मालूम नै छल तोहर नैना चितचोर गे
जहियासँ मिललै धरकन मारै हिलकोर गे
अदहन सिनेहक जे चाहक चूल्हापर चढ़ल
खदकल हियामे अगबे मिलनक इनहोर गे
रूमीक कविता सन मार्मिक तुकबन्दी जकाँ
दुनियाँक कोनो कवि लग नै तोहर तोड़ गे
शीशा जकाँ आखर आ पानी सन भाव छै
कहलहुँ गजल तोरे नाँओ भोरे भोर गे
बस एक तोरे आगू कोमल बनि जाइ छी
चलतै हमर जिनगीपर की ककरो जोर गे
लुत्ती सुनगि गेलै प्रेमक अगहन मासमे
बैशाख धरि हेबे टा करतै मटिकोर गे
दोसर नजरिके कुन्दन सोहाइत आब नै
चाहे रहै कारी या अछि केओ गोर गे
221-222-222-2212
© कुन्दन कुमार कर्ण
www.kundanghazal.com
जहियासँ मिललै धरकन मारै हिलकोर गे
अदहन सिनेहक जे चाहक चूल्हापर चढ़ल
खदकल हियामे अगबे मिलनक इनहोर गे
रूमीक कविता सन मार्मिक तुकबन्दी जकाँ
दुनियाँक कोनो कवि लग नै तोहर तोड़ गे
शीशा जकाँ आखर आ पानी सन भाव छै
कहलहुँ गजल तोरे नाँओ भोरे भोर गे
बस एक तोरे आगू कोमल बनि जाइ छी
चलतै हमर जिनगीपर की ककरो जोर गे
लुत्ती सुनगि गेलै प्रेमक अगहन मासमे
बैशाख धरि हेबे टा करतै मटिकोर गे
दोसर नजरिके कुन्दन सोहाइत आब नै
चाहे रहै कारी या अछि केओ गोर गे
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