अछि जँ जिनगी तँ प्रेम केनाइ सिख लिअ
दुख बिसरि जगमे मन लगेनाइ सिख लिअ
काल्हिकेँ नै कोनो भरोसा बचल अछि
आइपर हिल मिल आबि जेनाइ सिख लिअ
जीवनक सुख दुख बाट दू छैक बुझलहुँ
दूबटीयापर हँसि कऽ गेनाइ सिख लिअ
अपन मनमे प्रेमक जगाबैत बाती
आँखि सभकेँ सोझाँ उठेनाइ सिख लिअ
के बुझेलक ‘मनु’
छै अछूतगर पापी
पाप आबो संगे मिटेनाइ सिख लिअ
(बहरे खफीक, मात्रा क्रम – २१२२-२२१२-२१२२)
जगदानन्द झा ‘मनु’
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