रविवार, 29 जनवरी 2023

गजल

दर्द देखायब करेजाक मानब की

काल्हि सपनोमे हँसी छोरि कानब की 

 

प्रेम पुरुषक छैक गोबर अहाँ कहलौं

चीर देखायब करेजा तँ गानब की

 

दोख सभमे नै कतउ एकमे हेते

संग हमरा ओहिमे सभक सानब की 

 

आइ छै अन्हार सगरो अहाँ कहलौं

आँखि मुनि लाइटसँ अन्हार आनब की

 

कनिक हमरोपर भरोसा क कय देखू

प्रेम ककरा छै कहै  'मनु'सँ जानब की

(बहरे कलीब, मात्राक्रम : 2122-2122-1222)

 ✍🏻 जगदानन्द झा ‘मनु’

सोमवार, 16 जनवरी 2023

RSS ( राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ) केर प्रार्थनामे छन्द

RSS ( राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ) वा कि भाजपासँ जुड़ल मैथिलकेँ ई बुझले नहि हेतनि कि संघ केर प्रार्थना सेहो छन्दमे छै। भुजंगप्रयात नामक छन्द जकरा गजलमे बहरे मुतकारिब कहल जाइत छै ताहीमे संघ केर प्रार्थना लिखल गेल छै। एकर सूत्र भेल 122-122-122-122 तँ देखू ई रचना जे कि संघ केर प्रार्थना छै-

नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे
त्वया हिन्दुभूमे सुखं वर्धितोऽहम्।
महामङ्गले पुण्यभूमे त्वदर्थे
पतत्वेष कायो नमस्ते नमस्ते॥१॥

प्रभो शक्तिमन् हिन्दुराष्ट्राङ्गभूता
इमे सादरं त्वां नमामो वयम्
त्वदीयाय कार्याय बद्धा कटीयम्
शुभामाशिषं देहि तत्पूर्तये।

अजय्यां च विश्वस्य देहीश शक्तिम्
सुशीलं जगद्येन नम्रं भवेत्
श्रुतं चैव यत्कण्टकाकीर्णमार्गम्
स्वयं स्वीकृतं नः सुगंकारयेत्॥२॥

समुत्कर्ष निःश्रेयसस्यैकमुग्रम्
परं साधनं नाम वीरव्रतम्
तदन्तः स्फुरत्वक्षया ध्येयनिष्ठा
हृदन्तः प्रजागर्तु तीव्राऽनिशम्।

विजेत्री च नः संहता कार्यशक्तिर्
विधायास्य धर्मस्य संरक्षणम्
परं वैभवं नेतुमेतत् स्वराष्ट्रम्
समर्था भवत्वाशिषा ते भृशम्॥३॥

शनिवार, 14 जनवरी 2023

जगदानन्द झा ‘मनु’क पच्चीस टा रुबाइ एक्केठाम

रुबाइ 1
आँचर नहि उठाबू आँखिसँ पी दि
हम जन्मसँ पियासल करेज जुड़ब दि
के कहैत अछि निसाँ शराबमे बड़ अछि 
कनी अपन प्रेमक निसाँमे जीबय दि

 

 

रुबाइ 2

हम पीलौं तँ लोक कहलक शराबी अछि 

कहू एतअ के नहि बहसल कबाबी अछि

बुझलौं अहाँ सभ   दुनियाक ठेकेदार 

हमरो  आँखिसँ देखू की खराबी अछि  

 

 

रुबाइ 3

पीब नै शराब तँ हम जी कोना क

फाटल करेजकेँ हम सी कोना क

सगरो जमाना भेल दुश्मन शराबक

सबहक सोंझा तँ आब पीब कोना क

 

 

रुबाइ 4

पीलौं शराब तँ दुनियाँ कहलक बताह 

बिन पीने ई दुनियाँ भेल अछि कटाह

जे नहि पीलक कहाँ अछि ओकरो महल

तँ पिबिए क' किएक नहि बनि जाइ घताह

 

 

