आब मैथिली गजलक किछु कठिनाह विषएपर आबी।
कठिनाह विषए किछु विविधता आनत आ मैथिलीक परिप्रेक्ष्यमे नूतनता सेहो, मुदा ततेक कठिनाह सेहो नहि।
वैदिक आ मैथिली छन्दक गणना अक्षरसँ होइत अछि से तँ कहिये गेल छी, गुरु-लघुक विचार ओतए नहि भेटत। मैथिल ब्राह्मण आ कर्ण कायस्थ लौकिक संस्कृत आ हिन्दीसँ प्रभावित छथि मुदा गएर मैथिल ब्राह्मण आ कर्ण कायस्थक शब्दावलीमे ढेर रास शब्द भेटत जे वैदिक संस्कृतमे अछि मुदा लौकिक संस्कृतमे नहि, तेँ कम दूषित आ खाँटी मैथिली भाषा हुनके लोकनिक अछि आ तेँ छन्दक गणना अक्षरसँ करबाक आर बेशी आवश्यकता।
गायत्री-२४ अक्षर
उष्णिक्- २८ अक्षर
अनुष्टुप् – ३२ अक्षर
बृहती- ३६ अक्षर
पङ्क्ति- ४० अक्षर
त्रिष्टुप्- ४४ अक्षर
जगती- ४८ अक्षर
शूद्र कवि ऐलुष आ आन गोटे द्वारा रचित ऋक् वेद मे गायत्री, त्रिष्टुप् आ जगतीक छन्द सर्वाधिक परिमाणमे भेटैत अछि से एहि तीनूपर विचारी।
गायत्री: ई चारि प्रकारक होइत अछि- द्विपदी, त्रिपदी, चारि पदी आ पाँचपदी। चारि पदी मे ८-८ अक्षरक पद आ एक पदक बाद अर्द्धविराम आ दू पदक बाद पूर्णविराम दए सकै छी। माने एक गायत्री शेर तैयार। ओना एहिठाम हम स्पष्ट करी जे गायत्री मंत्र नहि छंद छैक। लोक जकरा गायत्री मंत्र कहैत छैक ओ सविता मंत्र छैक जे गायत्री छंद मे कहल गेल छैक।
त्रिष्टुप्: चारि पद, ११-११ अक्षरक पद आ एक पदक बाद अर्द्धविराम आ दू पदक बाद पूर्णविराम दए सकै छी। माने एक त्रिष्टुप् शेर तैयार।
जगती: चारि पद १२-१२ अक्षरक पद आ एक पदक बाद अर्द्धविराम आ दू पदक बाद पूर्णविराम दए सकै छी। माने एक जगती शेर तैयार।
आब जेना पहिने कहल गेल अछि जे गायत्रीमे एक-दू अक्षर कम वा बेशी सेहो भए सकैत अछि माने २२ सँ २६ अक्षर धरि गायत्रीक प्रकार भेल- विराड् गायत्री भेल- २२ निचृद् गायत्री भेल- २३ भुरिग् गायत्री भेल- २५ आ स्वराड् गायत्री भेल २६ अक्षरक। तँ निअमक अन्तर्गत भेटि गेल ने छूट आ स्वतंत्र भऽ गेल ने मैथिली गजल।
पूर्ण विराम छोड़ियो सकै छी।
आउ आब गजल कही:
गायत्री गजल
त्रिष्टुप् गजल
जगती गजल
(क्रमशः भाग-४ मे)
वेद मे सब किछु छै।ओहि मे रसायन विज्ञान छै। कम्प्यूटर आ इन्टरनेट छै।ओहि मे एड्स के इलाज छै।ओहि मे परमाणु विज्ञानो छै।वेद जिन्दाबाद छै। गजल के बापक दिन छियै जे ओ वेद मे नहि रहतै?लेकिन बन्धु, हमर विचार जे फारसीक काव्यशास्त्र के हिन्दुत्वीकरण के बदला मौलिक गजल-रचना मे हिन्दुत्व आनल जाय तं से बेसी श्रेयस्कर।की करबै? दिल पर पाथर राखि लिय" जे ओहि विधर्मी सभक लग मे सेहो काव्य छलै, काव्यशास्त्र छलै।
जवाब देंहटाएं१.गजलक बापक दिन छिऐ वा नै से तँ नञि बुझल अछि, मुदा वेदमे आन चीज जे होइ मुदा गजल नञि छै आ ओ काव्यशास्त्र फारसक फेर अरबक अछि से जगतख्यात अछि, आ एहिमे हमरा वा ककरो कोनो संदेह नञि होएबाक चाही।
जवाब देंहटाएं२. फारसीक काव्यशास्त्रक हिन्दुत्वीकरणक संबंधमे हमरा नञि बुझल अछि आ मौलिक गजल रचनामे कोना हिन्दुत्व आनल जाए सेहो हमरा नञि बुझल अछि। काव्यकेँ "हिन्दु" आ "विधर्मी" शब्दावलीसँ दूर राखल जाए सएह नीक, हँ "मैथिली गजल" शब्दक प्रयोगमे हमरा कोनो आपत्ति नञि, आ तकरा हिन्दुत्वीकरण मानल जाए तँ हमर कोनो दोख नहि।
३.ओहि "विधर्मी"(अहाँक शब्दमे) लग सेहो काव्यशास्त्र रहै- ई विश्वास करबामे ककरो करेजपर पाथर नञि राखए पड़तै कारण जतेक सौँसे विश्वमे मिला कऽ कवि/ काव्यशास्त्री भेल होएताह ओहिसँ बेशी कवि/ काव्यशास्त्री अरबी-फारसीमे भेल छथि।
४.प्रायः मैथिली भाषामे गजल जे हम लिखी तँ छन्दशास्त्रक अनुसार लिखी, आ से छन्दशास्त्र हम अरबी-फारसीक प्रयुक्त करी, प्रायः अहाँक मंतव्य से अछि। मुदा ओ ट्राइ कऽ कए हम नञि आनो भाषाबला सभ (जेना अंग्रेजी गजलक शास्त्रकार लोकनि)थाकि गेल छथि, ओहिमे ने लय बनि पबै छै आ ने सरलता आबि पबै छै। ऋगवैदिक छन्दशास्त्र टगण-मगण सँ बेशी वैज्ञानिक आ सरल छै आ मैथिली गजल लिखबा-पढ़बा-गुनगुनएबामे लोककेँ सुविधा होएतैक से हमर विश्वास अछि- वेदक समएमे हिन्दू शब्दक जन्मो नहि भेल रहै से वैदिक छन्दशास्त्रक प्रयोग मात्र मैथिली गजलकेँ हिन्दू बना देतै से हमरा नञि लगैए।
सादर
गजेन्द्र
५.तहिना जखन हम "मैथिली हाइकूशास्त्र" लिखने रही तहिया सेहो हमरा लग "वार्णिक" आ "मात्रिक"मे एकटा चयन करबाक छल, आ तहियो हम "वार्णिक"क अक्षर गणना पद्धतिक चयन कएलहुँ। "शिन्टो" धर्मावलम्बी जापानी (किछु बौद्ध सेहो) सभक लिपि आ तकर छन्दशास्त्र जे प्रयोग करी तँ मैथिलीमे हाइकू कहियो नञि लिखल जा सकत; कारण ओकर काव्यशास्त्र जापानी भाषा आ ओकर कएक तरहक लिपिक सापेक्ष छै आ ओहिमे धर्म अबितो छलै (टनका/ वाका- ईश्वरक आह्वाण)। अरबी-फारसी गजल मुदा धर्म निरपेक्ष छै, मुदा ओकर काव्यशास्त्र ओकर अपन भाषा-लिपि लेल छै। से भाषा-निरपेक्ष ने जापानी काव्यशास्त्र भऽ सकै छै आ ने अरबी-फारसी काव्यशास्त्र।
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