऐ संग्रहक किछु गजलमे काफियाक गलत प्रयोग भेल छैक- उदाहरण लेल सातम गजलकेँ देखू। मतलाक शेरमे काफिया अछि “न” (भगवान आ सन्तान)। मुदा वियोगीजी आगू देासर शेरमे काफिया “म” (गुमनाम) केँ लेलखिन्ह अछि जे सर्वथा अनुचित। तेनाहिते सताइसम गजलक उपरोक्त “म” काफिया बदलामे “न” काफियाक प्रयोग। कुल मिला कए ई गजल संग्रह ओतेक प्रभावी नै अछि जतेक की शाइर कहैत छथि। हँ एतेक स्वीकार करबामे हमरा कोनो संकोच नै जे ई गजल संग्रह ओइ समएमे आएल जै समएमे गजलक मात्रा कम्मे छल। आ शाइर आ गजल संग्रह सेहो कम्मे जकाँ छल।
प्रसंगवश एही कथित गजल संग्रहक दोसर संस्करण 2016 मे आएल जकर प्रकाशक किसुन संकल्प लोक अछि। अइमे कथित पुरना गजलक संग 25 टा नव कथित गजल सहो देल गेल अछि आ संगे-संग बारह टा गीत सेहो जोड़ल गेल अछि। मुदा अफसोच जे वियोगीजी 22 सालसँ ओही कात लटकल छथि हुनकर गजलमे कोनो प्रगति नै अछि। तथापि अइ नव संस्करणक भूमिकामे देल गेल किछु तथ्यपर चर्चा करी--

1) वियोगी जी लिखै छथि जे "एहि बीच दू-दू टा नवका पीढ़ीक आगमन मैथिली गजलक क्षेत्र मे भ' गेल"। मुदा प्रश्न उठै छै जे कोन-कोन पीढ़ी तकर उत्तर अइ भूमिकामे नै भेटत। ई पहिल बेर नै अछि जे वियोगीजी आ हुनक समकालीन कथित गजलकार सभ पाठककेँ अन्हरियामे हथोड़िया मारबाक लेल छोड़ि दै छथि। वस्तुतः वियोगीजी आ हुनक समकालीन शाइर सभ गजलक संदर्भमे अपने अन्हारमे हथोड़िया मारैत रहला अछि।

2) वियोगीजी दरभंगा रेडियो स्टेशनक संगीत रचनाकार जवाहर झाकेँ मोन पाड़ैत लीखै छथि ओ (जवाहर झा) हमर छान्दस प्रयोग सभक संगीत शास्त्रीय व्याख्या करथि। हमरा बुझाइए जे या तँ वियोगीजी संगीतक व्याकरणकेँ छंद (बहर) मानि लेने छथि या जवाहरजी। दूनू अवस्थामे ई दूनू गोटा गलत छथि।

कुल मिला कऽ पहिल आ दोसर दुन्नू संस्करण बिना बहर बला अछि।



(ई आलेख 21/3/17 केँ एडिट कएल गेल अछि)

2

पहरा-अधपहरा

आइ हम पढ़लहुँ बाबा बैद्यनाथ कृत " पहरा इमानपर " जे की 1989मे प्रकाशित भेल आ ऐमे कुल मिला तीस टा गजल अछि। धेआन देबै विभक्ति शब्दमे सटल अछि आ ई गजलकारे द्वारा कएल गेल अछि आ हमरा लोकनि सेहो ऐ परम्पराक अनुयायी छी। तीसटा गजलकेँ छोड़ि ऐ संग्रहमे आरसी प्रसाद सिंह, गोपाल जी झा गोपेश, सोमदेव, मार्कण्डेय प्रवासी, जीवकान्त, रमानंद झा रमण, छात्रानंद सिंह झा ओ विभूति आनंद जीक संक्षिप्त टिप्पणी सेहो अछि। ई गजल संग्रह मात्र 32 पन्नाक अछि। आश्चर्य ऐ गप्पक जे 1989मे प्रकाशित भेलाक बाबजूदो ओहि समयक आन गजलकार ( जे की एखनो जीवित आ रचनारत छथि ) ऐ गजल संग्रह कोनो चर्चा नै केने छथि। जँ गौरसँ अहाँ 1989-2008 बला कालखण्ड देखब तँ बहुत कम्मे ठाम हिनक वा हिनकर पोथीक चर्च भेटत आ ओहूमे अधिकांश चर्च अ-गजलकार ( मुदा अपना विधामे प्रतिष्ठित ) रचनाकार द्वारा भेल अछि।
की कारण छै जे एकटा गजलकार दोसर गजलकारक चर्चा नै करए चाहैत अछि। खराप वा नीक बादक विषय भेल मुदा चर्चा तँ हेबाक चाही। हमर गजल एहन, हमर गजल ओहन ऐ तरहँक चर्चा बहुत भेटत मुदा एकटा गजलकार दोसर गजलकारक चर्चा नै करत। आखिर किए ? वा एना कहू जे गजलकारक चर्चा के करत कथाकार की नाटककार  आ की आन। जँ ई सभ करबो करता तँ ओहन समयमे जखन की गजल पूर्णरूपेण विकसित भ' क' देखार भ' जाएत तखन। मुदा प्रारम्भिक कालमे तँ स्वयं एक गजलकारकेँ दोसर गजलकारक चर्चा कर' पड़तन्हि, आलोचना आ समीक्षा कर' पड़तन्हि तखने आनो आलोचक सभ गजलपर लिखबाक प्रयास करता। जँ प्रारम्भिके कालमे अहाँ सोचि लेबै मात्र हमरे गजल चर्चा योग्य दोसरक नै तखन अहाँ गजल लीखू की आन कोनो विधा ओकर विकास नै हएत।  मात्र पुरने गजलकार सभमे एहन बेमारी छै से नै नव गजलकार सभ सेहो ऐ बेमारीकेँ पोसने छथि। नवमे देखी तँ चंदन झा, राजीव रंजन मिश्र, पंकज चौधरी नवल श्री,जगदानंद झा मनु, अमित मिश्र आदिमे आलोचना-समालोचना-समीक्षा लिखबाक प्रतिभा छनि मुदा ओकरा उपयोग नै करै छथि। आब हमरा लग ई प्रश्न अछि जे जँ ई सभ केकरो चर्च नै करथिन्ह तँ हिनका लोकनिक चर्च के करत। आब ई सभ जरूर कहता जे हम सभ स्वानतः सुखाय रचना करै छी तँए हमर  समीक्षाक कोनो जरूरति नै मुदा हमरो बूझल अछि, हुनको बूझल छन्हि आ सभकेँ बूझल छै जे साहित्यकार केखनो स्वानतः सुखाय रचना नै करै छै। केकरो ने केकरो लेल ओ रचना जरूर रचै छै.................खास क' एहन समयमे जखन की हरेक रचनाकार अपना आपकेँ प्रगतिशील आ जनवादी घोषित करै अछि। हमरा बुझने कथित स्वानतः सुखाय बला रचना जनवादी आ प्रगतिशील भैए नै सकैए। कारण प्रगतिशील आ जनवादी रचना जनता लेल लिखल जाइ छै स्वानतः सुखाय लेल नै। हमरा बुझने आने विधाकार जकाँ प्रारम्भिक दौरमे गजलकारकेँ गजलक दिशा बनाब' पडतै। हँ बादमे बहुत सम्भव जे आनो विधाकार सभ गजल आलोचनापर हाथ चलाबथि मुदा शुरू तँ गजलकारेकेँ कर' पड़तै।  सभ नव-पुरान गजलकारकेँ ऐ दिशामे सोचबाक चाही। हरेक पोथीमे नीक वा खराप रहै छै मुदा जँ चर्चे नै करबै तँ ओ सोंझा कोना आएत। हमरा जनैत एक गजलकार द्वारा दोसर गजलकारक आलोचना नै करबाक परंपरा जे सियाराम झा सरस जी द्वारा शुरू कएल गेल तकरा चंदन झा, राजीव रंजन मिश्र, पंकज चौधरी नवल श्री, अमित मिश्र आदि नीक जकाँ बढ़ा रहल छथि। आ अंततः ई भविष्य लेल खतरनाक साबित हएत। मुदा ओमप्रकाश जी हमर कथनक अपवाद छथि। ओ जतबा मनोयोगसँ अपन गजल लीखै छथि ततबा मनोयोगसँ ओ दोसरक गजल पढ़ि ओकर आलोचना समीक्षा करै छथि। हमरा जनैत ओमप्रकाश जी मैथिली गजलक पहिल आलोचक-समालोचक-समीक्षक छथि ( बहरयुक्त कालखण्ड बला )। चंदन झा, राजीव रंजन मिश्र, पंकज चौधरी नवल श्री,जगदानंद झा मनु, अमित मिश्र आदि ओमप्रकाश जीसँ प्रेरणा ल' क' कमसँ कम बर्खमे एकटा गजल पोथीक आलोचना लिखथि तँ मैथिली गजल नीक दिशामे आबि जाएत। नव गजलकारकेँ बहुत बेसी दायित्व लेब' पड़तन्हि तखने गजलक दिशा सही हेतै। आ जँ गजलक दिशा सही भेलै तँ बूझू जे गजलकारक दिशा सेहो सही भ' गेलै। ओना हम ई जरूर कह' चाहब जे हरा लोकनि ऐ बहसमे समय नै बरबाद करी जे के आलोचना केलाह आ के नै केला। जे भेलै से भेलै मुदा आबसँ शुरू भ' जेबाक चाही।
आब हमरा लोकनि आबी बाबा बैद्यनाथ जीक कृतिपर। कृति थिक गजल आ तँए हम एकरा तीन भागमे बाँटब--
१) व्याकरण पक्ष २) भाषा पक्ष, आ ३) भाव पक्ष
तँ पहिले देखी व्याकरण पक्ष। ऐ संग्रहक कोनो गजलमे वर्णवृत नै अछि। मने पूरा-पूरी ई संग्रह बेबहर गजल संग्रह थिक। किछु उदहारण देखू। पहिने ऐ संग्रहक पहिल गजलक मतला आ तकर बाद ओकर दोसर शेर देखू----
एक बेर फेरु नजरि शरण हम आयल छी
२१२-१२२-१२-१२२२२२
वा २१२-१२-२२१२-१२२२२२
सौंसे संसारसँ हम सदति सताएल छी
२२२२२२-१२-१२२२
वा २२२२११-२२१-१२२२

ई छल मतला आ एकर दूनू तरहें होमए बला मात्रा क्रम अहाँ सभहँक सामनेमे अछि। कहबाक मतलब जे मतलामे वर्णवृत नै अछि। आब कने एही गजलक दोसर शेर देखी---

सभ दिन हम मोह निशामे सूतल रहलौं
२२२११-२२२२२२२
व्यर्थ-जंजालमे हम जन्म गमायल छी
२१२२-१२२२-११२२२
वा २१-२२१२२१२-१२२२
तँ हरा लोकनि ई देखि रहल छी जे गजलमे वर्णवृत नै अछि मने गजल बहर युक्त नै अछि।
आ ई हालति प्रायः तीसो गजलमे अछि। कोनो गजलक कोनो शेरक दुन्नू पाँतिमे तँ वर्णवृत आबि जाइए मुदा ओकर आगू-पाछू बलामे नै। जेना एकटा उदाहरण देखू। ई उनतीसम गजलक मतला थिक--
भोर भागल जेना दूपहर देखि कs
२१२२-२२२-१२२-११
गाम गामो ने रहलै शहर देखि कs
२१२२-२२२-१२२-११
तँ हमरा लोकनि ई देखलहुँ जे ऐ मतलामे तँ वर्णवृत अछि। मुदा एही गजलक आगूक शेर देखू---
आयत गरमी जखन नहि पानियें पड़त
२२२२-१२२२-१२-१२
हेतै खेती ने छुच्छे नहर देखि कs
२२२२२२२-१२२-१२
आब अहाँ सभ अपने बूझि सकै छिऐ जे गड़बड़ी कत' छै। संग्रहक तीसो गजलमे ई बेमारी छै। किछु लोक कहि सकै छथि जे भ' सकैए जे शाइर ओहि समयमे हिन्दी गजलमे प्रचलित मात्रिक छन्दमे लिखने हेता। तँ हमर कहब जे मात्रिक छन्द गजलक छन्द होइते नै छै आ दोसर गप्प जे ओ उदाहरणमे देल शेरक मात्राकेँ जोड़ि ईहो देखि लेथु जे मात्रिक छै की नै।
व्याकरणमे मात्र बहरे ( वर्णवृते ) नै होइ छै काफिया आ रदीफ सेहो होइत छै। ऐ संग्रहक रदीफ ठीक अछि ( कारण रदीफ अपरिवर्तित होइ छै तँए --) । ऐ संग्रहक अधिकांश काफिया ठीक अछि मात्र किछुए काफिया गलत अछि। आ हमरा बुझैत ओइ समय ( १९८९क ) केर हिसाबसँ ई बहुत बड़का उपल्बधि अछि। जखन की आइ २०१३मे एहन स्थिति अछि जे गजलपर एतेक चर्चाक बादों महान गजलकार सभ काफिया एहन सरल वस्तुमे गलती करै छथि। हमरा हिसाबें बाबा बैद्यनाथ जी ऐ लेल बधाइ केर पात्र छथि। आब देखी किछु गलत काफियाक सूची जे ऐ संग्रहमे अछि---
दोसर गजलक मतला---
झगड़ा कियै बझल छै गामक सिमानपर
पहरा कोना लगयबै लोकक इमानपर
ऐ मतलामे काफिया शास्त्रक हिसाबें  काफिया भेल--- " इ " स्वरक संग "मानपर"। मुदा एकर बाद आन-आन शेर सभमे क्रमशः " गुमानपर ", " जानपर", "पुरानपर " ," दलानपर " , " कुरानपर ", " नादान पर", " तूफानपर" आ "कृपाणपर" अछि। (जँ ऐ गजलमे पर विभक्ति नै रहतै तँ काफिया ऐ मतलामे काफिया शास्त्रक हिसाबें  काफिया होइतै--- " इ " स्वरक संग "मान" संगे-संग जँ मतलामे "सिमानपर" केर बाद जँ " जानपर" आबि जइतै तखन ऐ गजलक सभ काफिया एकदम्म सही भ' जइतै। आब हमरा विश्वास अछि जे गजलक जानकारक संग पाठक सभ सेहो बुझि गेल हेता जे गड़बड़ी कत' छै )| ठीक इएह गड़बड़ी ऐ संग्रहक गजल संख्या 16,13,19 आ 27मे सेहो अछि। तहिना गजल संख्या दसकेँ देखू। ई गजल बिना रदीफक अछि ( बिना रदीफकेँ तँ गजल भ' सकैए मुदा बिना काफियाक नै )---

पहिल शेर अछि--

क्यो एकरा दयौक नहि टोक
ई अछि बहिरा ओ अछि बौक
आन शेरक काफिया अछि--झोंक, थोक, नोक, आलोक आदि। काफिया शास्त्रक हिसाबें टोक केर काफिया, थोक, नोक, आलोक , आदि। मुदा ऐ शेरमे टोक केर काफिया अछि बौक जे की गलत अछि।
आब आबी कने ऐ संग्रहक भाषा पक्षपर। भाषा तँ ऐ संग्रहक मैथिली थिक मुदा गजल संख्या ६मे काफिया बैसाब' के चक्करमे एहनो काफिया ल' लेलथि जे की हिन्दीक क्रिया अछि आ मैथिलीमे मान्य नै अछि। गजल संख्या ६ केर मतला देखू---

बन्धुवर कोन बाट दुनियाँ  जा रहल छै

सत्य कानय झूठ कीर्तन गा रहल छै
ऐ गजलक आन शेरक काफिया सभ अछि-- पा, खा, छा, बा ( मूँह बा ), आ ....
आब ई देखू जे एतेक हिन्दी क्रियामेसँ मात्र टूइएटा क्रिया मैथिलीमे मान्य छै-- जा एवं खा। बाद बाँकी एखन धरि मान्य नै छै। हमरा हिसाबें अग्राह्य हिन्दी क्रियाकेँ प्रयोग करब भाषाकेँ दूषित करबाक चेष्टा अछि। तथाकथित प्रगतिशील गजलकार नरेन्द्र एही प्रकारक भाषाक प्रयोग करै छथि आ ऐ लेल हम ने बाबा बैद्यनाथ जीक समर्थन करै छी आ ने नरेन्द्र जीक। हँ, एतबा कहबामे हमरा कोनो संकोच नै जे नरेन्द्र जी अपन १००मेसँ ९५टा गजलमे एहन भाषा प्रयोग करै छथि तँ बाबा बैद्यनाथ १००मेसँ १टामे। ओना ऐ ठाम ई जानब रोचक हएत जे एहन काफियाक प्रयोग करब अनुचित नै छै बशर्ते की भाषा बदलि जेबाक चाही। जँ नरेन्द्र जी वा बाबा बैद्यनाथ जी ऐ काफिया सभहँक प्रयोग अपन गामक वा पड़ोसी गामक मैथिलीक जोलहा रूपमे गजल लीखि करथि तँ ई काफिया सभ बिल्कुल सही होइत। हम बाबा बैद्यनाथ जीक उपरमे लेल गेल गजल संख्या ६क मतलाकेँ ऐ रूपमे देखा रहल छी---
भाइ केन्ने दुनियाँ जा रहलइय'
साँच कानै झुट्ठा गा रहलइय'
( आन शेर पाठकक कल्पनापर छोड़ल जाइए)
आब अहाँ अपने अनुभव क' सकै छिऐ जे काफिया तँ वएह हिन्दीक छै मुदा फिट एवं प्रवाहपूर्ण भ' गेल छै। शाइरकेँ मात्र बस एतबा देखबाक छै। नै तँ भाषाकेँ दूषित होइत देरी नै लागत। जँ ऐ काफिया सभहँक प्रयोग मैथिली क जोलहा रूपमे वा चंपारण, मुज्जफरपुर, सीतामढ़ी, बेगूसराय, वैशाली एँ झारखंड बाल मिथिला क्षेत्रक भाषाक संग करबै तँ गजलक कल्याण सेहो हेतै आ मैथिलीक सेहो। भाषाक सम्बन्धमे एकटा आर गप्प ऐ संग्रहक अधिकांश गजलमे मैथिलीक चलंत रूप ( मने गाम-घरमे बाज' बला रूप ) प्रयोग भेल अछि जे की मैथिली गजल लेल शुभ अछि। हँ, एतेक अपेक्षा हम बाबा बैद्यनाथ जीसँ जरूर केने छलहुँ जे ओ पूर्णियाक छथि तँ हुनक रचनामे पूर्णियामे बाजल जाइत मैथिलीक स्वरूप रहत । जँ ऐ अधारपर देखी ई संग्रह कने हमरा निराश केलक ( ई हमर व्यतिगत आलोचना अछि, गजलक व्याकरणसँ फराक देखल जाए एकरा )। जेना की उपरे इंगित क' चुकल छी जे गजलकार स्वयं शब्दमे विभक्ति सटेबाक पक्षमे छथि आ हमरा हिसाबें ई मैथिलीक लेल नीक। आ अन्तमे आउ ऐ संग्रहक भाव पक्षपर। मैथिली साहित्यमे " भाव " सभसँ सस्ता छै। जकरा देखू से भाव केर नाङरि पकड़ि साहित्यिक वैतरणी पार करै छथि। तँए ऐ संग्रहक सभ गजलक भाव पक्ष उन्नत अछि। आ ऐ पक्षपर हमर कोनो कथन नै रहत। कारण जखन सभ पक्ष हमहीं कहि देब तखन तँ पाठकक रूचि खत्म भ' जेबाक डर रहत तँए पाठक संग आन सभ गोटासँ अनुरोध जे बाबा बैद्यनाथ कृत " पहरा इमानपर " नामक गजल संग्रह पठथि आ अपन-अपन विचार देथि। जिनका ई पोथी कोनो कारणवश नै उपल्बध भ' रहल छनि से ऐ लिंकपर जा क' एकर पी.डी.एफ फाइल डाउनलोड क' एकरा पठथि https://dbb13891-a-96a2f0ab-s-sites.googlegroups.com/a/videha.com/videha-pothi/Home/Pahra_Iman_Par.pdf?attachauth=ANoY7cqrLAai8QAw-5s2DKPbDbL7tkHkNm21JzW7JHpvcnMWa4eUTBj1upJeipTdGs5Ktg9FNASU7n1e23fURUkX_RGJ71_vvSGXUY_jCYzAoJL4WNpIi5YRY-krxar5gRQH8bbqGR7PJznA3E4jjZ3p_n8mZob_0_evLolQsqCFMQFI0tK9CAQplBo3fiCIwMurjrvuSmUoaMS3fj98oxyqnZnnb65L3iOIQwe3rykiAnOw3nyPYQA%3D&attredirects=0 । ई डाउनलोड बिल्कुल फ्री अछि मने साहित्यमे प्रयोग होमए बला " भाव "सँ बहुत बेसी सस्ता।
कने रुकू, जे गोटा भाव लेल तरसैत हेता तिनका लेल मात्र किछु शेर हम  देखाबए चाहब ( उनतीसम गजलक आठम शेर )
राति-दिन बउआ खाली कमेन्ट्री सुनए
कियैक पढ़तै क्रिकेटक लहर देखि कs
ऐ शेरकेँ पढ़ू आ तखनुक संग एखुनका समयकेँ देखू। कोनो फर्क नै भेलैए। पहिने रेडियोमे बैट्री नै देल जाइ छलै क्रिकेटक समयमे आब केबल लाइन कटबा देल जाइ छै। पढ़ाइपर क्रिकेटक की असर छै से एकै शेरमे देखा गेल छथि शाइर। पढ़ाइए किए ई क्रिकेट तँ आन छोट-छोट खेलकेँ सेहो नाश क' देलक। शाइर ऐ शेरक माध्यमे सेहो धेआन दिअबैत छथि। एही प्रकारक ज्वलंत मुद्दा सभकेँ बाबा बैद्यनाथ अपन गजलमे लेने छथि जे की आन शाइरक गजलमे दुलर्भ अछि। भाव केर ऐ चर्चामे ११म गजलक अंतिम शेर कहने बिना पूरा नै हएत---
कहियो जँ मोन पड़य अप्पन अतीत जीवन
बस आँखि मूनि दूनू कनियें लजा लिय
ऐ शेरकेँ पढ़ू आ एकर मतलब निकालू। झटहा फेकेलै कहीं आ लगलै कहीं। इएह भेलै गजलत्व जकरा बारेमे कहल जाइ छै जे गजलक शेर सीधा करेजमे लगै छै। जँ एकैसम गजलकेँ देखी तँ निश्चित रूपसँ ई बाल गजल अछि ( बाल गजल रहितों व्यस्क लेल ओतेबे प्रासंगिक अछि ) आ ओजपूर्ण सेहो अछि-

छोड़ू अपन कपटकेँ आ उदार बनू भैया

गाँधी सुभाष नेहरुक अवतार बनू भैया
अइ संग्रहमे श्रृंगार रसक गजल सेहो अछि जे की पाठकक लेल छोड़ल जाइए। तँ आसा अछि जे आब अहाँ सभ जरूर एकरा पढ़बै।

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सूर्योदयसँ पहिने सूर्यास्त


"सूर्यास्तसँ पहिने नाम छन्हि राजेन्द्र विमल जीक गजल संग्रहक।  संग्रहक भूमिका केर अंतिम भागमे विमल जी लिखै छथि जे  मैथिलीक पहिल संग्रह अछि जाहिमे 100 ( एक सए ) गजल प्रस्तुत कएल गेल अछि। मुदा हमरा जनैत 1985मे प्रकाशित गजल संग्रह " लेखनी एक रंग अनेक " जे की रवीन्द्र नाथ ठाकुरकेँ छन्हि ताहिमे कुल 109टा गजल देल गेल छै  संगे-संग कता सेहो छै। तखन विमल जीक  पहिल सन घोषणाकेँ की मतलब ?
 भए सकैए जे विमल जी एकरा नेपालीय मैथिलीकेँ संदर्भमे लिखने होथि मुदा तखन तँ आर गड़बड़ ............ कारण विमल जीक  संग्रहमे कुल 4 ( चारिटा गजल एहन अछि जे की दोहराएक गेल छै। मतलब जे जँ शुद्ध रूपसँ देखी तँ  संग्रहमे कुल ९६टा गजल अछि। हमरा विमल जी एहन लोकसँ  उम्मेद नै छल जे  " पहिल "केँ फेरमे पड़ि एहन काज करताह। इतिहासकेँ अपना फायदा लेल गलत करताह। आब नेपालक सुधि समीक्षक सभ कहताह जे की बात छै। हमर  टिप्पणी मात्र इतिहास शुद्धता लेल छै। गजल संख्या 19  20 एकै गजल अछि। 29  30 एकै गजल अछि। 31  33 एकै गजल अछि। तेनाहिते 56  61 एकै गजल अछि।...
जँ गंभीरता पूर्वक पढ़ल जाए तँ राजेन्द्र विमल जीक कथित गजल संग्रह " सूर्यास्तसँ पहिने " मे बहुत रास एहन रचना भेटत जे की मात्र गीत अछि गजल नै। पता नहि चलि रहल अछि जे गीतकेँ गजल संग्रहमे कोन काज छै।.......................
राजेन्द्र विमल जीक कथित गजल संग्रहमे बहुत रास गीत सभ सेहो अछि। तँ देखल जाए कोन-कोन गीत अछि---पृष्ठ संख्या--1,2,3,14,19,20,23,27,34,42, 47 दोसर कथित गजल गीत अछि। तेनाहिते पृष्ठ संख्या--4,7,8,9,10,11,16,18,29,31,32,36,39 पर कथित रचना बिना बहरक गजल भए सकैत छल मुदा लेखक ओकरा कविता बला ढ़ाँचामे देने छथि। आन कथित गजल सभ गजलक ढ़ाँचामे अछि तँए हम  मानबा लेल बाध्य भए जाइत छी जे कविताक ढ़ाँचा बला सभ कविता अछि। कारण विमल जीकेँ कविताक ढ़ाँचा  गजलक ढ़ाँचामे नीक जकाँ अंतर बूझल छन्हि।  एकर प्रमाण  अपन कथित संग्रहमे सेहो देने छथि।
 
चूँकि ऐ आलोचनाक प्रारम्भिक भाग २०१२क मध्यमे फेसबुकपे देने रही आ तइ क्रममे एहमर एही आलोचनापर किछु टिप्पणी आएल। ऐ टिप्पणीमे प्रेमर्षि जी एकरा प्रेसक गड़बड़ी कहलन्हि। चलू ओतए धरि  बात मानल जा सकै छै......................मुदा गीत  कविताकेँ गजल कहि पाठककेँ बेकूफ बनेबाक  रेकार्ड बनेबाक सेहन्ता किनका रहल हेतन्हि। आचार्य राजेन्द्र विमल जीकेँ वा प्रेस बलाकेँ.......................................... तँए जँ कदाचित संख्या बला गड़बड़ी प्रेससँ भेल छै तैयो गीत  कविता बला गड़बड़ी तँ विमले जीक छन्हि। दोसर गप्प जे मानि लिअ  प्रेसक गड़बड़ी छै   संग्रहक सभ रचना गजल अछि तैयो संदेहक घेरामे विमल जी छथि मात्र विमल जी नै मैथिली गजल ( कथिते बला ) संबंधी ज्ञान सेहो संदेहक घेरामे अछि कारण जखन १९८५एमे १०९ बला गजल संग्रह प्रकाशित भेलै... तखन विमल जीक घोषणा मात्र पहिल बला बेमारीक लक्षण अछि। तँ आब चलू कने फेसबुक परहँक ओइ बहस दिस जे की  आलोचनापर जे की हमरा  धीरेन्द्र प्रेमर्षि जीक भेल छल---( हलाँकि  बहस  ठाम हम  द्वारे दए रहल छी जैसँ पाठक  बुझथि जे मैथिलीमे आलोचना नै सहबाक जड़ि कते गँहीरमे गेल अछि)------------
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 अइ बातपर एम्हर बहस भऽ चुकल छै। प्रकाशकक गलतीक कारणे किछु गजलक पुनरावृत्ति भेल छै। मैथिलीमे  बड भारी समस्या छै जे लेखनमे जतेक ध्यान देल जाइ छै तते प्रकाशनक क्रममे होबऽ वला काजमे नइ। जहाँतक इतिहासक जे बात अछि ताहि सन्दर्भमे शायद अहाँ जनैत हएब जे रवीन्द्रनाथ ठाकुरजीक पोथीमे गजल कत  शायरी सेहो सम्मिलित छनि। नेपालक सन्दर्भमे पहिल सम्पूर्ण मैथिली गजल सङ्ग्रह अवश्य कहल जा सकैए। ओना मिश्रित संग्रहक रूपमे रामभरोस कापडि  राजविराजक एक कोनो माझी सेहो गजलक पोथी बाहर कऽ चुकल छथि।
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Ashish Anchinhar कता  शायरी छोड़ि कुल 109टा गजल देने छथिन्ह रवीन्द्रनाथ ठाकुर। प्रकाशक केर गलती भए सकै छै मुदा भूमिका तँ विमले जीक छन्हि।...
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Ashish Anchinhar शायद अहाँ ईहो जनैत हएबै जे कतारुबाइ  अन्य शायरी विधा ( खाली नज्म छोड़िगजलक अंतर्गत अबै छै।...
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 आशिषजीअहाँ ओइ माध्यमसँ काज कऽ रहल छी जकर सम्पूर्ण नाथपगहा अहाँक हाथमे रहैए। मुदा छापा माध्यम एहन होइ छै जइमे अहाँक सभ कएल धएल पानि भऽ सकैत अछि जँ प्रेसमे काज कएनिहार किछु गडबड कऽ देलक तँ। भूमिका बाँकी सभ चीज छपि गेलाक बाद नइ भऽ सामान्यतया आरम्भेमे लिखल जाइ छै। विमल सर सएटा गजल  तदनुरूप भूमिका लीखिकऽ छापऽ लेल देने रहखिन। प्रकाशनमे संलग्न व्यक्तिसभ मेहीँ आँखिएँ नहि देखि सकल हेथिन  किछु गजलक पुनरावृत्ति भऽ गेल हेतै। अहाँक जानकारीक लेल कहि दी जे  गलती सभसँ पहिने हमरा विमले सर देखौलनि। आब अहाँक कहब  जे जखन अइ तरहेँ गलती भऽकऽ आबि गेलै तँ की विमल सर सभ किताबके जरा दितथिनक्यो व्यक्ति जँ तकनिकी  शारीरिक रूपेँ सभ कार्य स्वयं करबामे सक्षम नहि अछि तँ एकर मतलब  नइ होइ छै जे ओकर कोनो एक बातकेँ लऽकऽ ओकरा लुलुआ देल जाए। अहाँक जानकारीक लेल इहो कहि दी जे विमल सरक दू सयसँ बेसी गजल जहिँतहिँ छिडिआएल पडल हेतनि। हँजँ अहाँके किछु कहबाके छल तँ ओइ पोथीक भूमिकाक सन्दर्भमे कहि सकैत छलियैक जे बहुत विद्वतापूर्णसन देखल जाइतहुँ पोथीमहक गजलसभसँ तादात्म्य स्थापित नहि कऽ पबैत अछि।
51 minutes ago · Unlike · 1
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Ashish Anchinhar अहाँ एकरा गलत संदर्भमे लए रहल छिऐ।  मात्र इतिहास शुद्धता लेल छै। व्यतिगत रूपसँ ऐमे हम किछु नै कहि सकैत छी।..
41 minutes ago · Like · 1
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Dhirendra Premarshi अहाँके पल्लवक गजल अंक भेटल?
37 minutes ago · Unlike · 1
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Dhirendra Premarshi जखन अहाँ 'प्रकाशक केर गलती भए सकै छै मुदा भूमिका तँ विमले जीक छन्हि।लिखबै तँ ओकर आशय गलते लगै छै। अभियानीसभकेँ बहुतो बातक अन्तर्वस्तुकेँ सेहो बूझैत इतिहासक शुद्धिकरण करैत चलबाक चाही।
37 minutes ago · Unlike · 1
 वार्तालापसँ एकटा गप्प ईहो निकलैए जे प्रेमर्षिजीकेँ गजल परम्पराक कोनो जानकारी नै छन्हि। अरबी-फारसी-उर्दूमे " दीवान " शब्दक प्रयोग कएल जाइत छै जैमे गजलकतारुबाइनज्म आदि सभ रहै छै। जेना दिवाने गालिब ( मने गालिब केर एहन संग्रह जैमे गजलकतारुबाइनज्म आदि संग्रहीत छैतेनाहिते दीवाने मीरदीवाने नासिखआदि भेल। हँआधुनिक युगमे किछु उर्दूक गजलकार सभहँक एहनो दीवान अछि जैमे खाली गजल छै। मुदा तँए अहाँ  कहि देबै जे नै खाली पोथीमे गजले रहबाक चाही तँ से कतौसँ उचित नै.......... एकटा गप्प आर प्रेमर्षिजी विमलजीक समर्थनमे एते धरि कहै छथि जे.." क्यो व्यक्ति जँ तकनिकी  शारीरिक रूपेँ सभ कार्य स्वयं करबामे सक्षम नहि अछि तँ एकर मतलब  नइ होइ छै जे ओकर कोनो एक बातकेँ लऽकऽ ओकरा लुलुआ देल जाए। " आब  देखू जे जँ  अधारपर हम विमलजीकेँ जँ लुलुआ (आलोचनाकेँ हम लुलुएनाइ नै बूझै छी  प्रेमर्षिजीक विचार छन्हिनै सकै छी तँ फेर मात्र एकटा अधारपर प्रेमर्षिजीक रवीन्द्रनाथ ठाकुरकेँ इतिहाससँ बाहर किएक देलखिन्ह प्रश्नक उत्तर हम मात्र भविष्यसँ चाहै छी।
 वार्तालापकेँ कात करैत हमरा लोकनि फेर चली विमल जी पोथीपर।
विमलजी अपन पोथीमे गजलक परिभाषातत्वबहर आदिक वर्णन केने छथि (मुदा अपूर्ण रूपसँ खास बहरक लेल) ओना  विवरण अनचिन्हार आखरपर २००९सँ प्रकाशित छै  विमल जीक  पोथी २०११मे आएल छन्हि। विमलजी स्वयं इंटरनेट  फेसबुकपर छथि। मुदा विमलजी द्वारा देल गेल विवरण पढ़लापर  प्रश्न अबैत अछि जे पोथीक भित्तर देल गेल गजल सभमे  बहरतत्व आदि किएक नै अछि ? एकर बहुत रास कारण सकैए मुदा हमरा बुझने सभसँ प्रमुख कारण छै जे मात्र विद्वता देखबलेल  विवरण कतौसँ सायास लेल गेल छै ( मने ईंटा किनकोसीमेन्ट किनको  घर बनल विधायक जीक) तँए भूमिकामे देल गेल विवरण  भित्तरक गजल सभमे दूर-दूर धरि ताल-मेल नै बैसैए।

