शुक्रवार, 27 दिसंबर 2024

गजल

 

प्रेममे हुनकर जहर चिखने जाइ छी 

सब बुझैए  हम निशा केने जाइ छी

 

जे मजूरक पैँख  पेलौं उपहारमे

प्राण बुझि संगे सगर नेने जाइ छी

 

रोशनाई नै कलममे  बड़ अछि कहब

चीर छाती सोणितसँ लिखने जाइ छी

 

मानतै के देख मुँह पर मुस्की हमर

की करेजाकेँ अहाँ खुनने जाइ छी 

 

बहुत लागल जीवनक ठोकर चारुदिस

सुमरि ‘मनु’केँ चोट सब सहने जाइ छी

 

(बहरे जदीद, मात्राक्रम- 2122-2122-2212)

✍🏻 जगदानन्द झा ‘मनु’

 


रविवार, 8 दिसंबर 2024

रुबाइ

हमहूँ खेत आइ बोटीकेँ रोपलौं

पोसै लेल पेट झूठक हर जोतलौं

कारी कोटसँ कोटमे निसाफ ककरा

टाका पाबि आँखि बान्हि दफा जोखलौं 

✍🏻 जगदानन्द झा ‘मनु’

बुधवार, 4 दिसंबर 2024

रुबाइ

तोरा नहि हम छोड़लौं नहि हम बेवफा

तोरा बिन नहि मरलौं नहि हम बेवफा

तोहर प्राण गेल बुझि नहि जीवैत ‘मनु’

बिन काठीए जरलौं  नहि हम बेवफा

               ✍🏻 जगदानन्द झा ‘मनु’

 


तोहर मतलब प्रेम प्रेमक मतलब जीवन आ जीवनक मतलब तों