विदेहक 335म अंक 1/12/2021 मे प्रकाशित हमर आलोचना "भूमिका एक : फाँक अनेक"पर जगदीश चंद्र ठाकुर अनिल जीक ई टिप्पणी जे कि हुनकर फेसबुक वालसँ साभार लेल गेल अछि। हमर आलोचना पढ़बाक लेल शीर्षकपर क्लिक करू।
(पोथी आ आलोचनापर पाठकीय प्रतिक्रिया )
नवारम्भसं प्रकाशित डा.कमल मोहन ‘चुन्नू’ जीक पोथीक नाम अछि ‘आबि रहल एक हाहि’ | पोथी हमरा भेटल छल | उत्सुकता भेल | जहिया हाथमे आएल, ओही राति आरम्भसं पढ़ब आरम्भ केलहुं | किछु पढलाक बाद आगाँ पढबाक उत्साह नहि रहल | पढ़ब लंबित रहि गेल | काल्हि जखन आशीष अनचिन्हारजीक आलोचना पढ़लहुँ त हमरा लेल ई पोथी अत्यन्त महत्वपूर्ण भ’ गेल | पहिने त पोथीक प्रचारक लेल ई प्रायोजित आलोचना लागल, बादमे आश्चर्य सेहो भेल जे भूमिकाक फोटोकॉपी मंगाय आशीषजी एतेक शीघ्र विस्तृत आलोचना लीखि लेलनि, मुदा हमरा लग पोथी रहैत हम भूमिको नहि पढ़ि सकलहुं | एकर दोख हम अपन अवस्थाजन्य अक्षमताकें द’ सकैत छी | आइ पहिल बेर हमरा ई अनुभव भेल जे पोथीकें चर्चित बनयबामे ओकर भूमिकाक आलोचनाक की भूमिका होइत छैक | यैह कारण अछि जे हम पोथीकें ठीकसं पढ़बाक लेल आकर्षित भेलहुँ | दोसर कारण इहो भ’ सकैत अछि जे दोसरक आलोचनामे सुखक अनुभव करबाक संस्कार हमरहु मोनमे विद्यमान हो | भूमिकाक आलोचनाक मिलान भूमिकाक आलेखसं करैत गेलहुँ, एहि तरहें सम्पूर्ण भूमिका पढब आसान भ’ भेल | तकर बाद पोथीक रचना सभ सेहो पढबामे नीक लागल | आब हम सभटा रचना आ आलोचना पढ़िक’ किछु कहबाक स्थितिमे आएल छी |
आलोचनाकें धारदार बनेबाक लेल किछु शब्दक उपयोग हमरा अनसोहांत लागल अछि ( छुल-छुल मूतै बला प्रसंग ) | एहि तरहक शब्द सबहक उपयोगसं सेहो एकटा अस्वस्थ परम्पराक जन्म भ’ सकैत अछि, तें एहिसं बचबाक प्रयास हमरा आवश्यक लगैत अछि | आलोचनाक सीमाक अतिक्रमण नहि हो,से ध्यान राखब चाही | एकटा स्वस्थ परम्पराक रक्षाक लेल एकटा अस्वस्थ परम्पराकें जन्म देब कोना उचित कहल जाएत ? हमरा आलोचनाक सीमा निर्धारित करबाक अधिकार नहि अछि, मुदा एक सामान्य पाठकक रूपमे हमरा लगैत अछि जे आलोचना कबाछु नहि बनबाक चाही | हम देखलहुं अछि जे पोथीमे रचनाक माध्यमसं गाम-घर, राज्य, देश आ दुनियामे घटैत बहुत रास सामाजिक,आर्थिक,राजनीतिक घटना सबहक प्रति अपन विचार आ प्रतिक्रिया व्यक्त कएल गेल अछि | प्रतिक्रिया व्यक्त करब साहित्यकारक हाथमे छनि, व्यक्त करबाक माध्यम शब्द छै, शब्दक उपयोग विभिन्न विधामे करबाक स्वतंत्रता साहित्यकारकें छनि | एहि स्वतंत्रताक संग ओहि विधाक विधानक पालन करबाक कर्तव्य सेहो साहित्यकारक छनि | एहि कर्त्तव्यक पालन नहि भेलासं अस्वस्थ परम्पराक जन्म होइत अछि | साहित्यकार यदि चाहथि जे कर्तव्य पालनक जिम्मेदारी मात्र आन लोक लेल छै, ओ स्वतन्त्र रहताह, त ई उचित नहि कहल जा सकैत अछि |
