मंगलवार, 29 दिसंबर 2009

गजल


चुप्प अछि मनुख गिद्दर भुकबे करतैक
निर्जीव तुलसी-चौरा कूकूर मुतबे करतैक



वीरता सीमित रहि जाए जँ गप्प धरि
लात दुश्मनक छाती पर पड़बे करतैक



विद्रोह आ अधिकार के अधलाह बुझनिहार
आइ ने काल्हि अपटी खेत मे मरबे करतैक



बसात दैत रहिऔ क्रांतिक आगि के
नहुँए-नहु सही कहिओ धुधुएबे करतैक



लिखैत रहू गजल विद्रोहक अनचिन्हार
केओ ने केओ एकरा गेबे करतैक

गजल


बाजू चोरक लेल ताला की
बेइमानक लेल केबाला की



लोक डुबैए भाव-अभाव मे
डुबबाक लेल नदी-नाला की



लोक खुश होइए तेल-मालिश सँ
एहि रोगिक लेल दवाइ-आला की



फूसेक घर पर होइत छैक दैवी प्रकोप
पाथरक मकान लेल ठनका-पाला की

शनिवार, 26 दिसंबर 2009

गजल


बान्हल हमर मुरेठाकें नहि, रहलै अछि ककरहु सन्त्रास
नहि विमलत बिनु कएने कथमपि, अन्यायी केर सत्यानाश ...

जड़ि जड़ि जेठक तिक्ख रौदमे, उपजाओल हम जे टा अन्न
करब हमहि उपभोग तकर, हम भूतक दास भविष्यक आश ...

गीड़ि लेलौं दुख केर चिनगीकें, उठल आइ मनमे आक्रोश
लगा रहल छी आगि तेहेन जे, भेटत नव गति नवल प्रकाश...

शोणित घाम बहाबैत रहलौं, अद्यावधि जे हम मतिमन्द
अहँक रक्त धारासँ सींचब, आब अपन हम हरियर चास ...

चुप्पी छलए द्रोण शकटारक, उद्घोषण कौटिल्यक थिक
सावधान शोषक ने करए देब, आब आन पर भोग-विलास...

लेब असूलि कौड़ी-छदाम धरि, अपन स्वेद केर मोल अमोल
खेलब फागु अहँक शोणितसँ, लिखब हमहि नबका इतिहास...

गजल

हमर विषपानसँ जुनि होउ प्रमुदित हम ने एसगर छी
अहँ केर शान ू हम ने एसगर छी।

अहँक बारूद हमरा शब्दसँ नहि लड़ि सकत कहिओ
रहू कलमच नुका कहुना कतहु जा, हम ने एसगर छी।

कोनो दुर्भिक्ष, दुर्दिनमे जकर धधरा ने भेलै क्षीण
सभटा से लपट मिलि कए कहैए हम ने एसगर छी।

गजल

जहर केर घोंट भरि सजनी जँ पीबी अहाँक हाथें हम
तँ सत्ते जीबि लेब जिनगी, अमर भ’ अहाँक हाथें हम

अहाँक आँचर के तुलनामे ने किछु थिक स्वर्ग केर उपवन
जकर सब सूतमे पाबी प्रबल सुख अहाँक हाथें हम

अहाँक मुस्कानसँ बिहुँसय दहो दिश जीवनक सपना
भरब ओहि अल्पनामे रंग उत्तम अहाँक हाथें हम।

अहाँक स्पर्शमे जादू ध्वनिक आरोहमे लोरी
अगिनकें होइत निर्मल हम देखल अछि अहाँक हाथें हम।

अहाँ जँ निकट रहि कए देब हमरा जीवनक निजता
तँ जीतब युद्ध सभटा हम अहँक संग अहाँक हाथें हम।

गजल

मोहमुक्ति

पैघक संरक्षण जं किनकहु
भेटि रहल हो भाइ।
गगनसं खसल शीत सम बूझी
जुनि कनिओं इतराइ।
वटवृक्षक छहरि सन शीतल,
रखने जे प्रभुताइ।
मेटा लैछ अस्तित्व अपन,
ओहि तरमे सभ बनराइ।
सागर सन कायामे कखनहु,
जं उफनए आक्रोश।
निधि तट पर बैसल दम्पति केर,
प्रणयने बुझए अताइ।
फांकथि तण्डुल कण पोटरीसं,
मुदित होथि दुहू मीत।
तेहेन बचल नहि कृष्ण एकहुटा,
विवश सुदामा भाइ।

शुक्रवार, 25 दिसंबर 2009

गजल


जनपथ छोड़ि राजपथ जायब से हमरा की नीक लगैए
उखरि मे मूड़ी घोसिआयब से हमरा की नीक लगैए


बक सँ कौआ बनल ठाढ़ छी काजर घर मे
तहि पर चानन ठोप लगायब से हमरा की नीक लगैए


चोरि करब हम मुदा शान सँ चौकीदारक संग रहब
लाज-शरम ताखा पर राखब से हमरा की नीक लगैए


