घुमि कनखीसँ कनि जे अहाँ ताकि देलहुँ
तन मन अपन एहिपर हम हारि देलहुँ
नहि आब बैकुंठकेँ रहि गेल इच्छा
सगरो अहाँकेँ लेल ‘मनु’ बारि देलहुँ
✍🏻जगदानन्द झा ‘मनु’
घुमि कनखीसँ कनि जे अहाँ ताकि देलहुँ
तन मन अपन एहिपर हम हारि देलहुँ
नहि आब बैकुंठकेँ रहि गेल इच्छा
सगरो अहाँकेँ लेल ‘मनु’ बारि देलहुँ
✍🏻जगदानन्द झा ‘मनु’
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