रवीन्द्रनाथ ठाकुर मैथिलीमे गीत लेल जानल जाइत छथि मुदा आनो विधामे लिखने छथि जाहिमे एकटा "कथित गजल" सेहो अछि। कथित गजल एहि लेल जे ओ अपने एकरा गजल कहने छथि आ हुनकर समर्थक सेहो मुदा वस्तुतः ओ रचना सभ गजल नै छै। ओ रचना सभ गजल किए नै छै तकर विवेचना करबासँ पहिने आन गजलकार सभक किछु शेर देखू। ओना ई शेर सभ हम अपन हरेक लेखमे दैत छियै कारण मैथिली भाषाकेँ किछु अपढ़ लोक सभ मात्र लिखबाक भाषा बना देने छै पढ़बाक नै। तँइ हम सदिखन हम ई मानि कऽ चलैत छी जे हमर पुरना लेख कियो नै पढ़ने हेता। आ तँइ बेर-बेर हम एकै तथ्यकेँ हरेक आलेखमे दोहराबैत छी जाहिसँ कियो लेखनी-वीर हमरा ई नै कहि सकथि जे हम नै पढ़ने रही। ओना मैथिल तँ बस मैथिल छथि ओ केखनो किछु कहि सकैत छथि। तँ आबी किछु शेरपर। पं जीवन झाजीक एकटा गजलमे वर्णित विरहक नीक चित्रण देखू—
अनंङ्ग सन्ताप सौं जरै छी अहाँक चिन्ता जतै करै छी
सखीक लाजे ततै मरै छी जतै कही वा जतै कहाबी
एहि शेरक मात्रक्रम 12+122+12+122+12+122+12+122 अछि आ पूरा गजलमे एकर प्रयोग भेल अछि। झाजीक दोसर गजलक एकटा आर विरहपरक शेर देखू—
अहाँ सों भेंट जहिआ भेल तेखन सों विकल हम छी
उठैत अन्धार होइए काज सब करबामे अक्षम छी
एहि शेरक मात्राक्रम 1222+1222+1222+1222 अछि आ पूरा गजलमे एकर प्रयोग भेल अछि। उपरक एहि तीन टा उदाहरणसँ स्पष्ट अछि जे पं. जीवन झाजी मैथिली गजल आ गजलक व्याकरणक बीच नीक ताल-मेल रखने छलाह। फेर हुनक तेसर शेरक एकटा आरो शेर देखू जे कि प्रेममे पड़ल नायक-नायिका मनोभाव अछि—
पड़ैए बूझि किछु ने ध्यानमे हम भेल पागल छी
चलै छी ठाढ़ छी बैसल छी सूतल छी कि जागल छी
एहि शेरक मात्राक्रम 1222+1222+1222+1222 अछि आ पूरा गजलमे एकर प्रयोग भेल अछि। कविवर सीताराम झाजीक किछु शेरक उदाहरण देखू—
हम की मनाउ चैती सतुआनि जूड़शीतल
भै गेल माघ मासहि धधकैत घूड़तीतल
`
मतलाक छंद अछि 2212+ 122+2212+ 122 आब एही गजलक दोसर शेर मिला लिअ-
अछि देशमे दुपाटी कङरेस ओ किसानक
हम माँझमे पड़ल छी बनि कै बिलाड़ि तीतल
पहिल शेर आइयो ओतबे प्रासंगिक अछि जते पहिले छल। आइयो नव साल गरीबक लेल नै होइ छै। दोसर शेरकेँ नीक जकाँ पढ़ू आइसँ साठि-सत्तर साल पहिलुक राजनीतिक चित्र आँखि लग आबि जाएत। स्पष्ट अछि जे बिना व्याकरण तोड़ने कविवरजी प्रगतिशील भावक गजल लिखला जे अजुको समयमे ओतबे प्रासंगिक अछि जतेक की पहिने छल। जे ई कहै छथि जे बिना व्याकरण तोड़ने प्रगतिशील गजल नै लिखल जा सकैए हुनका सभकेँ ई उदाहरण देखबाक चाही। काशीकान्त मिश्र "मधुप" जीक दूटा शेर देखल जाए—
मिथिलाक पूर्व गौरव नहि ध्यान टा धरै छी
सुनि मैथिली सुभाषा बिनु आगियें जड़ै छी
सूगो जहाँक दर्शन-सुनबैत छल तहीँ ठाँ
हा आइ "आइ गो" टा पढ़ि उच्चता करै छी
एहि गजलमे 2212-122-2212-122 मात्राक्रम अछि जे कि गजलक हरेक शेरमे पालन कएल गेल अछि। देखू मधुपजी भिन्न स्वर लऽ कऽ आएल छथि मुदा बिना व्याकरण तोड़ने। ई शेर सभ छल रवीन्द्रनाथजीक पूर्वज गजलकार सभहक। आब आबी हुनकर किछु समकालीन (उम्रमे किछु छोट वा नमहर) गजलकारक शेर सभपर। योगानंद हीराजीक गजलक दू टा शेर—
मोनमे अछि सवाल बाजू की
छल कपट केर हाल बाजू की