भ्रष्ट दुपहरा केर एहन बहसल बसात मे
लंक-दहन लेल आगि पजारब से हमरा की नीक लगैए


छमा करू अरबिन उचित किन्नहुँ नहि बाजब
सुधिजन आगाँ गाल बजायब से हमरा की नीक लगैए

रविवार, 20 दिसंबर 2009

गजल


छाती तँ तानल छल शस्त्र उठयबाक बेर
कोंढ़ किए काँपि रहल लास उठयबाक बेर


पात बिछयबाक बे लोकक करमान छल
यार सभ अलोपित भेल ऐंठ उठयबाक बेर


आयातित महारानी फाहा बुझाइत छल
घोल किए परमाणुक भार उठयबाक बेर


दाउन बेर धानक तँ मारिते महाजन छल
एक्को टा जन नहि नार उठयबाक बेर


प्रवचन मे घौसय छथि धैरज केर महिमा ओ
सभ टा बिसरि जाइ छथि कष्ट उठयबाक बेर


अरबिन उतारा किछु विध्वंसक होइत अछि
नीक जकाँ सोचै छल प्रश्न उठयबाक बेर

शुक्रवार, 18 दिसंबर 2009

गजल

असली हाथीक नकली दातँ थिक संबंध
लोहछल मोनक खुरापात थिक संबंध

कोना बचतैक आयोगक गठन करू
सुखाएल गाछक हरिअर पात थिक संबंध

केकरो सँ दोस्ती तोड़ब ओतेक सहज नहि
करेजक आँगन मे अंगदक लात थिक संबंध

हटा लिअ अपन मूँह सँ इ मास्क तुरंत
शुद्ध प्राणरक्षक बसात थिक संबंध

बिनु बजने बैसल रहू तमाशा देखू
बैसल बुढ़िआक शह-मात थिक संबंध

शनिवार, 12 दिसंबर 2009

गजल







सागर में आगि बिजली आसमान में

बेचैनी कते ओ जे ऐछ हमर प्राण में



दिन एहनो आयल हमर जिनगी में

बुझ्लों जे अपन मिलल छल आन में



जिनगीक रंग ढंग की देखि हुनकर

रूप बदलैत छन छन आसमान में

गजल



1

रिश्ता दर्द्क ऐछ कागज पर नहीं लिखू

शब्द मर्मक ऐछ चौराहा पर नहीं बाजु

हवाक प्रत्येक झोंक अपन नहीं होइत ऐछ

राती ते अन्हार ऐछ दिन अपन नहीं होइत ऐछ

सव् व्यथा के साज नहीं भेटैत छैक

सवता गीत पर आह नहीं सजैत छैक

सागरक तीर पर बैसली शेफाली पिआस

नेनेजीवन में रमल छी जीवनक आस नेने


खंड खंड जीवन जिनाई जिअल नहीं जैत ऐछ

बुन्न जहर पिनाई पिअल नहीं जैत ऐछ

चिरी चिरी अपन अंतर सीवी, सीअल नहीं जैत ऐछ

भोरे भोर अख़बार में खून डकैती आतंक

शेफाली पढ़हल नहीं जैत ऐछ

बेर बेर देशप्रेम पर भाषण सुनल नहीं जैत ऐछ

दहेजक नाम पर बेटा बेचब सहल नहीं जैत ऐछ

मानवक भीढ़ में हेरायल मानवताक

खोजल नहीं जैत ऐछ

गिध्ह जकां देश कें नोचैत मानव के

देखल नहीं जैत ऐछ

3

कतेक मोसकिल ऐछ जिनाई ,

जिनगीक कैद में साँस लेनाई

कतेक कामना से छुब्ने छलों गुलाब के

आह तरहथ धरी में कान्ट उगी आयल

हृदयक घाह से नोर छलकी आयल

शोनितक खंड में व्यथा भरी आयल

चली देलों एही शहर से अहाँ

मोनक आँगन में जेना कैकटस निकली आयल

ऐना गरैत ऐछ करेज में यादी अहांक

जेना कैक्टस में कोनो फूल खिली आयल


डॉ. शेफालिका वर्मा

२६७, त्रितय ताल , भाई परमानन्द कालोनी

दिल्ली.....९, फ़ोन..०११ २७६०४७९० मो, ०९३११६६१८४७ , ०९९९०१६२०२१







शुक्रवार, 20 नवंबर 2009

गजल

भ्रष्टाचार अँहिक खूरक प्रतापे
दुराचार अँहिक खूरक प्रतापे

लोक पढ़ैए जान अरोपि कए
मुदा बेकार अँहिक खूरक प्रतापे

जनबल- धनबल आरो बल-बल
सरकार अँहिक खूरक प्रतापे

इद्धुत-विद्धुत सभटा फेल करबै की
अन्हार अँहिक खूरक प्रतापे

हाथ मिलाउ गरा लगाउ तैओ सभ
अनचिन्हार अँहिक खूरक प्रतापे

गुरुवार, 19 नवंबर 2009

गजल

गजल- वृषेश चन्द्र लाल

नजरि अहाँक चितकेर जूड़ा दैत अछि।
घुराकए एक क्षण जिनगी देखा दैत अछि।
धँसल डीहपर लोकाकए फेर स्वप्न महल
पाङल ठाढ़िमे कनोजरि छोड़ा दैत अछि॥

बजाकए बेर-बेर सोझे घुराओल छी हम
हँसाकए सदिखन हँसीमे उड़ाओल छी हम
बैसाकए पाँतिमे पजियाकए लगमे अपन
लतारि ईखसँ उठाकए खेहारल छी हम
सङ्केत एखनो एक प्रेमक बजा लैत अछि
जरए लेले राही जड़िसँ खरा दैत अछि
उठाकए उपर नीच्चा खसाओल छी हम
जड़ाकए ज्योति अनेरे मिझाओल छी हम
लगाकए आगि सिनेहक हमर रग-रगमे
बिना कसूर निसोहर बनाओल छी हम
झोंक एक आशकेर फेरो नचा दैत अछि
उमंगक रंगसँ पलकेँ सजा दैत अछि


(विदेह ई-पत्रिकाक 21म अंकसँ साभार)

गजल

गजल- रोशन जनकपुरी

नाचि रहल गिरगिटिया कोना, डर लगैए
साँच झूठमे झिझिरकोना, डर लगैए
कफन पहिरने लोक घुमए एम्हर ओमहर
शहर बनल मरघटके बिछौना, डर लगैए
हमरे बलपर पहुँचल अछि जे संसदमे
हमरे पढ़ाबे डोढ़ा-पौना, डर लगैए
आङनमे अछि गुम्हरि रहल कागजके बाघ
घर घरमे अछि रोहटि-कन्ना, डर लगैए
आँखि खोलि पढ़िसकी तऽ पढ़ियौ आजुक पोथी
घेँटकट्टीसँ भरल अछि पन्ना, डर लगैए
चलू मिलाबी डेग बढ़ैत आगूक डेगसँ
आब ने करियौ एहन बहन्ना, डर लगैए
(विदेह ई-पत्रिकाक 39म अंकसँ साभार)

गजल

करिछौंह मेघके फाटब, एखन बाँकी अछि
चम्कैत बिजलैँकाके सैंतब, एखन बाँकी अछि
उठैत अछि बुलबुल्ला फूटि जाइछ व्यथा बनि
पानिके अड़ाबे से सागर, एखन बाँकी अछि
बहैत पानिआओ किनार कतौ खोजत ने
अगम अथाह सन्धान, एखन बाँकी अछि
फाटत जे छाती सराबोर हएत दुनियाँ “भ्रमर”
ई झिसी आ बरखा प्रलय, एखन बाँकी अछि।

(विदेह ई-पत्रिकाक 21म अंकसँ साभार)

गजल

गजल- रामलोचन ठाकुर

चलू तिरंगा कने उड़ा ली हर्जे की।
आजादी के रश्म पुरा ली हर्जे की॥
आजादी के अर्थ कोश मे जुनि ताकी।
आजादी के जश्न मना ली हर्जे की॥
शुल्क-मुक्त आयात स्कॉच-सैम्पेन होइछ।
शिक्षा स्वास्थ्यक शुल्क वृद्धि मे हर्जे की॥
देशक प्रगति विकास विदेशी पूँजी स।
संसद हैत निलाम होउक ने हर्जे की॥
सौ-हजार भसि गेल बाढ़ि मे भसए दिऔ।
राता-राती शेठ बनत किछु हर्जे की॥
रौदी-दाही सबदिना छै रहए दिऔ।
जनता बाढ़ि अकाल मरत किछु हर्जे की॥
गाम-देहातक बात बैकवार्डक लक्षण।
मेट्रो प्रगति निशान देश के हर्जे की॥
नेता जिन्दावाद रहओ आवाद सदा।
देश चलै छै एहिना चलतै हर्जे की॥
(विदेह ई-पत्रिकाक 21म अंकसँ साभार)

शनिवार, 14 नवंबर 2009

गजल


सत्य तकबामे अछि मेहनति बड़, से आइ, नहि जानि किएक (२४ वार्णिक मात्रा - रदीफ नहि जानि किएक - काफिया - से आइ)
असत्यक ताकिमे छथि ओ पियासल, गे दा, नहि जानि किएक (२४ वार्णिक मात्रा - रदीफ नहि जानि किएक - काफिया - गे दा)



सुकाजमे देरी सेहो कखनो-काल होइए जे ककरोसँ तखन (२४ वार्णिक मात्रा)
मुदा सएह तर्कक बेढ़ बना लै छी, गै मा, नहि जानि किएक (२४ वार्णिक मात्रा - रदीफ नहि जानि किएक - काफिया - गै मा)


अपन भावनाक अधीन नहि अछि लोकवेद से बूझल अछि (२४ वार्णिक मात्रा)
भावनाक लहरिपर उठै-डोलै छी, हौ भाइ, नहि जानि किएक (२४ वार्णिक मात्रा - रदीफ नहि जानि किएक - काफिया - हौ भाइ)


मेहनतिक आसे टा छै आइ से गप बुझू कपारक बाते टा छै(२४ वार्णिक मात्रा)
प्रतिभा-जन्मजातपर जोर, बरगाही भाइ, नहि जानि किएक (२४ वार्णिक मात्रा - रदीफ नहि जानि किएक - काफिया - बरगाही भाइ)



