राति चुप अछि आ गगन के ओ चान चुप अछि
फेरि के आँगनसँ मुँह ई दलान चुप अछि
छोड़ि के चलि गेला जहियासँ सभके बाबा
माँछ-पोखरि, खेत-गाछी, मचान चुप अछि
बाजि के टप टप अहाँ पैघ नै भ' जायब
पैघ अछि ओ जे कि सागर समान चुप अछि
रूप हुनकर "मीर" के सब गजलसँ बढ़ि के
तँइ हमर सब शे'र बनि के अकान चुप अछि
फेर छी सबटा समयक ई आर किछु नै
शोर चुप्पी अछिक' रहल आ जुबान चुप अछि
~आशुतोष मिश्रा 'अज़ल'
मात्रा क्रम:-२१२२ २१२२ १२१ २२
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