रुबाइ 1
आँचर नहि उठाबू आँखिसँ पीबय दिअ
हम जन्मसँ पियासल करेज जुड़बय दिअ
के कहैत अछि निसाँ शराबमे बड़ अछि
कनी अपन प्रेमक निसाँमे जीबय दिअ
रुबाइ 2
हम पीलौं तँ लोक कहलक शराबी अछि
कहू एतअ के नहि बहसल कबाबी अछि
बुझलौं अहाँ सभ दुनियाक ठेकेदार
हमरो आँखिसँ देखू की खराबी अछि
रुबाइ 3
पीब नै शराब तँ हम जीब कोना कय
फाटल करेजकेँ हम सीब कोना कय
सगरो जमाना भेल दुश्मन शराबक
सबहक सोंझा तँ आब पीब कोना कय
रुबाइ 4
पीलौं शराब तँ दुनियाँ कहलक बताह
बिन पीने ई दुनियाँ भेल अछि कटाह
जे नहि पीलक कहाँ अछि ओकरो महल
तँ पिबिए क' किएक नहि बनि जाइ घताह
रुबाइ 5
भेटल नहि सिनेह तेँ शराबे पीलौं
दर्शन हुनक हरदम गिलासमे केलौं
के कहैत अछि शराब छैक खराब ‘मनु’
बिन हुनक रहितौं शराबे सँ हम जीलौं
रुबाइ 6
ढोलक धम-धमा-धम बजैत किएक छै
घुँघरू खन-खना-खन खनकैत किएक छै
दुनू भीतरसँ छैक एक्केसन खाली
दुनू अपन गप्प नहि बुझैत किएक छै
रुबाइ 7
पीलौं नहि तँ की छै शराब बूझब की
बिन पीने दुनियाँमे करब तँ करब की
एक दोसरकेँ सभ अछि खून पीबैत
खून छोड़ि शराबे पी कय देखब की
रुबाइ 8
गोरी तोहर काजर जान मारैए
छौंरा सभ सगर हाय तान मारैए
पेएलक बड़ भाग काजर विधातासँ
तोहर आँखिमे कते शान मारैए
रुबाइ 9
काजर बुझि कय अपन आँखिमे बसा लिअ
मित बना कय कनीक करेजसँ लगा लिअ
ऐना जुनि अहाँ कनखी नजरि घुमाऊ
आँखिक अपन करीया काजर बना लिअ
रुबाइ 10
फूसियो जँ कनी अहाँ इशारा करितहुँ
भरि जीवन हम अहीँक बाटमे रहितहुँ
मुस्कीमे अहाँक अपन मोन लूटा क’
तरहत्थीपर जान लेने हम अबितहुँ
रुबाइ 11
अनकर घर जड़ा हाथ सेकै सभ कियो
दोसरक करेजा तोरि हँसै सभ कियो
अपना पर जे बिपति एलै कएखनो
माथा पकडि हिचुकि-हिचुकि कनै सभ कियो
रुबाइ 12
कोन बिधि मरि कय हम रुपैया कमेलौं
सुख चैन निन्न रातिकेँ अपन हरेलौं
गाम घरक सबटा सऽर संबंध तियागि
बिन कसूरे बाहर वनवास बितेलौं
रुबाइ 13
घाट-घाट पर सुतल कतेको गोहि अछि
साउध लोककेँ मोन लेने मोहि अछि
धर्मक नाम पर खुजल कतेक दोकान
टाका लs छनमे सभटा पाप धोहि अछि
रुबाइ 14
बाबूजीक करेजमे सदिखन रहलहुँ
हुनक तन मन धन सगरो हम पेएलहुँ
रौद पानि दाहीसँ सदिखन बचेलन्हि
सेबाक बेड़मे हम परदेश भगलहुँ
रुबाइ 15
देह जान सबटा बाबूजी देलन्हि
जे किछु छी एखन बाबूजी केलन्हि
अपने रहि भूखे हमर पेट भरलन्हि
सुधि अपन बिसरि हमरा मनुख बनेलन्हि
रुबाइ 16
जे जन्म देलन्हि ओ कहलन्हि गदहा
जे पोसलन्हि ओ मानलन्हि गदहा
गदहा जँका सगरो जिन्दगी बितेलहुँ
जिनका बियाहलहुँ ओ बुझलन्हि गदहा
रुबाइ 17
मैथिली साहित्यक आँच सुलगैत अछि
सगरो नव विधाक ज्वला पजरैत अछि
कोटी नमन जिनकर बिछल जारैन अछि
विदेहक बारल आगि 'मनु' लहकैत अछि
रुबाइ 18
सिस्टम आइकेँ किए बबाल बनल अछि
नेता सभ तँ एकटा जपाल बनल अछि
बड़ बड़ बागर बिल्ला राज चलबैए
जनताक प्राणेपर सबाल बनल अछि
रुबाइ 19
गामक अधिकारी भेला सैंया हमर
कोना क पकड़तै कियोक बैंया हमर
सभक पेटीक माल आब हमरे छैक
सैंया लऽ लेथिन सभटा बलैंया हमर
रुबाइ 20
साँवरिया पिया अहाँ ई की कएलहुँ
साउन चढ़ल छोड़ि चलि कोना गएलहुँ
बहल हवा शीतल सिहरैए हमर तन
कोना रहब बिनु अहाँ बुझि नै पएलहुँ
रुबाइ 21
गोरी तोर मुस्कीमे छौ जहर भरल
नै एना मुँह खोल कते घायल परल
जँ निकैल गएलौ फूलझड़ी सन हँसी
बाटपर भेटत कतेको छौंड़ा मरल
रुबाइ 22
नैन्हेटा हाथमे केहन लकीड़ छै
नै माय बाप ई केहन तकदीर छै
धो धो कऽ ऐँठ कप लकीड़ो खीएलै
नै सुनलक कियो ई दुनियाँ बहीर छै
रुबाइ 23
कर्जा कय क जीवन हम जीव रहल छी
फाटल अपनकेँ कहुना सीब रहल छी
सभ किछु लूटा कय ‘मनु’ अपन जीवनकेँ
निर्लज जकाँ हम ताड़ी पीब रहल छी
रुबाइ 24
अभिमन्यु जकाँ चक्रव्यूहमे फसलौं
नै बचब सिख हम अर्जुन बनि पेएलौं
'मनु' जीवनकेँ एही महाभारतमे
सगरो ठार हम कौरव केर देखलौं
रुबाइ 25
हम जरैत छी की अहाँ प्रकाशित रही
अहाँक सुख लेल खुशीसँ हम आँच सही
बातीकेँ जरैत ई दुनिया देखलक
तेल बनि हम तँ जरलौं दुख कतेक कही
✍🏻 जगदानन्द झा ‘मनु’