लोकक बूझब बेस जरूरी, मुदा देखू तँ ई भीड़क जादूगर (२४ वार्णिक मात्रा)
दै छी जखन-तखन भाषण-भाख, नेता आइ, नहि जानि किएक (२४ वार्णिक मात्रा - रदीफ नहि जानि किएक - काफिया - नेता आइ)


बूझू भजार, इयार बड़ रास नहि भेटत आजुक व्यवस्थामे (२४ वार्णिक मात्रा)
मित्रक ताकिमे घुमै छी गामे-गामे, छी बौआइ, नहि जानि किएक (२४ वार्णिक मात्रा - रदीफ नहि जानि किएक - काफिया - बौआइत)


जे प्रेमसँ करब, तँ से गप आगाँ बढ़बे टा करत फौदाइत (२४ वार्णिक मात्रा)
बड़जोरी बढ़ऽमे लागल छी, छी धड़फड़ाइ, नहि जानि किएक (२४ वार्णिक मात्रा - रदीफ नहि जानि किएक - काफिया - धड़फड़ाइत)



आस भविष्यक लगेने, आस नीकक लगेने, धकियेने जाइत (२४ वार्णिक मात्रा)
खरापे भविष्यवाणी करै छी, मुँहचुड़ू नञि, नहि जानि किएक (२४ वार्णिक मात्रा - रदीफ नहि जानि किएक - काफिया - मुँहचुड़ू नाति)


कनेक जोर लगाऊ तँ होएत गऽ किछु अद्भुत सन, देखा चाही (२४ वार्णिक मात्रा)
बिनु जोर आस लगबिते छी, ससुरारि जाइ, नहि जानि किएक (२४ वार्णिक मात्रा - रदीफ नहि जानि किएक - काफिया - रहि ससुरारि)





ऊर्जा-परिणाम संगे रहैए ओ रहबे करैए, जोतल खेतमे(२४ वार्णिक मात्रा)
मोन हुस केने जे आस करै छी, ढेपियबइ, नहि जानि किएक (२४ वार्णिक मात्रा - रदीफ नहि जानि किएक - काफिया - ढेपियबैत)


प्रेम संगीत होअए, फेरसँ जे बनाएब नव राग गजलक (२४ वार्णिक मात्रा)
द्विगुणित होएत बुझै छी, टेमी उसकाबइ, नहि जानि किएक? (२४ वार्णिक मात्रा - रदीफ नहि जानि किएक - काफिया - टेमी उसकाबैत)


लोक बदलत से अछि मुदा मोनमे हम्मर सदिखन गुम्फित(२४ वार्णिक मात्रा)
सोचि, कनेक पलखति नै दै छी किए खौँझाइ, नहि जानि किएक (२४ वार्णिक मात्रा - रदीफ नहि जानि किएक - काफिया - ई खौँझाएत)


अलंकारविहीन गहनासँ होइत प्रसन्न, अलंकारहीन मन “ऐरावत” (२४ वार्णिक मात्रा)
अलंकृत भऽ भेर छी, दोकान मनिहारि आइ, नहि जानि किएक (२४ वार्णिक मात्रा - रदीफ नहि जानि किएक - काफिया - खोलि दोकान मनिहारी)

गजल

राजेन्द्र विमल (1949- )।चामत्कारिक लेखन-प्रतिभाक स्वामी राजेन्द्र विमल नेपालक मैथिली साहित्यक एक स्तम्भ छथि। मैथिली, नेपाली आ हिन्दी भाषाक प्राज्ञ विमल शिक्षाक हकमे विद्यावारिधि (पी.एच.डी.)क उपाधि प्राप्त कएने छथि। सुललित शब्द चयन एवं भाषामे प्राञ्जलता डा. विमलक लेखनक विशेषता रहलनि अछि। अपन सिद्धहस्त लेखनसँ ई कोनहु पाठकक हृदयमे स्थान बना लैत छथि। कथा आ समालोचनाक सङ्गहि मर्मभेदी गीत गजल लिखबामे प्रवीण डा. विमलक निबन्ध, अनुवाद आदि सेहो विलक्षण होइत छनि। कम्मो लिखिकऽ यथेष्ट यश अरजनिहार डा. विमलक लेखनीक प्रशंसा मैथिलीक सङ्गसङ्ग नेपाली आ हिन्दी साहित्यमे सेहो होइत रहलनि अछि। खास कऽ मानवीय संवेदनाक अभिव्यक्तिमे हिनक कलम बेजोड़ देखल जाइत अछि। त्रिभुवन विश्वविद्यालयअन्तर्गत रा.रा.ब. कैम्पस, जनकपुरधाममे प्राध्यापन कएनिहार डा. विमलक पूर्ण नाम राजेन्द्र लाभ छियनि। हिनक जन्म २६ जुलाई १९४९ ई. कऽ भेल अछि। साहित्यकारक नव पीढ़ीकेँ निरन्तर उत्प्रेरित करबाक कारणे ई डा.धीरेन्द्रक बाद जनकपुर-परिसरक साहित्यिक गुरुक रूपमे स्थापित भऽ गेल छथि। जनकपुरधामक देवी चौक स्थित हिनक घर सदति साहित्यक जिज्ञासुसभक अखाड़ाजकाँ बनल रहैत अछि।

नयनमे उगै छै जे सपनाकेर कोँढ़ी
फुलएबासँ पहिने सभ झरि जाइ छै
कलमक सिनूरदान पएबासँ पहिने
गीत काँचे कुमारेमे मरि जाइ छै
चान भादवक अन्हरिये
कटैत अहुरिया
नुका मेघक तुराइमे हिंचुकै छल जे
बिछा चानीक इजोरिया
कोजगरामे आइ
खेलए झिलहरि लहरिपर
ओलरि जाइ छै
हम किछेरेपर विमल ई बूझि गेलियै
नदी उफनाएल उफनाएल
कतबो रहौ
एक दिन बनि बालू पाथरक बिछान
पानि बाढ़िक हहाकऽ हहरि जाइ छै
के जानए कखन ई बदलतै हवा
सिकही पुरिवाकेर नैया डूबा जाइ छै
जे धधरा छल धधकैत धोंवा जाइ छै
सर्द छाउरकेर लुत्ती लहरि जाइ छै
रचि-रचिकऽ रूपक करै छी सिंगार
सेज चम्पा आऽ बेलीसँ सजबैत रहू
मुदा सोचू कने होइ छै एहिना प्रिय
सींथ रंगवासँ पहिने धोखरि जाइ छै

गजल

गजल ३
घसाइत आ खिआइत चोख फार भेल छी
गला-गला गात गजलकार भेल छी

शब्दकेर महफामे भावक वर-कनियाँ लऽ
सदिखन हम दुलकैत कहार भेल छी

धधराक धाह मारऽ पोखरि खुनाएल अछि
स्वयं भलहि प्यासल महाड़ भेल छी

हमरे फुनगी लटकल धानक जयगान-
मुदा, हमधरि तिरस्कृत पुआर भेल छी

भावक व्यापार मीत पुछू ने भेटल की
मलहम दऽ दर्दक अमार भेल छी

दुखियाक गीत जेँ गबैत अछि गजल हमर
लतखुर्दनि होइत तेँ पथार भेल छी

रूप-रङ्ग हम्मर आकार किए निरखै छी?
निज आखरमे हम तँ साकार भेल छी

अबियौ सहभोज करी बन्हन सभ तोड़िकऽ
प्रेमक हम परसल सचार भेल छी

गजल-४

जँ बजितहुँ हम फूसि तँ भगवाने छलहुँ
अछि आदति खराब जे कि साँच बजै छी

देश दलदल छै भेल फूटि नीतिक जे घैल
बुझू तकरे सुखएबा लेल आँच बजै छी

कियो कतबो कहौक शिवक ताण्डव छियै
हम तँ सत्ताकेँ नटुवाक नाँच बजै छी

भलहि झूलि जाइ ब्रह्म लेल फँसरी सही
तैयो पाकलकेँ कथमपि ने काँच बजै छी

मुक्तक सुरेन्द्रक लऽ गजल गढ़ि लेल
मुदा दू आ दू कहियो नइ पाँच बजै छी

गजल-५

आबि गेल गजलोमे रोशनसँ रोशनी
बढ़िते जेतैक एकर पोषणसँ रोशनी

हाथ सैंति मीत हमर मूहक उदार महा
मुदा कोना बरतै उद्घोषणसँ रोशनी?

