सोमवार, 1 अगस्त 2022

पाठककें डेरेबाक उपकरण थिक ई भूमिका (?)

 (विदेहक 339म अंक 1/2/2022 मे प्रकाशित हमर आलोचना "अनुशासन+विद्रोह=परिवर्तन : अनुशासनहीनता+विद्रोह=अराजकता"पर जगदीश चंद्र ठाकुर अनिल जीक ई टिप्पणी जे कि हुनकर फेसबुक वालसँ साभार लेल गेल अछि। हमर आलोचना पढ़बाक लेल शीर्षकपर क्लिक करू।

(अरविन्द ठाकुरजीक भूमिका आ आशीष अनचिन्हार जीक आलोचनापर पाठकीय प्रतिक्रिया )

मैथिली साहित्यमे एकटा महत्वपूर्ण नाम अछि अरविन्द ठाकुर | अरविन्द जीक नव पोथीक नाम अछि ‘मीन तुलसी पातपर’ | एहि झंझटिया नामक की मतलब से हमरा एखन धरि नहि बुझबामे आयल अछि | पोथी हमरा जहिया भेटल तहिये आरम्भसँ पढ़ब आरम्भ केलहुँ त डेराय  गेलहुँ | 51पृष्ठमे गजल आ 37 पृष्ठमे भूमिका ? किछु गोटे रचनासँ आनन्दित करबाक स्थानपर भूमिकासँ पाठककें आतंकित करबाक प्रयासमे लागल रहैत छथि | ई प्रवृति बढ़ि रहल अछि | हमरा भूमिका पढ़बाक साहस नहि भेल | कतहु-कतहुसँ पढबाक कोशिश केलहुँ त मैथिली गजलक लेखनमे हिन्दी आ उर्दू साहित्यक भारी-भारी नाम देखिक’ पोथीक नामक किछु सार्थकता प्रगट भेल | हमरा त अरविन्द जीक मैथिली गजल पढबाक छल, तें पोथीक 44 पृष्ठक बाद पढ़ब आरम्भ केलहुँ | जे पाँती सभ आकृष्ट केलक  से अहूँ सभकें कहैत छी :


‘बाहर हँसू नुका कय कानू

सीख इएह बुनियादी भेटल’

‘हक ओकर छै लड़ि कए लेतए

स्त्री छै ओ दासी नै छै’

‘यश कीर्तिक लिलसा छै वाजिब

शायर छै सन्यासी नै छै’

‘पागक थहाथहीमे भेटतह ने मुकुट अरबिन

एहि क्षेत्रमे बसय छै भुमिहार बहुत कम सम’

‘सुखक बोझा काँट-सन भए जाइत एकदिन

अहाँ एकरा किए नहि बाँटल करै छी’

‘फूलक बिछौना की करब

लए कए खेलौना की करब’

‘अभिव्यक्ति बन्हकी राखि कए

चानी आ सोना ई करब’

‘देह केर धर्म चिबाबैत रहल शील हमर

हुनका परदेशसँ आबयमे बहुत देर भेलय’

‘ज्वालामुखीक संगतिया हमर गजल रहल छै

किछु आगि परसबा लै अपनेक शहरमे छी’

‘कल्पना आ व्याकरण के खेल नहि छै शायरी

टीस मारत शब्द तखनहि कविक जँ भोगल हेतय’

‘करए खुनीमा जानक गप

आगि लगा कए पानिक गप’

‘ताली पीट करए हिजड़ा सभ

वंश सखा- संतानक गप’

‘अप्पन घरमे चाउर गिनि कए अदहन दए छथि

भोज-भातमे व्यंजन सभ अह्गर चाहय छथि’

‘राजधानीमे करय छी सएह गामहुमे करू

देह भैंसुरकें परसलौं, साँयसँ नखरा किए’ 

उपरोक्त पाँती सभमे जे भाव व्यक्त भेल अछि से कोनहु-ने-कोनहु रूपमे हुनक कविता आ कथामे सेहो अवश्य आएल हेतनि त की हुनक सभटा रचनाकें गजल कहल जाएत ? नहि, ओ अपनहु नहि कह’ चाह्ताह | तखन कविताकें कविता कहब, कथाकें कथा कहब, गजलकें गजल कहब कट्टरता कोना भेलै ? भूमिकामे एक ठाम कहल गेल अछि ‘चूल्हिमे जाओ परम्परा |’ एकर की मतलब ? सभ रचना अथवा सभ नीक बात कि सभ व्यंग्य रचनाकें गजले कहल जाए ? तखन दोहा,चौपाइ,मुक्तक,कहमुकरी,कविता, दीर्घ कविता, खण्ड काव्य,महाकाव्य, बीहनि कथा,लघु कथा,दीर्घ कथा नाटक,उपन्यास, - एते नाम रखबाक की अर्थ ? जतेक रचना अछि, सभकें गजल कहू, चूल्हिमे जाए दियौ परम्पराकें | जँ रदीफ़ आ काफिया मात्रसँ कोनो रचना गजल भ’ जइतै, तखन श्रद्धेय मार्कण्डेय प्रवासीजी आ भाइ बुद्धिनाथ मिश्र जीक  कएटा रचना गजल कहबैत, मुदा दुनू गोटे अपन ओहि रचना सभकें गीतक श्रेणीमे रखने छथि | प्रवासीजी विजयनाथ झाजीक गीत-गजल संग्रह ‘अहींक लेल’क प्राक्कथनमे लिखने छथि :