रुबाइ 5

भेटल नहि सिनेह   तेँ शराबे पीलौं

दर्शन हुनक हरदम गिलासमे केलौं 

के कहैत अछि शराब छैक खराब ‘मनु’

बिन हुनक रहितौं शराबे सँ हम जीलौं

 

 

रुबाइ 6

ढोलक धम-धमा-धम बजैत किएक छै

घुँघरू खन-खना-खन खनकैत किएक छै

दुनू भीतरसँ छैक एक्केसन  खाली 

दुनू अपन गप्प नहि बुझैत किएक छै

 

 

रुबाइ 7

पीलौं नहि तँ की छै शराब बूझब की 

बिन पीने दुनियाँमे करब तँ करब की 

एक दोसरकेँ सभ अछि खून पीबैत 

खून छोड़ि शराबे पी कय देखब की 

 

 

रुबाइ 8

गोरी तोहर काजर जान मारैए 
छौंरा सभ सगर हाय तान मारैए 
पेएलक बड़ भाग काजर विधातासँ 

तोहर आँखिमे कते शान मारैए 

 

 

रुबाइ 9

काजर बुझि क अपन आँखिमे बसा लि
मित बना क कनीक करेजसँ लगा लि
ऐना जुनि अहाँ   कनखी नजरि घुमाऊ
आँखिक अपन  करीया काजर बना लिअ

 

 

रुबाइ 10

फूसियो जँ कनी अहाँ इशारा करितहुँ

भरि जीवन हम अहीँक बाटमे रहितहुँ

मुस्कीमे अहाँक अपन मोन लूटा क

तरहत्थीपर जान लेने  हम अबितहुँ

 

 

रुबाइ 11

अनकर घर जड़ा हाथ सेकै सभ कियो 
दोसरक करेजा तोरि हँसै सभ कियो 
अपना पर जे बिपति एलै कएखनो 
माथा पकडि हिचुकि-हिचुकि कनै सभ कियो

 

 

रुबाइ 12

कोन बिधि मरि क हम रुपैया कमेलौं

सुख चैन निन्न रातिकेँ अपन हरेलौं

गाम घरक सबटा सऽर संबंध तियागि

बिन कसूरे बाहर    वनवास बितेलौं

 

 

रुबाइ 13

घाट-घाट पर सुतल कतेको गोहि अछि 

साउध लोककेँ मोन लेने मोहि अछि 

धर्मक नाम पर खुजल कतेक दोकान

टाका लs  छनमे सभटा पाप धोहि अछि

 

 

रुबाइ 14

बाबूजीक करेजमे  सदिखन रहलहुँ

हुनक तन मन धन सगरो हम पेएलहुँ 
रौ पानि दाहीसँ सदिखन बचेलन्हि

सेबाक बेड़मे हम परदेश भगलहुँ 

 

 

रुबाइ 15

देह जान सबटा    बाबूजी देलन्हि 
जे किछु छी एखन बाबूजी केलन्हि
अपने रहि भूखे   हमर पेट भरलन्हि
सुधि अपन बिसरि हमरा मनुख बनेलन्हि

 

 

रुबाइ  16   

जे जन्म देलन्हि ओ कहलन्हि गदहा 

जे पोसलन्हि ओ  मानलन्हि गदहा

गदहा जँका सगरो जिन्दगी बितेलहुँ

जिनका बियाहलहुँ ओ बुझलन्हि गदहा 

 

 

रुबाइ 17

मैथिली साहित्यक आँच सुगैत अछि 

सगरो नव विधाक ज्वला पजरैत अछि 

कोटी नमन जिनकर बिछल जारैन अछि 

विदेहक बारल आगि 'मनु' लहकैत अछि

 

 

रुबाइ 18

सिस्टम आइकेँ किए बबाल बनल अछि 

नेता सभ तँ  एकटा जपाल बनल अछि 

बड़ बड़ बागर बिल्ला राज चलबैए

जनताक प्राणेपर सबाल बनल अछि  

 

 

रुबाइ 19

गामक अधिकारी भेला सैंया हमर 

कोना क पकड़तै कियोक बैंया हमर 

सभक पेटीक माल आब हमरे छैक 

सैंया लऽ लेथिन सभटा बलैंया हमर 

 

 

रुबाइ 20 

साँवरिया पिया अहाँ ई की कएलहुँ   

साउन चढ़ल छोड़ि चलि कोना गएलहुँ

बहल हवा शीतल सिहरैए हमर तन 

कोना रहब बिनु अहाँ बुझि नै पएलहुँ  

 

 

रुबाइ 21

गोरी तोर मुस्कीमे छौ जहर भरल 

नै एना मुँह खोल कते घायल परल 

जँ निकैल गएलौ फूलझड़ी सन हँसी 

बाटपर भेटत कतेको छौंड़ा मरल 

 


रुबाइ 22

नैन्हेटा हाथमे केहन लकीड़ छै

नै माय बाप ई केहन तकदीर छै

धो धो कऽ ऐँठ कप लकीड़ो खीएलै

नै सुनलक कियो ई दुनियाँ बहीर छै

 

 

रुबाइ 23

कर्जा कय क जीवन हम जीव रहल छी 

फाटल अपनकेँ कहुना सीब रहल छी 

सभ किछु लूटा क ‘मनु’ अपन जीवनकेँ

निर्लज जकाँ हम ताड़ी पीब रहल छी   

 

 

रुबाइ 24 

भिमन्यु जकाँ   चक्रव्यूहमे फसलौं 
नै बचब सिख हम अर्जुन बनि पेएलौं 

'मनुजीवनकेँ   एही  महाभारतमे
सगरो ठार हम कौरव के देखलौं

 

 

रुबाइ 25

हम जरैत छी    की अहाँ प्रकाशित रही

अहाँक सुख लेल खुशीसँ हम आँच सही 

बातीकेँ जरैत    दुनिया देखलक

तेल बनि हम तँ जरलौं दुख कतेक कही 

✍🏻  जगदानन्द झा ‘मनु’

                       

गुरुवार, 5 जनवरी 2023

गजल

भगवती जकर माए ओ टुगर कहल कोना 

हाथ छै दुनू भेटल रंक ओ रहल कोना

  

माथ पर हमर सदिखन जखन हाथ मैयाकेँ

एहिठाम रहलै कोनो  कठिन टहल कोना 

 

लेब छोरि कखनो देबाक बात कनि सोचू

सगर गाम देखू सुख शांति नहि बहल कोना

 

शेरकेँ घरे बैसल   नहि शिकार भेटै छै

घरसँ जे निकलबै नहि घर बनत महल कोना

 

काज नहि अपन हिस्सा केर ‘मनु’ करी हम सब

ई सहज सगर दुनिया नहि  बनत जहल कोना

(मात्राक्रम : 212-1222/ 212-1222 सभ पाँतिमे)

✍🏻 जगदानन्द झा ‘मनु’

रविवार, 1 जनवरी 2023

गजल

अते नहि करू मान मोहन मुरारी
अधम दिस दियौ ध्यान मोहन मुरारी

सहज ओ सरस बनि सरल ओ तरल बनि
सुनाबथि अपन तान मोहन मुरारी

रचा रास योगी सुना सत्य भोगी
रसिक रस कला ज्ञान मोहन मुरारी

शरणमे जे पहुँचल से सभ मोक्ष पेलक
नै जानथि अपन आन मोहन मुरारी

हमर भाव जे छै अहीं लेल रहलै
लियौ तुच्छ दुभि धान मोहन मुरारी

सभ पाँतिमे 122-122-122-122 मात्राक्रम अछि। गजलमे मान्य छूट लेल गेल अछि। ई बहरे मुतकारिब मुसम्मन सालिम अछि। सुझाव सादर आमंत्रित अछि। 

तोहर मतलब प्रेम प्रेमक मतलब जीवन आ जीवनक मतलब तों