 पाँति धरि अबैत-अबैत अहाँ सभ बूझि गेल हेबै जे  गजल संग्रहमे बहुत झोल-झाल छै। मात्र व्याकरणक दृष्टिएँ नै नैतिक दृष्टिकोणसँ सेहो। ओना जँ भावना आ व्याकरण ठीक रहैत तँ ऐ संग्रहक किछु गजल नीक बनि पड़ैत जेना की ५३म गजल, ८३म गजल आदि। किछु गजल नीक जकाँ नेपालक राजनीतिकेँ घेरने अछि तँ किछु गजल पूरा मैथिली समाजकेँ । भाव आ बिंब तँ प्रायः मैथिलीक हरेक लेखकक नीक रहैत छनि तँ हिनकर किए खराप हेतन्हि। हिनको भाव पक्ष नीक छन्हि।

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छद्म गजल

आलचोना साहित्यमे "काव्याभास" शब्द बेसी प्रचलति छै। "काव्याभास" मने ई जे कोनो रचना काव्य तँ नै थिक मुदा किछु प्रयत्नसँ ओकरा काव्य घोषित कएल गेल हो।आ ई प्रयत्न काव्य स्तरपर सेहो भ' सकैए ओ भाइ-भतीजावाद बला, मूँह देखि मुंगबा बला सेहो भ' सकैए।
मैथिलीमे "सन" शब्द प्रतिरूपक दर्शन लेल व्यवहार होइत अछि। जेना "ई गदहा सन अछि" मने एहन मनुख जकरा लेल ई कहल गेल छै से गदहा तँ नै अछि मुदा ओकर किछु लक्षण गदहा सन छै। आब ई लक्षण रूप रंगसँ आहार-बेबहार ओ गुण-अवगुण धरि भ' सकैए।
मैथिलीक ई सभसँ बड़का बेमारी छै जे जँ घर-परिवारमे वा संबंधमे वा कमसँ कम गतातीमे एकौटा साहित्यकार बनि जाइए तँ बाद-बाँकीकेँ साहित्यकार होइत कनियों देरी नै होइ छै।जँ कियो नै छथि तँ जँ मित्रो छथि तँ साहित्यकार बनबाक गारंटी ( वारंटी बहुत कमजोर शब्द छै)  हेबे करैए मैथिलीमे। स्व. प्रभाष कुमार चौधरी साहित्यकार की भेला... गंगेश गुंजन जीकेँ साहित्यकार होमएमे देरी नै भेल। आ गंगेश गुंजन साहित्यकार छथि तँ हुनक "गजल सन किछु" मैथिली गजलक मीलक पाथर भ' गेल।

"दुःखक दुपहरिया" गंगेश गुंजनजीक लिखल पोथी छनि जे की लेखकक मतानुसार "हमर किछु गीत गजल सन' संकलन" छनि। ई पोथी क्रांतिपीठ प्रकाशन, पटनासँ १९९९मे प्रकाशित भेल। ऐ पोथीक पहिले पाँति थिक "ई संकलन स्वाधीन लयक हमर किछु छन्दोबद्ध रचना सब थिक"। ऐ पाँति महँक दूटा शब्द समूहपर बेसी धेआन देब आवश्यक। पहिल " स्वाधीन लयक" आ दोसर "किछु छन्दोबद्ध रचना"।
कने विषयांतर करैत हम कही जे " ई बच्चा एकटा नपुंसक वा बाँझक थिक" की ई सही हेतै। सभ लोक कहता नै ई संभवे नै छै। तँ चलू आब एही नियमकेँ गुंजनजीक पाँतिपर फिट करी। फिट केलापर अहूँ सभकेँ पता चलि गेल हएत जे "स्वाधीन लय" बला रचना कहियो छंदोबद्ध नै भ' सकैए। छंदोबद्ध रचना अनिवार्यरूपसँ कोनो ने कोनो निश्चित लयमे बान्हल रहै छै। तखन ई कोन छंदोबद्ध रचना थिक। भ' सकैए जे गुंजनजी नव छंदक जन्म देने होथि जेना हिन्दीमे गुलजार त्रिवेणी ओ मैथिलीमे रामदेव प्रसाद मंडल "झारूदार" झारू नामक छंदक अविष्कार केलाह। मुदा गुलजार ओ झारूदार जी ओइ नव छंदक व्यवस्था सेहो देलाह जे ई छंद एना लिखल जाए। मुदा गुंजनजीक पोथीमे एकर अभाव अछि। तँए हम ई मानि रहल छी जे गुंजनजी अन्हार घरमे हथोड़िया दैत मात्र तुकान्त रचनाकेँ छंदोबद्ध कहि गेला। आगू एही भूमिकामे कहल गेल अछि जे " पारंपरिक..... जे गीत-गजल भेटत से अपन सहजतामे"। प्रश्न तँ एहूठाम छै जे गजल तँ केखनो स्वाधीन लयमे होइते नै छै तखन फेर कोन गजल? विषय सूचीमे "कविता क्रम" देल गेल अछि जे सद्यः प्रमाण अछि जे रचनकारकेँ कविता-गीत-गजलक बीच अंतर नीक जकाँ बूझल छनि आ ओ लौल वश सभ विधामे अपन नाम घोसिया रहल छथि वा रचनाकारकेँ ई अंतर सभ नै बूझल छनि जे हुनक ज्ञानक स्तर सेहो भ' सकैए। चूँकि ई पोथी "गीत-गजल सनक किछु संकलन" छै मने निर्विवाद रूपसँ गजल नै छै बल्कि गजल सनकेँ छै ( गीत लेल गीतक आलोचक आबथि आगू) तँए हम आब ऐ पोथीपर बेसी चार्चा नै करब मुदा हम फेरो ई धेआन देआब' चाहब जे गजल नहियों रहैत कोन कारणसँ गुंजनजीकेँ गजलकार मानल गेल। के हुनका गजलकार मानलक। हम ई केखनो नै मानि रहल छी जे गुंजनजीकेँ ज्ञान नै छलनि बल्कि हम तँ हुनक स्पष्टवादितासँ प्रभावित भेलहुँ जे ओ अपन रचनाकेँ गजल नै मानि "गजल सन" मानलथि कारण हुनका पूरा विश्वास छलनि जे हुनक रचना गजलक मापदंडपर नै छनि। मुदा किछु आलोचक प्रभाषजीक आभामंडलमे आबि गुंजनजीकेँ गजलकार बना देलक। आ एहीठामसँ शुरू होइत अछि धुरखेल जैमे स्पष्ट रूपसँ गुंजनजी सेहो भाग लेलथि। गुंजनजी "मैथिली गजल आलोचक" सभहँक अन्हरजालीकेँ नीक जकाँ चीन्हि ओकर फायदा उठौलनि आ अपना-आपकेँ गजलकार मनबाब' लगलथि। आ एहीठामसँ हम हुनक आलोचक बनि गेलहुँ। जै गंगेश गुंजनजीक सपष्टवादितासँ हम शुरूमे प्रभावित रही आब ओही गंगेश गुंजनजीक लौल देखि हम हुनकर कथित गजलक विरोधी छी। पाठक सभ लगमे ई पोथी हेतनि की नै से पता नै तँ आउ अहूँ सभ पढ़ू ई "गीत गजल सन' किछु संकलन" निच्चा बला लिंकपर क्लिक कए कऽ--


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कलंकित चान


"जनकपुर ललित कला प्रतिष्ठान" द्वारा बर्ख 2013 (दिस.मे) श्री राम भरोस कापड़ि "भ्रमर"जीक कथितजल संग्रह- "अन्हरियाक चान" प्रकाशित भेल अछि। पोथीक भूमिकामे भ्रमरजी स्वीकार करै छथि जे गजलक व्याकरणपर ओ गजल नै लिखने छथि संगे-संग ओ समीक्षककेँ सेहो हिदायत देने छथिन्ह जे ओ व्याकरणक तराजूपर ऐ गजल सभकेँ नै तौलतथि। एकर मने ई भेल जे भ्रमरजी अपने मानै छथि जे हुनक गजल "अजाद गजल " आ समीक्षक तँ अजाद गजलक समीक्षा करबाक लेल स्वतंत्र छथि। संगे-संग भ्रमरजी भूमिकाक समीक्षा करबाक लेल कोनो प्रतिबंध नै लगेने छथि तँए समीक्षक भूमिकाक समीक्षा करबाक लेल सेहो स्वतंत्र छथि।ओना भ्रमरजी गजलमे व्याकरणक मजूगत स्थितिसँ परिचित छथि आ तँए ओ अपन सीमाकेँ देखार केलाह जे की स्वागत योग्य गप्प अछि। तँ चलू शुरू करी भ्रमरजीक अजाद गजलक समीक्षा आ तकर बाद हिनकर भूमिकापर।

अजाद गजलक कान्सेप्ट---
जखन कोनो भाषामे कोनो खास विधाकेँ करीब 500-600 बर्ख भ' जाइत छै तखन ओइमे परिवर्तन जरूरी भ' जाइत छै। उर्दू गजलकेँ (जँ भारतीय फारसी गजलकेँ जोड़ि देखी तँ) करीब 500-600 बर्ख भेल छै तँए 1960-70केँ दशकमे उर्दूमे अजाद गजल आएल। एकर मतलब कहल गेलै जे गजलमे बहर कोनो जरूरी नै हँ काफिया भेनाइ आवश्यक अछि ( बिना रदीफकेँ सेहो गजल होइ छै से धेआन राखब जरूरी)। ओनाहुतो बिना काफियाकेँ गजल नै होइत छै से सभ जनै छथि। जँ ऐ अधारपर देखी तँ भ्रमरजी बहुत रास कथित गजल फेल भ' जाइत अछि मने भ्रमरजीक कथित अजाद गजल सेहो अजाद गजल कहबा योग्य नै अछि। किछु उदाहरण देखू--

पोथीक पहिल कथित अजाद गजलक पहिल दू पाँति एना अछि---

ई जनक केर नगरी अपन गाम थिक
ई मिथिला बैदेहीक अपन गाम थिक
मने काफिया गायब। जँ काफिया गाएब तँ तँ गजल नाम्ना विधे गाएब। खएर एहन-एहन दोष ऐ पोथीक गजल संख्या -4,5,6,9,12,14,20,22,23,24,28,29,32,33,34,35,36,39,41 मे भेटत। ओना आन गजलमे किछु ढ़ग तँ छै जकरा काफिया नै बल्कि तुकांत कहब बेसी समीचीन। ईहो मोन राखब जरूरी जे ऐ पोथीमे कुल 44टा गजल अछि।
जँ हम नेपालीय परिसरक हिसाबसँ ऐ पोथीकेँ देखी तँ हमरा ई कहबामे कोनो संकोच नै जे राजेन्द्र विमल जीक गजलकेँ अजाद गजलक श्रेणीमे तँ राखल जा सकैए मुदा भ्रमरजीक गजल तँ अजादो गजलमे स्थान पेबाक योग्य नै अछि। सोंझ तरहें कही तँ भ्रमरजीक ऐ पोथीमे संकलित सभ रचना आन विधा तँ भ' सकैए मुदा गजल, कथित गजल वा अजाद गजल केखनो नै भ' सकैए।

मुदा जत' भ्रमरजी अपन गजल महँक दोष स्वीकार करबाक हिम्मति राखै छथि ओतए विमलजी अपन गलतीकेँ स्वीकार करबासँ हिचकै छथि।ई चारित्रिक अंतर दूनू गोटमे छनि से जिनगी भरि रहतनि तकर कोनो गारंटी हमरा लग नै अछि।

तँ आउ आब पोथीक भूमिकापर—
चूँकि व्याकरणपर हमरा नै जेबाक अछि तँ देखू भ्रमरजीक किछु बिंदु--

1) भ्रमरजी अपन भूमिकामे लिखै छथि जे " हमरा एखनो धरि पना नै अछि, हम कतेक गजल लिखने छी। साढ़े चारि दशकक साहित्यिक यात्रामे कतेको गजल लिखाएल हएत...."
यौजी सरकार, जखन अहाँकेँ अपने गजलक संख्याक बारेमे नै बूझल अछि तखन घर-आँगन, स'र-समाज, देश-विदेशक आँकड़ाक संबंधमे अहाँकेँ की बूझल हएत। भ्रमरजीक उपरोक्त कथन मात्र दंभ भरबाक लेल अछि। मनुख मात्र सभ चीजक हिसाब-किताब रखैए। भ्रमरजी सेहो रखने हेता मुदा हिनका तँ अपना-आपकेँ सुपरमैन कहेबाक छनि तँ लगा देलखिन अज्ञात संख्याकेँ जोर जे हमरा अपन गजल संख्या तँ पते नै अछि मने एते लिखलहुँ जे.......................

मोन पाड़ू आइसँ 30 बर्ख पहिने धरि जड़ल जुन्ना सन ऐंठल दू-चारि बिग्घा खेत बला सभ सेहो कहै छलै जे हमरा तँ अपन खेतो ठीकसँ नै देखल अछि। मिला लिअ भ्रमरजीक विचार।

2) भ्रमर जी फेर ओहीमे लिखै छथि जे " एहि बीच हमरा मोनमे आएल जे गजल जे काव्यविधामे बेछप रूपें रहेत अछि.............."
यौजी सरकार की ब्रम्ह बाबा रातिमे अहाँकेँ सपना देला जे उठ बच्चा काव्य गगनमे गजले टा बेछप विधा छै। आ जँ सत्ते सपना आएल तँ पहिने किएक ने आएल।

ऐ पोथीमे सभसँ आपत्तिजनक बात ई अछि जे प्रस्तुत पोथीमे "बाल-गजल" तँ संकलित अछि मुदा बाल गजलक संदर्भमे कोनो चर्चा नै बेटैत अछि। ज्ञात हो कि मात्र 2012सँ मैथिली बाल गजल शब्दावली प्रचलित अछि। अनचिन्हार आखर ओ विदेहक संयुक्त प्रयासक प्रतिफलन अछि ई बाल गजल मुदा भ्रमर जी बाल गजलक संबंधमे कोनो चरचा नै केने छथि। जेना चरचा केलासँ छोट भ' जेता तेना। ओनाहुतो हम ऐ प्रसंगकेँ अनचिन्हार आखर ओ विदेहक लोकप्रियतासँ जोड़ि क' देखैत छी। ओना भ्रमरजी प्रस्तुत पोथीक बाल गजलकेँ तेना सेट केने छथि भूमिकाक संदर्भमे जेना बुझाइत हो जे ओ मिथिला-मिहिरेक जमानासँ बाल गजल लिखैत होथि।
इतिहासकेँ भ्रमित करैत ई पोथी केक सफल हएत से कहब मोश्किल। हँ एतेक कहब कोनो मोश्किल नै जे ई पोथी मात्र राजेन्द्र विमलजीक प्रतिद्वंदितामे निकलल अछि। आ मात्र ऐ दुआरे जे नेपालमे विमल जीक बाद हमरे नाम हुअए। ओना हमरा ई कहबामे कोनो दिक्कत नै जे विमलजीक पोथी नीक छनि भ्रमरजीक अपेक्षामे।

जे पाठककेँ ई पोथी पढ़बाक इच्छा हो से ऐ लिंकपर आबि क' पढ़ि सकैत छथि-- https://sites.google.com/a/videha.com/videha-pothi/Home/Bhramar_Gajal.pdf?attredirects=0&d=1

तकरा बाद भ्रमरजीकेँ साहसकेँ धन्यवाद दिऔन कारण ओ स्वयं ऐ पोथीक पी.डी.एफ उपल्बध करेने छथि।



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मैथिली गजल व्याकरणक शुरूआती प्रयोग


कोनो साहित्यिक विधा अपना आपमे ता धरि स्वतंत्र नै मानल जा सकैए जा धरि ओकर हरेक समयमे कमसँ कम आठ-दस टा पूर्णकालिक रचनाकार नै भेटै। मुदा ई तथ्य मैथिली साहित्यक कोनो विधापर लागू नै होइत अछि। कहबाक मतलब जे जिनका जते मोन भेलनि से तते विधाक संग बलात्कार केलथि। ई मैथिली भाषा थिक जैमे कोनो लेखक जँ नीक कविता लिखै छथि तँ हुनका नीक कथाकार ओ अन्य विधाक मास्टर सेहो मानि लेल जाइत अछि। आ ऐ तरहँक सर्टिफिकेट बँटबामे मानसिक रूपसँ लोथ विश्वविद्यालीय आलोचक सभहँक भूमिका बेसी रहैत छनि। ऐ ठाम हम स्पष्ट कही जे हरेक विधामे लीखब आ हरेक विधामे अपना-आपके मास्टर कहब वा कहेबाक लेल येन-केन-प्रकारेण छद्म करब दूनू अलग -अलग वस्तु अछि। ऐ ठाम हम जिनकर गप्प करए जा रहल छी से हमरा नजरिमे मूलतः गवेषक ओ कोशकार छथि मुदा ओ गजलहाइकूकवितालघुकथाविहनि कथाआलोचना सहित आन विधामे सेहो रचनारत छथि (मुदा ई उल्लेखनीय अछि जे रचना करैत-करैत ई सभ विधाक लेल एकटा मानक आलोचना कहू वा विधागत नियक कही की व्याकरण कहू से मैथिली भाषाक अनुकूल बनेलाहआ पाठक ई कहबामे धुकचुका जाइ छथि जे कोन विधाक कोन रचना नीक छै। ऐ ठाम ईहो हम कही जे कोनो लेखक केर सभ रचना उत्कृष्ट नै होइ छै। कोनो दबतँ कोनो नीक तँ कोनो मध्यम। ईएह चक्र सभ लेखक संग छै। केओ ऐ चक्रक वास्तविकाकेँ मानै छथि तँ बहुत रास लेखक ओकरा घमंडमे आबि नकार दै छथि। मुदा हमर आलोच्य लेखक ऐ वस्तुकेँ मानै छथि आ ओ तर्क दै छथि जे ई हरेक लेखककेँ मानबाक चाही। ओना साहित्यिक विधाकेँ छोड़ि ई नव लेखककेँ बढ़ावा देबऽमे सभसँ आगू छथि आ हिनक ई विधा आन सभ विधापर भारी अछि। आब ऐठाम अहाँ सभ चकित होमए लागब तँए हम हिनक आन विधाकेँ छोड़ि मात्र गजलपर केंद्रित कऽ रहल छी। जँ मैथिली गजलकेँ देखी तँ भने ई 103 बर्खसँ लिखाइत रहल हो मुदा गजलक व्याकरण बनल 2009मे। आब एकर कारण जे हो । "अनचिन्हार आखर ब्लागपर श्री गजेन्द्र ठाकुरजी बर्ख 2009सँ मैथिली गजल शास्त्र केर शुरूआत केलाह जे 14 खंडमे पूरा भेल। आब ई आलेख हुक गजल संग्रह "धांगि बाट बनेबाक दाम अगूबार पेने छँ"मे आएल अछि।प्रस्तुत गजल शास्त्रमे मैथिली गजल अनेक मौलिक अवधारणाक जन्म भेल। आगू बढ़बासँ पहिने ऐ गजल शास्त्रक किछु मुख्य विशेषता देखल जाए---
1) सरल वार्णिक बहर-- ई ऐ गजल शास्त्रक सभसँ बड़का विशेषता अछि। चूँकि मैथिलीक बहुसंख्यक शाइर बहरक अभावसँ ग्रसित छलाह तँए हुनका सभकेँ एक सूत्रमे अनबाक लेल वैदिक छंदक प्रयोग भेल जकर नाम पड़ल सरल वार्णिक बहरऐ बहरक मोताबिक मतलाक पहिल पाँतिमे जतेक वर्ण हो ओतेक बर्ख गजलक हरेक पाँतिमे भेनाइ आवश्यक। ई बहर ततेक ने लोकप्रिय भेल जे सभ शाइर एक प्रचुर प्रयोग केलथि संगे-सग ई बहर सभ शाइरकेँ वर्णवृत प्रयोग करबाक लेल एकटा नीक बाट देलक तँए हमरा नजरिमे ई बहर आधुनिक मैथिली गजलमे वर्णवृतक प्रयोगक पहिल सीढ़ी अछि।
2) वैदिक छन्दक पुनर्जागरण-- ऐ गजल शास्त्रसँ विलुप्त होइत वैदिक छन्दक पुर्नजागरण भेल। सभ वैदिक छन्द सरल वार्णिक छन्द अछि। वर्तमानमे श्री गजेन्द्र ठाकुर जी  एकरा विवेचित कए मात्र किछुए समयमे आ सेहो सरल रूपें  वेद-विज्ञानक परिचय करबौलथि। एखन जे गजल लिखै छथि वा जे गजेन्द्र ठाकुर जीक पोथी वा अनचिन्हार आखर पढ़ताह हुनका स्वतः ई बुझा जेतन्हि जे गायत्री छन्द की छै आ अनुष्टुप छन्द की। गायत्री छंद ओ गायत्री मंत्रक बीच की संबंध छै से ऐ लेखक सहायतासँ आब सभ बूझऽ लगलाह अछि।
3) बहरक निर्धारण--- ओना तँ वर्णवृत वा बहर गजल विश्वस्तरपर मान्य अछि मुदा भारतमे अबिते ओ विखंडित भेल। केओ हिंदीक अनुकरण करैत मात्रिक लेलाह तँ केओ किछु  मुदा श्री ठाकुरजी बिना कोनो दबाब बनेने शाइर लेल सीमा बना देलखिन। श्री ठाकुरजी कहैत छथि "कोनो गजलक पाँती (मिसरा)क वज्नवा शब्दक वज्न तीन तरहेँ निकालि सकै छीसरल वार्णिक छन्दमे वर्ण गानि कऽवार्णिक छन्दमे वर्णक संग ह्रस्व-दीर्घ (मात्राक क्रम देखि कऽआ मात्रिक छन्दमे  ह्रस्व-दीर्घ (मात्राक क्रम देखि कऽ। जिनका गायनक कनिकबो ज्ञान छन्हि ओ बुझि सकै छथि जे गजलक एक पाँतीमे शब्दक संख्या दोसर पाँतीक संख्यासँ असमान रहि सकैएमुदा जँ ऊपर तीन तरहमे सँ कोनो तरहेँ गणना कएल जाए तँ वज्न समान हएत। मुदा आजाद गजल  बे-बहर होइत अछि तेँ ओतऽ सभ पाँती वा शब्दमे वज्न समान हेबाक तँ प्रश्ने नै अछि। ऐ तीनू विधिसँ लिखल गजलमे मिसरामे समान वज्न एबे टा करत। ओना ई गजलकार आ गायक दुनूक सामर्थ्यपर निर्भर करैत अछिगजलकार लेल वार्णिक छन्द सभसँ कठिनमात्रिक ओइसँ हल्लुक आ सरल वार्णिक सभसँ हल्लुक अछिमुदा गायक लेल वार्णिक छन्द सभसँ हल्लुकमात्रिक ओइसँ कठिनसरल वार्णिक ओहूसँ कठिन आ आजाद गजल (बिनु बहरकसभसँ कठिन अछि।आब ई शाइरपर निर्भर अछि ओ लिखबाक लेल कोन बहर प्रयोग करै छथि मुदा जेना की ठाकुर जी कहै छथि गेबाक लेल वार्णिक छंद सभसँ हल्लुक छै तैसँ अरबी-फारसी-उर्दू गजलक व्याकरणक प्रमाणिकता भेटैत अछि आ हिंदीक नकलवादी शाइर सभहँक धज्जी उड़ि जाइत अछि आ ऐ तरहें मैथिली गजलमे वर्णवृतक प्रयोग सुनिश्चित होइत अछि।
4) गजलबहर आ संगीत-- ऐ गजल शास्त्रमे गजलबहर आ संगीतक मध्य समता ओ विषमताक नीक चर्च अछि। जिनका संगीतक जानकारी नै अछि तकरा लेल ई पोथी अमृतक समान काज करत। मूल तथ्य सभ नीक जकाँ फड़िछाएल अछि जेना---
"जेना वार्णिक छन्दवृत्त वेदमे व्यवहार कएल गेल अछि तहिना स्वरक पूर्ण रूपसँ विचार सेहो ओइ युग सँ भेटैत अछि। स्थूल रीतिसँ ई विभक्त अछि:- 1. उदात्त 2. उदात्ततर 3. अनुदात्त 4. अनुदात्ततर 5. स्वरित 6. अनुदात्तानुरक्तस्वरित, 7. प्रचय (एकटा श्रुति-अनहत नाद जे बिना कोनो चीजक उत्पन्न होइत अछिशेष सभटा अछि आहत नाद जे कोनो वस्तुसँ टकरओलापर उत्पन्न होइत अछि)
1. उदात्तजे अकारादि स्वर कण्ठादि स्थानमे ऊर्ध्व भागमे बाजल जाइत अछि। एकरा लेल कोनो चेन्ह नै अछि।
2. उदातात्तरकण्ठादि अति ऊर्ध्व स्थानसँ बाजल जाइत अछि। ---------------------------------
---------------------ऊहगानसोमयाग एवं विशेष धार्मिक अवसर पर। पूर्वार्चिकसँ संबंधित ग्रामगेयगान ऐ विधिसँ। ऊह्यगान आकि रहस्यगानवन आ पवित्र स्थानपर गाओल जाइत अछि। पूर्वार्चिकक आरण्यक गानसँ संबंध। नारदीय शिक्षामे सामगानक संबंधमे निर्देश:- 1.स्वर-7 ग्राम-3 मूर्छना-21 तान-49
सात टा स्वर सारेध ,निआ तीन टा ग्राममध्यमन्दतीव्र। 7*3=21 मूर्छना। सात स्वरक परस्पर मिश्रण 7*7=49 तान।
ऋगवेदक प्रत्येक मंत्र गौतमक सामगान (पर्ककआ काश्यपक सामगान (पर्कककारण तीन मंत्रक बराबर भऽ जाइत अछि। मैकडॉवेल इन्द्राग्निमित्रावरुणौइन्द्राविष्णुअग्निषोमौ ऐ सभकेँ युगलदेवता मानलन्हि अछि। मुदा युगलदेव अछि –विशेषण-विपर्यय।
वेदपाठ-
1. संहिता पाठ अछि शुद्ध रूपमे पाठ।
अ॒ग्निमी॑ळे पुरोहि॑त य॒घ्यस्य॑दे॒वम्त्विज॑म।होतार॑रत्न॒ धातमम्।
2. पद पाठऐमे प्रत्येक पदकें पृथक कऽ पढ़ल जाइत अछि।
3. क्रमपाठएतऽ एकक बाद दोसरफेर दोसर तखन तेसरफेर तेसर तखन चतुर्थ। एना कऽ पाठ कएल जाइत अछि।
4. जटापाठऐमे जँ तीन टा पद कआ ग अछि तखन पढ़बाक क्रम ऐ रूपमे हएत। कखखककखखगगखखग। 5. घनपाठऐ मे उपरका उदाहरणक अनुसार निम्न रूप हएतकखखककखगगखककखग। 6. माला, 7. शिखा, 8. रेखा, 9. ध्वज, 10. दण्ड, 11. रथ। अंतिम आठकेँ अष्टविकृति कहल जाइत अछि।
साम विकार सेहो टा अछिजे गानकेँ ध्यानमे रखैत घटाओलबढ़ाओल जा सकैत अछि। 1. विकार-अग्नेकेँ ओग्नाय। 2. विश्लेषणशब्द/पदकेँ तोड़नाइ 3. विकर्षण-स्वरकेँ खिंचनाइ/अधिक मात्राक बराबर बजेनाइ। 4. अभ्यासबेर-बेर बजनाइ।5. विरामशब्दकेँ तोड़ि कऽ पदक मध्यमे ‘यति’। 6. स्तोभआलाप योग्य पदकेँ जोड़ि लेब। कौथुमीय शाखा ‘हाउ’ ‘राइ’ जोड़ैत छथि। राणानीय शाखा ‘हावु’, ‘रायि’ जोड़ैत छथि।"
ई तँ छल वैदिक संगीतक जानकारी । लौकिक संगीतक चर्च श्री ठाकुर जीन एना करै छथि---
संगीतक वर्ण अछि सारेनिसां एकरा मिथिलाक्षरदेवनागरीक वर्ण बुझबाक गलती नै करब। आरोह आ अवरोहमे स्वर कतेक नीच-ऊँच हुअए तकरे टा ई बोध करबैत अछि। जेना कोनो आन ध्वनि जेना “क” केँ लिअ आ की-बोर्डपर निकलल सारे... केर ध्वनिक अनुसार “क” ध्वनिक आरोह आ अवरोहक अभ्यास करू।
ऐ सातू स्वरमे षडज आ पंचम मने सा आ प अचल अछिएकर सस्वर पाठमे ऊपर नीचाँ हेबाक गुंजाइश नै छै। सा अछि आश्रय आकि विश्राम आ प अछि उल्लासक भाव। शेष जे पाँचटा स्वर सभटा चल अछिमने ऊपर नीचाँक अर्थात् विकृतिक गुंजाइश अछि ऐमे। सा आ प मात्र शुद्ध होइत अछिआ विकृति भऽ सकैत अछि दू तरहेँशुद्धसँ स्वर ऊपर जाएत आकि नीचाँ। यदि ऊपर रहत स्वर तँ कहब ओकरा तीव्र आ नीचाँ रहत तँ ओ कोमल कहाएत। म कँ छोड़ि कऽ सभ अचल स्वरक विकृति होइत अछि नीचाँतखन बुझू जे “रेनि” ई चारि टा स्वरक दू टा रूप भेल कोमल आ शुद्ध। म केर रूप सेहो दू तरहक अछिशुद्ध आ तीव्र। रे दैत अछि उत्साहग दैत अछि शांतिम सँ होइत अछि भयध सँ दुःख आ नि सँ होइत अछि आदेशक भान। शुद्ध स्वर तखन होइत अछिजखन सातो स्वर अपन निश्चित स्थानपर रहैत अछि। ऐ सातोपर कोनो चेन्ह नै होइत अछि।
जखन शुद्ध स्वर अपन स्थानसँ नीचाँ रहैत अछि तँ कोमल कहल जाइत अछि आ ई चारिटा होइत अछिऐमे नीचाँ क्षैतिज चेन्ह देल जाइत अछियथारे॒,  ग॒,  ध॒,  नि॒।

शुद्ध आ मध्यम स्वर जखन अपन स्थानसँ ऊपर जाइत अछितखन ई तीव्र स्वर कहाइत अछिऐमे ऊपर उर्ध्वाधर चेन्ह देल जाइत अछि। ई एकेटा अछिम॑।
एवम प्रकारे सात टा शुद्ध यथासारेनिचारिटा कोमल यथारे॒,  ग॒,  ध॒,  नि॒ आ एकटा तीव्र यथा म॑ सभ मिला कऽ 12 टा स्वर भेल।
ऐमे स्पष्ट अछि जे सा आ प अचल अछिशेष चल वा विकृत।"

ऐ विवरणसँ स्पष्ट अछि जे श्री ठाकुर जी गजलबहर आ संगीतक प्रमाणिक जानकारी पाठकक आगू रखलाह अछि।

5) मैथिली भाषा संपादन--- बहुत रास विशेषतामेसँ ई एकटा यूनिक विशेषता अछि। एकर अध्ययन केलासँ अधिकत्तम शुद्ध मैथिली लीखब आबि सकैए कोनो भाषा पूर्ण रूपेण शुद्ध नै होइ छै)। किछु उदाहरण देखल जाए--
उच्चारण निर्देश: (बोल्ड कएल रूप ग्राह्य):-  
दन्त न क उच्चारणमे दाँतमे जीह सटतजेना बाजू नाममुदा ण क उच्चारणमे जीह मूर्धामे सटत (नै सटैए तँ उच्चारण दोष अछि)- जेना बाजू गणेश। तालव्य शमे जीह तालुसँषमे मूर्धासँ आ दन्त समे दाँतसँ सटत। निशाँसभ आ शोषण बाजि कऽ देखू। मैथिलीमे ष केँ वैदिक संस्कृत जकाँ ख सेहो उच्चरित कएल जाइत अछिजेना वर्षादोष। य अनेको स्थानपर ज जकाँ उच्चरित होइत अछि आ ण ड़ जकाँ (यथा संयोग आ गणेश संजोग आ गड़ेस उच्चरित होइत अछि)। मैथिलीमे व क उच्चारण बश क उच्चारण स आ य क उच्चारण ज सेहो होइत अछि।
ओहिना ह्रस्व इ बेशीकाल मैथिलीमे पहिने बाजल जाइत अछि कारण देवनागरीमे आ मिथिलाक्षरमे ह्रस्व इ अक्षरक पहिने लिखलो जाइए आ बाजलो जेबाक चाही। कारण जे हिन्दीमे एकर दोषपूर्ण उच्चारण होइत अछि (लिखल तँ पहिने जाइत अछि मुदा बाजल बादमे जाइत अछि), से शिक्षा पद्धतिक दोषक कारण हम सभ ओकर उच्चारण दोषपूर्ण ढंगसँ कऽ रहल छी।
अछिअ इ छ  ऐछ (उच्चारण)
छथिछ इ थ  – छैथ (उच्चारण)
पहुँचिप हुँ इ च (उच्चारण)
----------------------------------------
मने ऐ लेखकेँ पढ़लासँ लिखित आ उच्चरित दूनू रूपक दर्शन भेटत आ पाठक एकै ठाम ई व्याख्या देखि सकै छथि। वर्तमान समयमे ई आलेख मैथिली भाषाक मानकीकरण लेल मीलक पाथर जकाँ अछि संगे संग ई मिथिलाक सभ जातिक उच्चारणपर अधारित अछि तँए पुरान व्याकरणशास्त्री सभहँक व्याख्यासँ बेसी प्रमाणिक ओ लोकप्रिय अछि।
6) मैथिलीक बहर विहीन गजलक संदर्भ-- श्री ठाकुर प्रमाणिकता पूर्वक बहर विहीन गजल सभहँक खंडन केलाह कर विस्तृत विवरण ऐ शास्त्रमे भेटैए--
लोकवेद आ लालकिला:
आत्ममुग्ध आमुख सभक बाद ऐ संग्रह मे कलानन्द भट्टतारानन्द वियोगीडॉदेवशंकर नवीननरेन्द्रडॉमहेन्द्ररमेशरामचैतन्य “धीरज”रामभरोस कापड़ि “भ्रमर”रवीन्द्र नाथ ठाकुरविभूति आनन्दसियाराम झा “सरस” आ सोमदेवक  गजल  देल गेल अछि।
कलानन्द भट्ट
भोर आनब हम दोसर उगायब सुरुज
करब नूतन निर्माण हम बनायब सुरुज
सरल वार्णिकक अनुसारे गणनापहिल पाँती-17 वर्ण दोसर पाँती- 18 वर्णजखन सरल वार्णिकेमे गणनाक अन्तर अछि तँ ह्रस्व दीर्घ विचारपर जेबाक मेहनति बचि गेल।
मात्रिक गणनाक अनुसारपहिल पाँती-21 मात्रादोसर पाँती- 21 मात्रामात्रा मिल गेलासँ आब ह्रस्व दीर्घ पर चली। पहिल पाँती दीर्घ-ह्रस्व-दीर्घ-ह्रस्व-ह्रस्व-ह्रस्व-ह्रस्व-दीर्घ-ह्रस्व-ह्रस्व-ह्रस्व-दीर्घ-ह्रस्व-ह्रस्व-ह्रस्व-ह्रस्व-ह्रस्व (एतऽ दूटा लगातार ह्रस्वक बदला एकटा दीर्घ दऽ सकै छीसे दोसर पाँतीमे देखब)। दोसर पाँतीह्रस्व-हस्व-ह्रस्व-दीर्घ-ह्रस्व-ह्रस्व-ह्रस्व-दीर्घह्रस्व-हस्वह्रस्व-हस्व-दीर्घह्रस्व-हस्वह्रस्व-हस्व-ह्रस्व। मुदा एतऽ गाढ़ कएल अक्षरक बाद क्रम टूटि गेल।
--------------- आ एनाहिते सभ बहर विहीन गजलक तक्ती कएल गेल अछि। ऐ पद्धितसँ समान्य पाठक सेहो बहरक निर्धारण कऽ सकै छथि।

7) मैथिली गजलक इतिहासकेँ दू भागमे बाँटब--- श्री ठाकुरजी मैथिली गजलक प्रवृतिकाल ओ प्रमाणिकताकेँ हिसाबसँ दू खंडमे बटलाह 1) 1905सँ लऽ कऽ 2008 धरि "जीवन युगआ 2008कक बाद बला कालखंडकेँ ओ "अनचिन्हार आखर"क नामपर "अनचिन्हार युग"

संगीतकार आ संगीतविद भेनाइ अलग-अलग गप्प छै। संगीतकार संगीतक रचना करै छै तँ संगीतविद संगीतक फार्म के। तेनाहिते शाइर आ अरूजी भेनाइ अलग-अलग गप्प छै। शाइर शाइरी केर रचना करै छै तँ अरूजी ओकर फार्म के। केखनो काल बहुमुखी प्रतिभा बला रचयिता दूनू काज करै छै। मुदा काजमे अंतर रहितों दूनू एक दोसरापर टिकल छै। केखनो काल शाइर वा संगीतकार भावमे आबि कऽ फार्मकेँ तोड़ि नव फार्म बना दै छै। आब ऐठाम अरूजी वा संगीतविद ओकरा अपन भाषा वा स्वरक अनूकूल बनेबाक ले प्रयत्न भऽ जाइ छथि आ एही ठाम शुरू भऽ जाइत छै संगीतकार आ संगीतविद वा शाइर आ अरूजी के झगड़ा। मुदा ई झगड़ा शुद्ध रूपसँ वैचारिक होइत छै। केखनो काल कऽ व्यक्तिगत सेहो बनि जाइत छै। मुदा सभ पक्षकेँ बुझबाक चाही जे केहनो नीक फार्म वा भाव किएक ने हो अपन भाषा वा अपन लय केर हिसाबसँ हेबाक चाही। जँ हम भारतीय शास्त्रीय संगीतमे वेस्टर्न सुर लऽ रहल छिऐ तँ ई धेआन राखऽ पड़त जे ओकर लय पूर्ण रूपेण भारतीय हो। जँ सुर भारतीय नै हएत तँ ओ गीत किछुए दिनमे बिला जाएत। हमरा हिसाबें भारतमे फ्यूजन संगीत किछु दिन लेल लोकप्रिय तँ भेल मुदा जल्दिए बिला गेल कारण संगीतकार सभ वेस्टर्न तत्व तँ लऽ लेलाह मुदा ओकर भारतीयकरण करबामे असफल भऽ गेलथि। मैथिलीक शाइर सभ वैचारिक युद्ध करबाक बदला घर-घराड़ीक गप्प आनि दै छथि। हुनका बुझाइन छनि जे हमरा लग पाइ अछि तँ हमर बात किएक ने उपर रहत। ओहन शाइर ईहो कहै छथि जे अमुक लोक वा अमुक संस्था जोनो हमर रोजी-रोटी चलबै छथि जे हम हुनकर गप्प मानब। श्री गजेन्द्रजी द्वारा लिखल गजलशास्त्रक दोसरे खंडसँ मैथिलीक किछु नकली शाइर सभ क्रोधित भऽ गेलाह कारण ई शास्त्र हुनकापर प्रश्नचिन्ह लगा देलक। तँए ओ नानाप्रकारक  आरोप-प्रत्यारोपपर आबि गेलथि मुदा सच सदिखन सच होइ छै आ ओकर कोनो विकल्प नै छै।
ऐ मुख्य विशेषता सभकेँ अलावे आर बहुत रास विशेषता छै जेना मैथिली-उर्दू गणनाविकारी प्रयोग आदि जकरा ऐ छोट आलेखमे समटल नै जा सकैए। पाठकसँ आग्रह जे पूर्ण रसास्वादन लेल मूल पाठ पढ़थि।
आब आबी ऐ पोथीमे संकलित गजल सभपर। गजल दिस चलबासँ पहिने हम किछु निवेदन करब। जेना की पहिनहें हम कहने छी जे गजेन्द्र ठाकुरजी रचैत-रचैत गजल ओ गजल शास्त्रकेँ मजगूत केलाह तँए ऐ संग्रहमे ओहनो गजल सभ अछि जैमे काफिया नै अछि (ओना पोथीक अंतमे शुद्धि पत्र देल गेल अछि अजुक हिसाबसँ)तेनाहिते कोनो गजलमे बिनु काफियाक रदीफ भेटत। हँसभ गजल अरबी बहर ओ सरल वार्णिकमे अछि। जँ बिना शुद्धिपत्रकेँ देखी तँ आलोचक ऐ गजल सभकेँ खारिज कऽ सकै छथि आ तैमे किनको आपत्ति नै। मुदा ऐ ठाम ई धेआन राखब बेसी जरूरी जे ई गजल सभ प्रयोगिक स्तरपर लिखल गेल अछि चाहे ओ संस्कृतक तुकांत विहीनि काय्यक प्रयोग कहियौ की मैथिली गीतक पारंपरिक गीतक तुकांतक प्रयोग आ ऐ प्रयोग सभसँ गुजरलाक बादें श्री ठाकुजी गजलशास्त्र दिस गेलाह। जँ ऐ संग्रहक गजल सभकेँ नीक जकाँ पढ़बै तँ तीनटा प्रयोग नीक जकाँ लक्षित हएत--- 1) जँ गजल बिना कफियाक हेतै संस्कृत जकाँ तखन केहन हेतै 2) जँ काफिया नै मुदा खाली रदीफ होइक तखन केहन हेतै आ 3) जँ अरबी बहरमे होइक तखन ओकर गायन केहन हेतै। ऐ लेल श्री ठाकुरजी दीक्षा ठाकुरसँ अपन किछु सलेक्टिव गजल गबा कऽ प्रयोग कऽ लेने छथि जे की ऐ लिंकपर अछि--
आब आलोचक सभ ऐ ठाम ई कहि सकै छथि जे प्रकाशित होमएसँ पहिने एकरा सही कएल जा सकै छलै आ से गप्प सही अछि मुदा से केलासँ कोन प्रयोग कोना भेलै से हटि जाइत तँए संग्रहमे गजल मूल प्रारूपमे अछि आ अंतमे शुद्धिपत्र देल गेल अछि। तँ आब ऐ संग्रहक किछु गजलक मूल प्रारूपकेँ देखी---

ऐ संग्रहक पहिल गजलक मतला अछि--

बझाओल गेलैए चिड़ैया एना रे
कहैए हितैषी ई शिकारी बड़ा रे

अजुके नै सभ दिनसँ सभ दिनसँ शिकारी अपना आपकेँ चिड़ैयाक हितैषी कहैए आ तकर परिणाम की होइ छै से सभकेँ बूझल छै...............
दोसर गजलक दोसर शेर देखल जाए---

क्रूर स्वप्न आ सुन्दर जीवन देखलौं निन्नसँ जगलापर
कोना हम मानब जँ कियो ई कहलक किछु नै बदलैए

सपना आ यथार्थपर बहुत तर्क वितर्क छै मुदा एकरा काव्यत्मक रूपमे देखू जे की मजा छै।

कहबी छै जे मिथिलामे आगि लागि गेल रहै मुदा तैयो जनक अविचलित रहि गेल छला। दोसर कहबी छै जे रोम जरैत छल आ नीरो बंसी बजा रहल छल। दूनू घटना दुनियाँक दू छोड़पर भेल छल मुदा कतेक साम्यता छै से देखू। एही घटनाकेँ श्री ठाकुरजी ऐ शेरमे बान्हि देला--

मनुख जरैए गाम कनैए हमरा की
चद्दरि तनने फोंफ कटैए हमरा की

तेरहम गजल देखू--
अकत तीत प्रेमक जे पथिक अदौकालसँ
धतालबूढ़ प्रेमकेँ बोहेलक दुनू हाथसँ

निर्मल आंगुरसँ छूबै जे ओकर पुठपुरी
फरफैसी पसारै निदरदी अगिलकण्ठ जँ

निमरजना प्रेम जे छलै धपोधप निश्छल
बिदोरै लेल प्रेमीकेँ छलै ओ कड़ेकमान तँ

अकरतब कर्तव्यमे भेद नै बुझलकै जे
जराउ प्रेमक गप्प नै कहियो नुकेलकै जँ

खञ्जखूहर ऐरावत नै बाटक छेँ बाटमे
धांगि बाट बनेबाक दाम अगूबार पेने छँ

ऐ गजलमे शाइर संस्कृतक अनुकरणपर काफिया मात्र चंद्रबिंदुकेँ लेने छथि मात्र प्रयोगक खातिर)

ऐ गजल सभहँक अलावे ऐ संग्रहमे अजाद गजल ओ बाल गजल सेहो अछि मुदा हम अपन विचारकेँ विराम दऽ रहल छी आ आग्रह करै छी जे मैथिली गजलक प्रयोगसँ गुजरबाक लेल ऐ संग्रहकेँ जरूर पढ़ी।




7

चिकनी माटिमे उपजल नागफेनी


अपन समीक्षाक श्रृंखला लेल आइ हम रमेश कृत कथित गजल संग्रह " नागफेनी " अनने छी। चूँकि ऐ संग्रहक सभ गजल बेबहर अछि तँए ऐ गजल सभपर हमर कोनो टिप्पणी नै रहत। कारण सभ समीक्षामे वएह तर्क, वएह घोंघाउज बेर-बेर आएत। एक बेर फेर हम कही जे हमर समीक्षा वा आलोचना-समालोचनाक अधार सदिखन व्याकरण रहैत अछि कारण हरेक लेखक रचनामे भाव (भावना) तँ रहिते छै संगे-संग सभ लेखक भावना अलग-अलग होइत छै तँए हम भावक अधारकेँ स्थायी नै मानै छी।
ऐ पोथीमे लेखकक छोड़ि शिवशंकर श्रीनिवासजी भूमिका अछि मने कुल दू टा भूमिका। आ हम अपन समीक्षा लेल इएह दूनू भूमिकाकेँ चुनलहुँ अछि। एही दूनू भूमिकाक अधारपर हम तात्कालीन गजल आ ओकर रचियताक मनोवृतिकेँ उजागर करबाक प्रयास केलहुँ अछि। पहिने शिवशंकरजीक भूमिका अछि तकर बाद शाइरक मुदा हम पहिने शाइरक भूमिकाकेँ विवेचित करब तकर बादें शिवशंकरजीक भूमिकापर आएब। शाइरक भूमिकामे कुल 13टा बिंदु अछि ऐमेसँ मात्र हम पहिल,दोसर, चारिम आ पाँचम बिंदुकेँ विवेचित करब। बाद बाँकी बिंदु सभ हुनक व्यक्तिगत छनि।
बिंदु-1) "गजलक ई कृति ओहि समालोचक लोकनिकेँ समर्पित छनि, जिनका लोकनिक घोंकचि जाइत छनि नाक, गजलक नामें सुनि।“
ऐ पहिल बिंदुसँ ई नीक जकाँ बुझाइत अछि जे रमेशजी सेहो आलोचक सभकेँ बिना मापदंड देने बिना आलोचनाक उम्मेद केने छथि। मुदा हमर स्पष्ट मानब अछि जे ओइ समयक आलोचक सभ गजलक आलोचना नै कऽ कऽ गजलपर बड़का उपकार केने छथि कारण ओहि समयक 99 प्रतिशत गजल अयोग्य छल आ अछि एवं बचल 1 प्रतिशत गजल विजयनाथ झा  ओ जगदीश चंद्र ठाकुर अनिल जीक अछि जिनका ई सभ गजलकार मानिते नै छथि।
बिंदु-2) "गजलक स्थापना हेतु ओकरा पक्षमे  तर्ककेँ ओतबे मथल गेल जतबा ओकरा विपक्षमे कुतर्ककेँ। तँए आब हम कए टा तथ्यकेँ नहिं दोहराबए-तेहराबए चाहैत छी जे गजल आब ओ नहिं अछि जे अपन शास्त्रीय रूपमे छल, एकरामे नवकविता बला क्लिष्टता, दुरूहता आ अ-संप्रषेणीयता आदि नकारात्मक नहि छैक, एकरामे भाव आ अभिव्यक्ति दुनू आसान आ सकारत्मक छैक, आधुनिकताक कोनो कमी नहि छैक, आब ई माशूकाक आँचर नहि अछि आ ने शाकी. शराब, जाम आदिक बंधनमे जकड़ल अछि, ई नवकविता आ पुरान कविताक बीचक रस्ता थिक, एकरा गेयधर्मिताक पैमानापर नापब पुरान कट्टरता थिक,एकर शास्त्रीय चरित्रकेँ दँतिया कऽ एकर आलोचना करब मात्र गेंग रोपब थिक, दुष्यंत कुमार, फैजसँ लऽ कऽ अदम गोंडवी धरि जे एकर नव कलेवर तरासलनि तकरा स्वीकार करबाक आब कोनो टा अधारे नहिं छेक, आदि-आदि----------|”
ऐ दोसर बिंदुसँ ई गप्प स्पष्ट भऽ जाइत अछि जे आने आन कथित प्रगतिशील गजलकार जकाँ रमेशजी सेहो गजलक संबंधमे भ्रमित छथि।  ऐ बिंदुमे सभसँ आपत्तिजनक गप्प दुष्यंत कुमार, फैज अहमद फैज ओ अदम गोंडवीक संबंधमे अछि। ई तीनू गजलकार पूर्ण रूपेण शास्त्रीय गजल लिखने छथि खाली ओ सभ विषय वस्तुकेँ परिवर्तन कऽ देलखिन्ह व्याकरण ओहिना के ओहिना रहलै। मुदा मैथिलीक ई कथित प्रगतिशील सभ बिना बुझने-सुझने हिका सभकेँ प्रसंगमे आनि दै छथि जे की हिनकर सभहँक ज्ञानक सीमाकेँ देखार करैत अछि। ऐ ठाम हम किछु गजलकारक तक्ती कऽ कऽ देखा रहल छी जे कोना हिनकर सभहँक गजल व्याकरण ओ बहरमे अछि---
पहिने कबीर दासक एकट गजलकेँ तक्ती कऽ कऽ देखा रहल छी--
बहर—ए—हजज केर ई गजल जकर लयखंड (अर्कान) (1222×4) अछि--
ह1 मन2 हैं2 इश्2, क़1 मस्2ता2ना2, ह1 मन2 को 2 हो 2, शि1 या2 री2 क्या2
हमन है इश्क मस्ताना, हमन को होशियारी क्या ?
रहें आजाद या जग से, हमन दुनिया से यारी क्या ?

जो बिछुड़े हैं पियारे से, भटकते दर-ब-दर फिरते,
हमारा यार है हम में हमन को इंतजारी क्या ?

खलक सब नाम अपने को, बहुत कर सिर पटकता है,
हमन गुरनाम साँचा है, हमन दुनिया से यारी क्या ?

न पल बिछुड़े पिया हमसे न हम बिछड़े पियारे से,
उन्हीं से नेह लागी है, हमन को बेकरारी क्या ?

कबीरा इश्क का माता, दुई को दूर कर दिल से,
जो चलना राह नाज़ुक है, हमन सिर बोझ भारी क्या ?


तेनाहिते आजुक प्रसिद्ध शाइर मुनव्वर राना केर ऐ गजलक तक्ती देखू--
बहुत पानी बरसता है तो मिट्टी बैठ जाती है
न रोया कर बहुत रोने से छाती बैठ जाती है

यही मौसम था जब नंगे बदन छत पर टहलते थे
यही मौसम है अब सीने में सर्दी बैठ जाती है

नकाब उलटे हुए जब भी चमन से वह गुज़रता है
समझ कर फ़ूल उसके लब पे तितली बैठ जाती है

मुनव्वर राना (घर अकेला हो गया, पृष्ठ - 37)
तक्तीअ
बहुत पानी / बरसता है / तो मिट्टी बै / ठ जाती है
1222 / 1222 / 1222 / 1222
न रोया कर / बहुत रोने / से छाती बै / ठ जाती है
1222 / 1222 / 1222 / 1222
यही मौसम / था जब नंगे / बदन छत पर / टहलते थे
1222 / 1222 / 1222 / 1222
यही मौसम / है अब सीने / में सर्दी बै / ठ जाती है
1222 / 1222 / 1222 / 1222
नकाब उलटे / हुए जब भी / चमन से वह / गुज़रता है
1222 / 1222 / 1222 / 1222
(नकाब उलटे के अलिफ़ वस्ल द्वारा न/का/बुल/टे 1222 मानल गेल अछि)
समझ कर फ़ू / ल उसके लब / पे तितली बै / ठ जाती है
1222 / 1222 / 1222 / 1222
आब राहत इन्दौरी जीक ऐ गजलकेँ देखू--
ग़ज़ल (1222 / 1222 / 122) (बहर-ए-हजज की मुज़ाहिफ सूरत)
चरागों को उछाला जा रहा है
हवा पर रौब डाला जा रहा है

न हार अपनी न अपनी जीत होगी
मगर सिक्का उछाला जा रहा है

जनाजे पर मेरे लिख देना यारों
मुहब्बत करने वाला जा रहा है
राहत इन्दौरी (चाँद पागल है, पृष्ठ - 2४)
तक्तीअ =
चरागों को / उछाला जा / रहा है
1222 / 1222 / 122
हवा पर रौ / ब डाला जा / रहा है
1222 / 1222 / 122

न हार अपनी / न अपनी जी / त होगी
1222 / 1222 / 122
(हार अपनी को अलिफ़ वस्ल द्वारा हा/रप/नी 222 गिना गया है)
मगर सिक्का / उछाला जा / रहा है
1222 / 1222 / 122
जनाजे पर / मेरे लिख दे / ना यारों
1222 / 1222 / 122
मुहब्बत कर / ने वाला जा / रहा है
1222 / 1222 / 122

फेरसँ मुनव्वर रानाजीक एकटा आर गजलकेँ देखू--
हमारी ज़िंदगी का इस तरह हर साल कटता है
कभी गाड़ी पलटती है कभी तिरपाल कटता है

सियासी वार भी तलवार से कुछ कम नहीं होता
कभी कश्मीर कटता है कभी बंगाल कटता है
(मुनव्वर राना)
1222 / 1222 / 1222 / 1222
(मुफाईलुन / मुफाईलुन / मुफाईलुन / मुफाईलुन)
हमारी ज़िं / दगी का इस / तरह हर सा / ल कटता है
कभी गाड़ी / पलटती है / कभी तिरपा / ल कटता है

सियासी वा/ र भी तलवा/ र से कुछ कम / नहीं होता
कभी कश्मी/ र कटता है / कभी बंगा / ल कटता है
आब दुष्यंत कुमारक ऐ गजलक तक्ती देखू--
2122 / 2122 / 2122 / 212
हो गई है / पीर पर्वत /-सी पिघलनी / चाहिए,
इस हिमालय / से कोई गं / गा निकलनी / चाहिए।
आब अहाँ सभ ऐ गजलकेँ अंत धरि जा सकै छी। पूरा गजल हम दऽ रहल छी--

हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए,
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए।

आज यह दीवार, परदों की तरह हिलने लगी,
शर्त लेकिन थी कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए।

हर सड़क पर, हर गली में, हर नगर, हर गाँव में,
हाथ लहराते हुए हर लाश चलनी चाहिए।

सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं,
मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए।

मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही,
हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए।

आब कने अदम गोंडवी जीक दू टा गजलक तक्ती देखू—
1222 / 1222 / 1222 / 1222
ग़ज़ल को ले / चलो अब गाँ / व के दिलकश /नज़ारों में
मुसल्‍सल फ़न / का दम घुटता / है इन अदबी / इदारों में

आब अहाँ सभ ऐ गजलकेँ अंत धरि जा सकै छी। पूरा गजल हम दऽ रहल छी--

ग़ज़ल को ले चलो अब गाँव के दिलकश नज़ारों में
मुसल्‍सल फ़न का दम घुटता है इन अदबी इदारों में

न इनमें वो कशिश होगी, न बू होगी, न रानाई
खिलेंगे फूल बेशक लॉन की लम्‍बी क़तारों में

अदीबों! ठोस धरती की सतह पर लौट भी आओ
मुलम्‍मे के सिवा क्‍या है फ़लक़ के चाँद-तारों में

र‍हे मुफ़लिस गुज़रते बे-यक़ीनी के तज़रबे से
बदल देंगे ये इन महलों की रंगीनी मज़ारों में

कहीं पर भुखमरी की धूप तीखी हो गई शायद
जो है संगीन के साये की चर्चा इश्‍तहारों में.

फेर गोंडवीजीक दोसर गजल लिअ—
2122 / 2122 / 2122 / 212
भूख के एह / सास को शे / रो-सुख़न तक /ले चलो
या अदब को / मुफ़लिसों की / अंजुमन तक /ले चलो
आब अहाँ सभ ऐ गजलकेँ अंत धरि जा सकै छी। पूरा गजल हम दऽ रहल छी--

भूख के एहसास को शेरो-सुख़न तक ले चलो
या अदब को मुफ़लिसों की अंजुमन तक ले चलो

जो ग़ज़ल माशूक के जल्‍वों से वाक़िफ़ हो गयी
उसको अब बेवा के माथे की शिकन तक ले चलो

मुझको नज़्मो-ज़ब्‍त की तालीम देना बाद में
पहले अपनी रहबरी को आचरन तक ले चलो

गंगा जल अब बुर्जुआ तहज़ीब की पहचान है
तिश्नगी को वोदका के आचरन तक ले चलो

ख़ुद को ज़ख्मी कर रहे हैं ग़ैर के धोखे में लोग
इस शहर को रोशनी के बाँकपन तक ले चलो.

ऐ गजल सभमे छंदानुसार छूट सेहो लेल गेल छै मुदा रमेशजीक वा अन्य कोनो मैथिली गजलकार जे भ्रमवश कहै छथि जे उर्दू-हिंदीक गजलमे बहर नै छै से हुनक बेसी ज्ञानक (??????????) परिचायक अछि। चाहितों हम फैज अहमद फैज केर गजलक तक्ती नै देखा रहल छी कारण समझदार आदमी कम्मे तथ्यसँ बेसी बात बूझै छथि।

बिंदु-4) मुदा शास्त्रीयतासँ दूर भैयो कऽ गजलत्व आ गजलजन्य अनुशासन समान्यतः गजलमे कायम रहय से प्रायः जरूरी छै। फैशनपर उकड़-गजल लीखि गजलक इतिहासमे नाम घोंसियायब एकटा कुत्सित प्रयास थिक, एहन लोक नवकविते अथवा आने कोनो विधामे डंड-बैसकी करथि से प्रायः उचित। किछु तुकबंदी मिला कऽ लीखि लेब गजलक संग अ-चेतनमे कयल गेल बलात्कार थिक। एहन लोक ओना सभ विधामे थोड़ेक दिन कुथैत छथि आ पुनः अपने आप साहित्यसँ पोछा जाइत छथि। तँए एहन गजलकारक कोनो तेहन चिन्ता आलोचक नहि करथि।“
ऐ चारिम बिंदुमे रमेशजी अपन भ्रमक सीमापर पहुँचि गेल छथि।
बंधु गजलजन्य  अनुशासने के तँ गजलक शास्त्रीय रूप वा गजलक व्याकरण कहल जाइत छै। ऐ बिंदुक हिसाबें देखल जाए तँ रमेशजी अपने फैशनक नामपर गजल लिखला आ गजलक संग बलात्कार केलथि।
बिंदु-5) "गजलमे निहित सौंदर्य-बोधकेँ चीन्हब आवश्यक छैक।“
ई पाँचम बिंदु पूरा-पूरी गलत आ भ्रमयुक्त अछि। रमेशजीक हिसाबसँ "सौंदर्य-बोधकेँ चीन्हब आवश्यक छैक" मुदा हमर कहब जे जखन एकबेर "सौंदर्य-बोध" भइये गेलै तखन फेरसँ चिन्हबाक बेगरता की? सही कथन एना हेतै---“गजलमे निहित सौंदर्यकेँ चीन्हब आवश्यक छैक।“ ओनहुतो ई वाक्य हिंदीक नकल अछि।  आब बहुतों भक्त लोकनि एकरा प्रेसक गड़बड़ी कहता......................
कुल मिला कऽ देखल जाए तँ रमेशजी अपने गजलक संबंधमे ततेक ने भ्रमित छथि जे वास्तवमे ई पोथी "नागफेनी" बनि गेल अछि आ वास्तविक गजलकेँ लहुलुहान केने अछि।
शिवशंकरजीक आलेख अपेक्षाकृत नीक अछि ( ओहि समयक अन्य आलेखक मुकाबले) मुदा शिवशंकरोजी बहुत रास तथ्यपर भ्रमित छथि। प्रथमतः ओहो आन कथित प्रगतिशील गजलकार जकाँ गजलकेँ दरबारी मानै छथि जखन की गजलमे प्रयुक्त शराब, माशूक, हुस्न, इश्क आदिक परलौकिक अर्थ सेहो होइत छै आ सभ शाइर ऐ शब्द सभकेँ प्रतीकक रूपमे प्रयोग करै छथि।
दोसर जे श्रीनिवासजी कहै छथि----"गजलक अपन अनुशासन छैक, बंदिश आ सीमा छैक। ओकरा रखैत रमेशजी गजल कहबामे सफल भेला हे जे हिनक विशेषता आ सफलता दुनू थिक"......... मुदा गजलक अनुशासन की छै आ बंदिश की छै तकर जानकारी श्रीनिवासजी पाठककेँ नै दऽ रहल छथि आ ने रमेशजीक गजलकेँ तक्ती कऽ कऽ कहि रहल छथि जे ऐ कारणें रमेश जीक गजलमे अनुशासन अछि।
कुल मिला कऽ ई दुन्नू आलेख भ्रमयुक्त अछि आ मैथिली गजलक वास्तविक साक्ष्यसँ बहुत दूर अछि।
ओना हमरा ई मानबामे कोनो दुविधा नै जे ऐ संग्रहक सभ रचना नीक तुकांत कविता अछि ( उपरमे साबित भऽ चुकल अछि जे ई सभ गजल नै थिक )। खास कऽ ओहि समय आन गजलकार ( तारानंद वियोगी, देवशंकर नवीन,) आदिक अपेक्षा अपन रचनामे बेसी मैथिली शब्दक प्रयोग केलह अछि जे की ऐ पोथी विशेषता अछि ऐ विशेषता दिस शिवशंकरजी इशारा सेहो केने छथि। तँ चली ऐ संग्रहक किछु रचना दिस जे की हम पाँतिक उदाहरण दऽ कऽ देखाएब--

नवम रचनाक ई पाँति  नीक अछि--

लाख लाख कोस सागर के अगम अगम जल
देख हेलवाक छौ तँ तुरंत जूटि जो

एगारहम रचनाक ई पाँति देखल जाए--
कियो केकरो पुछारि क' क' की करतै
सभ अपन-अपन दर्द के पिबैत अछि

जँ अप्रस्तुत योजना विधान देखबाक हो तँ सोलहम रचनापर आउ--

जामु आ गम्हारि केर छाह तर मे
बाँस केर कोपर सुखैल जा रहल

मानल जाइत अछि जे बाँसक छाहरि तर कोनो गाछ नमहर नै भ' सकैए कारण बाँसक प्रकृति गरम होइत छै मुदा रचनाकार एतऽ उन्टा गप्प कहि अप्रस्तुतकेँ प्रस्तुत केलाह अछि। सैतीसम रचनाक ई पाँति देखू-

की सोचय अइ देसक जनता
एक्कहि खिच्चड़ि एक्कहि हंडा

जँ 58 टा रचनामेसँ हमरा कोनो एकटा रचना चूनबाक जरूरति पड़त तँ हम 12हम रचनाकेँ ऐ संग्रहक श्रेष्ठ रचना कहब। तँ लिअ ऐ बारहम रचनाक टूटा पाँति--

सौंथ जए टा चाही तए टा छूबि लिअ
टीस मुदा ताजिन्दगी रहैत छै



8

संशोधन केर मतलब विनाश नै होइ छै

हमर मने आशीष अनचिन्हारक एकटा आलेख दरभंगासँ प्रकाशित दैनिक मिथिला आवाजमे 9 फरवरी 2014केँ "मैथिली गजलमे लोथ गजलकारक योगदान" नामसँ भेल रहै तकर उत्तर दैत सुरेन्द्रनाथजी एकटा आलेख लिखला जे कलकत्तासँ प्रकाशित कर्णामृत केर अप्रैल-जून 2015मे "मैथिली गजलक पूंषत्वहीन आलोचना" केर नामसँ प्रकाशित भेल आ सुरेन्द्रनाथ जीक ऐ आलेखक उत्तर दैत हमर एकटा आलेख कर्णेमृतक नवीन अंक अप्रैल-जून 2016मे "संशोधन केर मतलब विनाश नै होइ छै" नामसँ प्रकाशित भेल अछि। ओना संपादक महोदय किछु काँट-छाँट सेहो केलखनि अछि तँए  मूल आलेख देल जा रहल अछि पढ़ल जाए। संगे-संग ऐ मूल लेखक अंतमे कर्णामृतमे प्रकाशित लेखक कटिंग सेहो देल जा रहल अछि पहिले सुरेन्द्रनाथजीक तकर बाद हमर बला----



संपादक/ उपसंपादक महोदय लोकनिसँ आग्रह जे ऐ आलेखमे आएल सभ उदाहरण आ ओकर लक्षणकेँ यथावत् राखथि कारण गजल उच्चारणपर निर्भर करै छै आ उच्चारण वर्तनीपर। संगे-संग दू शेरक बीचमे जते जगह छै से रहऽ दियौ।

संशोधन केर मतलब विनाश नै होइ छै

(आलोचना)
आशीष अनचिन्हार

अप्रैल-जून 2015मे प्रकाशित सुरेन्द्रनाथ जीक आलेख " मैथिली गजलक पूंषत्वहीन आलोचना" पढ़लहुँ  आ ओहिपर हम अपन किछु विचार राखऽ चाहब। ओना सुरेन्द्रनाथ जीक आलोचना हमर आलेखपर केंद्रित छल तँए पाठककेँ लगतिन जे ई प्रत्यालोचना थिक मुदा सुरेन्द्र नाथ जी अपने ठाम-ठीम किछु स्पष्ट करऽ कहने छथि तँइ ई आलेख लऽ कऽ हम आएल छी आ पाठक सभसँ आग्रह जे एकरा प्रत्यालोचना नै बल्कि सुरेन्द्र नाथजीक आग्रह मानबाक परिणाम बूझथि। जे-जे चीज सुरेन्द्रजी हमरासँ बूझए चाहै छथि वा हुनकर जै-जै विचारपर हमरा आपत्ति अछि से हम क्रमशः बिंदुवार दऽ रहल छी----
1) ऐ लेखक शुरूआतेमे सुरेन्द्रनाथ जी "मैथिली-हिंदी" लऽ कऽ अगुता गेल छथि। हम फेर जोर दऽ कऽ कहब चाहब जे मैथिलीक अधिकांश रचनाकार हिंदीक नकल करैए आ एकर सबूत सुरेन्द्रनाथजी अपने ऐ आलेखमे बहुत बेर देने छथि। कतहुँ ज्ञानेन्द्रक ना तँ कतहुँ अनिरुद्ध सिन्हा तँ कतहुँ हिंदी गजलः संघर्ष और सफलता। कुल मिला कऽ ई आलेख हिंदीक नकल थिक आ ऐ आलेखसँ ई हमर ओ विचार मजगूत भऽ जाइए जकरा तहत हम बेर-बेर कहै छी आ कहऽ चाहब जे मैथिलीक अधिकांश लेखन हिंदीक नकल थिक। ऐ ठाम ई स्पष्ट करब बेसी जरूरी जे सुरेन्द्रनाथ जी रेफरेन्स दैत काल अपन मानसिक वर्णसंकरताक परिचय देने छथि। पूरा दुनियाँक रेफरेन्स तँ दऽ देला मुदा गंगेश गुंजन जीक "बहर-मेनिया" बला कथन ओ कहाँसँ लेला। विदेहमे मुन्नाजीक संयोजनमे गजलक उपर परिचर्चा भेल रहै आ तैमे गंगेश गुंजन जीक आलेखमे ई संदर्भ आएल छै आ बादमे ई आलेख विदेह-सदेहमे प्रिंट रूपमे एलै। मुदा रेफरेन्समे एकर चर्चा नै। की सुरन्द्रनाथजी ई कहि सकै छथि जे अमीर खुसरोक मैथिली मिश्रित गजलक अंश ओ कहाँसँ प्राप्त केने छथि? संगे-संग ओ राजेन्द्र विमलजीक उक्ति कहाँसँ आनि लेलथि जखन की ओ इंटरव्यू विदेहमे प्रकाशित छै (सदेहमे सेहो)| ई छनि सुरेन्द्रनाथजीक मानसिक वर्णसंकरता जकरा ओ बेर-बेर अपन आलेखमे देखेने छथि।
                                                                                            
2) लगैए जे सुरेन्द्रनाथजी जखन तामसमे अबैत हेता तखन हुनक आँखि मुना जाइत हेतनि (मात्र अनुमान) से हम माया बाबू आ नीरजजीक संदर्भमे हिनक तामसकेँ देखैत अनुमान लगा रहल छी। हमरा ने माया बाबूक गीतलसँ परेशानी अछि ने बीतलसँ। हिंदीक नीरजकेँ उँच स्थान मात्र ऐ दुआरे देल गेलन्हि जे ओ हिंदी भाषाक क्षमतापर बिना बयान देने कहलखिन जे गजलक नाम गीतिका हेबाक चाही। ऐठाम धेआन दिऔ नीरजजी ई कहियो नै कहलखिन जे हिंदीमे गजल लिखब संभव नै छै, तँइ हिंदीमे नीरजजीकेँ ऊँच स्थान भेटलनि। ऐकेँ उल्टा माया बाबू अपन अक्षमताकेँ झाँपि ई बयान देला जे मैथिलीमे गजल लिखब संभव नै तँए गीतल हेबाक चाही। दूनू बयानमे फर्क छै तँए दुन्नूक सम्मानो अलग-अलग। हमरा ने माया बाबूपर आपत्ति अछि आ ने हुनक प्रयोगपर हमरा तँ बस हुनकर उद्येश्यपर आपत्ति अछि। माया बाबूक सामने निस्सन मैथिली गजलक परंपरा छल ओइकेँ बाबजूदो एहन बयान किएक?

