शनिवार, 27 नवंबर 2010

गजल- गजेन्द्र ठाकुर


रातिक इजोरिया देखि रहल तारा कहलक
तरेगन छोट तैयो इजोतक खिस्सा कहलक

चन्द्रमाक इजोतक चर्च तँ बड़ होइ छै
एहि पिरौँछ इजोतक खेरहा कहलक

उज्जर दपदप इजोतक ई इजोरिया
देत संग अन्हरियामे फरिछा कहलक

पिरौँछ सरिसव फूल हँसि रहल अछि
ई इजोरिया पिरौंछ किए ने से कहलक

जे ई गप अहाँ हमरासँ ने कहितौं
जे फूसि-फटक हमरासँ ने करितौं

मोनमे रखबाक हमरा जे रहितै
तँ कोनो आन बहन्ना नै बना सकितौं

ई ठोढ़क फुफरी चानिपर पसेना
घाम चुबैत सुगन्धि पाबि सुरकितौं

आरि-धूर बाटे चली आ जा कऽ पहुँची
बीच सड़क ठाढ़ छै रोकि ने सकलौं

 
पिपनी झुकल डिम्हा उठल करजनी सन आँखि छै
की की बीतल नै कहि सकब कहि सकब एखन नै

आ देखल मेघक टिक्कर खसि रहल छै अकासमे
हुलसि ताकल खेत दिस, उल्लास पर्वत चढ़ल ऐ

चढ़ल ई आबि रहल, ई धार बाढ़ि बनि कऽ केहन
बाँचल रहत हमर जलोदीप की गाम हमर ऐ

जाऊ कत्तऽ टिटही सेहो इजोरियामे भागल
अन्हरिया राति आ जिनगी झूर-झाम बनल

कते बुझाएब ककरा ई, कते सम्हारब की
जिनगीक प्रयाण संग रस्ता संग्राम बनल

लोथ प्रेत राकश बिच ठाढ़ छी असगर की
मनुक्ख लगैए जे लहास जिनगीक उठल

साँझ अन्हरगर अछि, राति अछि बाँचल की
की भोरक बाट ताकू? फेर साँझ घुरि आएल

इजोरिया छैक कतबो, छै तँ रातिये सगरो
दिनोमे ग्रहण आ सगरो अन्हार पसरल

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