गुरुवार, 10 मार्च 2016

गजल

रूप मदिर, मदिराएल नैन
मेघ सनक करियाएल नैन
बालम बसि गेला कोन देस
राति बढ़ल अगुताएल नैन
चान पिया भेलौं हम चकोर
कानि कहल बिसराएल नैन
ओकर छवि देखै भोर-साँझ
यादि भरल सपनाएल नैन
"ओम" पिया अउता आइ सुनि क'
नाचि उठल हरखाएल नैन
मात्राक्रम 2-1, 1-2, 2-2-2-1, 2-1 प्रत्येक पाँतिमे एक बेर। सुझाव सादर आमंत्रित।
-ओम प्रकाश

गजल

रंगि दिय' हमरा रंग बसंती
आब चाही हम अंग बसंती
ओकरे नामे लीखल जिनगी
भेल छै ओकर संग बसंती
ढंग एहन बनि जाय हमर जे
सब कहै देखू ढंग बसंती
जोश जे नबका फेरसँ चढ़लै
विस्मयसँ भेलै दंग बसंती
शत्रु "ओम"क रण छोड़ि पड़ायत
हम लड़ब एहन जंग बसंती
मात्राक्रम 2-1-2, 2-2-2-1, 1-2-2 सब पाँतिमे एक बेर। सुझाव सादर आमंत्रित।

गजल

आसक डोरि टूटि चुकल अछि
भाग्यक घैल फूटि चुकल अछि
आबो मोन बाट तकै छै
रस्ता कहिये छूटि चुकल अछि
की कहियै समैक ई लीला
प्रेमक गीत कूटि चुकल अछि
छलियै प्रिय हुनकर कहियो
खिस्सा बनि क' छूटि चुकल अछि
"ओम"क मोन मोर बनल छै
मोनक तान लूटि चुकल अछि
दीर्घ-दीर्घ-दीर्घ-ह्रस्व, दीर्घ-ह्रस्व, ह्रस्व-दीर्घ-दीर्घ प्रत्येक पाँतिमे एक बेर। दोसर शेरक दोसर पाँतिमे आ तेसर शेरक पहिल पाँतिमे एकटा दीर्घकेँ ह्रस्व मानबाक छूट लेल गेल अछि। सुझाव सादर आमंत्रित अछि।

गजल

छै मुद्दा बहुत गरम छै
छै बाझल सभक धरम छै
आँखिसँ कान पैघ भेलै
छै पसरल कते भरम छै
हुड़दंगक बजल बिगुल छै
छै बिगुलक किछो मरम छै
नै जानी मुँहसँ खसत की
छै लहकल हमर शरम छै
"ओम"क टोलमे रहत के
छै फूटल जकर करम छै
दीर्घ-दीर्घ-दीर्घ-ह्रस्व + दीर्घ-ह्रस्व-दीर्घ-दीर्घ प्रत्येक पाँतिमे एक बेर।
सुझाव सादर आमंत्रित।

गजल

रे हिया हमरा एतेक मजबूर नै कर
चाहमे ककरो हमरेसँ तूँ दूर नै कर

एकटा कित्ता अछि मोन सौँसे हमर ई
बाँटि टुकड़ी-टुकड़ीमे अलग धूर नै कर

काँच कोमल आ नवका जुआनी चढल छै
आगि यादक यौवनमे लगा घूर नै कर

एक त प्रेमक खातिर पिआसल रहै छी
ताहि पर आरो उकसाक आतूर नै कर

भागमे ककरा कुन्दन लिखल सब रहै छै
कल्पनामे डुबि एना मोनके झूर नै कर

212-2222-122-122

© कुन्दन कुमार कर्ण





























तोहर मतलब प्रेम प्रेमक मतलब जीवन आ जीवनक मतलब तों