बुधवार, 25 सितंबर 2013

गजल

भूख छल प्रेमक भूखले रहि गेलहुँ
याह सोचिक हम टूटले रहि गेलहुँ

एक ओकर खातिर बनल सभ बैरी
सभसँ जिनगी भरि छूटले रहि गेलहुँ

पटकि देलक घैला जकाँ हिय एना
जाहि कारण हम फूटले रहि गेलहुँ

भरल प्रेमक कोठी, परल खाली छै
प्रेम बिन ओकर लूटले रहि गेलहुँ

कुन्दनक बखरा परल नीरस जिनगी
शोक संगे नित जूटले रहि गेलहुँ

२१२२ २२१२ २२२

© कुन्दन कुमार कर्ण

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रविवार, 15 सितंबर 2013

गजल

जे केयो करै छै काम
तकरे लोक लै छै नाम

जकरा संग छै ईमान
चर्चा तकर छै सबठाम

जे केलक मरम बुझि कर्म
से नै रहल छै बेकाम

कथनीमें भरोसा कोन
करणीमें रहै छै दाम

कहबी कुन्दनक छी याह
किछु छै खास, किछु छै आम

२२२१ (मफऊलात)
सब पाँतिमें दू बेर

© कुन्दन कुमार कर्ण
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शुक्रवार, 13 सितंबर 2013

गजल

हम गजल कोना कहू भीड़मे रसगर
सगर मुँह बेने मनुख भेसमे अजगर

पाइ घोटाला हबालाक खाएकेँ
रोग छै सबकेँ पकरने किए कसगर

बहिन माए भाइ बाबू अपन कनियाँ
सब तकै सम्बन्धमे दाम ली जथगर

गामकेँ बेटा परेलै शहर सबटा
खेत एकोटा रहल आब नै चसगर

छै बिकाइ प्रेम दू-दू टका मोले
रीत मनुकेँ नै लगै छै कनी जसगर

(बहरे कलील, मात्रा क्रम २१२२-२१२२-१२२२)

जगदानन्द झा मनु’    

गजल



गजल – दू



गाम छोड़ति हम कैन गेलउ

बाम भेलइ दिन जैन गेलउ



नेह टूटल सब बन्धु छूटल

भाग भूटल हम मैन गेलउ



माटि पावन हम छोड़ि आयल

प्रीति  माहुर हम सैन गेलउ



साग बारिक फल फूल बारिक

फेर​ पायब हम ठैन गेलउ



‘राम’ गामक रस छोड़ि आयल

फेर आयब हम ठैन गेलउ



सभ पैत में आखर - १२ आ मात्रा - १६

तिथि: १३/०९/२०१३

© राम कुमार मिश्र

गजल

गजल-1.68

राति छै बेसी बचल कम जाम* छै
हमर नोरक दाम ओकर नाम छै

राजनीतक उठल बिर्रो देश भरि
जे छलै दायाँ बुझू से बाम छै

घाव टिभकै खूब चिट्ठी खोलिते
पस हियामे भरल नेहक दाम छै

गारि पढ़ियो वा अहाँ लाठी धरू
देशकेँ चक्का रहल बस जाम छै

आँखिमे छै भोर सोहावन "अमित"
बाँहिमे बान्हल नविन सन गाम छै

*दारू
2122-2122-212
अमित मिश्र

गुरुवार, 12 सितंबर 2013

गजल

आइ किछु मोन पडलै फेरसँ किए
भाव मोनक ससरलै फेरसँ किए

टाल लागल लहासक खरिहानमे
गाम ककरो उजडलै फेरसँ किए

आँखि खोलू, किए छी आन्हर बनल
नोर देशक झहरलै फेरसँ किए

चान शोभा बनै छै गगनक सदति
चान नीचा उतरलै फेरसँ किए

"ओम" जिनगी अन्हारक जीबै छलै
प्राण-बाती पजरलै फेरसँ किए
(दीर्घ-ह्रस्व-दीर्घ-दीर्घ)-(ह्रस्व-दीर्घ-दीर्घ)-(दीर्घ-दीर्घ-ह्रस्व-दीर्घ)
(फाइलातुन-फऊलुन-मुस्तफइलुन) - १ बेर प्रत्येक पाँतिमे

शुक्रवार, 6 सितंबर 2013

गजल

गजल-1.67
तरेगण लाख छै तैयौ नगर अन्हार रहिते छै
बरू छै भीड़ दुनियाँमे मनुख एसगर चलिते छै

सजल छै आँखिमे सपना नदी नाला हरित धरती
जकर बेटा सुखी ओ माइक श्रृंगार सजिते छै

गजब छै रीत दुनियाँ केर मरने राख धरि फेकै
मुदा सदिखन सभक मनमे अमिट सन यादि बसिते छै

अहा वा आह धरि बाजब अहाँ आ बाट निज पकड़ब
अहींकेँ हास्य अभिनयमे हमर संसार जरिते छै

सगर छै खेल आखरकेँ हँसाबै आ कनाबै छै
कतौ टुटिते हिया छै आ कतौ नव नेह रचिते छै

अमित मिश्र

गुरुवार, 5 सितंबर 2013

गजल

कहियो तँ हमर घरमे चान एतै
नेनाक ठोर बिसरल गान गेतै

निर्जीव भेल बस्ती सगर सूतल
सुतनाइ यैह सबहक जान लेतै

मानक गुमान धरले रहत एतय
नोरक लपटिसँ झरकिकऽ मान जेतै

सुर ताल मिलत जखने सभक ऐठाँ
क्रान्तिक बिगुलसँ गुंजित तान हेतै

हक अपन "ओम" छीनत ताल ठोकिकऽ
छोडब किया, कियो की दान देतै

(दीर्घ-दीर्घ-ह्रस्व-दीर्घ)-(ह्रस्व-दीर्घ-दीर्घ-दीर्घ)-(ह्रस्व-दीर्घ-दीर्घ)
(मुस्तफइलुन-मफाईलुन-फऊलुन)- प्रत्येक पाँतिमे एक बेर
तोहर मतलब प्रेम प्रेमक मतलब जीवन आ जीवनक मतलब तों