शुक्रवार, 17 दिसंबर 2021

हे शिव " एकरा गजल कहितहुँ" होइछ लाज

कोनो लेखक केर एकटा मुख्य विषय, मुख्य विधा आ मुख्य तेवर रहैत छै जकरा पूरा दुनियाँ जानै छै। मुदा ताही संगे ओहि लेखक केर किछु एहन बात रहै जे दुनियाँ नै जानै छै आ जहिया जानै छै तहिया आश्चर्य लागै छै जे हिनकर ईहो रूप छनि। ई रूप नकारात्मक हेतै से हम नै कहि रहल छी मुदा नीको पक्ष जँ नुकाएल रहए तँ सार्वजनिक भेलापर आश्चर्य होइते छै। एहने सन अनुभव हमरा प्रो. भैरवेश्वर झा द्वारा संपादित "किरण समग्र-खंड चारि, भक्ति एवं श्रृंगार गीत संग्रहःरसमंजरी" नामक पोथी पढ़ि भेल। ई पोथी डा. काञ्चीनाथ झा 'किरण'जीक भक्ति एवं शृंगारपरक रचनाक संग्रह अछि।

भक्ति आ शृंगार ताहूमे काञ्चीनाथ झाजी द्वारा लिखल। जखन कि किरणजीक मुख्य तेवर छनि यथार्थवादी रचना आ ओकर पोषण। एहन नै छै जे भक्ति वा शृंगार लिखब अपराध छै मुदा उपरे कहलहुँ जे मुख्य तेवरक बाद जँ आन तेवरसँ परिचय होइत छै तखन आश्चर्य लगिते छै। आ से आश्चर्य पोथीक भूमिकामे सेहो भेटत। आ एहन-एहन गौण पक्षकेँ पाठक लग आनए बला साधुवादक पात्र छथि। तँइ भैरवेश्वरजी सेहो धन्यवादक पात्र छथि। मुदा एहि धन्यवादक संगे हम ईहो स्पष्ट कऽ दी जे किछु बिंदुपर हिनक संपादन कमजोर रहि गेल छनि जकर चर्च हम आगू करब। तैयो भैरवेश्वर जी धन्यवादक पात्र रहबे करताह। भैरवेश्वरजी अपन भूमिकामे कविक प्रारंभिक कालक वर्णन आ हुनकर काव्य शैलीक चर्च केने छथि जे कि पर्याप्त नै अछि। पर्याप्त नै अछि माने जे बहुत रास महत्वपूर्ण बिंदुकेँ छोड़ल गेल अछि। प्राचीन कालमे कोनो मूल कविकेँ अपन भाषाक अनुरूप बना कऽ प्रस्तुत करब अपराध नै होइत छलै मुदा आब एहि प्रवृतिकेँ हेय बूझल जाइत छै। बौद्ध कवि भुसुकपाद केर रचनाक अनुवाद कबीर केने छथि तँ जयदेवक रचनाक अनुवाद विद्यापति। दामोदर मिश्रजीक हनुमानपर आधारित नाटक केर अनुवाद रामचरित मानसमे भेटत। तेनाहिते ज्योतिरीश्वर कृत धूर्तसमागम केर अनुवाद अंधेर नगरीमे भेटत। जँ किरणजीक रचना जे कि एहि पोथीमे संकलित अछि ताहिमे सेहो अनुवाद करबाक प्राचीन परंपराकेँ पालन केलाह अछि जेना कि पृष्ठ़-17 पर "नील कलेवर मुरली मनोहर" रचना। ई शुरूआत अछि जँ पोथी पढ़ैत जेबै तँ एहन उदाहरण भेटैत चलि जाएत। भैरवेश्वरजी एहि बिंदुकेँ अपन भूमिकामे नै उठा सकलाह अछि जाहि कारणसँ आजुक पाठक किरणजीपर नकलक आरोप लगा सकै छथि।