3) जेना प्रकृति अपन मान्यता लेल केकरो पुछारी नै करै छै तेनाहिते पं.जीवन झा, कविवर सीताराम झा आ मधुपजीक गजलकेँ कोनो आशीष अनचिन्हार वा सुरेन्द्रनाथ की आन कोनो गजलकारक अनुसंशाक जरूरति नै छै। पं.जीवन झा, कविवर सीताराम झा आ मधुपजीक गजल मैथिली गजलक पूर्वज थिक तँ ई तीनू गोटें निश्चित रूपसँ मैथिली गजलक "असल प्रवर्तक” छथि। सुरेन्द्रनाथजी पुछै छथि जे "की  ओ सभहँक (पं.जीवन झा, कविवर सीताराम झा आ मधुपजीक) गजलक व्याकरण अनचिन्हारक आखरक व्याकरणसँ ऐम-मेन मेल खाइत अछि। जँ सएह तँ हुनकर सभहँक अवसान भेलाक बादो मैथिली गजल बाँझ अथवा मसोमात किए बनल रहल?"
आब ऐ प्रश्नक उत्तर तँ सुरेन्द्रनाथजी अपने छथि। बाप बच्चाक लालन-पालन करै छै मुदा जँ बच्चा जवान भेलाक बाद अपना हिसाबें चलै छै तँ फेर ओइमे बापक कते सहभागिता? पं.जीवन झा, कविवर सीताराम झा आ मधुपजी ई तीनू गोटें व्याकरणयुक्त गजल देला मुदा तकर बादक नकलची पीढ़ी जँ पं.जीवन झा, कविवर सीताराम झा आ मधुपजीकेँ नै गुदानै तँ फेर ओइ लेल ई तीनू (पं.जीवन झा, कविवर सीताराम झा आ मधुपजी) किए दोषी हेता। जा धरि मैथिली गजलमे सुरेन्द्रनाथजी सन-सन अराजक गजलकार होइत रहत ता धरि मैथिली गजल बाँझ अथवा मसोमात बनल रहत।ऐ तीनू (पं.जीवन झा, कविवर सीताराम झा आ मधुपजी)क संपूर्ण गजल ओ ओकर व्याकरणिक व्याख्या सहित पढ़बाक लेल "मैथिलीक प्रतिनिधि गजल 1905सँ 2014 धरि" नामक पोथी देखू।

4) बहुत रास अराजक गजलकार जकाँ सुरेन्द्रनाथजी सेहो बहर आ छंदकेँ अलग-अलग मानै छथि। ई माननाइ तेहने भेल जेना कियो वाटर आ पानिकेँ अलग मानथि। बुक आ पोथीकेँ अलग मानथि। सच तँ ई छै जे बहर आ छंदमे मात्र भाषायी अंतर छै। संस्कृतमे छंद कहल जाइत छै तँ अरबीमे बहर। ओना एकटा तात्विक अंतर जरूर छै जे संस्कृतमे छंद व्यापक अर्थ दै छै आ सरल वार्णिक, वर्णवृत आ मात्रिक तीनू छंद अबै छै तँ बहरमे मात्र वर्णवृत। ओना अरबीमे सरल वार्णिक आ मात्रिक छंदक प्रचार नै केर बराबर छै आ वर्णवृतक एकछत्र राज्य छै तँए बहर आ छंद एक समान अछि। वर्णवृत वा बहरक साधारण नियम छै जे ई लघु-गुरू द्वारा निर्धारित होइत छै (बहुत काल लघु-गुरू लेल लघु-दीर्घ वा ह्रस्व-दीर्घ युग्म केर सेहो प्रयोग होइत छै)। आ संस्कृतक वर्णिक छंदमे पहिल पाँतिक मात्राक्रम जे छै सएह सभ पाँतिक मात्राक्रम समान हेबाक चाही आ प्रत्येक शब्दक संख्या समान हेबाक चाही तखन वार्णिक छंद हएत। अरबियोमे तेहने सन छै मुदा आधुनिक भाषामे मात्राक्रम तँ समान रहलै मुदा अक्षर संख्या उपर निच्चा कऽ सकै छी। संगे-संग गजल लिखबा कालमे किछु छूट देल जाइत छै जे की मात्र आवश्यक स्थितिमे प्रयोग होइत छै। आब ई लघु-गुरूक की व्यवस्था छै वा छूट कोन रूपें लेल जेतै से जनबाक लेल कोनो छंदशास्त्रीक पोथी पढ़ि लिअ। ओना हमरा पूरा उम्मेद अछि जे सुरेन्द्रनाथजी लग लघु-गुरू गनबाक ज्ञान हेबे करतनि ( ई उम्मेद हमरा ऐ लेल अछि कारण सुरेन्द्रजी अपन आलेखमे बेर-बेर छूट बला ज्ञानक प्रदर्शन केने छथि)। ऐठाम कही जे गजलक हरेक पाँतिक मात्राक्रम एक समान हेबाक चाही ( एक समान मात्रा आ एक समान मात्राक्रम दूनू अलग-अलग वस्तु छै)।

5) कहबी छै जे "नकल करबाक लेल अकल चाही" मुदा सुरेन्द्रनाथजीकेँ नकलो करबाक बुद्धि नै छनि। ओ कोनो ज्ञानेन्द्र केर पोथीक उदाहरण दै छथि आ कहै छथि जे निराला गजलक व्याकरणकेँ तोड़ि देला। सच तँ ई अछि जे निराला मात्र विषय परिवर्तन केला आ उर्दू शब्दक बदला गजलमे हिंदी शब्दक प्रयोग केला। मैथिलीक बहुत रास शाइर एहने अराजक बयान दैत छथि जे दुष्यंत कुमार व्याकरण तोड़ला तँ अदम गोंडवी ई केला तँ ओ ओना केला। मुदा हिंदीक सभ गजलकार व्याकरणक पालन केला खाली ओ विषय परिवर्तन केला आ हिंदी शब्दक प्रयोग बेसी केला। हम ऐठाम पहिने निराला आ शमशेर बहादुर सिंह केर गजलक व्याकरण देखा रहल छी ( चूँकि सुरेन्द्रनाथजी फैशन आ नकल करैत बिना पढ़ने हिनकर सभहँक नाम लेने छथिन) आ तकर बाद जयशंकर प्रसाद सहित दुष्यंत कुमार, अदम गोंडवी, मुनव्वर राना सहित आन-आन गजलकारक गजलक व्याकरण देखा रहल छी। वास्तवमे सुरेन्द्रनाथजी भ्रम पसारि रहल छथि वा ई कहब बेसी उचित जे ओ अपन अज्ञानताक कारणें भ्रम पसारि रहल छथि।  ऐठाम हम कही जे सुरेन्द्रनाथजी अपन आलेखमे कत्तौ उदाहरण नै देने छथि जे कोन तरहें निरालाजी गजलक व्याकरणकेँ तोड़लखिन मुदा हम उदाहरण दऽ कऽ देखा रहल छी जे हिंदीक सभ गजलकार सभ कोना व्याकरणक पालन केलथि। । तँ पहिने निराला आ शमशेर बहादुरक गजलकेँ देखू--
(संपादक/ उपसंपादक महोदय लोकनिसँ आग्रह जे ऐ आलेखमे आएल सभ उदाहरण आ ओकर लक्षणकेँ यथावत् राखथि कारण गजल उच्चारणपर निर्भर करै छै आ उच्चारण वर्तनीपर।संगे-संग दू शेरक बीचमे जते जगह छै से रहऽ दियौ)
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला

भेद कुल खुल जाए वह सूरत हमारे दिल में है
देश को मिल जाए जो पूँजी तुम्हारी मिल में है

मतला ( मने पहिल शेर)क मात्राक्रम अछि-- 2122+2122+2122+212 आब सभ शेरक मात्राक्रम इएह रहत। एकरे बहर वा की वर्णवृत कहल जाइत छै। अरबीमे एकरा बहरे रमल केर मुजाइफ बहर कहल जाइत छै। मौलाना हसरत मोहानीक गजल " चुपके चुपके रात दिन आँसू बहाना याद है" अही बहरमे छै जकर विवरण आगू देल जाएत। ऐठाँ ई देखू जे निराला जी गजलक विषय नव कऽ देलखिन प्रेमिकाक बदला विषय मिल आ पूँजी बनि गेलै मुदा व्याकरण वएह रहलै। हमरा ने ज्ञानेन्द्रसँ मतलब अछि ने सुरेन्द्रनाथसँ। हमरा मात्र पाठकसँ मतलब अछि आब वएह कहथि जे कि निरालाजी व्याकरण कतऽ तोड़लखिन? आब हम ऐठाम सुरेन्द्रजीसँ आग्रह करबनि जे हुनका तँ लघु-गुरूक सिद्धांत अबिते छनि तँ आब बाँचल शेरक निर्णय कऽ लेथु। सभ पाठकसँ आग्रह जे निर्णय करथि जे निराला जी बहरक पालन केला की नै। बाँचल शेर एना छै--

हार होंगे हृदय के खुलकर तभी गाने नये,
हाथ में आ जायेगा, वह राज जो महफिल में है

तरस है ये देर से आँखे गड़ी श्रृंगार में,
और दिखलाई पड़ेगी जो गुराई तिल में है

पेड़ टूटेंगे, हिलेंगे, जोर से आँधी चली,
हाथ मत डालो, हटाओ पैर, बिच्छू बिल में है

ताक पर है नमक मिर्च लोग बिगड़े या बनें,
सीख क्या होगी पराई जब पसाई सिल में है

शमशेर बहादुर सिंह
1
जहाँ में अब तो जितने रोज अपना जीना होना है,
तुम्हारी चोटें होनी हैं हमारा सीना होना है।

वो जल्वे लोटते फिरते है खाको-खूने-इंसाँ में :
'तुम्हारा तूर पर जाना मगर नाबीना होना है!

ऐ गजलक मतलाक मात्राक्रम अछि 1222-1222-1222-1222 आ एकर पालन दोसर शेर सहित आन सभ शेरमे अछि। सुरेन्द्रनाथजीसँ आग्रह जे ओ पूरा गजल पढ़ि लेथि।
चूँकि सुरेन्द्रनाथजीक इच्छित उदाहरण हम दऽ चुकल छी मुदा तैयो हम ऐठाम हिंदी-उर्दूकक किछु महत्वपूर्ण गजलक व्याकरण देखा रहल छी जे तँ मुख्यतः पाठक लेल अछि मुदा सुरेन्द्रनाथ आ हुनकर संगी सेहो देखथि--
जयशंकर प्रसाद

सरासर भूल करते हैं उन्हें जो प्यार करते हैं
बुराई कर रहे हैं और अस्वीकार करते हैं

उन्हें अवकाश ही इतना कहां है मुझसे मिलने का
किसी से पूछ लेते हैं यही उपकार करते हैं

जो ऊंचे चढ़ के चलते हैं वे नीचे देखते हरदम
प्रफ्फुलित वृक्ष की यह भूमि कुसुमगार करते हैं

न इतना फूलिए तरुवर सुफल कोरी कली लेकर
बिना मकरंद के मधुकर नहीं गुंजार करते हैं

'प्रसाद' उनको न भूलो तुम तुम्हारा जो भी प्रेमी हो
न सज्जन छोड़ते उसको जिसे स्वीकार करते हैं

प्रसादजी ऐ गजलक बहर अछि-- 1222-1222-1222-1222
आजुक समयक प्रसिद्ध शाइर आ फिल्मी गीतककार जावेद अख्तरजीक ई गजल देखू जे की जगजीत सिंह गेने छथि--
तमन्ना फिर मचल जाए, अगर तुम मिलने आ जाओ
ये मौसम ही बदल जाए, अगर तुम मिलने आ जाओ
1222-1222-1222-1222

आब पूरा गजल देखू--

तमन्ना फिर मचल जाए, अगर तुम मिलने आ जाओ
ये मौसम ही बदल जाए, अगर तुम मिलने आ जाओ

मुझे गम है कि मैने जिन्दगी में कुछ नहीं पाया
ये ग़म दिल से निकल जाए, अगर तुम मिलने आ जाओ

नहीं मिलते हो मुझसे तुम तो सब हमदर्द हैं मेरे
ज़माना मुझसे जल जाए, अगर तुम मिलने आ जाओ

ये दुनिया भर के झगड़े, घर के किस्से, काम की बातें
बला हर एक टल जाए, अगर तुम मिलने आ जाओ

आब हसरत मोहानीक ई प्रसिद्ध गजल देखू--

2122-2122-2122-212
चुपके-चुपके- रात दिन आँ-सू बहाना- याद है
हमको अब तक- आशिक़ी का- वो ज़माना -याद है

आब पूरा गजल देखू--

चुपके-चुपके रात दिन आँसू बहाना याद है
हमको अब तक आशिक़ी का वो ज़माना याद है

बा-हज़ाराँ इज़्तराब-ओ-सद हज़ाराँ इश्तियाक़
तुझसे वो पहले-पहल दिल का लगाना याद है

तुझसे मिलते ही वो बेबाक हो जाना मेरा
और तेरा दाँतों में वो उँगली दबाना याद है

खेंच लेना वोह मेरा परदे का कोना दफ़तन
और दुपट्टे से तेरा वो मुँह छुपाना याद है

जानकर सोता तुझे वो क़स्दे पा-बोसी मेरा
और तेरा ठुकरा के सर वो मुस्कराना याद है
(ई गजल बहुत नमहर छै तँए मात्र पाँच टा शेर दऽ रहल छी)

कबीर दासक एकट गजलकेँ तक्ती कऽ कऽ देखा रहल छी--

बहर—ए—हजज केर ई गजल जकर लयखंड (अर्कान) (1222×4) अछि--

ह1 मन2 हैं2 इश्2, क़1 मस्2ता2ना2, ह1 मन2 को 2 हो 2, शि1 या2 री2 क्या2

हमन है इश्क मस्ताना, हमन को होशियारी क्या ?
रहें आजाद या जग से, हमन दुनिया से यारी क्या ?

जो बिछुड़े हैं पियारे से, भटकते दर-ब-दर फिरते,
हमारा यार है हम में हमन को इंतजारी क्या ?

खलक सब नाम अपने को, बहुत कर सिर पटकता है,
हमन गुरनाम साँचा है, हमन दुनिया से यारी क्या ?

न पल बिछुड़े पिया हमसे न हम बिछड़े पियारे से,
उन्हीं से नेह लागी है, हमन को बेकरारी क्या ?

कबीरा इश्क का माता, दुई को दूर कर दिल से,
जो चलना राह नाज़ुक है, हमन सिर बोझ भारी क्या ?

तेनाहिते आजुक प्रसिद्ध शाइर मुनव्वर राना केर ऐ गजलक तक्ती देखू—

बहुत पानी बरसता है तो मिट्टी बैठ जाती है
न रोया कर बहुत रोने से छाती बैठ जाती है

यही मौसम था जब नंगे बदन छत पर टहलते थे
यही मौसम है अब सीने में सर्दी बैठ जाती है

नकाब उलटे हुए जब भी चमन से वह गुज़रता है
समझ कर फ़ूल उसके लब पे तितली बैठ जाती है

मुनव्वर राना (घर अकेला हो गया, पृष्ठ - 37)
तक्तीअ
बहुत पानी / बरसता है / तो मिट्टी बै / ठ जाती है
1222 / 1222 / 1222 / 1222
न रोया कर / बहुत रोने / से छाती बै / ठ जाती है
1222 / 1222 / 1222 / 1222
यही मौसम / था जब नंगे / बदन छत पर / टहलते थे
1222 / 1222 / 1222 / 1222
यही मौसम / है अब सीने / में सर्दी बै / ठ जाती है
1222 / 1222 / 1222 / 1222
नकाब उलटे / हुए जब भी / चमन से वह / गुज़रता है
1222 / 1222 / 1222 / 1222
(नकाब उलटे के अलिफ़ वस्ल द्वारा न/का/बुल/टे 1222 मानल गेल अछि)
समझ कर फ़ू / ल उसके लब / पे तितली बै / ठ जाती है
1222 / 1222 / 1222 / 1222
आब राहत इन्दौरी जीक ऐ गजलकेँ देखू--
ग़ज़ल (1222 / 1222 / 122) (बहर-ए-हजज केर मुजाइफ)
चरागों को उछाला जा रहा है
हवा पर रौब डाला जा रहा है

न हार अपनी न अपनी जीत होगी
मगर सिक्का उछाला जा रहा है

जनाजे पर मेरे लिख देना यारों
मुहब्बत करने वाला जा रहा है
राहत इन्दौरी (चाँद पागल है, पृष्ठ - 24)
तक्तीअ =
चरागों को / उछाला जा / रहा है
1222 / 1222 / 122
हवा पर रौ / ब डाला जा / रहा है
1222 / 1222 / 122

न हार अपनी / न अपनी जी / त होगी
1222 / 1222 / 122
(हार अपनी को अलिफ़ वस्ल द्वारा हा/रप/नी 222 गिना गया है)
मगर सिक्का / उछाला जा / रहा है
1222 / 1222 / 122
जनाजे पर / मेरे लिख दे / ना यारों
1222 / 1222 / 122
मुहब्बत कर / ने वाला जा / रहा है
1222 / 1222 / 122

फेरसँ मुनव्वर रानाजीक एकटा आर गजलकेँ देखू--
हमारी ज़िंदगी का इस तरह हर साल कटता है
कभी गाड़ी पलटती है कभी तिरपाल कटता है

सियासी वार भी तलवार से कुछ कम नहीं होता
कभी कश्मीर कटता है कभी बंगाल कटता है
(मुनव्वर राना)
1222 / 1222 / 1222 / 1222
(मुफाईलुन / मुफाईलुन / मुफाईलुन / मुफाईलुन)
हमारी ज़िं / दगी का इस / तरह हर सा / ल कटता है
कभी गाड़ी / पलटती है / कभी तिरपा / ल कटता है

सियासी वा/ र भी तलवा/ र से कुछ कम / नहीं होता
कभी कश्मी/ र कटता है / कभी बंगा / ल कटता है
आब दुष्यंत कुमारक ऐ गजलक तक्ती देखू--
2122 / 2122 / 2122 / 212
हो गई है / पीर पर्वत /-सी पिघलनी / चाहिए,
इस हिमालय / से कोई गं / गा निकलनी / चाहिए।
आब अहाँ सभ ऐ गजलकेँ अंत धरि जा सकै छी। पूरा गजल हम दऽ रहल छी—


हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए,
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए।

आज यह दीवार, परदों की तरह हिलने लगी,
शर्त लेकिन थी कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए।

हर सड़क पर, हर गली में, हर नगर, हर गाँव में,
हाथ लहराते हुए हर लाश चलनी चाहिए।

सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं,
मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए।

मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही,
हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए।

आब कने अदम गोंडवी जीक दू टा गजलक तक्ती देखू—
1222 / 1222 / 1222 / 1222
ग़ज़ल को ले / चलो अब गाँ / व के दिलकश /नज़ारों में
मुसल्सल फ़न / का दम घुटता / है इन अदबी / इदारों में
आब अहाँ सभ ऐ गजलकेँ अंत धरि जा सकै छी। पूरा गजल हम दऽ रहल छी—

ग़ज़ल को ले चलो अब गाँव के दिलकश नज़ारों में
मुसल्सल फ़न का दम घुटता है इन अदबी इदारों में

न इनमें वो कशिश होगी, न बू होगी, न रानाई
खिलेंगे फूल बेशक लॉन की लम्बी क़तारों में

अदीबों! ठोस धरती की सतह पर लौट भी आओ
मुलम्मे के सिवा क्या है फ़लक़ के चाँद-तारों में

रहे मुफ़लिस गुज़रते बे-यक़ीनी के तज़रबे से
बदल देंगे ये इन महलों की रंगीनी मज़ारों में

कहीं पर भुखमरी की धूप तीखी हो गई शायद
जो है संगीन के साये की चर्चा इश्तहारों में.

फेर गोंडवीजीक दोसर गजल लिअ—
2122 / 2122 / 2122 / 212
भूख के एह / सास को शे / रो-सुख़न तक /ले चलो
या अदब को / मुफ़लिसों की / अंजुमन तक /ले चलो
आब अहाँ सभ ऐ गजलकेँ अंत धरि जा सकै छी। पूरा गजल हम दऽ रहल छी--
भूख के एहसास को शेरो-सुख़न तक ले चलो
या अदब को मुफ़लिसों की अंजुमन तक ले चलो

जो ग़ज़ल माशूक के जल्वों से वाक़िफ़ हो गयी
उसको अब बेवा के माथे की शिकन तक ले चलो

मुझको नज़्मो-ज़ब्त की तालीम देना बाद में
पहले अपनी रहबरी को आचरन तक ले चलो

गंगा जल अब बुर्जुआ तहज़ीब की पहचान है
तिश्नगी को वोदका के आचरन तक ले चलो

ख़ुद को ज़ख्मी कर रहे हैं ग़ैर के धोखे में लोग
इस शहर को रोशनी के बाँकपन तक ले चलो.

आब आधुनिक उर्दूक प्राचीनतम गजलकार हरी चंद अख़्तरजीक ई गजल देखू--

सुना कर हाल क़िस्मत आज़मा कर लौट आए हैं
उन्हें कुछ और बेगाना बना कर लौट आए है
1222-1222-1222-1222
आब पूरा गजल देखू--
सुना कर हाल क़िस्मत आज़मा कर लौट आए हैं
उन्हें कुछ और बेगाना बना कर लौट आए है

फिर इक टूटा हुआ रिश्ता फिर इक उजड़ी हुई दुनिया
फिर इक दिलचस्प अफ़्साना सुना कर लौट आए हैं

फ़रेब-ए-आरज़ू अब तो न दे ऐ मर्ग-ए-मायूसी
हम उम्मीदों की इक दुनिया लुटा कर लौट आए हैं

ख़ुदा शाहिद है अब तो उन सा भी कोई नहीं मिला
ब-ज़ोम-ए-ख़ुवेश इन का आज़मा कर लौट आए हैं

बिछ जाते हैं या रब क्यूँ किसी काफ़िर के क़दमों में
वो सज्दे जो दर-ए-काबा जा कर लौट आए हैं

("फिर इक" मे अलिफ-वस्ल छूट छै आ एकर उच्चारण "फिरिक" छै। तेनाहिते "हम उम्मीदों “ लेल तेहने सन  बूझू।)
कतेक नाम आ गजल दिअ ऐ ठाम। कहबाक मतलब जे हरेक शाइर अपन गजलमे कथ्य आ तेवर बदलै छथि व्याकरण वएह रहै छै। मुदा मैथिलीक विद्वान तँ बस विद्वान छथि हुनका के टोकत। ऐ ठाम ई उदाहरण सभ देबाक मतलब मात्र सही पक्षकेँ उजागर करबाक अछि।
ओना सुरेन्द्रनाथजी कहता जे ई उदाहरण सभ हिंदी-उर्दूक अछि आ मैथिलीक अपन व्याकरण हेबाक चाही। पहिल गप्प जे ओ अपने कहै छथि जे हिंदीक गजलमे व्याकरण नै छै आ दोसर गप्प जे कोनो विधाक व्याकरण तँ मूले भाषासँ लेल जेतै खाली लक्ष्य भाषामे संशोधन हेतै । आब ई संशोधन केना हेतै से ऐ उदाहरणसँ बूझू—
1222-1222-1222-1222 (मने लघु-दीर्घ-दीर्घ, लघु-दीर्घ-दीर्घ,लघु-दीर्घ-दीर्घ,लघु-दीर्घ-दीर्घ केर चारि बेर प्रयोग) के अरबीमे बहरे-हज़ज कहल जाइत छै आ एकरा बहुत संगीतमय बूझल जाइत छै मुदा बहुत संभव जे भाषायी भिन्नताक कारण ई बहर या छंद मैथिलीमे कर्णप्रिय नै हो। आ एहन स्थितिमे मैथिलीमे 122-1222-222-1222 सनकेँ कोनो छंद आबि जाए। हमरा बुझने इएह संशोधन छै।
आब 1222-1222-1222-1222  केर गिनती करबाक लेल जे नियम छै सएह नियम 122-1222-222-1222 लेल सेहो रहतै या अन्य कोनो छंद लेल वएह रहतै।
तेनाहिते संस्कृत आ अरबीमे 122-122-122-122 छंदक समान रूपसँ प्रयोग होइत छै। संस्कृतमे एकरा भुजंगप्रयात कहल जाइत छै तँ अरबीमे बहरे-मुतकारिब। दूनू भाषामे ई उच्च संगीत क्षमता नेने भेटत। संस्कृतमे गोस्वामी तुलसीदासजीक ई रचना देखू जे भुजंगप्रयात ( बहरे मुतकारिब)मे अछि--

नमामी शमीशान निर्वाण रूपं
विभू व्यापकम् ब्रम्ह वेदः स्वरूपं
पहिल पाँतिकेँ मात्रा क्रम अछि---- ह्रस्व-दीर्घ-दीर्घ-ह्रस्व-दीर्घ-दीर्घ-ह्रस्व-दीर्घ-दीर्घ-ह्रस्व-दीर्घ-दीर्घ, दोसरो पाँतिकेँ मात्रा क्रम अछि-----ह्रस्व- दीर्घ -दीर्घ-ह्रस्व-दीर्घ-दीर्घ-ह्रस्व-दीर्घ-दीर्घ-ह्रस्व-दीर्घ-दीर्घ
फेर उपरे जकाँ कही जे भऽ सकैए जे मैथिलीमे ऐ ढ़ाँचामे संगीत नै आबि सकै आ तँए 22-122-22-122 रूप आबि जाए वा 221-122-212-122 रूप आबि जाए। मुदा लघु-दीर्घ गिनती करबाक नियम तँ समाने रहतै। बदलतै नै। मैथिलीमे शाइर राजीवरंजन मिश्रजी एहने संशोधन ओ परिवर्तन करैत गजल कहि-लीखि रहल छथि। राजीवजी कोनो अरबी वा संस्कृतक मान्य छंद नै लै छथि मुदा गजलक पहिल पाँतिमे जे मात्राक्रम रहै छै तकर ओ पूरा गजलमे पालन करै छथि आ इएह तँ छंद वा बहरक निर्वाह केनाइ भेलै। उदाहरण लेल राजीवजीक एकटा गजल राखि रहल छी—

नै राम रहीमक झोक रहय  
नै वेद कुरानक टोक चलय

मतलाक दूनू पाँतिमे 221 122 2112 ढ़ाँचा अछि आ निच्चा आन शेर सभमे देखू इएह मात्राक्रम भेटत--
किछु आर भने नै होइ मुदा
बस संग धऽ लोकक लोक सहय 

नै ईद दिवाली भरिकँ मजा
आनंद सहित नित नेह लहय

हो राम रहीमक गान सदति
नै नामकँ खातिर जीव मरय

राजीव सुनब नै लोककँ कहल
किछु लोक तऽ अतबे खेल करय

की ऐ गजलमे समकालीन स्वर नै छै। सुरेन्द्रनाथजीकेँ मेहनति नै करबाक छनि तँ नै करथु मुदा भ्रम ओ अज्ञानता नै पसारथु से हमर आग्रह। हम ऐ ठाम मैथिलीक किछु गजल कारक दूटा कऽ शेर देखा रहल छी। सभ गोटा देखू जे कोना एकै संग समकालीन स्वर आ व्याकरण छै—
कविवर सीताराम झाजीक गजलक दूटा शेर--

हम की मनाउ चैती सतुआनि जूड़शीतल
भै गेल माघ मासहि धधकैत घूड़तीतल`

मतलाक छंद अछि 2212+ 122+2212+ 122 आब दोसर शेर मिला लिअ-
अछि देशमे दुपाटी कङरेस ओ किसानक
हम माँझमे पड़ल छी बनि कै बिलाड़ि तीतल

पहिल शेर आइयो ओतबे प्रासंगिक अछि जते पहिले छल। आइयो नव साल गरीबक लेल नै होइ छै।
दोसर शेरकेँ नीक जकाँ पढ़ू आइसँ साठि-सत्तर साल पहिलुक राजनीतिक चित्र आँखि लग आबि जाएत।
जगदीश चंद्र ठाकुर "अनिल" जीक गजलक दू टा शेर--

टूटल छी तँइ गजल कहै छी
भूखल छी तँइ गजल कहै छी

मतलाक दूनू पाँतिमे 2222 +12 + 122 छंद अछि आ एकर दोसर शेर देखू--

ऑफिस सबहक कथा कहू की
लूटल छी तँइ गजल कहै छी

पाठक निर्णय करता जे समकालीन स्वर छै की नै।
योगानंद हीराजीक गजलक दू टा शेर—

मोनमे अछि सवाल बाजू की
छल कपट केर हाल बाजू की

मतलाक दूनू पाँतिमे 2122-12-1222  अछि आ दोसर शेर देखू

छोट सन चीज कीनि ने पाबी
बाल बोधक सवाल बाजू की

की समकालीन स्वर नै छै?
समकालीन स्वरे नै कालातीत स्वरक संग विजयनाथ झा जीक ऐ गजलक दूटा शेर देखू--

जीवनक आशय सदाशय सूत्र शिवता सार किछु
बेस बीतल शेष एहिना अभिलषित आभार किछु

मतलाक छंद अछि 212-212-212-212 आब दोसर शेरक दूनू पाँतिकेँ जाँच कऽ लिअ संगे संग भाव केर सेहो।

द्वन्द अछि आनंद तैयो क्लेश प्रियगर वारुणी
पी रहल हम जानि गंगा मधु मदिर नहि आर किछु

ऐठाम हमरा लग उदहारणक नमहर लिस्ट अछि मुदा मुदा पत्रिकाक सीमा होइत छै तँए हम रुकि रहल छी।
सुरेन्द्रनाथजी कहै छथि जे रचनामे समकालीन स्वर हेबाक चाही। आ देखू जे दुष्यंत कुमार, अदम गोंडवी, निराला सहित मैथिलीक बहुत रास शाइर बिना व्याकरणकेँ तोड़ने केना समकालीन स्वर देने छथि अपन गजलमे। की ई हिम्मत आ मेहनति करबाक क्षमता सुरेन्द्रनाथ जीमे छनि? हमरा बुझने सुरेन्द्रनाथजी संशोधनक मतलब छोड़ि देनाइ-तोड़ि देनाइ आ विनाश केनाइ बुझै छथि। आ हुनकर ऐ अज्ञानतापर की कएल जा सकैए से पाठक निर्णय करता।

6) सुरेन्द्रनाथजी अपन आलेखमे योगानंद हीरा आ विजयनाथ झाजीक संदर्भमे ई प्रश्न केला जे "हिनका सभमे प्रतिभा छलनि तँ ई सभ घनगर किएक नै भेला"। एकर जबाबमे हम बस एतबा कहऽ चाहै छी जे जँ कोनो खेतिहर अपन खेतमे गहूँम बाउग करै छै। आ गहूमक संग बहुत रास घास सभ जनमै छै। आब जँ खेतिहर कमौट नै करतै तँ ओ घास सभ गहूमकेँ बढ़हे नै देतै। ई पूर्णतः सत्य छै आ पाठक एकर अंदाजा लगा सकै छथि। मैथिली गजलक संदर्भमे इएह भेलै। शुरूमे नीक गजल तँ एलै मुदा बिना आलोचकक ई विधा रहि गेल आ एकर परिणाम स्वरूप "सुरेन्द्रनाथ" सन-सन जंगली घास " योगानंद हीरा ओ विजयनाथ झा" सन गहूमकेँ झाँपि देलकै। बीच-बीचमे जे खाद पड़लै तकर तागति सेहो बहुसंख्यक घास द्वारा चूसि लेल गेलै।
7) सुरेन्द्रनाथजी हमर ऐ बातसँ बहुत तामसमे छथि जे " गजेन्द्र ठाकुर मैथिलीक पहिल  गजलशास्त्र देला"। सुरेन्द्रनाथजी कहै छथि जे मैथिलीमे बहुत पहिलेसँ गजलशास्त्र छै। हम हुनकर मतक आदर करै छी संगे संग पूछए चाहै छी जे " अराजक गजलकार सभ गजलशास्त्र कहिया लिखला" आ जँ लिखबो केला तकर सूचना सुरेन्द्रनाथजी नै दऽ रहल छथि। हुनका कहबाक चाही जे अमुक लेखक गजेन्द्र ठाकुरसँ पहिने गजलशास्त्र लिखने छथि। बस बात खत्म मुदा ओ नाम नै कहि रहल छथि। ऐ पत्रिकाक माध्यमें हम हुनकासँ आग्रह करैत छी जी जे ओ पाठककेँ मैथिलीक पहिल गजलशास्त्रक नाम ओ ओकर लेखकक नाम कहता। आ तकर बाद गजेन्द्र ठाकुर बला दावा हम अपने खारिज क लेब................. प्रतीक्षामे छी

8) ई जानल बात छै जे मैथिलीमे सरल वार्णिक बहरक अविष्कार मात्र एकसूत्रमे बन्हबाक लेल भेल छै। आ एकर लाभ मैथिलीक नव गजलकार सभकेँ भेलै से पूरा दुनियाँ जानि रहल अछि। मुदा सुरेन्द्रनाथजी बिना मूल ग्रंथ, पढ़ने तामसमे आबि लिखै छथि। तँए हुनकासँ गंभीरताक आशा करब बेकार।

9) पद्य बला प्रसंगमे सुरेन्द्रनाथजी अपने ओझरीमे छथि। हुनका बुझबाक चाही जे समस्त लिखित वस्तु काव्यक अंतर्गत आबै छै। बादमे गेय आ सरस काव्यकेँ "पद्य" कहल गेलै तँ शुष्क काव्यकेँ "गद्य"। कोनो निश्चित नियमसँ बान्हल पद्य एकटा विधा बनल जेना कोनो पद्यकेँ दोहाक नियममे दियौ तँ दोहा बनतै, सोरठाक नियममे दियौ तँ सोरठा।। तेनाहिते गजलक सेहो नियम छै। आब प्रश्न छै जे जँ कोनो दोहा की सोरठा की कुंडलिया की गजल ओइ निश्चित नियमक पालन नै सकल छै तँ ओ की कहेतै। निश्चित तौरपर ओ सभ पद्ये कहेतै। कारण ओइमे कोनो खास विधाक नियम नै छै मुदा गेयता आ सरसता तँ छैके। मुदा सुरेन्द्रनाथजी एतेक छोट आ सरल बात नै बूझि सकलाह तकर हमरा दुख अछि।

10) सुरेन्द्रनाथजी अपन आलेखमे बहुत दुविधाग्रस्त छथि। कतहुँ ओ लिखै छथि जे गजलमे व्याकरण नै होइ छै, तँ कतहुँ लिखै छथि जे गजलमे व्याकरण नै हेबाक चाही आ अंतमे कहै छथि जे मैथिलीक गजलकेँ अपन व्याकरण हेबाक चाही।
बहुत दुविधा छनि सुरेन्द्रनाथजीकेँ मुदा ऐ दुविधामे हम फँसऽ नै चाहैत छी आ तँए सोझे पाठक लग चलै छी.........................


कर्मामृतमे प्रकाशित सुरेन्द्रनाथजीक लेखक कटिंग--












कर्मामृतमे प्रकाशित आशीष अनचिन्हारक लेखक कटिंग--










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आधुनिक मैथिली गजलक संक्षिप्त आलोचनात्मक परिचय
(आशीष अनचिन्हार)

प्रस्तुत आलेख हम मैथिली गजलपर लिखने छी। वर्तमान शोधकेँ मानी तँ आब मैथिली गजल लगभग112 बर्खक भऽ गेल अछि। एहि 112 बर्खमे मैथिली गजलमे बहुत रास प्रयोग आ स्थापना भेलै तकरे निरूपण करब एहि लेखक उद्येश्य अछि। एहि लेखकेँ पढ़बासँ पहिने किछु तथ्य सामने राखि दी जाहिसँ मैथिली गजलक सभ प्रयोग आ स्थापनाकेँ अहाँ सभ नीक जकाँ परखि सकब--
1) गजल लेल बहर ओ काफिया अनिवार्य छै (बहरक पालनमे किछु छूट सेहो भेटै छै गजलकारकेँ मुदा धेआन राखू जे बहरमे लिखते नै छथि हुनका लेल ई छूट कोन काजक)। पं.जीवन झासँ आधुनिक मैथिलीक गजलक जन्म मानल जाइत अछि आ स्वाभाविक छै जे पहिल चीजमे सही आ गलत दूनू तत्व रहै छै तँइ पं.जीक किछु गजलमे बहर ओ काफियाक नीक प्रयोग भेटत तँ किछु गजल गीत जकाँ भेटत। मुदा तकर बाद कविवर सीताराम झा आ काशीकांत मिश्र मधुपजी मैथिलीक गजलक भार उठेला आ मैथिली गजलकेँ विस्तार देला। कविवर आ मधुपजीक गजल सभ पूर्णरूपेण बहर ओ काफियासँ सजल अछि। हिनक दूनूक गजल यथार्थमे मैथिली गजल अछि (भाषा मैथिलीक आ गजल व्याकरणकेँ मैथिलीक अनुरूप देल गेल अछि)। कविवरजी आ मधुपजी दूनू कम्मे गजल लिखलाह मुदा हमरा जनैत ई गजल सभ व्याकरणयुक्त आधुनिक मैथिली गजलक पृष्ठभूमि अछि।
2) लगभग 1970-75सँ मैथिली गजल ओहन धाराक लोक सभहँक हाथमे आबि गेल जे कि गजल बारेमे किछु नै जनैत छलाह। ओ मात्र दू पाँतिक बहर-काफियाहीन पाँति सभसँ बनल कविताकेँ गजल कहए लगलाह। कोनो विधामे प्रयोग खराप नै छै मुदा पाठककेँ भ्रमित कए कऽ कएल प्रयोग हानिकारक होइत छै। एहि धाराक लोक सभ कहैत छलाह गजलमे कोनो नियम नै होइत छै। किछु गोटे कहैत छलखनि जे मैथिलीमे गजल भैए ने सकैए। जखन कि हुनका सभसँ पहिनेहें कविवर आ मधुपजी व्याकरणयुक्त गजल लीखि चुकल छलाह। उपरेमे कहने छी जे एहि धाराक लोक सभकेँ गजलक ज्ञान नै छलनि संगे-संग हिनका सभकेँ मैथिली गजलक इतिहासक बारेमे सेहो पता नै छलनि अन्यथा "गजलमे कोनो नियम नै होइ छै" वा " मैथिलीमे गजल लिखले नै जा सकैए" एहन-एहन बयान देबासँ पहिने ओ सभ जरूर पं.जीवन झा, कविवर सीताराम झा, काशीकांत मिश्र मधुपजीक गजलमे प्रयोग भेल नियम सभकेँ जरूर देखितथि।
3) एहि आलेखमे हम दूनू धाराक उल्लेख करब। दूनू धाराक गजलमे की-की अंतर अछि, दूनू धाराक गजलमे कोन-कोन काज भेल अछि। दूनू धाराक की कमजोरी अछि। दूनू धाराक प्रतिनिधि गजलकार सभहँक किछु शेर सभ सेहो हम देब। मैथिलीमे व्याकरणयुक्त धारा पहिनेसँ अछि तँ पहिने ओकरे वर्णन हएत बादमे बिना व्याकरण बला धाराक। जे गजलक नियम पालन नै करै छथि हुनकर कहब छनि जे व्याकरणसँ विचार ओ भाव बन्हा जाइ छै (ई मोन राखू जे एहन कहए बला लोक सभ मात्र साम्यवादी वा कथित प्रगतिशील भावक बात करै छथि)। हम एहि लेखमे व्याकरणयुक्त गजल सभहँक उदाहरण दैत साबित करब जे कोना व्याकरणसँ भाव कि विचार आदि पुष्ट होइत छै।
4) मैथिली गजल मने ओ गजल जे कि मैथिलीमे लिखल गेल चाहे ओकर देश कोनो किएक ने हो।
5)  एहि आलेखक सभ तथ्य हमर पोथी "मैथिली गजलक व्याकरण ओ इतिहास"मे आबि चुकल अछि जकरा हम एहिठाम प्रसंगक हिसाबें पुनर्लेखन केलहुँ अछि।
आधुनिक मैथिली गजलक इतिहास
मैथिलीमे गजल उर्दू भाषाक माध्यमें आएल। उर्दूमे फारसीसँ आ फारसीमे अरबीसँ। पं.जीवन झा (जन्म आ मृत्युः 1848-1912) अपन नाटक "सुन्दर संयोग" आ "सामवती पुनर्जन्म"मे पहिल बेर गजल लिखलाह। सुन्दर संयोग 1905 इ.मे प्रकाशित भेल छल। तकर बाद कविवर सीताराम झा (जन्म 1891 ई.मे तथा निधन 1975 ई) गजल लिखलाह। कविवरजीक "जगत मे थाकि जगदम्बे अहिंक पथ आबि बैसल छी" ई गजल 1928मे प्रकाशित कविवर सीताराम झा जीक " सूक्ति सुधा ( प्रथम बिंदु )मे संग्रहीत अछि। काशीकांत मिश्र मधुप (जन्म-मृत्युः 1906-1987) "मिथिलाक पूर्व गौरव नहि ध्यान टा धरै छी" नामक गजल लिखलाह जे कि 1932मे मैथिली साहित्य समिति, द्वारा काशीसँ "मैथिली-संदेश" नामक पत्रिकामे प्रकाशित भेल।
व्याकरणयुक्त आधुनिक मैथिली गजलक इतिहास
पं.जीवन झाजीसँ एहि धाराक शुरुआत भेल आ तकर बाद कविवर सीताराम झा, काशीकांत मिश्र मधुप, योगानंद हीरा, जगदीश चन्द्र ठाकुर "अनिल", विजय नाथ झा, गजेन्द्र ठाकुर, मुन्नाजी, शान्तिलक्ष्मी चौधरी, ओमप्रकाश झा, अमित मिश्र, जगदानन्द झा मनु,, कुन्दन कुमार कर्ण, श्रीमती इरा मल्लिक, राम कुमार मिश्र, नीरज कुमार कर्ण, प्रदीप पुष्प, राजीव रंजन मिश्रा, चंदन कुमार झा आदि भेलथि। एहि धाराक अंतर्गत सरल वार्णिक बहरमे लीखए बला किछु गजलकार एना छथि-- इरा मल्लिक, सुनील कुमार झा, पंकज चौधरी नवल श्री, मिहिर झा, अनिल मल्लिक, दीप नारायण विद्यार्थी,प्रवीन नारायण चौधरी प्रतीक, भावना नवीन, रवि मिश्रा भारद्वाज, अजय ठाकुर मोहन, प्रभात राय भट्ट, सुमित मिश्रा "गुंजन" आदि। एहि ठाम स्पष्ट करब बेसी जरूरी जे सरल वार्णिक बहर मात्र आरंभिक अनुशासन लेल अछि। एकर उद्येश्य ई अछि जे पहिने गजलकार हल्लुकसँ सीखथि आ तकर बाद गजलक मूल बहरपर जाथि। ओना ई कहबामे हमरा कोनो संकोच नै जे बहुतो बिना व्याकरण बला गजलकार सभसँ नीक ई सरल वार्णिक बला गजलकार सभ लीखै छथि। सरल वार्णिक बहर मूल वैदिक छंद अछि जाहिमे गजलक हरेक पाँतिमे अक्षरक संख्या एक समान देल जाइ छै जखन कि गजलक मूल बहर वर्णवृत अछि जाहिमे गजलक हरेक पाँतिक मात्राक्रम एक समान रहै छै मने हरेक पाँतिक लघुकेँ निच्चा लघु आ दीर्घक निच्चा दीर्घ।
उपरक नाम सभहँक अलावे हम अपने व्याकरणयुक्त गजलक समर्थक छी आ किछु गजल सेहो लीखि/कहि लै छी।
व्याकरणयुक्त आधुनिक मैथिली गजलमे भेल काज
1905सँ लगातार व्याकरणयुक्त लिखाइत रहल आ 11/4/2008केँ “अनचिन्हार आखर” नामक ब्लाग इंटरनेटपर आएल। एकरा एहि लिंकपर देखल जा सकैए https://anchinharakharkolkata.blogspot.in/। अनचिन्हार आखर केर छोटका नाम " अ-आ " राखल गेल अछि। ई ब्लाग हमरा द्वारा शुरू कएल गेल छल आ समय-समयपर आन-आन गजलकार सभकेँ जोड़ल गेल। वर्तमानमे ई ब्लाग हमरा आ गजेन्द्र ठाकुर द्वारा संपादित भऽ रहल अछि तँ देखी व्याकरणयुक्त आधुनिक मैथिली गजल लेल भेल किछु एहन काज जे अ.आ द्वारा भेल ---
1) अ-आ प्रिंट वा इंटरनेटपर पहिल उपस्थिति अछि जे की मात्र आ मात्र गजल एवं गजल अधारित विधापर केन्द्रित अछि।
2) अ-आ केर आग्रहपर श्री गजेन्द्र ठाकुर जी गजलशास्त्र लिखला जे की मैथिलीक पहिल गजलशास्त्र भेल। एही गजलशास्त्रमे ठाकुरजी सरल वार्णिक बहरक जन्म देलाह।
3) अ-आ द्वारा "गजल कमला-कोसी-बागमती-महानन्दा सम्मान" केर शुरूआत भेल। जे की स्वतन्त्र रूपें गजल विधा लेल पहिल सम्मान अछि।
4) अ-आ केर ई सौभाग्य छै जे ओ मैथिली बाल गजल नामक नव विधाकेँ जन्म देलक आ ओकर पोषण केलक। मैथिली भक्ति गजल सेहो अ-आ केर देन अछि। विदेहक अङ्क 111 पूर्ण रूपेण बाल-गजल विशेषांक अछि आ अङ्क 126 भक्ति गजल विशेषांक।
5) बर्ख 2008 आ 2015 माँझ करीब 30टासँ बेसी गजलकार मैथिली गजलमे एलाह। ई गजलकार सभ पहिनेसँ गजल नै लिखै छलाह। संगे-संग करीब 6-7टा गजल समीक्षक-आलोचक सेहो एलाह।
6) पहिल बेर मैथिली गजलक क्षेत्रमे एकै बेर करीब 16-17 टा आलोचना लिखाएल।
7) अ-आ मैथिली गजलकेँ विश्वविद्यालय ओ यू.पी.एस. सी एवं बी.पी.एस. सीमे स्थान दिएबाक अभियान चलौने अछि आ एकटा माडल सिलेबस सेहो बना कऽ प्रस्तुत केने अछि।
8) अ-आ प. जीवन झा जीक मृत्यु केर अंग्रेजी तारीख पता लगा ओकरा गजल दिवस मनेबाक अभियान चलौने अछि।
9) अ-आ 1905सँ लऽ कऽ 2013 धरिक गजल सङ्ग्रहक सूची एकट्ठा ओ प्रकाशित केलक (व्याकरणयुक्त एवं व्याकरणहीन दूनू)।
10) अ-आ अधिकांश गजलकारक (व्याकरण युक्त एवं व्याकरणहीन दूनू) संक्षिप्त परिचय प्रस्तुत केलक।
11) अ-आ 62 खण्डमे गजलक इस्कूल नामक श्रृखंला चलौलक जे की समान्य पाठकसँ लऽ कऽ गजलकार धरि लेल समान रूपसँ उपयोगी अछि।
12)  अ-आ मैथिलीमे पहिल बेर आन-लाइन मोशयाराक आरम्भ केलक आ ई बेस लोकप्रिय भेल।
13) मैथिली गजल आ अन्य भारतीय भाषाक गजल बीच संबंध बनेबाक लेल "विश्व गजलकार परिचय शृखंला" शुरू कएल गेल।
14) एखन धरि अ.आ केर माध्यमें मैथिली गजलमे गजल-1386, रुबाइ-417, बाल गजल 207, बाल रुबाइ-47, भक्ति गजल-47, हजल-21, आलोचना-28, कसीदा-3, नात-2, बंद-4,भक्ति रुबाइ-1, माहिया-2, देल जा चुकल अछि। जतेक गजलकार अ.आ केर माध्यमें आएल छथि हुनका सभ द्वारा रचित गजलक संख्या जोड़ल जाए तँ लगभग 3000 गजलक संख्या पहुँचत।
अनचिन्हार आखरक एही काज सभकेँ देखैत मैथिली गजलक पहिल अरूजी गजेन्द्र ठाकुर 2008क बाद सँ लऽ कऽ वर्तमान कालखंडकेँ "अनचिन्हार युग" केर नाम देलाह (1905सँ लऽ कऽ 2007 धरिक कालखंडकेँ गजेन्द्रजी आधुनिक मैथिलीक पहिल गजलकार जीवन झाजीक नामपर "जीवन युग" नाम देलाह)।

मैथिली गजलमे विदेह केर योगदान
विदेह इंटरनेटक प्रसिद्ध मैथिली पत्रिका अछि जे कि गजेन्द्र ठाकुरजी द्वारा संचालित अछि आ हरेक मासक 1 आ 15 तारीखकेँ प्रकाशित होइत अछि। एकरा एहि लिंकपर देखल जा सकैए http://videha.co.in/ विदेहक किछु एहन काज जै बिना आधुनिक व्याकरणयुक्त मैथिली गजलक उत्थान सम्भव नै छल--
1) विदेहक 21म अंक (1 नवम्बर 2008)मे राजेन्द्र विमल जीक 2 टा गजल अछि। राम भरोस कापड़ि भ्रमर आ रोशन जनकपुरी जीक 11 टा गजल अछि। संगे-संग धीरेन्द्र प्रेमर्षि जीक 1 टा आलेख मैथिलीमे गजल आ एकर संरचना। अछि संगे-संग ऐ आलेखक संग 1 टा गजल सेहो अछि प्रेमर्षि जीक। विदेहक ऐ अंकमे कतहुँ ई नै फड़िछाएल अछि जे ई गजल विशेषांक थिक मुदा विदेहक ऐसँ पहिनुक अंक सभमे गजलक मादें हम कोनो तेहन विस्तार नै पबै छी तँए हम एही अंककेँ विदेहक गजल विशेषांक मानलहुँ अछि।
2) विदेहक अंक 96 (15 दिसम्बर 2011)मे मुन्नाजी द्वारा गजल पर पहिल परिचर्चा भेल। ऐ परिचर्चाक शीर्षक छल मैथिली गजल: उत्पत्ति आ विकास (स्वरूप आ सम्भावना)। ऐमे भाग लेलथि सियाराम झा सरस, गंगेश गुंजन, प्रेमचंद पंकज, शेफालिका वर्मा, मिहिर झा ओमप्रकाश झा, आशीष अनचिन्हार आ गजेन्द्र ठाकुर भाग लेलथि। ऐकेँ अतिरिक्त राजेन्द्र विमल, मंजर सुलेमान ऐ दूनू गोटाक पूर्वप्रकाशित लेखक भाग, धीरेन्द्र प्रेमर्षिजीक पूर्व प्रकाशित लेख) सेहो अछि।
3) विदेहक अंक 111 (1/8/2012) जे की बाल गजल विशेषांक अछि जाहिमे कुल 16 टा गजलकारक कुल 93 टा बाल गजल आएल।
4) विदेहक 15 मार्च 2013 बला 126म अंक भक्ति गजल विशेषांक छै।
5) 15 नवम्बर 2013केँ विदेहक 142म अंक "गजल आलोचना-समालोचना-समीक्षा" विशेषांक छल।
एहि सभहँक अलावे विदेह समय-समयपर विभिन्न विधाक गोष्ठी करबैत रहल अछि जाहिमसँ एकटा गजल सेहो अछि।
आधुनिक व्याकरणयुक्त मैथिली गजलक आलोचना
आधुनिक व्याकरणयुक्त गजल आलोचनाक बात करी तँ सभसँ पहिने रामदेव झा जी द्वारा लिखल ओ रचना पत्रिकाक जून 1984मे प्रकाशित ओहि लेख केर चर्चा करए पड़त जकर शीर्षक "मैथिलीमे गजल" छल। हमरा जनैत ई लेख ओहि समयक हिसाबें मैथिली गजल आलोचनाक सभ मापडंद पूरा करैत अछि (वर्तमान समयमे रामदेव झाक जीक पुत्र सभ एही आलेखसँ वर्तमान गजलकेँ मापै छथि आ ई हुनकर सीमा छनि। ईहो कहब उचित जे वर्तमान समयक हिसाबें ओ आलेख औसत स्तरक अछि मुदा एही कारणसँ एकर महत्व कम नै भऽ जेतै)। ओना ई उल्लेखनीय जे ईहो आलेख गजलक विधानकेँ ओझरा कऽ राखि देने अछि कारण एहि लेखमे गजलक बहरकेँ मात्रिक जकाँ मानल गेल छै जे कि वस्तुतः लेखक महोदय केर सीमा छनि। वर्णवृत छंदमे हरेक पाँतिक मात्राक जोड़ एकै अबै छै आ मात्रिक छंदमे सहो। हमरा जनैत रामदेव झा जी एहीठाम भ्रममे फँसि गेलाह। वर्णवृतमे लघु-गुरू केर नियत स्थान होइत छै मुदा मात्रिक छंदमे लघुक स्थानपर दीर्घ सेहो आबि सकैए आ दीर्घक स्थानपर लघु सेहो। मुदा गजलक बहर वर्णवृत छै। तथापि कमसँ कम ओहि समयमे ई कहए बला कियो सेहो भेलै जे गजलमे विधान होइत छै आ सएह एहि आलेखक पहिल विशेषता अछि। एहि आलेखक दोसर विशेषता ई जे रामदेव झाजी प्राचीन मैथिली गजलकार सभहँक नाम देने छथि जे कि सभ गजलक इतिहासकार ओ पाठक लेल उपयोगी अछि। एहि आलेखक तेसर विशेषता अछि जे रामदेव झाजी स्पष्ट स्वरमे ओहि समयक बहुत रास कथित क्रांतिकारी गजलकार सभहँक गजलकेँ खारिज करै छथि जे कि ओहि समयक हिसाबसँ बड़का विस्फोट छल। ई आलेख ततेक प्रभावकारी भेल जे ओ समयक बिना व्याकरण बला गजलकार सभ छिलमिला गेलाह आ एहि आलेखक विरोधमे विभिन्न वक्तव्य सभ देबए लगलाह। उदाहरण लेल सियाराम झा सरस, तारानंद वियोगी, रमेश ओ देवशंकर नवीनजीक संपादनमे प्रकाशित साझी गजल संकलन "लोकवेद आ लालकिला" (वर्ष 1990) केर कतिपय लेख सभ देखल जा सकैए जाहिमे रामदेव झाजी ओ हुनक स्थापनाकेँ जमि कऽ आरोपित कएल गेल अछि। ओही संकलनमे देवशंकर नवीन अपन आलेख "मैथिली गजलःस्वरूप आ संभावना"मे लिखै छथि जे "............पुनः डा. रामदेव झाक आलेख आएल। एहि निबन्ध मे दू टा बात अनर्गल ई भेल जे गजलक पंक्ति लेल छंद जकाँ मात्रा निर्धारित करए लगलाह आ किछु एहेन व्यक्तिक नाम मैथिली गजल मे जोड़ि देलनि जे कहियो गजल नै लिखलनि"
आन लेख सभमे एहने बात सभ आन आन तरीकासँ कहल गेल अछि। रामदेव झाजीक आलेखक बाद एहन आलेख नै आएल जाहिमे गजलकेँ व्याकरण दृष्टिसँ देखल गेल हो कारण ताहि समयक गजलपर कथित क्रांतिकारी गजलकार सभहँक कब्जा भऽ गेल छल। कोनो विधा लेल आलोचना प्राण होइत छै तँइ "अनचिन्हार आखर" अपन शुरूआतेसँ आन काजक अतिरिक्त गजल आलोचनापर सेहो ध्यान केंद्रित केलक आ मैथिली गजलक अपन आलोचक सभकेँ चिह्नित कऽ बेसी आलोचना लिखबेलक। आ एही कारणसँ मैथिली गजल आब ओहन आलोचक सभसँ मुक्त अछि जे कि मूलतः साहित्य केर आन विधाक आलोचक छथि आ कहियो काल गजलक आलोचना कऽ गजलपर एहसान करै छथि। ई पाँति लिखैत हमरा गर्व अछि जे मैथिली गजलकेँ आब छह-सात टासँ बेसी अपन आलोचक छै। अनचिन्हार आखर जे-जे गजल आलोचना लिखबा कऽ प्रकाशित करबेलक तकर विवरण एना अछि----
1) गजलक साक्ष्य (तारानंद वियोगी जीक गजल संग्रह केर आशीष अनचिन्हार द्वारा कएल गेल आलोचना)
2) बहुरुपिया रचनामे (अरविन्द ठकुर जीक गजल संग्रह केर ओमप्रकाश जी द्वारा कएल गेल आलोचना)
3) घोघ उठबैत गजल (विभूति आनंद जीक गजल संग्रह केर ओम प्रकाश जी द्वारा कएल गेल आलोचना)
4) विदेहक 103म अंकमे प्रकाशित प्रेमचंद पंकजक दूटा गजलक समीक्षा जे की ओमप्रकाश जी केने छथि
5) मुन्नाजीक गजल संग्रह "माँझ आंगनमे कतिआएल छी"- समीक्षक गजेन्द्र ठाकुर
6) मैथिली गजल आ अभट्ठाकारी
7) अज्ञानी संपादकक फेरमे मरैत गजल (घर-बाहर पत्रिकाक अप्रैल-जून 2012 अंकमे प्रकाशित गजलक समीक्षा)
8) मैथिली बाल गजलक अवधारणा
9) कतिआएल आखर (मुन्ना जीक गजल संग्रह केर अमित मिश्र जी द्वारा कएल गेल आलोचना)
10) गजलक लेल (विजयनाथ झा जीक गजल ओ गीत संग्रह- अहीँक लेल के ओमप्रकाश जी द्वारा कएल समीक्षा)
11) भोथ हथियार (श्री सुरेन्द्र नाथ जीक गजल संग्रह केर ओमप्रकाश जी द्वारा कएल गेल आलोचना)
12) पहरा अधपहरा (बाबा बैद्यानथ जीक गजल संग्रह केर आशीष अनचिन्हार द्वारा कएल गेल आलोचना)
13) गजलक लहास (स्व. कलानन्द भट्टजीक गजलसंग्रह केरजगदानन्द झा मनु द्वारा कएल गेल आलोचना)
14) सूर्योदयसँ पहिने सूर्यास्त (राजेन्द्र विमल जीक गजल संग्रहक आशीष अनचिन्हार कएल गेल आलोचना)
15) बहुत किछु बुझबैएः कियो बूझि ने सकल हमरा (ओमप्रकाशजीक गजल संग्रहपर चंदन कुमार झाजीक आलोचना)
16) प्रतिबद्ध साहित्यकारक अप्रतिबद्ध गजल (सियाराम झा सरसजीक गजल संग्रहपर जगदीश चंद्र ठाकुर अनिलजीक आलोचना)
17) अरविन्दजीक आजाद गजल (अरविन्द ठाकुरजीक गजल संग्रहपर जगदीश चंद्र ठाकुर अनिलजीक आलोचना)
18) छद्म गजल (गंगेश गुंजनजीक गजल सन किछुपर आशीष अनचिन्हार द्वारा कएल आलोचना)
19) कलंकित चान (राम भरोस कापड़ि भ्रमरजीक गजल संग्रहक आशीष अनचिन्हार द्वारा कएल आलोचना)
20) मैथिली गजल व्याकरणक शुरूआती प्रयोग (गजेन्द्र ठाकुरजीक गजल संग्रह "धांगि बाट बनेबाक दाम अगूबार पेने छँ" केर आशीष अनचिन्हार द्वारा कएल आलोचना)
21) चिकनी माटिमे उपजल नागफेनी (रमेशजीक गजल संग्रह "नागफेनी" केर आशीष अनचिन्हार द्वारा कएल आलोचना)
22) नवगछुलीक प्रांजल सरस रसाल: नव अंशु (अमित मिश्र केर गजल संग्रह "नव-अंशु" केर शिव कुमार झा"टिल्लू" द्वारा कएल गेल समीक्षा)
23) सियाराम जा सरस जीक गजल संग्रह "शोणिताएल पैरक निशान"पर कुंदन कुमार कर्णजीक टिप्पणी
24) श्री जगदीश चन्द ठाकुर ऽअनिलऽ जीक लिखल गजल संग्रह "गजल गंगा" केर जगदानंद झा"मनु" द्वारा कएल समीक्षा
25) मैथिली गजलक संसारमे अनचिन्हार आखर (आशीष अनचिन्हारक गजल संग्रहक जगदीश चंद्र ठाकुर अनिलजी द्वारा कएल आलोचना)
26) थोड़े माटि बेसी पानि (सियाराम झा सरसजीक गजल संग्रहपर कुंदन कुमार कर्णजीक आलोचना)
आधुनिक व्याकरणयुक्त मैथिली गजलक किछु उदाहरण
एहि ठाम आब हम किछु शेरक उादहरण देब आ एहिमे हम अरबी बहर जे कि गजलक मूल बहर अछि आ सरल वार्णिक बहर दूनूमे लिखल शेर सभ प्रस्तुत करब। हम उदहारणमे सभ विचार बला शेर राखब जाहिसँ पाठक सहजहिं बुझता जे बहर-व्याकरण गजलक विचारमे बाधक नै होइत छै। गजलक पहिल पाँतिमे जे मात्राक्रम रहै छै तकर ओ पूरा गजलमे पालन करब छंद वा बहरक निर्वाह केनाइ भेलै। ऐठाम हम स्पष्ट करी जे मैथिलीक आधुनिक व्याकरणयुक्त गजलकारक संख्या बहुत बेसी अछि मुदा हम एहिठाम मात्र ओतबे गजलकारक शेर लेलहुँ अछि जाहि हमर उद्येश्य पूरा भऽ जाए (उदाहरणमे आएल शेर सभ एकौ गजलक भऽ सकैए आ अलग अलग गजलक सेहो। संपादक महोदयसँ आग्रह जे उदाहरणमे देलग गेल शेर सभहँक वर्तनीकेँ यथावत् राखथि)।--
पं जीवन झाजीक एकटा गजलमे वर्णित विरहक नीक चित्रण देखू—

अनंङ्ग सन्ताप सौं जरै छी अहाँक चिन्ता जतै करै छी
सखीक लाजे ततै मरै छी जतै कही वा जतै कहाबी
एहि शेरक मात्रक्रम 12+122+12+122+12+122+12+122 अछि आ पूरा गजलमे एकर प्रयोग भेल अछि। झाजीक दोसर गजलक एकटा आर विरहपरक शेर देखू—

अहाँ सों भेंट जहिआ भेल तेखन सों विकल हम छी
उठैत अन्धार होइए काज सब करबामे अक्षम छी 
एहि शेरक मात्राक्रम 1222+1222+1222+1222 अछि आ पूरा गजलमे एकर प्रयोग भेल अछि। उपरक एहि तीन टा उदाहरणसँ स्पष्ट अछि जे पं. जीवन झाजी मैथिली गजल आ गजलक व्याकरणक बीच नीक ताल-मेल रखने छलाह। फेर हुनक तेसर शेरक एकटा आरो शेर देखू जे कि प्रेममे पड़ल नायक-नायिका मनोभाव अछि--
पड़ैए बूझि किछु ने ध्यानमे हम भेल पागल छी
चलै छी ठाढ़ छी बैसल छी सूतल छी कि जागल छी
एहि शेरक मात्राक्रम 1222+1222+1222+1222 अछि आ पूरा गजलमे एकर प्रयोग भेल अछि। कविवर सीताराम झाजीक किछु शेरक उदाहरण देखू—

हम की मनाउ चैती सतुआनि जूड़शीतल
भै गेल माघ मासहि धधकैत घूड़तीतल`
मतलाक छंद अछि 2212+ 122+2212+ 122 आब एही गजलक दोसर शेर मिला लिअ-

अछि देशमे दुपाटी कङरेस ओ किसानक
हम माँझमे पड़ल छी बनि कै बिलाड़ि तीतल
पहिल शेर आइयो ओतबे प्रासंगिक अछि जते पहिले छल। आइयो नव साल गरीबक लेल नै होइ छै। दोसर शेरकेँ नीक जकाँ पढ़ू आइसँ साठि-सत्तर साल पहिलुक राजनीतिक चित्र आँखि लग आबि जाएत। स्पष्ट अछि जे बिना व्याकरण तोड़ने कविवरजी प्रगतिशील भावक गजल लिखला जे अजुको समयमे ओतबे प्रासंगिक अछि जतेक की पहिने छल। जे ई कहै छथि जे बिना व्याकरण तोड़ने प्रगतिशील गजल नै लिखल जा सकैए हुनका सभकेँ ई उदाहरण देखबाक चाही। काशीकान्त मिश्र "मधुप" जीक दूटा शेर देखल जाए—

मिथिलाक पूर्व गौरव नहि ध्यान टा धरै छी
सुनि मैथिली सुभाषा बिनु आगियें जड़ै छी

सूगो जहाँक दर्शन-सुनबैत छल तहीँ ठाँ
हा आइ "आइ गो" टा पढ़ि उच्चता करै छी

एहि गजलमे 2212-122-2212-122 मात्राक्रम अछि जे कि गजलक हरेक शेरमे पालन कएल गेल अछि। देखू मधुपजी भिन्न स्वर लऽ कऽ आएल छथि मुदा बिना व्याकरण तोड़ने। योगानंद हीराजीक गजलक दू टा शेर—

मोनमे अछि सवाल बाजू की
छल कपट केर हाल बाजू की
मतलाक दूनू पाँतिमे 2122-12-1222 अछि आ दोसर शेर देखू-

छोट सन चीज कीनि ने पाबी
बाल बोधक सवाल बाजू की
हीराजी दोसर गजलक दू टा आर शेर देखू—

शूल सन बात ई
संसदे जेल अछि

आब हीरा कहै
जौहरी खेल अछि
एहि गजलक हरेक शेरमे सभ पाँतिमे 2122+12 मात्राक्रम अछि। आब अहीं सभ कहू जे हीराजीक गजलमे समकालीनता, प्रगतिशीलता आदि छै कि नै। पहिल शेरमे शाइर वर्तमान जीवनमे पसरल अजरकताकेँ देखा रहल छथि तँ दोसर शेरमे अभावक कारण बच्चा धरिकेँ कोनो चीज नै दऽ पेबाक विवशता छै। तेसर शेर आजुक विडंबना अछि। संसद वएह छै जे पहिने छलै मुदा सांसद सभ आब अपराधी वर्गक अछि तँइ शाइरकेँ ओ जेल बुझा रहल छनि। चारिम शेरमे शाइर प्रायोजित प्रसंशाक खेलकेँ उजागर केने छथि। ई खेल साहित्य कि आन कोनो क्षेत्रमे भऽ सकैए। जगदीश चंद्र ठाकुर "अनिल" जीक गजलक दू टा शेर—

टूटल छी तँइ गजल कहै छी
भूखल छी तँइ गजल कहै छी
मतलाक दूनू पाँतिमे 2222 +12 + 122 छंद अछि आ एकर दोसर शेर देखू—

ऑफिस सबहक कथा कहू की
लूटल छी तँइ गजल कहै छी
भूख केर कथा सेहो व्याकरणयुक्त गजलमे। सरकारी आफिसक कथा सभ जनैत छी। अनिलजी एहू कथाकेँ व्याकरणक संग उपस्थित केने छथि। समकालीन स्वरे नै कालातीत स्वरक संग विजयनाथ झा जीक ऐ गजलक दूटा शेर देखू—

चिदाकाश मधुमास मधुमक्त मति मन
विभव अछि विविधता उदय ह्रास अपने                                           
मतलाक छंद अछि 122-122-122-122 आब दोसर शेरक दूनू पाँतिकेँ जाँच कऽ लिअ संगे संग भाव केर सेहो-

खसल नीर निर्माल्य निधि नोर जानल
सकल स्रोत श्रुति विन्दु विन्यास अपने
जँ आदि शंकराचर्य केर मातृभाषा मैथिली रहितनि तँ शायद विजयनाथेजी सन लिखने रहितथि ओ। राजीव रंजन मिश्रजीक ई गजल देखू—

जिनगी खेल तमाशा टा
आसक संग निराशा टा

के जानल गऽ कखन केहन
दैबक हाथ तऽ पासा टा

उपरक दूटा शेरक मात्राक्रम 2221 1222 अछि आ एहि गजल सभ शेरमे एकरे पालन कएल गेल अछि। जीवनक गूढ़ बातकेँ सरल शब्दमे कहल गेल अछि सेहो व्याकरणक संग। आस आ निराश दूनू जिवनक भाग छै। दोसर शेरमे भग्य केखन पलटत तकर वर्ण अछि। अहीं कहूँ विचार कतए बन्हा गेल छै व्याकरणसँ। ओमप्रकाशजीक ई दूटा शेर देखू—

कखनो सुखक भोर लिखै छी
कखनो खसल नोर लिखै छी


मिठगर रसक बात कहै छी
संगे करू झोर लिखै छी
2-2-1-2, 2-1, 1-2-2 मात्राक्रम प्रत्येक पाँतिमे अछि। शाइर अपन निजी जीवनक बातकेँ बहर-व्याकरणमे कहलथि आ नीक जकाँ कहलथि अछि। कोनो शाइरकेँ जीवनमे भऽ रहल सभ बातकेँ लिखबाक चाही मुदा अफसोच जे लोक किछु क्षणिक लाभ लेल ने सच बाजए वाहैए आ ने सूनए चाहैए। मुदा शाइर अपन मीठ-तीत सभ बात व्याकरणमे कहि रहल छथि। कहाँ कोनो दिक्कत छै। अमित मिश्रक दूटा शेर देखल जाए—

