शुक्रवार, 30 जून 2017

थोड़े माटि बेसी पानि

शताब्दीसँ बेसीक इतिहास रहल मैथिली गजलके खास क' पछिला एक दशकसँ गजल रचना आ संग्रहक प्रकाशनमे गुणात्मक आ परिमाणात्म दुन्नू हिसाबे वृद्धि भ' रहल छै । एहि क्रममे किछु संग्रह इतिहास रचि पाठक सभक हियामे छाप छोडि देलकै तँ किछु एखनो धरि नेङराइते छै । कारण सृजनकालमे कोनो नै कोनो अंगविहिन रहि गेलै सृजना । संग्रहक भीड़मे समाहित सियाराम झा 'सरस' जीक पोथी 'थोड़े आगि थोड़े पानि' पढबाक अवसर भेटल । जकरा सुरुसँ अन्त धरि पढलाकबाद एकर तीत/मीठ पक्ष अर्थात गुणात्मकताक सन्दर्भमे विहंगम दृष्टिसँ अपन दृष्टिकोण रखबाक मोन भ' गेल । पहिने प्रस्तुत अछि पोथीके छोटछिन जानकारी:
पोथी - थोड़े आगि थोड़े पानि
विधा - गजल
प्रकाशक - नवारम्भ, पटना (2008)
मुद्रक - सरस्वती प्रेस, पटना
गजल संख्या - 80टा
पोथीमे जे छै-

थोड़े आगि राखू थोड़े पानि राखू
बख्त आ जरुरी लै थोड़े आनि राखू (पूरा गजल पृष्ठ 85 मे)
सरस जी प्रारम्भिक पृष्ठमे गहिरगर भावसँ भरल र्इ शेर प्रस्तुत केने छथि जे कि पोथीके नामक सान्दर्भिकता साबित क' रहल छै ।
पोथीमे 'बहुत महत्व राखैछ प्रतिबद्धता' शीर्षकपर दश पृष्ठ खरचा केने छथि सरस जी । जैमे ओ समसामयिक विषय, मैथिली साहित्यक विविध प्रवृति आ गतिविधि, अपन देखल भोगल बात, अध्ययन, संघर्ष, मैथिली आन्दोलनमे कएल गेल योगदान, विदेशी साहित्यकार एवं साहित्यिक कृति सहित ढेर रास विषय वस्तु पर चरचा केने छथि । मैथिली साहित्यिक क्षेत्रमे देखल गेल विकृतिपर जोडगर कटाक्ष करैत ‌ओ कहै छथि "आजुक 75 प्रतिशत मैथिलीक लेखक प्रतिबद्धताक वास्तविक अर्थसँ बहुत-बहुत दूर पर छथि । से बात खाहे कविताक हो कि कथाक, निबन्धक हो वा गीत लेखनक-सब किछु उपरे-उपर जेना हललुक माटि बिलाड़ियो कोड़ए ।" संगे संग ओ लेखक सभकेँ सल्लाह सेहो दैत कहै छथि "लोक जे लेखन कार्यसँ जुड़ल अछि वा जुड़बाक इच्छा रखैछ, तकरा बहुत बेसी अध्ययनशील होयबाक चाही । पढबाक संग-संग गुनबाक अर्थात चिन्तन-मननक अभ्यासी सेहो हेबाक चाही । नीक पुस्तकक खोजमे हरदम रहबाक चाही । जाहि विधामे काज करबाक हो, ताहि विधाक विशिष्ट कृतिकारक कृतिकेँ ताकि-ताकि पढबाक चाही ।"
अपन भाव परसबाक क्रममे ओ किछु हृदयके छूअवला शेर सेहो परसने छथि । जेना-

पूर्णिमा केर दूध बोड़ल, ओलड़ि गेल इजोर हो
श्वेत बस‌ंतक घोघ तर, धरतीक पोरे-पोर हो

प्रेम, वियोग, राजनीतिक, सामाजिक लगायत विभिन्न विषयक गजल रहल एहि संग्रहमे रचनागत विविधताक सुआद भेटत ।

कत' चूकि गेलाह सरस जी ?
कुल 80टा गजल रहल पोथीमे एको टा गजल बहरमे नै कहल गेल अछि । देखी पहिल गजलक मतला आ एकर मात्राक्रम:

बिन पाइनक माछ नाहैत चटपटा रहल, र्इ मैथिल छी
घेंट कटल मुरगी सन छटपटा रहल, र्इ मैथिल छी

पहिल पाँतिक मात्राक्रम - 2 22 21 221 212 12 2 22 2
दोसर पाँतिक मात्राक्रम - 21 12 22 2 212 12 2 22 2

मतलाक दुन्नू मिसराक मात्राक्रम अलग-अलग अछि ।
ढेर रास गजलमे काफिया दोष भेटत । बहुतो गजलमे एके रंगकेँ काफियाक प्रयोग भेटत । कोनो-कोनो मे तँ काफियाक ठेकान नै । पृष्ठ संख्या 19, 25, 30, 31, 34, 52, 55, 57, 61, 64, 81, 82, 92, 93, 96 मे देख सकै छी ।
पृष्ठ-25 मे रहल र्इ गजलके देखू:

सात फेरीक बाद जे किछु हाथ आयल
तत्क्षणें तेहि-केँ हम चूमि लेलियै

दू दिसक गरमाइ सँ दूर मन घमायल
तेहि भफायल - केँ हम चूमि लेलियै

भोर मृग भेल, साँझ कस्तूरी नहायल
ओहि डम्हायल-का हम चूमि लेलियै

कैक शीत-वसंत गमकल गजगजायल
रंग-रंगक - केँ हम चूमि लेलियै

स्वप्न सबहक पैरमे घुघरु बन्हायल
अंग-अंगक - केँ हम चूमि लेलियै

सृजन पथ पर चेतना-रथ सनसनायल
वंश वृक्षक - केँ हम चूमि लेलियै

कोन पिपड़ीक दंश नहुँए बिसबिसायल
ताहि नेहक - केँ हम, चूमि लेलियै

एहिमे मतला सेहो नै छै । बिनु मतलाके गजल नै भ' सकैए । पृष्ठ संख्या 64 मे सेहो एहनाहिते छै:

परबाहि ने तकर जे, सब लोक की कहैए
बहसल कहैछ क्यो-क्यो, सनकल कियो कहैए

कंजूस जेता तोड़ा नौ ठाँ नुकाक' गाड़य
तहिना अपन सिनेहक चिन्ता-फिकिर रहैए

जकरा ने र्इ जीवन-धन जीनगी ने तकरर जीनगी
छिछिआय गली-कुचिये, रकटल जकाँ करैए

कोंढी बना गुलाबक जेबी मे खोंसि राखी
जौं-जौं फुलाइछ, तौं-तौं सौरभ-निशां लगैए

अहाँ लाटरी करोड़क पायब तँ स्वय बूझब
निन्ने निपात होइए, मेघे चढल उड़ैए

तुलता ने कए पबै छी कहुनाक' सोमरस सँ
उतरैए सरस कोमहर, कोन ठामसँ चढैए

पृष्ठ संख्या 37, 42, 44, 50, 55, 59, 72, 78, 81, 94 मे रहल गजल गजलक फर्मेटमे नै अछि आ पृष्ठ संख्या 94 के गजलमे मात्र 4टा शेर छै । कमसँ कम 5टा हेबाक चाही ।

कोनो शब्दके जबरदस्ती काफिया बनाओल गेल छै, जेना की पृष्ठ संख्या 45 मे रहल गजलक अन्तिम शेरमे 'घुसकावना' शब्दक प्रयोग भेल छै ।

मक्तामे शाइरक नामक प्रयोग भेलासँ गजलक सुन्नरता बढै छै जे कि एहि संग्रमे किछु गजल छोड़ि बांकीमे नै भेटत ।

अन्तमे--

गजलक सामान्य निअमकेँ सेहो लेखकद्वारा नीक जकाँ परिपालन नै कएल गेल अछि । गजलप्रति भावनात्मक रुपे बेसी आ बेवहारिक रुपे बहुत कम प्रतिबद्ध छथि लेखक । गजलप्रति न्यान नै केने छथि । गजलक गहिराइ धरि नै पहुंच सकलथि । एहन प्रवृति वर्तमान सन्दर्भमे नवतुरिया सभमे सेहो बढल जा रहल छै जे की मैथिली गजलक लेल सही सूचक नै छी ।
 - कुन्दन कुमार कर्ण

http://www.kundanghazal.com

मंगलवार, 27 जून 2017

गजल

ई प्रेम हमरा जोगी बना देलक
विरहक महलके शोगी बना देलक

उपचार नै भेटल यौ कतौ एकर
गम्भीर मोनक रोगी बना देलक

मारै करेजामे याद टिस ओकर
दिन राति दर्दक भोगी बना देलक

संयोग जेना कोनो समयके छल
तँइ जोडि दू हिय योगी बना देलक

प्रेमक पुजगरी जहियासँ बनलौ हम
संसार कुन्दन ढोगी बना देलक

221-2222-1222

© कुन्दन कुमार कर्ण

www.kundanghazal.com

विश्व गजलकार परिचय शृंखला-7

"बोतल खुली है रक्स में जाम-ए-शराब है"

