सोमवार, 4 जनवरी 2010

गजल

नरेन्द्र जीक गजल

कतबो कहबै सूरति हाल
बहिरा नाचत अपने ताल


कोठी-कान चढ़ाक राखत
कतबो ठोकब अहाँ सवाल


खन नवयुग खन वेद पढायत
फेकत रंग-बिरंगी जाल


भीतर सँ खूनी नरभक्षी
उपर पहिरत मानुष खाल


पढ़ल-लिखल नवयुवक देश के
ठेका पर भ' रहल बहाल


जेहन पछिला साल निखत्तर
तेहने अछि ई नवका साल

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तोहर मतलब प्रेम प्रेमक मतलब जीवन आ जीवनक मतलब तों