गप्प हमरा संग अहाँ करैत रहू
एहिना मोन हमर जुरबैत रहू
मोन कहिओ नहि भरतैक केकरो
हम अहाँ के छूब अहाँ हमरा छूबैत रहू
बरसि जेतै सभतरि अमरित केर बरखा
कनी कनडेरिए अहाँ देखैत रहू
चलू दोस्त नहि दुश्मने बनि जाउ हमर
आ करेज सँ करेज भिरा लड़ैत रहू
अनचिन्हार लिखत प्रेमक पाँति
करेज पर हाथ राखि एकरा पढ़ैत रहू
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सोमवार, 12 जुलाई 2010
गजल
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