अधम दिस दियौ ध्यान मोहन मुरारी
सहज ओ सरस बनि सरल ओ तरल बनि
सुनाबथि अपन तान मोहन मुरारी
रचा रास योगी सुना सत्य भोगी
रसिक रस कला ज्ञान मोहन मुरारी
शरणमे जे पहुँचल से सभ मोक्ष पेलक
नै जानथि अपन आन मोहन मुरारी
हमर भाव जे छै अहीं लेल रहलै
लियौ तुच्छ दुभि धान मोहन मुरारी
सभ पाँतिमे 122-122-122-122 मात्राक्रम अछि। गजलमे मान्य छूट लेल गेल अछि। ई बहरे मुतकारिब मुसम्मन सालिम अछि। सुझाव सादर आमंत्रित अछि।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें