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सोमवार, 27 मई 2013
गजल
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कुन्दन कुमार कर्ण,
गजल
रविवार, 19 मई 2013
गजल
अछि जँ जिनगी तँ प्रेम केनाइ सिख लिअ
दुख बिसरि जगमे मन लगेनाइ सिख लिअ
काल्हिकेँ नै कोनो भरोसा बचल अछि
आइपर हिल मिल आबि जेनाइ सिख लिअ
जीवनक सुख दुख बाट दू छैक बुझलहुँ
दूबटीयापर हँसि कऽ गेनाइ सिख लिअ
अपन मनमे प्रेमक जगाबैत बाती
आँखि सभकेँ सोझाँ उठेनाइ सिख लिअ
के बुझेलक ‘मनु’
छै अछूतगर पापी
पाप आबो संगे मिटेनाइ सिख लिअ
(बहरे खफीक, मात्रा क्रम – २१२२-२२१२-२१२२)
जगदानन्द झा ‘मनु’
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गजल,
जगदानन्द झा 'मनु'
शुक्रवार, 17 मई 2013
रुबाइ
रुबाइ-168
दस बर्षक नेना काज करै होटलमे
भोजन लेल बीछै कचरा फेकलमे
मजदूरक लेल दिवस की आ राति की?
सदिखन दर्दक समय जिनगी घोकलमे
www.navanshu.blogspot.com
दस बर्षक नेना काज करै होटलमे
भोजन लेल बीछै कचरा फेकलमे
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रुबाइ,
amit mishra
गुरुवार, 16 मई 2013
गजल
गजल
रौद आ बिहाड़िसँ जे लड़ल अछि एहि ठाम
ओतबे गाछ पैघ भऽ बचल अछि एहि ठाम
भूखल छथि राति दिन जाहि लेल गरीब यौ
किनको खरिहानमे सड़ल अछि एहि ठाम
एहि टेक्निकल युगमे बी ए केने हाएत की
एम ए कऽ गाम गाम पड़ल अछि एहि ठाम
जे विपत्तिमे धैर्य राखि लागल अछि काजमे
ओ नभमे चान बनि सजल अछि एहि ठाम
भ्रष्टाचारी शासनमेँ बीकल सरकारी सीट
चुप्पी मारि लोक घरे सूतल अछि एहि ठाम
गेल युग श्रवणकेँ माँ बापक कोनो मोले नै
बूढ़ पूराण पूतसँ डरल अछि एहि ठाम
सरल वार्णिक बहर ,आखर 17
© "बाल मुकुन्द" ।।
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Bal Mukund Pathak
गजल
गजल
मिललौँ अपन चानसँ भेल पुलकित मोन
बीतल पहर विरहक भेल हर्षित मोन
छल आँखि सागर ताहिसँ सुनामी उठल
बहलौँ तकर वेगसँ भेल विचलित मोन
बाजल तँ जेना बुझु फूल झहरल मुखसँ
ठोरक मधुर गानसँ भेल शोभित मोन
ओकर बढ़ल डेगसँ दर्द हरिया उठल
पायलक सुनते स्वर भेल जीबित मोन
प्रीतक तराजू पर तौललौँ धन अपन
विरहक दिया जड़ते भेल पीड़ित मोन
बहरे सलीम ,मात्राक्रम २२१२ २२२१ २२२१
© बाल मुकुन्द पाठक
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Bal Mukund Pathak
सोमवार, 13 मई 2013
गजल
गजल
--------------------------
मोनके बात कहि दिअ
प्रेमके संग बहि दिअ
दिल हमर अखन खाली
ताहिमें प्रिय रहि दिअ
मीठगर चोट नेहक
कनि अहाँ प्रिय सहि दिअ
ठोरपर हँसिक मोती
हँसि हँसिक प्रिय गहि दिअ
भावना हमर लिअ बुझि
दर्द मधुरसन नहि दिअ
--------------------------
फायलुन्-फाइलातुन्.
२१२-२१२२
© लेखक - कुन्दन कुमार कर्ण
www.facebook.com/kundan.karna
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कुन्दन कुमार कर्ण,
गजल
सोमवार, 6 मई 2013
गजल
कनी हमरो बजा दिअ माँ
अपन दर्शन करा दिअ माँ
कते आशा लगोने छी
अपन चाकर बना दिअ माँ
जनम भरि बनि टुगर रहलहुँ
सिनेहक निर चटा दिअ माँ
जँ हम नेना अहाँकेँ छी
अलख मनमे जगा दिअ माँ
सुखेलै नोर जरि आँखिक
चरण ‘मनु’केँ दखा दिअ माँ
(बहरे हजज, मात्रा क्रम – १२२२-१२२२)
जगदानन्द झा ‘मनु’
अपन दर्शन करा दिअ माँ
कते आशा लगोने छी
अपन चाकर बना दिअ माँ
जनम भरि बनि टुगर रहलहुँ
सिनेहक निर चटा दिअ माँ
जँ हम नेना अहाँकेँ छी
अलख मनमे जगा दिअ माँ
सुखेलै नोर जरि आँखिक
चरण ‘मनु’केँ दखा दिअ माँ
(बहरे हजज, मात्रा क्रम – १२२२-१२२२)
जगदानन्द झा ‘मनु’
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गजल,
जगदानन्द झा 'मनु',
भक्ति गजल,
मैथिली भक्ति गजल,
Maithili Bhakti Gazhal
रविवार, 5 मई 2013
रुबाइ
रुबाइ-169
तूँ प्रेम करै छें वा जादू- टोना
तूँ मोहलें करेजक सबटा कोणा
हम तेजब प्राण अहुरिया काटि, सुन
बनबें जँ नै अमितक आँगनक सोना
तूँ प्रेम करै छें वा जादू- टोना
तूँ मोहलें करेजक सबटा कोणा
हम तेजब प्राण अहुरिया काटि, सुन
बनबें जँ नै अमितक आँगनक सोना
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amit mishra
गुरुवार, 2 मई 2013
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दस बर्षक नेना काज करै होटलमे
भोजन लेल बीछै कचरा फेकलमे
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