गजलक मतलामे जे रदीफ-काफिया-बहर लेल गेल छै तकर पालन पूरा गजलमे हेबाक चाही मुदा नज्ममे ई कोनो जरूरी नै छै। एकै नज्ममे अनेको काफिया लेल जा सकैए। अलग-अलग बंद वा अंतराक बहर सेहो अलग भ' सकैए संगे-संग नज्मक शेरमे बिनु काफियाक रदीफ सेहो भेटत। मुदा बहुत नज्ममे गजले जकाँ एकै बहरक निर्वाह कएल गेल अछि। ओना उर्दू केर पुरान नज्ममे निश्चित रूपे बहर भेटत मुदा अंग्रेजी प्रभावसँ सेहो उर्दू प्रभावित भेल आ बिना बहरक नज्म सेहो लिखाए लागल। मैथिलीमे बहुत लोक गजलक नियम तँ नहिए जानै छथि आ ताहिपरसँ कुतर्क करै छथि जे फिल्मी गीत बिना कोनो नियमक सुनबामे सुंदर लगैत छै। मुदा पहिल जे नज्म लेल बहर अनिवार्य नै छै आ जाहिमे छै तकर विवरण हम एहि ठाम द' रहल छी-----------------
आइ देखू गोवर्धन राम त्रिपाठीजीक गुजराती उपन्यास "सरस्वतीचन्द्र"पर आधारित फिल्म "सरस्वतीचंद्र" केर ई नज्म जे कि लता मंगेशकर जी द्वारा गाएल गेल अछि। नज्म लिखने छथि साहिर। संगीतकार छथि कल्याणजी-आनंद जी। ई फिल्म 1968 मे रिलीज भेलै। एहिमे नूतन, मनीष, विजय चौधरी आदि कलाकार छलथि। एहि नज्मक सभ पाँतिक मात्राक्रम 2122-122-122-12 अछि। एहि नज्मक पहिल दू पाँति "कहाँ चला ऐ मेरे जोगी, जीवन से तू भाग के...." माहौल बनेबाक लेल देल गेल छै।
कहाँ चला ऐ मेरे जोगी, जीवन से तू भाग के
किसी एक दिल के कारण, यूँ सारी दुनियाँ त्याग के
छोड़ दे सारी दुनियाँ किसी के लिए
ये मुनासिब नहीं आदमी के लिए
प्यार से भी ज़रूरी कई काम हैं
प्यार सब कुछ नहीं जिंदगी के लिए
तन से तन का मिलन हो न पाया तो क्या
मन से मन का मिलन कोई कम तो नहीं
खुशबू आती रहे दूर ही से सही
सामने हो चमन कोई कम तो नहीं
चाँद मिलता नहीं सबको संसार में
है दिया ही बहुत रौशनी के लिए
कितनी हसरत से तकती हैं कलियाँ तुम्हें
क्यूँ बहारों को फिर से बुलाते नहीं
एक दुनियाँ उजड़ ही गयी है तो क्या
दूसरा तुम जहाँ क्यूँ बसाते नहीं
दिल न चाहे भी तो साथ संसार के
चलना पड़ता है सबकी खुशी के लिए
एकर तक्ती उर्दू हिंदी नियमपर कएल गेल अछि। ई गीत निच्चा सुनि सकैत छी--
आइ देखू गोवर्धन राम त्रिपाठीजीक गुजराती उपन्यास "सरस्वतीचन्द्र"पर आधारित फिल्म "सरस्वतीचंद्र" केर ई नज्म जे कि लता मंगेशकर जी द्वारा गाएल गेल अछि। नज्म लिखने छथि साहिर। संगीतकार छथि कल्याणजी-आनंद जी। ई फिल्म 1968 मे रिलीज भेलै। एहिमे नूतन, मनीष, विजय चौधरी आदि कलाकार छलथि। एहि नज्मक सभ पाँतिक मात्राक्रम 2122-122-122-12 अछि। एहि नज्मक पहिल दू पाँति "कहाँ चला ऐ मेरे जोगी, जीवन से तू भाग के...." माहौल बनेबाक लेल देल गेल छै।
कहाँ चला ऐ मेरे जोगी, जीवन से तू भाग के
किसी एक दिल के कारण, यूँ सारी दुनियाँ त्याग के
छोड़ दे सारी दुनियाँ किसी के लिए
ये मुनासिब नहीं आदमी के लिए
प्यार से भी ज़रूरी कई काम हैं
प्यार सब कुछ नहीं जिंदगी के लिए
तन से तन का मिलन हो न पाया तो क्या
मन से मन का मिलन कोई कम तो नहीं
खुशबू आती रहे दूर ही से सही
सामने हो चमन कोई कम तो नहीं
चाँद मिलता नहीं सबको संसार में
है दिया ही बहुत रौशनी के लिए
कितनी हसरत से तकती हैं कलियाँ तुम्हें
क्यूँ बहारों को फिर से बुलाते नहीं
एक दुनियाँ उजड़ ही गयी है तो क्या
दूसरा तुम जहाँ क्यूँ बसाते नहीं
दिल न चाहे भी तो साथ संसार के
चलना पड़ता है सबकी खुशी के लिए
एकर तक्ती उर्दू हिंदी नियमपर कएल गेल अछि। ई गीत निच्चा सुनि सकैत छी--
ई गीत मूल स्वरमे सुनलाक बाद फेरसँ इएह गीत मरताब अली जीक अवाजमे सुनू एकटा अलग आनंद आएत।
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