आगिएमे जरिकऽ सोना हम चमकै छी
दुनियाभरि तेँ चतरल शोषणसँ रोशनी

भने सागपात खोंटब छोड़ि देल जनकपुरी
कहियो की भेल छै इमोशनसँ रोशनी!

बरू मोनक घाओमे लगा दियौ प्रेमर्षि
पसरत अवश्य प्रेम-लोशनसँ रोशनी

गजल-६


हम कहब ने कथमपि हथियार निकालू
कने धरगर यौ मीता अखबार निकालू

दासत्वक सिक्कड़िसँ जे अइ जकड़ाएल
जङ्ग खुरचैत ओ असली विचार निकालू

मुहदुब्बर भेल छी तेँ सभक्यो लुलुअबैए
लाल सोनितसन आखर ललकार निकालू

गौरवकेर गीत हमर गर्भहिमे मरिरहल
आब तकरोलए साँठल सचार निकालू

टकटकी लगौने पिआसल चकोर लेल
थोड़े चानहिसन मिठका दुलार निकालू

स्वर्णिम बिहान काल्हि बिहुँसत जरूर
बस गुजगुज एहि रातिसँ अनहार निकालू

केहनो हो तख्त-ताज जकरालग नतमस्तक
ओहनेसन कलमक तरवार निकालू

गजल-७

हम्मर सरकारक महा ने साफ नीयत छै
झूठ नइ बजैत अछि, साँचक कब्जीयत छै

गमलामे धान रोपि धान्याञ्चल यज्ञ करए
डण्ड खीचि मुसरीधरि खोलैत असलीयत छै

जनताक फोड़नसँ तेल कपचि टोइयामे-
बारए मशाल, जे इजोतक अहमीयत छै

लाख-लाख दीपक ई पसरल प्रकाश कहै-
आजुक एहि सुरुजमे जरूरे कैफीयत छै

कोरामिन लगा-लगा कोरमे सुतओने अछि
देश तेँ दुरुस्त छैक, सुस्त बस तबीयत छै

सभक मोनमे छैक मात्र आब प्रश्न एक-
हमर स्वप्न-आस्था की ओकरे मिल्कीयत छै!

गजल-८

जीवनकेर डोर छोड़ि हाथक लटाइमे
जुनि पुछू स्वाद की छै गुड्डीक कटाइमे

इतराएब-छितराएब कहू कोन गुमानपर
नान्हिटा शरीरो अछि भेटल बटाइमे

फटैत तँ दूधे छै, नेनक जे खानि छियै
खट्टा जाए दूधमे वा दूधहि खटाइमे

प्रेम छोड़ि संसारक रङ्ग सभ धोखड़ि जाइ
छोड़ू अगधाएब बैसि चकमक चटाइमे

कर्मक खड़ाम पहिरि शतपथपर चलबासन
पुण्य कतहु पाएब नहि रामक रटाइमे

जन्म आओर मृत्यु थिकै सृष्टिक विधानटा
मजा छैक जिनगीक सङ्घर्ष छटपटाइमे

गजल-९

बोल रे मन एकतारा बोलै टनन-टनन-टन-टन
धनुषक जनु टङ्कार छुटैछै झनन-झनन-झन-झन

कतबो घुमरैत आबै बदरा अपने जाएत बिलाकऽ
जेना तप्त ताबापर जल होइ छनन-छनन-छन-छन

प्रेमक डिबिया बचाकऽ राखी साँचक आँचर तरमे
बड़ उकपाती पवन बहैए सनन-सनन-सन-सन

जाधरि छौ साँसक घण्टी बस ताधरि छौ बजबाके
गनगनाइत रह तेँ रे मीता गनन-गनन-गन-गन

तोरे चुप्पीके मलजलसँ नित्य जे चतरल जाइछौ
जरा दही ओहि अकाबोनकेँ हनन-हनन-हन-हन

तोहर सुर-गर्जनसँ जरूरहि, ठाढ़ देबाल दरकतै
तखने चहुँदिस हँसी खनकतै खनन-खनन-खन-खन

गजल-१०

सिहकैत कनकन्नीमे सीटर छी, जर्सी छी
मखा-मखा प्रेम करी, मोनक प्रेमर्षि छी

चानक धियानमे धरती नहि छूटए, तेँ
डिहबारक भगता हम दूरक ने दर्शी छी

थाहैत आ समधानैत काँटोपर जे बढ़ैछ
फाटल बेमाएवला चरणक स्पर्शी छी

हम्मर वैदेहीक कुचर्च कएनिहार लेल
अँखिफोड़बा टकुआ छी, जिहघिच्चा सड़सी छी

गन्ध जँ लगैए तँ मूनि लिअ नाक अहाँ
तिरहितिया खेतक हम गोबर छी, कर्सी छी

जिनगीक कखहरबामे साँसक जे मात्रा अछि
दहिना दिर्घी नहि, बामाक हर्षि छी

गजल-११

मुक्तिगीत अम्मल अछि, जीयब हम अमलेमे
रचि-रचि सजाएब नेह-गीत मोन-कमलेमे

धूर-धूर खेत पड़ल शासनकेर मोहियानी
निष्ठाक अन्न तैयो उपजाएब गमलेमे

दूभिजकाँ चतरल अछि जे मोनक कणकणमे
उपटत धरखन्ने ओ धुरफन्दीक हमलेमे!

पघिलत जे बर्फ़ तखन ढाहि देत आरि-धूर
नाचि लिअए नङटे ओ भने एखन जमलेमे

शासनकेर भाथीसँ चिनगी अछि रञ्ज भेल
जुटिअबियौ खढ़-पात मेहनतिसँ घमलेमे
गजलक ई पनही पहीरि बाट चलैत काल
पओलहुँ जे हेआओ तेँ समर्पित ई विमलेमे

(विदेह ई-पत्रिकाक २२म अंकसँ साभार)

गजल


दु:खे टा चारू कात छै आ जी रहल-ए लोक
ताकैत आसरा कोनो दुःख पी रहल-ए लोक !

घर-द्वारि दहि गेलैक सब बच्चा टा छै बांचल
रेलवेक कात, बाट-घाट जी रहल-ए लोक !

सांझो भरिक खोराक ने छैक अगिला फसिल धरि
जीबा लए ई लाचार कोना जी रहल-ए लोक !

सबटा गमा क' जान बचा आबि त' गेलय
आब फेकल छुतहर जकां हद जी रहल-ए लोक !

जले पहिरना, बिछाओन जले छैक ओढना
जबकल गन्हाइत पानि-ए खा पी रहल-ए लोक !

सब वर्ष जकां एहू बाढ़ि मे कारप्रदार
रिलीफ नामें अपन झोरी सी रहल किछु लोक !

चलि तं पड़ल-ए जीप-ट्र्‌क-नावक से तामझाम
आब ताही आसरा मे बस जी रहल-ए लोक !

कहि तं गेलाह-ए परसू-ए दस टन बंटत अन्न
एखबार-रेडियो भरोसे जी रहल-ए लोक !

घोखै तं छथि जे देच्च मे पर्याप्त अछि अनाज
सड़ओ गोदाम मे, उपास जी रहल-ए लोक !

