बुधवार, 19 नवंबर 2025

गजल

अन्याय केर महिमा खूब गाउ सर
फेर उपदेश केर तान सुनाउ सर

के कहैए अहाँ भ्रष्टाचारी छी
बस अहिना सस्ता दरपर बिकाउ सर

फल्लाँ नेता करबे करता विकास
एहन फालतू बात सभ हटाउ सर

मलाइ छेना रसगुल्ला रसमलाइ
घोंटलहुँ अहाँ कत्ते से गनाउ सर

हमर गजलमे अहाँक नामे नै अछि
सुनि कऽ हमर शेर अहाँ नहि लजाउ सर

सभ पाँतिमे 22-22-22-22-22 मात्राक्रम अछि। ई बहरे मीर अछि। सुझाव सादर आमंत्रित अछि। 

गुरुवार, 9 अक्टूबर 2025

गजल

सदिखन अपने सन लागत समूह
चुप्पे चुप मूडी काटत समूह

नै बाजब से सिखने छी अहींसँ
इम्हर उम्हर छै आहत समूह

बल धन संपति ओ विद्या विवेक
सभ किछु कम हो से चाहत समूह

ढौआ कम भेने कहता कुपात्र
आ ढौआ रहने चाटत समूह

जेना जेना करबै नीक काज
बस तेना तेना छाँटत समूह


सभ पाँतिमे 22-22-22-2-121 मात्राक्रम अछि। ई बहरे लोचन अछि। सुझाव सादर आमंत्रित अछि। 

सोमवार, 1 सितंबर 2025

गजल

नुका कय मुँह अपन सगरो कनै छी हम 

विरहकेँ आगिमे  सदिखन जरै छी हम 


लगा नेहक किए ई आँच चलि गेलौं

करेजक दर्द सहियो नहि सकै छी हम

 

लगन एतेक सतबै छै बुझल नहि छल
विछोहे राति दिन घुटि-घुटि मरै छी हम 

 

नजरिमे छी सभक हारल बताहे टा

बुझत की आन आनंदे रहै छी हम

 

पिया ओता हमर ई सोचि जीबै छी

लगोने आश ‘मनु’ रस्ता तकै छी हम 

 
(बहरे हजज, मात्रा क्रम : 1222-1222-1222)

✍🏻 जगदानन्द झा ‘मनु’

 


मंगलवार, 15 जुलाई 2025

गजल


आबि जायब हमर अंतिम बिदाई पर

फूल दय देब हाथसँ मुँह दिखाई पर 

 

नोर नहि देखलक आँखिक कियो जगमे

नजरि सबहक   हमर हाथक मिठाई पर 

 

पोसलौं पेट  जीवन भरि कमा हम मरि

घेंट लेलक कटा हँसि ओ  फिदाई पर

 

आइ दिन धरि तँ सब सहिते छलौंहेँ हम

आबि जिद गेल पापीकेँ मिटाई पर

 

केकरा ‘मनु’ कहत आ के सुनत एतअ

सब हँसै छैक आनक पिटाई पर

(बहरे मुशाकिल, मात्राक्रम - 2122-1222-1222)

✍🏻जगदानन्द झा ‘मनु’

 


शनिवार, 31 मई 2025

गजल

बड़ सुनल जस  माइ हे तोहर दुअरिया

जोड़ि कल अनलौं  सिनेहक हम गठरिया

 

सूप डाला कोनिया सभमे अरज छै

थाढ़ दुखलै गोरबा   फेरूँ नजरिया

 

दुख दुखीयाकेँ हरै   परमेश्वरी तूँ

माइ हमरे बेरिया मुनलअ किबरिया

 

दिन छये देने छलौं शोभा अपन जे

फेर दर्शन दिअ अहाँ हम छी भिखरिया

 

मोन टूटल जाइए  छल देह टूटल

‘मनु’ तकै छै माइकेँ सगरो नगरिया

 

(बहरे रमल, मात्राक्रम 2122-2122-2122)

✍🏻 जगदानन्द झा ‘मनु’

 

 


मंगलवार, 13 मई 2025

रुबाइ

जीवन मृत्युकेँ छोर तोहर हाथमे

कठपुतली इ जग डोर तोहर हाथमे

हम सरनागत एलौं तोहर सरनमे

सगरो कष्टक तोड़ तोहर हाथमे

             ✍🏻 जगदानन्द झा ‘मनु’



रविवार, 11 मई 2025

रुबाइ


जिनका देलौं करेजा वेपारी

मोनसँ खलेलनि जनि हमर लाचारी

हम रहि सिधा साधा सज्जन बेचारी

पहुँचल फेरल बड़ पैघ खेलाड़ी

                  ✍🏻 जगदानन्द झा ‘मनु’



शनिवार, 26 अप्रैल 2025

रुबाइ

हे कृष्ण फेर अवतार एकबेर लिअ 

पापी कुकरमी सभकेँ आबि घेर लिअ 

धरती अहाँक डूबि रहल अधर्ममे 

जतरा आबि एक बेर अपन फेर लिअ 

                ✍🏻 जगदानन्द झा ‘मनु’

 


गुरुवार, 9 जनवरी 2025

गजल

अनलौं करेजा अपन स्वीकार करु

हमरासँ एना   अहाँ नै   बेपार करु

  

गरदनि उठा कनिक हमरा नहि देखबै

हम आब एतेक कोना सिंगार करु

 

सस्ता महग बाढ़ि रौदी सगरो भरल

सोइच गरीबक अहाँ किछु सरकार करु

 

हरलौं कते युगसँ तन मन धन बनि अपन

ऐ आतमा  पर हमर नहि अधिकार करु

 

झूठक बटोरल अहाँकेँ बहुमत रहल

‘मनु’ नहि सड़ल बाँटि जनता बेमार करु

 

(बहरे सगीर, मात्राक्रम - 2212-2122-2212)

✍🏻 जगदानन्द झा ‘मनु’


रविवार, 5 जनवरी 2025

अपने एना अपने मूँह-49

जनवरी २०२४ मे कुल दू टा पोस्ट भेल जाहिमे आशीष अनचिन्हारक दू टा गजल अछि।

फरवरी २०२४ मे कुल दू टा पोस्ट भेल जाहिमे जगदानंद झा मनुक दू टा गजल अछि।

मार्च २०२४ मे कुल तीन टा पोस्ट भेल जाहिमे जगदानंद झा मनुक दू पोस्टमे एक गजल आ एक रुबाइ अछि। आशीष अनचिन्हारक १ पोस्टमे १ टा भक्ति गजल अछि।

अप्रैल २०२४ मे कुल दू टा पोस्ट भेल जाहिमे जगदानंद झा मनुक एक गजल आ एक रुबाइ अछि।

मइ एवं जून २०२४ मे कोनो पोस्ट नहि अछि।

जुलाइ २०२४ मे कुल दू टा पोस्ट भेल जाहिमे जगदानंद झा मनुक एक गजल आ एक रुबाइ अछि।

अगस्त आ सेप्टेम्बर २०२४ मे कोनो पोस्ट नहि अछि।

अक्टूबर २०२४ मे दू पोस्ट भेल जाहिमे एक पोस्टमे जगदानंद झा मनुक एक गजल अछि। आ आशीष अनचिन्हारक एक पोस्टमे अपने एना अपने मूँह अछि।

नवंबर २०२४ मे दू पोस्ट भेल जाहिमे दू पोस्टमे जगदानंद झा मनुक गजलक भीडियो देल गेल अछि।

दिसंबर २०२४ मे ४ पोस्ट भेल जाहिमे चारि पोस्टमे जगदानंद झा मनुक एक-एक टा रुबाइ अछि, एकटा गजल अछि आ एकटा पोस्टमे गजलक भीडियो देल गेल अछि।

शुक्रवार, 27 दिसंबर 2024

गजल

 

प्रेममे हुनकर जहर चिखने जाइ छी 

सब बुझैए  हम निशा केने जाइ छी

 

जे मजूरक पैँख  पेलौं उपहारमे

प्राण बुझि संगे सगर नेने जाइ छी

 

रोशनाई नै कलममे  बड़ अछि कहब

चीर छाती सोणितसँ लिखने जाइ छी

 

मानतै के देख मुँह पर मुस्की हमर

की करेजाकेँ अहाँ खुनने जाइ छी 

 

बहुत लागल जीवनक ठोकर चारुदिस

सुमरि ‘मनु’केँ चोट सब सहने जाइ छी

 

(बहरे जदीद, मात्राक्रम- 2122-2122-2212)

✍🏻 जगदानन्द झा ‘मनु’

 


तोहर मतलब प्रेम प्रेमक मतलब जीवन आ जीवनक मतलब तों