भरल बरिसातमे नै सताउ सजनी
किए छी दूर लग आबि जाउ सजनी
मिलनके आशमे अंग-अंग तरसै
बदन पर वुँद नेहक गिराउ सजनी
पिआसल मोन मधुमासमे उचित नै
जुआनी ओहिना नै गमाउ सजनी
जियब जा धरि करब नेह हम अहीँके
हियामे रूप हमरे सजाउ सजनी
खुशीमे आइ कुन्दन गजल सुनाबै
मजा एहन समयके उठाउ सजनी
122-212-212-122
© कुन्दन कुमार कर्ण
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