जाहि घरमे भूखल दीन अहाँ देखने होयब
हाड़ मांसक बनल मशीन अहाँ देखने होयब

एक पाइक लेल परान अपन बेच दै छै ओ
गाम घरमे एहन दीन अहाँ देखने होयब
एकर मात्राक्रम 2122-2112-1122-1222 अछि। एहि गजलमे प्रगतिशीलता सेहो अछि आ बहर-व्याकरण सेहो। एखनो कतहुँ-कतहुँसँ समाद आबि जाइए से फल्लाँ किछु पाइ लेल अपन बच्चा बेचि लेलक वा अपन बच्चा संग जान दऽ देलक। ई सभ बात गजलमे अमितजी व्याकरणक संग रखने छथि। प्रदीप पुष्प केर एकटा गजल देखल जाए आ समकालीनता, व्यंग्य आ व्याकरण तीनू एकै संग देखू---

गमकैत घाम बला लोक
चमकैत चाम बला लोक

भाषण आमो पर दै छै
थुर्री लताम बला लोक

बाँटै दरद सगरो खूब
ई झंडु बाम बला लोक

करतै उद्धार मिथिलाक
दिल्ली असाम बला लोक

मौंसो केर हाट लगबै
गाँधीक गाम बला लोक
222-222-2 सब पाँतिमे मात्राक्रम अछि। प्रदीपजीक ई गजल समग्र रूपें ओहन गजलकार सब लेल अछि जे कि अनेरे गजलक व्याकरणकेँ खराप मानै छथि। प्रदीपजी जखन दोसर शेरमे "थुर्री लताम बला लोक" कहै छथि तँ व्यंग्यक पराकाष्ठा भऽ जाइत अछि। अंतिम शेरमे प्रयोग भेल "गाँधीक गाम बला लोक" पाँति ओहन लोकक नकाब उतारैत अछि जिनकर जीवनमे भीतर किछु छनि आ बाहर किछु। राम कुमार मिश्रजीक टूटा शेर देखू—

जाति- धर्मक जुन्नामें अँटियाइते रहलहुँ       
छूत-अछुतक अदहनमें उधियाइते रहलहुँ

पेट कोना जड़लै पतियौलक कियो कहिया
झूठ-साँचक भाषण धरि पतियाइते रहलहुँ

सभ पाँतिमे मात्राक्रम 2122+222+2212+22 । जाति-धर्म एखनो अपना समाज लेल भयावह सपना अछि। आ शाइर रामकुमार मिश्रजी व्याकरणक संग एकर वर्णन केने छथि। दोसर शेरमे ओ झूठ भाषणसँ जनता कोना तृप्त होइ छै से कहने छथि। अहीं सभ कहू की व्याकरणसँ भाव बन्हा गेलै? दू टा शेर कुंदन कुमार कर्णजीक देखू जाहिमेसँ पहिल शेर निश्चिते रूपें उपनिषद् केर मोन पाड़ि दैए --
भाव शुद्ध हो त मोनमे भय कथीके
छोड़ि मृत्यु जीव लेल निश्चय कथीके

जाति धर्मके बढल अहंकार कुन्दन
रहि विभेद ई समाज सुखमय कथीके
एकर मात्राक्रम 212-1212-122-122 अछि। भय कि डर ओकर होइ छै जे गलत काज करै छै। कुंदनजीक पहिल शेर एकरे उद्घाटित करैए। दोसर शेरमे शाइरक विश्वास छनि जे जा धरि जाति भेद ने हटत ता धरि समाज सुखमय नै भऽ सकैए। प्रसंगवश कही जे कुंदन कुमार कर्ण नेपालमे मैथिली ओहन पहिल गजलकार छथि जे कि अरबी बहरमे गजल लिखै छथि। आगू बढ़बासँ पहिने सरल वार्णिक बहर बला गजलक किछु उदाहरण देखि ली। मुन्नाजीक दूटा शेर देखू-

केखन धोखा देत ई समान बजरुआ गारंटी नै
ई केखनो हँसाएत केखनो देत कना गारंटी नै

सरकार बनाबै एहन योजना गरीबक लेल
केखन जेतैक गरीबक अस्तित्व मेटा गारंटी नै
(19 वर्ण हरेक पाँतिमे।) मुन्नाजी आजुक बजारवादसँ उपजल कमगुणवत्ता बला समानक हाल अपन पहिल शेरमे कहलथि। दोसर शेरमे ओ सरकारी योजनका मूल उद्येश्यपर व्यंग्य कऽ रहल छथि। आब देखू सुमित मिश्र गुंजनजीक दूटा शेर—

नै कहू कखनो पहाड़ छै जिनगी
दैबक देलहा उधार छै जिनगी

भारी छै लोकक मनोरथक भार
कनहा लगौने कहार छै जिनगी
(वर्ण-13) गुंजनजीक पहिल सेर आसासँ भरल अछि। ओ जीवनकेँ भारत मानबाक ओकालति नै करै छथि। दोसर शेरमे ओ लोकक अनेरेक सेहंताक संकेत देने छथि।
सरल वार्णिक बहरक उपरका उदाहरणक अतिरिक्त विजय कुमार ठाकुर, नारायण मधुशाला, रामसोगारथ यादव , विद्यानंद बेदर्दी आदि सभ सेहो सरल वार्णिक बहरमे गजल लिखबाक प्रयास कऽ रहल छथि। एही क्रममे मैथिल प्रशांतजीक नाम सेहो जोड़ जा सकैए। मुदा चिंता ई जे ई सभ विभिन्न विधामे सेहो लिखैत छथि तँइ हिनकर सभहँक गजलक प्रभाव केर आकलन एखन तात्काल नै भऽ सकैए। दोसर चिंता ईहो जे व्याकरणक मूल भाव रचना सुंदर करब छै केकरो आलोचनामे स्थान भेटबाक कि पुरस्कार प्राप्ति कि आन कोनो प्रयोजन नै। तँइ बहुत रास गजलकार एहनो भऽ सकै छथि जे कोनो अभीष्ट पूरा नै भेलापर व्याकरणक पालन छोड़ि सकै छथि। मुदा फेर दोहरा दी जे "व्याकरणक मूल भाव रचना सुंदर करब छै आन कोनो प्रयोजन सिद्ध करब नै"।


मैथिली बाल गजल
मैथिली बाल गजल शब्दक निरूपण हमरा द्वारा भेल छल मुदा एहि विषय-वस्तुक गजल कविवर सीताराम झा पहिने लीखि गेल छथि। तँइ ई मानब उचित जे बाल गजलक अस्तित्व मैथिलीमे पहिनेसँ छल मुदा ओकर नामाकरण अनचिन्हार आखर कालखंडमे भेलै। उपर जतेक गजलकार सभहँक उदाहरण देने छी वएह सभ बाल गजल सेहो लिखने छथि तँइ बेसी नै तँ दू-चारि टा बाल गजलक शेर राखि रहल छी। पहिने कविवर सीताराम झाजीक ई बाल गजल देखू—

बाउजी जागू ठारर भरै छी कियै
व्यर्थ सूतल कि बैसल सड़ै छी कियै
2122+ 122+ 122+ 12 मात्राक्रम अछि। आब कुंदन कुमार कर्णजीक बाल गजल देखू—

गामक बूढ हमर नानी
छै ममतासँ भरल खानी
2221-1222 मात्राक्रम अछि। आब अमित मिश्रजीक देखू—

हाट चल हाथकेँ पकड़ि भैया हमर
भीड़मे जाउँ नै बिछड़ि भैया हमर
212-212-212-212 मात्राक्रम अछि। आब पंकज चौधरी नवलश्रीजीक देखू—

देख भेलै भोर भैया
आब आलस छोड़ भैया

दाय-बाबा माय-बाबू
लाग सभके गोर भैया
2122+2122 मात्राक्रम अछि।
मैथिली भक्ति गजल
मैथिली भक्ति गजल शब्दक निरूपण अमित मिश्र द्वारा भेल छल मुदा एहि विषय-वस्तुक गजल कविवर सीताराम झा पहिने लीखि गेल छथि। तँइ ई मानब उचित जे बाल गजलक अस्तित्व मैथिलीमे पहिनेसँ छल मुदा ओकर नामाकरण अनचिन्हार आखरक बाद भेलै। उपर जतेक गजलकार सभहँक उदाहरण देने छी वएह सभ बाल गजल सेहो लिखने छथि तँइ बेसी नै तँ दू-चारि टा भक्ति गजल क शेर राखि रहल छी, पहिने कविवर सीताराम झाजीक—

जगत मे थाकि जगदम्बे अहिंक पथ आबि बैसल छी
हमर क्यौ ने सुनैये हम सभक गुन गाबि बैसल छी
1222+1222+1222+1222 मात्राक्रम मने बहरे हजज। आब जगदानंद झा मनुजीक भक्ति गजल देखू—

हम्मर अँगना मैया एली
गमकै चहुँदिस अड़हुल बेली

धन हम छी धन हम्मर अँगना
मैया जतए दर्शन देली
22-22-22-22 मात्राक्रम अछि। आब कुंदन कुमार कर्णजीक भक्ति गजल देखू—

हे शारदे दिअ एहन वरदान
हो जैसँ जिनगी हमरो कल्याण
2212-222-221 मात्राक्रम अछि। आब अमित मिश्रजीक देखू—

सजल दरबार छै जननी
भगत भरमार छै जननी

किओ नै हमर छै संगी
खसल आधार छै जननी
1222-1222 मात्राक्रम अछि।
उपरक एहि उदाहरण सभसँ ई स्पष्ट भऽ गेल हएत जे व्याकरण केखनो भाव वा विचार लेल बाधक नै होइ छै। हँ, हजारक हजार रचनामे किछु एहन रचना बुझाइ छै जाहिमे व्याकरणक कारण भाव बाधित भेलैए मुदा ई तँ रचनाकारक सीमा सेहो भऽ सकै छै। गजल, भक्ति गजल ओ बाल गजलक अतिरिक्ति मैथिलीमे व्याकरणयुक्त रुबाइ, बाल रुबाइ, भक्ति रुबाइ, कता, हजल, नात आदि विधा सेहो लिखल गेल अछि आ ओकर उदाहरण प्रचुर मात्रामे अछि आ अहाँ सभ एकरा अनचिन्हार आखरपर नीक जकाँ देखि सकै छी।
बिना व्याकरण बला मैथिली गजलक इतिहास
लगभग 1970-75सँ एखन धरि बहुतो गजलकार ओहन गजल लिखलथि जाहिमे गजलक नियमक पालन नै भेल अछि। ई कहब बेसी उचित जे ओहि धाराक गजलकार सभ नियम पालन करहे नै चाहैत छथि। ओ हुनकर अवधारणा हेतनि। एहिठाम ओहि धाराक किछु प्रतिनिधि गजलकार सभहँक नाम देल जा रहल अछि --      
1) रवीन्द्र नाथ ठाकुर, 2) मायानंद मिश्र, 3) कलानंद भट्ट, 4) सियाराम झा "सरस", 5) अरविन्द ठाकुर, 6) सुधांशु शेखर चौधरी, 7) धीरेन्द्र प्रेमर्षि, 8) बाबा बैद्यनाथ, 9) विभूति आनन्द, 10) तारानन्द वियोगी, 11) रमेश, 12) राजेन्द्र विमल…आदि।
उपरमे देल प्रतिनिधि गजलकारक अतिरिक्त बहुतों एहन शाइर सभ छथि जे की छिटपुट आजाद गजल लिखला आ अन्य विधामे महारत हासिल केलाह। एहि सूचीमे बाबू भुवनेश्वर सिंह भुवन, रमानंद रेणु, फूल चंद्र झा प्रवीण, वैकुण्ठ विदेह, शीतल झा, प्रेमचंद्र पंकज, प.नित्यानंद मिश्र, शारदानंद दास परिमल, केदारनाथ लाभ, तारानंद झा तरुण, रमाकांत राय रमा, महेन्द्र कुमार मिश्र, विनोदानंद, दिलीप कुमार झा दिवाना, वैद्यनाथ मिश्र बैजू, विलट पासवान विहंगम, सारस्वत, कर्ण संजय, अनिल चंद्र ठाकुर, श्याम सुन्दर शशि, अशोक दत्त, कमल मोहन चुन्नू, रोशन जनकपुरी, जियाउर रहमान जाफरी, धर्मेन्द्र विहवल्, सुरेन्द्र प्रभात, अतुल कुमार मिश्र, रमेश रंजन, कन्हैया लाल मिश्र, गोविन्द दहाल, चंद्रेश, चंद्रमणि झा, फजलुर रहमान हाशमी, रामलोचन ठाकुर, विनयविश्व बंधु, रामदेव भावुक, सोमदेव, रामचैतन्य धीरज, महेन्द्र, केदारनाथ लाभ, गोपाल जी झा गोपेश, नंद कुमार मिश्र, देवशंकर नवीन,मार्कण्डेय प्रवासी,अमरेन्द्र यादव, नरेन्द्र आदि। बहुत रास नाम धीरेन्द्र प्रेमर्षि जी द्वारा संपादित गजल विशेषांक पर आधारित अछि। किछु दिन धरि गीतल नामसँ सेहो प्रयोग भेल मुदा हम एकरा अजादे गजल मानै छी आ वस्तुतः ओ अजादे गजल छै। आ तँइ निच्चा हम ओकरो समेटने छी एहिठाम।
बिना व्याकरण बला मैथिली गजलमे भेल काज
बिना व्याकरण बला मैथिली गजलमे एखन धरि कोनो एहन काज नै भेल अछि तँइ एहि आधारपर एकर मूल्याकंन करब असंभव तँ नै मुदा बहुत कठिन अछि। एहि धाराक शाइर सभ बस अपन-अपन गजलक पोथीकेँ प्रकाशित करबा लेबाकेँ काज मानि लेने छथि। आगूसँ हम "बिना व्याकरण बला मैथिली गजल" लेल “अजाद गजल” शब्दक प्रयोग करब। अजाद गजलक इतिहासमे जे पहिल जगजियार काज देखाइए ओ अछि एहि1990मे सियाराम झा सरस, तारानंद वियोगी, रमेश आ देवशंकर नवीनजी द्वारा संकलित ओ संपादित साझी गजल संग्रह "लोकवेद आ लालकिला" केर प्रकाशन। एहि संकलनमे कुल 12 टा गजलकारक 84 टा गजल अछि। भूमिका सभहँक अनुसारे ई संकलन प्रगतिशील गजलक संकलन अछि आ जाहिर अछि जे एहिमे सहभागी गजलकार सभ सेहो प्रगतिशील हेबे करता। बारहो गजलकारक नाम एना अछि कलानंद भट्ट, तारानंद वियोगी, डा.देवशंकर नवीन, नरेनद्र, डा. महेन्द्र, रमेश, रामचैतन्य धीरज, रामभरोस कापड़ि भ्रमर, रवीन्द्र नाथ ठाकुर, विभूति आनंद, सियाराम झा सरस, प्रो. सोमदेव। एहि संकलनक अलावे धीरेन्द्र प्रेमर्षिजी द्वारा संपादित पल्लव केर "गजल अंक" जे कि 2051 चैतमे मैथिली विकास मंच, माठमांडूक मासिक साहित्यिक प्रकाशन अंतर्गत प्रकाशित भेल (वर्ष-2, अंक-6, पूर्णांक-15) सेहो अजाद गजलक धारामे नीक काज अछि। जँ अंग्रेजी तारीखसँ बूझी तँ मार्च,1995 केर लगभगमे पल्लवक "गजल अंक" प्रकाशित भेल अछि ( नेपालक तारीख बदलबामे जँ हमरासँ गलती भेल हो तँ ओकरा सुधारल जाए)। आगू बढ़बासँ पहिने पल्लवक गजलक अंकक किछु बानगी देखि लिअ--एहि गजल विशेषांकमे कलानंद भट्ट, फूलचंद्र झा प्रवीण, रमानंद रेणु, सियाराम झा सरस, राजेन्द्र विमल, रामदेव झा, बैकुंठ विदेह, रामभरोस कापड़ि भ्रमर, रमेश, शेफालिका वर्मा, शीतल झा, गोपाल झाजी गोपेश, प्रेमचंद्र पंकज, पं.नित्यानंद मिश्र, शारदानंद परिमल, रमाकांत राय रमा, महेन्द्रकुमार मिश्र, धीरेन्द्र प्रेमर्षि, चंद्रेश, विनोदानंद, दिलिप कुमार झा दीवाना, वैद्यनाथ मिश्र बैजू, रोशन जनकपुरी, सारस्वत, कर्ण संजय, श्यामसुंदर शशि, अजित कुमार आजाद, ललन दास, धर्मेन्द्र विह्वल, सुरेन्द्र प्रभात, अतुल कुमार मिश्र, रमेश रंजन, कन्हैयालाल मिश्र, गोविन्द दहाल आदि 34 टा गजलकारक एक एकटा गजल अछि मने 34 टा गजलकारक 34 टा गजल अछि। एहि विशेषांकक संपादकीय अजादक गजलक हिसाबे अछि। ई पत्रिका कुल चारि पन्नाक छपैत छल आ ओहि हिसाबें चौंतीस टा गजल कोनो खराप संख्या नै छै।
नेपालसँ प्रकाशित पल्लवक "गजल अंक" आ भारतसँ प्रकाशित "लोकवेद आ लालकिला" दूनूक समयमे करीब 6-7 बर्खक अंतराल अछि (प्रकाशनसँ पहिनेक तैयारीकेँ सेहो देखैत)। दूनूक संपादको अलग छथि। दूनू काजक स्थान ओ परिस्थितियो अलग अछि मुदा ओहि के अछैत एकटा दुर्योग दूनूमे एक समान रूपसँ विद्यमान अछि। ई दुर्योग अछि ओहि अंक कि संकलनमे पुरान गजलकारकेँ स्थान नै देब। जँ दूनू संपादक चाहतथि तँ ओहि अंक कि संकलनमे पुरान गजलकारकेँ समेटि कऽ एकटा संपूर्ण चित्र आनि सकै छलाह मुदा पता नै कोन परिस्थिति कि तत्व छलै जे दूनू ठाम एहि काजमे बाधक बनल रहल। प्राचीन गजल बेसी अछिए नै तँइ ने बेसी पाइ लगबाक संभवाना छलै आ ने बेसी मेहनतिक जरूरति छलै। भऽ सकैए जे हिनका सभ लेल ई प्रश्न महत्वपूर्ण नै हो मुदा एकटा गजल अध्येताक रूपमे हमरा सभसँ बेसी इएह बात खटकल अछि। किछु एहन तत्व तँ जरूर रहल हेतै जाहिसँ प्रभावित भऽ कऽ दूनू संपादकक एकै रंगक सोच रखने छलाह। खएर सूचना दी जे वर्तमान समयमे हमरा ओ गजेन्द्र ठाकुरजी द्वारा संपादित पोथी "मैथिलीक प्रतिनिधि गजलः1905सँ 2016 धरि" जे कि ई-भर्सन रूपमे प्रकाशित अछि ताहिमे उपरक दुर्योगकेँ दूर कऽ देल गेल अछि। एहि संकलनमे सभ प्राचीन गजलकारकेँ स्थान देल गेल अछि जाहिसँ मैथिली गजलक संपूर्ण छवि पाठक लग आबि जाइत छनि।
उपरक काजक अलावे एक-दू बर्ख पहिने मधुबनीमे सेहो अजाद गजलकार सभ द्वारा गजल कार्यशाला आयोजित भेल रहए मुदा ओकर समुचित तथ्य हमरा लग नै अछि तँइ ओहिपर हम किछु बजबासँ बाँचि रहल छी।
अजाद गजलक शाइर सभ काजमे नै “प्रयोग”मे बेसी विश्वास राखै छथि आ तकर बानगी थिक "गीतल"। गीतल (जे कि वस्तुतः अजादे गजल अछि) केर जन्मदाता छथि मायानंद मिश्र। ओ अपन गीतल विधा केर पोथी "अवातंतर" केर भूमिकामे(पृष्ठ 6 पर) लिखै छथि-- "अवान्तरक आरम्भ अछि गीतलसँ। गीतं लातीति गीतलम्ऽ अर्थात गीत केँ आनऽ बला भेल गीतल। किन्तु गीतल परम्परागत गीत नहि थिक, एहिमे एकटा सुर गजल केर सेहो लगैत अछि। गीतल गजल केर सब बंधन ( सर्त ) केँ स्वीकार नहि करैत अछि। कइयो नहि सकैत अछि। भाषाक अपन-अपन विशेषता होइत अछि जे ओकर संस्कृतिक अनुरूपें निर्मित होइत अछि। हमर उद्येश्य अछि मिश्रणसँ एकटा नवीन प्रयोग। तैं गीतल ने गीते थिक, ने गजले थिक, गीतो थिक आ गजलो थिक। किन्तु गीति तत्वक प्रधानता अभीष्ट, तैं गीतल।" ई पोथी 1988मे मैथिली चेतना परिषद्, सहरसा द्वारा प्रकाशित भेल। उपरका उद्घोषणामे अहाँ सभ देखि सकै छिऐ जे कतेक दोखाह स्थापना अछि। प्रयोग हएब नीक गप्प मुदा अपन कमजोरीकेँ भाषाक कमजोरी बना देब कतहुँसँ उचित नै आ हमरा जनैत मायानंद जीक ई बड़का अपराध छनि। जँ ओ अपन कमजोरीकेँ आँकैत गीतल केर आरम्भ करतथि तँ कोनो बेजाए गप्प नै मुदा मायाजी पाठककेँ भ्रमित करबाक प्रयास केलाह जे कि तात्काल सफल सेहो भेल। ई मोन राखब बेसी जरूरी जे 2011मे प्रकाशित कथित गजल संग्रह " बहुरुपिया प्रदेश मे " जे की अरविन्द ठाकुर द्वारा लिखित अछि ताहूमे ठीक इएह गप्पकेँ दोहराओल गेलैए। गीतल विधाक उद्घोषणापर सभसँ बेसी आपत्ति सियाराम झा सरसजीकेँ छनि जकरा ओ अपन पोथी "शोणिताएल पएरक निशान" केर भूमिकामे लिखलनि अछि आ एहीठाम अजाद गजल दू ठाम बँटि गेल। पहिल सियाराम झा सरस एवं अन्य जे कि गजलकेँ गजल मानै छलाह जाहिमे तारानंद वियोगी, रमेश, देवशंकर नवीन आदि छथि। दोसर गीतल जाहिमे मायानन्द, तारानन्द झा तरुण, विलट पासवान विहंगम, आदि एला वा छथि। ऐठाँ हम ई स्पष्ट करऽ चाहब जे नाम भने जे होइ मायानन्द जी बला गुट वा सरसजी बला गुट दूनू गुटमेसँ कोनो गोटा गजल नै लिखै छलाह कारण ओ व्याकरणहीन छल। आ व्याकरणहीन कथित गजलकेँ गजल नै गीतले टा कहल जा सकैए।
मैथिलीक अजाद गजलमे नै भेल काज
1) गजलक संख्या वृद्धि दिस धेआन नै देब-- गजलक संख्या वृद्धिसँ हमर मतलब अपनो लिखल गजल आ अनको लिखल गजल अछि। कथित क्रांतिकारी सभहँक विचार अछि जे कम्मे लिखू मुदा नीक लिखू। मुदा सवाल ओतत्हि रहि जाइ छै जे नीक रचना निर्धारण केना हो जखन कि लोक लग सीमित संख्यामे रचना रहै। हमरा हिसाबें ई भ्रांति अछि जे कम रचलासँ नीके होइत छै। हमर स्पष्ट विचार अछि जे रचना संख्या बढ़लासँ अपना भीतर प्रतियोगिता बढ़ै छै आ भविष्यमे नीक रचना लिखबाक संभावना बढ़ि जाइत छै। जाहि विधामे बेसी लिखाइत छै ओकर प्रचार-प्रसार ओ लोकप्रियता बेसी जल्दी होइत छै। मुदा अजाद गजलकार सभ एहि मर्मकेँ नै बुझि सकलाह। हमरा बुझाइए जे मैथिलीक अजाद गजलकार सभ प्रतियोगितासँ डेराइत छथि। हुनका बुझाइ छनि जे जँ कादचित् प्रतियोगितामे हारि गेलहुँ तँ हमर की हएत। मुदा हुनका सभकेँ बुझबाक चाही जे साहित्यमे जीत-हारि सन कोनो बात नै होइ छै।
2) गजलकारक संख्या वृद्धि दिस धेआन नै देब--- कोनो विधाक नियम टुटलासँ ओ विधा सरल बनि जाइत छै आ ओहि विधामे बहुत रास रचनाकार आबै छथि जेना कि कविता विधामे भेलै। तखन मैथिलीमे बिना नियम केर गजल रहितों ऐमे शाइरक कमी किएक रहल? मैथिलीक अजाद गजलकार सभ कते नव शाइरकेँ प्रोत्साहित केलथि। जबाब सुन्ना भेटत। मैथिलीक अजाद गजलकार सभ अपने लीखै छथि आ अपनेसँ शुरू आ अपनेपर खत्म। आखिर गजल विधामे नव शाइर अनबाक जिम्मा केकर छलै? ईहो कहल जा सकैए जे मैथिलीक अजाद गजलकार सभ जानि बूझि कऽ अपन वर्चस्व सुरक्षित रखबाक लेल नव शाइरकेँ प्रोत्साहित नै केलथि। हुनका सभ डर छनि जे कहीं हमरासँ बेसी ओकरे सभहँक नाम नै भऽ जाइ।
3) मैथिली गजलक आलोचना दिस धेआन नै देब-- जेना कि सभ जानै छी जे आलोचना कोनो विधा लेल प्राण होइत छै मुदा आश्चर्य जे मैथिलीक अजाद गजलकार सभ गजल-आलोचनाकेँ हेय दृष्टिसँ देखला। मैथिलीमे अजाद गजलक प्रतिनिधि गजलकार सियाराम झा सरस, तारानंद वियोगी, रमेश, देवशंकर नवीनजीक संपादनमे बर्ख 1990मे " लालकिfला आ लोकवेद " नामक एकटा साझी गजल संग्रह आएल। एहि संग्रहमे गजलसँ पहिने तीनटा भाष्यकारक आमुख अछि। पहिल आमुख सरसजीक छन्हि आ ओ तकर शुरुआत एना करै छथि -- " समालोचना आ साहित्यिक इतिहास लेखनक क्षेत्रमे तकरे कलम भँजबाक चाही जकरा ओहि साहित्यिक प्रत्येक सूक्ष्तम स्पंदनक अनुभूति होइ......."। अर्थात सरसजीकेँ हिसाबें कोनो साहित्यिक विधाक आलोचना, समीक्षा, वा ओकर इतिहास लेखन वएह कए सकैए जे की ओहि विधामे रचनारत छथि। जँ हम एकर व्याख्या करी तँ ई नतीजा निकलैए जे गजल विधाक आलोचना वा समीक्षा वा ओकर इतिहास वएह लीखि सकै छथि जे की गजलकार होथि। मुदा हमरा आश्चर्य लगैए जे ने 1990सँ पहिले सरसजी ई काज केलाह आ ने 1990सँ 2008 धरि ई काज कऽ सकलाह (सरसेजी किए आनो सभ एहन काज नै कऽ सकलाह)। 2008केँ एहि दुआरे हम मानक बर्ख लेलहुँ जे कारण 2008मे हिनकर मने सरसजीक एखन धरिक अंतिम कथित गजल संग्रह "थोड़े आगि थोड़े पानि" एलन्हि मुदा ओहूमे ओ एहन काज नै कऽ सकलाह। ई हमरा हिसाबें कोनो गजलकारक सीमा भए सकैत छलै मुदा सरसजी फेर ओही आमुख के तेसर आ चारिम पृष्ठपर लिखै छथि" मैथिली साहित्यमे तँ बंगला जकाँ गीति-साहित्यिक एकटा सुदीर्घ परंपरा रहलैक अछि। गजल अही परंपराक नव्यतम विकास थिक, कोनो प्रतिबद्ध आलोचककेँ से बुझऽ पड़तैक। हँ ई एकटा दीगर आ महत्वपूर्ण बात भए सकैछ जे मैथिलीक समकालीन आलोचकक पास एहि नव्यतम विधाक आलोचना हेतु कोनो मापदंडिके नहि छन्हि। नहि छन्हि तँ तकर जोगार करथु........" आब ई देखल जाए जे एकै आलेखमे कोना दू अलग अलग बात कहि रहल छथि सरसजी । आलेखक शुरुआतमे हुनक भावना छन्हि जे " जे आदमी गजल नै लीखै छथि से एकर समीक्षा वा इतिहास लेखन लेल अयोग्य छथि मुदा फेर ओही आलेखमे ओहन आलोचकसँ गजल लेल मापदंड चाहै छथि जे कहियो गजल नहि लिखला। भए सकैए जे सरसजी ई आरोप सरसजी अपन पूर्ववर्ती विवादास्पद गजलकार मायानंद मिश्र पर लगबथि होथि। जे की सरसजीक हरेक आलेखसँ स्पष्ट होइत अछि। मुदा ऐठाम हमरा सरसजीसँ एकटा प्रश्न जे जँ कोनो कारणवश माया जी ओ काज नै कए सकलाह वा जँ मायानंद जी ई कहिए देलखिन्ह मैथिलीमे गजल नै लिखल जा सकैए तँ ओकरा गलत करबा लेल ओ अपने (सरसजी) की केलखिन्ह। 2008 धरि मैथिलीमे 10-12 टा कथित गजल संग्रह आबि चुकल छल। मुदा अपने सरसजी कहाँ एकौटा कथित गजल संग्रह समीक्षा वा आलोचना केलखिन्ह। गजलक व्याकरण वा इतिहास लेखन तँ बहुत दूरक बात भए गेल। ऐ आलेखसँ दोसर बात इहो स्पष्ट अछि जे सरसजी कोनो समकालीन आलोचककेँ गजलक समीक्षा लेल मापदंड देबा लेल तैयार नै छथि। जँ कदाचित् कनेकबो सरसजी आलोचक सभकेँ मापदंड दितथिन तँ संभवतः 2008 धरि गजल क्षेत्रमे एहन अकाल नै रहितै।
आब हम आबी विदेहक अंक 96 पर जाहिमे श्री मुन्ना जी द्वारा गजल पर परिचर्चा करबाओल गेल छल। आन-आन प्रतिभागीक संग-संग प्रेमचंद पंकज नामक एकटा प्रतिभागी सेहो छथि। पंकजजी अपन आलेखमे आन बातक संग इहो लिखैत छथि -“ कतिपय व्यक्ति एकटा राग अलापि रहल छथि जे मैथिलीमे गजलक सुदीर्घ परम्परा रहितहु एकरा मान्यता नै भेटि रहल छैक। एहन बात प्रायः एहि कारणे उठैत अछि जे मैथिली गजलकेँ कोनो मान्य समीक्षक-समालोचक एखन धरि अछूत मानिकऽ एम्हर ताकब सेहो अपन मर्यादाक प्रतिकूल बूझैत छथि। एहि सम्बन्धमे हमर व्यक्तिगत विचार ई अछि, जे एकरा ओहने समालोचक-समीक्षक अछूत बुझैत छथि जिनकामे गजलक सूक्ष्मताकेँ बुझबाक अवगतिक सर्वथा अभाव छनि। गजलक संरचना, मिजाज आदिकेँ बुझबाक लेल हुनका लोकनिकेँ स्वयं प्रयास करऽ पड़तनि, कोनो गजलकार बैसि कऽ भट्ठा नहि धरओतनि। हँ, एतबा निश्चय जे गजल धुड़झाड़ लिखल जा रहल अछि आ पसरि रहल अछि आ अपन सामर्थयक बल पर समीक्षक-समालोचक लोकनिकेँ अपना दिस आकर्षित कइए कऽ छोड़त “ अर्थात प्रेमचंद जी सरसे जी जकाँ भट्ठा नै धरेबाक पक्षमे छथि। सरसजी 1990मे कहै छथि मुदा पंकजजी 2011केर अंतमे मतलब 22साल बाद। मतलब बर्ख बदलैत गेलै मुदा मानसिकता नै बदललै।  ऐठाम हम ई जरुर कहए चाहब जे भट्ठा धराबए लेल जे ज्ञान आ इच्छा शक्ति होइ छै से बजारमे नै बिकाइत छै। संगे-संग ईहो कहए चाहब जे मायानंद मिश्रजीक बयान आ अज्ञानतासँ मैथिली गजलकेँ जतेक अहित भेलै ताहिसँ बेसी अहित सरसजी वा पंकजजीक सन गजलकारसँ भेलै। ऐठाम ई स्पष्ट करब बेसी जरूरी जे हम ऐ बातसँ बेसी दुखी नै छी जे ई सभ बिना व्याकरणक गजल किए लिखला मुदा ऐ बातसँ बेसी दुखी छी जे ई गजलकार सभ पाठकक संग विश्वासघात केला। जँ ई सभ सोंझ रूपें कहि देने रहितथिन जे गजलक व्याकरण होइ छै आ हम सभ ओकर पालन नै कऽ सकै छी तखन बाते खत्म छलै मुदा अपन कमजोरीकेँ नुकेबाक लेल ई सभ नाना प्रकारक प्रपंच रचला जकर दुष्परिणाम गजल भोगलक। हमरा जहाँ धरि अध्य्यन अछि तहाँ धरि लगभग मात्र 4-5 टा गजल आलोचना स्वतंत्र लेखक रूपमे अजाद गजलकार सभ द्वारा लिखल गेल अछि (जँ पोथीक भूमिका सभकेँ सेहो जोड़ी तँ एकर संख्या 8-9 टा भऽ सकैए)। एहि कड़ीमे तारानंद वियोगीजीक "मैथिली गजलः मूल्याकंनक दिशा", देवशंकर नवीनजीक "मैथिली गजलःस्वरूप आ संभावना", धीरेन्द्र प्रेमर्षिजीक "मैथिलीमे गजल आ एकर संरचना" आदि प्रमुख अछि।
मैथिलीक अजाद गजलक किछु उदाहरण
जेना कि पहिने कहने छी अजाद गजलमे व्याकरण नै अछि तँइ हम एकर उदाहरणमे शेर सभहँक खाली भाव संबंधी विवेचना करब (उदाहरणमे आएल शेर सभ एकौ गजलक भऽ सकैए आ अलग अलग गजलक सेहो। संपादक महोदयसँ आग्रह जे उदाहरणमे देलग गेल शेर सभहँक वर्तनीकेँ यथावत् राखथि)--
सुधांशु शेखर चौधरी जीक दू टा शेर--

अपने बेसाहल बाटसँ पेरा रहल छी हम
अपने लगाओल काँटसँ घेरा रहल छी हम
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हम पल ओछौने बाट छी निराश नै करबै
नितुआन सन अधार छी हताश नै करबै
पहिल शेरमे शाइर सुधांशुजी अपनेसँ जन्मल समस्या कोना परैशान करै छै तकर नीक संकेत देलाह अछि। दोसर शेर हिनक गजलक मूल भाव (खुदा-बंदा बला, एकरा संसारिक रूपमे सेहो लऽ सकै छियै) समेटने अछि।

अरविन्द ठाकुर जीक दू टा शेर—

संसद केर फोटो मे किछुओ नहि हेर फेर
सांपनाथ नागनाथ इएह दुनू बेर बेर
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लीक छोड़ि जे चलल सियार
बनि गेल एक दिन चौकीदार
पहिल शेरमे शाइर अरविन्द ठाकुरजी देशक जनताक विडंवनाक चित्रण केने छथि। जनता बरू कोनो पार्टीकेँ भोट किए ने दै सभ पार्टीक चरित्र एकै रंगक भऽ जाइ छै। दोसर शेरक हिनक व्यंग्य अछि जाहिमे नकली क्रांतिकारिताकेँ उजागर कएल गेल अछि।

विभूति आनंद जीक दू टा शेर—

एकेटा धारणा अछि एकेटा उदेस
क्यो ने होए रंक आ ने क्यो नरेश
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फूलो मे फूल, अड़हूल केर रंग जकाँ
चारूभर तेजी सँ पसरि रहल जनता
पहिल शेरमे शाइर विभूति आनंदजी सभहँक मोनक बात रखने छथि। आ दोसर शेरमे ओ कम्यूनिष्ट पार्टीक प्रतीक लाल रंगक तुलना हड़हूल फूलसँ केने छथि।

कलानंद भट्ट जीक दू टा शेर—

शंकामे विध्वंसक आइ जीबि रहल लोक
अविवेकी अधिकारमे अणुबम भेल छै
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अछि बटोही सशंकित बनल बाट पर
दिन मे आभास रातुक अभरि गेल अछि
पहिल शेरमे शाइर कलानंद भट्टजी वर्तमान समस्याक वर्णन केने छथि। कोन देश कोन बहन्नासँ कतए कहिया आक्रमण कऽ देत तकर कोनो ठिकान नै। दोसर शेरमे सेहो एहने सन भाव अछि।

बाबा बैद्यनाथ जीक दू टा शेर—

कोन एहन हम काज करू जे लागय कोनो पाप नहि
भूखक आगिसँ बेसी भैया अछि कोनो संताप नहि
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कहियो जँ मोन पड़ए अपन अतीतक जीवन
बस आँखि मूनि दूनू कनियें लजा लिअ
अरब देशक एकटा कहबी छै जे पाथर वएह मारए जे कोनो पाप नै केने हो। एही भावकेँ शाइर वैद्यनाथजी अंकित केने छथि पहिल शेरमे। दोसर शेर हिनक कमालोसँ कमाल अछि। कोनो कुकर्मीकेँ एहिसँ बेसी धुतकारल नै जा सकैए।

रवीन्द्र नाथ ठाकुर जीक दू टा शेर—

हँसैत भोर सजल साँझ लोक सदा चाहैए
उदास भोर मरल साँझ तकर की होयत
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जे पानि पीबि बैसल हो घाट घटा केर
पता तकरहिंसँ जाय पूछी बजार हाट केर
शाइर रवीन्द्रजी पहिल शेरमे घटल लोकक संकेत देने छथि प्रतीकक रूपमे। पाइ घटिते समांग सेहो घटि जाइ छै अइ दुनियाँमे। दोसर शेरमे कमालक प्रतीकक प्रयोग भेल अछि। हाट-बजारमे वएह ठठि सकैए जे कि घाट-घाट केर पानि पीने हो। ई बात प्राचीन हाटसँ लऽ कऽ एखनुक आधुनिक स्टोरपर सेहो लागू अछि।

मायानंद मिश्र जीक दू टा शेर—

एखन तँ राति अछि आ राति केर बातो अछि
कतेक राति धरि कतेक राति केर चलतै
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देखक बाद नहि देखैक बड़ बहाना अछि
चलैत भीड़ मे एकसगर जेना हेरायल छी
शाइर मायानंदजी पहिल शेरमे समयचक्रसँ संदर्भित बात कहने छथि। दोसर शेरमे हुनकर ओहन दुख सामने आएल अछि जाहिमे पहिचानल लोक सेहो अनचिन्हार बनि जाइ छै।

सियाराम झा सरस जीक दू टा शेर—

पूर्णिमा केर दूध बोड़ल ओलड़ि गेल इजोर हो
श्वेत वसनक घोघ तर धरतीक पोरे पोर हो
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माथ उठबए सवाल सोनित के
काल लीखैछ हाल सोनित के
सियारामजीक पहिल शेर शाश्वत सौंदर्यक वर्णनमे अछि तँ दोसर शेर प्रगतिशील।

रमेश जीक दू टा शेर—

सींथ जए टा चाही तए टा छूबि लिय
टीस मुदा ताजिन्दगी रहैत छै
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जामु आ गम्हारि केर छाह तर मे
बाँस केर कोपर सुखैल जा रहल
शाइर रमेश जीक पहिल शेर असफल प्रेम आ ओकर टीसक नीक वर्णन अछि। दोसर शेर उन्टा अछि। व्यावहारिक रूपसँ बाँसक छाहमे कोनो आर गाछ नै नमहर होइत छै मुदा शाइर अपन शेरमे जामु आ गम्हारि केर छाहसँ बाँसक भयक वर्णन केने छथि। दोसर शेरक विविध व्याख्या भऽ सकैए।

राजेन्द्र विमल जीक दू टा शेर—

डारिसँ जे चूकत तँ बानर बङौर लेत
बेरपर हूसत से केराके घौर लेत
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चानीक बट्टा सन नभमे संचित नक्षत्रक मोती
अहीं लेल बस अहीं लेल सृष्टिक सतरंगी जोती
शाइर राजेन्द्रजीक पहिल शेर हमरा जनैत जनतापर व्यंग्य अछि। जनते एहन अछि जे सभ समय हो-हो करैए मुदा बेरपर हुसि जाइए। हिनक दोसर शर प्रेमक सौंदर्य वर्णन अछि।

धीरेन्द्र प्रेमर्षि जीक दू टा शेर—

जिनगी अछि बड़ घिनाह नाक चुबैत पोटासन
सुड़कि–सुड़कि तैयो छी ढोबि रहल मोटासन!
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कोन विजय लए खेल ई खुनियाँ
जइमे सभक सिकस्त भेल छै
जीवनकेँ निमाहिए कऽ कियो महान बनै छै। आ जीवन निमाहए लेल नीक-बेजाए सभ करए पड़ैत छै धीरेन्द्रजीक पहिल शेरक मूल भाव इएह अछि। दोसर शेरमे धीरेन्द्रजी ओहि अज्ञात मजबूरी दिस संकेत केने छथि जाहि कारणसँ लोक एक दोसरक दुश्मन बनि गेल अछि। आ मात्र अपन जय लेल सभहँक पराजय केर जोगाड़ करैए मुदा अंतमे सभहँक संग ओहो हारि जाइए अनेक कारणसँ।

तारानंद वियोगी जीक दू टा शेर—

घिचने घिचाइछ नहि जिनगी के गाड़ी
एक खंड मुस्की आ बहुते लचारी
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ओहिना के ओहिना जिनगी मरैत गेलै
एक्के सन फोटो सँ एलबम भरैत गेलै
पहिल शेरमे शाइर तारानंद वियोगी जीवन ओहि सीमापर पहुँचि गेल छथि जतए आदमी हताश भऽ बैसि जाइए। किछु लोक एहि सेरकेँ निराशावादी कहि सकै छथि मुदा हमरा जनैत निराशा सेहो जीवनेक अंग छै। दोसर शेरमे शाइर जीवनक एकरसतासँ उबिआएल बुझाइत छथि।

रोशन जनकपुरी जीक दू टा शेर—


आङनमे अछि गुम्हरि रहल कागजके बाघ
घर घरमे अछि रोहटि-कन्ना, डर लगैए
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जानि ने कहिया धरि बूझत ई लोक जे
वधशालामे आत्माक जोर नहि होइत छै
पहिल शेरमे शाइर जनकपुरीजी लोकक भीतरक अज्ञात अदंकक वर्णन केने छथि। सभकेँ बूझल छै जे बाघ कागज केर छै मुदा एखनुक लोक असगर भऽ चुकल अछि आ ओही कारणसँ ओकरा कागजक बाघसँ सेहो डर लागि रहल छै। कोनो हत्या करए बला आदमिए होइत छै से दोसर शेरसँ बुझा जाइत अछि जखन कि शाइर हत्याराक पैरवी करै छथि। आब ई हत्यारा कोनो रूपमे कोनो कारणसँ कियो भऽ सकैए। मात्र आदमिएकेँ मारए बला हत्यारा होइत छै से मानब एकभगाह अछि।

उपरमे देल गेल अजाद गजलक उदाहरणसँ ई बात स्पष्ट अछि जे सभ अजाद गजलकार सभहँक भाव नीक छनि। भावमे बसल बिंब खाँटी मैथिल छनि। प्रतीक सेहो नव छनि मुदा बस गजलक व्याकरण नै छनि। जखन कि शुरुआतेमे कहने छी बिना काफिया बहरक गजल नै होइत छै। आश्चर्य ईहो जे अजाद गजलकार सभ दुष्यंत कुमार कि अदम गोंडवी की फैज अहमद फैज केर उदाहरण दै छथि मुदा दुष्यंत कुमार कि अदम गोंडवी की फैज अहमद फैज केर गजलमे प्रयोग भेल व्याकरणकेँ नै देखि पाबै छथि। अजाद गजलकार सभहँक तर्क छनि जे जखन रचनामे भाव, बिंब, विचार सभ किछु छै तखन ओकरा गजल मानबामे की दिक्कत। मुदा हम उन्टा पूछब जे ओकरा कविते मानबामे की दिक्कत? अंततः कोनो कवितामे भाव, बिंब, विचार होइते छै ने। तँइ ओकरा कविते मानू। मुदा दुखद जे अजाद गजलकार सभ कहता जे ई कविता नै गजल अछि मुदा कोना तइ लेल हुनका तर्क नै छनि। किछु तँ तत्व हेतै जे कविता, गीत आ गजलकेँ अलग-अलग करैत हेतै। हमरा हिसाबें बहर-काफिया, व्याकरण ओ तत्व छै जाहिसँ कविता, गीत आ गजलमे अंतर कएल जा सकैए।
उपरमे हम कहने छी जे अजाद गजलकार सभ दुष्यंत कुमार, अदम गोंडवी आदिकेँ बहुत मानै छथि तँ एक बेर कने ईहो देखि ली जे दुष्यंत कुमार, अदम गोंडवी सभ गजल व्याकरणक पालन केने छथि की नै---
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जीक ई शेर देखू-

भेद कुल खुल जाए वह सूरत हमारे दिल में है
देश को मिल जाए जो पूँजी तुम्हारी मिल में है
मतला (मने पहिल शेर)क मात्राक्रम अछि-- 2122+2122+2122+212 आब सभ शेरक मात्राक्रम इएह अछि। निरालाजीक ई गजल ताकि कऽ पढ़ू आ मिलाउ जे पूरा गजलमे व्याकरणक पालन भेल छै कि नै। दुष्यंत कुमारक ऐ गजलक तक्ती देखू---

हो गई है / पीर पर्वत /सी पिघलनी / चाहिए,
इस हिमालय / से कोई गं / गा निकलनी / चाहिए।
अइ शेरक मात्राक्रम 2122 / 2122 / 2122 / 212 अछि। दुष्यंतजीक ई गजल ताकि कऽ पढ़ू आ मिलाउ जे पूरा गजलमे व्याकरणक पालन भेल छै कि नै। आब कने अदम गोंडवी जीक दू टा गजलक तक्ती देखू—

ग़ज़ल को ले / चलो अब गाँ / व के दिलकश /नज़ारों में
मुसल्‍सल फ़न / का दम घुटता / है इन अदबी / इदारों में
अइ शेरक मात्राक्रम 1222 / 1222 / 1222 / 1222 अछि।

भूख के एह / सास को शे / रोसुख़न तक /ले चलो
या अदब को / मुफ़लिसों की / अंजुमन तक /ले चलो
अइ शेरक मात्राक्रम 2122 / 2122 / 2122 / 212 अछि। अहाँ सभ अदमजीक दूनू गजल ताकि पढ़ू आ मिलाउ जे पूरा गजलमे व्याकरणक पालन भेल छै कि नै। एकटा ओहन गजलकारक गजल केत तक्ती देखा रहल छी जिनक नाम लऽ सभ अजाद गजलकार सभ बहर ओ छंदक विरोध करै छथि। तँ चलू फैज अहमद फैज जीक ई गजल देखू—

शैख साहब से रस्मो-राह न की
शुक्र है ज़िन्दगी तबाह न की
अइ शेरक मात्राक्रम 2122-1212-112 अछि। अहाँ सभ पूरा गजल ताकि पढ़ू आ मिलाउ जे पूरा गजलमे व्याकरणक पालन भेल छै कि नै। तेनाहिते आजुक प्रसिद्ध शाइर मुनव्वर राना केर ऐ गजलक तक्ती देखू—

बहुत पानी बरसता है तो मिट्टी बैठ जाती है
न रोया कर बहुत रोने से छाती बैठ जाती है
अइ शेरक मात्राक्रम 1222 / 1222 / 1222 / 1222 अछि। अहाँ सभ पूरा गजल ताकि पढ़ू आ मिलाउ जे पूरा गजलमे व्याकरणक पालन भेल छै कि नै। हसरत मोहानीक ई प्रसिद्ध गजल देखू---

चुपकेचुपके रात दिन आँसू बहाना याद है
हमको अब तक आशिक़ी का वो ज़माना याद है
अइ शेरक मात्राक्रम 2122+2122+2122+212 अछि। अहाँ सभ पूरा गजल ताकि पढ़ू आ मिलाउ जे पूरा गजलमे व्याकरणक पालन भेल छै कि नै। अंतमे राहत इन्दौरी जीक एकटा गजलक दू टा शेरकेँ देखू देखू—
चरागों को उछाला जा रहा है
हवा पर रौब डाला जा रहा है

न हार अपनी न अपनी जीत होगी
मगर सिक्का उछाला जा रहा है
अइ दूनू शेरक मात्राक्रम गजल (1222 / 1222 / 122) (बहर-ए-हजज केर मुजाइफ) अछि। अहाँ सभ पूरा गजल ताकि पढ़ू आ मिलाउ जे पूरा गजलमे व्याकरणक पालन भेल छै कि नै।
उपरमे देल गेल हिंदी-उर्दू गजलकार सभहँक शेर सभकेँ देखलासँ पता चलत जे निराला जी गजलक विषय नव कऽ देलखिन प्रेमिकाक बदला विषय मिल आ पूँजी बनि गेलै मुदा व्याकरण वएह रहलै। अदमजी भखूक एहसासकेँ शेरो-सुखन धरि लऽ गेलाह मुदा ओही व्याकरणक संग। दुष्यंतजी अपन गजलक माध्यमे हिमालयसँ गंगा निकालि देलाह मुदा व्याकरण ने तोड़लाह। फैज अहमद फैज अपन गजलमे धार्मिक कट्टरताक विरोध केलाह मुदा ओहो व्याकरण नै तोड़लाह। तेनाहिते आनो शाइर सभ नव भाव-भंगिमाक गजल लिखने छथि सेहो व्याकरणक पालन करैत। तखन ई मैथिलीक अजाद गजलकार सभ कहै छथि जे व्याकरणसँ भाव-विचार बन्हा जाइ छै या गजलमे व्याकरण नै होइ छै से कते उचित? एहिठाम आबि हमरा ई कहबा  / स्वीकार करबामे कोनो संकोच नै जे जँ ई अजाद गजलकार सभ अपन जिद छोड़ि एखनो गजलक व्याकरण स्वीकार कऽ लेता तँ मैथिली गजलक सुदिन शुरू भऽ जाएत कारण हिनका सभ लग भाव-बोध, विचार ओ अनुभव बहुत बेसी छनि मुदा विधागत व्याकरण ने पालन करबाक कारणे हिनकर सभहँक लिखलपर विधाक रूपमे प्रश्नचिह्न लागि जाइत अछि। सियाराम झा सरसजीकेँ दुख छनि जे गीत विधा वर्तमानमे मैथिलीक केंद्रीय विधा किए नै अछि (देखू हुनकर पोथी आखर-आखर गीत केर भूमिका)। ई दुख हमरो अछि गजलक संदर्भमे, गीतक संदर्भमे आ सभ छंदयुक्त काव्यक संदर्भमे। हमरो ई इच्छा अछि जे गजल-गीत-अन्य छंदयुक्त काव्य मैथिली साहित्य केर केंद्रीय विधा बनए। बनियो सकैए। जँ अनचिन्हार आखर-विदेह मात्र दस बर्खमे किछुए गजल कार्यकर्ताक संग अपन गजल संबंधी लक्ष्य पूरा कऽ सकैए तँ फेर अनुमान करू जे जँ सभ अजाद गजलकार सभ अपन जिद छोड़ि व्याकरण बला गजल लिखनाइ शुरू कऽ देथि तँ कतेक कम समयमे ई लक्ष्य पूरा हएत? मुदा ताहि लेल जरूरी छै विधागत छंद ओ व्याकरणकेँ माननाइ। एकटा गजल कार्यकर्ताक तौरपर हमरा विश्वास अछि जे जँ सभ नै तँ अधिकांश अजाद गजलकार जिद छोड़ि विधागत छंद के मानता तँ मात्र 15-20 बर्खमे गजल-गीत-अन्य छंदयुक्त काव्य मैथिली साहित्य केर केंद्रीय विधा बनि जाएत। ई विश्वास हमरा एनाहिते नै अछि एकर पाछू अनचिन्हार आखर ओ विदेहक विश्वास सेहो अछि। गजलक एकटा कार्यकर्ताक तौरपर हम प्रतीक्षा कऽ रहल छी जे कहिया मैथिली गजलकेँ ई सौभाग्य भेटतै जे ओ मैथिली साहित्यक केंद्रीय विधा बनत आ ताहूसँ पहिने हमरा अइ बातक प्रतीक्षा अछि जे कोन-कोन अजाद गजलकार सभ हमर एहि सपनाकेँ यथार्थमे बदलबाक लेल सहयोग देता। प्रतीक्षारत.....................

आशीष अनचिन्हार
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बयानक संदर्भमे मैथिली गजल

हरेक भाषा साहित्यिक हरेक विधासँ संबंधित बयान अबैत रहैत छै आ ई स्वाभाविक छै। बयान दूनू तरहँक मने सकारात्मक ओ नकारात्मक रहैत छै। मैथिली गजल लेल सेहो समय- समयपर बयान अबैत रहलैक अछि। जँ छोट-मोट बयानकेँ छोड़ि देल जाए तँ मैथिली गजलमे मुख्यतः तीन-चारि टा बयान अछि जे कि अपना समयमे मैथिली गजलकेँ आन्दोलित केलक। पहिल प्रो. आनंद मिश्रजीक बयान, दोसर रमानंद झा रमणजीक बयान, तेसर रामदेव झाजीक बयान आ चारिम मायानंद मिश्रजीक बयान, हम एहिठाम चारू गोटाक बयान राखब आ ओकर विश्लेषण करब एहि विश्लेषणसँ पहिने कहि दी जे ई सभ बयान ओहन-ओहन रचना वा पोथीपर आधारित अछि जे कि प्रकाशित भेल। बहुत रास एहन शाइर जे कि प्रकाशनमे रुचि ने छलनि वा जिनका संपादक कात कऽ दै छलखिन (जेना विजयनाथ झा ओ योगानंद हीराजीक गजलकेँ संपादक सायास नै छापै छलखिन तिनकर सभहँक गजलकेँ एहि बयान देबा कालमे धेआन नै राखल गेल अछि)। ईहो बात धेआनमे राखब जरूरी जे ई बयान सभ मधुपजी, कविवर सीताराम झाजीक वा पं.जीवन झाजीक गजलकेँ बिना व्याकरणपर नपने देल गेल अछि। जँ ई सभ बयान देबासँ पहिने मधुपजी, कविवर सीताराम झाजीक, पं.जीवन झाजीक, विजयनाथ झाजी वा योगानंद हीराजीक गजलकेँ व्याकरणक हिसाबें देखने रहितथि तँ संभवतः हिनक बयान सभ किछु अलग रहैत। तँइ एहि बयान सभकेँ समग्र तँ नै मानल जा सकैए मुदा ओहि अधिकांश गजलक प्रतिनिधित्व तँ करिते अछि जे ओहि कालखंडमे अधिकांश गजलकार द्वारा लिखल गेल। एहि बयान सभहँक विश्लेषणकेँ हम ओहि कालखंडसँ जोड़ि कऽ देखि रहल छी जाहिकालमे ई बयान देल गेल रहै। वस्तुतः इएह सही तरीका छै कोनो तथ्यकेँ जनबाक लेल। तँ देखी बयान आ ओकर विश्लेषण ------

1) प्रो. आनंद मिश्रजीक हिसाबें मैथिलीमे गजल संभव नहि (संदर्भ- 2015 मे मोहन यादवजीक गजल संग्रह "जे गेल नहि बिसरल"मे उदयचंद्र झा विनोदजीक भूमिका। संभवतः ई बयान 1980-85 बीचक अछि)---एहि बयानक मूल रूप हमरा लग नै अछि। तँइ एहि बयानकेँ दू रूपमे लऽ रहल छी। पहिल तँ जे देने छी मने "मैथिलीमे गजल संभव नै"। ई बयान निश्चित रूपें ओहि समयक जे गजलकार सभ सक्रिय छलाह जेना सुधांशु शेखर चौधरी, गोपेश, मायानंद मिश्र, रवीन्द्रनाथ ठाकुर, केदार नाथ लाभ, कलानंद भट्ट, सियाराम झा सरस, महेन्द्र, छात्रानंद सिंह झा, तारानंद वियोगी, राम चैतन्य धीरज, केदार कानन, रमेश, विभूति आनंद आदिक गजल सभकेँ देखि कऽ देल गेल अछि। जँ हिनकर सभहँक गजल देखल जाए तँ  प्रो. आनंद मिश्रजीक उक्ति सौ प्रतिशत सच अछि। कनियों झूठ नै। मानि लिअ जँ प्रो. जी एहन नै कहने हेथिन तैयो ई सच अछि ओहि समयक सक्रिय गजलकार सभहँक गजल देखि कियो ई बात कहि सकैत छल। गजल लेल बहर आ काफिया अनिवार्य छै (बहरमे किछु छूटक संगे)। मुदा ओहि समयक सक्रिय कोनो गजलकार (ओहिमेसँ एखनो किछु सक्रिय छथि) बहर आ काफियाक पालन नै केने छथि। हिनकर सभहँक कथन छनि जे भाव मुख्य हो मुदा जँ भावे मुख्य मानल जाए तखन कोनो रचनाकेँ गजल कहबाक बेगरते किए? ओकरा कविते किए ने कहल जाए? आखिर कोनो एहन तत्व तँ हेतै जे कविता आ गजलक बीच अंतर आनैत हेतै। कोनो गजलकेँ नीक वा खराप हेबासँ पहिने ओकरा "गजल" होबए पड़ैत छै आ कोनो रचनाकेँ गजल हेबा लेल ओहिमे बहर ओ काफिया अनिवार्य छै। जँ बहर ओ काफिया नै छै तखन ओ गजले नै भेल भने ओकरा नीक वा खराप गीत या कविता कहू से मंजूर मुदा बिना बहर ओ काफियाक गजल नै हएत (रदीफ कोनो गजलमे भैयो सकैए आ नहियो भऽ सकैए मुदा जाहि गजलमे रदीफ लेल जाएत ताहिमे अंत धरि पालन हएत)।
एक दू गोटेसँ चर्चा केलापर पता चलल जे प्रो. आनंदजी ई मानै छलाह जे मैथिलीमे हुस्न-इश्क नै भऽ सकै छै तँइ मैथिलीमे गजल संभव नै। जँ एहन बात तँ हम प्रो. साहेबसँ असहमत छी कारण हमरा लग विद्यापति छथि जे कि पूरा उर्दू शाइरीसँ बेसी आ पहिने प्रेमपर बात केलाह। किछु विद्वान ई कहि सकै छथि जे विद्यापतिक प्रेम पारलौकिक छल मुदा तखन ई प्रश्न उठै छै जे फेर उर्दू शाइरीक प्रेम पारलौकिक किए नै भऽ सकैए?
जे किछु हो मुदा प्रो. आनंदजीक बयान ओहि समयक गजलकार सभ लेल एकटा चुनौती छल जकरा लेबामे और गलत साबित करबामे ओहि समयक गजलकार सभ असफल भऽ गेलाह। जहाँ धरि एहि बयानक प्रभाव छै हमरा नै बुझाइए जे एहि बयानक कोनो बेसी असरि पड़लै कारण ओहि समयक कथित गजलकार सभ अपन "गलत गजल"मे मग्न छलाह आ प्रो. आनंद मिश्रजी अपन सहविचारक संग प्रोफेसरे टा बनल रहलाह। दूनू पक्षमेसँ किनको ई जनबाक चिन्ता नै रहलनि जे आखिर गजलक असल पक्ष की छै।

2) रमानंद झा रमणजीक हिसाबें वर्तमान गीत गजल मंचीय अर्थलाभक औजार थिक (मिथिला मिहिर फरवरी 1983 ई हमरा लोकवेद आ लालकिलामे सियाराम झा सरसजीक लेखमे उल्लेखित भेटल)-
जँ ओहि समयक सक्रिय गजलकारक गजल देखब तँ पता चलत जे ओ सभ गजलकेँ गेबाक एकटा उपक्रम मानि लेने छलाह। हुनका सभकेँ बुझाइत छलनि (वा छनि) जे गायिकी गजल लेल अनिवार्य छै। जँ गायिकी गजल लेल अनिवार्य रहितै तँ उर्दू गजलमे गालिब आ फिराक गोरखपुरीसँ बेसी महान सुदर्शन फाकिर रहितथि। मुदा से नै भेलै कारण गायिकी गजल लेल अनिवार्य नै। हँ जँ गजलक सभ शर्त पूरा करैत गजलमे गायिकी छै तँ सोनमे सुगंध बला बात भेलै। ओहि समयक गजल सभ गायिकी लऽ कऽ कते मोहग्रस्त छलाह तकर दृष्टांत हमरा विभूति आनंदजीक गजल संग्रह (उठा रहल घोघ तिमिर)मे हुनके भूमिका आ तारानंद वियोगीजीक गजल संग्रह (युद्धक साक्ष्य) केर नव संस्करणक नव भूमिकासँ भेटल। विभूति आनंदजी ओहि भूमिकामे लिखै छथि जे "एगो महत्वपूर्ण प्रसंग.............। तत्क्षण किछुकेँ स्वरो देलथिन।" उम्हर वियोगीजी अपन संग्रहक नव संस्करणक नव भूमिकामे लिखै छथि जे "तखन मोन पड़ै छथि जवाहर झा...........जे हमर छांदस प्रयोग सभहँक संगीत शास्त्रीय व्याख्या करथि।" ई अलग बात जे वियोगीजीक गजलमे कोनो छांदस प्रयोग नै अछि। शास्त्रीय संगीत केर बंदिश तँ कोनो रचनाक पाँति भऽ सकै छै। एहि दूक अतिरिक्त आन गजलकार सभ सेहो गजलकेँ गायिकीसँ अनिवार्यतः जोड़ि देने छथि जाहि कारणसँ ओहि समयक गजल सभ गजल कम आ गीत बेसी लागै छै। अधिकांशतः साहित्यकार ई बुझै छथि जे मंचपर गाबि देलासँ जनता बेसी थपड़ी पीटत आ बहुत संदर्भमे ई बात सच छै। मुदा ओहि समयक गजल लिखनाहर सभ मंचपर हिट हेबाक चक्करमे कथित गजलकेँ गीतक भासमे गाबए लगलाह जाहिमेसँ किछु लोकप्रिय सेहो भेल (जनता द्वारा गीत मानि आ सुनबामे चूँकि ओ गीतेक भास छलै तँइ) जेना सियाराम झा सरसजीक "एक मिसिया जे मुस्किया देलियै," आ एहने सन आर। खास कऽ जे कथित साहित्यकार गीत आ गजल दूनू लिखै छलाह तिनकामे ई गायिकी बला बेमारी बहुत अछि। कलानंद भट्ट गजले लिखै छलाह तँइ हुनक गजलमे एकटा स्थायित्व भेटत ओना ई बात अलग जे भट्टजीक गजलमे सेहो बहर नै छनि आ बहुत ठाम काफिया गलत छनि।तात्कालीन कथित गजलकार सभ गजलकेँ मंच छेकबाक हथियार बना लेला जाहि कारणे ओहि समयक गजलमे कथ्यक गंभीरता छैहे नै। एक बात स्पष्ट कऽ दी खाली लाल झंडा, पसेना, अमीर-गरीब लीखि देलासँ गजल की कोनो रचनामे गंभीरता नै अबै छै। जँ एहि वास्तविकताक भीतर घुसि कऽ देखल जाए तँ रमणजीक बयान बहुत हद धरि सही अछि आ सटीक अछि। रमणजीक एहि बयानक असरि भेल आ गीत सन गजल लिखए बला सभ छिलमिला गेलाह। सरसजी अपन लेखमे एहि बयानकेँ गैर जिम्मेदारी बला बयान मानै छथि (लोकवेद आ लालकिलामे सियाराम झा सरसजीक लेख) मुदा हम रमणजीक एहि बयानकेँ गजलक दृष्टिएँ पूर्ण जिम्मेदारी बला बयान मानै छी। जँ ओहि समयक तात्कालीन गजलकार सभ एहि बयानपर मंथन करितथि तँ आजुक मैथिली गजलक परिदृश्य बहुत निखरल आ विस्तृत नजरि अबैत।
पुरने गजलकार नै बल्कि एखनुक गजलकार सेहो (अनचिन्हार आखरसँ संबंधित किछु गजलकार सेहो) मंच छेकबाक लेल गजलमे गायिकीकेँ अनिवार्य करए चाहै छथि। जखन कि सच बात तँ ई छै जे मंचपर गजल हिट होइत छै मुदा मंच लेल गजलक प्रयोग असफल भऽ जाइत छै से कतेको उर्दू मोशायरामे श्रोताक तौरपर भाग लऽ कऽ हम देखि चुकल छी। उर्दूक प्रसिद्ध शाइर हसरत मोहानीक गजल "चुपके चुपके रात दिन" 1910-1930 मे लिखाएल छै मुदा एहि गजलकेँ गुलाम अली भेटलै 1982मे। तेनाहिते गालिब केर गजल लिखेलै 1820क बाद मुदा ओकर गायिकी रूपमे लोकप्रियता भेटलै जगजीत सिंह द्वारा गेलाक बाद (जगजीतजीसँ पहिने सेहो गाएल जाइत छलै मुदा हम लोकप्रियताक बात कऽ रहल छी)। गायिकी रूपमे हरेक आधुनिक हसरत मोहानीक नसीबमे गुलाम अली आ हरेक आधुनिक गालिब केर नसीबमे जगजीत सिंह लिखाएल रहै छै मुदा आजुक शाइर अपने गेबा लेल आ मंच छेकबा लेल तते उताहुल रहै छथि जे ओ गजलक मूल तत्वकेँ बिसरि जाइ छथि। हमर ई अनुभव अछि जे गजल लेल बहरकेँ अनुपयोगी कहए बला लोक गजलकेँ गेबाक चक्करमे रहै छथि। अन्यथा किछु प्रयासक बाद बहरक निर्वाह केनाइ एकदम आसान होइत छै।

3) रामदेव झाजी मानै छथि जे "साम्प्रतिक गजल रचनाक क्षेत्रमे सुधांशु शेखर चौधरी, गोपेश, मायानंद मिश्र, रवीन्द्रनाथ ठाकुर,केदार नाथ लाभ, कलानंद भट्ट, सरस, महेन्द्र, छात्रानंद, वियोगी, धीरज,केदार कानन, रमेश,अनिल इत्यादि नाम देखल जाइत अछि। हिनका लोकनिक गजलमेसँ किछुमे अवश्ये गजलत्व अछि। परंतु अधिकांशकेँ गजल शैलीमे रचल गीत मात्र कहल जाए तँ अनुपयुक्त नहि। (संदर्भ “मैथिलीमे गजल” डा. रामदेव झा, रचना जून 1984मे प्रकाशित)"--
रामदेव जीक मत रमणजीक मतक विस्तारित रूप अछि। रमणजी मंचपर गजलक प्रवृतिपर बात केने छथि मुदा रामदेवजी गीत सन गजलकेँ सेहो देखार केने छथि जे अधिकांशतः गजलकार गजल नै गीत सन गजल लिखै छथि। रामदेव झाजी स्पष्ट स्वरमे ओहि समयक बहुत रास कथित क्रांतिकारी गजलकार सभहँक गजलकेँ खारिज करै छथि जे कि ओहि समयक हिसाबसँ बड़का विस्फोट छल। ई आलेख ततेक प्रभावकारी भेल जे ओ समयक बिना व्याकरण बला गजलकार सभ छिलमिला गेलाह आ एहि आलेखक विरोधमे विभिन्न वक्तव्य सभ देबए लगलाह। उदाहरण लेल सियाराम झा सरस, तारानंद वियोगी, रमेश ओ देवशंकर नवीनजीक संपादनमे प्रकाशित साझी गजल संकलन "लोकवेद आ लालकिला" (वर्ष 1990) केर कतिपय लेख सभ देखल जा सकैए जाहिमे रामदेव झाजी ओ हुनक स्थापनाकेँ जमि कऽ आरोपित कएल गेल अछि। ओही संकलनमे देवशंकर नवीन अपन आलेख "मैथिली गजलःस्वरूप आ संभावना"मे लिखै छथि जे "............पुनः डा. रामदेव झाक आलेख आएल। एहि निबन्ध मे दू टा बात अनर्गल ई भेल जे गजलक पंक्ति लेल छंद जकाँ मात्रा निर्धारित करए लगलाह आ किछु एहेन व्यक्तिक नाम मैथिली गजल मे जोड़ि देलनि जे कहियो गजल नै लिखलनि"
आन लेख सभमे एहने बात सभ आन आन तरीकासँ कहल गेल अछि। रामदेव झाजीक आलेखक बाद एहन आलेख नै आएल जाहिमे गजलकेँ व्याकरण दृष्टिसँ देखल गेल हो कारण ताहि समयक गजलपर कथित क्रांतिकारी गजलकार सभहँक कब्जा भऽ गेल छल। 