उमेद मे जे आब आओत एन जी ओ कतोक
द' जायत बासि रोटी, वस्त्र, जी रहल-ए लोक !

अछि कठिन केहन समय ई राक्षस जकां अन्हार
किछु भ' रहल अछि तय, तें तं जी रहल-ए लोक !

(विदेह ई-पत्रिकाक १८म अंकसँ साभार)

बुधवार, 11 नवंबर 2009

मैथिलीमे गजल आ एकर संरचना -धीरेन्द्र प्रेमर्षि

धीरेन्द्र प्रेमर्षि (१९६७- )मैथिली भाषा, साहित्य, कला, संस्कृति आदि विभिन्न क्षेत्रक काजमे समान रूपेँ निरन्तर सक्रिय व्यक्तिक रूपमे चिन्हल जाइत छथि धीरेन्द्र प्रेमर्षि। वि.सं.२०२४ साल भादब १८ गते सिरहा जिलाक गोविन्दपुर-१, बस्तीपुर गाममे जन्म लेनिहार प्रेमर्षिक पूर्ण नाम धीरेन्द्र झा छियनि। सरल आ सुस्पष्ट भाषा-शैलीमे लिखनिहार प्रेमर्षि कथा, कविताक अतिरिक्त लेख, निबन्ध, अनुवाद आ पत्रकारिताक माध्यमसँ मैथिली आ नेपाली दुनू भाषाक क्षेत्रमे सुपरिचित छथि। नेपालक स्कूली कक्षा १,२,३,४,९ आ १०क ऐच्छिक मैथिली तथा १० कक्षाक ऐच्छिक हिन्दी विषयक पाठ्यपुस्तकक लेखन सेहो कएने छथि। साहित्यिक ग्रन्थमे हिनक एक सम्पादित आ एक अनूदित कृति प्रकाशित छनि। प्रेमर्षि लेखनक अतिरिक्त सङ्गीत, अभिनय आ समाचार-वाचन क्षेत्रसँ सेहो सम्बद्ध छथि। नेपालक पहिल मैथिली टेलिफिल्म मिथिलाक व्यथा आ ऐतिहासिक मैथिली टेलिश्रृङ्खला महाकवि विद्यापति सहित अनेको नाटकमे अभिनय आ निर्देशन कऽ चुकल प्रेमर्षिकेँ नेपालसँ पहिलबेर मैथिली गीतक कैसेट कलियुगी दुनिया निकालबाक श्रेय सेहो जाइत छनि। हिनक स्वर सङ्गीतमे आधा दर्जनसँ अधिक कैसेट एलबम बाहर भऽ चुकल अछि। कान्तिपुरसँ हेल्लो मिथिला कार्यक्रम प्रस्तुत कर्ता जोड़ी रूपा-धीरेन्द्रक धीरेन्द्रक अबाज गामक बच्चा-बच्चा चिन्हैत अछि। “पल्लव” मैथिली साहित्यिक पत्रिका आ “समाज” मैथिली सामाजिक पत्रिकाक सम्पादन।