पोथीक बहुत रास रचनाक संगे राग-भास केर उल्लेख भेल अछि जे कि नीक अछि। संगे-संग गीतक प्रकार यथा तिरहुत बटगवनी आदिक उल्लेख भेल अछि जकरा भूमिकामे सेहो कहल गेल अछि। मुदा भूमिकामे जे एहि संगे एक चीज छूटल अछि ओ अछि "गजल"। एहि पोथीक पृष़्ठ-87 पर आ ताहिसँ आगू किछु रचनाक उपर गजल शब्दक प्रयोग भेल अछि आ एहि संबंधमे भूमिकामे किछु नै कहल गेल अछि। आगू बढ़ी ताहिसँ पहिने अहाँ सभ गजल लागल रचना सभकेँ पढ़-देखि ली से नीक रहत।

1
प्रिये अपना नैना सँ नैना मिलाउ अहाँ
अपना कोइली वयना के सुर सुनाउ अहाँ

देखि मुखचंद्र प्रेयसि युगपयोधर उन्नते
पान रञ्जित अधर पल्लव मदन मम दसंते
अपना कुसमित छाती मे छाती लगाउ अहाँ

कुसुम कोमल बाहुलति सँ बान्हि चुमबन देहु मे
बसहु काञ्चिनाथ के मन मृदुल बीच मे
हमरा सँ यौवन के सेवा कराउ अहाँ।
(पृष्ठ -87)

2
कन्हैया कन्त सङ सखिया खेलबै आजु होरी
पहिरि कय रेसमी सड़िया उड़ेबै भरि झोड़ी
चलेबै काजरित अँखिया सुतिख-तिख वाण हरि रिपु के।
सुनेबै फगुआ लोभेबै चित्त साजन के

नारिक मान ई यौवन पहुक उत्संग मे बसि के
काञ्चिनाथ पिय के हम चढ़ेबै विहुँसी हँसि के।
(पृष्ठ-88)

3
कन्त बिना कामिनी खेलाएत कोना
भानु बिना कमलिनि फुलाएत कोना
चन्द्र बिना चन्द्रिका अमृताएत कोना
मेघ बिना दामिनि विलसाएत कोना
काञ्चिनाथ विनु लता मुकुलाएत कोना
(पृष्ठ-95)

4
तोरि मदभरी यौवन नसाबए हमे हो
ओठ पर लाली तोर गाल गुलाबी
नयनो मे काजर कटारी मारे हो
बेलि कली सभ यौवन खिलल तोर
रेशम बनल चोली सताबै मोहे हो
काञ्चिनाथ भन तव मुख पंकज
मन मधुकर हिये लुभावै मोरे हो
(पृष्ठ-95-96)

5
प्रीतम मोर विदेश मे हे अलि, वारि वयस के हम भेलौं
फूलल बेली जूही चमेली चम्पा मालति हे आलि
कमलिनि कामिनि मुख अलि चूमय रभसि कुसुम रस पीब हे आलि
मोरा यौवन बगिया मे सखि फुलल अनुपम दुइ कलिया हे आलि
कुसुमक सौरभ चहु दिसि गमकय कौन भ्रमर रस लेता हे आलि
काञ्चिनाथ बिनु के मम सखिया उरज कमल रस पीता हे आलि
(पृष्ठ-96)

6
नयना चला कै मारल तिखवान
गाल गुलाबी शोभय नाक बुलाकी नैना मे कारी कमान
नहुँ-नहुँ यौवना कमल कली सम शुभय मदन के थान
तोर नयन सर बेधल हृदि मँह लहरय गरल समान
(पृष्ठ-97)

7
कमल कुसुम सम फुलु यौवन मम विफल पियाक विना रे
निठुर मलय बहु कुसुम सर वलय कोकिल करथि अनोरे
गुञ्जि भ्रमर कुल घूमय फूल जलय कमलिनि कामिनि द्वारे
काञ्चिनाथ पिय बिनु सखि क्रूरमार सर मारे
(पृष्ठ-97)

8
प्रियतम नाजुक रहितै रतिया मे खेलबितौं सजनी
बेली चमेली जूही चिनतौं रेशम सूत मे गजरा गथितौं
आदर सँ पिया के पहिरबितौं आली, घाड़ाजोड़ी बगिया बुलबितौं सजनी
लाल महल मे पलङ बिछबितौं, कुसुम कली सँ सेज सजबितौं
अपने सुतितौं पिय केँ सतबितौं, बालम छतिया मे छतिया मिलबितौं सजनी
मुसकि-मुसकि युग नैन चलबितौं, प्रियतम मानस मदन जगबितौं
जँ किछु कहितथि हँसि मुख फेरितौं, वालम सँ पौना धरबितौं सजनी
बिहुँसि उठि पिय अंग लगबितौं गहि भुजपाश तनिक मुख चुमितौं
काञ्चिनाथ सङ खेल खेलइतौं आली, नूतन यौवन रसवा लुटबितौं सजनी।
(पृष्ठ- 104)