आइ विश्व गजलकार परिचय शृखंलामे एकटा विशेष गजलकारसँ परिचय कराएब। ओहिसँ पहिने ई निवेदन कऽ दी जे किछु एहन रचनाकार एहन होइ छथि जे कि पाठ्य रूपमे प्रसिद्ध होइत छथि तँ किछु कोनो गायक द्वारा। आइ जिनकासँ हम परिचय कराएब ओ दोसर तरहँक रचनाकार छथि मने हिनक रचना गेलाक बादें प्रसिद्ध भेल। फना बुलंदशहरी (मूल नाम-- मुहम्मद हनीफ, जन्म-बुलंदशहर, वर्तमान उत्तरप्रदेश, तात्कालीन भारत) पाकिस्तानक प्रसिद्ध शायर छलाह। प्राप्त जानकारीक अनुसारें ई गुजरावाला (Gujranwala) जिलाक अरूप स्थानक छलाह। बुलंदशहरी प्रसिद्ध शाइर क़मर जलालवीजीसँ शाइरीक शिक्षा लेने छलाह। एहिठाम ईहो जानब रोचक जे बुलंदशहरीजीक गुरू क़मर जलालवीजीक एकटा पोथीक नाम सेहो " मेरे रश्के क़मर" छनि। बुलंदशहरीजीक बेसी जीवनी नहि भेटैत अछि कारण कहियो हिनका पाठ्य रूपमे गंभीरतासँ नहि लेल गेलनि जाहि कारणे एक तरहें पाठ्य रूप बला पाठकक नजरिसँ ओझल छथि। जे गीत-कौआली सुनै छथि हुनका तँ शाइरक नाम बूझल रहैत छनि मुदा जीवनी नहि तँइ हमहूँ असमर्थ छी। जे रचनाकार गायक द्वारा प्रसिद्ध होइत छथि ओहो कोनो एकै-दू गायक द्वारा प्रसिद्ध होइत छथि। बुलंदशहरीजीक रचना "मेरे रश्के-क़मर, तूने पहली नजर, जब नजर से मिलायी मज़ा आ गया" जेनाहिते प्रसिद्ध कौआली गायक "नुसरत फतेह अली" गेला तेनाहिते बुलंदशहरीजीक नाम सभहँक सामने आबि गेल। ओना ओहिसँ पहिने सेहो हुनकर रचना सभ गाएल गेल छल मुदा "मेरे रश्के-क़मर" केर बाते किछु अलग छै। बुलंदशहरीजीक एकटा अन्य रचना " बोतल खुली है रक्स में जाम-ए-शराब है" सेहो प्रसिद्ध भेल। ई रचना नुसरतजीक अतिरिक्त मुन्नी बेगम द्वारा गाएल गेल छै आ व्यक्तिगत तौरपर हमरा मुन्नी बेगम बला भर्सन बेसी नीक लागल अछि। हिनक मृत्यु 26 Nov 1986 मे भेलनि।
भारतक साधारण जनता बुलंदशहरीजी नाम तखन चिन्हलक जखन कि  अरिजीत सिंह द्वारा "मेरे रश्के-क़मर" रचनाक नवका भर्सन आएल आ तकर बाद ई रचना फेरसँ भारतमे प्रसिद्ध भऽ गेल मुदा अफसोचजनक जे मूल रचनाकारक संबंधमे फेर सभ अपरिचित रहि गेल। एकठाम यूट्यूबपर एकरा अरिजीत सिंह द्वारा गाएल आ नुसरत फतेह अली द्वारा लिखल सेहो भेटत। चूँकि बुलंदशहरीजीक बारेमे बेसी तथ्य नहि अछि तँइ एहिठाम हम "मेरे रश्के क़मर" रचना सुनाबी जे कि नुसरत जी गेने छथि (परिशिष्टमे ई रचना सेहो देल गेल अछि) --




आब एही रचनाकेँ अरिजीत सिंह केर अवाजमे सुनू--


आब सुनू मुन्नी बेगमजीक अवाजमे ""बोतल खुली है रक्स में"--

एही रचनाकेँ फेरसँ मुन्निए जीक अवाजमे सुनू आ अंतर ताकू--



आब फना बुलंदशहरीजीक किछु प्रसिद्ध रचना देल जा रहल अछि जे कि विभिन्न गायक द्वारा गाएल अछि--

आँख उठी मोहब्बत ने अंगडाई ली ( गायक नुसरत फतेह अली खान)






उर्दू लिपिमे बुलंदशहरीक जीक रचना पढ़बाक लेल एहिठाम आउ-- https://issuu.com/rchakravarti/docs/deevaan-e-fanabulandshehri

परिशिष्ट--
मेरे रश्के-क़मर, तूने पहली नजर, जब नजर से मिलायी मज़ा आ गया 
बर्क़ सी गिर गयी, काम ही कर गयी, आग ऐसी लगायी मज़ा आ गया


