प्रस्तुत अछि अरविन्द ठाकुरक गजल- अरविन्द ठाकुर
साभार विदेह
छिछिआइछ उत्कंठा हमर खन आर लग, खन पार लग
हमर लिखल उजास सभक मोल की संसार लग
जाल मुँहमे बोल नञि, छपय बहेलिया के बयान
चिड़ैक बोली बुझत से नञि लूरि छै अखबार लग
रंगबिरही जिनीससँ ठाँसल रहै सभटा दोकान
किन्तु जन-बेचैनी के औषधि नञि रहै बजार लग
एक समझौता सँ शासन वामनक सरकस बनल
नञि छलै पट्ठा कोनो दमगर बचल दरबार लग
बुन्न मे सागर भरल, अणु मे भरल ऊर्जा अपार
बिन्दु सरिपहुँ लम्बवत भए ठाढ़ होइछ आधार लग
लोक-लादल नाह बाढ़िक पानि मे अब-तब मे छै
ओ घिंचाबय छथि फोटो बान्ह पर पतवार लग
नफा के वनतंत्र मे पग-पग बिचौलिया रक्तबीज
अकिल गुम्म अछि, केकर मारफत अर्जी दी सरकार लग
उपरचन्ती माल के चस्का चढ़ल “अरबिन” एतेक
बनल छी लगुआ कि भिरुआ, जायब नञि अधिकार लग
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बुधवार, 15 सितंबर 2010
गजल
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arvind thakur
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