आइ जे किछु साहित्यमे व्यक्त कएल जा रहल अछि, से पहिनहुं कोनो-ने-कोनो रूपमे व्यक्त कएल जा चुकल अछि | चिन्तक लोकनि कहैत छथि जे देवता आ दानवक संग्राम अनवरत चलैत आबि रहल अछि | रामायण,महाभारत आ आनो धर्म ग्रन्थ द्वारा विभिन्न रूपमे सम्वेदना प्रगट कएल गेल अछि | पछिला सय दू सय बरखमे सेहो हजारो साहित्यिक कृति द्वारा भिन्न-भिन्न तरहें प्रतिक्रिया आ सम्वेदना व्यक्त कएल गेल अछि आ एखनो कएल जा रहल अछि | प्रतिक्रिया आ सम्वेदना व्यक्त करबाक अनेक माध्यम अछि, मुख्य दूटा माध्यम अछि-गद्य आ पद्य | गद्यमे निबन्ध, कथा,लघुकथा,बीहनि कथा, उपन्यास,नाटक,संस्मरण,जीवनी, आत्मकथा आदि मुख्य अछि, तहिना पद्यमे कविता,दोहा,मुक्तक,हाइकू,गीत,गजल,खण्ड काव्य,महाकाव्य आदि मुख्य अछि | सभ विधाक अपन-अपन विशेषता छै | अही विशेषताक कारण ओइ विधाक अस्तित्व छैक |
गजल विधा सेहो अपन किछु खास विशेषताक कारण अस्तित्वमे अछि, काफिया आ बहर अनिवार्य अंग अछि गजलक | रदीफ़ अनिवार्य नहि अछि | रदीफ़ हो त केहेन हो,काफिया आ बहरक आयोजन कोना हो, से किछु अवधिक अभ्याससं सीखल जा सकैत अछि | सौभाग्यक बात अछि जे एहि सम्बन्धमे पर्याप्त जानकारी नेट पर उपलब्ध अछि जे गजलक व्याकरणक गहन अध्ययनक बाद सबहक उपयोग लेल प्रस्तुत कएल गेल अछि | ओना अपन अनुभवसं हम जनैत छी जे सुनि-सुनिक’, पढ़ि-पढ़िक’ बहुत गोटे रदीफ़ आ कफियाक विषयमे किछु-किछु जान’ लगैत छथि आ लिखनाइ शुरू क’ दैत छथि | रदीफ़ चुनबामे त कष्ट नै होइत छनि, कारण समान शब्द अथवा शब्द-समूहक आवृति पहिल शेरक दुनू पांतीक अन्तमे आ बादक प्रत्येक शेरक दोसर पांतीक अन्तमे होइत छैक | सभ शेरमे काफियाक मिलान ठीक रखबामे गजलक व्याकरणक जानकारी आ अभ्यासक आवश्यकता होइत छैक | एत’ अबैत-अबैत बहुत लोक थाकि जाइत छथि आ बहर संतुलित रखबाक बेरमे असंतुलित भ’ जाइत छथि अथवा ओतबेकें पूर्ण मानबापर आ मनयबापर अड़ि जाइत छथि | दुष्यन्त कुमार जीक एकटा शेरक एक पांती छनि :
‘यहाँ तक आते-आते सूख जाती हैं कई नदियाँ’
व्याकरणक ज्ञान आ निरंतर अभ्यास एकर एकमात्र समाधान अछि | जे सभ कहैत छथि जे हम विचारकें प्रधानता दैत छी,ओहो सभ रदीफ़ आ काफियाक पालन त अवश्य करय चाहैत छथि कारण तखने रचना ‘गजल जकाँ’ लाग’ लगैत छै, मुदा रचनाकें गजल बनबामे बहरक खगता रहिए जाइत छैक | अहू संकलनमे देखलहुँ अछि जे रदीफ़ आ काफियाक निर्वाह करबाक प्रयास कएल गेल अछि | किछु गजलमे सभ शेरमे काफियाक निर्वाह करैत काल गंभीरताक अथवा धैर्यक अभाव दृष्टिगोचर होइत अछि | बहरक पालन लेल सेहो प्रयास भेल अछि, मुदा समयक अभावक कारण ओकरा प्रति गम्भीरता नहि राखल गेल अछि | जत’ ओहि लेल उपयुक्त शब्द तकबामे किछु समय आवश्यक छलै, ओत’ समय देबाक बदला रचनाकार आगू बढि गेल छथि किछु और बात कह्बाक लेल | एक बैसकीमे एकटा गजल लीखिक’ उठब यदि लक्ष्य हो त गजलक संग न्याय नहि क’ सकबाक संभावना अधिक भ’ जाइत छैक | पोथीक भूमिका कहैत अछि जे गजलक वैधानिकता आ वैचारिकतापर