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शनिवार, 27 नवंबर 2010
गजल- गजेन्द्र ठाकुर
सोमवार, 22 नवंबर 2010
गजल
बाट अन्हार मे डूबल केकरा बजाउ
जगैत लोक सूतल केकरा बजाउ
चललहुँ लए सप्पत रहब एक संग
बहुतों मोड़ पर छूटल केकरा बजाउ
दुनियाँ इ घालमेलक इ दुनियाँ भ्रमजाल
दुनियाँ स्वर्ण-सुन्नरि-बोतल केकरा बजाउ
राम छथि ठगाएल अल्ला छथि बौआएल
मंदिर-मस्जिद टूटल केकरा बजाउ
लिखबाक लेल व्यग्र अनचिन्हार शेर
अछि अपूर्ण गजल केकरा बजाउ
सोमवार, 15 नवंबर 2010
गजल
इ की केलिऐक बैसले-बैसल अहाँ
आगि लगा देलिऐक बैसले-बैसल अहाँ
रोड़ी कहींक इँटा,बालु, सीमेंट कहींक
महल बना लेलिऐक बैसले-बैसल अहाँ
अगसतस्य पीने छलाह एकटा नदी
सागर सोखि गेलिऐक बैसले-बैसल अहाँ
इन्द्र की करताह परतर अहाँ सँ
जनतंत्र जन्मा देलिऐक बैसले-बैसल अहाँ
लाठी-भाला लए तैआर खेतिहर
परड़ू ठुका देलिऐक बैसले बैसल अहाँ
गुरुवार, 4 नवंबर 2010
गजल
सभ के दियाबातीक शुभकामना
गुंगुआइत बसात चुप्प रहू
पदुराइत बसात चुप्प रहू
चारु दिस पसरि गेल धूआँ
पझाइत बसात चुप्प रहू
अहाँक कुठां जड़ि जमेने अछि
किकिआइत बसात चुप्प रहू
अहूँ पर हँसत केओ एक दिन
ठिठिआइत बसात चुप्प रहू
जे भेटत अनचिन्हारे भेटत
चिचिआइत बसात चुप्प रहू