मैथिलीमे गजल आ एकर संरचना-धीरेन्द्र प्रेमर्षि

रूप-रङ्ग एवं चालि-प्रकृति देखलापर गीत आ गजल दुनू सहोदरे बुझाइत छैक। मुदा मैथिलीमे गीत अति प्राचीन काव्यशैलीक रूपमे चलैत आएल अछि, जखन कि गजल अपेक्षाकृत अत्यन्त नवीन रूपमे। एखन दुनूकेँ एकठाम देखलापर एना लगैत छैक जेना गीत-गजल कोनो कुम्भक मेलामे एक-दोसरासँ बिछुड़ि गेल छल। मेलामे भोतिआइत-भासैत गजल अरबदिस पहुँचि गेल। गजल ओम्हरे पलल-बढ़ल आ जखन बेस जुआन भऽ गेल तँ अपन बिछुड़ल सहोदरकेँ तकैत गीतक गाम मिथिलाधरि सेहो पहुँचि गेल। जखन दुनूक भेट भेलैक तँ किछु समय दुनूमे अपरिचयक अवस्था बनल रहलैक। मिथिलाक माटिमे पोसाएल गीत एकरा अपन जगह कब्जा करऽ आएल प्रतिद्वन्दीक रूपमे सेहो देखलक। मुदा जखन दुनू एक-दोसराकेँ लगसँ हियाकऽ देखलक तखन बुझबामे अएलैक-आहि रे बा, हमरासभमे एना बैर किएक, हम दुनू तँ सहोदरे छी! तकरा बाद मिथिलाक धरतीपर डेगसँ डेग मिला दुनू पूर्ण भ्रातृत्व भावेँ निरन्तर आगाँ बढ़ैत रहल अछि।
गीत आ गजलक स्वरूप देखलापर दुनूक स्वभावमे अपन पोसुआ जगहक स्थानीयताक असरि पूरापूर देखबामे अबैत अछि। गीत एना लगैत छैक जेना रङ्गबिरङ्गी फूलकेँ सैँतिकऽ सजाओल सेजौट हो। मिथिलाक गीतमे काँटोसन बात जँ कहल जाइछ तँ फूलेसन मोलायम भावमे। एकरा हम एहू तरहेँ कहि सकैत छी जे गीत फूलक लतमारापर चलबैत लोककेँ भावक ऊँचाइधरि पहुँचबैत अछि। एहिमे मिथिलाक लोकव्यवहार एवं मानवीय भाव प्रमुख भूमिका निर्वाह करैत आएल अछि। जाहि भाषाक गारियोमे रिदम आ मधुरता होइत छैक, ओहि भूमिपर पोसाएल गीतक स्वरूप कटाह-धराह भइए नहि सकैत अछि। कही जे गीतमे तँ लालीगुराँसक फूलजकाँ ओ ताकत विद्यमान छैक जे माछ खाइत काल जँ गऽरमे काँट अटकि गेल तँ तकरो गलाकऽ समाप्त कऽ दैत छैक।
गजलक बगय-बानि देखबामे भलहि गीतेजकाँ सुरेबगर लगैक, एहिमे गीतसन नरमाहटि नहि होइत छैक। उसराह मरुभूमिमे पोसाएल भेलाक कारणे गजलक स्वभाव किछु उस्सठ होइत छैक। ई कट्टर इस्लामीसभक सङ्गतिमे बेसी रहल अछि, तेँ एकर स्वभावमे “जब कुछ न चलेगी तो ये तलवार चलेगा” सन तेज तेवरबेसी देखबामे अबैत छैक। यद्यपि गजलकेँ प्रेमक अभिव्यक्तिक सशक्त माध्यम मानल जाइत छैक। गजल कहितहिँदेरी लोकक मन-मस्तिष्कमे प्रेममय माहौल नाचि उठैत छैक, एहि बातसँ हम कतहु असहमत नहि छी। मुदा गजलमे प्रेमक बात सेहो बेस धरगर अन्दाजमे कहल जाइत छैक। कहबाक तात्पर्य जे गजल तरुआरिजकाँ सीधे बेध दैत छैक लक्ष्यकेँ। लाइलपटमे बेसी नहि रहैत छैक गजल। मिथिलाक सन्दर्भमे गीत आ गजलक एक्कहि तरहेँ जँ अन्तर देखबऽ चाही तँ ई कहल जा सकैत अछि जे गजल फूलक प्रक्षेपणपर्यन्त तरुआरिजकाँ करैत अछि, जखन कि गीत तरुआरि सेहो फूलजकाँ भँजैत अछि।
मैथिलीमे संख्यात्मक रूपेँ गजल आनहि विधाजकाँ भलहि कम लिखल जाइत रहल हो, मुदा गुणवत्ताक दृष्टिएँ ई हिन्दी वा नेपाली गजलसँ कतहु कनेको झूस नहि देखबामे अबैत अछि। एकर कारण इहो भऽ सकैत छैक जे हिन्दी, नेपाली आ मैथिली तीनू भाषामे गजलक प्रवेश एक्कहि मुहूर्त्तमे भेल छैक। गजलक श्रीगणेश करौनिहार हिन्दीक भारतेन्दु, नेपालीक मोतीराम भट्ट आ मैथिलीक पं. जीवन झा एक्कहि कालखण्डक स्रष्टासभ छथि।
मैथिलीयोमे गजल आब एतबा लिखल जा चुकल अछि जे एकर संरचनाक मादे किछु कहनाइ दिनहिमे डिबिया बारबजकाँ लगैत अछि। एहनोमे यदाकदा गजलक नामपर किछु एहनो पाँतिसभ पत्रपत्रिकामे अभरि जाइत अछि, जकरा देखलापर मोन किछु झुझुआन भइए जाइत छैक। कतेकोगोटेक रचना देखलापर एहनो बुझाइत अछि, जेना ओलोकनि दू-दू पाँतिवला तुकबन्दीक एकटा समूहकेँ गजल बूझैत छथि। हमरा जनैत ओलोकनि गजलकेँ दूरेसँ देखिकऽ ओहिमे अपन पाण्डित्य छाँटब शुरू कऽ दैत छथि। जँ मैथिली साहित्यक गुणधर्मकेँ आत्मसात कऽ चलैत कोनो व्यक्ति एकबेर दू-चारिटा गजल ढङ्गसँ देखि लिअए, तँ हमरा जनैत ओकरामे गजलक संरचनाप्रति कोनो तरहक द्विविधा नहि रहि जएतैक।
तेँ सामान्यतः गजलक सम्बन्धमे नव जिज्ञासुक लेल जँ किछु कहल जाए तँ विना कोनो पारिभाषिक शब्दक प्रयोग कएने हम एहि तरहेँ अपन विचार राखऽ चाहैत छी- गजलक पहिल दू पाँतिक अन्त्यानुप्रास मिलल रहैत छैक। अन्तिम एक, दू वा अधिक शब्द सभ पाँतिमे सझिया रहलहुपर साझी शब्दसँ पहिनुक शब्दमेअनुप्रास वा कही तुकबन्दी मिलल रहबाक चाही। अन्य दू-दू पाँतिमे पहिल पाँति अनुप्रासक दृष्टिएँ स्वच्छन्द रहैत अछि। मुदा दोसर पाँति वा कही जे पछिला पाँति स्थायीवला अनुप्रासकेँ पछुअबैत चलैत छैक।
ई तँ भेल गजलक मुह-कानक संरचनासम्बन्धी बात। मुदा खालि मुहे-कानपर ध्यान देल जाए आ ओकर कथ्य जँ गोङिआइत वा बौआइत रहि जाए तँ देखबामे गजल लगितो यथार्थमे ओ गीजल भऽ जाइत अछि। तेँ प्रस्तुतिकरणमे किछु रहस्य, किछु रोमाञ्चक सङ्ग समधानल चोटजकाँ गजलक शब्दसभ ताल-मात्राक प्रवाहमय साँचमे खचाखच बैसैत चलि जएबाक चाही। गजलक पाँतिकेँ अर्थवत्ताक हिसाबेँ जँ देखल जाए तँ कहि सकैत छी जे हऽरक सिराउरजकाँ ई चलैत चलि जाइत छैक। हऽरक पहिल सिराउर जाहि तरहेँ धरतीक छाती चीरिकऽ ओहिमे कोनो चीज जनमाओल जा सकबाक आधार प्रदान करैत छैक, तहिना गजलक पहिल पाँति कल्पना वा विषयवस्तुक उठान करैत अछि, दोसर पाँति हऽरक दोसर सिराउरक कार्यशैलीक अनुकरण करैत पहिलमे खसाओल बीजकेँ आवश्यक मात्रमे तोपन दऽकऽ पुनः आगू बढ़बाक मार्ग प्रशस्त्र करैत अछि। गजलक प्रत्येक दू-पाँति अपनहुमे स्वतन्त्र रहैत अछि आ एक-दोसराक सङ्ग तादात्म्य स्थापित करैत समग्रमे सेहो एकटा विशिष्ट अर्थ दैत अछि। एकरा दोसर तरहेँ एहुना कहल जा सकैत अछि जे गजलक पहिल पाँति कनसारसँ निकालल लालोलाल लोह रहैत अछि, दोसर पाँति ओकरा निर्दिष्ट आकारदिस बढ़एबाक लेल पड़ऽ वला घनक समधानल चोट भेल करैत अछि।
गीतक सृजनमे सिद्धहस्त मैथिलसभ थोड़े बगय-बानि बुझितहिँ आसानीसँ गजलक सृजन करऽ लगैत छथि। सम्भवतः तेँ आरसीप्रसाद सिंह, रवीन्द्रनाथ ठाकुर, डॉ महेन्द्र, मार्कण्डेय प्रवासी, डॉ. गङ्गेश गुञ्जन, डॉ. बुद्धिनाथ मिश्र आदि मूलतः गीत क्षेत्रक व्यक्तित्व रहितहु गजलमे सेहो कलम चलौलनि। ओहन सिद्धहस्त व्यक्तिसभक लेल हमर ई गजल लिखबाक तौर-तरिकाक मादे किछु कहब हास्यास्पद भऽ सकैत अछि, मुदा नवसिखुआसभकेँ भरिसक ई किछु सहज बुझाइक।
मैथिलीमेकलम चलौनिहारसभमध्य प्रायः सभ एक-आध हाथ गजलोमे अजमबैत पाओल गेलाह अछि। जनकवि वैद्यनाथ मिश्र “यात्री” सेहो “भगवान हमर ई मिथिला” शीर्षक कविता पूर्णतः गजलक संरचनामे लिखने छथि। मुदा सियाराम झा “सरस”, स्व. कलानन्द भट्ट, डॉ.राजेन्द्र विमल सन किछु साहित्यकार खाँटी गजलकारक रूपमे चिन्हल जाइत छथि। ओना सोमदेव, डॉ.केदारनाथ लाभ, डॉ.तारानन्द वियोगी, डॉ.रामचैतन्य धीरज, बाबा वैद्यनाथ, डॉ. विभूति आनन्द, डा.धीरेन्द्र धीर, फजलुर्रहमान हाशमी, रमेश, बैकुण्ठ विदेह, डा.रामदेव झा, रोशन जनकपुरी, पं. नित्यानन्द मिश्र, देवशङ्कर नवीन, श्यामसुन्दर शशि, जनार्दन ललन, जियाउर्ररहमान जाफरी, अजितकुमार आजाद, अशोक दत्त आदिसमेत कतेको स्रष्टाक गजल मैथिली गजल-संसारकेँ विस्तृति दैत आएल अछि।
गजलमे महिला हस्ताक्षर बहुत कम देखल जाइत अछि। मैथिली विकास मञ्चद्वारा बहराइत पल्लवक पूर्णाङ्क १५, २०५१ चैतक अङ्क गजल अङ्कक रूपमे बहराएल अछि। सम्भवतः ३४ गोट अलग-अलग गजलकारक एकठाम भेल समायोजनक ई पहिल वानगी हएत। एहि अङ्कमे डा. शेफालिका वर्मा एक मात्र महिला हस्ताक्षरक रूपमे गजलक सङ्ग प्रस्तुत भेलीह अछि। एही अङ्कक आधारपर नेपालीमे मैथिली गजल सम्बन्धी दूगोट समालोचनात्मक आलेख सेहो लिखाएल अछि। पहिल मनु ब्राजाकीद्वारा कान्तिपुर २०५२ जेठ २७ गतेक अङ्कमे आ दोसर डा. रामदयाल राकेशद्वारा गोरखापत्र २०५२ फागुन २६ गतेक अङ्कमे। छिटफुट आनहु गजल सङ्कलन बहराएल होएत, मुदा तकर जानकारी एहि लेखककेँ नहि छैक। हँ, सियाराम झा “सरस”क सम्पादनमे बहराएल “लोकवेद आ लालकिला” मैथिली गजलक गन्तव्य आ स्वरूप दऽ बहुत किछु फरिछाकऽ कहैत पाओल गेल अछि। एहिमे सरससहित तारानन्द वियोगी आ देवशङ्कर नवीनद्वारा प्रस्तुत गजलसम्बन्धी आलेख सेहो मैथिली गजलक तत्कालीन अवस्थाधरिक साङ्गोपाङ्ग चित्र प्रस्तुत करबामे सफल भेल अछि।
समग्रमे मैथिली गजलक विषयमे ई कहि सकैत छी जे मैथिली गीतक खेतसँ प्राप्त हलगर माटिमे गुणवत्ताक दृष्टिएँ मैथिली गजल निरन्तर बढ़िरहल अछि, बढ़िएरहल अछि।


