1
मैथिलक बड़ हितैषी बनल
मैथिलीक सोधनिहार छथि
2
उपरक दू पाँति बैकुंठ झा रचित छनि। बैकुंठ झा मूलतः
लघुकथाकार छथि। मुदा हुनका लघुकथा लिखबाक जरूरते किए पड़लनि जखन कि मैथिलीमे कथा नामक
विधा छलैहे। आब बैकुंठजी हमरा बहुत रास बात कहता (मने कथा ओ लघुकथाक संदर्भमे), बहुत
रास अंतर देखेताह। मुदा बैकुंठजी ई बात ई अंतर तखन बिसरि जाइत छथि जखन कि ओ गजल विधामे
प्रवेश करै छथि आ गीत-ओ कविताक उपर गजलक लेबल लगा लै छथि। जतबे अंतर कथा आ लघुकथामे
भऽ सकैए ततबे अंतर गीत-कविता ओ गजलमे छै। जँ लघुकथाक नियम छै तँ गजलक नियम सेहो छै
मुदा बैकुंठजी लघुकथा बेरमे तर्क देता मुदा गजल बेरमे कुतर्क से हमरा विश्वास अछि।
3
"रखबार" नामसँ एकटा कथित गजल संग्रहक आएल
अछि जकर लेखक बैकुंठ झा छथि। एहि पोथीक समर्पण एवं भूमिका दूनू पद्येमे अछि जे की नीक
लगैत अछि। समपर्णसँ ई पता लगैए जे मैथिलीपुत्र प्रदीपजी पहिल संसर्ग बैकुंठजीकेँ भेटलनि
आ भूमिकासँ ई पता चलैए जे बैकुंठजी भ्रम आ पूर्वाग्रह दूनूमे फँसल छथि आ हुनकर रचना
सभमे व्याकरणिक स्थिति छनि से हुनको नै पता छनि। चारि पाँति देखल जाए--
"..मात्राक खाँच-साँचमे कसल-फँसल नहि होय गजल
अछि से संभव शिरोधार्य सब समालोचना करब ग्रहण
अथवा बुझना जाय गजल यदि छंद वितानमे खुटेसल
ओहो नहि सायास भेल अछि सहजहिं भेलय शब्दांकन.."
एहि केर बाद आरो-आरो तर्क (??) सभ पद्येमे देल गेल
अछि।
4
अतेक तँ निश्चित जे बैकुंठजीकेँ गजलक व्याकरण पता
नै छनि (अथवा ओ पूर्वाग्रहक कारणे जानए नै चाहै छथि अथवा डर छनि जे सही चीज मानि लेलासँ
हुनकर पचासो बर्खक तपस्या खंडित भऽ जेतनि) मुदा जे लोक मात्रिक छंदक अभ्यास केने छथि
हुनकर रचना गजलमे बहरे मीरक नजदीक जा सकैए। हम मात्र नजदीक कहि रहल छी पूरा नै। आ हम
बैकुंठजीकेँ जतेक जानै छियनि ताहिमे ओ मात्रिक छंदक नीक अभ्यासी छथि। तँइ हुनकर रचना
सभमे मात्राक अंतर कम्मे छनि मुदा तैयो मूल अंतर संयुक्ताक्षर एवं चंद्रबिंदु बला अक्षर
सभ छै। जाहि कारणसँ प्राचीन मैथिलीमे संयुक्ताक्षर बला नियम हटाएल गेल रहै तकरा सभ
बिसरि गेल छथि आ धड़ल्लेसँ संस्कृतक शब्द प्रयोग कऽ रहल छथि। एहन स्थितिमे अहाँ कि
हम लाठी हाथे संयुक्ताक्षर बला नियम मानू वा कि नै मानु मुदा उच्चारणमे, आवृतमे ओ नियम
अपने आबि जाइत छै। ओहिपर केकरो वश नै छनि। तँइ हम सभ संयुक्ताक्षर बला नियम मानि रहल
छी आ जे भाषाक जानकार हेता आ जिनका रचना संग भाषोक संरक्षण करबाक हेतनि से एहि नियमकेँ
मानताह। चंद्रबिंदु बला प्रसंगमे मैथिलीमे अराजकता पसरल अछि। पं.दीनबंधु झाजी (मिथिला
भाषा विद्योतनमे) चंद्रबिंदुयुक्त अक्षरकेँ दीर्घ मानै छथि जे कि चलि पड़ल मुदा पं.
