मोन पडै़ए केओ अनचिनहार सन
साइत कहीं इहए ने हो प्यार सन
जे नहि कमा सकए टका बेसी सँ बेसी
लोक ओकरे बुझैत छैक बेकार सन
समय कहाँ कहिओ खराप भेलैए
कमजोर आँखि के लगिते छैक अन्हार सन
किछु देखलिअइ चोके अनचोके मे
चोरक मुँह लगैए पहरेदार सन
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शुक्रवार, 24 अप्रैल 2009
गजल
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अनचिन्हार,
बिना छंद-बहरक
हमर पूरा नाम थिक आशीष कुमार मिश्र। गामक नाम अछि भटरा-घाट(बिस्फी)।हम वर्तमान मे लाजिस्टिक सेक्टर (ए.बी.सी इंडिया लिमिटेड) मे लेखाकर्मी के पद पर कार्यरत छी।हमर शिक्षा गाम एवं कलकत्ता मे भेल। आब इ ब्लागक संग अपने लोकनिक शरण मे छी।आशा अछि जे हमर प्रयास आहाँ सभ के पसिन्न होएत।
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