गजल १
झुट्ठो जे नहि डाइन नचौलक ओ भगता ओ धामी की
एको गाम जँ डाहि ने सकलहुँ तँ ओढ़ने रमनामी की

अक्षत-चानन धूप-दीपसँ जतऽ यज्ञ सम्पूर्ण हुअए-
ततऽ जँ क्यो हड्डी रगड़ैए, ओ कामी ओ कलामी की

बाप-माएपर्यन्त परोसै स्नेह जखन बटखारासँ-
नकली सभक दुलार लगैए, से काकी, से मामी की

सोनित सेहो शराब बनै छै शासनकेर सनकी भट्ठी
दियौ घटाघटि जे भेटए से, फुसियाही की दामी की

पोखरिक रखबारी पएबालए कण्ठी खालि बान्हि लिअ
फेर गटागटि घोँटने चलियौ, से पोठिया से बामी की

पाग उतारिकऽ कूदि गेल “प्रेमर्षि” सेहो अखाड़ामे
ढाहि सकल ने जुल्म-इमारत करतै ओहन सुनामी की
(वि.२०६२/०५/३०)


गजल २
मोन जँ कारी अछि तँ चमड़ी गोरे की करतै?
ममते जँ अरुआएल तँ माएक कोरे की करतै?

गगनसँ उतरै मेघ नयनमे जखन साँचिकऽ शङ्का
केहनो अन्हार चीरिकऽ जनमल भोरे की करतै?

नीम पीबिकऽ माहुर सेहो पचाबैत आएल छी तँ
काँटकेँ धाङैत डेगकेँ थोड़े अङोरे की करतै?

घामक सिँचल धरती छोड़ि ने जकरा कतौ भरोसा
तकरा लेल बनसीक सुअदगर बोरे की करतै?

आगि पीबिकऽ बज्र बनौने छै जे अप्पन छाती
तकरा आगाँ गोहिया आँखिक नोरे की करतै?

तैयो लागल “प्रेमर्षि” अछि बस प्रेमक खेतीमे
प्रेमक धन भेल घरमे जाबिड़ चोरे की करतै?
(वि.२०६२/०५/२०)

(विदेह ई-पत्रिकाक २१म अंकसँ साभार)

शनिवार, 7 नवंबर 2009

गजल

यथा एन्नी तथा ओन्नी एन्नी-ओन्नी तथैव च
यथा माए तथा बाप मुन्ना-मुन्नी तथैव च


बलू हमर करेज जरैए अहाँ गीत लिखै छी
यथा भँइ तथा अच्छर पन्ना-पन्नी तथैव च


देखहक हो भाइ बोंगहक पोता कोना करै हइ
यथा मुल्ला तथा पंडित सुन्ना-सुन्नी तथैव च


देवतो जड़ि पकड़ै हइ मुहेँ देखि कए बचले रहू
यथा मौगी तथा भूत ओझा-गुन्नी तथैव च


बान्हि क भँइ दूरा पर मगबै ढ़ौआ पर ढ़ौआ
यथा समधी तथा समधीनी बन्ना-बन्नी तथैव च


की करबहक हो भगवान एमरी सभ के
यथा मरनाइ तथा जिनाइ रौदी-बुन्नी तथैव च


बचले रहिअह अनचिन्हार एहि गाम मे सदिखन
यथा साँप तथा मनुख जहर चिन्नी तथैव च

गुरुवार, 15 अक्तूबर 2009

गजल

बम सँ डेड़ाएल अछि मनुख सँ हेमान धरि
जानवर तँ जानवर भगवत्ती सँ भगवान धरि


नीकक लेल सोहर खरापक लेल समदाउन
गाबि रहल गबैआ सोइरी सँ श्मसान धरि


समालोचना केकरा कहैछ छैन्ह किनको बूझल
अछि सगरो पसरल निन्दा सँ गुणगान धरि


राम नाम केर लूटि थिक लूटि सकी त लूटू
लूटि रहल छथि अगबे दक्षिणा पंडित सँ जजमान धरि

गुरुवार, 1 अक्तूबर 2009

गजल

गजल

एकटा चान जे हमरा लग राति मे अबैए
वएह त कागत पर पाँति मे अबैए


जीबाक लेल त जी सकैत छी अहाँक बिनु
मुदा कतेक दिन सएह त ने बुद्धि मे अबैए


आँखि सँ नमहर सपना नहि देखबाक चाही
फुनगीक आस मे बैसल जड़ि मे अबैए


पिजाएल लाठी किएक केकरा लेल
अपने खुट्टाक बड़द त जजाति मे अबैए


किएक केकरो घरवाली के कहबै हड़ाशंखनी
जखन अपने घरवालीक गनती हड़ाहि मे अबैए

मंगलवार, 22 सितंबर 2009

गजल

गजल

आबि जाइए अहाँक सोह केखनो-केखनो
आ फेर टुटि जाइए मोह केखनो- केखनो


छी आहाँ हमरा लग से तँ देखाइते अछि
मुदा अनुभव होइए विछोह केखनो-केखनो

मनुखक करेज बनल छैक पानि सँ संदेह नहि
मुदा भए जाइत छैक लोह केखनो-केखनो

जिनगी संगीत थिक सर्वथा सत्त तँए तँ
आबै छैक आरोह-अवरोह केखनो-केखनो


मरि गेलैक सऽख-आकांक्षा पहिनेहें केकरो
तैओ जिनगी लैए टोह केखनो-केखनो

मंगलवार, 15 सितंबर 2009

गजल

गज़ल
1
जीवन मे दर्दक सनेश शेष कुशल अछि
नहि कहब विशेष शेष कुशल अछि


अन्हरा सरकार चला रहल राज-काज
छैक बौकक इ देश शेष कुशल अछि

देह बदलैए आत्मा नहि सूनि लिअ
एहने छैक सरकार भेष शेष कुशल अछि

मुक्का आ थापड़क उपयोग के करत
खाली आँखिए लाल-टरेस शेष कुशल अछि

गजल कहब एतेक असान नहि अनचिन्हार
आब चलै छी बेस शेष कुशल अछि

बुधवार, 2 सितंबर 2009

गजल


गजल

अपन आँखि मे बसा लिअ हमरा
अपन श्वास मे नुका लिअ हमरा


जतए मरितो-मरैत जीबाक आश रहए
ओहने ठाम बजा लिअ हमरा


हाथ सटेला सँ कतहुँ मोन भरतैक
अपन करेजा सँ सटा लिअ हमरा

भरि जनगी बौआइते रहलहुँ हम
कनिकबे सही संग लगा लिअ हमरा


जाइत छी मुदा जएबाक मोन नहि अछि
कोनो सप्पत सँ घुरा लिअ हमरा


शनिवार, 29 अगस्त 2009

शेर्

संपूर्ण मिथिला एखन बाढ़ि सँ त्रस्त अछि। बाढ़िक प्रकोपक व्यवहारिक दंशक अनुभव हम हरेक साल करैत छी। एहि अनुभव के हम अपन गजल मे सेहो स्थान दैत छिऐक। जाहि बेर जेहन दर्द ताहि बेर तेहन शेर् ।एहि बेर हम अपन पूरा गजल नहि दए पाँच गोट भिन्न-भिन्न गजलक पाँच भिन्न- भिन्न शेर् दए रहल छी । पाँचो शेर् बाढ़ि पर अछि आ हमर व्यत्तिगत अनुभव अछि। मुदा एहि आशा मे अहाँ सभ के इ परसि रहल छी कहीं ने कहीं इ अहूँ लोकनिक इ व्यत्तिगत अनुभव होएत। त लिअ- इ पाँचो शेर्---------