जखन अहाँ सभ एहि रचना सभसँ गुजरल हएब तँ साफे पता चलि गेल हएत जे ई रचना सभ गजल विधाक रचना नै अछि। तखन फेर ई की अछि? हमरा बुझने किरणजी गजलकेँ राग बुझि लेने छथिन। ई बात हमरा एहि दुआरे बुझाइए जे आन रचना सभमे राग-भास निर्देश कएल गेल छै। ओनाहुतो गजल गायन अर्ध शास्त्रीय संगीतक बेसी निकट छै तँइ किरणजीकेँ भ्रम भऽ गेल हेतनि। मुदा गजल संगीतक विधा छैहे नै तँइ एहि पोथीमे देल गेल रचना गजल विधाक रचना नै अछि। बहुत संभव जे गजल नामक कोनो राग अथवा कि ताल हो मुदा से हमरा नै पता। जँ गजल नामक कोनो राग वा ताल हेबो करतै तँ संगीतक गजल आ साहित्य केर गजलमे अंतर रहबे करतै। भैरवेश्वरजी अपन भूमिकामे एहि सभ तथ्य दिस कोनो इशारा नै केने छथि जाहिसँ नव रचनाकार लग भ्रम पसरबाक पूरा संभावना बनै छै।

एकै रचना किछु पाँति वा किछु शब्दक कारणे दू-दू बेर आएल अछि (देखू पृष्ठ 16-17 केर रचना आ पृष्ठ 79 केर रचना) एहन उदाहरण आर भऽ सकैए। संपादक चाहतथि तँ एकरा संपादित कऽ एक रूपमे आनि सकैत छलाह। मुदा भूमिकामे एहि तथ्य दिस कोनो बात नै कहल गेल अछि। जँ पोथीमे संकलित रचना सभकेँ पढ़ब तँ आधुनिक रोमांटिक गीत सभसँ ई आगू बुझाएत। एक-दू रचना तँ थियेटर (थियेटर के जे अर्थ मैथिलीमे होइत छै से ग्रहण करू) केर चलताउ गीतक बराबर सेहो अछि जेना "छोट-छोट यौवना दू तोर रसाल रे" (पृष्ठ-107)। भैरवेश्वरजी एहू तथ्यकेँ भूमिकामे नै लिखने छथि। "काञ्चीनाथ" भनितासँ एकटा गीत "जगत जननि जगतारिणी" सेहो भेटैत अछि जे कि एहि पोथीमे नै भेटल। बहुत संभव जे हमर नजरिसँ छूटि गेल हो। पाठक हमरा सूचित करथि हम अपन आलेखकेँ सुधारि लेब। अथवा ईहो भऽ सकैए जे "काञ्चीनाथ" भनितासँ आनो कवि लिखने होथि जे कि हमरा पता नै हएत।

जे किछु हो मुदा एहि संपादित पोथीमे देल गेल गजल नाम्ना रचना सभ ने तँ गजल अछि आ ने गजलक इतिहासमे उल्लेख करबा योग्य अछि मुदा ओइ बाबजूद मात्र अइ कारणसँ हम विवरण देलहुँ जे काल्हि कियो उठि कऽ कहि सकै छथि जे किरणजी सन महान साहित्यकार गजल लिखने छथि आ सही लिखने छथि। बस एही कारणसँ हम एतेक मेहनति केलहुँ अन्यथा एहि पोथीमे देल गजल नामक रचना सभमे कोनो एहन बात नै।

एहि आलेख केर शीर्षक अही संपादित पोथीमे देल किरणजीक एकटा गीतपर आधारित अछि। ओहि गीतकेँ ताकि पढ़ब पाठक केर काज छनि।

(विदेहक 336म अंक 15/12/2021 मे प्रकाशित)

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