अपनके अपना हिसाबे बुझू
रचलके रचना हिसाबे बुझू
असलमे सब किछु रहै छै कहूँ
सृजनके सृजना हिसाबे बुझू
हिया पर शब्दक असर जे पड़ै
गजलके गहना हिसाबे बुझू
कहाँ भेटत सोच उठले सभक
धसलके धसना हिसाबे बुझू
जरनिहारोके कतहुँ नै कमी
जरलके जरना हिसाबे बुझू
अतीतक नै याद कुन्दन करू
घटलके घटना हिसाबे बुझू
122-221-2212
© कुन्दन कुमार कर्ण
www.kundanghazal.com
रचलके रचना हिसाबे बुझू
असलमे सब किछु रहै छै कहूँ
सृजनके सृजना हिसाबे बुझू
हिया पर शब्दक असर जे पड़ै
गजलके गहना हिसाबे बुझू
कहाँ भेटत सोच उठले सभक
धसलके धसना हिसाबे बुझू
जरनिहारोके कतहुँ नै कमी
जरलके जरना हिसाबे बुझू
अतीतक नै याद कुन्दन करू
घटलके घटना हिसाबे बुझू
122-221-2212
© कुन्दन कुमार कर्ण
www.kundanghazal.com
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें