गजल-1.61
मृत्युक दयासँ किछु पल हँसि कऽ जीबै छै
पैंचा लऽ साँस, दिन सुख दुखसँ काटै छै
छै शेर घरहिंमे बलगर निडर बुधिगर
बाहर निकलि कुकुरकें देख भागै छै
ओझाक फेरमे जनता झड़कि रहलै
ज्ञानक किताब शाइत घून चाटै छै
सासुरक लेल केलक हवण निज इच्छा
तखनो बहुत धियाकें वैह मारै छै
जुनि आँखि आब देखैयौ अहाँ ककरो
नेना सगर भरल बंदूक राखै छै
छै पूछ मात्र ओकर एहि दुनियाँमे
जे जेब काटि बड खैरात बाँटै छै
मुस्तफइलुन-मफाईलुन-मफाईलुन
2212-1222-1222
अमित मिश्र
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मंगलवार, 9 अप्रैल 2013
गजल
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amit mishra
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