हम गजल कोना कहू भीड़मे रसगर
सगर मुँह बेने मनुख भेसमे अजगर
पाइ घोटाला हबालाक खाएकेँ
रोग छै सबकेँ पकरने किए कसगर
बहिन माए भाइ बाबू अपन कनियाँ
सब तकै सम्बन्धमे दाम ली जथगर
गामकेँ बेटा परेलै शहर सबटा
खेत एकोटा रहल आब नै चसगर
छै बिकाइ प्रेम दू-दू टका मोले
रीत ‘मनु’केँ नै लगै छै कनी जसगर
(बहरे कलील, मात्रा क्रम – २१२२-२१२२-१२२२)
जगदानन्द झा ‘मनु’
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें