सोमवार, 5 अप्रैल 2010

मैथिली गजल-शास्त्र- भाग-२

मैथिलीमे उच्चारण निर्देश:



दन्त न क उच्चारणमे दाँतमे जीह सटत- जेना बाजू नाम , मुदा ण क उच्चारणमे जीह मूर्धामे सटत (नहि सटैए तँ उच्चारण दोष अछि)- जेना बाजू गणेश। तालव्य मे जीह तालुसँ , मे मूर्धासँ आ दन्त मे दाँतसँ सटत। निशाँ, सभ आ शोषण बाजि कऽ देखू। मैथिलीमे केँ वैदिक संस्कृत जेकाँ सेहो उच्चरित कएल जाइत अछि, जेना वर्षा, दोष। य अनेको स्थानपर ज जेकाँ उच्चरित होइत अछि आ ण ड़ जेकाँ (यथा संयोग आ गणेश संजोगगड़ेस उच्चरित होइत अछि)। मैथिलीमे व क उच्चारण ब, श क उच्चारण स आ य क उच्चारण ज सेहो होइत अछि।
ओहिना ह्रस्व इ बेशीकाल मैथिलीमे पहिने बाजल जाइत अछि कारण देवनागरीमे आ मिथिलाक्षरमे ह्रस्व इ अक्षरक पहिने लिखलो जाइत आ बाजलो जएबाक चाही। कारण जे हिन्दीमे एकर दोषपूर्ण उच्चारण होइत अछि (लिखल तँ पहिने जाइत अछि मुदा बाजल बादमे जाइत अछि) से शिक्षा पद्धतिक दोषक कारण हम सभ ओकर उच्चारण दोषपूर्ण ढंगसँ कऽ रहल छी।
अछि- अ इ छ ऐछ
छथि- छ इ थ छैथ
पहुँचि- प हुँ इ च
आब अ आ इ ई ए ऐ ओ औ अं अः ऋ एहि सभ लेल मात्रा सेहो अछि, मुदा एहिमे ई ऐ ओ औ अं अः ऋ केँ संयुक्ताक्षर रूपमे गलत रूपमे प्रयुक्त आ उच्चरित कएल जाइत अछि। जेना ऋ केँ री रूपमे उच्चरित करब। आ देखियौ- एहि लेल देखिऔ क प्रयोग अनुचित। मुदा देखिऐ लेल देखियै अनुचित। क् सँ ह् धरि अ सम्मिलित भेलासँ क सँ ह बनैत अछि, मुदा उच्चारण काल हलन्त युक्त शब्दक अन्तक उच्चारणक प्रवृत्ति बढ़ल अछि, मुदा हम जखन मनोजमे ज् अन्तमे बजैत छी, तखनो पुरनका लोककेँ बजैत सुनबन्हि- मनोजऽ, वास्तवमे ओ अ युक्त ज् = ज बजै छथि।
फेर ज्ञ अछि ज् आ ञ क संयुक्त मुदा गलत उच्चारण होइत अछि- ग्य। ओहिना क्ष अछि क् आ ष क संयुक्त मुदा उच्चारण होइत अछि छ। फेर श् आ र क संयुक्त अछि श्र ( जेना श्रमिक) आ स् आ र क संयुक्त अछि स्र (जेना मिस्र)। त्र भेल त+र ।
उच्चारणक ऑडियो फाइल विदेह आर्काइव http://www.videha.co.in/ पर उपलब्ध अछि। फेर केँ / सँ / पर पूर्व अक्षरसँ सटा कऽ लिखू मुदा तँ/ के/ कऽ हटा कऽ। एहिमे सँ मे पहिल सटा कऽ लिखू आ बादबला हटा कऽ। अंकक बाद टा लिखू सटा कऽ मुदा अन्य ठाम टा लिखू हटा कऽ जेना छहटा मुदा सभ टा। फेर ६अ म सातम लिखू- छठम सातम नहि। घरबलामे बला मुदा घरवालीमे वाली प्रयुक्त करू।
रहए- रहै मुदा सकैए- सकै-ए
मुदा कखनो काल रहए आ रहै मे अर्थ भिन्नता सेहो, जेना
से कम्मो जगहमे पार्किंग करबाक अभ्यास रहै ओकरा।
पुछलापर पता लागल जे ढुनढुन नाम्ना ई ड्राइवर कनाट प्लेसक पार्किंगमे काज करैत रहए
छलै, छलए मे सेहो एहि तरहक भेल। छलए क उच्चारण छल-ए सेहो।
संयोगने- संजोगने
केँ- के / कऽ
केर- क (केर क प्रयोग नहि करू )
क (जेना रामक) रामक आ संगे राम के/ राम कऽ
सँ- सऽ
चन्द्रबिन्दु आ अनुस्वार- अनुस्वारमे कंठ धरिक प्रयोग होइत अछि मुदा चन्द्रबिन्दुमे नहि। चन्द्रबिन्दुमे कनेक एकारक सेहो उच्चारण होइत अछि- जेना रामसँ- राम सऽ रामकेँ- राम कऽ राम के

केँ जेना रामकेँ भेल हिन्दीक को (राम को)- राम को= रामकेँ
क जेना रामक भेल हिन्दीक का ( राम का) राम का= रामक
कऽ जेना जा कऽ भेल हिन्दीक कर ( जा कर) जा कर= जा कऽ
सँ भेल हिन्दीक से (राम से) राम से= रामसँ
सऽ तऽ त केर एहि सभक प्रयोग अवांछित।
के दोसर अर्थेँ प्रयुक्त भऽ सकैए- जेना के कहलक
नञि, नहि, नै, नइ, नँइ, नइँ एहि सभक उच्चारण- नै

त्त्व क बदलामे त्व जेना महत्वपूर्ण (महत्त्वपूर्ण नहि) जतए अर्थ बदलि जाए ओतहि मात्र तीन अक्षरक संयुक्ताक्षरक प्रयोग उचित। सम्पति- उच्चारण स म्प इ त (सम्पत्ति नहि- कारण सही उच्चारण आसानीसँ सम्भव नहि)। मुदा सर्वोत्तम (सर्वोतम नहि)।
राष्ट्रिय (राष्ट्रीय नहि)
सकैए/ सकै (अर्थ परिवर्तन)
पोछैले/
पोछैए/ पोछए/ (अर्थ परिवर्तन)
पोछए/ पोछै
ओ लोकनि ( हटा कऽ, ओ मे बिकारी नहि)
ओइ/ ओहि
ओहिले/ ओहि लेल
जएबेँ/ बैसबेँ
पँचभइयाँ
देखियौक (देखिऔक बहि- तहिना अ मे ह्रस्व आ दीर्घक मात्राक प्रयोग अनुचित)
जकाँ/ जेकाँ
तँइ/ तैँ
होएत/ हएत
नञि/ नहि/ नँइ/ नइँ
सौँसे
बड़/ बड़ी (झोराओल)
गाए (गाइ नहि)
रहलेँ/ पहिरतैँ
हमहीं/ अहीं
सब - सभ
सबहक - सभहक
धरि - तक
गप- बात
बूझब - समझब
बुझलहुँ - समझलहुँ
हमरा आर - हम सभ
आकि- आ कि
सकैछ/ करैछ (गद्यमे प्रयोगक आवश्यकता नहि)
मे केँ सँ पर (शब्दसँ सटा कऽ) तँ कऽ धऽ दऽ (शब्दसँ हटा कऽ) मुदा दूटा वा बेशी विभक्ति संग रहलापर पहिल विभक्ति टाकेँ सटाऊ।
एकटा दूटा (मुदा कैक टा)
बिकारीक प्रयोग शब्दक अन्तमे, बीचमे अनावश्यक रूपेँ नहि।आकारान्त आ अन्तमे अ क बाद बिकारीक प्रयोग नहि (जेना दिअ, आ )
अपोस्ट्रोफीक प्रयोग बिकारीक बदलामे करब अनुचित आ मात्र फॉन्टक तकनीकी न्यूनताक परिचाएक)- ओना बिकारीक संस्कृत रूप ऽ अवग्रह कहल जाइत अछि आ वर्तनी आ उच्चारण दुनू ठाम एकर लोप रहैत अछि/ रहि सकैत अछि (उच्चारणमे लोप रहिते अछि)। मुदा अपोस्ट्रोफी सेहो अंग्रेजीमे पसेसिव केसमे होइत अछि आ फ्रेंचमे शब्दमे जतए एकर प्रयोग होइत अछि जेना raison detre एत्स्हो एकर उच्चारण रैजौन डेटर होइत अछि, माने अपोस्ट्रॉफी अवकाश नहि दैत अछि वरन जोड़ैत अछि, से एकर प्रयोग बिकारीक बदला देनाइ तकनीकी रूपेँ सेहो अनुचित)।
अइमे, एहिमे
जइमे, जाहिमे
एखन/ अखन/ अइखन

केँ (के नहि) मे (अनुस्वार रहित)
भऽ
मे
दऽ
तँ (तऽ त नहि)
सँ ( सऽ स नहि)
गाछ तर
गाछ लग
साँझ खन
जो (जो go, करै जो do)
लिखू मैथिली गजल:
६ सँ १० टा शेर मोटामोटी एकटा गजलक निर्माण करत। मुदा कोनो ६-७ टा शेरकेँ एकक बाद दोसर लिखि देबै तँ गजल नञि बनि जाएत।
एहिमे दू-चारि टा गपपर ध्यान देमए पड़त।
जेना वर्ड डोक्युमेन्टमे जस्टीफाइ कएलासँ पाँतिक आदि अन्तमे एकरूपता आबि जाइ छै तहिना यदि शेरक दुनू पाँती गजलक सभ शेरमे बिनु जस्टीफाइ केने पाँतिक आदि अन्तमे एकरूपता रहए तँ कहल जाएत जे एकहि बहरमे अछि एहि तरहक शेरक समुच्चय एकटा गजलक भाग होएबाक अधिकारी होएत (मैथिलीक सन्दर्भमे वार्णिक छन्दक गणना पद्धति जे भाग- मे देल गेल अछि माने

हलंतयुक्त्त अक्षर-0
संयुक्त अक्षर-1
अक्षर अ सँ ह -1 प्रत्येक।
, से उपयोगमे कएल जाए ओहि आधारपर १९ बहरक बदला छोट-मझोला पैघ आकारक पाँतिक उपयोग कएल जाए- नामकरणक कोनो आवश्यकता नहि)) ; संगहि गजलक पहिल शेरक दुनू पाँतीक अन्त मे शेष शेरक दोसर पाँतीक अन्त मे एक वा एकसँ बेशी शब्दक समूह दोहराओल जाएत (रदीफ) सेहआवश्यक ओना बिनु रदीफक सेहो गजल कहि सकै छी-एक्के भावपर सेहो जजल कहि सकै छी, बिनु मतलाक बिनु मकताक (लोक तँ मकतासँ सेहो गजलक प्रारम्भ करै छथि) सेहो गजल लिखि सकै छी- शेरक दुनू पाँती गजलक सभ शेरक बहरमे एकरूपता सेहो नहि राखि सकै छी- मुदा सभ अपवादे स्वरूप, अपवाद तँ अपूर्ण रहिते अछि। मतला एकसँ बेशी सेहो भऽ सकैए। गजल कोन शेर हुस्न--गजल (सभसँ नीक शेर) अछि ताहिमे ओहि गजलक विभिन्न समीक्षकक मध्य मतभिन्नता रहि सकैत अछि। फेर काफिया ओना तँ गजलक सभ शेरमे रहै छै (रदीफक पहिने) शब्द बदलै छै (एकाध बेर पुनः प्रयोग कऽ सकै छी) मुदा ध्यानसँ देखलापर लागत जे तुक मिलानीक दृष्टिएँ ओहूमे शब्दक आरम्भ-मध्य-आखिरीक किछु अक्षर नहि बदलै छै। माने लय रहबाके चाही।

आब आऊ किछु गजल सुनी:
सबसबाइत गप्प छल तकैत हमरापर गुम्हराइत (२३ वार्णिक मात्रा - रदीफ गुम्हराइत- काफिया युक्त शब्द हमरापर)
आबैत छलए खौंझाइत सेहो ओकरापर गुम्हराइत (२३ वार्णिक मात्रा - रदीफ गुम्हराइत- काफिया युक्त शब्द ओकरापर)

होएत हँसारथि की रहि जाएत चुकड़िऔने मोन मारि (२३ वार्णिक मात्रा )
बाजत नै मुँह फुलौने, रहत मुदा मोनपर गुम्हराइत (२३ वार्णिक मात्रा - रदीफ गुम्हराइत- काफिया युक्त शब्द मोनपर)

ईह कहलकै जे, मोने-मोन प्रसन्न अछि मारने गबदी (२३ वार्णिक मात्रा )
बुझैए सभ हमहीं बुझै छी, नियारे-भासपर गुम्हराइत (२३ वार्णिक मात्रा - रदीफ गुम्हराइत- काफिया युक्त शब्द नियारे-भासपर)

माने तोहूँ तोहर बापो हमर सार सम्बन्ध फरिछा देबौ (२३ वार्णिक मात्रा )
गप्पी छथि ! मुँह घुमेने देखैए कोना मचानपर गुम्हराइत (२३ वार्णिक मात्रा - रदीफ गुम्हराइत- काफिया युक्त शब्द मचानपर)

बुझै सभटा छी से नै जे नै बुझै छी मुदा मोना कहैए साइत (२३ वार्णिक मात्रा )
बड़बड़ाइए बाइमे, माने अछि स्वयम् पर गुम्हराइत (२३ वार्णिक मात्रा - रदीफ गुम्हराइत- काफिया युक्त शब्द स्वयम् पर)

"ऐरावत" बुझैत बुझि गेल छी जे सृष्टिक पहिलुके राति (२३ वार्णिक मात्रा )
सभ चरित्र रहल देखैत, एक-दोसरापर गुम्हराइत (२३ वार्णिक मात्रा - रदीफ गुम्हराइत- काफिया युक्त शब्द एक-दोसरापर)

2 टिप्‍पणियां:

  1. काफिया केखनो शब्दक नहि , वर्ण आ मात्राक होइत छैक। जेना हमरापर आ ओकरापर दूनू शब्द मे र काफिया छैक। तेनाहिते आरे आ माँड़े(हमर गजलक) मे ए मात्रा कफिया छैक।
    एकै भाव बला गजल दूषित मानल जाइत अछि।

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  2. मैथिली आ संस्कृतमे मात्र तुकान्त (अन्तक तुक) लयक निर्माण नहि करै छै, मुदा करितो छै।
    से ई गप जे-
    जे तुक मिलानीक दृष्टिएँ ओहूमे शब्दक आरम्भ-मध्य-आखिरीक किछु अक्षर नहि बदलै छै।
    सायास लिखल गेल अछि।

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तोहर मतलब प्रेम प्रेमक मतलब जीवन आ जीवनक मतलब तों