कविवर जीवन झाक नाटक सुन्दर संयोगसँ लेल मैथिलीक पहिल गजल
सुन्दर संयोग चतुर्थ अंकमे लेखक स्वयं (गजल) कहि एकरा सम्बोधित कएने छथि।
(गजल)
आइ भरि मानि लिअऽ नाथ ने हट जोर करू।
देहरी ठाढ़ि सखी हो न एखन कोर करू ॥१॥
हाय रे दैव! इ ककरासँ कहू क्यो न सुनै।
सैह खिसिआइए जकरा कनेको सोर करू ॥२॥
लाथ मानै ने क्यो सभ लोक करैए हँसी।
बाजऽ भूकऽ ले जँ कनेक जकर सोझ ओठ करू ॥३॥
जाइ एखन ने धनी एक कहल मोर करू।
आन संगोर करू एहि ठाम भोर करू ॥४॥
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