1
कोशी-कमला बान्ह बन्हबौतीह अभियंता लागले रहल
हमरो गाम मे बाढ़ि ने अबितै सेहन्ता लागले रहल
2
नहि कानू चुप्प रहू आएत रीलीफ नेने नेता
तावत् घर-दुआरि बना आगँन बहारि राखब
3
जले जिनगी थिक भेटत हरेक पोथी मे लिखल
बाढ़िक मौसम मे तँए चारू दिस जिनगीए देखाइत छैक
4
बाढ़िक इ मौसम अछि धसना समय
मझँधार सँ आएल डुबैत अछि किनार मे
5
पानि सँ बाढ़ि छैक वा बाढ़ि सँ पानि
अपने पानि सँ दहा गेल धार

रविवार, 16 अगस्त 2009

गजल

1
अनका रोकबाक चक्कर मे अपने रुकि गेलहुँ
अनका बझएबाक चक्कर मे अपने बझि गेलहुँ


करेजक उत्फाल इ नहि छल बुझल हमरा
अनका बसएबाक चक्कर मे अपने बसि गेलहुँ


एतेक गँहीर हेतैक खाधि-खत्ता थाह नहि छल
अनका खसएबाक चक्कर मे अपने खसि गेलहुँ


माथक भोथ मुँहक चोख सभ दिनुका छी हम
अनकर कहैत-कहैत अपने कहि गेलहुँ


मिडिआक प्रभाव एतेक विस्तार मे नहि पूछू
अनका चिन्हा अपने अनचिन्हार रहि गेलहुँ

रविवार, 14 जून 2009

गजल

गजल
एना जे धड़ के नेड़ा बैसल छी
जिनगीक अर्थ के हेड़ा बैसल छी


नहि होइन्ह अन्हार हुनक कोबर मे
तँए अपन करेज जरा बैसल छी


उराहल इनारक पानि सँ कब्ज होइए
गंगोजल के सड़ा बैसल छी


भेटबे करत केओ ने केओ कहिओ
एही उम्मेद पर अपना के जिया बैसल छी


करोट फेरब के परिवर्तन कहल जाइए
जखन की आत्मे के सुता बैसल छी

शुक्रवार, 24 अप्रैल 2009

गजल

मोन पडै़ए केओ अनचिनहार सन
साइत कहीं इहए ने हो प्यार सन

जे नहि कमा सकए टका बेसी सँ बेसी
लोक ओकरे बुझैत छैक बेकार सन

समय कहाँ कहिओ खराप भेलैए
कमजोर आँखि के लगिते छैक अन्हार सन

किछु देखलिअइ चोके अनचोके मे
चोरक मुँह लगैए पहरेदार सन

बुधवार, 18 मार्च 2009

गजल


गजल

इहो अहाँक प्रेम छल पछाति जानल हम
खाली मूहँक छेम छल पछाति जानल हम


आगि लागल घर मे चिन्ताक गप्प नहि
कारण अपने टेम छल पछाति जानल हम


सड़ैत देखलिऐक किच्छो के कादो मे
अपने घरक हेम छल पछाति जानल हम


पिबैत रहलहुँ सदिखन विदेशी शीतल पानि
तैओ गरमी कम्म छल पछाति जानल हम


किछु तत्व कए दैत छैक अनचिन्हार सभ के
कथन मे दम्म छल पछाति जानल हम

अहाँ निरोध करु
अहाँ विरोध करु


लोक बढ़त आगाँ
अहाँ अवरोध करु


सुखी हएत गरीब
अहाँ क्रोध करु


धनी बनए धनी
एहने शोध करु


जनतंत्र अपने जन्मल
खूब ओध-बाध करु


सत्ता-सुरक्षा अपने
खूब अपराध करु


खाएब अहाँ फास्ट-फूड
बरबाद बाध करु

शनिवार, 28 फ़रवरी 2009

गजल

गजल

इजोतक दर्द अन्हार सँ पुछियौ
धारक दर्द कछेर सँ पुछियौ


नहि काटल गेल हएब जड़ि सँ
काठक दर्द कमार सँ पुछियौ


समदाउनो हमरा निर्गुणे बुझाएल
कनिञाक दर्द कहार सँ पुछियौ


सभ पुरुषक मोन जे सभ स्त्री हमरे भेटए
अवैध पेटक दर्द व्यभिचार सँ पुछियौ


करबै की हाथ आ गला मिला कए
अनचिन्हारक दर्द चिन्हार सँ पुछियौ

शनिवार, 14 फ़रवरी 2009

गज़ल

गजल

देश चुल्हा मे गेल संसद मे हल्ला मचि रहल
राष्ट्र पर खतरा भेल संसद मे हल्ला मचि रहल

अकाल, बाढ़ि, भूकंप आबि चल गलैक
ए.पीक भत्ता लेल संसद मे हल्ला मचि रहल

घोटाला पर घोटाला बैसल कमीशन जाँचक
रिर्पोटक औचित्य लेल संसद मे हल्ला मचि रहल

टूटि गेल सपना मेटि गेल आजादीक अर्थ
निच्चा काँट उपर बेल संसद मे हल्ला मचि रहल

एकटा लाश भेटल बाट पर अनचिन्हार
ओकर जाति लेल संसद मे हल्ला मचि रहल

शनिवार, 31 जनवरी 2009

गजल


भोज ने भात हर-हर गीत की करू
लागल भूख कहू मीत की करू

जिनगी अजगुत जिबनिहार विचित्र
केखनो घृणा केखनो प्रीत की करू

प्रेम बदलि रहल समयो सँ बेसी
केखनो आगि केखनो शीत की करू

मनुख के पहिचानब बड्ड कठिन
केखनो बिग्घा केखनो बीत की करू

चललहुँ मिलाबए गरा सँ गरा
भेटल दुश्मन नहि मनमीत की करू

बुधवार, 14 जनवरी 2009

गजल

गजल

मछगिद्ध जँ माछ छोड़ि दिअए त डर मानबाक चाही
लोक जँ नेता भए जाए त डर मानबाक चाही

रंडी खाली देहे टा बेचैत छैक अभिमान नाहि
मनुख अस्वभिमानी हुअए त डर मानबाक चाही

अछि विदित शेर नहि खाएत घास भुखलों उत्तर
वीर अहिंसक बनए त डर मानबाक चाही

माएक रक्षा करैत जे मरथि सएह विजेता
माए बेचि जँ रण जितए त डर मानबाक चाही

सम्मानक रक्षा करब उद्येश्य अछि गजल केर
जँ उद्येश्य बिझाए त डर मानबाक चाही

तोहर मतलब प्रेम प्रेमक मतलब जीवन आ जीवनक मतलब तों