आश्रित दूटा सम्प्रदायमे एक सम्प्रदाय विचारक स्वास्थ्यक बिना परवाह केने गजलक व्याकरण-विधानकें अक्षुण्ण रखबाक समर्थक अछि, दोसर सम्प्रदाय गजलक माध्यमसं अपन बात-विचार कहबाक समर्थक अछि | एहि उक्तिक सोझ अर्थ ई अछि जे किछु गोटे गजलक व्याकरणकें पूर्णतः मानैत अपन बात कहैत छथि,मुदा बात दमगर नै रहि जाइत छनि ; दोसर दिस किछु गोटे गजलक व्याकरणकें आंशिक रुपें मानैत दमगर बात कहैत छथि | मतलब गजलक व्याकरणकें आंशिक रूपें मानैत कएल गेल रचनाकें गजल कहबाक आ ओकर स्वीकृति पयबाक आग्रह अछि | एकरा और सरल करी त ई कहल गेल अछि जे रदीफ़ रहित अथवा रदीफ़ सहित सभ शेरमे शुद्ध अथवा अशुद्ध काफिया बला रचनाकें गजल मानू | एत’ प्रश्न ई उठैत छैक जे दूटा अनिवार्य अंगमे एकटाकें मानू, दोसरकें नै मानू, एकटा राखू,दोसर नै राखू, एहेन रचनाकें गजल कहबाक जिद्दे किएक ? विचारणीय बात ई अछि जे कोनो विधामे रचना करैत काल ओहि विधाक व्याकरणक प्रति गम्भीरताक अभाव ओहि विधाकें कोना स्वस्थ राखि सकैत अछि ? पोथीक एक पृष्ठपर जाहि रचनाकार सबहक प्रति आभार प्रगट कएल गेल अछि, ओहो सभ कतहु-ने-कतहु एहि अनियमितताक लेल दोखी मानल जा सकैत छथि | हम अपन दोखक चर्च करब आवश्यक बुझैत छी | हम एकटा गजलक प्रथम शेरक दुनू पांतीमे गजल लेखनमे परस्पर विरोधी दू तरहक विचारकें व्यक्त केने छी : एक पांतीमे एकटा विचार अछि किछु रचनाकारक जे बहरक झंझटसं मुक्ति चाहैत छथि, दोसर पांतीमे गजलक विचार अछि, जे अपन बरबादी नै देखय चाहैत अछि | हम कतहु अपने गजल कहैत काल ई बात कहि दैत छी, मुदा क्यो पढैत छथि त भ्रम होइत छनि जे हमहूँ गजलमे बहरक पालन करबाक विरोध करैत छी | ओ शेर अछि :
बहरक झंझटिसं हमरा आजाद करू
हम गजल छी, हमरा नै बरबाद करू
ई शेर स्थापित सरल वार्णिक बहरमे रचल गजलक अछि | विभिन्न प्रकारक बहरक जानकारी आवश्यक अछि गजल लेखनक लेल | ओना हमहूँ एखन सीखिए रहल छी, एखनहु गलती करैत छी आ मानैत छी जे गलती भेल अछि, ओहिमे सुधारक प्रयास करैत छी | विचारमे हम स्वच्छ दुनियाँ चाहैत छी त अपन रचनामे सेहो स्वच्छता सुनिश्चित करबामे कोताही किएक ? यदि हमर रचना गजल कहयबाक योग्यता नहि रखैत अछि त ओकरा गजल कहबाक जिद्द्क की प्रयोजन ? गीत कहब,कविता कहब | किछु गोटेक मत ई भ’ सकैत छनि जे रचनाकार आगू-आगू चलताह आ व्याकरण पाछू-पाछू अथवा इहो कहल जा सकैत अछि जे साहित्यमे सेहो लोकतन्त्र हेबाक चाही आ बेशी लोक जेना चाहैत छथि तकरे आधार अथवा तकरे सही मानल जाए, तखन जे साहित्यिक अराजकताक स्थिति उत्पन्न हएत तकर की करब ? आम जीवनमे हत्या अथवा शीलहरणकें अपराध मानल जाइत अछि | गजलमे बहरक अनिवार्यताकें नष्ट करबाक जोर-जबरदस्तीक क्रियाकें गजल विधाक शीलहरणक प्रयास नहि त आर की कहल जा सकैत अछि ?
जगदीश चन्द्र ठाकुर ‘अनिल’/ पटना / 7.12.2021
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