जाम में घोलकर हुस्न कि मस्तियाँ, चांदनी मुस्कुरायी मज़ा आ गया 
चाँद के साये में ऐ मेरे साक़िया, तूने ऐसी पिलायी मज़ा आ गया


नशा शीशे में अगड़ाई लेने लगा, बज्मे-रिंदा में सागर खनकने लगा
मैकदे पे बरसने लगी मस्तिया, जब घटा गिर के छायी मज़ा आ गया


बे-हिज़ाबाना वो सामने आ गए, और जवानी जवानी से टकरा गयी
आँख उनकी लड़ी यूँ मेरी आँख से , देखकर ये लड़ाई मज़ा आ गया


आँख में थी हया हर मुलाकात पर , सुर्ख आरिज़ हुए वस्ल की बात पर
उसने शरमा के मेरे सवालात पे, ऐसे गर्दन झुकाई मज़ा आ गया


शैख़ साहिब का ईमान बिक ही गया, देखकर हुस्न-ए-साक़ी पिघल ही गया
आज से पहले ये कितने मगरूर थे, लुट गयी पारसाई मज़ा आ गया


ऐ “फ़ना” शुक्र है आज वादे फ़ना, उस ने रख ली मेरे प्यार की आबरू
अपने हाथों से उसने मेरी कब्र पर, चादर-ऐ-गुल चढ़ाई मज़ा आ गया

क्रेडिट--


विश्व गजलकार परिचय शृंखलाक अन्य भाग पढ़बाक लेल एहि ठाम आउ--  विश्व गजलकार परिचय 


सोमवार, 19 जून 2017

गजल

हुनका लेल सिंदुर एलै हमरा लेल जहर
देखू नेह कोना भेलै हमरा लेल जहर

अमरित एकरा हम कोना ने मानू कहू से
अपने हाथें देने गेलै हमरा लेल जहर

जीवन धारने छै जहरक कर्जा तइँ तँ सखी
बहुते देर धरि घुरिएलै हमरा लेल जहर

खिस्सा सुनि कऽ किछु ने बजलै चुप्पे रहलै तखन
बहुते कनलै आ पछतेलै हमरा लेल जहर

मोनक बात कहने रहियै अपना लोकसँ आ
अनचिन्हार सेहो लेलै हमरा लेल जहर


सभ पाँतिमे 2221-22-22-2221-12 मात्राक्रम अछि
दोसर आ चारिम शेरक दूनू पाँतिमे एक-एकटा दीर्घकेँ लघु मानबाक छूट लेल गेल अछि
सुझाव सादर आमंत्रित अछि

रविवार, 18 जून 2017

भक्ति गजल

अन्त सभके एक दिन हेबे करै छै
छोडि दुनिया एक दिन जेबे करै छै

मोन आनन्दित जकर सदिखन रहल ओ
गीत दर्दोके समय गेबे करै छै

जै हृदयमे भक्ति परमात्माक पनुकै
बुद्ध सन बुद्धत्व से पेबे करै छै

प्रेम बाटू जीविते जिनगी मनुषमे
मरि क' के ककरोसँ की लेबे करै छै

दान सन नै पैघ कोनो पुण्य कुन्दन
लोक फिर्तामे दुआ देबे करै छै

बहरे-रमल [2122-2122-2122]

© कुन्दन कुमार कर्ण

www.kundanghazal.com

मंगलवार, 13 जून 2017

गजल

हुनके विकास
जनता उदास

संसद बनलै
चोट्टा निवास

अपने अर्थी
अपने लहास

जेबी जानै
हाटक हुलास

बूड़ल देशक
दर्शन झकास



सभ पाँतिमे 22-22 मात्राक्रम अछि
दू टा अलग-अलग लघुकेँ दीर्घ मानबाक छूट लेल गेल अछि
सुझाव सादर आमंत्रित अछि

शुक्रवार, 9 जून 2017

गजल

चुपचाप देखब कपारमे
चुपचाप चाहब कपारमे

ओ जे जे कहथिन सएह सभ
चुपचाप मानब कपारमे

सपना अपन आँखि के बहुत
चुपचाप डाहब कपारमे

ई नोर हुनके हँसी सनक
चुपचाप कानब कपारमे

देखा कऽ लिखलहुँ ई पाँति आ
चुपचाप मेटब कपारमे

सभ पाँतिमे 2212-212-12 मात्राक्रम अछि
दोसर आ चारिम शेरक पहिल पाँतिमे एकटा दीर्घकेँ लघु मानि लेबाक छूट लेल गेल छै
सुझाव सादर आमंत्रित अछि
तोहर मतलब प्रेम प्रेमक मतलब जीवन आ जीवनक मतलब तों