मतलाक दूनू पाँतिमे 2122-12-1222 अछि आ दोसर शेर देखू-
छोट सन चीज कीनि ने पाबी
बाल बोधक सवाल बाजू की
हीराजी दोसर गजलक दू टा आर शेर देखू—
शूल सन बात ई
संसदे जेल अछि
आब हीरा कहै
जौहरी खेल अछि
एहि गजलक हरेक शेरमे सभ पाँतिमे 2122+12 मात्राक्रम अछि। आब अहीं सभ कहू जे हीराजीक गजलमे समकालीनता, प्रगतिशीलता आदि छै कि नै। पहिल शेरमे शाइर वर्तमान जीवनमे पसरल अजरकताकेँ देखा रहल छथि तँ दोसर शेरमे अभावक कारण बच्चा धरिकेँ कोनो चीज नै दऽ पेबाक विवशता छै। तेसर शेर आजुक विडंबना अछि। संसद वएह छै जे पहिने छलै मुदा सांसद सभ आब अपराधी वर्गक अछि तँइ शाइरकेँ ओ जेल बुझा रहल छनि। चारिम शेरमे शाइर प्रायोजित प्रसंशाक खेलकेँ उजागर केने छथि। ई खेल साहित्य कि आन कोनो क्षेत्रमे भऽ सकैए। जगदीश चंद्र ठाकुर "अनिल" जीक गजलक दू टा शेर—
टूटल छी तँइ गजल कहै छी
भूखल छी तँइ गजल कहै छी
मतलाक दूनू पाँतिमे 2222 +12 + 122 छंद अछि आ एकर दोसर शेर देखू—
ऑफिस सबहक कथा कहू की
लूटल छी तँइ गजल कहै छी
भूख केर कथा सेहो व्याकरणयुक्त गजलमे। सरकारी आफिसक कथा सभ जनैत छी। अनिलजी एहू कथाकेँ व्याकरणक संग उपस्थित केने छथि। समकालीन स्वरे नै कालातीत स्वरक संग विजयनाथ झा जीक ऐ गजलक दूटा शेर देखू—
चिदाकाश मधुमास मधुमक्त मति मन
विभव अछि विविधता उदय ह्रास अपने
मतलाक छंद अछि 122-122-122-122 आब दोसर शेरक दूनू पाँतिकेँ जाँच कऽ लिअ संगे संग भाव केर सेहो-
खसल नीर निर्माल्य निधि नोर जानल
सकल स्रोत श्रुति विन्दु विन्यास अपने
जँ आदि शंकराचर्य केर मातृभाषा मैथिली रहितनि तँ शायद विजयनाथेजी सन लिखने रहितथि ओ। आ एहिठाम हम रवीन्द्रनाथजीक कनिष्ठ मने एखनुक गजलकार सभहक शेर नै दऽ रहल छी मुदा उपरका उदाहरण सभसँ स्पष्ट अछि जे मैथिली गजलमे शुरूआतेसँ बहरक पालन भेल छै। संगे-संग उपरक एहि उदाहरण सभसँ ई स्पष्ट भऽ गेल हएत जे व्याकरण केखनो भाव वा विचार लेल बाधक नै होइ छै। हँ, हजारक हजार रचनामे किछु एहन रचना बुझाइ छै जाहिमे व्याकरणक कारण भाव बाधित भेलैए मुदा ई तँ रचनाकारक सीमा सेहो भऽ सकै छै। रचनाकारक सीमा लेल कोनो विधाक नियमकेँ खराप मानब कतेक उचित? ई उदाहरण ईहो स्पष्ट करैए जे 1970 केर बाद गजलक नामपर जे पीढ़ी आएल से ने गजल विधाक अध्य्यन केलक आ ने अपनासँ पहिनेक गजलकारक अध्य्यन केलक। रवीन्द्रनाथ ठाकुर समेत अधिकांश कथित गजलकार खाली फतवा देबामे व्यस्त रहलाह। आब किछु हिंदी गजलक व्याकरण सेहो देखी। सूर्यकांत त्रिपाठी निरालाजीक ई शेर देखू-
भेद कुल खुल जाए वह सूरत हमारे दिल में है
देश को मिल जाए जो पूँजी तुम्हारी मिल में है
मतला (मने पहिल शेर)क मात्राक्रम अछि--2122+2122+2122+212 आब सभ शेरक मात्राक्रम इएह रहत। एकरे बहर वा की वर्णवृत कहल जाइत छै। अरबीमे एकरा बहरे रमल केर मुजाइफ बहर कहल जाइत छै। निरालाजी जाहि बहरमे लिखने छथि ठीक ताही बहरमे हुनकोसँ पहिने हसरत मोहानीजी अपन ई गजल लिखने छथि जकर शेर सभकेँ जीहपर छनि-
चुपकेचुपके रात दिन आँसू बहाना याद है
हमको अब तक आशिक़ी का वो ज़माना याद है
एकर बहर अछि 2122+2122+2122+212 आ अही बहरमे दुष्यंत कुमार लिखने छथि
हो गई है / पीर पर्वत /सी पिघलनी / चाहिए,
