गजल-1.59
छुट्टा साँढ़ सन किए छिछियाइत छी
अनकर खेतमे किए घुसियाइत छी
लागै चोट बड हँसी सन झटहा खा
आनक शोकमे किए ठिठियाइत छी
भरि भरि फूसि सगर पिचकारी मारै
बुझने बिनु कथा किए पतियाइत छी
भ्रष्टाचार हमर नेंतसँ जनमल अछि
तें पहिने अहाँ कहाँ सरियाइत छी
जनते लोकतंत्रमे राजा रहतै
अपने राज्यमे किए भसियाइत छी
2221-2122-222
अमित मिश्र
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बुधवार, 3 अप्रैल 2013
गजल
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amit mishra
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