‘विद्यापतिक गीतमे जे भनिता अछि तकरे गजलमे ‘तखल्लुश’कहल जाइछ | अही हेतु हमर मान्यता अछि गजलक आविष्कारक सेहो विद्यापतियेकें मानल जयबाक चाही |’ त भनिताक उपस्थितिक आधारपर विद्यापतिक सभ रचनाकें गजल कहल जाए ? आशीष अन्चिहार जीक आलोचना पढ़िक’ अरविन्द जीक 37 पृष्ठक  भूमिका पढबाक साहस भेल | अरविन्द जी सोचने छल हेताह जे अज्ञेय,गोंडवी,अली सरदार जाफरी आदिकें  कियो नहि पढने हेताह जे हमरा द्वारा उठाओल बात सबहक जबाब देबाक साहस करताह | आब हमरा लगैत अछि जे हुनक भ्रम दूर भेल हेतनि आ हुनक सभ प्रश्नक उतारा भेटि गेल हेतनि |

एहि आलोचनामे अरविन्दजीक अतिरिक्त अन्य लोक सभक सेहो सभ प्रश्नक उतारा अछि  जे बहरक ध्यान नहि रखबाक अपन रचनाक कमजोर पक्षकें  महिमा मंडित करबाक प्रयास केने छथि अथवा क’ रहल छथि अथवा भविष्यमे करबाक विचार मोनमे पोसने छथि | रचनाक कमजोर पक्षक आलोचनाकें अपन व्यक्तित्व अथवा सम्पूर्ण कृतिसँ जोड़िक’ नहि देखल जेबाक चाही | एकरा विधाकें सशक्त बनयबाक दृष्टिसँ देखल जयबाक आवश्यकता अछि | अरविन्द ठाकुर जीक पोथी ‘मीन तुलसी पातपर’मे ‘संहिताक उपनिवेश नहि अछि साहित्य’ शीर्षकक अन्तर्गत रचनाकारक भूमिका-आलेखपर आशीष अनचिन्हार जीक आलोचना पढलाक बाद आब जँ कियो ईहो तर्क देबाक कोशिश करताह जे गीताक फलाँ अध्यायक फलाँ श्लोकमे कृष्ण भगवान कहने छथि जे सभ नियम-तियम तोड़ि-ताड़िक’ हमरा शरणमे आबि जाउ, अहाँकें बहर-तहरक चिन्ता करबाक काज नहि अछि, त हुनको सय बेर सोच’ पड़तनि | वस्तुतः आशीषजीक एहि आलोचनामे आलोचना थोड़ अछि,ज्ञान बेशी अछि जकर अध्ययन केलासँ स्पष्ट भ’ जाइत अछि जे गजलमे बहरक पालन कतेक आसान अछि, बस बहरक लेल अहाँकें  मानसिक रूपसँ  तैयार हेबाक अछि, कोनो बहन्ना नहि बनेबाक अछि, कोनो गवाहक खोजमे नहि बौएबाक अछि | अरविन्दजी गबाह तकबाक लेल जतेक समय आ शब्द खर्च केलनि अछि ओहिसँ बहुत कम समय आ थोड़ प्रयासमे गजल सभ बहरयुक्त भ’ जैतनि | मुदा अरविन्द भाइक भूमिकासँ ई त बहुत स्पष्ट भेल अछि जे गद्यपर हिनक पकड़ आ समर्पण बहुत  प्रशंसनीय छनि जकर विस्तृत विवरण अछि अरविन्द जीक लेल आशीष अनचिन्हार जी द्वारा संपादित पोथी ‘स्वतंत्रचेता’ |

हमरा अरविन्द जीक कविता, कथा आ व्यक्तित्वक विशिष्टताक सम्बन्धमे अही पोथीक माध्यमसँ विस्तारसँ जनबाक अवसर भेटल अछि | बहुत सुन्दर कागत पर शशि प्रकाशन,कालिकापुर,सुपौल द्वारा प्रकाशित आ आर.के.आफसेट प्रोसेस.नवीन शाहदरा,दिल्ली-32 द्वारा मुद्रित 176 पृष्ठक  ई पोथी ‘स्वतंत्रचेता’ अरविन्द जीक बहुमुखी प्रतिभा आ विलक्षण शब्द-कौशलक जानकारी दैत अछि जे  हिनक व्यक्तित्व आ कृतित्वक प्रति ककरहु मोनमे इर्ष्याक भाव उत्पन्न करबाक सामर्थ्य रखैत अछि  |  

जगदीश चन्द्र ठाकुर ‘अनिल’

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