इस हिमालय / से कोई गं / गा निकलनी / चाहिए
2122 / 2122 / 2122 / 212 मने एकै बहरपर तीन गजल आ तीनू गजलक भाव ओ प्रभाव अलग-अलग। निश्चित तौरपर मैथिली गजलक शुरूआत प्रभावी छल मुदा बादमे हिनका सभ द्वारा नाश कऽ देल गेल।
रवीन्द्रजीक कथित गजल संग्रह नाम छनि "लेखनी एक रंग अनेक"। एहि पोथीक संक्षिप्त भूमिकामे लेखक लिखै छथि जे "..मैथिली गजल लेल अरबी-फारसीक दुआर पर नहि लऽ गेलहुँ अछि तें एकटा हार्दिक संतोष अछि"..। आब लेखक ई किएक लिखलनि से ठोस रूपे जानब संभव नै अछि मुदा हम एकरा दू रूपे देखै छी। बहुत संभव जे एकटा कोनो सही हो मुदा ताही संगे हम दूनू कारणकेँ सेहो खंडन करब। पहिल कारण ई भऽ सकैए जे ओ गजलक व्याकरणपर कटाक्ष केने होथि आ जकरा पालन नै केलापर संतोष व्यक्त केने होथि। जँ ई कारण मानल जाए ओहि कथन लेल तखन निश्चित रूपे ई मानल जाएत जे रवीन्द्रनाथजीकेँ भारतीय परंपरा खास कऽ संस्कृत परंपराक कोनो ज्ञान नै छलनि, कारण जे संस्कृतक वार्णिक छन्द छै सएह अरबी-फारसीक बहर छै। जे तुक छै सएह काफिया छै। जेना संस्कृतक छन्दमे किछु शिथिलताक प्रावधान छै तेनाहितो बहरक पालनमे सेहो छूट वा शिथिलताक प्रावधान छै। बस नामक भेद देखि अलग मानि लेब आ ओकरासँ अलग भऽ संतोष कऽ लेब कतेक उचित? वार्णिक छंद अथवा बहरक माने छै निर्धारित ओ निश्चित मात्राक्रममे रचना रचब।
दोसर कारण ई भऽ सकैए जे ओ अपन रचनामे खाँटी मैथिली शब्द लेने होथि आ ताहि लेल संतोष व्यक्त केने होथि। मुदा प्रश्न उठै छै जे गजल कोन भाषाक शब्द छै? आ अहीठाम रवीन्द्रजीक संतोषपर प्रश्नचिह्न लागि जाइत छनि। जाहिमे मैथिलीमे 30-40 प्रतिशत शब्द फारसीक छै ताहि भाषा लेल एहन घोषणा किएक? जे शब्द हमरा भाषामे नै अछि से आन भाषासँ एबाके चाही। हँ, कोनो अवांछित शब्द नै एबाक चाही से ध्यान रहए। ओनाहुतो रवीन्द्रजी आनो भाषाक ओहनो शब्द सभ लेने छथि जे कि किछुए बर्खसँ मैथिलीमे प्रचलित अछि जेना- भँवरा, यार, मस्ती, बहार, लालसा... आदि-आदि। तँइ हमर मानब अछि जे शब्दक स्तरोपर रवीन्द्रजीक संतोष एकटा फतवा मात्र छनि।
रवीन्द्रजी एहि कथित संग्रहमे बहुत रास विसंगति अछि। एकटा एहनो विसंगति अछि जे प्रायः हरेक लेखक केर उठानमे होइत छै आ ओ विसंगति अछि अपन कोनो पूर्वज रचनाकारक पाँतिकेँ सीधे अनुवाद कऽ देब। एहन हमरो संग भऽ चुकल अछि मुदा आइसँ सात बर्ख एकर पहिचान कऽ हम फेसबुकपर सार्वजनिक रूपे सभकेँ सूचित केने छियनि। जखन कि रवीन्द्रजी एहि विसंगतिकेँ चिन्हबामे चुकि गेलाह। आन बात कहबासँ पहिने हम दुष्यंत कुमारजीक एकटा ई शेर देखू-
मैं जिसे ओढ़ता-बिछाता हूँ
वो ग़ज़ल आपको सुनाता हूँ
एकर बहर अछि 212-212-1222 आब एकटा शेर रवीन्द्रनाथजीक देखू--
हम जे भोगै छी से ओ जेना जीबै छी से
रवीन्द्र सैह गजल सबकेँ हम बाँटि रहल छी
रवीन्द्रजीक शेरमे कोनो बहर नै छनि मुदा भाव तँ दुष्यंतेजी बला उठाएल छनि। पहिने कहलहुँ एहन अवसर हरेक लेखक लग आबै छै। कियो एकरा चीन्हि अपनाकेँ मुक्त कऽ लै छथि आ कियो रखने रहि जाइ छथि।
कुल मिला कऽ देखी तँ रवीन्द्रजीक ई पोथी नीक गीतक पोथी छनि गजलक नहि।
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