गोविन्द झा “मैथिली परिचायिका” केर पृष्ठ 20पर लिखै छथि जे
“अनुस्वार भारी होइत अछि आ चंद्रबिंदु भारहीन” तकरा जनबाक
बेगरता मैथिलीक विद्वान सभकेँ नै बुझेलनि। चंद्रबिंदु भारहीन मने लघु होइत छै। ई तथ्य
जानब उचित हेतनि बैकुंठ जी लेल। तँइ हम ई कहि सकैत छी जे बैकुंठजीक रचना सभ बहरे मीरक
संरचनामे होइत-होइत रहि गेल अछि आ स्पष्ट ओ गजल नै अछि। एहन स्थितिमे आब हम रचनामे
भाव ओ वैचारिकत देखब। रचनापर बात करैत काल हम बेसी उदाहरण नै देब। पाठक पोथी कीनथि
आ ओहि उदाहरण सभकेँ पढ़थि आ जानथि से हमर उद्येश्य अछि।
5
एहि पोथीक पहिल रचना भक्तिपरक अछि आ ई कोनो खराप
बात नै छै। प्रगतिशीलता केर माने बहुत किछु होइत छै। मात्र परंपराकेँ छोड़ए बलाकेँ
प्रगतिशील नै मानल जा सकैए। आ ठीक इएह बात बैकुंठजी अपन तेसर रचनामे देने छथि। अहिंसक
बंसी विरल प्रतीक अछि एकर स्वागत हेबाक चाही। तेनाहिते साँपक जासूस मूस ईहो विरल प्रतीक
अछि। हिनकर वैचारिकतामे विरोधाभास सेहो छनि। उदाहरण लेल दू रचनाक दू-दू पाँति देखू--
अगर उठौलक कियो सवाल
भौं-भौं-खौं जवाबमे भेल
फेर आन दोसर रचनामे कहै छथि-
ढेप फेकि गाड़ल झंडापर तों नहि नमहर भ जएबें
मान तहन बढ़तौ ओहू सँ झंडा ऊँच गाड़ पहिने
स्पष्ट भऽ गेल हएत जे हमर इशारा किम्हर अछि।
6
मैथिलीमे जे गजलक व्याकरणकेँ नै मानै छथि ताहि लिस्टमेसँ
किछु एहन नाम छथि जिनका गजलपर एबामे बेसी मेहनति नै करए पड़तनि। जेना सुधांशु शेखर
चौधरी, नरेन्द्र, बाबा बैद्यनाथ, अरविन्द ठाकुर आब एहि लिस्टमे बैकुंठ झा सेहो छथि।
सुधांशु शेखर चौधरी बहुत पहिने एहि संसारसँ चलि गेलाह तँइ ओहिपर बात नै हो। नरेन्द्रजी
पूर्वाग्रहमे छथि तँइ ओ आगू नै जा सकताह। बाबा बैद्यनाथजीक गजल संग्रह आलोचना हम 2013
मे केने रही। ओ आहत भेल रहथि आ हमर बातक पुष्टि लेल ओ हिंदी गजलकार सभ लग गेल रहथि।
जखन ओत्तहु पता लगलनि जे बिना बहर-काफियाक गजल नै होइत छै तखन ओ बहरक अभ्यास केलाह
आ हिंदीमे लगभग सात-आठ टा गजल संग्रह प्रकाशितो भेलनि। मुदा दुर्भाग्य मैथिलीक जे ओ
ओतेक मात्रामे मैथिली गजल सिखलाक बाद नै लिखलाह। अरविन्द ठाकुर साफे कहै छथि जे अइ
उम्रमे सीखब पार नै लागत।
कुल मिला कऽ भाव केर हिसाबसँ देखल जाए तँ निश्चिते
ई पोथी पाठककेँ पढ़बाक चाही।
(३३४ म अंक १५ नवम्बर २०२१ मे प्रकाशित)
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