प्रेममे हुनकर जहर चिखने जाइ छी
सब बुझैए हम निशा केने जाइ छी
जे मजूरक पैँख पेलौं उपहारमे
प्राण बुझि संगे सगर नेने जाइ छी
रोशनाई नै कलममे बड़ अछि कहब
चीर छाती सोणितसँ लिखने जाइ छी
मानतै के देख मुँह पर मुस्की हमर
की करेजाकेँ अहाँ खुनने जाइ छी
बहुत लागल जीवनक ठोकर चारुदिस
सुमरि ‘मनु’केँ चोट सब सहने जाइ छी
(बहरे जदीद, मात्राक्रम- 2122-2122-2212)
✍🏻 जगदानन्द झा ‘मनु’
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