4) मायानंद जी अपन पोथी “अवान्तर” केर भूमिकाक (ई पोथी 1988मे मैथिली चेतना परिषद्, सहरसा द्वारा प्रकाशित भेल)। पृष्ठ 6 पर मायानंदजी लिखै छथि “अवान्तरक आरम्भ अछि गीतलसँ। गीतं लातीति गीतलम्ऽ अर्थात गीत केँ आनऽ बला भेल गीतल। किन्तु गीतल परम्परागत गीत नहि थिक, एहिमे एकटा सुर गजल केर सेहो लगैत अछि। गीतल गजल केर सब बंधन (सर्त) केँ स्वीकार नहि करैत अछि। कइयो नहि सकैत अछि। भाषाक अपन-अपन विशेषता होइत अछि जे ओकर संस्कृतिक अनुरूपें निर्मित होइत अछि। हमर उद्येश्य अछि मिश्रणसँ एकटा नवीन प्रयोग। तैं गीतल ने गीते थिक, ने गजले थिक, गीतो थिक आ गजलो थिक। किन्तु गीति तत्वक प्रधानता अभीष्ट, तैं गीतल।”
उपरका उद्घोषणामे अहाँ सभ देखि सकै छिऐ जे कतेक दोखाह स्थापना अछि। प्रयोग हएब नीक गप्प मुदा अपन कमजोरीकेँ भाषाक कमजोरी बना देब कतहुँसँ उचित नै आ हमरा जनैत मायानंद जीक ई बड़का अपराध छनि। जँ ओ अपन कमजोरीकेँ आँकैत गीतल केर आरम्भ करतथि तँ कोनो बेजाए गप्प नै मुदा मायाजी पाठककेँ भ्रमित करबाक प्रयास केलाह जे कि तात्काल सफल सेहो भेल।
हम अपन पोथी "मैथिली गजलक व्याकरण ओ इतिहास"मे बहुत रास एहन मैथिली कहबी केर उदाहरण देने छियै जकर दूनू पाँतिमे वर्णवृत मने बहर छै। जाहि भाषाक कहबी धरि बहरमे हो ओहि भाषामे गजल लिखब-कहब सभसँ आसान छै। मुदा हम जेना कि ओही पोथीमे लिखने छी जे माया बाबू लग मैथिल माटि-पानिक परंपराक कोनो जानकारी ने रहनि ओ बस शब्द सजेबाक फेरमे अपन मजबूरीकेँ भाषाक मजबूरी बना देलाह। माया बाबूक एहि बयानक घोर विरोध भेल सरसजी आ हुनक टीम द्वारा मुदा अफसोच जे सरसजी वा हुनक टीम मायाजीक एहि बयानकेँ गलत करबा लेल कोनो सार्थक डेग नै उठा सकल। माया बाबू जाहि फार्मेटक गजल लिखै छलाह तही फार्मेटमे सरसजी आ हुनक टीम लिखै छलाह। मने दूनू टीम बिना बहरक बहर गजल लिखै छल आ एखनो लिखा रहल। मायानंद मिश्र बनाम सियाराम झा "सरस" बला लड़ाइ गजलक लेल नै ई विशुद्ध रूपें नाम आ सत्ताक लड़ाइ छल। वर्तमान मैथिलीमे "बीहनि कथा" आ "लघुकथा" केर लड़ाइ सन  छल ई।

वर्तमान समयमे एहि बयान सभहँक सार्थकता

प्रो.आनंद मिश्रजी आ मायानंद मिश्रजीक बयानक एखन कोनो सार्थकता नै अछि। दूनू गोटाक बयान मैथिली गजलक असल धाराकेँ छोड़ि कऽ देल गेल छल। मैथिली गजलक असल धारा पं.जीवन झा, कविवर सीताराम झा, काशीकांत मिश्र "मधुप" विजयनाथ झा, योगानंद हीरा, जगदीश चंद्र ठाकुर "अनिल" आदिकेँ छुबैत आगू बढ़ल अछि। मुदा हिनकर सभहँक गजलकेँ तात्कालीन संपादक ओ आलोचक द्वारा बारल गेल। जँ हिनकर सभहँक गजलक ओहि समयमे व्याकरणक हिसाबसँ व्याख्या भेल रहैत तँ मैथिली गजलक नकली धाराकेँ आगू बढ़बाक मौका नै भेटल रहितै आ मैथिली गजल गन्हेबासँ बचि गेल रहैत। मुदा दुनियाँक कोनो काज बाँचल नै रहै छै से आब मैथिली गजल आलोचनाक छूटल काज सभ भऽ रहल अछि।
डा. रमानंद झा "रमण" ओ डा. रामदेव झाजीक बयानक एखनो सार्थकता अछि कारण ई दूनू बयान गजलक बाहरी पक्षपर छलै। एहन नै छै जे गजल गायिकीसँ मोहग्रस्त पहिनुके गजलकार छलाह। किछु एखुनको गजलकार एहि मोहमे बान्हल छथि आ आगूक किछु गजलकार सेहो बान्हल रहता। तँइ ई दूनू गोटाल बयान भविष्योमे सार्थक रहत।



(नोट---- गजलक वा अन्य विधाक संदर्भमे हम किनको नीक विचारकेँ अपना सकै छी। मुदा गलत विचारकेँ सदिखन हम आलोचना करैत रहब। एहि आलेखमे जिनकर मतक समर्थन कएल गेल अछि जरूरी नै जे हुनकर सभ मतसँ हम सहमत होइ आ हुनकर गलतो विचारकेँ नुकबैत रही। काल्हि भेने फेर कियो गजलक असल पक्षक विपरीत जेता हुनकर हम आलोचना करबे करब। कोनो विधामे प्रयोग खराप नै मुदा अपन कमजोरीकेँ विधा वा भाषाक कमजोरी बना देबए बला हमर शिकार होइत रहता।)



11

नरेन्द्रजीक मैथिली आ हिंदी गजलक तुलनात्मक विवेचना

एहिठाम समीक्षा लेल हम नरेन्द्रजीक मैथिली आ हिंदी गजलकेँ चुनलहुँ अछि। ई समीक्षा एकै गजलकारक दू भाषामे लिखल गजलक तुलना अछि। पहिने हम दूनू भाषाक गजल आ ओकर बहरक तक्ती ओ रदीफ-काफियाक समीक्षा करब तकर बाद भाव, कथ्य ओ भाषाक हिसाबसँ।

नरेन्द्रजीक चारि टा मैथिली गजल जे कि मिथिला दर्शनक Nov-Dec-16 अंकमे प्रकाशित अछि---

1

राज काज भगवान भरोसे
अछि सुराज भगवान भरोसे

मूलधनक तँ बाते छोड़ू
सूदि ब्याज भगवान भरोसे

खूब सभ्यता आयल अछि ई
लोक लाज भगवान भरोसे

देह ठठा कऽ करू किसानी
आ अनाज भगवान भरोसे

अपना भरि सब ब्योंत भिराऊ
किंतु भाँज भगवान भरोसे

एहि गजलक पहिल शेरक पहिल पाँतिमे आठ टा दीर्घ अछि। दोसर पाँतिमे आठ टा दीर्घ अछि। दोसर शेरक पहिल पाँतिमे सात टा दीर्घ आ एकटा लघु (तँ) अछि। हमरा लगैए शाइर तँ शब्दकेँ दीर्घ मानि लेने छथि जे कि गलत अछि। पं. गोविन्द झाजी अपन व्याकरणक पोथीमे एहन शब्दकेँ लघुए मानने छथि जे कि सर्वथा उचित तँइ एहि गजलमे सेहो ई लघु हएत। कोनो लघुकेँ दीर्घ मानि लेबाक परंपरा गजलमे तँ नै छै मुदा मैथिली गजलमे हमरा लोकनि संस्कृतक नियमक अनुसार अंतिम लघुकेँ दीर्घ मानै छी मुदा एहि गजलमे तँ बीचक लघुकेँ दीर्घ मानल गेल अछि जे दूनू परंपरा (गजल आ संस्कृत) हिसाबें गलत अछि। दोसर पाँतिमे आठ टा दीर्घ अछि। तेसर शेरक दूनू पाँतिमे आठ-ठ दीर्घ अछि। चारिम शेरक पहिल पाँतिमे सात टा दीर्घ आ एकटा लघु अछि (कऽ) एहिठाम हम दोसर शेरक पहिल पाँति लेल जे हम बात कहने छी तकरे बुझू। दोसर शेरमे आठ टा दीर्घ अछि। पाँचम शेरक दूनू पाँतिमे आठ-आठ टा दीर्घ अछि। एहि गजलक रदीफ "भगवान भरोसे" अछि आ काफिया "आ" ध्वनि संग "ज" वर्ण अछि जेना काज-सुराज, ब्याज, लाज, अनाज मुदा पाँचम शेरक काफिया अछि "भाँज" जे कि गलत अछि। "भाँज" केर ध्वनि "आँ" केर ज छै मुदा मतलामे "आ" ध्वनिक संग ज छै। तँइ पाँचम शेरक काफिया गलत अछि। ई गजल बहरे मीरपर आधारित अछि जाहिमे जकर नियम अछि जे "जँ कोनो गजलमे हरेक मात्रा दीर्घ हो तँ ओकर अलग-अलग लघुकेँ सेहो दीर्घ मानल जा सकैए। मुदा बहरे मीरक हिसाबसँ सेहो एहि गजलमे कमी अछि।

2

फोड़त आँखि दिवाली आनत
कान काटि कनबाली आनत

अहींक हाथ पयर कटबा लय
टाका टानि भुजाली आनत

देश प्रेम केर डंका पीटत
केस मोकदमा जाली आनत

पेट बान्हि कऽ करू चाकरी
एहने आब बहाली आनत

पूरा पूरी दान चुका कऽ
सबटा डिब्बा खाली आनत

एहि गजलक पहिल आ दोसर शेरक हरेक पाँतिमे आठ-आठ टा दीर्घ अछि। तेसर शेरक पहिल पाँतिमे एकटा लघु फाजिल अछि तेनाहिते दोसर पाँतिमे सेहो एकटा लघु फाजिल अछि। चारिम शेरक पहिल पाँतिमे छह टा दीर्घ आ दू टा लघु अछि। कऽ शब्दक विवेचना उपर जकाँ रहत। दोसर पाँतिमे "ए" शब्दकेँ लघु मानि लेल गेल अछि जे कि हमरा हिसाबें उचित नै। पाँचम सेरक पहिल पाँतिमे सात टा दीर्घ आ एकटा लघु अछि। कऽ लेल उपरके विवेचना देखू। दोसर पाँतिमे आठ टा दीर्घ अछि। एहि गजलक काफिया ठीक अछि। ई गजल बहरे मीरपर आधारित अछि जाहिमे जकर नियम अछि जे "जँ कोनो गजलमे हरेक मात्रा दीर्घ हो तँ ओकर अलग-अलग लघुकेँ सेहो दीर्घ मानल जा सकैए। मुदा बहरे मीरक हिसाबसँ सेहो एहि गजलमे कमी अछि।

3

लाख उपलब्धिसँ ओ घेरा गेल अछि
बस हृदय आदमी के हेरा गेल अछि

सब समाजक चलन औपचारिक बनल
लोक संबंधसँ आन डेरा गेल अछि

सबटा चेहरा बनौआ अपरिचित जकाँ
मूल चेहरा ससरि कऽ पड़ा गेल अछि

भोरसँ साँझ धरि फूसि पर फूसि थिक
लोक अपने नजरिसँ धरा गेल अछि

देशक सोना पाँखि बनत एक दिन
फेर अनचोके मे ई फुरा गेल अछि

एहि गजलक पहिल शेरक पहिल पाँतिक मात्राक्रम 2122-1122-2212 अछि आ दोसर पाँतिक मात्राक्रम 2122-1222-2212 अछि। दोसर शेरक पहिल पाँतिक मात्राक्रम 2122-1221-2212 अछि आ दोसर पाँतिक मात्राक्रम 2122-1121-22212 अछि। तेसर शेरक पहिल पाँतिक मात्राक्रम 2121-2122-12212 अछि आ दोसर पाँतिक मात्राक्रम 2121-2122-12212 अछि। चारिम शेरक पहिल पाँतिक मात्राक्रम 211212212212 अछि आ दोसर पाँतिक 212212112212 अछि। पाँचम शेरक पहिल पाँतिक मात्राक्रम 22222112212 अछि आ दोसर पाँतिक 212222212212 अछि। एहि गजलक तेसर, चारिम आ पाँचम शेरक काफिया गलत अछि। एहि गजलकेँ हमरा बहरेमीरपर मानबासँ आपत्ति अछि आ से किए ई पाटक लोकनि मात्राक्रम जोड़ि देखि सकै छथि जे अलग-अलग लघु जोड़लाब बादो लघु बचि जाइत छै। तँइ हमरा आपत्ति अछि संगे-संग ई गजल आर कोनो बहरपर आधारित नै अछि सेहो स्पष्ट अछि।

4

डिब्बा सन सन शहरक घर अछि
पानि हवा मे मिलल जहर अछि

गाम जेना बेदखल भऽ रहल
बाध बोन धरि घुसल शहर अछि

आजुक युगमे कोना पकड़बै
चोर साधु मे की अंतर अछि

देश बनल शो केश बजारक
जनतंत्रक बेजोड़ असर अछि

अजब दौर अछि लक्ष्य निपत्ता
दिशा हीन ई भेड़ सफर अछि

मतलाक दूनू पाँतिमे आठ टा दीर्घ अछि। दोसर शेरक पहिल पाँतिमे आठ टा दीर्घ आ एकटा लघु अछि। दोसर पाँतिमे आठ टा दीर्घ अछि। तेसर शेरक पहिल पाँतिमे आठ टा दीर्घ आ एकटा लघु अछि। दोसर पाँतिमे आठ टा दीर्घ अछि। चारिम आ पाँचम शेरक दूनू पाँतिमे आठ आठ टा दीर्घ अछि। एहि गजलमे आएल "भेड़ सफर" शब्द युग्मपर आगू चलि भाषा खंडमे चर्चा हएत। ई गजल बहरे मीरपर आधारित अछि जाहिमे जकर नियम अछि जे "जँ कोनो गजलमे हरेक मात्रा दीर्घ हो तँ ओकर अलग-अलग लघुकेँ सेहो दीर्घ मानल जा सकैए। एहि गजलक मतलाक पहिल पाँतिक काफिया "घर" केर उच्चारण हिंदी सन कएल जाए तखने सही हएत अन्यथा मैथिली उच्चारण हिसाबें गलत हएत। बाद बाँकी शेरक काफिया मतलाक काफियापर निर्भर करत तँइ ओकर विवेचना हम नै क' रहल छी।

नरेन्द्रजीक चारि टा हिंदी गजल जे कि हुनक फेसबुकक वालसँ लेल गेल अछि----

1

यह जो चौपट यहां का राजा है
कुछ नहीं वक़्त का ताकाजा है

हम लड़ाई से बहुत डरते हैं
क्यूं कि कुछ घाव अभी ताजा है.

देश उनके लिए खिलौना है
हमको इस बात का अन्दाजा है

जैसे चाहे इसे बाजाते हैं
गोकि जनतंत्र एक बाजा है

अब उठा है तो धूम से निकले
यारो आशिक का ये जनाजा है

एहि गजलक पहिल पहिल आ दोसर दूनू शेरक  शेरक मात्राक्रम 2122-12-1222 अछि। एहि शेरक दोसर पाँतिमे शायद टाइपिंग गलती छै तँइ सही शब्द "तकाजा" हम मानलहुँ अछि। दोसेर शेरक पहिल पाँतिक मात्राक्रम 2122-12-1222 आ दोसर पाँतिक मात्राक्रम 2122-112222 अछि।  तेसर शेरक पहिल पाँतिक मात्राक्रम 2122-12-1222 अछि आ दोसर पाँतिक मात्राक्रम 2122-12-2222 अछि। चारिम शेरक पहिल आ दोसर दूनू शेरक मात्राक्रम 2122-12-1222 अछि। एहि शेरक दोसर पाँतिमे शायद टाइपिंग गलती छै तँइ सही शब्द "बजाते" हम मानलहुँ अछि। पाँचम शेरक दूनू पाँतिक मात्राक्रम 2122-12-1222 अछि। बहरमे जतेक मान्य छूट छै से लेल गेल अछि। कुल मिला देखी तँ एहि गजलक दूटा शेर बहरसँ खारिज अछि (दोसर आ तेसर)। एहि गजलमे काफिया ठीकसँ पालन भेल अछि।

2

क़यामत ऐन अब दालान पर है
नज़र दुनिया की रौशनदान पर है.

न जाने रौशनी आयेगी कब तक
अभी तो तीरगी परवान पर है.

पिघल जाता है उनके आँसुओं पर
मेरा गुस्सा दिले नादान पर है.

शगल उनके लिए है शायरी भी
मगर मेरे लिए तो जान परहै.

मुहब्बत की वकालत करने वाला
अभी नफ़रत की इक दूकान पर है.

एहि गजलक हरेक शेरक हरेक पाँतिमे 1222-1222-122 मात्राक्रम अछि। बहरमे जतेक मान्य छूट छै से लेल गेल अछि। एहि गजलक काफिया सेहो ठीक अछि।

3

बाढ़ में लोग बिलबिलाते हैं
रहनुमा बाढ़ को भुनाते हैं

घोषणाओं पे घोषणाएं हैं
नाव वह काग़ज़ी चलाते हैं

इस तरफ़ भुखमरी का आलम है
और वह आँकड़े गिनाते हैं

फंड जो भी जहां से आता है
ख़ुद ही वो बाँट करके खाते हैं

साल दर साल बाढ़ आ जाये
दरअसल ये ही वो मनाते हैं

एहि गजलक हरेक शेरक हरेक पाँतिमे 2122-12-1222 मात्राक्रम अछि। बहरमे जतेक मान्य छूट छै से लेल गेल अछि। एहि गजलक काफिया सेहो ठीक अछि।

4

आकाश से टपके हुए किरदार नहीं हैं
हम भी मक़ीन हैं किरायेदार नहीं हैं |

उनके इरादों की भी मालूमात है हमें
ऐसा नहीं कि हम भी ख़बरदार नहीं हैं

वह नाम हमारा मिटायेंगे कहाँ कहाँ
बुनियाद की हम ईंट हैं दीवार नहीं हैं |

इंसान हैं अपनी हदों का इल्म है हमें
हम आपके जैसा कोई अवतार नहीं हैं |

हम अपनी मुहब्बत की नुमाइश नहीं करते
रिश्ते निभाते हैं दुकानदार नहीं हैं |

पढ़ना ही अगर हो तो पढ़ो इत्मीनान से
अदबी किताब हैं कोई अख़बार नहीं हैं |

एहि गजलक पहिल शेरक पहिल पाँतिक मात्राक्रम 2212-2212-221122 अछि। दोसर पाँतिक मात्राक्रम 2212-1212-221122 अछि। दोसर शेरक पहिल पाँतिक मात्राक्रम 2212-2212-221212 अछि। दोसर पाँतिक मात्राक्रम 2212-122-122-1122 अछि। बहरमे जतेक मान्य छूट छै से लेल गेल अछि मुदा तइ बादो ई गजल बहरमे नै अछि। मतलाक दूनू शेरेमे एकरूपता नै अछि। तँइ हम मात्र दू शेरक तक्ती केलहुँ अछि बाद-बाँकी शेरक विवेचना पाठक बुझिये गेल हेता। काफिया सेहो गलते अछि।


बहरक हिसाबसँ नरेन्द्रजीक गजल-- 

चारू मैथिली गजलकेँ देखल जाए तँ ई स्पष्ट अछि जे नरेन्द्रजी अधिकांशतः बहरे मीरपर आश्रित छथि आ ताहूमे कतेको ठाम हूसल छथि। जखन कि बहरे मीर बहुत आसान बहर छै आ एहि बहरमे छूट बहुत छै। तेनाहिते जँ चारू हिंदी गजलक बहरकेँ देखल जाए ई स्पष्ट होइए जे नरेन्द्रजी बहरे मीरक अतिरिक्त आन बहर सभपर सेहो हाथ चलबै छथि आ ओहूमे कतेको स्थानपर हूसल छथि। तथापि ई उल्लेखनीय जे आनो बहरपर ओ गजल लीखि सकै छथि। नरेन्द्रजी मैथिली-हिंदीक देल उपर बला गजलक बहर संबंधमे हमर ई स्पष्ट मान्यता अछि जे नरेन्द्रजी मात्र लयकेँ बहर मानि लै छथि जखन कि लय आ बहरमे अंतर छै। लय मने गाबि कऽ, गुनगुना कऽ। लयपर लिखलासँ केखनो बहर सटीक भैयो सकैए आ केखनो नहियो भऽ सकैए।
बहर ओ काफियाक आधारपर नरेन्द्रजीक गजलकेँ एकै बेरमे हम गलत नै कहि सकै छी कारण मैथिलीक कथित गजलकार सभसँ बेसी मेहनति नरेन्द्रजी अपन गजलमे केने छथि आ जँ ई थोड़बे मेहनति करतथि वा करता तँ हिनक गजल एकटा आदर्श गजल भऽ सकैए। ओना एहि बातक संभावना कम जे ओ एहि तथ्यकेँ मानताह। करण वएह जिद जे व्याकरण कोनो जरूरी नै छै। रचनामे भाव प्रमुख होइत छै आदि-आदि। मैथिलीमे नरेन्द्रजीक गजल अपन पीढ़ीक (धीरेन्द्र प्रेमर्षि, सुरेन्द्रनाथ आदि) वा ओहिसँ पहिनुक अधिकांश गजलकार (सरसजी, तारानंद वियोगी, रमेश, देवशंकर नवीन एवं ओहने गजलकार) सभसँ बेसी ठोस गजल छनि से मानबामे हमरा कोनो शंका नै मुदा बहर ओ काफियाक हिसाबें पूरा-पूरी सही नै छनि (मने नरेन्द्रजी मात्र अपन समकालीनसँ आगू छथि)।  एहिठाम हम नरेन्द्रजीक चारि-चारि टा गजल लेलहुँ मुदा आन ठाम हुनक प्रकाशित वा हुनक फेसबुकपर प्रकाशित मैथिली आ हिंदी गजलक अनुपातसँ ई स्पष्ट अछि जे नरेन्द्रजी मैथिलीमे मात्र संपादकक आग्रहपर गजल लिखै छथि। मने मैथिली गजल हुनकर ध्येय नै छनि। अइ बादों आश्चर्य जे हिंदी गजलमे हुनकर कोनो विशेष स्थान नै छनि। ई बात हम एकटा हिंदी गजल पाठकक तौरपर कहि रहल छी। हुनकर समूहक किछु लोक हुनका भने बिहारक हिंदी गजलकारक लिस्टमे दऽ दौन मुदा वास्तविकता इएह जे हिंदी गजल संसारमे नरेन्द्रजीक कोनो स्थान नै छनि। आ एकरा मात्र राजनीति नै कहल जा सकैए। हिंदी गजलमे एहतराम इस्लाम, नूर मुहम्मद नूर, जहीर कुरैशी सभ पुरान छथि एवं नवमे गौतम राजरिषी, स्वपनिल श्रीवास्तव, वीनस केसरी, मयंक अवस्थी आदि अपन स्थान बना लेला मुदा की करण छै जे नरेन्द्रजी असफल रहि गेला। हम फेर कहब जे हरेक चीजमे राजनीति नै होइ छै। हिंदी गजलक नव शाइर गौतम राजरिषी, स्वपनिल श्रीवास्तव, वीनस केसरी, मयंक अवस्थी आदिक पाछू कोनो संपादकक हाथ नै छलनि मुदा नीक लिखलासँ कोन संपादक नै छापै छै। आ हिनकर सभहँक सभ गजल व्याकरण ओ भाव दृष्टिसँ संतुलित रहै छनि आ तँइ ई सभ बहुत कम समयमे हिंदी गजलमे अपन स्थान बना लेला मुदा नरेन्द्रजी नै बढ़ि सकला आ ताहि लेल मात्र हुनक बहर ओ व्याकरण नै पालन करबाक जिद जिम्मेदार छनि। मैथिली गजलमे तँ ई अपन समकालीन गजलकारसँ आगू बढ़ि जेता मुदा ई हिंदीमे पिछड़ले रहता कारण ओहिठाम बहर सेहो देखल जाइ छै जखन कि मैथिली गजलमे बहर देखानइ आब शुरू भेलैए।

किछु एहन बात जे कि प्रायः हम, सभ आलोचनामे कहैत छियै " मैथिलीक अराजक गजलकार सभ हिंदीक निराला, दुष्यंत कुमार आ उर्दूक फैज अहमद फैज केर बहुत मानै छथि। एकर अतिरिक्तो ओ सभ अदम गोंडवी मुन्नवर राना आदिकेँ मानै छथि। मैथिलीक अराजक गजलकार सभहँक हिसाबें निराला, दुष्यंत कुमार आ फैज अहमद फैज सभ गजलक व्याकरणकेँ तोड़ि देलखिन मुदा ई भ्रम अछि। सच तँ ई अछि जे निराला मात्र विषय परिवर्तन केला आ उर्दू शब्दक बदला गजलमे हिंदी शब्दक प्रयोग केला, तेनाहिते दुष्यंत कुमार इमरजेन्सीक विरुद्ध गजल रचना क्रांतिकारी रूपें केलथि। फैजकेँ साम्यवादी विचारक गजल लेल जानल जाइत अछि। मुदा ई गजलकार सभ विषय परिवर्तन केला आ समयानुसार शब्दक प्रयोग बेसी केला। एहिठाम हम किछु हिंदी गजलकारक मतलाक तक्ती देखा रहल छी ( जे-जे मतला हम एहिठाम देब तकर पूरा गजल ओ पूरा तक्कती हमर पोथी मैथिली गजलक व्याकरण ओ इतिहासमे देखि सकै छी)---

सूर्यकांत त्रिपाठी निरालाजीक एकटा गजलक मतला देखू--

भेद कुल खुल जाए वह सूरत हमारे दिल में है
देश को मिल जाए जो पूँजी तुम्हारी मिल में है

मतला (मने पहिल शेर)क मात्राक्रम अछि--2122+2122+2122+212 आब सभ शेरक मात्राक्रम इएह रहत। एकरे बहर वा की वर्णवृत कहल जाइत छै। अरबीमे एकरा बहरे रमल केर मुजाइफ बहर कहल जाइत छै। मौलाना हसरत मोहानीक गजल “चुपके चुपके रात दिन आँसू बहाना याद है” अही बहरमे छै जकर विवरण आगू देल जाएत। ऐठाँ ई देखू जे निराला जी गजलक विषय नव कऽ देलखिन प्रेमिकाक बदला विषय मिल आ पूँजी बनि गेलै मुदा व्याकरण वएह रहलै।

आब हसरत मोहानीक ई प्रसिद्ध गजलक मतला देखू---

चुपके चुपके रात दिन आँसू बहाना याद है
हमको अब तक आशिक़ी का वो ज़माना याद है

एकर बहर 2122+2122+2122+212 अछि।

आब दुष्यंत कुमारक ऐ गजलक मतलाक तक्ती देखू---

हो गई है / पीर पर्वत /सी पिघलनी / चाहिए,
इस हिमालय / से कोई गं / गा निकलनी / चाहिए।

एकर बहर 2122 / 2122 / 2122 / 212 अछि।

फैज अहमद फैज जीक ई गजलक मतला देखू--

शैख साहब से रस्मो-राह न की
शुक्र है ज़िन्दगी तबाह न की

एहि मतलाक बहर 2122-1212-112 अछि।

आब कने अदम गोंडवी जीक एकटा गजलक मतलाक तक्ती देखू—

ग़ज़ल को ले / चलो अब गाँ / व के दिलकश /नज़ारों में
मुसल्सल फ़न / का दम घुटता / है इन अदबी / इदारों में

एकर बहर 1222 / 1222 / 1222 / 1222 अछि।

एहिठाम हम ई मात्र भाव ओ कथ्यसँ संचालित गजलकारक कुतर्कसँ बँचबा लेल देलहुँ अछि। जखन दुष्यंत कुमार सन क्रांतिकारी गजलकार बहर ओ व्याकरणकेँ मानै छथि तखन नरेन्द्रजी वा आन कथित क्रांतिकारीकेँ व्याकरणसँ कोन दिक्कत छनि सेनै जानि।




भाव, कथ्य, विषय ओ भाषाक हिसाबसँ नरेन्द्रजीक गजलक सीमा---

उप शीर्षकमे "सीमा" एहि दुआरे लिखलहुँ जे  भाव, कथ्य ओ विषय लेल कोनो रोक-टोक नै छै जे इएह विषयपर लिखल जेबाक चाही वा ओहि विषयपर नै लिखल जेबाक चाही। अइ ठाम देल गेल नरेन्द्रजीक मैथिली-हिंदी गजलक भाव ओ भाषासँ स्पष्ट भेल हएत जे नरेन्द्रजी चाहे मैथिलीमे लिखथि वा हिंदीमे हुनकर विषय मार्क्सवादी विचारधाराक आगू पाछू रहैत छनि। ओना ई खराप नै छै मुदा दुनियाँ बहुत रास "भूख"सँ संचालित छै चाहे ओ पेटक हो, जाँघक हो कि धन, यश केर हो। जतबे सच पेटक भूख छै ततबे आन भूख सेहो। तँइ एकटा भूखक साहित्यकेँ नीक मानल जाए आ दोसर भूखकेँ खराप से उचित नै। नरेन्द्रजीकेँ सेहो कोनो विपरीत लिंगी आकर्षित केने हेथनि आ कोहबरमे हुनकर करेज सेहो धक-धक केने हेतनि। ओना विचारधाराकेँ महान बनेबा लेल ओ कहि सकै छथि जे ने हमरा कोनो विपरीत लिंगी आकर्षित केलक आ ने कोबरमे करेज धक-धक केलक। ई हुनकर सीमा सेहो छनि हुनकर विचारधाराक सेहो। अइ ठाम एकटा महत्वपूर्ण प्रश्न राखए चाहब जे नरेन्द्रजी वा हुनके सन क्रांतिकारी गजलकार सभ व्याकरणक ई कहि विरोध करै छथि जे व्याकरण कट्टरताक प्रतीक थिक मुदा आश्चर्य जे विषय ओ भावक मामिलामे नरेन्द्रजी वा हुनके सन गजलकार सभ कट्टर छथि। हमरा जतेक अनुभव अछि ताहि हिसाबसँ हम कहि सकैत छी कथित रूपसँ छद्म मार्क्सवादी सभ दोहरा बेबहार करै छथि अपन जीवन ओ साहित्यमे। व्याकरणक कट्टरताक विरोध आ विषय ओ भावक कट्टरताक पालन इएह दोहरा चरित्र थिक। एकै कथ्यपर कोनो विधाक रचना लिखलासँ ओहिमे दोहराव केर खतरा तँ होइते छै संगे संग पाठक इरीटेट सेहो भ' जाइत छै। कोनो रचना जखन पाठके लेल छै तखन पाठकक रुचिक अवमानना किए? हँ एतेक सावधानी लेखककेँ जरूर रखबाक चाही जे पाठकक अवांछित माँग जेना अश्लीलता, दंगा पसारए बला रचना नै लीखथि। एक बेर फेर हम हिंदीक संदर्भमे कहए चाहब जे हिंदी गजलक कथ्य बहुत विस्तृत छै। हिंदी गजलमे साम्यवादी विचारधारा बला गजलक अतिरिक्त आनो विषयपर गजल छै आ हमरा हिसाबें नरेन्द्रजी हिंदी गजलमे नै बढ़ि सकला आ ताहि लेल बहर ओ व्याकरण संग एकै कथ्यपर लिखबाक जिद सेहो जिम्मेदार छनि। एहिठाम देल नरेन्द्रजीक मैथिलीक चारिम गजलमे  "भेड़ सफर" मैथिलीमे अवांछित प्रयोग अछि। नरेन्द्रजीक भाषा प्रयोग खतरनाक अछि। हम जानै छी जे एना लिखलासँ लोक हमरा शुद्धतावादी मानए लागत मुदा हम ई चिंता छोड़ि लिखब जे हरेक भाषामे आन भाषाक शब्दक प्रयोग हेबाक चाही मुदा एकर मतलब नै जे सभ शब्दक प्रयोग मान्य भऽ जेतै। उदाहरण दैत कही जे मैथिलीमे "वफा" शब्द प्रचलित नै अछि मुदा "वफादार" शब्द बहुप्रचलित अछि। एहिठाम प्रश्न उठैत अछि जे जखन वफा शब्दक प्रचलन नै तखन वफादार कोना प्रचलित भेल। ई बात शुद्ध रूपसँ आम जनताक बात छै। आम जनताक जीह आ संदर्भमे "वफा" शब्द नै आबि सकलै जखन कि वफादार उच्चारणक हिसाबसँ आ संदर्भक हिसाबसँ प्रयोग होइत रहल अछि।

निष्कर्ष--- नरेन्द्रजी गजल बहर ओ काफियाक हिसाबसँ दोषपूर्ण तँ अछि मुदा मैथिलीक अपन समकालीन ओ पूर्ववर्ती गजलकार यथा सरसजी, रमेश, तारानंद वियोगी, विभूति आनंद, कलानंद भट्ट, सुरेन्द्रनाथ, धीरेन्द्र प्रेमर्षि, राजेन्द्र विमल संगे एहने आन गजलकार सभसँ बेसी ठोस अछि। हिनक हिंदी गजल सभ सेहो बहर ओ काफियाक हिसाबसँ दोषपूर्ण अछि आ ओहिठाम हिनकासँ पहिने बहुत रास व्याकरण ओ भाव बला गजलकार अपन मूल्याकंन लेल प्रतीक्षारत छथि तँइ हिंदी गजलमे हिनकर टिकब बहुत मोश्किल छनि। विश्वास नै हो तँ हिंदी गजलक गंभीर पाठक बनि देखि लिअ। जँ नरेन्द्रजी व्याकरण पक्षकेँ सम्हारि लेथि आ आनो विषयपर गजल कहथि तँ निश्चित ई बहुत दूर आगू जेता। आ जेना कि उपरक विवेचनसँ स्पष्ट अछि जे हिनका बेसी मेहनति नै करबाक छनि। किछु अहम् ओ व्याकरणकेँ हेय बुझबाक चक्करमे हिनक नीको गजल दूरि भेल अछि। ओना हम उपरे आशंका बता देने छी जे आने कथित क्रांतिकारी जकाँ ईहो व्याकरणकेँ बेकार मानता।

नोट---- 1) एहि समीक्षामे जतेक संदर्भ लेल गेल अछि से हमर पोथी "मैथिली गजलक व्याकरण ओ इतिहास"सँ लेल गेल अछि तँइ कोनो प्रकारक संदर्भ जेना पं गोविन्द झाजीक कोन पोथीक कोन पृष्ठपर चंद्रबिंदु युक्त स्वर लघु होइत छै आदि जनबाक लेल ओहि पोथीकेँ पढ़ू।
2) बहरक तक्तीमे जँ कोनो असावधानी भेल हो तँ पाठक सभ सूचित करथि। हम ओकरा सुधारब।




उपरक एहि समीक्षा सभहँक अतिरिक्त आरो बहुत रास आलेख अछि जकर लिंक निच्चा देल जा रहल अछि--


1) मैथिली गजल आ अभट्ठाकारी 
2) अज्ञानी संपादकक फेरमे मरैत गजल ( घर-बाहर पत्रिकाक अप्रैल-जून 2012 अंकमे प्रकाशित गजलक समीक्षा) 
3) मैथिली बाल गजलक अवधारणा

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